UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 3 रसखान

UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 3 रसखान काव्य खण्ड अवतरणों की सन्दर्भ सहित हिंदी में व्याख्या

अवतरण – 1

मानुष हौं तो वही रसखानि बसों वृज गोकुल गाँव के ग्वारन |
जो पसु हों तो कहा बसु मेरो चरों नित नन्द की धेनु मंझारन॥
पाहन हों तो वही गिरि को जो कर धर् यो कर छत्र पुरंदर धारन
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन ॥

शब्दार्थ –
मानुष = मनुष्य ।बसौं=निवास करूं । ग्वारन = ग्वाले । धेनु = गाय । मॅझारन = के बीच में । गिरि= पर्वत (गोवर्धन )।पाहन = पत्थर । पुरंदर = इन्द्र । खग = पक्षी । धरयो=धारण किया था । बसेरो करौं = निवास करूं । कालिंदी – कूल = यमुना का किनारा । डारन = डालों पर ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग – इस पद्य खण्ड में रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास किया है और मृत्यु के बाद अपने अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि में जन्म लेने एवं उनके समीप ही निवास करने की कामना की है ।

व्याख्या – महाकवि रसखान कहते हैं कि हे प्रभु मेरी मृत्यु के बाद यदि मुझे मनुष्य का जन्म मिले तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वालोवालों के मध्य निवास करूं । यदि मैं पशु के रूप में जन्म ग्रहण करूं जिसमें मेरा कोई वश नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नन्द बाबा जी की गायों के बीच विचरण करता रहूँ। यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बनू तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूं , जिसे आपने जलमग्न होने से गोकुल ( बृज ) की रक्षा करने के लिए अपनी सबसे छोटी अँगुली पर धारण किया था । तथा यदि मुझे पक्षी योनि में भी जन्म मिला तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम्ब के वृक्षों की शाखाओं पर ही निवास करूं ।

काव्यगत सौन्दर्य-

रसखान जी ने की कृष्ण के प्रति असीम भक्ति को प्रदर्शित किया है। वह अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण के समीप ही रहना चाहते हैं ।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली – मुक्तक शैली
रस – शान्त एवं भक्ति रस ।
छन्द – सवैया छंद ।
अलंकार – “कालिंदी-कुल कदंब की डारन” में अनुप्रास अलंकार ।
गुण – प्रसाद ।

अवतरण – 2

आजु गयी हुती भोर ही हौं रसखानि रही बहि नंद के भौनहिं ।।
वाको जियौ जुग लाख करोर, जसोमति को सुख जात कह्यौ नहिं॥
तेल लगाइ, लगाइ कै अँजन, भौंह बनाई बनाई ढिठौनहिं ।
डारि हमेलनि हार निहारत बारत ज्यौं चुचकारत छौनहिं ॥

शब्दार्थ –
आजु = आज | हुती = थी। भोर = प्रात:काल। हौं = मैं । रई बहि = प्रेम में डूब गयी । भौनहिं = भवन में । वाको = यशोदा का। जुग = युग। ढिठौनहिं == काला टीका । हमेलनि = हमेल (सोने का आभूषण) । निहारत =एकटक देख रही थी। बारत = न्योछावर । चुचकारत = पुचकार रही थी । छौनहिं = पुत्र को।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग – इस पद्यखण्ड में रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति यशोदा के वात्सल्य भाव का चित्रित किया है। यशोदा का पुत्र प्रेम अकल्पनीय है |

व्याख्या – एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे गोपी ,आज मैं प्रात:काल के समय श्रीकृष्ण के प्रेम में पागल होकर मैं नन्द जी के घर गयी थी । मेरी कामना है कि उसका पुत्र श्रीकृष्ण लाखों-करोड़ों जुगों तक जीवित रहे । यशोदा के सुख के बारे में कुछ कहते नहीं बनता है, अर्थात् उनका पुत्र प्रेम अकल्पनीय है। वे अपने पुत्र का श्रृंगार कर रही थीं । वे श्रीकृष्ण के शरीर में तेल लगाकर के आँखों में काजल लगा रही थीं। तथा उन्होंने बालक श्री कृष्ण की सुन्दर-सी भौंहें बनाकर बुरी नजर से बचाने के लिए माथे पर काला टीका (ढिठौना) लगा दिया था । माता यशोदा ने उनके(श्रीकृष्ण) गले में सोने का हार डालकर और एकटक होकर उनके रूप को निहार रहीं थी | एसा लग रहा था किवे अपना जीवन उन पर न्योछावर कर रही थीं | और पुत्र प्रेम में बार-बार अपने पुत्र को पुचकार रही थीं। अर्थात अपने पुत्र का चुम्मन ले रहीं थीं |

काव्यगत सौन्दर्य-

प्रस्तुत पद्य खण्ड में माता यशोदा के वात्सल्य-भाव का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया गया है ।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली – चित्रात्मक और मुक्तक शैली ।
रस – वात्सल्य रस |
छन्द – सवैया छंद ।
अलंकार – यमक, अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश आदि अलंकार ।
गुण – प्रसाद ।

अवतरण – 3

धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी ।
खेलत खात फिरें अँगना पग पैंजनि बाजति पीरी कछोटी ॥
वा छबि को रसखानि बिलोकत, बारत काम कला निज कोटी ।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ॥

शब्दार्थ –
धूरि भरे = धुल में सने हुए | बनी = सुशोभित । पैंजनी = पायजेब । पीरी = पीला । कछोटी = कच्छा । सजनी = सखी ||

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग – इस पद्य खण्ड में रसखान ने श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का मनोहारी चित्रण किया है।

व्याख्या – रसखान जी कहते है की श्यामवर्ण के श्री कृष्ण धूल से सने हुए हैं और बहुत अधिक शोभायमान हो रहे हैं। उसी क्रम में उनके सिर पर सुन्दर चोटी सुशोभित हो रही है। वे खेलते और खाते हुए अपने घर के आँगन में घूम रहे हैं। उनके पैरों में पायल बज रही है तथा वे पीले रंग की छोटी-सी धोती पहने हुए हैं । रसखान कहते हैं कि उनके उस सौन्दर्य को देखकर कामदेव भी उन पर अपनी करोणों कलाओं को न्योछावर करता है । अर्थात वे बहुत अधिक सुन्दर लग रहे है हे सखी, उस कौवे के भाग्य देखो , जो श्री कृष्ण के हाथ से मक्खन और रोटी छीनकर ले गया । अर्थात श्रीकृष्ण की जूठी रोटी खाकर वहकौआधन्य हो गया ||

काव्यगत सौन्दर्य-

प्रस्तुत पद्य खण्ड में रसखान ने श्रीकृष्ण के बाल-सौन्दर्य का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।
भाषा = ब्रज भाषा |
शैली = चित्रात्मक और मुक्तक
रस = वात्सल्य और भक्ति।
छन्द = सवैया।
अलंकार = अनुप्रास अलंकार |
गुण = माधुर्य।

अवतरण – 4

जा दिन ते वह नंद को छोहरा, या वन धेनु चराई गयो है ।
मोहिनी ताननि सों गोधन गावत, बेनु बजाइ रिझाइ गयौ है ॥
वा दिन सो कछु टोना सो, रसखानि हियै मैं समाई गयो है।
कोऊ न काहू की कानि करै सिगरो बृज वीर बिकाइ गयौ है ॥

शब्दार्थ-
छोहरा = पुत्र । धेनु = गाय । बेनु = वंशी । टोना = जादू । सिगरो = सम्पूर्ण ||

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग-इस पद्य खण्ड में बृज की गोपियों पर श्रीकृष्ण के प्यार में पागल होने का सुन्दर चित्रण हुआ है।

व्याख्या – एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी जिस दिन से वह नन्द का बालक इस वन में आकर अपनी गायों को चरा गया है तथा अपनी मोहनी तान सुनाकर वंशी बजाकर हम सबको रिझा गया है, उसी दिन से एसा लग रहहा है की कोई जादू हमारे मन में बस गया है। इसलिए अब कोई भी गोपी किसी भी मर्यादा का पालन नहीं करती है, उन्होंने तो अपनी सम्पूर्ण लज्जा श्री कृष्ण को समर्पित कर दी है । ऐसा मालूम पड़ता है कि सम्पूर्ण ब्रज उस कृष्ण के हाथों बिक गया है, अर्थात् उसके वश में हो गया है ।

काव्यगत सौन्दर्य-
इस पद्य खण्ड में गोपियों पर कृष्ण के निश्छल प्रेम का सजीव वर्णन किया गया है।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली – मुक्तक शैली ।
छन्द – सवैया छंद ।
रस – शृंगार रस ।
अलंकार – “काहु की कानि करै” तथा “गोधन गावत” में अनुप्रास अलंकार ।
गुण – माधुर्य ||

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 स्वयंवर-कथा, विश्वामित्र और जनक की भेंट (केशवदास) free pdf

अवतरण – 4

जा दिन ते वह नंद को छोहरा, या वन धेनु चराई गयो है ।
मोहिनी ताननि सों गोधन गावत, बेनु बजाइ रिझाइ गयौ है ॥
वा दिन सो कछु टोना सो, रसखानि हियै मैं समाई गयो है।
कोऊ न काहू की कानि करै सिगरो बृज वीर बिकाइ गयौ है ॥

शब्दार्थ-
छोहरा = पुत्र । धेनु = गाय । बेनु = वंशी । टोना = जादू । सिगरो = सम्पूर्ण | बिकाइ गयौ है= बिक गया है |

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग-इस पद्य खण्ड में बृज की गोपियों पर श्रीकृष्ण के प्यार में पागल होने का सुन्दर चित्रण हुआ है।

व्याख्या – एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी जिस दिन से वह नन्द का बालक इस वन में आकर अपनी गायों को चरा गया है तथा अपनी मोहनी तान सुनाकर वंशी बजाकर हम सबको रिझा गया है, उसी दिन से एसा लग रहहा है की कोई जादू हमारे मन में बस गया है। इसलिए अब कोई भी गोपी किसी भी मर्यादा का पालन नहीं करती है, उन्होंने तो अपनी सम्पूर्ण लज्जा श्री कृष्ण को समर्पित कर दी है । ऐसा मालूम पड़ता है कि सम्पूर्ण ब्रज उस कृष्ण के हाथों बिक गया है, अर्थात् उसके वश में हो गया है ।

काव्यगत सौन्दर्य-
इस पद्य खण्ड में गोपियों पर कृष्ण के निश्छल प्रेम का सजीव वर्णन किया गया है।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली – मुक्तक शैली ।
छन्द – सवैया छंद ।
रस – शृंगार रस ।
अलंकार – कोहू न काऊ की कानि करें में अनुप्रास अलंकार ।
गुण – माधुर्य ||

अवतरण – 5

कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी, हमकौं चहिहै ।
निशि द्यौस रहै सँग साथ लगी, यह सौतिन तापन क्यौं सहिहै ॥
जिन मोह लियो मन मोहन को रसखानि सदा हमको दहिहै ।
मिलि आओ सबै सखि, भागि चलें अब तो ब्रज मैं बँसुरी रहिहै ॥

शब्दार्थ
बस=बश में | चहिहै = चाहेगा। निसद्यौस = रात और दिन। तापन = दुःख । सहिहै = सहन करेगी। मोह लियौ = मोहित कर लिया है। दहिहै = जलाती है।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग – इस पद्य खण्ड में में श्रीकृष्ण के वंशी के प्रति बहुत प्रेम को देखकर गोपियों के वंशी के प्रति सौतिया डाह का वर्णन किया है |

व्याख्या – एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे गोपी श्रीकृष्ण अब बाँसुरी के वश में हो गये हैं, अब हमसे प्रेम कोन करेगा ? श्रीकृष्ण पहले हमसे बहुत प्रेम करते थे, किन्तु अब वे इस वंशी (बाँसुरी) से प्रेम करने लगे हैं । यह बाँसुरी दिन और रात उनके साथ ही लगी रहती है । इस वंशी रूपी सौत के दुःख को हम कहाँ तक सहन करेंगी ? जिस बाँसुरी ने हमारे मनमोहन श्री कृष्ण को अपने प्रेम से मोहित कर लिया है, वह हमें सदा ईर्ष्या से जलाती रहेगी। हे सखी, आओ हम सब मिलकर ब्रज छोड़कर किसी दूसरी जगह चले क्योंकि यहाँ अब केवल बाँसुरी ही रह सकेगी | अर्थात् कृष्ण के प्रेम से वंचित होकर हमारा अब ब्रज में नहि रह सकती ।

काव्यगत सौन्दर्य –

प्रस्तुत पद्य खण्ड में गोपियों की मुरली के सौतिया डाह का सजीव वर्णन किया गया है ।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली – मुक्तक शैली |
रस – श्रृंगार रस ।
छन्द – सवैया छन्द
अलंकार – अनुप्रास अलंकार ।

अवतरण – 6

मोर पखा सिर ऊपर रखिहौं गूंज की माल गले पहिरौंगी |
ओढ़ी पीताम्बर ली लकुटी गोधन ग्वारन संग फिरौंगी ||
भवतो वोहीमेरो रसखानि सो तेरे कहे सब स्वाँग करूंगी |
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ||

शब्दार्थ –
मोर पखा = मोर पंख वाला मुकुट । लकुटी = छोटी लाठी। स्वाँग = ढोंग । अधरान = होंठों पर। अधरा न धरौंगी = होंठों पर नहीं रखूंगी ||

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य खण्ड रसखान द्वारा रचित “”सुजान-रसखान”” से हमारी पाठ्य-पुस्तक “”हिन्दी”” के काव्य-खण्ड में संकलित “सवैये” शीर्षक से लिया गया है |

प्रसंग – इस पढ़ खण्ड में कृष्ण के विछोह में व्याकुल गोपियों के मन की दशा का मार्मिक वर्णन किया गया है। कृष्ण के प्रेम में पागल गोपियाँ स्वयं कृष्ण बनने को तैयार है |

व्याख्या – एक गोपी अपनी दूसरी गोपी से कहती है कि हे गोपी मैं तुम्हारे कहने से अपने सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट धारण करूंगी, अपने गले में गुंजों की माला पहन लूंगी, कृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहन लूंगी और हाथ में छोटी लाठी लिये हुए ग्वालोवालों के साथ गायों को चराती हुई वन वन घूमती फिरूंगी । जो सभी कार्यकृष्ण को अच्छे लगते हैं तेरे कहने से मैं वो सब काम कर लूंगी, परन्तु उनके होठों पर रखी हुई बाँसुरी कको अपने होठों से स्पर्श नहीं करूंगी। अर्थात कृष्ण गोपियों के प्रेम की परवाह नहीं करते है तथा दिनभर बाँसुरी अपने साथ रखते हैं और उसे अपने होंठों से लगाये रहते हैं, अत: गोपियाँ उस वंशी को सौत मानकर उसका स्पर्श भी नहीं करना चाहती हैं ||

काव्यगत सौन्दर्य-

प्रस्तुत पद्य खण्ड में कृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम और बाँसुरी के प्रति गोपियों की जलन का स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
भाषा – ब्रज भाषा ।
शैली- मुक्तक शैली ।
गुण – माधुर्य।
रस – शृंगार रस ।
छन्द-सवैया छंद ।
अलंकार – या मुरली मुरलीधर की इसमें अनुप्रास अलंकार तथा अधरान धरी अधरा न धरौंगी में यमक अलंकार ।

इसे भी पढ़े – up board class 10 hindi full solution chapter 1 सूरदास काव्य खण्ड के सभी पदों की हिंदी में सन्दर्भ सहित व्याख्या

UP board class 10 hindi full solution chapter 2 तुलसीदास वन पथ पर

HOME PAGE

How to download online Ayushman Card pdf 2024 : आयुष्मान कार्ड कैसे ऑनलाइन डाउनलोड करें

संस्कृत अनुवाद कैसे करें – संस्कृत अनुवाद की सरलतम विधि – sanskrit anuvad ke niyam-1

Garun Puran Pdf In Hindi गरुण पुराण हिन्दी में

Bhagwat Geeta In Hindi Pdf सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दी में

MP LOGO

2 thoughts on “UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 3 रसखान”

  1. Pingback: UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 4 BIHARILAL - UP Board INFO

  2. Pingback: up board class 10 hindi full solution chapter 6 mahadevi verma - UP Board INFO

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

join us
Scroll to Top