up board class 10 hindi full solution chapter 5 sanskrit khand देशभक्त: चन्द्रशेखरः
up board class 10 hindi full solution chapter 5 sanskrit khand देशभक्त: चन्द्रशेखरः का सम्पूर्ण अनुवाद –
(स्थानम्-वाराणसी न्यायालयः। न्यायाधीशस्य पीठे एकः दुर्धर्षः पारसीकः तिष्ठति। आरक्षकाः चन्द्रशेखरं तस्य सम्मुखम् आनयन्ति। अभियोगः प्रारभते। चन्द्रशेखरः पुष्टाङ्गः गौरवर्णः षोडशवर्षीयः किशोरः) www.Mpboardinfo.in
आरक्षक – श्रीमान् ! अयम् अस्ति चन्द्रशेखरः। अयं राजद्रोही। गतदिने अनेनैव असहयोगिनां सभायां एकस्य आरक्षकस्य दुर्जयसिंहस्य मस्तके प्रस्तरखण्डेन प्रहारः कृतः। येन दुर्जयसिंहः आहतः |
न्यायाधीश – (तं बालकं विस्मयेन विलोकयन्) रे बालक ! तव किं नाम ?
चन्द्रशेखर – आजादः (स्थिरीभूय) ।www.Mpboardinfo.in
न्यायाधीश – तव पितुः किं नाम ?
चन्द्रशेखर – स्वतन्त्रः।।
न्यायाधीश – त्वं कुत्र निवसति ? तव गृहं कुत्रास्ति ?
चन्द्रशेखर – कारागार एव मम गृहम् ।।
न्यायाधीश – (स्वगतम्) कीदृशः प्रमत्तः स्वतन्त्रतायै अयम् ? (प्रकाशम्) – अतीवधृष्ट: उद्दण्डश्चायं नवयुवकः। अहम् इमं पञ्चदश कशाघातान् दण्डयामि ।
चन्द्रशेखर – नास्ति चिन्ता ।
कठिन शब्दों का अर्थ –
[ पीठेः = आसन पर। दुर्धर्षः = कठोर ह्रदय । पारसीकः = पारसी । आरक्षकाः = सिपाही। आनयन्ति = ले आते हैं। अभियोगः = मुकदमा। पुष्टाङ्गः = हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला। षोडशवर्षीयः = सोलह वर्ष का। प्रस्तरखण्डेन = पत्थर के टुकड़े से।) आहतः = घायल हो गया। स्थिरीभूय = दृढ़ होकर। प्रमत्तः = पागल। कशाघातान् = कोड़ों से।] ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘देशभक्तः चन्द्रशेखरः’ पाठ से उद्धृत है ।
प्रसंग – इसमें चन्द्रशेखर आजाद के साहस साहस और देशभक्ति का वर्णन किया गया है।
अवतरण का हिंदी अनुवाद –
(स्थान-वाराणसी न्यायालय । न्यायाधीश के आसन पर एक कठोर ह्रदय पारसी बैठा हुआ है। सिपाही चन्द्रशेखर को उसके सामने लायाजाता है । मुकदमा आरम्भ होता है। चन्द्रशेखर ह्रष्ट पुष्ट अंगों वाला, गोरे रंग का, सोलह वर्षीय एक किशोर है )
सिपाही – श्रीमान् जी ! यह चन्द्रशेखर है। यह राजद्रोही है। पिछले दिनों इसने ही असहयोग आन्दोलनकारियों की सभा में एक सिपाही दुर्जनसिंह के मस्तक पर पत्थर के टुकड़े से प्रहार किया था। जिससे दुर्जनसिंह घायल हो गया था ।
न्यायाधीश – (उस बालक को आश्चर्य से देखते हुए) अरे बालक! तुम्हारा क्या नाम है ?
चन्द्रशेखर – आजाद (दृढ़तापूर्वक से)।
न्यायाधीश – तुम्हारे पिता का नाम क्या है ?
चन्द्रशेखर – ‘स्वतन्त्र’||
न्यायाधीश – तुम कहाँ रहते हो ? तुम्हारा घर कहाँ है ?
चन्द्रशेखर – जेल ही मेरा घर है ।
न्यायाधीश – (अपने मन में) यह स्वतन्त्रता के लिए कैसा पागल है ? (प्रकट रूप में) यह नवयुवक अत्यन्त ढीठ और उद्दण्ड है। मैं इसे पंद्रह कोड़े मारे जाने का दण्ड देता हूँ ।
चन्द्रशेखर – चिन्ता नहीं है।
(द्वितीयं दृश्यम्)
(ततः दृष्टिगोचरौ भवतः–कौपीनमात्रावशेषः, फलकेन दृढं बद्धः चन्द्रशेखरः, कशाहस्तेन चाण्डालेन, अनुगम्यमानः कारावासाधिकारी गण्डासिंहश्च )
गण्डासिंह – (चाण्डाले प्रति) दुर्मुख ! मम आदेशसमकालमेव कशाघातः कर्तव्यः। (चन्द्रशेखरं प्रति) रे दुर्विनीत युवक ! लभस्व इदानीं स्वाविनयस्य फलम्। कुरु राजद्रोहम्। दुर्मुख ! कशाघातः एकः (दुर्मुखः चन्द्रशेखरं कशया ताडयति ) ।
चन्द्रशेखर – जयतु भारतम्।।
गण्डासिंह – दुर्मुख ! द्वितीयः कशाघातः। (दुर्मुखः पुनः ताडयति)।
ताडित – चन्द्रशेखरः पुनः-पुनः “भारतं जयतु” इति वदति।
(एवं स पञ्चदशकशाघातैः ताडितः।)
UP & MP BOARD NOTES – UP & MP BOARD SOLUTION
कठिन शब्दों का अर्थ –
[ दृष्टिगोचरौ भवतः = दिखाई देते हैं। कौपीनमीत्रावशेषः = लँगोटीमात्र पहने हुए। फलकेन दृढं बद्धः = हथकड़ी से कसकर बाँधा गया । कशाहस्तेन = हाथ में कोड़ा लिये हुए। कारावासाधिकारी = जेलर । आदेश-समकालमेव = आदेश पाते ही। कशाघीतः कर्त्तव्यः = कोड़े मारना। स्वाविनयस्य ( स्व + अविनयस्य) = अपनी धृष्टता का ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘देशभक्तः चन्द्रशेखरः’ पाठ से उद्धृत है ||
अनुवाद – (इसके बाद लँगोटीमात्र पहने हुए, हथकड़ी से मजबूत बँधा हुआ चन्द्रशेखर और हाथ में कोड़ा लिये चाण्डाल तथा उसके पीछे अनुगमित जेल अधिकारी गण्डासिंह दिखाई पड़ते हैं।)
गण्डासिंह – (जल्लाद से) दुर्मुख! मेरा आदेश पाते ही कोड़े लगाना। (चन्द्रशेखर से) अरे अविनयी युवक! अब तू अपनी अविनय का फल प्राप्त कर। राजद्रोह कर! दुर्मुख! एक कोड़े का प्रहार करो। (दुर्मुख चन्द्रशेखर को कोड़े से पीटता है।) ।
चन्द्रशेखर – भारतमाता की जय हो ।
गण्डासिंह – दुर्मुख ! कोड़े का दूसरा प्रहार (करो)। (दुर्मुख पुनः कोड़ा मारता है।)पीटा गया चन्द्रशेखर बार-बार ‘भारतमाता की जय हो’ कहता है। (इस प्रकार वह पन्द्रह कोड़ों से पीटा जाता है।)
यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् मुक्त: बहिः आगच्छति, तदैव सर्वे जनाः तं परित: वेष्टयन्ति, बहवः बालकाः तस्य पादयोः पतन्ति, तं मालाभिः अभिनन्दयन्ति च।
चन्द्रशेखर – किमिदं क्रियते भवद्भिः ? वयं सर्वे भारतमातुः अनन्यभक्ताः तस्याः शत्रूणां कृते मदीया इमे रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः भविष्यन्ति।।
(जयतु भारतम्’ इति उच्चैः कथयन्तः सर्वे गच्छन्ति।)
काठी शब्दों का अर्थ –
[मुक्तः = छूटा हुआ। परितः वेष्टयन्ति = चारों ओर से घेर लेते हैं। अभिनन्दयन्ति = अभिनन्दन करते हैं। मदीयाः = मेरी। अग्नि स्फुलिंगाः = अग्नि की चिंगारियाँ]
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘देशभक्तः चन्द्रशेखरः’ पाठ से उद्धृत है ||
अनुवाद – जब चन्द्रशेखर जेल से छूटकर बाहर आता है, तब सभी लोग उसे चारों ओर से घेर लेते हैं । बहुत-से बालक उसके पैरों में गिरते हैं, और उनका फूलमालाओं से सम्मान करते हैं ।
चन्द्रशेखर – आप लोग यह क्या कर रहे हैं ? हम सब भारतमाता के अनन्य भक्त हैं। उसके शत्रुओं के लिए हमारी ये खून की बूंदें अग्नि की चिंगारियाँ होंगी ।
( ‘भारतमाता की जय हो’ इस प्रकार जोर से कहते हुए सभी चले जाते हैं )
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