Up board solution for class 9 sanskrit chapter 2 आदिकविः वाल्मीकिः

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द्वितीयः पाठः

आदिकविः वाल्मीकिः

[संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि हैं, यह सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं। वाल्मीकि ने भगवान् राम के आदर्श चरित को काव्यबद्ध किया है। स्कन्द पुराण और अध्यात्म रामायण के अनुसार यह अग्निशर्मा नाम के ब्राह्मण थे। पूर्वजन्मों के पाप के कारण लूटपाट ही इनकी जीविका का साधन था। मार्ग में पथिकों के धन को लूटने में यदि उनके प्राण भी लेने पढ़ें तो यह हिचकते नहीं थे। एक बार उस मार्ग से एक मुनि जा रहे थे। इन्होंने उनसे जब धन की माँग की तो मुनि ने कहा कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। फिर मुनि ने इनसे पूछा कि यह लूटपाट पाप है। क्या तुम्हारे परिवार के लोग इसमें तुम्हारा साथ देंगे? इन्होंने कहा यह पाप है, मैं भी जानता हूँ; लेकिन इसी धन से मैं अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। यह मुनि को वहीं पेड़ से बाँधकर अपने घर जाते हैं। इनके प्रश्न पर परिवार के लोग इन पर बहुत क्रुद्ध हुए और बोले-‘हमने आपको यह पाप करने को नहीं कहा। हम क्या जानें आप क्या करते हैं और कहाँ से धन लाते हैं। हम आपके इस पाप में क्यों सहभागी बनें।’ परिवार के लोगों का उत्तर सुनकर यह अत्यन्त दुःखी और आश्चर्यचकित होकर मुनि के पास लौट आये। मुनि ने इनका मन शान्त करने के लिए इन्हें ‘राम नाम जपने को कहा। परन्तु वृत्ति के अनुसार यह ‘मरा’ जपते हुए तपस्या करने लगे। इस प्रकार समाधि में लीन होकर बहुत वर्षों तक तपस्या करते रहे। तपस्या में लीन इनके शरीर पर दीमकों ने जगह बना ली। इनका पूरा शरीर मिट्टी से ढक गया। तब वरुण की अनवरत जलधारा से मि‌ट्टी बह गयी और इनका शरीर प्रकट हो गया। मुनियों के अनुरोध पर इन्होंने अपनी आँखे खोली। दीमकों की मिट्टी के ढेर से निकलने के कारण ‘वाल्मीकि’ और प्रचेता के द्वारा जल-धारा से मिट्टी हटाकर बाहर निकाले जाने के कारण ‘प्राचेतस’ इन दो नामों से प्रसिद्ध हुए।

किसी समय वाल्मीकि ने ब्रह्मर्षि नारद से भगवान् राम का लोक-कल्याणकारी चरित्र सुना और तभी से उसे काव्यबद्ध

करने की इच्छा ने इनके हृदय में जन्म लिया। एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वहीं पर क्रौञ्च पक्षी का एक जोड़ा स्वच्छन्द विचरण कर रहा था कि एक व्याध ने नर क्रौञ्च को बाण से घायल कर दिया। रक्त में लिपटे हुए क्रौञ्च के सामने बैठी क्रौञ्ची का विलाप सुनकर वाल्मीकि का शोक काव्य के रूप में इनके मुख से निकला। इस तरह अपनी पीड़ा के व्यक्त करने पर वाल्मीकि आश्चर्यचकित हो गये। उसी समय ब्रह्मा ने आकर कहा कि “अब आप विचार न करें। सरस्वती माँ का आपकी वाणी में निवास है। आपने नारद मुनि से जो रामकथा सुनी है, उसे काव्य रूप में वर्णित करें। मेरी कृपा से आप सम्पूर्ण रामचरित से अवगत हो जायेंगे। जब तक पृथ्वी पर पर्वत एवं समुद्र स्थित रहेंगे, तब तक यह रामकथा प्रचलित रहेगी।” तब योगशक्ति के द्वारा सम्पूर्ण रामचरित को जानकर वाल्मीकि ने गङ्गा व तमसा के मध्य तट पर बैठकर सात काण्ड वाली ‘रामायण’ महाकाव्य की रचना की। इस प्रकार महामुनि ब्रह्मर्षि वाल्मीकि आदिकवि के नाम से संसार में विख्यात हुए।]

संस्कृतवाङ्मयस्यादिकविः महामुनिः वाल्मीकिरिति सर्वैः विद्वद्भिः स्वीक्रियते। महामुनिना रम्यारामायणी-कथा स्वरचिते काव्यग्रन्थे निबद्धा। भगवतो रामस्य चरितमस्माकं देशस्य संस्कृतेश्च प्राणभूतं तिष्ठति। वस्तुतस्तु, महामुनेः वाल्मीकेरेवैतन्माहात्म्यमस्ति यत्तेन रामस्य लोककल्याणकारकं रम्यमादर्शभूतं रूपं जनानां समक्षमुपस्थापितम्। वयं च तेन रामं ज्ञातुं क्षमा अभूम।

स्कन्दपुराणाध्यात्मरामायणयोरनुसारात् अयं ब्राह्मणजातीयः अग्निशर्माभिधश्चासीत्। पूर्वजन्मनः विपाकात् परधनलुण्ठनमेवास्य कर्माभूत्। वनान्तरे पथिकानां धनलुण्ठनमेव तस्य जीविकासाधनमासीत्। लुण्ठनव्यापारे संशयश्चेत् प्राणघातेऽपि स संकोचं नाऽकरोत्। इत्थं हिंसाकर्मणि लिप्तः एकदा वनपथे पथिकमाकुलतया प्रतीक्षमाणोऽसौ मुनिवरमेकमागच्छन्तमपश्यत्, दृष्ट्वा च हर्षेण प्रफुल्लो जातः। समीपमागते मुनिवरे रक्ते अक्षिणी भ्रमयन् भीमेन रवेण तमवोचत् यत्किञ्चित्तवास्ति तत्सर्वं मां देहि नो चेत्तव प्राणसंशयो भविष्यति। मुनिना प्रत्युक्तं, लुण्ठक ! मत्पाश्वें तु किञ्चिदपि नास्ति, परं त्वां पृच्छामि किं करोषि लुण्ठितेन धनेन? इदं पापकर्म किमिति न जानासि ? जानामि, तथापि करोमि । लुण्ठितेन धनेन परिवारजनस्य पोषणरूपं महत्कार्य करोमीति तेनोक्तम्। मुनिः पुनरपृच्छत्- पापकर्मणार्जितेन वित्तेन पोषितास्तव परिवारसदस्याः किं तव पापकर्मण्यपि सहभागिनः स्युरिति। सोऽवोचत् वक्तुं न शक्नोमि परं तान् पृष्ट्वा वदिष्यामि। त्वं तावदत्रैव विरम यावदहं तान् संपृच्छ्यागच्छामि। इत्युक्त्वा तं मुनिवरं रज्जुभिः दृढं बद्ध्वा स्वकुटुम्बिनः प्रष्टुं जगाम । अथ तस्य कुटुम्बिनः तस्य प्रश्नं श्रुत्वा भृशं चुकुपुरूचुश्च ‘कथं वयं तव पापकर्मणि सहभागिनो भवेम? वयं किं जानीमहे त्वं किं करोषि कया वा रीत्या धनार्जनं विदधासि ? नास्माभिः त्वं पापकर्म कर्तुमादिष्टः।’ तेषां स्वपरिवारजनानामुत्तरमाकर्ण्य सोऽतीव विषण्णोऽभवत्। द्रुतं मुनिवरमुपगम्य सर्व च तत्परिवारजनाख्यातमसावभाषत। परं निर्विण्णं तं मुनिः तस्य हृदयशोकशमनाय ‘राम’ इति जप्तुमुपादिशत्। ‘राम’ इति समुच्चारणेऽक्षमः स्ववृत्त्यनुसारं ‘मरा’ इत्येव जप्तुमारभत। इत्थमसौ बहुवर्षाणि यावत् समाधौ लीनः तीव्र तपश्चचार। तपसि रतस्य तस्य शरीरं वल्मीकमृत्तिकाभिः आवृत्तं जातम्। अथ कदाचित् प्रचेतसा निरन्तरजलधारया तस्य शरीरात् वल्मीकमृत्तिकाः परिस्राविता अभवन्। मृत्तिकाभिः तिरोहितं तस्य शरीरं पुनः प्रकटित्तम्। ततो मुनिभिः स संस्तुतोऽभ्यर्थितश्च चक्षुषी उन्मील्योदतिष्ठत्। वल्मीकात् प्रोद्भूतत्वाद् वाल्मीकिरिति, प्रचेतसा जलधारया मृत्तिकायाः परिसुतत्वाद् प्राचेतस इति तस्य नामद्वयं जातम्। रामायणे मुनिना स्वपितुः नाम प्रचेताः तस्य दशमः पुत्रोऽहमित्थमुल्लिलेख। यथा च-

“प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन” (उत्तरकाण्ड)

अथ कदाचित् स ब्रह्मर्षेः नारदात् भगवतो रामस्य लोककल्याणकरं वृत्तं शुश्राव। तदाप्रभृत्येव रामचरितं काव्यबद्धं कर्तुमाकाङ्क्षते स्म। अथैकदा महर्षिः माध्यन्दिनसवनाय प्रयागमण्डलान्तर्गतां तमसानदीं गच्छन्नासीत्। तत्र वनश्रियं निरीक्षमाणो महामुनिः स्वच्छन्दं विचरन्तं क्रौञ्चमिथुनमेकमपश्यत्। पश्यत एव तस्य कश्चित् पापनिश्चयो व्याधः तस्मान्मिथुनादेकं बाणेनः विजघान। बाणेन विद्धं महीतले लुण्ठन्तं शोणितपरीताङ्गं तं विलोक्य क्रौञ्ची करुणया गिरा रुराव। क्रौञ्च्याः करुणारवं श्रावं श्रावं मुनिहृदयालीनः शोकानलपरिद्रुतः करुणरसः श्लोकच्छलाद् हृदयादेवं निर्गतोऽभवत्-

“मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।”

श्लोकोऽयमाम्नायादन्यत्र छन्दसां नूतनोऽवतार आसीत्। एवं ब्रुवतस्तस्य हृदि महती चिन्ता बभूव अहो! शकुनिशोकपीडितेन मया किमिदं व्याहृतम्। अत्रान्तरे वेदमूर्तिश्चतुर्मुखो भगवान् ब्रह्मा महामुनिमुपगम्य सस्मितमुवाच – महामुने, आपन्नानुकम्पनं हि महतां सहजो धर्मः। श्लोकं ब्रुवता त्वया त्वेष एव धर्मः पालितः। तन्नात्र विचारणा कार्या। सरस्वती मच्छन्दादेव त्वयि प्रवृत्ता। साम्प्रतं यथा नारदाच्छुतं तथा त्वं श्रीमद्भगवतो रामचन्द्रस्य कृत्स्नं चरितं वर्णय। मत्प्रसादात् निखिलं च रामचरितं तव विदितं भविष्यति। किं बहुना, यावन्महीतले गिरिसरित्समुद्राः स्थास्यन्ति तावल्लोके रामायणकथा प्रचलिष्यतीत्यादिश्य भगवानब्जयोनिरन्तर्हितोऽभवत्। ततो योगबलेन नारदोक्तं समग्रं रामचरितमधिगम्य गङ्गातमसयोरन्तराले तटे; सप्तकाण्डात्मकं रामायणाख्यमादिमहाकाव्यं रचयामास, तदनन्तरं मुनेः विश्रमार्थ द्वौ अपराश्रमौ अभूताम्। एकश्चित्रकूटे अपरश्च कानपुरमण्डलान्तर्गत ब्रह्मावर्त्तान्तः, आधुनिके बिठूरनाम्नि स्थाने आसीत् अत्रैव लवकुशयोः जनुरभूत्। एवमादिकविर्यशसा ख्यातोऽभवल्लोके महामुनिः ब्रह्मर्षिः।

काठिन्य निवारण

वाङ्मयस्य = साहित्य के। आदिकविः प्रथम कवि। लोककल्याणकारकं संसार के लिए कल्याणकारी। निबद्धा = लिखा है। प्राणभूतं= जीवनाधार। क्षमा समर्थ। विपाकात्= फलस्वरूप। लुण्ठनं =लूटना। प्राणघातेऽपि = प्राण ले लेने में भी। पथिकमाकुलतया = पथिक की व्याकुलता से। प्रतीक्षमाणोऽपि = प्रतीक्षा करते हुए भी। भीमेन रवेण = भयंकर आवाज से। विरम =ठहरो। प्रष्टुम् = पूछने के लिए। भृशं =बहुत। चुकुपुः क्रोधित हुए। ऊचुः = बोले। विषण्णः = दुःखी। द्रुतं =शीघ्र। परं अत्यन्त। निर्विष्णं= खिन्न (दुःखी)। शमनाय =शान्त करने के लिए। वृत्त्युनुसारम् = जीविका के अनुसार। इत्थम्= इस प्रकार। वल्पीक मृत्तिकाभिः= दीमक की मिट्टी से। आवृत्तं = ढक गया। प्रचेतसा = वरुण। परिस्राविता= बहा दी गयी। तिरोहितं =छिपा हुआ। अभ्यर्थितः प्रार्थना की गयी। प्रोद्भूतत्वाद् = उत्पन्न होने के कारण। जातम् = हुए। विजघान= वर्षों तक। प्रतिष्ठां = कीर्ति को। आम्नायादन्यत्र= वेद से भिन्न। तदाप्रभृति = तब से लेकर। आकाङ्क्षते स्म इच्छा करते थे। । जनुः= जन्म। शुश्राव = सुना। श्लोकच्छलाद् = श्लोक के बहाने। ब्रुवतः = बोलते हुए। साम्प्रतं = इस समय। भवलोके = संसार में।

अभ्यास-प्रश्न

1- निम्नलिखित अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-

(क) संस्कृतवाङ्मयस्यादिकविः ——

क्षमा अभूम।

(ख) स्कन्दपुराणाध्यात्म —+++

प्रफुल्लो जातः।

(ग) अथैकदा महर्षिः ——-

काममोहितम्।

(घ) सरस्वती मच्छन्दादेव——-

जनुरभूत्।

2- आदिकविः वाल्मीकिः’ पाठ का सारांश लिखिए।

3 . आदिकवि के नाम से कौन प्रसिद्ध है?

4 . वाल्मीकि किस नदी के तट पर भ्रमण कर रहे थे?

5 . वाल्मीकि का प्रारम्भिक नाम क्या था?

6 . प्राचेतस किसका नाम था?

7- रामायण के रचयिता कौन थे?

8 . व्याध ने किस पक्षी को मारा था?

9- वाल्मीकि को आदिकवि क्यों कहा जाता है?

10 . वाल्मीकि का प्रारम्भिक जीवन कैसा था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

11 . कवि के मुख से ‘मा निषाद प्रतिष्ठां श्लोक कब और क्यों निकल पड़ा था?

12- वाल्मीकि कृत रामकथा का वास्तविक नाम क्या है?

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