UP BOARD CLASS 12TH CIVICS CHAPTER 6 PUBLIC OPINION जनमत
पाठ -6 जनमत (Public Opinion)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1–लोकमत की कोई दो विशेषताएँबताइए ।।
उ०—- लोकमत (जनमत) की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) लोकमत एक ऐसा मत है, जो तर्क पर आधारित है और जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण समाज का हित होता है ।।
(ii) लोकमत सदैव निष्पक्ष होता है ।। यदि कोई मत स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों से प्रभावित हो, तो बहुसंख्यक का मत होने पर भी वह जनमत नहीं बन सकता है ।।
2–स्वस्थ लोकमत के निर्माण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टी०वी० चैनल आदि) की भूमिका का परीक्षण कीजिए ।। उत्तर———– स्वस्थ लोकमत के निर्माण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (रेडियो, सिनेमा, टी०वी० चैनल आदि) भी पर्याप्त सहयोग देता है ।।
रेडियो एवं टी०वी० चैनलों पर समाचारों के प्रसारण के साथ—-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किए जाते हैं ।। महत्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों और परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है ।। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (लोकमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है ।।
३- जनमत—-निर्माण के चार साधनों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर– जनमत—-निर्माण के चार साधन निम्नवत् हैं
(i) समाचार—-पत्र एवं पत्र—-पत्रिकाएँ
(ii) राजनीतिक साहित्य
(iii) शिक्षण संस्थाएँ
(iv) जन संचार के साधन
4–स्वस्थ जनमत—-निर्माण में कौन—-सी बाधाएँ आती हैं?
उत्तर– स्वस्थ जनमत के निर्माण में निम्नलिखित बाधाएँ आती हैं
(i) स्वतंत्रता का अभाव
(ii) राजनीतिक जागरूकता में कमी
(iii) अज्ञानता एवं निरक्षरता
(iv) राष्ट्र प्रेम का अभाव
(v) राजनीतिक दलों का संकुचित दृष्टिकोण
(vi) आर्थिक असमानता
(vii) साम्प्रदायिक, क्षेत्रीय तथा जातीय भावनाएँ
(viii) अधिनायकतंत्रीय शासन—-प्रणाली
(ix) रूढ़िवादी दृष्टिकोण
(x) स्वार्थ की प्रमुखता
5—स्वस्थ जनमत के लिए दो आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर– स्वस्थ जनमत के लिए दो आवश्यक शर्ते निम्नवत् हैं
(i) साम्प्रदायिकता का अन्त– लोकमत (जनमत) के लिए आवश्यक है कि जनता अपने जीवन से संकुचित और
साम्प्रदायिक भावनाओं को निकालकर बाहर कर दे ।। जनता का दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए और उसमें राष्ट्रीय प्रश्नों को व्यापक दृष्टिकोण से समझने की क्षमता होनी चाहिए ।।
(ii) बहुमत की न्यायप्रियता—- यदि बहुमत स्वार्थी तथा अल्पमत विद्रोही है तो जनमत का स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा ।। स्वस्थ जनमत के लिए आवश्यक है कि बहुमत वर्ग में न्यायशीलता की प्रवृत्ति हो तथा अल्पसंख्यक वर्ग भी बहुमत के निर्णय को स्वीकार करने में तत्पर हो ।।
6– जनमत के महत्व ( भूमिका)को संक्षेप में बताइए ।।
सामान्य रूप में सभी शासन व्यवस्थाओं में जनमत अथवा लोकमत की अहम भूमिका होती है परन्तु जनतंत्र अथवा लोकतंत्र में इसका विशेष महत्व है ।। जनतांत्रिक शासन जनमत से ही अपनी शक्ति प्राप्त करता है तथा उसी पर आधारित होता है ।। इसलिए जनमत को जनतंत्र का आधार भी कहा जाता है ।। संगठित जनमत ही जनतंत्र की सफलता तथा सार्थकता का आधार है ।।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1—जनमत से आप क्या समझते हैं? स्वस्थ जनमत के निर्माण की आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर– जनमत—- जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता का मत है, जो विवेक और स्वार्थ रहित बुद्धि के आधार पर अवलम्बित हो और जिसका लक्ष्य किसी जाति या धर्म विशेष का ही हित नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज का हित हो ।। वास्तव में जनमत वह शक्ति होती है, जो राज्य के संगठन में पथ–प्रदर्शक और निर्देशक का कार्य करती है और जो राजनीतिक व्यवस्था को भी परिवर्तित कर सकती है ।।
स्वस्थ जनमत के निर्माण हेतु आवश्यक परिस्थितियाँ—- स्वस्थ जनमत के निर्माण में विशेष अवस्थाओं की आवश्यकता पड़ती है ।। स्वस्थ जनमत के निर्माण में जो बाधाएँ आती हैं उनको दूर करके सही अवस्थाओं को उत्पन्न किया जा सकता है ।। ऐसा करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ आवश्यक हैं
(i) स्वतंत्र प्रेस—- प्रेस और समाचार पत्र जनमत निर्माण के महत्वपूर्ण साधन होते हैं, किन्तु इनके द्वारा जनमत निर्माण का यह कार्य उसी समय ठीक प्रकार से किया जा सकता है जबकि प्रेस पूर्णतया स्वतंत्र हो ।। समाचार–पत्रों पर सरकारी एवं गैरसरकारी किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए और उन्हें सार्वजनिक समस्याओं, सरकार के कार्यों, राजनीतिक दलों की नीतियों और उनके कार्यक्रमों पर निष्पक्षतापूर्वक विचार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।। वेण्डल विल्की ने ठीक ही लिखा है कि, “समाचार—-पत्रों की स्वतंत्रता सच्चे लोकमत का जीवन ही है ।।” ।।
(ii) स्वस्थ और सुदृढ़ राजनीतिक दल—- आर्थिक और राजनीतिक प्रश्नों पर आधारित केवल ऐसे राजनीतिक दलों को स्वस्थ कहा जा सकता है ।। जो दल किसी एक वर्ग या सम्प्रदाय से संबंधित न हों और जिनका उद्देश्य सम्पूर्ण राज्य का कल्याण हो ।। जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रीयता के भेदों पर आधारित राजनीतिक दल तो लोकमत के निर्माण में बाधा का ही कार्य करता है ।। केवल स्वस्थ राजनीतिक दल ही जनता को स्वस्थ राजनीतिक शिक्षण प्रदान कर लोकमत के आधार रूप में कार्य कर सकते हैं ।। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल अच्छे प्रकार से संगठित होने चाहिए क्योकि असंगठित विचारधाराएँ और कार्यक्रम लोकमत निर्माण में सहायक नहीं हो सकते ।। स्वस्थ लोकमत के निर्माण की दृष्टि से इन दलों की संख्या भी बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए ।।
(iii) जागरूक व सुशिक्षित जन- समुदाय—- जनसाधारण यदि सुशिक्षित व समझदार है तो स्वस्थ लोकमत का निर्माण सुगम होगा अन्यथा अज्ञानी व मूर्ख जनता के मध्य स्वस्थ लोकमत की कल्पना करना भी असम्भव है ।।
(iv) आर्थिक समानता—- अशिक्षा के बाद निर्धनता लोकमत के निर्माण में दूसरी बड़ी बाधा है ।। इस बाधा को दूर करने के लिए राज्य के द्वारा सभी व्यक्तियों के लिए आर्थिक समानता अर्थात् उनको भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं का प्रबन्ध किया जाना चाहिए ।। जब बहुसंख्यक जनता बहुत अधिक निर्धन होती है तो उसका धर्म, ईमान और राजनीति सब कुछ रोटी तक ही सीमित हो जाता है और उसके पास सार्वजनिक समस्याओं के संबंध में सोचने के लिए समय और शक्ति नहीं रहती ।। वस्तुतः धनिकों का अत्यधिक धन और निर्धनों की निर्धनता लोकमत के निर्माण में बाधक हो जाती है ।। अत: स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए गम्भीर आर्थिक भेदों का अन्त किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों के लिए आर्थिक समानता की व्यवस्था की जानी चाहिए ।।
(v) राष्ट्रीय आदर्शों के संबंध में एकता—- मानव एक विवेकशील प्राणी है और इसलिए प्रशासन से संबंधित दैनिक समस्याओं के संबंध में मतभेद होना नितान्त स्वाभाविक हैं, लेकिन जनता में आधारभूत राष्ट्रीय आदर्शों के संबंध में आवश्यक रूप से एकता नहीं होनी चाहिए ।। राज्य के शासन का रूप, उद्देश्य आदि स्थायी प्रकृति की बातों के संबंध में मतभेद होने पर स्वस्थ लोकमत का विकास सम्भव नहीं होगा ।।
(vi) साम्प्रदायिकता का अन्त—- लोकमत के निर्माण के लिए यह भी आवश्यक है कि जनता अपने जीवन से संकुचित और साम्प्रदायिक भावों को निकालकर बाहर कर दें ।। जनता का दृष्टिकोण उदार होना चाहिए और उसमें राष्ट्रीय प्रश्नों को व्यापक दृष्टिकोण से समझने की क्षमता होनी चाहिए ।।
(vii) बहुमत की न्यायप्रियता—- यदि बहुमत स्वार्थी तथा अल्पमत विद्रोही है तो लोकमत का स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा ।। स्वस्थ लोकमत के लिए आवश्यक है कि बहुमत वर्ग में न्यायशीलता की प्रवृत्ति हो तथा अल्पसंख्यक वर्ग भी बहुमत के निर्णय को स्वीकार करने में तत्पर हो ।।
(viii) विचार, अभिव्यक्ति और संगठन आदि की स्वतंत्रता—- विचारों का आदान—-प्रदान ही लोकमत के निर्माण की एकमात्र प्रक्रिया है, अतः नागरिकों को स्वतंत्रापूर्वक विचार करने और अपने विचारों को व्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए ।। विचार और अभिव्यक्ति के संबंध में सदैव तत्पर रहना चाहिए ।। नागरिकों को अपने विचारों के प्रचार व प्रसार के लिए संगठनों के निर्माण व सम्मेलन की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।।
(ix) शान्तिपूर्ण वातावरण—- यदि वातावरण में अशान्ति व बर्बरता है तो स्वस्थ जनमत का निर्माण सम्भव नहीं है ।। ये तभी सम्भव है जबकि, आन्तरिक व ब्रह्म दृष्टि से शान्ति व सद्भाव का वातावरण हो ।। युद्ध व उत्तेजना के वातावरण में इसकी सम्भावनाएँ नगण्य होती है ।।
3–जनमत क्या है? भारतीय राजनीति में इसकी भूमिका का विवेचन कीजिए ।।
उत्तर– जनमत—- जनमत जनता के बहुसंख्यक भाग का ऐसा मत है, जो सम्पूर्ण समाज के हितों के अनुकूल होता है ।। भारतीय राजनीति में जनमत की भूमिका—- सामान्य रूप से सभी शासन व्यवस्थाओं में लोकमत अथवा जनमत की अहम भूमिका होती है परन्तु जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र में इसका विशेष महत्व होता है ।। प्रजातांत्रिक शासन जनमत से ही अपनी शक्ति प्राप्त करता है तथा उसी पर आधारित होता है ।। इसीलिए जनमत को जनतंत्र का आधार भी कहा जाता है ।। संगठित जनमत की जनतंत्र की सफलता तथा सार्थकता की आधारशिला है ।।
“लोकतांत्रिक शासन की सफलता और जनमत की सबलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनमत सरकार के कार्यों और नीतियों को किस सीमा तक नियन्त्रित करता है ।।”………—-गैटिल
जनतंत्र में जनमत की भूमिका को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है
(i) शासन की निरंकुशता पर नियंत्रण—- जनतंत्र में शासन की निरंकुशता पर जनमत के द्वारा नियन्त्रण रखने का कार्य किया जाता है ।। जनतंत्र में सरकार को स्थायी बनाने के लिए जनमत के समर्थन तथा सहमति की आवश्यकता होती है ।। जनमत के बल पर सरकारें बनती तथा बिगड़ती हैं ।।
(ii) सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण—-जनमत द्वारा सरकारी अधिकारियों की आलोचना से उन पर नियन्त्रण रखा जाता है ।।
(iii) सरकार का पथ-प्रदर्शन—- जनतंत्र में जनमत सरकार का पथ—-प्रदर्शन करता है ।। जनमत से सरकार को इस बात की जानकारी होती है कि जनता किस प्रकार की व्यवस्था चाहती है तथा उसके हित में किस प्रकार के कानूनों का निर्माण किया जाए ।।
(iv) सरकार का निर्माण और पतन-— जनमत जनतंत्र का आधार है ।। जनतंत्र में सरकार का निर्माण और पतन जनमत पर ही निर्भर करता है ।। जनमत का सम्मान करने वाला दल सत्ता प्राप्त करता है तथा पुनः सत्ता प्राप्त करने का अवसर बनाए रखता है ।। जनमत की अवहेलना करने पर शासक दल का स्थान विरोधी दल ले लेता है ।।
“जनमत एक प्रबल सामाजिक शक्ति है, जिसकी अवहेलना करने वाला राजनीतिक दल स्वयं अपने लिए संकट आमन्त्रित करता है ।।”…………..-ई०बी० शुल्ज
(v) जनता और सरकार में समन्वय—-जनमत जनता और सरकार के विचारों में समन्वय स्थापित करने की एक कड़ी है ।।
(vi) नागरिक अधिकारों का रक्षक-— जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता का भी रक्षक होता है ।। जागरूक और सचेत जनमत शासक वर्ग को जनता के विचारों से परिचित रखता है ।। इस प्रकार जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है ।। स्वतंत्रता तथा अधिकारों की रक्षा के लिए प्रबल जागरूक जनमत की आवश्यकता होती है ।।
(vii) राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करना-— जनमत नागरिकों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करता है ।। जनमत से प्रेरित राजनीतिक जागरूकता ही जनतंत्र का वास्तविक आधार होती है ।। जनमत द्वारा ही जन—-सहयोग प्राप्त किया जाता है ।।
(viii) नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा—- जनमत का सामाजिक क्षेत्र में भी अत्यधिक महत्व है ।। जनमत नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा करता है और नागरिकों का ध्यान महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्नों तथा समस्याओं की ओर आकृष्ट करता है ।।
(ix) स्वार्थी राजनीतिज्ञों पर नियंत्रण—-जनमत स्वार्थी तथा बेईमान राजनीतिज्ञों और नेताओं पर भी नियंत्रण बनाए रखता है ।।
(x) विभिन्न संस्थाओं को कर्त्तव्य की चेतावनी—- जनमत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को उनके वास्तविक कर्त्तव्य की चेतावनी देता रहता है, जिसके कारण उनमें स्वार्थपरता तथा संकीर्णता नहीं आ पाती है ।।
(xi) नवीन कार्यक्रमों और योजनाओं की सफलता—- लोकतंत्र के अन्तर्गत शासन द्वारा जिन नए कार्यक्रमों और योजनाओं को अपनाया जाता है, उनकी सफलता जन—-सहयोग एवं जनमत पर ही निर्भर करती है ।।
(xii) क्रान्ति से सुरक्षा—- जनतंत्र में जनमत का निर्माण होता है ।। जनमत के निर्माण में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का होना आवश्यक है ।। इस अधिकार के कारण सरकार जनमत की भावनाओं के अनुरूप अपनी गतिविधियों को परिवर्तित करती रहती है, जिससे क्रान्ति की सम्भावनाएँ कम-से- कम रहती हैं ।। निरंकुश-तंत्र में जनमत की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध होता है, अतः ऐसे शासन के विरुद्ध क्रान्ति हो सकती है ।।
३– जनमत निर्माण के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर– जनमत निर्माण के प्रमुख साधन—- जनमत की अभिव्यक्ति एवं उसे बनाने की दिशा में अनेक साधन सहायक होते हैं ।। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं–
(i) शिक्षण संस्थाएँ—- जनमत बनाने में शिक्षण संस्थाएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं ।। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति लोकहित का महत्व समझ चुका होता है तथा स्वयं स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत पैदा करने योग्य हो जाता है ।। शिक्षण संस्थाओं में अनेक समाचार—-पत्र व पत्रिकाएँ आती हैं, जिन्हें विद्यार्थी पढ़ते हैं तथा विभिन्न घटनाओं के संबंध में विचार—-विमर्श करते हैं एवं नवीन जानकारियाँ प्राप्त करते हैं ।। शिक्षण संस्थाओं में प्रमुख राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं पर सेमिनार, सिम्पोजियम तथा वाद—-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है ।।
(ii) जन—-संचार के साधन—- रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन, दूरसंचार की आधुनिक प्रणालियाँ और कम्प्यूटर-प्रणाली में जो विचार—-विमर्श होता है, उससे भी जनमत के रुझान का पता लगाने में सहयोग मिलता है ।। रेडियो एवं टेलीविजन पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किए जाते हैं ।। महत्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों,परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है ।। इस प्रकार साधारण जनता बहुत सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है ।।
(iii) समाचार—-पत्र एवं पत्रिकाएँ—- समाचार—-पत्र एवं पत्रिकाएँ जनमत को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं ।। इनमें देश-विदेश की नीतियों, घटनाओं, शासन व्यवस्थाओं का वर्णन करता है, जिन्हें पढ़कर जनता अपना मत निर्धारित करती है ।। इस प्रकार समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ साधारण जनता के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं ।।
(iv) राजनीतिक साहित्य- जनमत पैदा करने एवं जनमत को व्यक्त करने की दृष्टि से राजनीतिक साहित्य भी एक अच्छा साधन है ।। अनेक राजनीतिक दल अपनी विचारधारा नीतियों तथा देश की सामाजिक समस्याओं को प्रकट करने के लिए राजनीतिक साहित्य का प्रकाशन करते हैं ।। ऐसे साहित्य में निर्वाचन से पहले प्रकाशित होने वाले घोषणा- पत्रों का विशेष महत्व होता है क्योंकि जनता उनके माध्यम से दलों की नीतियों एवं योजनाओं से परिचित होकर अपना मत निश्चित करने में सफल होती है ।। यह मत अन्ततोगत्वा जनादेश या जनमत का निर्माण करता है ।।
(v) व्यवस्थापिका सभाएँ—- व्यवस्थापिका सभाओं में जो वाद—-विवाद होता है, उससे केवल जनमत बनाने में ही सहायता नहीं मिलती है, बल्कि जनमत की अभिव्यक्ति में भी सहायता मिलती है ।।
(vi) धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक समुदाय—- सांस्कृतिक समुदाय भी लोगों को बहुत प्रभावित करते हैं ।। ऐसे समुदाय विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं ।। कार्यक्रम प्रस्तुत करने की पृष्ठभूमि में उनका मुख्य उद्देश्य जनता पर ऐसा प्रभाव छोड़ना होता है, जिससे जनता दृढ़ एवं बुद्धिमत्ता पूर्ण जनमत तैयार करने में सफल हो सके ।। प्रायः प्रत्येक उन्नतिशील देश में इस प्रकार के समुदाय होते हैं ।।
सांस्कृतिक समुदायों के अतिरिक्त धार्मिक एवं आर्थिक समुदाय भी जनमत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं ।। उदाहरण के लिए भारत में आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज जैसे समुदायों ने समाज की कुरीतियों के विरुद्ध जनमत एकत्र करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया ।।
(vii) भाषण व सार्वजनिक सभाएँ—- कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें प्रेस या पूर्ववर्णित साधनों में से किसी की भी सुविधा नहीं मिलती है, ऐसे व्यक्ति सार्वजनिक स्थलों पर शीर्षस्थ नेताओं के भाषण सुनकर सार्वजनिक विषयों पर स्वयं विचार—-विमर्श कर सकने में समर्थ होते हैं और स्वस्थ अर्थात् उचित जनमत तैयार करने में भी सफल होते हैं ।।
(viii) प्रचार और अफवाहें—- आज के युग में प्रचार और अफवाहों का महत्व भी तेजी से बढ़ता जा रहा है ।। प्रचार कार्य द्वारा सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के समक्ष रखती है ।। अफवाहें भी प्रचार कार्य करती हैं ।। अनेक बार अफवाहें फैलाकर जनता को गलत मार्ग पर ले जाने का प्रयत्न किया जाता है ।। अफवाहों के पीछे कोई स्वार्थ निहित होता है ।। निःसन्देह अफवाहें अनेक अवसरों पर खतरनाक सिद्ध हो सकती हैं ।।
(ix) निर्वाचन—- निर्वाचन के अवसर पर सभी राजनीतिक दल प्रसार के समस्त साधनों द्वारा जनमत को अपने-अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं ।। वस्तुतः निर्वाचन के अवसर पर जनमत का बनना अपेक्षाकृत अधिक तीव्र गति से होता है ।।
(x) राजनीतिकदल—-राजनीतिक दल भी एक प्रगतिशील जनमत बनाने में सहायक होते हैं ।।
“जनमत को प्रशिक्षित करने, उसके निर्माण और अभिव्यक्ति में राजनीतिक दलों द्वारा अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है ।।”—-लार्ड ब्राइस
जनतंत्र के प्रहरी के रूप में जनमत के महत्व ( भूमिका) पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर– उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—-2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।।
‘जनमत के निर्माण व प्रकट करने के साधन’ पर टिप्पणी लिखिए ।।
उत्तर– उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या—-3 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।।
4- जनमत से आप क्या समझते हैं? स्वस्थ जनमत के निर्माण में आने वाली प्रमुख बाधाओं का विस्तृत वर्णन कीजिए ।। उत्तर– जनमत—- साधारणतया जनमत का अर्थ जनता का मत है ।। किन्तु वास्तविक रूप में जनमत का अर्थ जनता के उस मत से होता है, जो समाज के हित या समाज को प्रभावित करने वाले विषयों के संबंध में होता है ।। स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधाएँ—-जनमत बनाने के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं
(i) स्वतंत्रता का अभाव—- राष्ट्रीय भावना का विकास अवरुद्ध होने का एक अन्य कारण यह है कि जनसाधारण को मौलिक अधिकारों का उपभोग करने की सुविधा प्राप्त न हो ।। विशेष रूप से तब, जब उन्हें विचाराभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हो ।।
(ii) राजनीतिक जागरूकता में कमी—- आदर्श जनमत के निर्माण में सबसे बड़ी आवश्यकता जनसाधारण में राजनीतिक जागरूकता की कमी होती है ।। राजनीतिक जागृति के अभाव के कारण व्यक्ति राजनीतिक समस्याओं को समझने में असमर्थ हो जाते हैं ।।
(iii) निरक्षरता—- अनपढ़ अथवा अशिक्षित लोगों में जनमत बनाना कठिन होता है, क्योंकि उनका मस्तिष्क विकसित नहीं होता है ।। इसलिए निरक्षरता जनमत के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है ।।
(iv) राष्ट्र-प्रेम का अभाव—- स्वार्थ की भावना उन लोगों में प्रमुख होती है जिनमें राष्ट्रीय भावनाओं का विकास नहीं हो पाता है ।। राष्ट्रीय भावना के कारण मानव में सकीर्ण मनोवृत्तियाँ जन्म लेने लगती हैं ।। ऐसी प्रवृत्तियाँ स्वस्थ लोकमत के निर्माण में बाधक हैं ।।
(v) राजनीतिक दलों का संकुचित दृष्टिकोण—- यदि राजनीतिक दलों का गठन स्वार्थ के आधार पर किया जाता है और राजनीतिक दलों से लोकहित की पूर्ति नहीं होती है, तो लोकमत के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है ।। संकुचित विचार वाले राजनीतिक दलों के कारण साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता आदि सामाजिक दोषों में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप निष्पक्ष लोकमत बनना सम्भव नहीं है ।।
(vi) आर्थिक असमानता—- निर्धनता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी तथा आर्थिक उत्पीड़न के लिए उत्तरदायी समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता ही है ।। निर्धनता सभी प्रकार के अवगुणों की जननी है ।। यदि देश के नागरिक निर्धन होंगे तो भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता अनिवार्य रूप से जनता के चरित्र को गिराएगी और कुशल जनमत नहीं बनने देगी ।।
(vii) साम्प्रदायिक, क्षेत्रीय तथा जातीय भावनाएँ—- यदि नागरिकों में साम्प्रदायिक अथवा जातीय, क्षेत्रीय भावनाएँ व्याप्त होती है तो स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत का बनना सम्भव नहीं हैं क्योंकि ये भावनाएँ व्यक्ति के विचारों तथा चिन्तन को संकीर्ण कर देती हैं ।।
(viii) अधिनायकतंत्रीय शासन—-प्रणाली—- जिन देशों में स्वेच्छाचारी आर निरंकुश शासन होता है, उन देशों में बहुदलीय व्यवस्था की उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है ।। इस प्रणाली में नागरिकों को स्वतंत्र विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता नहीं होती है और न ही जनता को राजनीतिक कार्यों का प्रशिक्षण ही मिलता है ।। इस प्रकार अधिनायकतंत्र शासन—-प्रणाली में जनमत का अभाव पाया जाता है ।। ।।
(ix) रूढ़िवादी दृष्टिकोण—- प्राचीन परम्पराओं और प्रथाओं के प्रति विशेष आस्था रखने वाले देशों में नागरिक सामाजिक परिवर्तन के विरोधी होते हैं ।। यह रूढ़िवादी विचारधारा भी कुशल जनमत नहीं बनने देती है ।।
(x) स्वार्थ की प्रमुखता—- नागरिकों में स्वार्थ की प्रमुखता होने के कारण लोकहित को प्रोत्साहन नहीं मिलता है ।। स्वार्थ व्यक्ति को अन्धा बना देता है ।। स्वार्थी व्यक्ति किसी ऐसी विचारधारा का स्वागत नहीं करता है, जिसमें नागरिकों के सामूहिक हितों की सुरक्षा सम्भव हो सके ।। इसलिए स्वार्थ की प्रमुखता के कारण स्वस्थ लोकमत नहीं बन पाता है ।।
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