All Sanskrit grammar part – 6 सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण अच् संधि (स्वर संधि ) पूर्वरूप संधि पररूप संधि
सूत्र- एडिपररूपम्
– यह वस्तुतः वृद्धिरेचि सूत्र का अपवाद सूत्र है, किन्तु सामान्यतः इसे पररूप संधि भी कहते हैं। इसे समझने के लिये एक दृष्टि वृद्धिरेचि सूत्र पर डालनी होगी। वहाँ अ ,आ + ए ,ऐ = ऐ तथा अ, आ + ओ, औ = औ वृद्धि विधान किया गया था।
किन्तु इस सूत्र के अनुसार यदि अकारान्त उपसर्ग के पश्चात् एकारादि या ओकारादि धातु का प्रयोग होता है, तो उपसर्ग में प्रयुक्त अकार तथा धातु के प्रारम्भ में प्रयुक्त एकार या ओकार क्रमशः एकार व ओकार ही रहते हैं अर्थात् इस संधि में पूर्व और परवर्ण के स्थान पर परवर्ण ही रहता है, इसीलिए इसे पररूप संधि भी कहते हैं।
उपसर्ग का अ + ए धातु का = ए
उपसर्ग का अ + ओ धातु का = ओ
वृद्धि संधि और इसमें केवल दो मिन्नताएँ हैं-
१. अकार उपसर्ग का होना चाहिए।
२. उसके बाद धातु का ए या ओ वर्ण आना चाहिए। जबकि वृद्धि संधि में ऐसी अनिवार्यताएँ नहीं हैं।
यहाँ एङ् प्रत्याहार है। जिसमें ए और ओ दो वर्ण आते हैं।
प्र + एजते = अ + ए =ए (पररूप एकादेश) = प्रेजते
उप + ओषति= अ +ओ = ( पररूप एकादेश) = उपोषति
स्पष्टीकरण- प्रेजते उदाहरण में प्र उपसर्ग के अन्त में स्थित अकार के पश्चात् एजते में स्थित धातु का ए आने के कारण उपर्युक्त सूत्र से अ+ ए दोनों को पररूप एकादेश ए होकर बना-प्रेजते ।
All Sanskrit grammar part – 6 सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण अच् संधि (स्वर संधि ) पूर्वरूप संधि
सूत्र- एङः पदान्तादति
– यदि किसी पद के अन्त में एड् प्रत्याहार का वर्ण ए या ओ आवे तथा उसके पश्चात् अकार का प्रयोग हो तो इन दोनों वर्गों को ए + अ ए, ओअओ पूर्वरूप एकादेश हो जाता है। यहाँ अ के अस्तित्व को बताने के लिए (S) अंग्रेजी के ‘एस’ के चिह्न का प्रयोग कर दिया जाता है, यद्यपि व्याकरण की दृष्टि से इस चिह्न की अनिवार्यता नहीं है। यहाँ पूर्व और पर दोनों वर्णों में पूर्व वर्ण शेष रहता है। इसलिए इसे ही पूर्वरूप संधि भी कहते हैं।
जैसे- ए + अ = ए पूर्वरूप एकादेश
हरे + अव=ए+ अ =ए= हरेव या हरेऽव
वृक्षे + अस्मिन् =ए + अ = ए= वृक्षैस्मिन् या वृक्षेऽस्मिन्
वने + अत्र =ए+अ =ए- वनेत्र या वनेऽत्र –
ओ + अ = ओ पूर्वरूप एकादेश
बालो + अवदत् = ओ + अ = ओ, बालोवदत् / बालोऽवदत्
लोको + अयम् = ओ + अ = ओ, लोकोयम् / लोकोऽयम्
गुरो + अव = ओ + अ = ओ = गुरोव / गुरोऽव
स्पष्टीकरण- हरेव पद में हरे के अन्त में प्रयुक्त एङ् प्रत्याहार का वर्ण ए प्रयुक्त हुआ है तथा उसके पश्चात् अव में स्थित अकार आने के कारण उपर्युक्त सूत्र से पूर्वरूप एकादेश ए + अ ए होने के कारण हरेव शब्द बना। यहाँ अ की एअ ए = उपस्थिति दर्शाने के लिये हरेऽव इस प्रकार भी लिखा जा सकता है। व्याकरण की दृष्टि से दोनों शुद्ध हैं।
- Avyay in sanskrit
- Mp board class 6 science varshik paper 2024 विज्ञान वार्षिक पेपर
- Mp board class 6 english varshik paper 2024 अंग्रेजी वार्षिक पेपर
- Satsangati Essay In Sanskrit सत्संगतिः निबंध संस्कृत में
- Up Board Solution For Class 12 Sanskrit Character sketch of chandal kanya चाण्डालकन्या का चरित्र चित्रण