Most important shloka with hindi translate
अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः ।
सारन्ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाऽम्बुमध्यात् ।।
अर्थ:- शास्त्र का पार कहीं निश्चित नहीं है और मनुष्य की आयु कम है इसलिए सार ग्रहण कर सार हीन को उसी प्रकार छोड़ देना चाहिए, जिस प्रकार हंस जल से दूध ग्रहण कर लेते हैं और जल छोड़ देते हैं।
शस्त्रहता न हि हता रिपवो भवन्ति, प्रज्ञाहतास्तुरिपवः सुहता भवन्ति। शस्त्रं निहन्ति पुरुषस्य शरीरमेकं प्रज्ञा कुलञ्च विभवञच यशश्च हन्ति ।।
अर्थ:- शस्त्रों से मारे गये शत्रु नहीं मरते परन्तु बुद्धि से मारे गये शस्त्रु वास्तव में मारे जाते हैं। शस्त्र से तो शत्रु का मरकर मात्र शरीर ही नष्ट किया जा सकता है परन्तु बुद्धि से उसका वंश कुल, वैभव और यश आदि सब कुछ नष्ट हो जाता है।
दिनान्ते पिबेत् दुग्धम्, निशान्ते च पिबेत् पयः।
भोजनान्ते पिबेत् तक्रम् किं वैद्यस्य प्रयोजनम् ।।
अर्थ:- दिवस के अंत (शाम) में दूध पीना चाहिए, रात्रि के अंत में (सुबह) जल पीना चाहिए, भोजन के अंत में छाछ पीनी चाहिए। ऐसा करने से वैद्य की आवश्यकता नहीं है।
आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचारिभिः ।।
अर्थः शिष्य अपने जीवन का एक भाग अपने आचार्य से सीखता है, एक भाग अपनी बुद्धि से सीखता है एक भाग समय से सीखता है तथा एक भाग वह अपने सहपाठियों से सीखता है।
नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ।।
अर्थः विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तप नहीं है, राग के समान दुःख नहीं है, और त्याग के समान कोई सुख नहीं है।