Up board class 10 social science free solution chapter 43:मानव व्यवसाय (गौण व्यवसाय) (विनिर्माण उद्योग, सूती वस्त्र, चीनी, कागज, लोह-इस्पात, सीमेंट, पेट्रोरसायन, ईंजीनियरिंग)

Up board class 10 social science free solution chapter 43:मानव व्यवसाय (गौण व्यवसाय) (विनिर्माण उद्योग, सूती वस्त्र, चीनी, कागज, लोह-इस्पात, सीमेंट, पेट्रोरसायन, ईंजीनियरिंग)

मानव व्यवसाय (गौण व्यवसाय) (विनिर्माण उद्योग, सूती वस्त्र, चीनी, कागज, लोह-इस्पात, सीमेंट, पेट्रोरसायन, ईंजीनियरिंग)

लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न—- 1. लोह-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है? कोई तीन कारण बताइए ।। उत्तर—– लोह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, इसके तीन कारण निम्नवत् हैं
(i) लोह-इस्पात उद्योग अपने उतपादों से अन्य उद्योगों को स्थापित करने में सहयोग प्रदान करते हैं ।।
(ii) लोह-इस्पात उद्योग प्राथमिक उद्योगों से प्राप्त कच्चे माल का उपयोग कर उनका पोषण करते हैं ।।
(iii) लोह-इस्पात उद्योग राष्ट्र में औद्योगिकरण को प्रोत्साहित करते हैं ।।


प्रश्न—-2. सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किन्हीं दो लोह-इस्पात उद्योग के केंद्रों का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर—– सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित दो लोह-इस्पात उद्योग के केन्द्र निम्नवत् हैं
(i) इंडियन आयरन एंड स्टील कम्पनी- सार्वजनिक क्षेत्र के इस लोह-इस्पात केंद्र पश्चिम बंगाल में बर्नपुर, कुल्टी तथा हीरापुर में तीन कारखाने हैं ।। वर्तमान में ये तीनों इकाइयाँ 15 लाख टन ढलवाँ लोहा तथा 110 लाख टन इस्पात बनाती
(ii) राउरकेला इस्पात लिमिटेड- ओडिशा राज्य का गौरव कहलाने वाला 1959 में स्थापित सार्वजनिक क्षेत्र का यह
इस्पात कारखाना भारी इस्पात की चादरें तथा रेल के उपकरण बनाता है ।।


प्रश्न—- 3. भारत में लोह-इस्पात के स्थानीयकरण के कोई तीन कारण बताइए ।।
उत्तर—– भारत में लोह-इस्पात क स्थानीयकरण के तीन कारण निम्नलिखित हैं
(i) लोह-अयस्क तथा कोयला जैसे कच्चे मालों की सन्निकटता ।।
(ii) अन्य उपयोगी खनिज पदार्थों जैसे- मैंगनीज, अभ्रक, डोलोमाइट व चूना पत्थर आदि की उपलब्धता ।।
(iii) सस्ती एवं सुलभ जल विद्युत शक्ति ।। ।।


प्रश्न—-4. भारत में कागज उद्योग के स्थानीयकरण के कोई तीन कारण बताइए ।।
उत्तर—– भारत में कागज उद्योग के स्थानीयकरण के तीन कारण निम्नलिखित हैं(i) कागज उद्योग की स्थापना के लिए वनों से प्राप्त कोमल लकड़ी, बाँस, रद्दी कागज एवं चितड़े आदि कच्चे माल की उपलब्धता ।।
(ii) परिवहन के विकसित साधन ।।
(iii) शक्ति के साधनों की उपलब्धता ।।


प्रश्न—-5. पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग के केंद्रित होने के तीन कारणों का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर—– पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग के केंद्रित होने के तीन कारण निम्नलिखित हैं
(i) गंगा की निम्न घाटी में जूट उत्पादन के लिए सभी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ मिलती हैं ।। अत: यहाँ कच्चा जूट भारी मात्रा में पैदा किया जाता है ।।
(ii) जूट उद्योग में पर्याप्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है ।। पश्चिम बंगाल में यह हुगली नदी से मिल जाता है ।।
(iii) जूट की मीलों को चालक शक्ति के रूप में कोयला रानीगंज तथा झरिया की खादानों से प्राप्त हो जाता है ।।
प्रश्न—-6. भारत में जूट उद्योग हुगली नदी के तट पर केंद्रित होने के तीन कारण स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर—– उत्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-5 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।।

प्रश्न—-7 आधारभूत उद्योग क्या है? इसका क्या महत्व है?
उत्तर—– आधारभूत उद्योग- ऐसे उद्योग जिन पर अन्य विनिर्माण उद्योग आधारित होते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं ।। इन उद्योगों के उत्पाद दूसरे उद्योगों का पोषण कर उनके विकास का कारण बनते हैं ।। दूसरे शब्दों में, “जिन महत्वपूर्ण उद्योगों पर अन्य उद्योगों की स्थापना और विकास निर्भर होता है, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं ।।” जिस प्रकार भवन-निर्माण में नींव की उपादेयता है, वैसे ही उद्योगों की स्थापना में आधारभूत उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।। लोहा-इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, तेलशोधन उद्योग तथा पेट्रो रसायन उद्योग आधारभूत उद्योगों के उदाहरण हैं ।। आधारभूत उद्योगों का महत्व- आधारभूत उद्योग वे उद्योग हैं, जिन पर राष्ट्र का औद्योगिक ढाँचा खड़ा किया जाता है ।। इनके महत्व निम्नलिखित हैं–


(i) आधारभूत उद्योग प्राथमिक उद्योगों से प्राप्त कच्चे माल का उपयोग कर उनका पोषण करते हैं ।।
(ii) आधारभूत उद्योग प्राथमिक उद्योगों को विकास के पथ पर आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करते हैं ।।
(iii) आधारभूत उद्योग अपने उत्पादों से अन्य उद्योगों को स्थापित करने में सहयोग देते हैं ।।
(iv) आधारभूत उद्योग राष्ट्र में औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करते हैं ।।
(v) आधारभूत उद्योग रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करके, प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय बढ़ाने में अद्वितीय सहयोग
देते हैं ।।
(vi) आधारभूत उद्योगों से पोषण पाकर विविध विनिर्माण उद्योग, विविध वस्तुओं का निर्माण कर जन कल्याण के
साथ-साथ राष्ट्र के आर्थिक विकास को भी सुदृढ़ बनाते हैं ।।

प्रश्न —–भारत में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में केंद्रित होने के किन्ही तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर—– यद्यपि सूती वस्त्र उद्योग भारत के अनेक राज्यों में स्थापित है, परंतु इसका सर्वाधिक विकास गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में हुआ है ।। सूती वस्त्र के उत्पादन में गुजरात राज्य का भारत में प्रथम स्थान तथा महाराष्ट्र राज्य का दूसरा स्थान है ।। भारत में सूती वस्त्र महाराष्ट्र और गुजरात में केंद्रित होने के दो कारण निम्नवत् हैं-
(i) पर्याप्त कच्चे माल की उपलब्धता ।।
(ii) अनुकूल जलवायु तथा स्वच्छ जल की आवश्यकता ।।
(iii) वस्त्र मशीनरी की आवश्यकता ।।


प्रश्न—- 9. उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग के केंद्रित होने के लिए उत्तरदायी तीन कारण स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर—– उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग के केंद्रित होने के लिए उत्तरदायी तीन कारण निम्नलिखित हैं
(i) पर्याप्त गन्ना- उत्तर प्रदेश भारत में गन्ना उत्पादन में अग्रणी राज्य है ।। अतः यहाँ चीनी बनाने के लिए सस्ता गन्ना मिलों को मिल जाता है ।।
(ii) सस्ता श्रम- उत्तर प्रदेश की सघन जनसंख्या चीनी उद्योग को सस्ता ओर कुशल श्रम उपलब्ध कराकर इस उद्योग के स्थानीयकरण में सहायक बनी है ।।
(iii) ऊर्जा और मशीनें- उत्तर प्रदेश राज्य में चीनी की मिलों को सस्ती ऊर्जा तथा मशीनें सुलभ हो जाने से यहाँ चीनी उद्योग उन्नति कर रहा है ।।


प्रश्न—-10. पेट्रोरसायन उद्योग पर एक टिप्पणी लिखिए ।।
उत्तर—– पेट्रोरसायन उद्योग- आधुनिक समय में पेट्रोरसायन एक महत्वपूर्ण उद्योग बनता जा रहा है ।। आज पेट्रोरसायन उत्पाद अपने गुणों के कारण औद्योगिक विकास में अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए है ।। अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण पेट्रोरसायन उत्पाद परंपरागत कच्चे माल, लकड़ी, शीशा और धात्विक खनिजों द्वारा निर्मित उत्पादों के विकल्प या पूरक पदार्थों का रूप लेते जा रहे हैं ।। खेत-खलिहानों, कल-कारखानों तथा घरेलू कार्यों में इनका उपयोग बढ़ता ही जा रहा है ।। आज हम दैनिक जीवन में पेट्रोरसायन उद्योग में निर्मित अनेक वस्तुओं का उपयोग करते हैं ।। विभिन्न प्रकार की चिकनाई वाले तेल, ग्रीस, मोम, मोबिल ऑयल, कृत्रिम रबड़, वस्त्र तथा प्लास्टिक की अनेक वस्तुएँ पेट्रोरसायन उद्योग की ही देन हैं ।। विभिन्न क्षेत्रों में प्लास्टिक उत्पादों ने क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है ।। इसी कारण दिनोंदिन इसके उपयोग में भी वृद्धि होती जा रही है ।। पेट्रोरसायन उद्योग में बड़ी-बड़ी वस्तुओं का निर्माण किया जाने लगा है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में इनका स्थान सर्वोपरि हो गया है ।। यह एक ऐसा उद्योग है, जिसमें उपभोग करने से बचे बेकार के पदार्थों को पुनचक्रित कर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, जिससे इसकी महत्ता में और भी वृद्धि हो गई है ।। भारत में पेट्रोरसायन के केंद्र महाराष्ट्र में ट्राम्बे एवं कोयली, गुजरात में बड़ोदरा एवं अंकलेश्वर, बिहार में बरौनी, पश्चिम बंगाल में हल्दिया, असम में डिगबोई, नूनमाटी एवं बोगाईगाँव, केरल में कोच्चि, आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम, तमिलनाडु में चेन्नई, हरियाणा में करनाल, उत्तर प्रदेश में मथुरा तथा गोवा में मार्मागाओ हैं ।। धीरे-धीरे इस उद्योग का प्रसार देश के अन्य भागों में भी होता जा रहा है ।।


प्रश्न—- 11. इंजीनियरिंग उद्योग क्या है? भारत में वायुयान निर्माण के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम बताइए ।।
उत्तर—– इंजीनियरिंग उद्योग- मशीनें तथा उपकरण कारखानों के आवश्यक अंग और औद्योगीकरण के आधार है ।। मशीनें तथा उपकरणों का निर्माण करके ही राष्ट्र में उद्योगों के विकास का मार्ग खोला जा सकता है ।। मशीनें, वाहन, यंत्र तथा उपकरण जिस उद्योग द्वारा निर्मित किए जाते हैं, उसे इंजीनियरिंग उद्योग कहते हैं ।। एक समय था जब भारत छोटी-छोटी मशीनों और उपकरणों का विदेशों से आयात करके काम चलाता था, परंतु इंजीनियरिंग उद्योग ने भारत को सुई से लेकर विशाल जलयान तथा भीमकाय मशीनें बनाने में आत्मनिर्भर बना दिया है ।। अब भारत मशीनों का आयातक नहीं है, वरन वह उनका निर्यातक बन गया है ।। भारत में वायु निर्माण के दो प्रमुख केंद्र कानपुर तथा बंगलूरू हैं|


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न—-1. भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में दीजिए ।।
(क) उद्योग का महत्व तथा विकास
(ख) उत्पादन एवं उद्योग के प्रमुख केंद्र
उत्तर—– लोहा व इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry) –
महत्व- लौह-इस्पात उद्योग एक महत्वपूर्ण आधारभूत उद्योग है ।। किसी देश के औद्योगिकरण के लिए इस उद्योग का विकास अत्यावश्यक होता है ।। कोई भी ऐसा उद्योग नहीं है जिसमें किसी न किसी रूप में लोके व इस्पात का प्रयोग न होता हो ।। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह उद्योग अत्यंत महत्वपूर्ण है ।। प्रादुर्भाव एवं विकास- अशोक की लाट, जो लगभग 325 वर्ष पूर्व दिल्ली में स्थापित की गई थी, प्राचीन भारत में इस उद्योग की प्रगति का प्रतीक है ।। आधुनिक ढंग का प्रथम लोहा-इस्पात कारखाना सन् 1830 में अरकाडू में खोला गया ।। उसके बाद सन् 1870 में बंगाल में आयरन वर्क्स कम्पनी ने झरिया के निकट कुलटी में संयंत्र की स्थापना की ।। इस उद्योग का वास्तविक आरंभ सन् 1907 में झारखंड के जमशेदपुर (पहले साँकची गाँव) नामक स्थान में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (Tisco) की स्थापना से हुआ ।। तत्पश्चात् सन् 1919 में आसनसोल (बंगाल) के निकट इंडियन आयरन स्टील कंपनी ने अन्य कारखाना स्थापित किया ।। सन् 1923 में भद्रावती में विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स की स्थापना के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इकाई ने कार्य प्रारंभ किया ।। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं में इस उद्योग के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया है ।। द्वितीय योजना में विदेशी कम्पनियों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में तीन कारखाने स्थापित किए गए-


(i) रूस की सरकार की सहायता से मध्य प्रदेश में भिलाई (अब छत्तीसगढ़ में),
(ii) ब्रिटेन की सहायता से बंगाल के दुर्गापूर नामक स्थान में,
(iii) पश्चिमी जर्मनी की सहायता से राउरकेला (ओडिशा में) ।। तीसरी योजना में रूस की सहायता से झारखंड में बोकारो इस्पाम कारखाना स्थापित किया गया ।। चौथी योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात के कारखानों के प्रबंध के लिए केंद्र सरकार ने जनवरी, 1974 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (Steel Authority of India Limited- SAIL) की स्थापना की ।। पाँचवी योजनावधि में सरकार ने सन् 1976 में इंडियन आयरन एंड स्टल कंपनी बर्नपुर का प्रबंध अपने हाथों में ले लिया ।। छठी योजना में सरकार ने विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश) में अत्यंत आधुनिक इस्पात कारखाना लगाया ।। भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का वितरण- भारत का लोहा इस्पात बनाने में विश्व में चतुर्थ स्थान है ।। देश के विभिन्न राज्यों में लोहा इस्पात बनाने की इकाइयाँ स्थापित की गई हैं ।। भारत की प्रमुख लोहा इस्पात निर्माण करने वाली इकाइयाँ अग्रलिखित हैं—–


(i) टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, जमशेदपुर- झारखंड राज्य के जमशेदपुर में सन् 1907 ई० में स्थापित यह निजी क्षेत्र का लोहा-इस्पात बनाने वाला कारखाना एशिया का सबसे बड़ा कारखाना है ।।
(ii) इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी- सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी के पश्चिमी बंगाल में बर्नपुर, कुल्टी तथा हीरापुर में तीन कारखाने हैं ।। वर्तमान में ये तीनों इकाइयाँ 15 लाख टन ढलवाँ लोहा तथा 10 लाख टन इस्पात बनाती है ।।
(iii) विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स- कर्नाटक राज्य के भद्रावती नामक स्थान पर सन् 1923 में भद्रा नदी पर बना यह कारखाना मिश्रित इस्पात बनाता है ।।
(iv) राउरकेला इस्पात लिमिटेड- ओडिशा राज्य का गौरव कहलाने वाला सन् 1959 में स्थापित सार्वजनिक क्षेत्र का यह इस्पात कारखाना भारी इस्पात की चादरें तथा रेल के उपकरण बनाता है ।।
(v) भिलाई इस्पात लिमिटेड- छत्तीसगढ़ में रूस की सरकार के सहयोग से सन् 1957 में स्थापित भिलाई नगर का यह कारखाना इस्पात के साथ-साथ अन्य उपयोगी पदार्थ भी बनाता है ।।
(vi) दुर्गापुर इस्पात लिमिटेडपश्चिम बंगाल के दुर्गापुर नामक स्थान पर सन् 1959 में ब्रिटिश सहायता से स्थापित सार्वजनिक क्षेत्र का यह कारखाना इस्पात पिंड तथा रेल की पटरियाँ बनाता है ।।


(vii) बोकारो इस्पात लिमिटेड- पश्चिम बंगाल के बोकारो स्थान पर रूस के सहयोग से सन् 1964 में स्थापित यह कारखाना इस्पात बनाता है ।। विजयनगर इस्पात प्लांट- आंध्र प्रदेश के विजयनगर में स्थापित यह कारखाना उत्तम कोटि का ‘स्टेनलेस स्टील’ बनाता है ।।
(ix) विशाखापट्टनम् इस्पात प्लांट- तेलंगाना प्रदेश के विशाखापट्टनम नगर में स्थापित यह कारखाना मुलायम इस्पात बनाता है ।।
(x) सेलम इस्पात प्लांट- तमिलनाडु राज्य के सेलम नामक स्थान पर स्थापित यह कारखाना उत्तम कोटि का रंगीन इस्पात बनाता है ।।
(xi) दैत्तारी इस्पात प्लांट- ओडिशा राज्य में दैत्तारी नामक स्थान पर यह नया इस्पात कारखाना स्थापित किया गया है ।।
(xii) कोठागुडम् स्पॉज आयरन प्लांट- ओडिशा राज्य के कोठागुडम् नामक स्थान पर यह भी इस्पात बनाने का नया प्लांट स्थापित किया गया है ।। इस्पात के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है ।। भारत प्रतिवर्ष भारी मात्रा में इस्पात का निर्यात करता है ।।

प्रश्न—–भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में दीजिए ।।
(क) महत्व, विकास एवं उत्पाद
(ख) उत्पादन के क्षेत्र एवं प्रमुख केंद्र
उत्तर—– सूती वस्त्र उद्योग- सूती वस्त्र उद्योग भारत का प्राचीन और सुविकसित उद्योग है ।। भारत की उष्ण जलवायु सूती वस्त्र पहनने के अनुकूल होने के कारण भारत में इस उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ है ।। इस उद्योग के विकास का वास्तविक आरंभ सन् 1854 में मुंबई में एक सूती वस्त्र मिल की स्थापना से हुआ ।। इसके बाद धीरे-धीरे अहमदाबाद, नागपुर, शोलापुर, इंदौर, कानपुर आदि स्थानों पर कपड़ा कारखाने लगने लगे ।। सन् 1917 से सन् 1923 तक इस उद्योग का पर्याप्त विस्तार हुआ ।। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस उद्योग ने तीव्र प्रगति की है ।। सन् 2012 तक देश में 2708 सूती वस्त्र मिलें थीं ।।
महत्व- भारत का सूती वस्त्र उद्योग सबसे बड़ा संगठित उपभोक्ता उद्योग है ।। यह देश के औद्योगिक उत्पादन के 14%, सकल घरेलू उत्पादन में 4%, कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन के 20% एवं कुल निर्यात-व्यापार के लगभग 25% भाग की आपूर्ति करता है ।। देश के कुल आयात-व्यय में इसका हिस्सा मात्र 3% है ।। इस उद्योग में लगभग 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है ।। सूती वस्त्र उद्योग वास्तव में देश का सबसे बड़ा शुद्ध विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला उद्योग है ।। आज इस उद्योग का विस्तार कच्चे माल से लेकर सिले-सिलाए वस्त्रों के सर्वोच्च मूल्य संवर्धित उत्पादों तक हो चुका है ।।
(ख) सूती वस्त्र उत्पादन के क्षेत्र एवं प्रमुख केंद्र- भारत के निम्नलिखित राज्यों में सूती वस्त्र उद्योग ने अधिक उन्नति की है


(i) महाराष्ट्र- महाराष्ट्र भारत का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य है ।। सूती वस्त्र निर्माण उद्योग इस राज्य के नागरिकों का आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया है ।। यह राज्य भारत का 30% सूत तथा 40% सूती वस्त्र बनाता है ।। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग मुख्य रूप से मुंबई, नागपुर, शोलापुर, पुणे, सतारा, कोल्हापुर, अमरावती, वर्धा, जलगाँव तथा औरंगाबाद नगरों में स्थापित हुआ है ।। मुंबई नगर सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा केंद्र है ।। महाराष्ट्र की 165 सूती वस्त्रों की मिलों में से 65 मिलें अकेले मुंबई नगर में स्थित हैं ।। यही कारण है कि मुंबई को सूती वस्त्र के कारखानों की नगरी तथा महाराष्ट्र को सूती वस्त्र निर्माण का केंद्र कहा जाता है ।।


(ii) गुजरात- गुजरात राज्य के उद्योगों में जिस उद्योग को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, वह सूती वस्त्र निर्माण उद्योग है ।। गुजरात राज्य के आर्थिक विकास में सूती वस्त्र उद्योग ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।। गुजरात भारत का 30% सूती वस्त्र बनाकर भारत का दूसरा बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य बन गया है ।। यहाँ सूती वस्त्र निर्माण उद्योग के प्रधान केंद्र अहमदाबाद, सूरत, बड़ोदरा, भरूच, भावनगर, नाडियाद, राजकोट, कलोल, पोरबंदर आदि हैं ।। अहमदाबाद गुजरात का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक क्षेत्र है ।। गुजरात की 120 सूती मिलों में से 73 सूती मिलें अकेले अहमदाबाद नगर में स्थित हैं ।। इसी कारण अहमदाबाद भारत का ‘मानचेस्टर’ तथा ‘पूर्व का बोस्टन’ कहलाता है ।। सूरत इस राज्य के सूती वस्त्रों की व्यापारिक मंडी है ।।


(iii) उत्तर प्रदेश- सूती वस्त्र उद्योग का विकास पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक हुआ है ।। कानपुर उद्योग का उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा केंद्र है ।। इसी कारण कानपुर को उत्तर प्रदेश का मानचेस्टर कहा जाता है ।। उत्तर प्रदेश में सूती वस्त्र उद्योग के अन्य केंद्र मुरादाबाद, मोदीनगर, सहारनपुर, वाराणसी, लखनऊ, आगरा, बरेली, हाथरस एवं अलीगढ़ हैं ।।
(iv) तमिलनाडु- भारत में सबसे अधिक सूती कपड़े की मिलें इसी राज्य में हैं, परंतु ये मिलें छोटी हैं ।। अतः यहाँ कुल उत्पादन भी कम है ।। यहाँ की ज्यादातर मिलें सूत का उत्पादन करती हैं ।। कोयम्बटूर सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है ।। यहाँ तमिलनाडु की आधे से ज्यादा मिलें लगी हुई हैं ।। अन्य प्रमुख केंद्र, चेन्नई मदुरै, तिरूवन्नतपुरम्, अलेप्पी, थंजावूर, क्विलोन, अलवाए, रामानाथपुरम्, तिरूनेलवेली, तिरुचिरापल्ली तुतीकोरिन इत्यादि हैं ।। कर्नाटक में सूती वस्त्र उद्योग का विकास राज्य के उत्तर-पूर्वी भागों के कपास उत्पादक क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ देवणगेरे, हुबली, बेलारी, मैसूर और बंगलौर महत्वपूर्ण केन्द्र हैं ।। आंध्र प्रदेश में सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादक तेलंगाना क्षेत्र में स्थित है ।। इस प्रदेश की अधिकतर मिलें कताई करके सूत का उत्पादन करती हैं ।। हैदराबाद, सिकंदराबाद, वारंगल और गुणटूर महत्वपूर्ण केंद्र हैं ।। पश्चिम बंगाल में कोलकाता के आस-पास 48 किमी० की परिधि में हुगली नदी के किनारे सूती वस्त्र बनाने की मिलें हैं ।।

प्रश्न—-3. भारत में चीनी उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत कीजिए
(क) उद्योग का विकास
(ख) स्थानीयकरण (ग) उत्पादन के केंद्र
(घ) समस्याएँ
उत्तर—– भारत में चीनी उद्योग- सूती वस्त्र उद्योग के बाद चीनी उद्योग कृषि पर आधारित भारत का दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है ।। यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है ।। भारत विश्व में ब्राजील के बाद चीनी का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश है ।। \
(क) भारत में चीनी उद्योग का विकास- भारत में चीनी का आधुनिकतम कारखाना सर्वप्रथम सन् 1903 में स्थापित
किया गया ।। इस उद्योग की वास्तविक प्रगति वर्ष 1931-32 से प्रारंभ हुई जब इसे संरक्षण प्रदान किया गया ।। सन् 1939 से इस उद्योग ने निरंतर प्रगति की है ।। सन् 1951 में भारत में चीनी की 138 मिलें थीं, जिनकी उत्पादन क्षमता 15 लाख टन तथा उत्पादन 11 लाख टन था ।। इसके बाद इसका तीव्र गति से विकास हुआ ।। वर्तमान में देश में 250 चीनी मिलें निजी क्षेत्र में, 62 चीनी मिलें सार्वजनिक क्षेत्र में जबकि 320 चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में संचालित की जा रहीं हैं ।।


(ख) भारत में चीनी उद्योग का स्थनीयकरण- भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारण
(i) पर्याप्त गन्ना- भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण का मुख्य कारण गन्ने की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता है ।।
(ii) अनुकूल जलवायु- भारत की नम तथा उष्ण जलवायु चीनी उद्योग को विकसित करने में सहायक बनी है ।।
(iii) सस्ता श्रम- भारत की सघन जनसंख्या चीनी उद्योग को सस्ता एवं कुशल श्रमिक उपलब्ध कराकर इस उद्योग के स्थानीयकरण में सहायक बनी हैं ।।
(iv) ऊर्जा एवं मशीनें- भारत में चीनी मिलों को सस्ती ऊर्जा तथा मशीनें सुलभ हो जाने से चीनी उद्योग ने उन्नति
की है ।। (v) परिवहन की सुलभता- भारत में सड़कों तथा रेलमार्गों का जाल बिछा हुआ है ।। रेलमार्गों तथा सड़कों के द्वारा
गन्ने को चीनी मिलों तक तथा चीनी को खपत केंद्रों तक पहुँचाने में सहयोगी बनकर, चीनी उद्योग के स्थानीयकरण में सहायक सिद्ध हुई है ।।
(vi) पर्याप्त माँग- चीनी की माँग भारत के सभी क्षेत्रों में होने के कारण, चीनी उद्योग लाभकारी बन जाने से दनादन स्थापित होता चला गया ।।
(ग) भारत में चीनी उत्पादन के केंद्र- भारत के अनेक राज्यों में चीनी निर्माण उद्योग चलाया जाता है ।। भारत में चीनी उद्योग की दृष्टि से निम्नलिखित राज्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं—-


(i) महाराष्ट्र- महाराष्ट्र राज्य चीनी उत्पादन के क्षेत्र में भारत में प्रथम स्थान पर है ।। यह राज्य भारत की 35% चीनी का उत्पादन करता है ।। यहाँ पुणे, सतारा, सांगली, नासिक, अहमदनगर, मनमाड़ तथा रावलगाँव आदि
क्षेत्रों में चीनी मिलें स्थापित की गई हैं ।। यहाँ कुल 119 चीनी मिलें हैं ।।
(ii) उत्तर प्रदेश- उत्तर प्रदेश चीनी के उत्पादन में भारत में द्वितीय स्थान रखता है ।। यह राज्य भारत की 32% चीनी का निर्माण करता है ।। यहाँ चीनी की मिलें सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, बागपत, अलीगढ़,
मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत, गोंडा, देवरिया और गोरखपुर आदि जिलों में स्थापित की गई हैं ।।
(iii) तमिलनाडु- तमिलनाडु राज्य की जलवायु गन्ना उगाने के लिए सर्वाधिक अनुकूल होने के कारण, यह राज्य भारत में चीनी उत्पादन के क्षेत्र में तीसरा स्थान पा गया है ।। यहाँ चीनी की मिलें कोयंबटूर दक्षिणी अर्काट, ङ्केत्रिरुचिरापल्ली तथा वैल्लोर जिलों में स्थापित की गई है ।।
(iv) अन्य राज्य- भारत के अन्य चीनी उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तराखंड आदि राज्यों के नाम उल्लेखनीय हैं ।। भारत में चीनी उद्योग की समस्याएँ ( बाधाएँ)- भारत में वर्तमान समय में चीनी उद्योग अनेक बाधाओं से ग्रसित है ।। इस उद्योग को वर्तमान समय में निम्नलिखित समस्याओं का सामाना करना पड़ रहा है–


(i) भारत में गन्ना उत्पादन का लागत मूल्य बढ़ जाने से सरकार प्रतिवर्ष गन्ना मूल्य बढ़ा देती है ।।
(ii) गन्ना मूल्य बढ़ने से चीनी मिल मालिकों का लाभ घट जाता है ।।
(iii) गन्ने का उचित मूल्य दिलाने के लिए किसानों को कई बार, न्यायालय की शरण तक लेनी पड़ जाती है ।।
(iv) गन्ना उत्पादन बढ़ जाने से चीनी मिलें किसानों का संपूर्ण गन्ना नहीं खरीद पातीं, अतः कभी-कभी किसानों को खेतों में खड़ा गन्ना जलाना पड़ता है ।।
(v) चीनी मिलें समय से न चल पाने के कारण, गन्ना उत्पादक किसान गन्ना सस्ती दरों पर कोल्हुओं क्रेशरों को बेचने पर
विवश हो जाते हैं ।।
(vi) श्रमिक यूनियन प्रतिवर्ष वेतन तथा अन्य सुविधाएँ बढ़ाने के लिए हड़ताल कर, चीनी उत्पादन में बाधा डालती हैं ।।
(vii) सरकार लेवी के रूप में सस्ती चीनी तथा शीरा खरीदकर चीनी मिलों को हानि पहुँचाती है ।।
(viii) सरकार, मिल मालिक तथा गन्ना उत्पादक किसान आमने-सामने आकर विवाद पैदा कर देते हैं ।। इन समस्याओं को हल करने के लिए किसानों को कम क्षेत्रफल में गन्ना बोना चाहिए ।। सरकार को गन्ने का उचित मूल्य निश्चित कर देना चाहिए ।। बाजार में चीनी तथा शीरे का उचित मूल्य तय हो जाना चाहिए ।।

प्रश्न—-भारत में कागज उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत कीजिए ।।
(क) स्थानीयकरण के कारण
(ख) उद्योग के प्रमुख केंद्र
उत्तर—भारत में कागज उद्योग के स्थानीकरण के कारण- कागज उद्योग की स्थापना के लिए कच्चा माल वनों से प्राप्त कोमल लकड़ी, बाँस, रद्दी कागज एवं चिथड़े आदि, स्वच्छ जल, रासायनिक पदार्थ, शक्ति के संसाधन, सस्ते एवं कुशल श्रमिक, परिवहन के विकसित साधन, पयाप्त माँग तथा सरकारी सहायता व संरक्षण आवश्यक होते हैं ।। भारत में कागज उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में बगाई घास, गन्ने की खोई, फटे-पुराने चिथडे, रद्दी कागज, बाँस तथा कोमल लकडी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं ।। विशेषकर पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के तट पर ये सुविधाएँ पर्याप्त उपलब्ध हैं ।। यहीं रद्दी कागज तथा फटे-पुराने कपडों का पुनर्चक्रण कर उनका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है ।।


भारत में कागज उद्योग के प्रमुख केंद्र- वर्तमान समय में भारत में कागज बनाने वाले लगभग 700 कारखानें हैं, जो भारत के निम्नलिखित राज्यों में स्थित हैं
(i) पश्चिम बंगाल- पश्चिम बंगाल राज्य कागज निर्माण उद्योग के क्षेत्र में भारत में प्रथम स्थान पर है ।। इस राज्य की 19 विशाल कागज मिलों में देश का लगभग 20% कागज बनाया जाता है ।। यहाँ टीटागढ़, नैहाटी, कोलकाता, हावड़ा, त्रिवेणी तथा चंद्रहाटी नगरों में कागज उद्योग स्थापित किए गए हैं ।।
(ii) महाराष्ट्र- महाराष्ट्र राज्य कागज उद्योग के क्षेत्र में भारत में द्वितीय स्थान पर है ।। इस राज्य की 50 कागज मिलों में देश का 13% कागज बनाया जाता है ।। यहाँ बल्लारपुर, पुणे, मुंबई, गोरेगाँव, कल्याण तथा साँगली नगरों में कागज की मिलें स्थापित की गई हैं ।। बल्लारपुर देश की सबसे बड़ी अखबारी कागज बनाने की मिल है ।।
(iii) आंध्र प्रदेश- आंध्र प्रदेश को भारत में कागज उद्योग के क्षेत्र में तृतीय स्थान प्राप्त है ।। यहाँ की 22 कागज की मिलों में देश का 13% कागज बनाया जाता है ।। यहाँ तिरुपति, सिरपुर, राजमेहंद्री, कुर्नूल, श्रीकाकुलम, नैल्लोर तथा बोधन आदि
नगरों में कागज बनाने की मिलें लगाई गई हैं ।।
(iv) मध्य प्रदेश- मध्य प्रदेश कागज उद्योग की प्रगति के अनुसार भारत में चौथा स्थान रखता है ।। यहाँ 8 विशाल कागज
मिलों से देश का 6% कागज प्राप्त होता है ।। यहाँ भोपाल, रतलाम, इंदौर, नेपानगर आदि नगरों में कागज बनाने की मिलें
लगाई गईं हैं ।। नेपानगर पेपर मिल में अखबारी कागज बनाया जाता है ।।
(v) अन्य राज्य- भारत में कागज उद्योग के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल, उत्तराखंड तथा हरियाणा
आदि राज्यों के नाम भी उल्लेखनीय हैं ।।

प्रश्न—-5. भारत में सीमेंट उद्योग के महत्व तथा क्षेत्रीय वितरण पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर—– भारत में सीमेंट उद्योग का महत्व- किसी भी विकासोन्मुख राष्ट्र के लिए सीमेंट का अत्यधिक महत्व है ।। सीमेंट भवन निर्माण का सस्ता एवं टिकाऊ मसाला है ।। बाँध, सड़क, भवन तथा कारखाने बनाने में सीमेंट की विशेष भूमिका रहती है ।। सीमेंट उद्योग एक आधारभूत उद्योग है अतः देश में सीमेंट की कमी होने पर आर्थिक विकास की गति पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।। परिवहन तथा उद्योगों के विकास में सीमेंट उद्योग मुख्य भूमिका निभाता है ।। भारत जैसे विकासशील देश में सीमेंट व्यापारिक स्तर पर बनाया जाता है ।। भारत में सीट की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए लघु संयंत्र तथा विशाल कारखाने स्थापित किए गए हैं ।। सीमेंट उत्पादन में भारत का विश्व में द्वितीय स्थान है ।।
भारत में सीमेंट उद्योग के केंद्रों का वितरण- संपूर्ण भारत में सीमेंट कारखानों की स्थापना तथा विकास किया गया है ।। भारत के प्रमुख सीमेंट उत्पादक राज्य निम्नलिखित हैं


(i) आंध्र प्रदेश- आंध्र प्रदेश भारत का एक महत्वपूर्ण सीमेंट उत्पादक राज्य है ।। इस राज्य में सीमेंट के 18 विशाल कारखाने हैं ।। यहाँ विजयवाड़ा, चेरागुंटल, करीमनगर, कृष्णा आदि सीमेंट उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र हैं ।।
(ii) मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़– ये दोनों राज्य सीमेंट उद्योग के विकास में अग्रणी हैं ।। यहाँ भारत का 15% सीमेंट बनाया जाता है ।। इन दोनों राज्यों में कटनी, सतना, ग्वालियर, दुर्ग, वनमौर तथा जबलपुर आदि नगरों में सीमेंट उद्योग स्थापित किए गए हैं ।।
(iii) राजस्थान- यह राज्य सीमेंट उद्योग के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति कर गया है ।। यहाँ सीमेंट के 10 कारखाने हैं ।। जो सवाई माधोपुर, लखेरी, निंबाहेडा तथा उदयपुर आदि स्थानों पर लगाए गए हैं ।।
(iv) अन्य राज्य– भारत के अन्य सीमेंट उत्पादक राज्यों में तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा तथा हिमाचल प्रदेश आदि उल्लेखनीय हैं ।। भारत के सीमेंट उद्योग के विषय में एक रोचक तथ्य भी जानने योग्य है, “भारत में सीमेंट उद्योग का विकास दक्कन के पठार के चारों ओर हुआ है ।।” इसका प्रमुख कारण, इस क्षेत्र में सीमेंट निर्माण में काम आने वाला कच्चा माल है ।। ये कच्चे माल भारी और सस्ते होते हैं ।। अतः परिवहन व्यय बचाने के लिए सीमेंट उद्योग का विकास इन्हीं कच्चे मालों के निकटतर्वी क्षेत्रों में किया गया है ।।

प्रश्न—6 भारत के किसी एक आधारभूत उद्योग का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर—– उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या- 1 के उत्तर में आधारभूत उद्योग लोहा-इस्पात उद्योग का अवलोकन कीजिए ।।

प्रश्न—-7. पेट्रोरसायन उद्योग तथा इंजीनियरिंग उद्योग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।।
उत्तर—– पेट्रोरसायन उद्योग- वर्तमान युग में जिस नए उद्योग का अवतार हुआ है, उसे पेट्रोरसायन उद्योग का नाम दिया गया है ।।
खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस से प्राप्त विविध पदार्थों पर आधारित उद्योग पेट्रोरसायन उद्योग कहलाता है ।। भारत में पेट्रोरसायन उद्योग का विकास गत दो दशकों की देन है ।। सन् 1960 में देश में कार्बनिक रसायनों की माँग इतनी बढ़ गई थी कि कोयला, एल्कोहॉल और कैल्सियम कार्बाइड से तैयार रसायनों से उसे पूरा करना कठिन हो गया ।। उसी समय पेट्रोलियम परिष्करण उद्योग तेजी से विकसित हुआ ।। इसी के चलते सन् 1961 में मुंबई में नैफ्था पर आधारित पहला कारखाना ‘द नेशनल आर्गेनिक कैमिकल्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड’ लगाया गया ।। सन् 1966 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड ने मुंबई के ट्रांबे में पैट्रो रसायन संयत्र लगाया ।। सन् 1969 में कोयली में भी ऐसा ही कारखाना लगाया गया ।। इसके बाद बड़ोदरा में सार्वजनिक क्षेत्र का पहला विशाल पेट्रोरसायन सयंत्र लगाया गया, जो अनेक प्रकार के उत्पाद बनाता था ।। इसका नाम इंडियन पेट्रोकैमिकल्स कार्पोरेशन लिमिटेड है ।। इसके बाद कई स्थानों पर बड़े-बड़े पेट्रोरसायन संयत्र लगाए गए ।। इस उद्योग के अंतर्गत प्लास्टिक, कृत्रिम रेशा, कृत्रिम रबड़ तथा डिटर्जेंट पाउडर आदि बनाने के उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं ।। भारत में पेट्रोरसायन उद्योग का नियंत्रण- भारत में पेट्रोरसायन उद्योग का विकास करने तथा उस पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए निम्न संस्थाओं की स्थापना की गई है–


(i) इंडियन पेट्रोकैमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड– यह सार्वजनिक क्षेत्र की यह संस्था पॉलिमर्स, रसायन रेशों व रेशों की मध्यवर्ती वस्तुओं का उत्पादन और वितरण करता था किंतु लगातार घाटा उठाने के कारण 4 जून, 2002 ई० को बंद कर दिया गया है
(ii) पेट्रो फिल्स काऑपरेटिव लिमिटेड- यह संगठन गुजरात राज्य के नलधारी और बड़ोदरा में स्थित कारखानों में पोलिस्टर फिलामेंट धागा एवं नायलॉन चिप्स के उत्पादन का कार्य करता है ।।
(iii) सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी– इस संस्थान का मुख्य कार्य प्लास्टिक के ज्ञान विज्ञान के विकास हेतु छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करना है ।।

पेट्रोरसायन उद्योग का महत्व- पेट्रोरसायन उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक बन गया है ।। इस उद्योग ने भारतीय औद्योगीकरण को न केवल गति प्रदान की है, वरन् उसका स्वरूप ही बदल दिया है ।। भारत में पेट्रोरसायन उद्योग के अंतर्गत भवन निर्माण में प्रयुक्त होने वाली संश्लेषित वस्तुएँ, प्लास्टिक तथा कृत्रिम रेशा बनाया जाने लगा है ।। प्लास्टिक, लकड़ी का स्थानापन्न स्रोत बन गया है ।। नायलॉन के धागे, फाइबर पदार्थ बनाने के उद्योग तथा डिटर्जेंट बनाने का कार्य वृहद स्तर के उद्योगों के रूप में विकसित हो गया है ।। यह उद्योग भारतीय उद्योगों तथा अर्थव्यवस्था को निरंतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता चला जा रहा है ।।


भारत में पेट्रोरसायन उद्योग के केंद्र- भारत में पेट्रोरसायन उद्योग से एल्कोहल, कैल्सियम कार्बाइड तथा अनेक रासायनिक पदार्थों के अभाव को पूरा करने के लिए इस उद्योग के केंद्रों तथा संयंत्रों की स्थापना मुंबई, ट्रांबे, भोपाल, कोयली, बड़ोदरा, हल्दिया, बोंगई गाँव, बरौनी, औरैया, जामनगर, गांधीनगर, हजीरा, रत्नागिरी तथा विशाखपट्टनम आदि नगरों में की गई है ।। पेट्रोरसायन पदार्थों की बढ़ती माँग ने इस उद्योग के भविष्य को उज्ज्वल बना दिया है ।। धीरे-धीरे इस उद्योग का विकेंद्रीकरण समूचे देश में किया जा रहा है ।

इंजीनियरिंग उद्योग- मशीनें तथा उपकरण कारखानों के आवश्यक अंग और औद्योगीकरण के आधार है ।। मशीनें तथा उपकरणों का निर्माण करके ही राष्ट्र में उद्योगों के विकास का मार्ग खोला जा सकता है ।। मशीनें, वाहन, यंत्र तथा उपकरण जिस उद्योग द्वारा निर्मित किए जाते हैं, उसे इंजीनियरिंग उद्योग कहते हैं ।। एक समय था जब भारत छोटी-छोटी मशीनों और उपकरणों का विदेशों से आयात करके काम चलाता था, परंतु इंजीनियरिंग उद्योग ने भारत को सुई से लेकर विशाल जलयान तथा भीमकाय मशीनें बनाने में आत्मनिर्भर बना दिया है ।। अब भारत मशीनों का आयातक नहीं है, वरन वह उनका निर्यातक बन गया है ।। देश में भारी इंजीनियरिंग उद्योग का वास्तविक विकास सन् 1958 में हैवी इंजीनियरिंग कार्पोरेशन (राँची) की स्थापना के बाद हुआ ।।
इसकी तीन इकाइयाँ हैं-


(i) भारी मशीनरी निर्माण संयत्र,
(ii) फांउड्री फोर्ज का संयत्र तथा
(iii) भारी मशीन उपकरण ।। सन् 1965 में आस्ट्रिया के सहयोग से त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लि० नैनी, सन् 1947 में तुंगभद्रा स्टील प्रोडक्टस लि० तथा सन् 1966 में चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से भारत हैवी प्लेट एंड वैसल्स लि० विशाखापट्टनम स्थापित किया गया ।। भारी इंजीनियरिंग उद्योगों में क्रेन, इस्पात के ढाँचे, ट्रांसमिशन टावर तथा ढलाई में काम आने वाले उपकरण आदि बनाए जाते है ।। दुर्गापुर में स्थापित माइनिंग एंड एलाइड मशीनरी कार्पोरेशन लि० खनन कार्य में काम आने वाली मशीनों का निर्माण करता है ।।


भारत के इंजीनियरिंग उद्योग- भारत में विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग स्थापित किए गए हैं, जिनमें प्रमुख उद्योग निम्नलिखित हैं
(i) भारी मशीनरी निर्माण उद्योग- इन कारखानों में विद्युत टरबाइंस, वाष्प टैंक, विशालकाय चक्र, इंजन, ट्रांसफामर्स तथा विद्युत उपकरण बनाए जाते हैं ।। भारी मशीनरी उद्योग के केंद्र हरिद्वार, मुंबई, कोलकाता, भोपाल, चंडीगढ़, अंबाला,
बंगलुरू तथा कानपुर नगरों में स्थापित किए गए हैं ।।


(ii) वायुयान निर्माण उद्योग- भारत में विविध प्रकार के वायुयान बनाए जाते हैं ।। भारत में चेतक और चीता आदि हेलीकॉप्टर भी बनाए जाते हैं ।। कानपुर, बंगलुरू, कोरापुट, हैदराबाद, कोरबा (लखनऊ), कोच्चि आदि नगरों में वायुयान निर्माण उद्योग स्थापित और विकसित किया गया है ।।
(iii) जलयान निर्माण उद्योग- जलयान निर्माण उद्योग भारत में पर्याप्त रूप से विकसित हो गया है ।। भारत में कोलकाता, विशाखापट्टनम, मुंबई, गोवा तथा कोच्चि में जलयान निर्माण केंद्रों की स्थापना की गई हैं ।। सन् 1941 में सिंधिया कंपनी ने जलयान निर्माण का पहला कारखाना आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम नगर में खोला जिसका भारतीय सरकार ने सन् 1947 में राष्ट्रीयकरण करके इसका नाम ‘हिंदुस्तान शिपयार्ड’ रख दिया ।। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के कोलकाता में ‘गार्डन रीच शिप बिर्ल्डस’ नामक कारखाने में भी विशालकाय जलयानों, मालवाहक नौकाओं तथा तटपोतों का निर्माण किया जा रहा है ।। मझगाँव (मुंबई) के जलयान निर्माण केंद्र में सेना के लिए जलयान तथा नौकाएँ बनाई जाती हैं ।। भारत में वाराणसी में डीजल रेल इंजन तथा चितरंजन, पेरांबूर तथा कपूरथला में रेलवे के कोच बनाए जाते हैं ।। मुंबई, कोलकाता, गुरुग्राम, फरीदाबाद, जमशेदपुर तथा गुजरात में मोटरकार बनाने के विशाल कारखाने हैं ।। भारत भारी संख्या में स्कूटर, मोटरकार, ट्रक, सिलाई मशीनें, बिजली के पंखे, ट्रांसफामर्स, विद्युत मोटर्स तथा टरबाइंस का निर्यात करता है ।।

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