Up Board Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 पवन-दूतिका अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Up Board Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 पवन-दूतिका अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Up Board Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 पवन-दूतिका  अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
पवन-दूतिका

कवि पर आधारित प्रश्न

1 . अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।।


उत्तर – – कवि परिचय- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान पर 15 अप्रैल, सन् 1865 ई० में हुआ था ।। इनके पिता का नाम पंडित भोलानाथ उपाध्याय और माता का नाम रुक्मिणी देवी था ।। मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात् इन्होंने काशी के क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया किन्तु स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया ।। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, ऊर्दू, फारसी व अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया ।। आनंद कुमारी के साथ सत्रह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हुआ ।। प्रारम्भ में ये निजामाबाद के तहसील स्कूल में अध्यापक, उसके बाद कानूनगों तथा कानूनगो पद से अवकाश लेने के पश्चात् हरिऔध जी ने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी’ में अवैतनिक रूप से शिक्षण कार्य किया ।। 16 मार्च, सन् 1947 ई० में हरिऔध जी परलोकवासी हो गए ।।

रचनाएँ- हरिऔध जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
उपन्यास-प्रेमकान्ता (यह हरिऔध जी द्वारा रचित प्रथम उपन्यास है ।। ) ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल ।। नाटक- प्रद्युम्न-विजय, रुक्मिणी-परिणय ।। ।।
प्रियप्रवास- यह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित, विप्रलम्भ श्रृंगार पर आधारित खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है ।। इसके नायक श्रीकृष्ण विश्व-कल्याण की भावना से परिपूर्ण मनुष्य हैं ।। यह सत्रह सर्गों में विभाजित है ।।
वैदेही-वनवास- आकार की दृष्टि से यह ग्रन्थ छोटा नहीं है, किन्तु इसमें प्रियप्रवास जैसी काव्यत्मकता का अभाव है ।। यह संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में रचित प्रबंध-काव्य है ।। इसमें 18 सर्ग हैं ।। यह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है ।। रसकलश- ब्रजभाषा में रचित ये कविताएँ श्रृंगार प्रधान है व काव्य-सिद्धान्त-निरूपण के लिए लिखी गई हैं ।। पारिजात- 15 सर्गों में रचित वृहत काव्य ।।
चोखे चौपदे व चुभते चौपदे- कोमलकान्त पदावली युक्त व्यवहारिक खड़ी बोली में रचित है ।। मुहावरों की सुन्दर झलक इनमें दिखायी देती है ।। पद्य-प्रसून, फूल-पत्ते, कल्पलता, ग्राम-गीत, बोलचाल, हरिऔध सतसई, बाल कवितावली, मर्म, स्पर्श, प्रेम-प्रपंच, प्रेमाम्बु प्रवाह आदि इनकी अन्य कृतियाँ हैं ।। इन्होंने अंग्रेजी व बंगला की कुछ कृतियों के हिन्दी में अनुवाद भी किए ।।

2 . हरिऔधजी की भाषा-शैली की विशेषताएँ बताइए ।।

उत्तर – – भाषा-शैली-हरिऔध जी पहले ब्रजभाषा में कविता करते थे, ‘रसकलश’ इसका सुन्दर उदाहरण है ।। महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रभाव से ये खड़ी बोली के क्षेत्र में आए और खड़ी बोली काव्य को नया रूप प्रदान किया ।। भाषा, भाव, छन्द और अभिव्यंजना की घिसी-पिटी परम्पराओं को तोड़कर इन्होंने नई मान्यताएँ स्थापित ही नहीं कीं, अपितु इन्हें मूर्त रूप भी प्रदान किया ।। इनकी बहुमुखी प्रतिभा और साहस के कारण ही काव्य के भावपक्ष और कलापक्ष को नवीन आयाम प्राप्त हुए ।। इनके काव्य-वृत्त में भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल के उज्ज्वल बिन्दु समाहित हो सके हैं ।। प्राचीन कथानकों में नवीन उद्भावनाओं के दर्शन ‘प्रियप्रवास’, वैदेही-वनवास’ आदि सभी रचनाओं में होते हैं ।। ये काव्य के ‘शिव’ रूप का सदैव ध्यान रखते थे ।। इसी हेतु इनके राधा-कृष्ण, राम-सीता भक्तों के भगवान मात्र न होकर जननायक और जनसेवक हैं ।। प्रकृति के विविध रूपों और प्रकारों का सजीव चित्रण हरिऔध जी की अन्यान्य विशेषताओं में से एक महत्वपूर्ण विशेषता है ।। भावुकता के साथ मौलिकता को भी इनके काव्य की विशेषता कहा जा सकता है ।। काव्य के क्षेत्र में भाव, भाषा, शैली, छन्द एवं अलंकारों की दृष्टि से हरिऔध जी की काव्य-साधना महान है ।। हरिऔध जी मूलतः करुण और वात्सल्य रस के कवि थे ।। करुण रस को ये प्रधान रस मानते थे और उसकी मार्मिक व्यंजना इनके काव्य में सर्वत्र देखने को मिलती है ।। वात्सल्य और विप्रलम्भ श्रृंगार के हृदयस्पर्शी चित्र ‘प्रियप्रवास’ में यथेष्ट हैं ।। अन्य रसों के भी सुन्दर उदाहरण इनके स्फुट काव्य में मिलते हैं ।।

इन्होंने कोमलकान्त पदावलीयुक्त ब्रजभाषा- ‘चोखे चौपदे’ और ‘चुभते चौपदे’ में पूर्ण अधिकार और सफलता के साथ प्रयुक्त की है ।। आचार्य शुक्ल ने इसीलिए इन्हें ‘द्विकलात्मक कला में सिद्धहस्त’ कहा है ।। इन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक शैलियों में सफल काव्य-रचनाएँ की हैं ।। इतिवृत्तात्मक एवं मुहावरेदार, संस्कृत शब्दावली से युक्त चमत्कारपूर्ण सरल हिन्दी शैलियों का अभिव्यंजना-शिल्प की दृष्टि से इन्होंने सफल प्रयोग भी किया है ।। अलंकारों के सहज और स्वाभाविक प्रयोग इनके काव्य में देखने को मिलते हैं ।। इन्होंने हिन्दी के पुराने तथा संस्कृत छन्दों को अपनाया ।। कवित्त, सवैया, छप्पय, दोहा आदि इनके पुराने प्रिय छन्द हैं ।।

1 . निम्नलिखित पद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

(क) बैठी खिन्ना . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . क्रूरता से ।।

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते ।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले ।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।1।।
संतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो ।
धीरे बोलीं स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों ।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से ।।2।।

सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रियप्रवास’ से ‘पवन-दूतिका’ नामक शीर्षक से उद्धृत है ।।
प्रसंग– इन पदों में कृष्ण के वियोग से पीड़ित श्रीराधिका का पवन से वार्तालाप वर्णित है ।।

व्याख्या– एक दिन राधा घर में बहुत दुःखी होकर अकेली बैठी थीं ।। उनके दोनों नेत्रों से आँसू बहकर पृथ्वी को भिगो रहे थे ।। इतने में प्रायः कालीन सुखद वायु पुष्पों की सुगन्ध लेकर धीरे से खिड़कियों के रास्ते उस घर में प्रविष्ट हुई ।। जो वायु संयोग में सुखद लगती थी, वही अब वियोग में दुःख बढ़ाने वाली सिद्ध हुई, अतः वायु के कारण अपनी व्यथा को और बढ़ता देखकर राधा बहुत दुःखित होकर उससे बोली कि हे प्यारी प्रभातकालीन वायु! तू मुझे इतना क्यों सता रही है? क्या तू भी मेरे भाग्य की कठोरता से प्रभावित होकर दूषित हो गयी है; अर्थात् समय या भाग्य तो मेरे विपरित है ही, पर क्या तू भी उससे प्रभावित होकर मेरा दुःख बढ़ाने पर तुली है, जब कि सामान्यतः तू लोगों को सुख देने वाली मानी जाती है?”

काव्य-सौन्दर्य-1 . पवन पुंल्लिग है, पर कवि ने अपनी प्रयोजन-सिद्धि के लिए उसे दूतिका बनाकर उसका मानवीकरण कर दिया है ।। 2 . राधा की मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण किया गया है ।। 3 . भाषा- खड़ी बोली ।। 4 . छन्द- मन्दाक्रान्ता ।। 5 . रसविप्रलम्भ शृंगार ।। 6 . शब्द-शक्ति – अभिधा ।। 7 . गुण- प्रसाद ।। 8 . अलंकार- मानवीकरण ।।

(ख) ज्यों ही मेरा . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . मुह्यमाना न होना ।।

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।
शोभावाली सुखद कितनी मंजु कुंजें मिलेंगी।
प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तझे वे।
तो भी मेरा दुख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।4।।
थोडा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।
अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली।
प्यारा वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।
आना जाना इस विपिन से मह्यमाना न होना।।5।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधा पवन को श्रीकृष्ण के पास सन्देशा लेकर भेजते हुए उसे समझाती है कि तू मार्ग में पड़ने वाली मनोहारी सुषमा पर मोहित होकर मत रूकना ।।

व्याख्या– राधा पवन-दूतिका से कहती है कि जैसे ही मेरा घर त्यागकर तू थोड़ा-सा आगे बढ़ेगी, तुझे अत्यन्त सुन्दर तथा सुखद अनेक कुंजें दिखाई देंगी ।। उनकी छाया बड़ी शीतल तथा आकर्षक है ।। पक्षियों के चहकने से उनसे अत्यन्त मधुर ध्वनि निकलती है ।। अपने इन गुणों के कारण वे तुझे मोहित कर लेंगी, लेकिन फिर भी मेरे दुःख का ध्यान करके तू वहाँ रुकना मत ।। राधा ने पवन से कहा कि थोड़ा ही आगे जाने पर तुझे अत्यन्त मनोरम वृन्दावन मिलेगा ।। उसमें पक्षियों का मधुर संगीत गूंजा करता है, मधुर फूलों से वह लदा रहता है ।। उसमें बहुत सुन्दर-सुन्दर वृक्ष तथा लताएँ हैं ।। तू उस वन में इधर-उधर भ्रमण करना; किन्तु मोहित होकर वहाँ रुक मत जाना ।।

काव्यसौन्दर्य– 1 . राधा ने प्रकृति के माध्यम से अपनी पीड़ा को वाणी दी है ।। यहाँ राधा का लोक-सेविका का रूप चित्रित किया गया है ।। 2 . भाषा-खड़ीबोली ।। 3 . अलंकार-उपमा, मानवीकरण ।। 4 . रस-वियोग शृंगार ।। 5 . शब्दशक्ति- अभिधा ।। 6 . गुण- प्रसाद ।। 7 . छन्द-मन्दाक्रान्ता ।।

(ग) लज्जाशील पथिक . . . . . ……….. . . . . भूवांगना को ।।

लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये ।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को ।
जो थोड़ी भी श्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना ।
होंठों की औ कमल-मुख की म्लानलायें मिटाना ।।7।।
कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे ।
धीरे धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना ।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला ।
छाया द्वारा सुखित करना, तप्त भूतांगना को ।।8।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग- पवन को दूतिका के रूप में कृष्ण के पास भेजते हुए, श्रीराधा उसे मार्ग के पथिकों का उपकार करते हुए जाने की प्रेरणा देती हुई उससे कहती हैं
व्याख्या-हे पवन! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई पड़े तो इतने वेग से न बहना कि उसके वस्त्र उड़कर अस्तव्यस्त हो जाएँ और उसका शरीर उघड़ जाए ।। यदि वह थोड़ी-सी भी थकी दिखाई दे तो उसे गोद में लेकर अर्थात् उसे चारों ओर से घेरकर उसकी थकान मिटा देना, जिससे कि (थकान के कारण) उसके सूखे होंठ और मुरझाया हुआ कमल-सदृश मुख प्रफुलिल्त हो उठे ।। यदि तुमने खेत में काम करने से थकी हुई कृषक-स्त्री दिखाई पड़े तो धीरे-धीरे उसे छूकर उसकी थकान को मिटा देना और यदि आकाश में कोई मेघ जाता दिखाई पड़े तो उसे अपने प्रवाह से लाकर गर्मी से तपी उस स्त्री पर छाया करा देना, जिससे वह सुखी हो जाए ।।

काव्य-सौन्दर्य-1 . राधा पवन द्वारा अपना सन्देश शीघ्रातिशीघ्र कृष्ण तक पहुँचाना चाहती थीं, पर फिर भी वे पवन को बीचबीच में रुककर दूसरों का उपकार करते जाने की प्रेरणा देती हैं ।। यह अतिशय सहृदयता का सूचक है ।।
2 . भाषा-खड़ीबोली ।।
3 . छन्द-मन्दाक्रान्ता ।।
4 . रस- श्रृंगार ।।
5 . शब्द-शक्ति -लक्षणा ।।
6 . गुण-प्रसाद ।।
7 . अलंकार-रूपक (कमल-मुख) ।।

(घ) तू देखेगी जलद-तन . . . . . . . . . . . . . . . फूटती सीप्रभा है ।।

तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गता हो।
होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।
मुद्रा होगी वर वदन की मूर्ति-सी सौम्यता की।
सीधे साधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।11।।
नीले फूले कमल दल सी गात की श्यामता है।
पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला।
छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती।
सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती सी प्रभा है।।1 2 ।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधिका पवन-दूतिका को मथुरा में स्थित अपने प्राण-प्यारे श्रीकृष्ण की पहचान बताती हुई कहती हैं ।।


व्याख्या- हे पवन! मथुरा के वातावरण में स्वयं को ढालकर स्वयं भी वैसी ही होकर तू वहाँ बादलों के समान काले वर्णवाले श्रीकृष्ण को देखेगी ।। उनके सुन्दर नेत्र तुझे प्रकाश बिखरते दिखाई देंगे ।। उनके श्रेष्ठ मुख की भाव-भंगिमा तुझे किसी भव्य-मूर्ति की सौम्य मुख-मुद्रा के समान दिखाई देगी और जब तू उनके वचनों को सुनेगी तो उनके सीधे-सादे वचन तुझे प्रेम के अमृत से सींचे हुए लगेंगे ।। हे पवन! नीले खिले कमल-पुष्पों के समूह की श्यामलता के समान ही उनके शरीर की श्यामल कवि है अर्थात् उनका साँवला रंग ऐसा मनोरम है, जैसे नीले कमल-पुष्पों के समूह की श्यामलता अत्यन्त मनोरम होती है ।। वे श्रीकृष्ण अपने शरीर पर अत्यन्त आकर्षक पीला सुन्दर वस्त्र अपनी कमर में धारण किए रहते हैं ।। उनके माथे पर लटकती बालों की एक लट उनके मुख की शोभा में वृद्धि करती रहती है ।। उनके सुन्दर वस्त्रों से उनके रमणीय शरीर की कान्ति उत्कीर्ण होकर वहाँ के वातावरण को मनोहर बना रही होगी ।।

काव्य-सौन्दर्य- 1 . श्रीकृष्ण की आकर्षक छवि का मनोमुग्धकारी वर्णन दर्शनीय है ।। 2 . भाषा- खड़ीबोली ।। 3 . शैलीप्रबन्धात्मक ।। 4 . अलंकार- उपमा एवं अनुप्रास ।। 5 . रस- विप्रलम्भ श्रृंगार ।। 6 . छन्द- मन्दाक्रान्ता ।। 7 . गुण- प्रसाद ।। 8 . शब्दशक्ति- अभिधा ।।

(ङ) तेरे में है न यह . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . हो सकेगी हमारी ।।

तेरे में है न यह गुण जो तू व्यथायें सुनाये ।
व्यापारों को प्रखर मति औ यक्तियों से चलाना ।
बैठे जो हों निज सदन में मेघ सी कान्तिवाले ।
तो चित्रों को इस भवन के ध्यान से देख जाना ।।15।।
जो चित्रों में विरह-विधुरा का मिले चित्र कोई ।
तो जा जाके निकट उसको भाव से यों हिलाना ।
प्यारे हो के चकित जिससे चित्र को और देखें ।
आशा है यों सुरति उनको हो सकेगी हमारी ।।16।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधिका ने अपना सन्देश अपने प्रियतम श्रीकृष्ण तक भेजने के लिए पवन को दतिका बनाया है ।। उन्होंने उसे श्रीकृष्ण तक जाने का मार्ग भी समझा दिया है ।। अब वे पवन को समझा रही हैं कि तुम्हारे मुख तो है नहीं; तुम मेरे सन्देश को अपने विभिन्न क्रिया-कलापों के द्वारा उन्हें समझा देना ।। इसी का वर्णन इन काव्य-पंक्तियों में हुआ है ।।

व्याख्या- हे पवन! तुम्हारा मुख नहीं है; अत: तुम किसी भी बात को बोलकर समझाने में असमर्थ हो ।। यद्यपि तुम्हारे भीतर बोलने का गुण नहीं है, तथापि तुम अपने क्रिया-कलापों और कुशाग्र बुद्धि के द्वारा अपनी बात समझाने में सक्षम हो ।। तुम मेरी व्यथा और सन्देश मेरे प्रियतम को देने में अपने क्रिया-कलापों और अपनी कुशाग्र बुद्धि का ही प्रयोग करना ।। यदि बादल की कान्ति के समान सुन्दर वर्णवाले मेरे प्रियतम अपने घर में बैठे हों तो तू सबसे पहले घर में टॅगे सभी चित्रों को ध्यानपूर्वक देखना ।। उन चित्रों में अगर विरह से दुःखी किसी स्त्री का चित्र हो तो उस चित्र के पास जाकर तू उसे इस भाव से हिलाना कि मेरे प्रियतम आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगे ।। मुझे पूर्ण आशा ही नहीं, बल्कि विश्वास है कि उस विरहिणी के चित्र को देखकर उन्हें मेरी याद अवश्य ही आएगी कि मेरी प्रियतम राधा भी मेरे विरह में इसी प्रकार व्यथित होगी ।।

काव्य-सौन्दर्य-1 . अमुखी पवन द्वारा राधिका के सन्देशों को श्रीकृष्ण को प्रदान करने की क्रिया-चातुरी में कवि की अद्भुत कल्पना-शक्ति दर्शनीय है ।।
2 . भाषा- खड़ीबोली ।।
3 . शैली- प्रबन्धात्मक ।।
4 . अलंकार- उपमा एवं अनुप्रास ।।
5 . रसविप्रलम्भ शृंगार ।।
6 . छन्द-मन्दाक्रान्ता ।।
7 . गुण-प्रसाद ।।
8 . शब्दशक्ति- अभिधा एवं लक्षणा ।।

(च) कोई प्यारा कुसुम . . . . . . . . . . . . . . . . उत्कण्ठ होती॥

कोई प्यारा कुसुम कुम्हला गेह में जो पड़ा हो।
तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को।
यों देना ऐ पवन बतला फूल सी एक बाला।
म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।।18 ।।
जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।
छिद्रों में जा क्वणित करना वेण सा कीचकों को।
यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपांगना की।
जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होतीं।।19।।


सन्दर्भ- पहले की तरह

प्रसंग-राधा अपनी पवन-दूतिका को यह समझ रही है कि वह श्रीकृष्ण के पास जाकर वियोगिनी बाला (राधा) के दुःख और सन्ताप को चतुरता के साथ व्यक्त करे ।।

व्याख्या-राधा पवन से कहती हैं- यदि घर में कोई सन्दर फल कम्हलाया हआ पड़ा हो तो उसे उठाकर प्रेम के साथ प्रियतम के चरणों में डाल देना ।। इस प्रकार तू उन्हें बता देना कि फूल जैसी एक सुकोमल बाला दुःखित होकर आपके चरणों को चूमना चाहती है ।। हे पवन! यदि प्रियतम सुन्दर उपवन या बगीचे में हों तो बाँसों के छेदों में जाकर उन्हें बाँसुरी के समान बजाना ।। इस प्रकार से उन्हें गोपियों का स्मरण होगा, जो प्रिय की बाँसुरी सुनने की इच्छा से व्याकुल हो जाया करती थीं ।।
काव्य-सौन्दर्य-1 . राधा ने संकेतों के माध्यम से श्रीकृष्ण को सन्देश पहुँचाने का उपक्रम किया है ।।
2 . भाषा-खड़ीबोली ।।
3 . अलंकार- उपमा ।।
4 . रस- शृंगार का वियोग पक्ष ।।
5 . शब्दशक्ति- अभिधा और लक्षणा ।।
6 . गुण- प्रसाद ।।
7 . छन्दमन्दाक्रान्ता ।।

(छ) धीरे लाना वहन . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . हो काँप जाना ।।

धीरे लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई।
औ प्यारे के चपल दृग के सामने डाल देना।
ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
कैसी होती विरहवश मैं नित्य रोमांचिता हूँ।।21 ।।
बैठे नीचे जिस विटप के श्याम होवें उसीका।
कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना।
यों प्यारे को विदित करना चातरी से दिखाना।
मेरे चिन्ता-विजित चित का क्लान्त हो काँप जाना।।22 ।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में राधिका पवन को बताती हैं कि उसे किस प्रकार उनकी याद उनके प्रियतम को दिलानी है ।।

व्याख्या- हे पवन! तू धीरे से कदम्ब का कोई पुष्प उठाकर लाना और उसे मेरे प्राण-प्यारे के चंचल नेत्रों के सामने डाल देना ।। इस प्रकार तू उन्हें यह बात भली-भाँति समझा सकेगी मैं किस प्रकार से उनके विरह के वशीभूत होकर हर समय डरी हुई-सी रहती हूँ और नित्य-प्रति पुनर्मिलन की कल्पना से पुनः पुनः कदम्ब पुष्प के समान रोमांचित होती रहती हूँ ।। मेरे प्राण-प्रिय श्याम जिस वृक्ष के नीचे बैठे हों, तू उसी वृक्ष का कोई पत्ता उनके नेत्रों के पास जाकर हिलाना ।। इस प्रकार तू अपनी क्रिया-चातुरी से मेरे प्रियतम को यह ज्ञात करा सकती है कि किस प्रकार से चिन्ता ने मेरे हृदय को जीतकर उसे थका दिया है ।। चिन्ता ने मेरे हृदय का संबल मुझसे छीन लिया है, जिसके अभाव में मेरा हृदय पत्ते की भाँति काँपता रहता है ।।

काव्य-सौन्दर्य-1 . राधिका की दशा को दिखाने के वर्णन में कवि ने बड़े ही सटीक उपमानों का चयन करके अपनी परिपुष्ट कवि-प्रतिभा का परिचय दिया है ।।
2 . भाषा-खड़ीबोली ।।
3 . शैली-प्रबन्धात्मक ।।
4 . अलंकार-उपमा एवं अनुप्रास ।।
5 . रसविप्रलम्भ शृंगार ।।
6 . छन्द-मन्दाक्रान्ता ।।
7 . गुण- प्रसाद ।।
8 . शब्दशक्ति-अभिधा एवं लक्षणा ।।

(ज) सूखी जाती मलिन . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . प्रोषिता-सा हमारा ।।

सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो ।
तो पाँवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना ।
यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो ।
मेरा होना अति मलिन औ सूखते नित्य जाना ।।23 ।।
कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो ।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही ।
धीरे धीरे सँभल रखना औ उन्हें यों बताना ।
पीला होना प्रबल दुख से प्रोषिता सा हमारा ।।24।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधाजी अपनी पवनतिका को निर्देश दे रही है ।।

व्याख्या- राधा कहती हैं कि हे पवन! यदि मेरे प्रिय कृष्ण उपवन में हो तो तुम पृथ्वी पर पड़ी मुरझाकर सूखती किसी सुकोमल लता को उनके चरणों के पास लाकर गिरा देना ।। इस बहाने तुम उन्हें यह स्पष्ट कर देना कि इस लता के समान ही राधा भी तुम्हारा प्रेमरूपी जल न प्राप्त होने के कारण प्रतिदिन सूखती जा रही है ।। यदि किसी नये वृक्ष का कोई पत्ता पीला पड़ गया हो तो उसे प्रिय के नेत्रों के सामने धीरे से रख दिया ।। ऐसा करके उन्हें यह दर्शा देना कि राधा भी आपके वियोग में इसी प्रकार प्रोषित-पतिका नायिका के समान पीली पड़ती जा रही है ।।

काव्य-सौन्दर्य- 1 . मूलतः प्राकृतिक उपादानों को सन्देशवाहक बनाने की यह परम्परा कालिदास के ‘मेघदूत’ से निःसृत हुई है ।। 2 . भाषा- खड़ीबोली ।।
3 . छन्द- मन्दाक्रान्ता ।।
4 . रस- वियोग शृंगार ।।
5 . शब्द-शक्ति- अभिधा और लक्षणा ।।
6 . गुण-प्रसाद ।। 7 . अलंकार- उपमा ।।

(झ) यों प्यारेको . . . . . . . . . . . . . . तुझी को लगाके ।।

यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथायें।
धीरे धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।
थोड़ी सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू। हा !
कैसे तो व्यथित चित को बोध मैं दे सकँगी।।25।।

पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।
तो तू मेरी विनय इतनी मान ले और चली जा।
छ के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।
जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तझी को लगाके।।26।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में राधिका ने कृष्ण के प्रति अपने सच्चे प्रेम की भावना को व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि तू कुछ भी न कर पाए तो तू केवल उनके चरणों का स्पर्श करके आ जाना ।। मैं तुझी को अपने हृदय से लगाकर सन्तोष कर लूँगी ।।

व्याख्या- राधिका कहती हैं कि हे पवन! जैसा मैंने बताया है, तू वैसे ही मेरी समस्त व्यथाएँ प्रियतम कृष्ण के सम्मुख व्यक्त कर देना ।। जब तू वापस आए तो एक कार्य और करना, तू धीरे से उनके पाँवों की धूलि को उठाकर ले आना ।। यदि तू मुझे उनकी थोड़ी-सी चरण धूलि ला देगी तो मैं उसे अपने माथे पर चढ़ाकर अपने दुःखी मन को समझाकर उसे धैर्य बँधा लूँगी ।। हे पवन! अब तक मैंने जितनी बातें बताई, यदि तुझसे ये बातें पूरी न हो सकें तो मेरी इतनी-सी विनती स्वीकार करके तुरन्त ही मेरे प्रियतम के पास चली जा और मेरे प्राणप्रिय के कमलरूपी पैरों को प्यार के साथ छूकर आ जा ।। तब विरह में मृतप्राय मैं तुझे अपने हृदय से लगाकर फिर से जीवन धारण कर लूँगी ।।


काव्य-सौन्दर्य-1 . राधिका की पवित्र और सच्ची प्रेम-भावना की सफल अभिव्यक्ति हुई है ।।
2 . राधिका ने यहाँ यह प्रमाणित किया है कि उसका कृष्ण के प्रति प्रेम कामजन्य न होकर भावजन्य है ।। 3 . भाषा- खड़ीबोली ।।
4 . शैली- प्रबन्धात्मक ।।
5 . अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश, मानवीकरण एवं अनुप्रास ।।
6 . रस- विप्रलम्भ शृंगार ।।
7 . छन्द-मन्दाक्रान्ता ।।
8 . गुण- प्रसाद ।।
9 . शब्दशक्ति-अभिधा ।।

2 . निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

(क) आना जाना इस विपिन से मुह्यमान न होना ।।

सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवनदूतिका’ शीर्षक से अवतरित है ।।
प्रसंग-प्रस्तुत सूक्ति में राधा जी पवन को समझाती हुई कहती है कि मार्ग की सुन्दरता देखकर मोहित मत हो जाना, तू आगे श्रीकृष्ण के पास मथुरा जाना ।।

व्याख्या- राधा जी पवन को समझाती है कि थोड़ा आगे जाने पर तुझे सुन्दर वृन्दावन मिलेगा ।। जिसमें सदैव पक्षियों का मधुर संगीत तथा फूलों की सुगंध तैरती रहती है ।। हे पवन तू उस वन में भ्रमण तो अवश्य कर लेना परन्तु तू उस मनोरम वन की सुन्दरता को देखकर मोहित उसमें वास मत करना अर्थात तू वहाँ न रुककर आगे बढ़ना और मेरा संदेशा श्रीकृष्ण तक पहुँचा देना ।।

(ख) होने देना विकृत-वसना तो नतू सुन्दरी को ।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधिका पवन का मार्ग से सम्बन्धित आवश्यक दिशा-निर्देश देती हुई प्रस्तुत सूक्ति कहती हैं ।।

व्याख्या- राधिका पवन को समझाती हैं कि तुझे मार्ग में ब्रजभूमि की अत्यन्त लज्जशील महिलाएँ दिखाई देंगी; अत: तुझे उनका मान-सम्मान करते हुए ही आगे बढ़ना है ।। तू कहीं अपनी चंचलता का प्रदर्शन करते हुए उनके वस्त्रों को उड़ाकर उनके कोमलांगों को अनावृत्त मत कर देना ।। ऐसी चंचलता किसी भी दृष्टि से न तो उचित है और न ही क्षम्य ।।

(ग) होठों की और कमल-मुख की म्लनताएँ मिटाना ।।

सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग-राधिका पवन का मार्ग में मिलनेवाली ब्रजबालाओं का उपकार करने के लिए प्रेरित करती हैं ।। व्याख्या- हे पवन! तुझे मार्ग में अनेक भोली-भाली ब्रजबालाएँ मिलेंगी, यदि वे अत्यधिक परिश्रम करने के कारण थक गई हों
और उनका मुख-कमल मुरझा गया हो तो तू उन्हें अपनी गोद में बैठाकर उनकी थकान मिटाकर उनके होठों पर मुस्कान बिखेर देना ।। इस प्रकार तू उनका मुरझाया कमल-मुख फिर से खिला देना ।। (घ) छू के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा ।। जी जाऊँगी हृदयतल मे मैं तुझी को लगाके ।। सन्दर्भ- पहले की तरह प्रसंग-राधिका पवन को समझाती हैं कि उसे उसका कार्य किस प्रकार से पूर्ण करना है ।। व्याख्या- अन्ततः राधिका पवन से निवेदन करती हैं कि यदि तू मेरे सन्देश को किसी भी रूप में श्रीकृष्ण तक न पहुँचा सके तो मेरे उस प्राणप्रिय श्रीकृष्ण के कमल-चरणों का स्पर्श करके मेरे पास लौट आना ।। मैं तुझे अपने हृदय से लगाकर अपने प्रियतम के स्पर्श-सुख का अनुभव करके प्राणशक्ति से भर उलूंगी ।।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

1 . ‘पवन-दूतिका’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर – – ‘पवन-दूतिका’ कविता ‘हरिऔध’ जी के महाकाव्य ‘प्रियप्रवास’ से ली गई है जिसमें कवि ने श्रीराधा की विरह वेदना का वर्णन किया है ।। कवि कहते हैं कि एक दिन राधा उदासी से घर में अकेली बैठी रो रही थी ।। तभी प्रातः कालीन सुगन्धित पवन रोशनदानों से घर के अंदर आई ।। पवन के आने से राधा जी का ‘दुःख बढ़ गया इसलिए उन्होंने पवन से कहा हे पवन मुझे क्यों सता रही है? क्या तू भी काल की कठोरता से दूषित हो गई? क्या तुझ पर भी क्रूरता का प्रभाव पड़ गया ।। राधा पवन से कहती है नवीन मेघ जैसी शोभावाले और कमल जैसे नेत्रों वाले मेरे प्रिय श्रीकृष्ण मथुरा से वापस नहीं लौटे ।। उनके विरह में मैं रो-रोकर बावली हो गई हूँ ।। तू मेरी बेदना तथा दुःख उन्हें जाकर सुना दे ।। राधा पवन से कहती है जैसे ही तू मेरे भवन से थोड़ा आगे बढ़ेगी तुझे सुन्दर तथा सुखद अनेक कुंजें दिखाई देगी ।। उनकी छाया बहुत शीतल व आकर्षक है जो तुझे अपनी ओर जरूर आकर्षित करेंगी परन्तु मेरे दुःख का ध्यान करके तू वहाँ न रूकना तथा आगे बढ़ जाना ।।


राधा पवन से कहती है कि आगे जाने पर तुझे अत्यन्त मनोरम वन मिलेगा ।। जिसमें सुन्दर-सुन्दर वृक्ष और लताएँ हैं जो तुम्हारे मन को अपनी ओर मुग्ध करेगा परन्तु तुम उस वन में बस भ्रमण करना उस सुन्दर विपिन पर मोहित मत होना ।। राधा पवन से कहती है कि हे पवन! यदि तुझे मार्ग मे कोई थका हुआ मिले, तो तू उसके निकट जाकर उसकी थकान को मिटा देना ।। धीरेधीरे उसके शरीर का स्पर्श करके उसकी गर्मी को दूर करना और उस थके व्यक्ति को प्रसन्न कर देना ।। यदि तुझे मार्ग में कोई लज्जाशील स्त्री दिखाई दे तो तू उसके वस्त्रों को अस्त-व्यस्त मत करना ।। यदि वह तुझे थकी हुई दिखाई दे तो तू उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटाना तथा उसके होंठों तथा मुख की मलिनता को अपनी शीतलता से दूर कर देना ।। राधा कहती है कि यदि तुझे खेत पर कार्य करती हुई कोई किसान स्त्री दिखाई दे तो उसके पास जाकर उसकी थकान को दूर कर देना, यदि आकाश से कोई मेघ खण्ड जा रहा हो तो उसकी छाया उस स्त्री पर कर देना, जिससे वह शीतलता प्राप्त कर सके ।।

राधा पवन-दूतिका को समझती है कि जब तू मथुरा नगरी पहुँचेगी तो वहाँ की भव्यता तुझे वहाँ की शोभा देखने के लिए उत्सुक बना देगी ।। तब तू नगरी देखने की उत्सुकता मत दबाना, बल्कि उस नगरी की सर्वोत्तम और मुग्धकारी शोभा पर मुग्ध हो जाना ।। जब तू वहाँ के समेरु पर्वत जैसे ऊँचे और विशाल मन्दिर देखेगी तो, तेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहेगा ।। हे पवन-दूतिका! तू पूजा-अर्चना के समय मन्दिरों में जाना और विभिन्न वाद्य यन्त्रों के सुरों को बढ़ा देना ।। तू मन्दिर के विभिन्न वृक्षों में से किसी वृक्ष का चयन करके अपना मनपसन्द राग अवश्य बजाना ।। वह पवन-दूतिका से कहती हैं जब तू मेघ जैसे शरीर वाले श्रीकृष्ण को देखेगी तो उनके नेत्रों से तुझे प्रकाश बिखरता दिखाई देगा और जब तू उनके वचनों को सुनेगी वे तुझे प्रेम के अमृत से सींचे हुए प्रतीत होंगे ।। नीलकमल के पुष्प के समान ही उनके शरीर की छवि है ।। वे अपने शरीर पर सुन्दर पीला वस्त्र धारण करते हैं ।। उनके माथे पर लटकती बालों की लटें उनके मुख की शोभा बढ़ाती हैं तथा उनके सुन्दर वस्त्रों से उत्पन्न कान्ति वातावरण को मनोहर बना रही होगी ।। श्रीकृष्ण का शरीर सुन्दर सुडौल है, उनके शरीर की सुगन्ध पुष्पों की सुगन्ध के समान प्राणों की पोषक है उनके दोनों कन्धे बैल की तरह बलिष्ठ तथा भुजाएँ हाथी की सैंड के समान शक्तिशाली है ।। उनके सिर पर राजाओं जैसा मुकुट होगा, उनके कानों में सुन्दर कुण्डल सुशोभित होंगे, उनकी भुजाओं पर अनेक रत्नों से जड़ित भुजबन्ध होगे और उनके गले में मोतियों की माला सुशोभित होगी ।।

राधा पवन से कहती है कि परन्तु तेरे में ये गुण ही नहीं है कि तू अपने मुख से कोई बात कह सके इसलिए तू अपने क्रियाकलापों तथा तीव्र बुद्धि के द्वारा मेरा संदेशा उन्हें दे देना ।। यदि श्रीकृष्ण किसी भवन में बैठे हो तुम वहाँ पर चित्रों को ध्यान से देखना ।। जिस चित्र में विरह से दुःखी स्त्री का चित्र हो तो तू उसके पास जाकर उसे ऐसे हिलाना, जिससे मेरे प्रियतम उसे देखने लगे और उन्हें मेरी स्मृति हो जाए ।। यदि तुझे वहाँ किसी बाग का चित्र दिखाई दे, जिसमें सभी प्राणी व्याकुल होकर घूमते हों, तो तू उस चित्र को इस प्रकार हिलाना कि श्रीकृष्ण को विरह में व्याकुल ब्रज के प्राणियों की याद आ जाए ।। यदि घर में कोई फूल कुम्हलाया हुआ पड़ा हो तो तू उसे उठाकर प्रियतम के चरणों पर डाल देना ।। तू उन्हें बतला देना कि फूल जैसे एक बाला को आपके चरणों को चूमने की अभिलाषा है ।। हे पवन! यदि मेरे प्रियतम किसी उपवन में खड़े हो तो तुम बाँसों के छेदों को जाकर उन्हें बाँसुरी की तरह बजाना, जिससे उन्हें उन गोपियों की याद आ जाए जो उनकी बाँसुरी सुनने को व्याकुल रहती थीं ।। तुम कमल के फूल को व्याकुल होकर पानी में डुबाना, जिससे तुम उन्हें बतला सको कि कमल जैसे नयनों वाली राधा आपके वियोग में दुःखी होकर अश्रु बहाती है ।।

हे पवन! तुम धीरे-धीरे चलकर कोई कदंब का पुष्प उनके नेत्रों के सामने डाल देना ।। इस प्रकार तू उन्हें बतला सकेगी कि मैं किस प्रकार विरह के कारण डरी हुई रहती हूँ तथा उनके मिलन की आशा में रोमांचित होती हूँ ।। जिस पेड़ के नीचे मेरे श्याम बैठे हो तू उस पेड़ के पत्ते को हिला देना, तुम उन्हें चतुराई से बताना कि मेरा मन चिंता के कारण पत्ते की तरह ही काँपता है ।। हे पवन! किसी सूखी लता को तू श्याम के पाँव के पास डाल देना और उन्हें बताना कि उनके बिना मैं भी ऐसी ही नित्य सूखती व मलिन होती जा रही हूँ ।। यदि कोई पत्ता पीला हो रहा हो तो तू उसे श्रीकृष्ण के नयनों के पास ले जाना और उन्हें बताना कि मैं (राधा) भी इसी प्रकार पीली पड़ती जा रही हूँ ।। हे पवन! मेरी सभी व्यथाएँ मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण को बताने के बाद तू धीरे से उनके पाँवों की धूलि ले आना ।। यदि तुम मुझे यह धूलि ला दोगी तो मैं उसे अपने माथे पर चढ़ा कर संतोष प्राप्त कर लूँगी ।। यदि तुझसे ये बाते पूरी न हो पाएँ तो तू मेरी इतनी प्रार्थना स्वीकार कर ले, तू तुरंत मेरे प्रियतम के पास चली जा और उनके कमलरूपी पैरों को छूकर आ जा ।। मैं विरह से व्याकुल तुझको अपने हृदय से लगाकर फिर से नया जीवन प्राप्त कर लूँगी ।।

2 . राधा ने कृष्ण का ध्यान अपने प्रति आकर्षित करने के लिए पवन को कौन-कौन सी युक्तियाँ बताईं?

उत्तर – – कृष्ण का ध्यान अपने प्रति आकर्षित करने के लिए राधा ने पवन को युक्तियाँ बताई कि जिस भवन में श्रीकृष्ण बैठे हों उस भवन में लगे चित्रों में से तू विरह से दुःखी स्त्री का चित्र हिला देना, यदि चित्रों में तुझे बगीचे का चित्र दिखे जिसमें सभी प्राणी व्याकुल होकर पागलों के समान घूम रहे हो, उस चित्र को हिलाकर तुम उन्हें ब्रज के प्राणियों की याद दिलाना ।। घर में पड़े कुम्हलाए हुए फूल को उनके सामने डाल देना, बाँसों के छेदों में जाकर उसे बाँसुरी के समान बजाना, कमल-पत्र को व्याकुलता से जल में डुबाना, कदंब के पुष्प तथा सूखी हुई लता तथा नए वृक्ष के पीले पत्ते को उनके नेत्रों के सामने डाल देना, जिससे उन्हें हमारी स्मृति हो जाए ।।

3 . ‘पवन-दूतिका’ कविता में राधा ने पवन को दूती बनाते हुए कृष्ण का जो स्वरूप चित्रित किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर – – राधा पवन को दूती बनाते हुए उससे कहती है कि मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण जो बादलों के समान काले वर्ण वाले है, को जब तू देखेगी तो तुझे उनके नेत्रों से प्रकाश बिखरता दिखाई देगा ।। उनके वचन तुझे प्रेम के अमृत से सींचे हुए लगेंगे ।। उनके शरीर पर अत्यन्त आकर्षक पीला वस्त्र होता है, उनके माथे पर लटकती बालों की लटें उनके मुख की शोभा बढ़ाती है ।। उनका शरीर साँचे में ढली मूर्ति के समान सुडौल एवं देवताओं जैसी कान्ति वाला है, उनके दोनों कन्धे बैल के समान विशाल और बलिष्ठ तथा भुजाएँ हाथी की सँड के समान शक्तिशाली है ।। उनके सिर पर राजाओं जैसा मुकुट होगा ।। उनके कानों में सुन्दर कुण्डल तथा भुजाओं में रत्नों से जड़ित भुजबन्ध सुशोभित होंगे तथा उनकी शंख जैसी सुडौल-सुन्दर गर्दन में मोतियों की माला शोभित होती दिखेगी ।।
4 . कविता में हरिऔध जी ने मथुरा नगर की सुन्दरता का वर्णन किया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।। उत्तर – – ‘पवन-दूतिका’ में राधा जब पवन को समझाती है तो उससे कहती है कि जब तू मथुरा नगरी में पहुँचेगी, तो उस नगर की भव्यता तुझे उस भव्यता को देखने के लिए उत्सुक बनाएगी क्योंकि वहाँ सूर्य के समान चमकती आभा वाले कलशों से युक्त सुमेरु पर्वत जैसे विशाल और ऊँचे पर्वत जैसे मन्दिर हैं ।। इन मन्दिरों में पूजा के समय तरह-तरह के वाद्य यन्त्र बजते हैं, यहाँ विविध प्रकार के वृक्ष है ।।

काव्य-सौन्दर्य से सम्बन्धित प्रश्न

1 . “बैठी खिन्ना . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . क्रूरता से ।। “पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम, तथा स्थायी भाव लिखिए ।।
उत्तर – – प्रस्तुत पंक्तियों में विप्रलम्भ शृंगार रस है जिसका स्थायी भाव रति है ।।

2 . “मेरे प्यारे . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . विश्राम लेना ।। ” पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए ।।
उत्तर – – प्रस्तुत पंक्तियों में उपमा अलंकार है ।।

3 . “साँचे ढाला . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पेटिका है ।। ” पंक्तियों में प्रयुक्त अल
. . . . . . . . . . . . . . . . पेटिका हैं ।। “पंक्तियों में प्रयक्त अलंकार का नाम लिखिए ।।
उत्तर – – प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास तथा उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है ।।

4 . “सूखी जाती . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . नित्य जाना ।। ” पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर – – काव्य सौन्दर्य-1 . यहाँ श्रीराधा ने प्रकृति के माध्यम से अपनी पीड़ा को वाणी दी है ।।
2 . भाषा-खड़ी बोली, 3 . अलंकार
उपमा, 4 . रस- विप्रलम्भ शृंगार, 5 . शब्दशक्ति- अभिधा और लक्षणा, 6 . छन्द-मन्दाक्रान्ता, 7 . गुण- प्रसाद ।।

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