UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi sandhi सन्धि-प्रकरण नियम उदाहरण सहित
सन्धि-प्रकरण
नवीनतम पाठ्यक्रम में सन्धि से सम्बन्धित प्रश्नों के लिए कुल 4 अंक निर्धारित हैं। नये प्रारूप के अनुसार अब इससे बहुविकल्पीय प्रश्न ही पूछे जाएंगे। तीन बहुविकल्पीय प्रश्नों में से एक प्रश्न परिभाषा पर, दूसरा प्रश्न सन्धित पद देकर उसके विच्छेद पर और तीसरा प्रश्न विच्छेद देकर उसके सन्धित पद पर आधारित होगा।
सन्धि – सन्धि का अर्थ है ‘मेल’ या जोड़। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो पहले शब्द का अन्तिम वर्ण और दूसरे शब्द का आरम्भिक वर्ण कुछ नियमों के अनुसार आपस में मिलकर एक हो जाते हैं। दो वर्षों के इस एकीकरण को ही ‘सन्धि’ कहते
हैं। उदाहरणार्थ-देव+ आलय = देवालय । यहाँ ‘देव’ (= द् + ए+ + अ) शब्द का अन्तिम ‘अ’ और ‘आलय’ शब्द का प्रारम्भिक आ’ मिलकर ‘आ’ बन गये। इसी प्रकार महा + आत्मा = महात्मा (आ + आ = आ), देव + ईश = देवेश ( अ + ई = ए) आदि । सन्धि के प्रकार – सन्धि तीन प्रकार की होती है – (अ) स्वर सन्धि, (ब) व्यञ्जन सन्धि तथा (स) विसर्ग सन्धि।
स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं। उपर्युक्त देवालय’, ‘महात्मा’ और ‘देवेश’ स्वर सन्धि के ही उदाहरण हैं। कुछ स्वर सन्धियाँ नीचे दी जा रही हैं
(1) अयादि सन्धि
सूत्र – एचोऽयवायावः
जब एच् (ए, ओ, ऐ, औ) के आगे कोई स्वर आये तो इन ए, ओ, ऐ, औ के स्थान पर क्रमश: अय्, अव्, आय् और आव् हो जाता है; जैसे
हरे + ए = हर् + ए + ए = हर् + अय् + ए =हरये
नै + अक: = न् + ऐ + अक: = न् + आय् + अकः = नायक:
गै + अकः = ग् + ऐ + अक =ग् + आय् + अक: = गायक:
पो + इत्रम् =प् + ओ + इत्रम= प् + अव् + इत्रम् =पवित्रम्
पौ + अक: = प् + औ + अक: = प् + आव् + अकः = पावकः
विष्णो + ए= विष्णू + ओ + ए== विष्ण् + अव् + ए = विष्णवे
कल् + आव् + इव = कलौ + इव = कल् + औ + इव=कलाविव
पो + अनम् = प् + ओ + अनम् = प् + अव् + अनम् =पवनम्
ने + अनम् = न् + ए + अनम्==न् + अय् + अनम् = नयनम्
नौ + इक: = न् + औ + इक: = न् + आव् + इक: = नाविक:
भो + अनम्ः = भ् + ओ + अनम्= भ् + अव् + अनम्= भवनम्
भौ + उक्: = भ् + औ + उक्ः= भ् + आव् + उकः = भावुक:
रामौ + अग्रतः = म्’ + औं + अग्रतः = म् + आव् + अग्रतः = रामावग्रतः
शे + अनम् = शू +ए+ अनम् = श् + अय् + अनम् = शयनम्
(2) पूर्वरूप सन्धि
सूत्र – एङ पदान्तादति
किसी पद (विभक्तियुक्त शब्द) के अन्त में यदि ‘ए’ या ‘ओ’ आये और उसके बाद (अर्थात्) दूसरे पद के आरम्भ में ‘अ’ आये तो ‘अ’ का लोप हो जाता है और लोप के सूचक-रूप में खण्डित ‘अ’ का चिह्न अवग्रह (S) रख दिया जाता है; जैसे
(3) पररूप सन्धि
वीरो + अयम् =वीरोऽयम्
विद्यालये + अस्मिन्=विद्यालयेऽस्मिन्
विंशतितमे + अब्दे=विंशतितमेऽब्दे
नगरे + अस्मिन्=नगरे ऽस्मिन्
नगरे+ अपि=नगरेऽपि
देवो+ अपि=देवोऽपि
हरे+ अत्र=हरेऽत्र
रामो + अत्र= रामोऽत्र
ग्रामे+ अद्य=ग्रामेऽद्य
प्रभो + अवराधनम् =प्रभोऽवराधनम्
३- पररूपम् संधि
सूत्र – एङि पररूपम् यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद एकारादि य ओकारादि धातु आये तो दोनों के स्थान में ‘ए’ या ‘ओ’ हो जाता है; जैसे
प्र + एजते = प्रेजते=(अधिक काँपता है)
उप + ओषति=उपोषति (जलता है)
(4) यण सन्धि
सूत्र – इको यणचि –
लृ + आकृति = लाकृतिः
अन्वेषणम् = अनु + एषणम्।
(5) दीर्घ सन्धि
सूत्र – एकः सवर्णे दीर्घः –
स + अक्षरः = साक्षर:
वधूत्सव= वधू + उत्सवः
जिन दो वर्षों में सन्धि की जा रही है, यदि उनमें से एक स्वर और एक व्यञ्जन हो या दोनों व्यञ्जन हों, तो वह व्यञ्जन सन्धि कहलाती है। कुछ व्यञ्जन सन्धियों के विवरण नीचे दिये जा रहे हैं
(1) श्चुत संधि
- सूत्र – स्तोः चुनाः चुः । जब सकार (= स्) या तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) के बाद शकार (श्) या चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ् ) आता है, तब सकार (स) का शकार (श) और तवर्ग का चवर्ग हो जाता है (अर्थात् त् थ् द् ध् न् के स्थान पर क्रमशः च् छ् ज् झ् ञ् हो जाता है); जैसे
हरिः + शेते= हरिस्+ शेते== हरिश्शेते
विष्णुः + त्राता=विष्णुस् + त्राता = विष्णुस्त्राता
हरिः + चन्द्रः =हरिस् + चन्द्रः हरिश्चन्द्रः
हरिः + चरति= हरिस् + चरति= हरिश्चरति
राम:+ चलति=रामस् + चलति= रामश्चलति
नमः + ते =नमस्+ ते=नमस्ते
राम:+ तिष्ठति= रामस्+ तिष्ठति = रामस्तिष्ठति
सिंह: + चरति=सिंहस् + चरति = सिंहश्चरति
नरः + चलति = नरस् + चलति = नरश्चलति
प्रभुः + चलति = प्रभुस् + चलति = प्रभुश्चलति
इत: + तत: = इतस् + ततः = इतस्ततः
रामः+तरति =रामस् + तरति=रामस्तरति
गौः, + चरति = गौस् + चरति = गौश्चरति
पूर्णः + चन्द्रः = पूर्णस् + चन्द्रः पूर्णश्चन्द्रः
पशु: + चरति=पशुस्+ चरति =पशुश्चरति
दुष्टः+ ताडयति=दुष्टस्+ ताड़यति=दुष्टस्ताडयति
(2) ष्टुत्व संधि = सकार या तवर्ग के बाद यदि षकार (= षू) या टवर्ग (य् द् ड् ढ् ण) आये तो सकार (= स्) के स्थान पर षकार (=ष) और तवर्ग के स्थान पर टवर्ग हो जाता है (अर्थात् त् थ् द् ध् न् के स्थान पर क्रमश: ट् ठ् ड् ढ् ण् हो जाता है); जैसे
रामस् (राम:) + षष्ठः = रामष्षष्ठः
रामस् + टीकते = रामष्टीकते
तत् + टीका = तट्टीका
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
(3) जश्त्व सन्धि-
सूत्रे – झलां जश् झशि
यदि झल् प्रत्याहार (य् व् र लु, ङ् ञ् ण् न् म् को छोड़कर शेष व्यञ्जनों में से किसी भी व्यञ्जन) के बाद झशु (किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण अर्थात् ग् ज् ड् द् ब्, घ् झ् द् ध् भ् में से कोई) आये तो पूर्ववर्ती व्यञ्जन (अर्थात् झल्) के स्थान पर उसी वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है (अर्थात् ग् ज् ड् द् ब् में से ही वर्गानुसार कोई वर्ण हो जाता है); जैसे
दोघ् + धा = दोग्धा
योध् + धा = योद्धा = योद्धा
वृध् + धः = वृद्धः = वृद्धः सन्नध् + धः = सन्नद्धः = सन्नद्धः
दुघ् + धम् = दुग्धम्
बुध् + धिः = बुद्धिः = बुद्धिः सिध् + धिः = सिद्धिः = सिद्धिः
लभ् + धः = लब्ध:
(4) चर्त्व संधि
सूत्र – खरि च
यदि झल् प्रत्याहार (य् व् लु, ङ् ञ् ण् न् म् को छोड़कर शेष व्यञ्जन अर्थात् वर्गीय प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण और श् ष् स् ह में से किसी) के बाद यदि खर् प्रत्याहार का कोई वर्ण (अर्थात् वर्गीय प्रथम, द्वितीय वर्ण एवं श् ष स में से कोई) आये तो पूर्ववर्ती व्यञ्जन (= झल् प्रत्याहार) के स्थान पर चर् प्रत्याहार (वर्गीय प्रथम वर्ण, अर्थात् क् च् र् त् प् में से वर्गानुसार कोई) हो जाती है; जैसे
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्रान्तः
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः
उद् + कीर्णः उत्कीर्णः
आपद् + कालः = आपत्कालः विपद् + कालः = विपत्कालः
उद् + साहः = उत्साहः
सद् + कारः = सत्कार:
(5) अनुस्वार सन्धि–
सूत्र – मोऽनुस्वारः
पदान्त म् (अर्थात् विभक्तियुक्त शब्द के अन्त में आये म्) के बाद यदि कोई व्यञ्जन आये तो म् के स्थान पर अनुस्वार (.) हो जाता है; जैसे
हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
गृहम् + गच्छति = गृहं
गच्छति गृहम् + परितः = गृहं परितः
गृहम् + गच्छ = गृहं गच्छ गुरुम् + वन्दे = गुरु वन्दे
कृष्णम् + वन्दे = कृष्णं वन्दे नगरम् + गच्छति = नगरं गच्छति
(6) लत्व सन्धि
सूत्र – तोलि –
यदि तवर्ग के किसी वर्ण से परे ल हो तो तवर्गीय वर्ण के स्थान पर ल् हो जाता है; जैसे
उत् + लेखः = उल्लेखः
उत् + लिखितम् = उल्लिखितम्
विद्वान् + लिखति = विद्वांल्लिखति
तत् + लीनः = तल्लीनः
जगत् + लयः = जगल्लयः
उत् + लासः = उल्लास:
तत् + लयः = तल्लयः
(7) परसवर्ण सन्धि
सूत्र – अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः
यदि अनुस्वार से परे यय् प्रत्याहार का वर्ण (श् ष स ह को छोड़कर कोई भी व्यंजन) हो तो अनुस्वार के स्थान पर परसवर्ण (अग्रिम वर्ण का सवर्ण, वर्ग का पाँचवाँ वर्ण) हो जाता है।
उदाहरण- धनम् + जयः = धनञ्जयः
त्वम् + करोषि = त्वङ्करोषि
दो वर्षों के एकीकरण में यदि पहले विसर्ग (:) और बाद में स्वर या व्यञ्जन हो तो वह विसर्ग सन्धि कहलाती है।
(1) सत्व सन्धि
सूत्र – विसर्जनीयस्य सः विसर्ग के बाद यदि खर् प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्गीय प्रथम, द्वितीय वर्ण और श ष स में से कोई) आये तो विसर्ग के स्थान पर स् हो जाता है, फिर वह ‘स्’ अपने सामने वाले वर्ण के साथ व्यञ्जन सन्धि के नियमानुसार मिल जाता है; जैसे
हरिस् (= हरिः)+ शेते =हरिश्शेते
रामस् (= रामः)+चिनोति=रामश्चिनोति
सत्+चित् =सच्चित्
तत्+चौर:=तच्चौर :
उत्+चारणम् =उच्चारणम्
सत्+चयनम्=सच्चयनम्
सद्+जन:=सज्जनः
मघवन्+ जय: =मघवञ्जयः
निस्+छलम् =निश्छलम्
पूर्णस् +चन्द्रः =पूर्णश्चन्द्रः
नर:+चलति=नरश्चलति
सत्+चरितम्=सच्चरितम्
(2) रुत्व सन्धि – सूत्र – (क) ससजुषो रुः (ख) खरवसानयोर्विसर्जनीयः
पदान्त स् तथा ‘सजुष’ शब्द के के स्थान पर रु (र) हो जाता है। इस र् के बाद खर प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्गीय प्रथम, द्वितीय वर्ण एवं श् ष स्) हो या कोई भी वर्णन हो तो र् का विसर्ग (:) हो जाता है; जैसे
रामस् + पठति = रामर् + पठति रामः पठति
रामस्= रामर् = = रामः ( र् के आंगे कोई भी वर्ण न होने की स्थिथि में
गुरुः + अस्ति = गुरुर् + अस्ति = गुरुरस्ति
गुरोः+ धनम् = गुरोर् + धनम् = गुरोर्धनम्
(3) उत्व सन्धि सूत्र – (क) अतो रोरप्लुतादप्लुते ।
(ख) हशि च -पिछले नियमानुसार स् के स्थान पर जो र होता है, उसके पहले यदि अ आये और बाद में अ या हश् प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्गीय तृतीय, चतुर्थ, पंचम और य् व् र् ल्ह में से कोई) आये तो र के स्थान पर उ हो जाता है; जैसे
शिवस् + अर्ध्यः = शिवर् + अर्व्यः= शिवो + अर्व्यः
शिव + उ + अर्थ्य:== शिवोऽर्थ्यः ।
इस उदाहरण में शिवस् के सू कार् आदेश होकर शिवर बना। इसके र से पहले अ है (शिव् + अ = 1 शिव) और बाद में अर्थ्य:’ का अ है; अत: र का उ हो गया। फिर ‘शिव’ का अ और यह उ मिलकर ‘ओ’ बन गया (शिवो) और तब पूर्वरूप होकर शिवोऽर्थ्यः’ बना।
सः + अपि =सोऽपि
राम: + अस्ति =रामोऽस्ति
राम:+ अपठत् =रामोऽपठत्
राज्ञः + अस्ति = राज्ञोऽस्ति
राम: + अत्र =रामोऽत्र
इसी प्रकार र् के बाद हश् प्रत्याहार के किसी वर्ण के आने का उदाहरण निम्नवत् है
शिवर् + वन्द्यः = शिव + उ + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
देवुः + वन्द्यः = देवर् + वन्द्यः = देव + उ + वन्द्यः = देवो वन्द्यः
यदि रु (र्) पूर्व ह्रस्व ‘अ’ तथा परे हश् (वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण, ह, य, र, ल, व) हों तो र् के स्थान में ‘उ’ हो जाता है; जैसे
बालकस् + याति = बालकर् + याति = बालक + उ + याति = बालको याति ।
श्यामस् + गच्छति = श्यामर् + गच्छति = श्याम + उ + गच्छति = श्यामो गच्छति।
बालस् + हसति = बालर् + हसति = बाल + उ + हसति = बालो हसति ।
रामः + हसति = रामस् + हसति = रामर् + हसति = राम + उ + हसति = रामो हसति ।
मेघः + वर्षति = मेघस् + वर्षति + मेघर् + वर्षति = मेघ +उ+ वर्षति = मेघो वर्षति ।
(4) रोरि– यदि र से परे र हो तो पूर्व र् का लोप हो जाता है। उस लुप्त ‘र’ से पहले यदि अ, इ, उ हों तो उनका दीर्घ हो जाता है; जैसे
पुनर् + रमते + = पुनारमते
गौर +रम्भते = गौ रम्भते
विष्णोर् + रमणम् = विष्णो रमणम्
शम्भुर + राजते = शुम्भुराज
हरिर् + रम्यः = हरी रम्यः ।
अन्तर् + राष्ट्रियः = अन्ताराष्ट्रियः ।
छात्रोंसे यह अपेक्षित है कि वे पहले दिये गये सभी सन्धियों के नियमों व उनके उदाहरणों को भली प्रकार से तैयार करें।
सन्धि के प्रकरण से सम्बन्धित प्रश्न
परीक्षा में बहुविकल्पीय रूप में भी पूछे जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप कुछ प्रश्न आगे दिये जा रहे हैं
(1) ‘नायिका’ को सन्धि-विच्छेद है
(क) ना+इका
(ख) नायि + का,
(ग) नै + इका
(घ) न + आइका
उत्तर- ग
(2) ‘उपोषति’ का सन्धि-विच्छेद है
(क) उपो + षति
(ख) उप + ओषति
(ग) उ + पोषति
(घ) उप+ ओषति
उत्तर- ख
(3) ‘हरेऽव’ का सन्धिविच्छेद है
(क ) हरे+अव
(ख) हरे + इव
(ग) हर +इव
(घ) हर + एव
उत्तर-क
(4) ‘सच्चित्’ का सन्धि-विच्छेद है
(क) सच् + चित् (ख) सत् + चित्
(ग) सच्चि + त (घ) सच्चि + त् ।
उत्तर – ख
(5) ‘विपत्काल’ का सन्धि-विच्छेद है
(क) विपत + काल (ख) विपत्ति + काल,
(ग) विपद् + काल (घ) विपदा + काल
उत्तर – ग
(6) निम्नलिखित में से ‘तोलि’ सन्धि किसमें होगी?
(क) तत् + टीका
( ख) तत् +लय:
(ग) ला + आकृति
(घ) ला + आकृति
उत्तर – ख
(7) ‘निर् + रोग: की सन्धि होगी”
(क) निरोगः
(ख) नीरोगः
(ग) निरारोगः
(घ) निरोग:
उत्तर – ख
(8) ‘नरस् + चलति’ में सन्धि होगी
(क) नरोचलति
(ख) नराचलति
(ग) नरश्चलति
(घ) नरस्चलति
उत्तर – ग
(9) कुं+ ठित में सन्धि होगी
(क) कुंठित
(ख) कुन्ठित
(ग) कुठित
(घ) कुण्ठित
उत्तर – घ
(10) श्रुत्व सन्धि है
(के) तत् + लयः
(ख) सत् + मार्ग
(ग) रामस्+ चिनोति
(घ) तत् + टीका
उत्तर – ग
(11) ‘प्रेजते’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) प्रे+जते
(ख) प्रेज+ते
(ग) प्र + एजते
(घ) प्रए + जते
उत्तर – ग
(12) ‘एचोऽयवायावः’ सन्धि है
(क) ने + अनम्
(ख) उप + ओषति
(ग) सत् + जन
(घ) विष्णो + अव
उत्तर – क
(13) ‘सत् + चयन’ की सन्धि होगी
(क) सज्जयन
(ख) सुश्चयन
(ग) सच्चयन
(घ) सः चयन
उत्तर – ग
(14) निम्नलिखित में से किन्हीं तीन सन्धि सूत्रों के एक-एक सही उदाहरण चुनकर लिखिए तथा सूत्रों की व्याख्या कीजिए |
(क) सूत्र – एङ पदान्तादति, एचोऽय वायावः, मोऽनुस्वारः, अतो रोरप्लुतादप्लुते, खरि च ।।
उदाहरण –
आपत्कालः, गायकः, नगरं गच्छति,
वनेऽस्मिन्, सोऽपि।
(ख) सूत्र – एडि पररुपम्, विसर्जनीयस्य सः, एचोऽय वायावः, रोरि।
उदाहरण – पुनारमते. नमस्ते, पवन:,
उड्डयनम्, प्रेजते।
(क) हल:
(i) एङ पदान्तादति- वनेऽस्मिन् ।
(ii) एचोऽयवायावः – गायकः । ।
(iii) मोऽनुस्वार : – नगरं गच्छति।
(iv) अतो रोरप्लुतादप्लुते – सोऽपि ।
(v) खरि च – आपत्कालः।
(ख) हल:
(i)एडि पररुपम्, – प्रेजते
(ii) ष्टुना ष्टुः – उड्डयनम्:
(iii) विसर्जनीयस्य सः – नमस्ते
(iv) एचोऽयवायाव: पवनः
(v) रोरि – पुनारमते ।
संकेत – सूत्रों की व्याख्या के लिए सम्बन्धित सन्धियों का अध्ययन करें।
(15) ‘नयनम्’ का सन्धि विच्छेद होगा
(क) ने + यनम्
(ख) ने + अनम्
(ग) नय + नम्।
(घ) नै + अनम्
उत्तर – ख
(16) ‘ष्टुना टुः’ सन्धि है
(क) रामस्+ टीकते
(ख) लभ् + धः
(ग) सत् + चित्
(घ) सत् + चयन
उत्तर – क
(17) ‘अयादि’ सन्धि है
(क) सत् + चित्
(ख) प्र + एजते
(ग) पौ+ अकः
(घ) योध् + धा
उत्तर – ग
(18) ‘पावकः’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) पाव + कः
(ख) पौ+ अकः
(ग) पा + अक:
(घ) पाउ + कः
उत्तर – ख
(19) ‘टुत्व’ सन्धि है
(क) सत् + चित
(ख) तत् + टीका
(ग) लभ् + धः
(घ) सत् + चयन
उत्तर – ख
(20) ‘पूर्णः + चन्द्रः’ की सन्धि होगी
(क) पूर्णचन्द्रः
(ख) पूर्णश्चन्द्रः
(ग) पूर्णचन्द्रः
(घ) पूर्णचन्द्रः
उत्तर – ख
(21) ‘झलां जश् झशि’ सन्धि है
(क) लभ् + धः
(ख) तत् + लय:
(ग) ने + अनम्
(घ) प्र + एजते
उत्तर – क
(22) हल् (व्यञ्जन) सन्धि है
(क) सत् + चित्
(ख) उप + ओषति
(ग) हिम + आलय
(घ) सूर्य + उदय
उत्तर – क
(23) ‘रुत्व’ सन्धि है
(क) बालस्+ गच्छति
(ख) बाला + गच्छति
(ग) राम + गच्छति
(घ) कृष्ण + वन्दे
उत्तर – क
(24) ‘गौ: + चरति’ की सन्धि होगी
(क) गोस्चरति
(ख) गोचरति
(ग) गौश्चरति
(घ) गौहचरति
उत्तर – ग
(25) ‘ग्रामेऽपि’ को सन्धि-विच्छेद है
(क) ग्राम: + अपि
(ख) ग्राम + एपि
(ग) ग्रामे + अपि
(घ) ग्रामस + अपि
उत्तर – ग
(26) ‘अन् + कित:’ की सन्धि होगी
(क) अम्कितः
(ख) अन्कित:
(ग) अंकित:
(घ) अङ्कितः
उत्तर – ग
(27) ‘रामावग्रतः’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) रामे + अग्रतः
(ख) रामौ + अग्रतः
(ग) रामो + अग्रतः
(घ) रामः + अग्रतः
उत्तर – ख
(28) ‘रोरि’ सन्धि है
(क) पूर्णः + चन्द्रः
(ख) शम्भुर् + राजते
(ग) शिवस् + अर्घ्य
(घ) शाम् + तः
उत्तर – ख
(29) विष्णो + अत्र की सन्धि होगी
(क) विष्ण्वत्र
(ख) विष्णवत्र
(ग) विष्णावत्र
(घ) विष्णोऽत्र
उत्तर – घ
(30) ‘शत्रावति’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) शत्रु + अति
(ख) शत्रु + अवति
(ग) शत्रौ + अति
(घ) शत्रवः + अति
उत्तर – ग
(31) ‘उत्कीर्ण:’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) उत् + कीर्ण:
(ख) उद + कीर्ण:
(ग) उद् + कीर्णः
(घ) उत + कीर्ण
उत्तर – ग
(32) विसर्ग सन्धि है
(क) कः + चित्
(ख) कस् + चित्
(ग) कश् + चित्
(घ) कश + चित्
उत्तर – क
(33) ‘सुहृद् + क्रीडति’ की सन्धि होगी
(क) सहृद्क्रीडति
(ख) सुहृत्क्रीडति
(ग) सुहृतक्रीडति
(घ) सुहृदक्रीडति
उत्तर – ख
(34) ‘पेष् + ता’ की सन्धि होगी
(क) पेष्टा
(ख) पेष्टता
(ग) प्रेषयता
(घ) प्रेषिता
उत्तर – क
(35) ‘कवे: + अभावात्’ की सन्धि होगी
(क) कवेअभावात्
(ख) कवेरभावात्
(ग) कवेराभावात्
(घ) कवेरभवात्
उत्तर – ख
(36) गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः) होगी
(क) राज + ऋषिः
(ख) ने + अनम्
(ग) मधु + अरि:
(घ) शिव + आलय
उत्तर – क
(37) ‘नगेन्द्राः’ अथवा ‘नान्यत्र’ का सन्धि विच्छेद कीजिए
नगेन्द्राः = नग + इन्द्राः (आद्गुणः)
नान्यत्र = न + अन्यत्र (अक: सवर्णे दीर्घः)
(38) ‘गायक:’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) गाय + अक:
(ख) गायक:
(ग) गै + अकः
(घ) में + कः ।
उत्तर – ग
(39) ‘हरिः + चरति’ की सन्धि है
(क) हरिचरति
(ख) हरिश्चरति
(ग) हरिर्चरति
(घ) हरिच्चरति ।
उत्तर – ख
(40) ‘मोऽनुस्वारः’ सन्धि है
(क) विद्वान् + लिखतिः
(ख) ककुम् + प्रान्तः
(ग) चक्रिन् + ढौकसे
(घ) गृहम् + गच्छति
उत्तर – घ
(41) ‘देवस् + वन्द्यः’ की सन्धि होगी
(क) देवो वन्द्यः
(ख) देवर्वन्द्यः
(ग) देवश्वन्द्यः
(घ) देववन्द्यः
उत्तर – क
(42) ‘खरि च’ सन्धि है
(क) तद् + लीनः
(ख) सत् + चित्
(ग) सम्पद् + समयः
(घ) हरिम् + वन्दे
उत्तर – ग
(43) ‘रामष्षष्ठः’ का सन्धि विच्छेद होगा
(क) राम + षष्ठः
(ख) राम + षष्ठः
(ग) रामश् + षष्ठः
(घ) रामस् + षष्ठः
उत्तर – घ
(44) ‘विसर्जनीयस्य सः’ सन्धि है
(क) हरिम् + वन्दे
(ख) तत् + टीका
(ग) लघु + उत्सवः
(घ) गौः + चरति
उत्तर – घ
(45) ‘उज्ज्वल’ का सही सन्धि-विच्छेद है
(क) उद् + ज्वल
(ख) उत् + ज्वल
(ग) उज् + ज्वले
(घ) उच् + ज्वल
उत्तर – ख
(46) ‘पावनम्’ का सही सन्धि-विच्छेद होगा
(क) पाव + अनम्
(ख) पो + अनम् ।
(ग) पौ+ अनम्
(घ) पै + अनम्
उत्तर – ग
(47) ‘विसर्जनीयस्य सः’ सन्धि है
(क) चन्द्रः + चकोर:
(ख) रामः + गच्छति
(ग) शिवः + अस्ति
(घ) हरिः + भगति
उत्तर – क
(48) ‘भावुक: को सन्धि-विच्छेद होगी
(क) भ + अवुक:
(ख) भा + उकः
(ग) भौ+ उक:
(घ) भ + उकः
उत्तर – ग
(49) ‘धनम् + जयः’ की सन्धि है
(क) धानञ्जयः (ख) धनन्जयः
(ग) धनज्जयः
(घ) धनञ्जयः
उत्तर – घ
(50) विसर्जनीयस्य सः सन्धि है
(क) विष्णु: + त्राता
(ख) त्वम् + करोषि
(ग) प्र + एजते
(घ) उप + ओषति
उत्तर – क
(51) ‘लब्धम्’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) लब् + धम्
(ख) लप् + धम्
(ग) लभ् + धम्
(घ) लब्ध् + अम्
उत्तर – ग
(52) ‘एचोऽयवायावः’ सन्धि है
(क) उप + ओषति
(ख) नौ + इक:
(ग) रामस् + च
(घ) तत् + टीका
उत्तर – ख
(53) ‘रोरि’ सन्धि है
(क) रामः + चपलः
(ख) देवः + पठति
(ग) पुनर् + रमते
(घ) बालकः + अपठत्
उत्तर – ग
(54) निम्नलिखित की सन्धि कीजिए और नामोल्लेख कीजिए
(क) विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (अक: सवर्णे दीर्घः)
(ख) कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः (अक: सवर्णे दीर्घः)
(ग) गिरि + ईश: = गिरीशः (अक: सवर्णे दीर्घः)
(55) निम्नलिखित को सन्धि विच्छेद कीजिए और नामोल्लेख कीजिए
(क) हरिश्चन्द्रः = हरिः + चन्द्रः (विसर्जनीयस्य सः)
(ख) नरेन्द्रः = नर + इन्द्रः (आद् गुण:)
(ग) यद्यपि = यदि + अपि (इको यणचि)
(घ) रमेश: = रमा + ईश: (आद् गुण:)
(56) पुत्रस् + षष्ठः’ की सन्धि है
(क) पुत्रस्षष्ठः
(ख) पुत्रोषष्ठः
(ग) पुत्रर्षष्ठः
(घ) पुत्रष्षष्ठः
उत्तर – घ
(57) ससजुषोः रुः सन्धि है
(क) हरिस् + गच्छति
(ख) प्रभुः + चलति
(ग) बालकः + याति
(घ) शिवः + अपि
उत्तर – क