UP BOARD CLASS 12TH CIVICS CHAPTER 7 Franchise and Electoral Systems FULL SOLUTION मताधिकार तथा निर्वाचन प्रणालियाँ
मताधिकार तथा निर्वाचन प्रणालियाँ (Franchise and Electoral Systems)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1— दो निर्वाचन प्रणालियों के नाम लिखिए ।।
उत्तर— निर्वाचन की दो प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं
(i) प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली— जब निर्वाचक प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं, तो उसे प्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं ।। भारत में लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों का चुनाव इसी प्रणाली से होता है ।।
(ii) अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली— जब सामान्य मतदाता ऐसे निर्वाचक मण्डल का चुनाव करते हैं जो प्रतिनिधियों का चुनाव करता है, तो ऐसी प्रणाली को अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली कहते हैं ।। भारत में राज्य सभा का निर्वाचन अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा ही होता है ।।
2— महिला मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए ।।
उत्तर— महिला मताधिकार— महिलाओं के लिए मताधिकार प्राप्त करने की माँग प्रजातंत्र के विकास तथा विस्तार के साथ ही प्रारम्भ हुई है यदि मताधिकार प्रत्येक व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है, तो महिलाओं को भी यह अधिकार प्राप्त होना चाहिए ।। 19वीं शताब्दी में बेन्थम, डेविड हेयर, सिजविक, ऐस्मीन तथा जे०एस० मिल ने महिला मताधिकार का समर्थन किया ।। इंग्लैण्ड में सन् 1918 ई० में सार्वभौमिक मताधिकार अधिनियम पारित करके 30 वर्ष की आयु वाली महिलाओं को मताधिकार प्रदान किया गया ।। 10 वर्ष बाद यह आयु—सीमा घटाकर 21 वर्ष तक कर दी गई ।। सन् 1920 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका में पुरुषों के समान महिलाओं
4— अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की किन्ही चार प्रणालियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर— अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की चार प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं
(i) अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
(ii) सामूहिक प्रणाली
(iii) पृथक निर्वाचन प्रणाली
.(iv) सीमित मत प्रणाली
5— समानुपातिक प्रतिनिधित्व क्या है? इसके दो दोष बताइए ।।
उत्तर— अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए जिन उपायों को सामान्यतया प्रयोग किया जाता है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण समानुपातिक प्रणाली है ।। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य राज्य में विद्यमान सभी राजनीतिक दलों का विधायिका में उचित प्रतिनिधित्व करना है ।। प्रत्येक राजनीतिक दल को व्यवस्थापिका में लगभग उतना प्रतिनिधित्व अवश्य प्राप्त हो सके जितना निर्वाचकों का उसे समर्थन प्राप्त है ।। प्रतिनिधित्व की इस योजना को जन्म देने वाले 19 वीं शताब्दी के एक अंग्रेज विद्वान थॉमस हेयर थे इसलिए इसे हेयर प्रणाली भी कहते हैं ।।
दोष— इस प्रणाली के दोष निम्नवत् हैं
(i) यह प्रणाली अल्पमत विचारधारा को प्रोत्साहन देती है ।।
(ii) व्यवहारिक रूप से यह प्रणाली अत्यन्त जटिल है ।।
6— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में दो तर्क दीजिए ।। ।।
उत्तर— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में दो तर्क निम्नवत् हैं
(i) राजनीतिक शिक्षा की व्यवस्था— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा भी प्रदान करती है, क्योंकि मतदाताओं के लिए अपना मत देने से पहले विभिन्न उम्मीदवारों तथा विभिन्न दलों की नीतियों के विषय में विचार करना आवश्यक हो जाता है ।।
(ii) अधिक लोकतांत्रिक— बहुत से विद्वान इस पद्धति को अधिक लोकतांत्रिक मानते हैं, क्योंकि इसमें सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है ।।
7— आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुणों को लिखिए ।।
उत्तर— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण निम्नलिखित हैं
(i) कोई मत व्यर्थ नहीं जाता
(ii) राजनीतिक शिक्षा की व्यवस्था
(iii) व्यवस्थापिका का उच्च स्तर
(iv) बहुमत की निरंकुशता का भय नहीं
(v) अधिक लोकतांत्रिक
(vi) सभी वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व
8— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो दोष बताइए ।।
उत्तर— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो दोष निम्नवत् हैं
(i) अनुपातिक प्रणाली में विशेषतया सूची प्रणाली में, दलों का संगठन तथा नेताओं का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है और साधारण सदस्यों की स्वतंत्रता नष्ट हो जाती है, क्योकि मतदान का अधिकार राजनीतिक दल होता है ।।
(ii) दलीय वर्चस्व के कारण मतदाता प्रायः अपने राजनीतिक दलों को मत देते हैं, अतः इस प्रणाली में निर्वाचकों और प्रतिनिधियों में कोई सम्पर्क नहीं होता है ।।
UP BOARD CLASS 12TH CIVICS CHAPTER 7 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1— व्यस्क मताधिकार क्या है? इसके गुण तथा दोषों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए ।।
उत्तर— वयस्क या सार्वभौमिक मताधिकार— वयस्क मताधिकार से तात्पर्य है कि मतदान का अधिकार एक निश्चित आयु के नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होना चाहिए ।। वयस्क मताधिकार की आयु का निर्धारण प्रत्येक देश में वहाँ के नागरिक के वयस्क होने की आयु पर निर्भर करता है ।। भारत में वयस्क होने की आयु 18 वर्ष है ।। अत: भारत में मताधिकार की आयु भी 18 वर्ष है ।। वयस्क मताधिकार से तात्पर्य है कि दिवालिए, पागल व अन्य किसी प्रकार की अयोग्यता वाले नागरिकों को छोड़कर अन्य सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।। मताधिकार में सम्पत्ति, लिंग अथवा शिक्षा जैसा कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए ।। मॉण्टेस्क्यू, रूसो,टॉमस पेन इत्यादि विचारक वयस्क मताधिकार के समर्थक हैं ।। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है ।।
वयस्क मताधिकार के गुण— वयस्क मताधिकार के पक्ष में दिए जाने वाले प्रमुख गुण इस प्रकार हैं
(i) सम्प्रभुता का स्रोत जनता है इसलिए सभी को समान रूप से मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।।
(ii) राज्यों के कार्य, कानून व नीतियों का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर पड़ता है, इसलिए सभी को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।। (iii) सभी व्यक्ति समान हैं ।। सभी को अपने हितों की सुरक्षा के लिए मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।।
(iv) सभी को मताधिकार मिलने से अल्पसंख्यक भी प्रतिनिधित्व प्राप्त कर लेते हैं ।।
(v) शिक्षा, सम्पत्ति तथा लिंग—भेद अनुचित है, इसलिए सभी को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।।
(vi) मताधिकार प्राप्त होने से व्यक्ति स्वयं को सम्मानित अनुभव करते हैं ।।
(vii) नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए वयस्क मताधिकार आवश्यक है ।।
(viii) वयस्क मताधिकार से उदासीनता समाप्त होती है तथा राजनीतिक जागृति व शिक्षा प्राप्त होती है ।।
(ix) वयस्क मताधिकार राष्ट्र की एकता का प्रतीक है ।।
(x) मानव होने के कारण सभी समान हैं और वयस्क मताधिकार प्राकृतिक अधिकार है ।।
(xi) वयस्क मताधिकार लोकतांत्रिक सिद्धान्तों एवं भावनाओं के अनुकूल है ।।
वयस्क मताधिकार के दोष— वयस्क मताधिकार के विपक्ष में दिए जाने वाले प्रमुख दोष इस प्रकार हैं
(i) वयस्क मताधिकार की अवधारणा विचारहीन तथा तर्कों के विपरीत है क्योंकि इससे अशिक्षित, निर्धन तथा अज्ञानी लोग सत्ता में आ जाएँगे ।।
(ii) वयस्क मताधिकार से शासन अशिक्षित व अज्ञानियों के हाथों में आ जाएगा ।।
(iii) साधारण जनता राजनीति के जटिल प्रश्नों को नहीं समझती है, इसलिए सभी को मताधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए ।।
(iv) अधिकारों की सुरक्षा के लिए सभी को मताधिकार देना अनुचित है क्योंकि यह अधिकार सुरक्षा की कोई गारण्टी प्रदान नहीं करता ।।
(v) वयस्क मताधिकार भ्रष्टाचार को जन्म देता है ।। अधिकांश नवोदित राष्ट्रों में धन, धर्म व जाति के प्रभाव से मतदान होता है ।।
“अक्षम और अयोग्य लोगों को शासक चुनने का अधिकार देने का अर्थ होगा— स्वयं का विनाश ।।” ————-ब्लशली
(vi) मताधिकार एक पवित्र कर्त्तव्य है, जो केवल समझदार व बुद्धिमान व्यक्ति को ही प्राप्त होना चाहिए ।।
(vii) वयस्क मताधिकार रूढ़िवादिता को जन्म देता है क्योंकि जनता अनुदार होती है और प्रगतिशील विचारों को शंका की दृष्टि से देखती है ।।
2— व्यस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए ।।
उत्तर— उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।।
3— व्यस्क मताधिकार के समर्थन का मुख्य आधार क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— व्यस्क मताधिकार के समर्थन के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं
(i) समानता का अधिकार-— चूँकि लोकतंत्र समानता के सिद्धान्त पर आधारित है, इसलिए वयस्क सार्वजनिक मताधिकार राजनीतिक समानता की स्थापना करता है ।। व्यस्क मताधिकार के अन्तर्गत सभी वयस्कों को समान रूप से मतदान का अधिकार दिया जाता है और किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है इसलिए यह समानता के सिद्धान्त को लागू करता है ।।
(ii) राजनीतिक प्रशिक्षण-— मताधिकार शिक्षा का एक साधन है ।। व्यस्क सार्वजनिक मताधिकार के द्वारा राज्य के प्रत्येक व्यक्ति का राजनीतिक प्रशिक्षण होता है ।। इससे राज्य में शान्ति एवं सुव्यवस्था रहती है ।।
(iii) सार्वजनिक हित की रक्षा-— वयस्क मताधिकार सार्वजनिक हित का रक्षक है ।। कुछ व्यक्तियों को वयस्क मताधिकार देकर सार्वजनिक हित की रक्षा नहीं की जा सकती ।। जब देश की सम्पूर्ण जनता मतदान में भाग लेती है तो स्वतः सार्वजनिक हित की रक्षा होती है ।।
प्रो० लॉस्की के अनुसार, “शक्ति से अलग होने का अर्थ शक्ति के लाभों से वंचित होना है ।।”
(iv) कानून पालन में सुविधा— वयस्क मताधिकार से सम्पूर्ण राष्ट्र की जनता निर्वाचन में भाग लेती है और अपने शासकों तथा कानून निर्माताओं का चयन करती है तो वह अपने प्रतिनिधियों द्वारा बनाये गये नये कानून का पालन आसानी से करने लगती है ।।
(v) राष्ट्रीयता का अधिकार— वयस्क मताधिकार से जनता अपने को राज्य का आवश्यक अंग मानती है ।। जनता में राष्ट्रीय प्रेम उत्पन्न होता है ।। इससे राष्ट्रीयता का विकास होता है और राज्य की शक्ति में वृद्धि होती है ।।
UP BOARD CLASS 12TH CIVICS CHAPTER 6 Political Parties FULL SOLUTION
(vi) स्वाभिमान का भाव— वयस्क मताधिकार जनता में स्वाभिमान का भाव उत्पन्न करता है ।। जनता अपने को राज्य बनाने या बिगाड़ने वाली समझती है और सरकार के प्रशासन कार्य में सक्रिय भाग लेती है ।।
(vii) लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुकूल— वयस्क मताधिकार लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुकूल है ।। चूंकि लोकतंत्र में सम्प्रभुता का निवास जनता में होता है, इसलिए जनता को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार देना चाहिए ।। व्यस्क मताधिकार के अभाव में लोकतन्त्रीय व्यवस्था सफल नहीं हो सकती ।।
(viii) सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व-— वयस्क सार्वजनिक मताधिकार सम्पत्ति, शिक्षा, धर्म, जाति, लिंग आदि पर आधारित नहीं होता ।। यह अपने अन्तर्गत सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है ।। इसमें सभी वर्गों को समान अवसर तथा समान अधिकार प्राप्त होता है जिससे उनमें प्रेम तथा सद्भावना का अभाव जाग्रत होता है ।।
(ix) न्यायसंगत— वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त न्यायसंगत इसलिए है कि राज्य के कानून सबके लिए समान हैं ।। अतएव _.कानून निर्माण में सबको समान अधिकार मिलना चाहिए ।। वयस्क मताधिकार इस अधिकार की पूर्ति करता है ।।
4— प्रतिनिधित्व के विभिन्न तरीकों का परीक्षण कीजिए ।।
उत्तर— प्रतिनिधित्व दो प्रकार का होता है
(i) आदिष्ट प्रतिनिधित्व,
(ii) आदेशहीन प्रतिनिधित्व
(i) आदिष्ट प्रतिनिधित्व— आदिष्ट प्रतिनिधित्व का अर्थ है कि प्रतिनिधि निर्वाचकों के अधीन हो, उसकी अपनी कुछ भी इच्छा नहीं है ।। वह निर्वाचकों की इच्छा को अभिव्यक्त करता है ।। प्रतिनिधित्व का यह रूप आज विलुप्त है, तथापि कुछ ऐसे प्रतिनिधि है, जो स्वामी की इच्छानुसार ही कार्य कर सकते हैं ।। जैसे- विदेशों में राजदूत ।। वर्तमान निर्वाचन प्रणाली के अन्तर्गत आदिष्ट प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं रहा है क्योकि चुनाव का आधार दलीय पद्धति हो गया है ।।
(ii) आदेशहीन प्रतिनिधित्व— आदेशहीन प्रतिनिधित्व के अंतर्गत प्रतिनिधि निर्वाचकों के अभिकर्ता नहीं है ।। वे निर्वाचकों के अधीन नहीं हैं और न ही उनके अनुसार कार्य करते हैं ।। सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनों दृष्टियों से यह सम्भव नहीं है कि कोई प्रतिनिधि सभी निर्वाचकों के आदेशानुसार कार्य करें ।।
5— अनुपातिक प्रतिनिधित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी विभिन्न प्रणालियों की व्याख्या कीजिए ।।
उत्तर— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली— अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए, जिन उपायों का सामान्यतया प्रयोग किया जाता है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है ।। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य राज्य में विद्यमान सभी राजनीतिक दलों का विधायिका में उचित प्रतिनिधित्व करना है ।। प्रत्येक राजनीतिक दल को व्यवस्थापिका में लगभग उतना प्रतिनिधित्व अवश्य प्राप्त हो सके जितना निर्वाचकों को उसे समर्थन प्राप्त है ।। प्रतिनिधित्व की इस योजना को जन्म देने वाले 19वीं शताब्दी के एक अंग्रेज विद्वान थॉमस हेयर थे इसलिए इसे हेयर प्रणाली भी कहते हैं ।। वर्तमान में अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग अनेक प्रणालियों के रूप में किया जा रहा है ।। अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के ये सभी प्रकार के निम्नलिखित दो रूपों में विभक्त किए जा सकते हैं
UP BOARD CLASS 12TH CIVICS CHAPTER 6 Political Parties FULL SOLUTION
(i) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली— इस प्रणाली में बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों का प्रयोग किया जाता है ।। सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से तात्पर्य उन निर्वाचक क्षेत्रों से होता है, जहाँ एक ही समय में एक साथ 3—20 तक उम्मीदवारों का निर्वाचन किया जा सकता है ।। एक निर्वाचन क्षेत्र से चाहे कितने ही प्रतिनिधि चुने जाने हों, किन्तु प्रत्येक मतदाता को केवल एक उम्मीदवार के पक्ष में मत देने का अधिकार होता है ।। वह मतदान-पत्र पर अपनी पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी इत्यादि पसन्द का उल्लेख कर सकता है ।। मतदान समाप्त हो जाने पर यह देखा जाता है कि निर्वाचन क्षेत्र में कुल कितने मत डाले गए और डाले गए मतों की संख्या ज्ञात हो जाने पर निश्चित मत संख्या की गणना की जाती है ।। निश्चित मत संख्या मतों की वह संख्या है जो उम्मीदवार को विजयी घोषित किए जाने के लिए आवश्यक है ।। निश्चित मत संख्या ज्ञात करने का सूत्र निम्नांकित है
निश्चित मत (quora)=== [(कुल डाले गए वैध मतों की संख्या ) / (निर्वाचित होने वाले व्यक्तियों की संख्या +1) ] + 1
निश्चित मत संख्या निकाल लेने के बाद समस्त मतपत्रों में से पहली पसन्द के अनुसार मतपत्र छाँट लिए जाते हैं ।। जिन उम्मीदवारों को निश्चित संख्या के बराबर या उससे अधिक पहली पसन्द के मत प्राप्त होते हैं, वे निर्वाचित घोषित कर दिए जाते हैं ।। परन्तु यदि प्रथम चक्र में सभी स्थानों की पूर्ति नहीं हो पाती है, तो सफल उम्मीदवारों के अतिरिक्त मत अन्य उम्मीदवारों को हस्तान्तरित कर दिए जाते हैं और उन पर अंकित दूसरी पसन्द के अनुसार विभाजित कर दिए जाते हैं ।।
यदि इस पर भी सभी स्थानों की पूर्ति नहीं होती हैं तो सफल उम्मीदवारों का तीसरी, चौथी, पाँचवी पसन्दें भी इसी प्रकार हस्तान्तरित की जाती है और यदि इसके बाद भी कुछ स्थान रिक्त रह जाते हैं तो जिन उम्मीदवारों को सबसे कम प्राप्त हुए है वे बारी—बारी से पराजित घोषित कर दिए जाते हैं और उनके मतों को दूसरी, तीसरी, चौथी इत्यादि पसन्द के अनुसार उन उम्मीदवारों में हस्तान्तरित कर दिया जाता है ।। यह प्रकिया उस समय तक चलती रहती है जब तक कि रिक्त स्थानों की पूर्ति न हो जाए ।। इस प्रणाली का स्पष्ट उद्देश्य यही है कि एक मत भी व्यर्थ न जाए ।। यह प्रणाली अत्यन्त जटिल है इसलिए इसका प्रयोग बहुत कम देशों में होता है ।। स्वीडन, फिनलैण्ड, नार्वे, डेनमार्क आदि देशों में यह प्रणाली देखने को मिलती है ।।
(ii) सूची प्रणाली— सूची प्रणाली अनुपातिक प्रतिनिधित्व का एक अन्य प्रकार है ।। इसमें सभी उम्मीदवार अपने राजनीतिक दलों के अनुसार पृथक—पृथक सूचियों में रख दिए जाते है और प्रत्येक दल अपने उम्मीदवारों की सूची प्रस्तुत करता है जिसमें दिए गए नामों की संख्या उस निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या से अधिक नहीं हो सकती है ।। मतदाता अपने मत अलग—अलग उम्मीदवारों को नहीं, वरन् किसी भी दल की पूरी—की—पूरी सूची के पक्ष में देते हैं ।। इसके बाद डाले गए मतों की कुल संख्या को निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या से भाग देकर, निर्वाचक अंक निकाल लिया जाता है ।। तदुपरान्त एक दल द्वारा प्राप्त मतों की संख्या को निर्वाचक अंक से भाग दिया जाता है और इस प्रकार यह निश्चित किया जाता है कि उस दल को कितने स्थान प्राप्त होंगे ।। सभी सूची प्रणालियों का आधारभूत सिद्धान्त यही है, परन्तु विभिन्न देशों में थोड़ा—बहुत परिवर्तन अथवा संशोधन करके इसे नए—नए रूप दिए जाते हैं, वर्तमान में सूची—प्रणाली के कई प्रकार पाए जाते हैं ।।
6— अनुपातिक प्रतिनिधित्व से आप क्या समझते हैं? एकल संक्रमणीय पद्धति तथा सूची पद्धति का संक्षिप्त वर्णन
कीजिए ।। उत्तर— उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—5 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।।
7— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए ।।
उत्तर— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली व्यवस्थापक मण्डल में अल्पमतों को प्रतिनिधित्व
प्रदान करने का एक सरल उपाय है ।। इस प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
(i) कोई मत व्यर्थ नहीं जाता— यह प्रणाली मताधिकार को सार्थक एवं व्यावहारिक बनाती है क्योंकि इसमें प्रत्येक मतदाता
को अनेक उम्मीदवारों में से कुछ उम्मीदवारों को चुनने की स्वतंत्रता होती है ।। इसमें किसी मतदाता का मत व्यर्थ नहीं होता
है, उससे किसी—न—किसी उम्मीदवार के निर्वाचन में सहायता अवश्य मिलती है ।।
(ii) राजनीतिक शिक्षा की व्यवस्था— अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा भी प्रदान करती है, क्योकि मतदाताओं के लिए अपना मत देने से पहले विभिन्न उम्मीदवारों तथा विभिन्न दलों की नीतियों के विषय में विचार करना आवश्यक हो जाता है ।।
(iii) व्यवस्थापिका का उच्च स्तर— अनुपातिक प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचकगण उच्च आचरण एवं स्वतंत्र विचार वाले हो सकते हैं ।। परिणामस्वरूप उनके प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से चुने जाएँ और व्यवस्थापिका का स्तर उच्च हो, ऐसी आशा की जा सकती है ।।
(iv) बहुमत की निरंकुशता का भय नहीं— अनुपातिक प्रतिनिधित्व के अन्तर्गत व्यवस्थापिका में साधारणतया किसी एक दल का स्पष्ट बहुमत नहीं हो पाता ।। इस प्रकार यह प्रणाली अल्पमत दलों को बहुमत दल के अत्याचारों से सुरक्षित करके शासन में उचित रूप से भाग लेने की क्षमता प्रदान करती है ।।
(v) अधिक लोकतांत्रिक बहुत—से विद्वान इस पद्धति को अधिक लोकतांत्रिक मानते हैं, क्योंकि इसमें सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है ।।
(vi) सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व— यह प्रणाली प्रत्येक दल को उसकी शक्ति के अनुपात में ही प्रतिनिधित्व प्रदान करती है ।। इस प्रकार व्यवस्थापिका लोकमत का यथार्थ प्रतिविम्ब बन जाती है ।।
अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोष—सी०एफ० स्ट्राँग इस प्रणाली को सैद्धान्तिक रूप से श्रेष्ठ मानते हैं, परन्तु व्यवहार में इसे श्रेष्ठ नहीं मानते हैं ।। यदि निर्वाचन का एकमात्र उद्देश्य केवल निर्वाचकों तथा निर्वाचन में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों के बीच अनुपात की उचित व्यवस्था करना है तो यह प्रणाली वास्तव में निर्वाचन की आदर्श प्रणाली मानी जा सकती है, परन्तु व्यवस्थापिका को केवल विभिन्न दलों तथा वर्गों का प्रतिनिधित्व ही नहीं करना चाहिए अपितु अपने कर्तव्यों का भी सुचारु रूप से पालन करना चाहिए ।। इस दृष्टिकोण से अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विरुद्ध अनेक तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनमें से कुछ तर्क निम्नलिखित हैं
(i) जटिल प्रणाली— यह प्रणाली व्यावहारिक रूप से अत्यन्त जटिल है ।। इसकी सफलता के लिए मतदाताओं में और उनसे भी अधिक निर्वाचन अधिकारियों में उच्चकोटि के ज्ञान की आवश्यकता होती है ।। मतदाताओं को इसके नियम समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।। साथ ही मतगणना अत्यन्त जटिल है, जिसमें भूल होने की भी अनेक सम्भावनाएँ हैं ।।
(ii) उपचुनाव की व्यवस्था नहीं— उपचुनाव में, जहाँ केवल एक प्रतिनिधि का चुनाव करना होता हैं, इस प्रणाली का प्रयोग असम्भव है ।।
(iii) अनेक दलों और स्वार्थी गुटों का जन्म— अनुपातिक प्रतिनिधित्व ‘अल्पमत विचारधारा’ को प्रोत्साहन देता है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ग विशेष के हितों और स्वार्थों का जन्म होता है ।। इसके अन्तर्गत व्यवस्थापिका में किसी एक दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होता है और मिश्रित मन्त्रिमण्डल के निर्माण में छोटे—छोटे दलों की स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है ।। वे अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए स्वार्थपूर्ण वर्गहित में अपना समर्थन बेच देते हैं ।। परिणामः सार्वजनिक जीवन की पवित्रता नष्ट हो जाती है ।।
(iv) दलों की एकता नष्ट होती है— यह प्रणाली बड़े राजनीतिक दलों की एकता नष्ट कर देती है, क्योंकि संकीर्ण हितों पर आधारित अनेक क्षेत्रीय अथवा स्थानीय दलों के निर्माण की प्रक्रिया तीव्र हो सकती है ।।
(v) अस्थायी सरकारें— इस पद्धति से सामान्यतया संयुक्त सरकारें बनती हैं और वे अस्थायी होती हैं ।।
(vi) नेताओं के प्रभाव में वृद्धि— अनुपातिक प्रणाली में, विशेषतया सूची प्रणाली में राजनीतिक दलों तथा नेताओं का प्रभाव एवं महत्व बहुत बढ़ जाता है और साधारण सदस्यों की स्वतंत्रता लगभग समाप्त हो जाती है ।।
(vii) मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों में संबंध नहीं— बहुसदस्यीय क्षेत्र होने के कारण मतदाताओं और उनके प्रतिनिधियों में परस्पर कोई संबंध नहीं होता, क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र काफी बड़े होते हैं ।। निर्वाचन क्षेत्र के विस्तृत हो जाने के कारण व्यय भी बढ़ जाता है ।। उपर्युक्त दोषों के कारण ही कई राजनीतिक विद्वानों ने अनुपातिक प्रतिनिधित्व को अनुपयोगी और जटिल निर्वाचन प्रणाली माना है ।।
8— प्रत्यक्ष निर्वाचन के गुण एवं दोषों का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर— प्रत्यक्ष निर्वाचन— यदि निर्वाचक प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करें, तो उसे प्रत्यक्ष निर्वाचन कहा जाता है ।। यह बिलकुल सरल विधि है ।। इसके अन्तर्गत प्रत्येक मतदाता निर्वाचन स्थान पर विभिन्न उम्मीदवारों में से किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करता है और जिस उम्मीदवार को सर्वाधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है ।। हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों का निर्वाचन इसी प्रणाली के द्वारा होता है ।।
प्रत्यक्ष निर्वाचन के गुण —
(i) प्रजातन्त्रात्मक धारणा के अनुकूल— यह जनता को प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने का अवसर देती है- अत: स्वाभाविक रूप से यह पद्धति प्रजातन्त्रीय व्यवस्था के अनकल है ।। मतदाता और प्रतिनिधि के मध्य सम्पर्क— इस पद्धति में जनता अपने प्रतिनिधि को प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित करती है, अत: जनता और उसके प्रतिनिधि के बीच उचित सम्पर्क बना रहता है और दोनों एक—दूसरे की भावनाओं से परिचित रहते हैं ।। इसके अन्तर्गत जनता अपने प्रतिनिधियों के कार्य पर निगरानी और नियन्त्रण भी रख सकती है ।।
(iii) राजनीतिक शिक्षा— जब जनता अपने प्रतिनिधि को प्रत्यक्ष रूप से चुनती है तो विभिन्न दल और उनके उम्मीदवार अपनी नीति और कार्यक्रम जनता के सामने रखते हैं, जिससे जनता को बड़ी राजनीतिक शिक्षा मिलती है और उनमें राजनीति जागरूकता की भावना का उदय होता है ।। इससे सामान्य जनता को अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का अधिक अच्छे प्रकार से ज्ञान भी हो जाता है ।।
प्रत्यक्ष निर्वाचन के दोष–
(i) सामान्य निर्वाचक का मत त्रुटिपूर्ण— आलोचकों का कथन है कि जनता में अपने मत का उचित प्रयोग करने की क्षमता नहीं होती ।। मतदाता अधिक योग्य और शिक्षित न होने के कारण नेताओं के झूठे प्रचार और जोशीले भाषणों के प्रभाव में आ जाते हैं और निकम्मे, स्वार्थी और भ्रष्ट उम्मीदवारों को चुन लेते हैं ।।
(ii) सार्वजनिक शिक्षा का तर्क त्रुटिपूर्ण— प्रत्यक्ष निर्वाचन के अन्तर्गत किया जाने वाला निर्वाचन अभियान शिक्षा अभियान नहीं होता, अपितु यह तो निन्दा, कलंक और झूठ का अभियान होता है ।।
(iii) अपव्ययी और अव्यवस्थाजनक— इस प्रकार के चुनाव पर बहुत अधिक खर्च आता है और बड़े पैमाने पर इसका प्रबन्ध करना होता है ।।