Up board solution for class 9 sanskrit chapter 1अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि
प्रथमः पाठः अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि
[सभी राष्ट्र किन्हीं विशेष वस्तुओं को अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार करते हैं जिनमें राष्ट्र का गौरव और उसकी चारित्रिक विशेषताएँ स्पष्ट प्रतिभासित होती हैं। हमारे राष्ट्र ने भी कुछ प्रतीक चिह्न स्वीकार किये हैं, जिनके द्वारा हमारी भारतीय संस्कृति के चारित्रिक गुण व्यंजित होते हैं। भारत ने जो राष्ट्रीय प्रतीक निर्धारित किये हैं, वे इस प्रकार है-
मयूर- पक्षियों में मोर हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है। आकाश के काले बादलों को देखकर अपने सुन्दर पंखों को फैलाकर मोर जब नृत्य करते हैं तो वह दृश्य मन तथा आँख दोनों को आनन्दित करता है। यह मधुर स्वरवाला मयूर विष से भरे हुए साँपों को खाता है। इसी प्रकार की हमारी भारतीय संस्कृति भी है, जहाँ सभी के साथ मधुर वाणी में मधुर व्यवहार किया जाता है। परन्तु देश की अखण्डता और एकता को नष्ट करनेवाले अत्याचारियों और देशद्रोहियों को उसी प्रकार नष्ट कर दिया जाता है, जैसे मयूर विषधरों को खाकर नष्ट कर देता है।
व्याघ्र – पशुओं में व्याघ्र को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है। चितकबरे व्याघ्र का पराक्रम और स्फूर्ति प्रसिद्ध है। अत्यधिक तेज दौड़नेवाले ये व्याघ्र दूर से ही पास आनेवाले संकट को पहचान लेते हैं और अपने बचाव के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं।
कमल- सरसिज, पद्म, पंकज आदि नामों से जाना जानेवाला कमल का पुष्प हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है। उसकी कोमलता, मनोहरता, विकासशीलता और पवित्रता आदि गुणों का कवियों ने बहुतायत से वर्णन किया है। शरद् ऋतु में ये मनोहर पुष्प तालाबों में अनायास खिल उठते हैं और सूर्य की रोशनी में पूर्णरूप से विकास को प्राप्त करते हैं। कीचड़ में उत्पन्न होने पर भी इनका इतना मनोहर होना राष्ट्र के लिए यह सन्देश है कि किसी भी कुल में जन्म लेनेवाला व्यक्ति अवसर प्राप्त होने पर आगे बढ़ने की क्षमता रखता है।
राष्ट्रगान – सभी स्वतन्त्र राष्ट्रों का अपना एक गान होता है जिसे राष्ट्रगान कहा जाता है। सभी राष्ट्र अपने राष्ट्रगान का सम्मान करते हैं और महत्त्वपूर्ण अवसरों पर उसे गाते हैं। हमारा राष्ट्रगान विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया है जो ‘जन-गण-मन’ इस नाम से विश्व में प्रसिद्ध है। हमारे राष्ट्रगान में विश्वकवि ने राष्ट्र की विशालता, अखण्डता और भारतीय संस्कृति का गौरवपूर्ण वर्णन किया है। सभाओं की समाप्ति पर और विद्यालयों में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाने की प्रथा है। राष्ट्रगान के समय सावधान की मुद्रा में खड़े होना आवश्यक है। इसका आरोह, अवरोह एवं उसके गाने में लगनेवाला समय सुनिश्चित है जिसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता। राष्ट्रगान श्रद्धा से गाया जाना चाहिए।
राष्ट्रध्वज – सभी राष्ट्रीय प्रतीकों में राष्ट्रध्वज का सर्वाधिक महत्त्व होता है। सभी स्वतन्त्र राष्ट्रों का अपना राष्ट्रध्वज होता है। राष्ट्रध्वज का सम्मान और उसकी रक्षा देशवासी अपने प्राणों को न्योछावर करके भी करते हैं। हमारा राष्ट्रध्वज तीन रंगों का है और विश्व में तिरंगे के नाम से प्रसिद्ध है। ध्वज के सबसे नीचे का हरा रंग सुख, समृद्धि और विकास का द्योतक है। बीच में श्वेत रंग ज्ञान, सौहार्द और शान्ति का प्रतीक है। सबसे ऊपर का केसरिया रंग त्याग और शौर्य का प्रतीक है। ध्वज के मध्य श्वेत वर्ण के बीच में अशोक का चक्र धर्म, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है। चक्र में चौबीस तीलियाँ हैं जो चक्र के मध्य भाग में एक स्थान पर जुड़ी हुई हैं। ये प्रतीक हैं भारत और उसकी राष्ट्रीय एकता की, जहाँ अनेक भाषा, धर्म, जाति और वर्ण के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। सूर्य के अस्त होने पर ध्वज उतारकर सुरक्षित रख दिया जाता है। राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ध्वज आधा झुका रहता है।
ये राष्ट्रीय प्रतीक हमारी स्वतन्त्रता के प्रतीक हैं। सभी देशवासियों को इनका आदर करना चाहिए और प्राण न्योछावर करके भी इनकी रक्षा करनी चाहिए।]
सर्वेषु राष्ट्रेषु राष्ट्रियवैशिष्ट्ययुक्तानि वस्तूनि प्रतीकरूपेण स्वीक्रियन्ते तत्रत्यैः जनैः। तेषु प्रतीकेषु तद्राष्ट्रस्य गौरवं चारित्र्यं गुणाश्च प्रतिभासन्ते। तान्येव राष्ट्रियप्रतीकानि निगद्यन्ते। अस्माकं राष्ट्र भारतेऽपि कतिपयानि प्रतीकानि स्वीकृतानि सन्ति। तान्यस्माकं चारित्र्यं संस्कृतिं महत्त्वं च व्यञ्जयन्ति। पक्षिषु कतमः पशुषु कतमः पुष्पेषु कतमम् वाऽस्माकं राष्ट्रियमहिम्नः प्रातिनिध्यं विदधातीति विचार्येव प्रतीकानि निर्धारितानि सन्ति।
मयूरः – पक्षिषु मयूरः राष्ट्रियपक्षिरूपेण स्वीकृतोऽस्ति । मयूरोऽतीव मनोहरः पक्षी वर्तते। चन्द्रकवलयसंवलितानि चित्रितानि तस्य पिच्छानि मनांसि हरन्ति। यदा गगनं श्यामलैर्मेघेराच्छन्नं भवति तदा मयूरो नृत्यति। तस्य तदानीन्तनं नर्त्तनं नयनसुखकरमपि च चेतश्चमत्कारकं भवति। मधुमधुरस्वरोऽपि मयूरो विषधरान् भुते। इदमेवास्माकं राष्ट्रियचारित्र्यं विद्यते। सर्वैः सह मधुरं वाच्यं, मधुरं व्यवहर्तितव्यं मधुरमाचरितव्यं किन्तु ये राष्ट्रद्रोहिणोऽत्याचारपरायणाः राष्ट्रियाखण्डतायाः राष्ट्रियैक्यस्य वा विघातकाः विषमुखाः सर्पतुल्याः मयूरेणैव राष्ट्रेण व्यापादयितव्याः।
व्याघ्रः- पशुषु व्याघ्रः भारतस्य राष्ट्रियप्रतीकम्। व्याघ्रषु चित्रव्याघ्रः बहुवैशिष्ट्यविशिष्टो विद्यते। को न जानाति चित्रव्याघ्रस्यौजः पराक्रमं स्फूर्तिञ्च ? एतज्जातीयाः व्याघ्राः अस्मद्देशस्य वनेषुपलभ्यन्ते। एतेषां शरीरे स्थूल कृष्णरेखाः भवन्ति। व्याघ्रोऽसावतीव तीव्रधावकः सततसावहितः संकटं विदूरादेव जिघ्रन् तदपनेतुं सचेष्टः स्वलक्ष्यमवाप्तुं कृतिरतः स्वसीम्नि एव पर्यटन् वन्यो जन्तुर्विश्रुतो जगति।
कमलम्- कमलं सरसिजं पद्म पङ्कजं शतदलमित्यादिनामभिः प्रथितं पुष्पमस्माकं राष्ट्रियप्रतीकत्वेन स्वीकृतं राष्ट्रियपुष्यस्य यशो विधते। तस्य कोमलत्वं मनोहरत्वं विकासशीलत्वं पवित्रत्वञ्चाभिलक्ष्यैव कविभिः तस्य बहुशः वर्णनं कृतम्। न कश्चिन्महाकविः संस्कृतभाषायां हिन्दीभाषायां वा विद्यते येनैतस्य पुष्पस्य माहात्म्यं न गीतम्। देवानां स्तुतिप्रसङ्गे दिव्यकरचरणादीनामङ्गानां मानवहृदयस्य चोपमानीकृतं सत्सांस्कृतिकं महत्त्वं विभर्ति पुष्पमिदम्।
शरदृतौ मनोहरं पुष्पमिदं यत्र तत्र जलसंकुलेषु तडागेषु सरस्सु चानायासेनोत्पद्यते वर्धते रविकरनिकरसंसर्गात् प्रस्फुटति। पङ्के जायते पङ्कजं जलसंयोगं शरत्कालञ्चावाप्य वर्धते शोभते च तथैव कस्मिश्चित् कुले जातः जनः सौविध्यमुपयुक्तावसरञ्च लब्ध्वा वर्धितुं क्षमत इति तत्पुष्पस्य राष्ट्रकृते सन्देशः।
राष्ट्रगानम्-सर्वेषां स्वतन्त्रदेशानां स्वकीयमेकं गानं भवति तदैव राष्ट्रगानसंज्ञयाऽवबुध्यते। प्रत्येकं राष्ट्र स्वराष्ट्रगानस्य सम्मानं करोति। महत्स्ववसरेषु तद्गानं गीयते। यदि कश्चिदन्यराष्ट्राध्यक्षोऽस्माकं देशमागच्छति तदा तस्य सम्मानाय तस्य राष्ट्रगानमस्मद्राष्ट्रगानं च वादकैः वाद्येते। महतीनां सभानां समापने तस्य गानमावश्यकम्। विद्यालयेषु प्रार्थनानन्तरं प्रतिदिनं राष्ट्रगानं गीयते।
अस्माकं राष्ट्रगानं विश्वकविना कवीन्द्रेण रवीन्द्रेण रचितं, ‘जनगणमन’ इति संज्ञया विश्वस्मिन् विश्वे विश्रुतं वर्तते। अस्माकं राष्ट्रगाने भारताङ्गभूतानामनेकप्रान्तानां विन्ध्यहिमालयपर्वतयोः गङ्गायमुनाप्रभृतिनदीनाञ्चोल्लेखं कृत्वा देशस्य विशालत्वं राष्ट्रस्याखण्डत्वं संस्कृतेः गौरवञ्च विश्वकविना वर्णितम्।
राष्ट्रगानमिदं द्वापञ्चाशत्पलात्मकं भवति। तस्य गाने द्वापञ्चाशत्पलात्मकः समयोऽपेक्ष्यते। न ततोऽधिको न वा ततो न्यूनः। तस्यारोहावरोहावपि निश्चितौ। तत्र विपर्ययः कर्तुं न शक्यते। राष्ट्रगानं सदोत्थितैः जनैः सावधानमुद्रया गेयम्। राष्ट्रगानावसरेऽङ्गसञ्चालनं निषिद्धम्। चलतोऽपि कस्यचित्कर्णकुहरे गीयमानस्य राष्ट्रगानस्य ध्वनिः दूरादप्यापतति चेत्तदा तत्रैव
सावधानमुद्रया तेनाविचलं स्थातव्यम्। राष्ट्रगानं श्रद्धास्पदं भवति। श्रद्धयैवेदं गेयम्।
राष्ट्रध्वजः – सर्वेषु राष्ट्रप्रतीकेषु राष्ट्रध्वजस्य सर्वाधिकं महत्त्वं वर्तते। सर्वस्य स्वतन्त्रराष्ट्रस्य स्वकीयो ध्वजो भवति। तद्देशवासिनो जनाः नराः नार्यश्च स्वराष्ट्रध्वजस्य सम्मानं प्राणपणेन रक्षन्ति।
त्रिवर्णात्मको मध्येऽशोकचक्राङ्कितोऽस्माकं राष्ट्रध्वजः ‘तिरङ्गा’ शब्देन विश्वे विश्रुतो विद्यते। ध्वजस्याधोभागः हरितवर्णात्मकः सुखसमृद्धिविकासानां सूचकः, मध्यभागे श्वेतवर्णः ज्ञान-सौहार्द सदाशयादिसद्गुणानां द्योतकः, ऊर्ध्वभागे च स्थितः गैरिक वर्णः त्यागस्य शौर्यस्य च बोधकः। ध्वजस्य मध्यभागस्थितश्वेतवर्णमध्येऽवस्थितमशोकचक्रं धर्मस्य सत्यस्याहिंसायाश्च प्रत्यायकम्। चक्रे चतुः विंशतिशलाकाः पृथगपि चक्रमूले एकत्र सम्बद्धाः भारते भाषाधर्मजातिवर्णलिङ्गभेदेषु सत्स्वपि भारतमेकं राष्ट्रमिति द्योतयन्ति।
राष्ट्रध्वजो निर्धारितदीर्घविस्तारपरिमितो भवितव्यम्। एषः सदा स्वच्छोऽविकृतवर्णः तिष्ठेत्। जीर्णः शीणों विदीर्णो वा ध्वजो नोपयोगयोग्यः। समुच्छ्रियमाणः ध्वजोऽस्तंगते सूर्ये समवतार्य सुरक्षितः संरक्षितव्यः । राष्ट्रियशोकावसरेध्वजोऽर्धमुच्छ्रीयते। इत्येतानि राष्ट्रियप्रतीकान्यस्माकं स्वातन्त्र्यस्य प्रत्यायकानि समादृतव्यानि तु सन्त्येव प्राणपणैः रक्षितव्यानि च।
शब्दार्थ कठिन शब्दों का अर्थ
प्रतीकानि = चिह्न। सर्वेषु सभी। राष्ट्रेषु देशों में। राष्ट्रियवैशिष्ट्ययुक्तानि = राष्ट्रीय विशेषताओं से युक्त। प्रतीकरूपेण = प्रतीक (चिह्न) के रूप में। प्रतिभासन्ते = प्रकाशित होते हैं। निगद्यन्ते = कहे जाते हैं। व्यञ्जयन्ति =व्यक्त करते हैं। कतिपयानि = कुछ। कतमः = कौन-सा। तत्रत्यैः = वहाँ के। प्रातिनिध्यं = प्रतिनिधित्व करना। विद्याति = करता है। अतीव बहुत। चित्रितानि = नित्रित। पिच्छानि = पूँछ के पंख। आच्छत्नं घेरे हुए। तदानीन्तनं = उस समय का। विषधरान् = साँपों को। भुङ्क्ते = खा जाते हैं। वाच्य = व्यवहार तथा वाणी। विघातकाः = नष्ट करनेवाले। व्यापादयितव्याः = मारने योग्य हैं। चित्रव्याघ्रः = चितकबरा शेर। ओजः = स्फूर्ति (शक्ति)। तीव्रधावकः = तेज दौड़नेवाला। सततसावहितः = निरन्तर सावधान। तदपनेतुं उससे बचने में, उसे दूर करने के लिए। प्रथितं प्रसिद्ध । विभर्ति = धारण करता है। रविकरनिकरसंसर्गात् = सूर्य की किरणों के सम्पर्क से। प्रस्फुटति विकसित होता है। पङ्के = कीचड़। जलसंकुलेषु = जल से भरे हुए। सौविध्यम् = सुविधा। अवबुध्यते = समझा जाता है। महत्सु = बड़े। समापने = समाप्त होने पर। विश्रुत प्रसिद्ध। द्वापञ्चाशत्पलात्मकः = बावन पल (बावन सेकेण्ड)। अपेक्ष्यते = आवश्यक है। विपर्ययः = विपरीत। सदोत्थितैः = सदैव खड़े होकर ही। निषिद्धं मना है। त्रिवर्णात्मकः तिरंगा। अधोभागः = नीचे का भाग। ऊर्ध्व = ऊपर का। प्रत्यायकम् = ज्ञान करानेवाला। समुच्छ्रियमाणः = ऊपर फहराता हुआ। अनायासेन = बिना प्रयास के। समवतार्य = ठीक से उतार कर। अर्धमुच्छ्रीयते = आधा झुका हुआ।
अभ्यास-प्रश्न
१. निम्नलिखित अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
(क) पक्षिषु मयूरः ————- भवति ।
(ख) व्याघ्रेषु ————– जन्तुर्विश्रुतो जगति।
(ग) अस्माकं राष्ट्रगानं ———- वर्णितम् ।
(घ) राष्ट्रध्वजो ————–+अर्धमुच्छ्रीयते।
2- अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि’ पाठ का सारांश लिखिए।
3- राष्ट्रीय प्रतीक किस भाव के प्रतीक हैं?
4- राष्ट्रीय प्रतीकों में किसका सर्वाधिक महत्त्व है?
5- राष्ट्रीय प्रतीक कैसे होने चाहिए?
6 . राष्ट्रध्वज के चक्र में कितनी शलाकाएँ हैं?
7 . राष्ट्रीय पुष्प का नाम क्या है?
8- हमारे राष्ट्रगान की रचना किसने की थी?
9- गष्ट्रध्वज में रंगों का क्रम क्या होता है?
10- मयूर को ‘राष्ट्रीय पक्षी’ का पद उसकी किस विशेषता के कारण दिया गया?
11 कमल को ‘राष्ट्रीय पुष्प’ का गौरव किस कारण मिला?
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