UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 9 HINDI CHAPTER 8 UNHE PRANAM KAVY KHAND (SOHANLAL DWIVEDI)
8-- उन्हें प्रणाम (सोहनलाल द्विवेदी)
(क) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1– द्विवेदी जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर — – द्विवेदीजी का जन्म 22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी नामक स्थान पर हुआ था ।
2– द्विवेदी जी ने एल–एल–बी– की शिक्षा कहाँ से प्राप्त की ?
उत्तर — – द्विवेदी जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एल–एल–बी–की शिक्षा प्राप्त की ।
3– भारत सरकार ने द्विवेदी जी को किस उपाधि से सम्मानित किया ?
उत्तर — – भारत सरकार ने 1969 में द्विवेदी जी को पद्मश्री’ की उपाधि से सम्मानित किया ।
4– सोहनलाल द्विवेदी किस विचारधारा के कवि हैं ?
उत्तर — – सोहनलाल द्विवेदी गाँधीवादी विचारधारा के कवि हैं ।
5– द्विवेदी जी की प्रथम प्रकाशित रचना कौन-सी थी ?
उत्तर — – द्विवेदी जी की प्रथम प्रकाशित रचना ‘भैरवी’ थी ।
-1086– द्विवेदी जी की कविताओं का मुख्य विषय क्या है ?
उत्तर — – द्विवेदी जी की कविताओं का मुख्य विषय राष्ट्रीय उद्बोधन है ।
7– द्विवेदी जी के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव किसका पड़ा ?
उत्तर — – द्विवेदी जी के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव महात्मा गाँधी जी का पड़ा ।
8– ‘अधिकार’ पत्र के संपादक कौन थे ?
उत्तर — – ‘अधिकार’ पत्र के संपादक सोहनलाल द्विवेदी जी थे ।
(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न
1– ‘उन्हें प्रणाम’कविता के माध्यम से कवि किनके प्रति अपना प्रणाम अर्पित कर रहा है ?
उत्तर — – ‘उन्हें प्रणाम’ कविता के माध्यम से कवि महापुरुषों और स्वतंत्रता प्रेमियों के प्रति अपना प्रणाम अर्पित कर रहा है ।
2– कवि किस मंगलमय दिन को प्रणाम अर्पित करता है ?
उत्तर — – कवि उस मंगलमय दिन को प्रणाम अर्पित करता है, जब सबका कल्याण होगा और सब जगह पर्याप्त सुख और शांति का प्रसार हो जाएगा ।
3– कवि ने वंदनीय पुरुष किसे कहा है ?
उत्तर — – कवि ने उन लोगों को वंदनीय पुरुष कहा है जो देश के करोड़ों वस्त्रहीनों, भिक्षुओं के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हैं, जिनको गरीबों के साथ लज्जा नहीं आती, जो अपने मस्तक को ऊँचा उठाकर सताए हुए प्राणियों के हाथ को पकड़कर उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिए बढ़ते चले जाते हैं ।
4– कवि ने धीर पुरुष किसे कहा है ?
उत्तर — – देश की आजादी के लिए जेल के सींकचों में अपना जीवन बिताने वाले देशभक्तों को कवि ने धीर पुरुष कहा है ।
5– कविता के माध्यम से कवि की आशा का स्वरूप क्या है ?
उत्तर — – कविता के माध्यम से कवि की आशा का स्वरूप उन सभी महापुरुषों को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करना है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में किसी न किसी रूप में अपना योगदान दिया । कवि ने इस कविता के माध्यम से महापुरुषों, सत्पुरुषों, कवि, संगीतकार, क्रांतिकारियों, देशभक्तों, जनसेवकों आदि को प्रणाम करते हुए अपनी श्रद्धांजलि दी है ।
6– कवि ने अपने देश का स्वाभिमान किसे कहा है ?
उत्तर — – कवि ने उन महापुरुषों को जो देश का सोया गौरव जगाने में तल्लीन रहते हैं, जो अपने देश की सुंदर संस्कृति का ज्ञान कराते हैं, देश का स्वाभिमान कहा है ।
7– देशभक्तों द्वारा अपना सर्वस्व त्याग तथा नगर-नगर धूल छानने के पीछे क्या उद्देश्य है ?
उत्तर — – देशभक्तों द्वारा अपना सर्वस्व त्यागकर तथा नगर-नगर धूल छानने के पीछे उद्देश्य है कि वे जनता में मातृभूमि के प्रति ऐसा प्रेम जगाएँ, जिससे जनता अपनी भूल को समझ सके और अपने सोए हुए स्वाभिमान को जगाकर उनके साथ अपने कदम-से-कदम मिलाकर भारत को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान दे सके ।
(ग) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1– द्विवेदी जी का जीवन परिचय लिखिए ।
उत्तर — – सोहनलाल द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध कवि हैं । द्विवेदी जी हिंदी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए । ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया । महात्मा गाँधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं । 1969 में भारत सरकार ने आपको पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था ।
जीवन परिचय- 22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी नामक स्थान पर सोहनलाल द्विवेदी का जन्म हुआ । इनका परिवार एक संपन्न परिवार था । अत: बाल्यकाल से ही शिक्षा की समुचित व्यवस्था रही । हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये वाराणसी गए । वहाँ काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होंने एम–ए– तथा एल–एल–बी–की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की । इनके पिता का नाम श्री वृंदावन द्विवेदी था । कार्यक्षेत्र- सन् 1941 में देश-प्रेम से लबरेज ‘भैरवी’ उनकी प्रथम प्रकाशित रचना थी । उनकी महत्वपूर्ण शैली में ‘पूजागीत’, ‘युगाधार’, ‘विषपान’, ‘वासंती’, ‘चित्रा’ जैसी अनेक काव्य-कृतियाँ सामने आई थीं । उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन उसी समय हो गए थे, जब 1937 में लखनऊ से उन्होंने दैनिक पत्र ‘अधिकार’ का संपादन शुरू किया था । चार वर्ष बाद उन्होंने अवैतनिक संपादन के रूप में ‘बालसखा’ का संपादन भी किया । देश में बाल साहित्य के वे महान आचार्य थे ।
राष्ट्रीयता से संबंधित कविताएँ लिखने वालों में आपका स्थान अनन्य है । महात्मा गाँधी पर आपने कई भावपूर्ण रचनाएँ लिखी हैं, जो हिंदी जगत में अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं । आपने गाँधीवाद के भावतत्व को वाणी देने का सार्थक प्रयास किया है तथा अहिंसात्मक क्रांति के विद्रोह व सुधारवाद को अत्यंत सरल, सबल और सफल ढंग से काव्य बनाकर ‘जन साहित्य’ बनाने के लिए उसे मर्मस्पर्शी और मनोरम बना दिया है । द्विवेदी जी पर लिखे गए एक लेख में अच्युतानंद मिश्र जी ने लिखा है-”मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी या सोहनलाल द्विवेदी राष्ट्रीय नवजागरण के उत्प्रेरक ऐसे कवियों के नाम हैं, जिन्होंने अपने संकल्प और चिंतन, त्याग और बलिदान के सहारे राष्ट्रीयता की अलख जगाकर, अपने पूरे युग को आंदोलित किया था, गाँधी जी के पीछे देश की तरुणाई को खड़ा कर दिया था । सोहनलाल जी उस श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी थे ।
डा–हरिवंशराय बच्चन ने एक बार लिखा था”जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वे सोहनलाल द्विवेदी थे । गाँधी जी पर केंद्रित उनका गीत ‘युगावतार’ या उनकी चर्चित कृति ‘भैरवी’ की यह पंक्ति ‘वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहाँ बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो’ में कैद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सबसे अधिक प्रेरणा गीत था । सन् 1988 ई–में सोहनलाल द्विवेदी जी का देहावसान हो गया ।
2– सोहनलाल द्विवेदी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालते हुए हिंदी साहित्य में उनका स्थान निर्धारित कीजिए ।
भाषा-शैली- सोहनलाल द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध, परिमार्जित व सरल खड़ीबोली है । इन्होंने मुहावरों तथा व्यावहारिक शब्दावली का यथास्थान प्रयोग किया है । कविता में व्यर्थ के अलंकारों का प्रदर्शन नहीं है । कुछ स्थानों पर उर्दू तथा संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है । उन्होंने काव्य-सृजन के लिए प्रबंध व मुक्तक दोनों ही शैलियों को अपनाया है । इनकी शैली में प्रवाह और रोचकता है । राष्ट्रीय कविताएँ ओजपूर्ण हैं । हिंदी साहित्य में स्थान- अपनी ओजपूर्ण राष्ट्रीय कविताओं के माध्यम से सुप्त भारतीय जनता को जागरण का संदेश देने वाले कवियों में सोहनलाल द्विवेदी का विशिष्ट स्थान है । गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर द्विवेदी जी ने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया और राष्ट्रीय भावना प्रधान रचनाओं के लिए कवि सम्मेलनों में सम्मानित हुए । द्विवेदी जी की कविताओं का मुख्य विषय ही राष्ट्रीय उद्बोधन है । खादी-प्रचार, ग्राम-सुधार, देशभक्ति, सत्य, अहिंसा और प्रेम द्विवेदी जी की कविताओं के मुख्य विषय हैं । इनकी गणना राष्ट्रीयता एवं स्वदेश-प्रेम का शंख फूंकने वाले प्रमुख कवियों में की जाती है ।
3– सोहनलाल द्विवेदी की कविता उन्हें प्रणाम’ का सारांश लिखिए ।
उत्तर — – उन्हें प्रणाम कविता में राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी जी ने राष्ट्र के उन सभी महापुरुषों को नमन किया है, जिन्होंने किसी भी रूप में भारत देश की स्वतंत्रता में योगदान दिया । कवि ने सर्वप्रथम उन महापुरुषों को नमन किया है, जिनका हृदय निर्धन और साधनहीन व्यक्तियों के आँसुओं से बिंध गया और जो गरीबों के साथ रहने में लज्जा का अनुभव नहीं करते । कवि ने उन सत्पुरुषों का वंदन किया है, जो शोषित प्राणियों के हाथ को पकड़कर उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिए बढ़ते चले जा रहे हैं । कवि ने कवियों, संगीतकारों व साहित्यकारों को प्रणाम किया है, जिनके गीतों, कविताओं और संगीत से मन को शांति मिलती है । कवि ने उन क्रांतिकारियों का वंदन किया है, जो हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं । दूसरे व्यक्तियों के घावों पर मरहम लगाने वाले दयालु व्यक्तियों का भी कवि अभिनंदन करता है । कवि उन परोपकारी व्यक्तियों को जिनके सामने स्वार्थ का कोई मूल्य नहीं है, जो दूसरों के लिए अपना सुख छोड़कर दो सूखी रोटियाँ खाकर सदैव सत्य की खोज में लगे रहते हैं और जो दुःखी प्राणियों की रक्षा करते हैं, जिनके क्रोध का आलंबन क्रूर व दुष्ट प्राणी बनते हैं, अपना प्रणाम अर्पित करता है ।
कवि निर्धनों व निर्बलों की सहायता करने वाले नेताओं को भी प्रणाम करता है । जिनके मन में मातृभूमि के लिए असीम प्रेम है और युवावस्था में ही वैराग्य को धारण करके सोई हई जनता को जगाने के लिए नगर-नगर व गाँव-गाँव फिरते हैं, उन देशभक्तों को कवि हृदय से प्रणाम करता है । कवि उन जनसेवकों को प्रणाम करता है, जिन्हें नमक व रोटी भी प्राप्त नहीं होती परंतु वे ज्ञानी व अज्ञानी व्यक्तियों को जगाने के लिए फेरी लगाते रहते हैं । द्विवेदी जी राष्ट्र के उन स्वाभिमानी देशभक्तों को प्रणाम करते हैं, जो राष्ट्र के सोए हुए गौरव को जगाते हैं । कवि उन महापुरुषों को प्रणाम करता है जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उन्हें कारागार में डाल दिया गया, सींकचों और जंजीरों में जकड़ दिया गया । देश के लिए उन्होंने हथकड़ियाँ पहनी तथा बेतों की मार सहन की, परंतु वे स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे और उन्होंने आजादी की पुकार नहीं छोड़ी । कवि ने उन वीर पुरुषों के चरणों में प्रणाम किया है, जो हँसते-हँसते सूली को चूमकर फाँसी के तख्ते पर चढ़ जाते हैं । कवि ने उन भोले-भाले वीरों की वंदना की है, जिन्हें जीवित दीवार में चुनवा दिया गया । कवि कहते हैं कि हमें ऐसे ही महापुरुषों के कारण वर्तमान का सुख मिला है । दिव्य एवं मंगलकारी भविष्य भी उन्हीं के कारण आएगा । इन महापुरुषों के बलिदान की अग्नि में सारे पाप भस्म हो जाएँगे । कवि उस दिन को करोड़ों प्रणाम करता है जब सबका कल्याण होगा और सर्वत्र पर्याप्त सुख और शांति का प्रसार हो जाएगा ।
4– द्विवेदी जी की कृतियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर — – कृतियाँ- द्विवेदी जी के काव्य-संग्रहों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
(अ) भैरवी- स्वदेश-प्रेम के भावों की प्रधानता
(ब) वासवदत्ता- भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव का भाव
(स) कुणाल- ऐतिहासिक आधार पर लिखा गया प्रबंध-काव्य
(द) पूजा के स्वर- इसके माध्यम से कवि ने जनता में जागृति उत्पन्न करते हुए युग-प्रतिनिधि कवि के रूप में कार्य किया । इनकी राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत अन्य रचनाएँ हैं
पूजागीत, विषपान, युगाधार, वासंती, चित्रा, प्रभाती, चेतना, जय भारत जय ।
(य) बाल पुस्तकें- बाँसुरी और झरना, बच्चों के बापू, दूध-बताशा, बाल-भारती, नेहरू चाचा, हँसो-हँसाओ, शिशु भारती ।
(ङ) पद्यांश व्याख्या एवं पंक्ति भाव
1– निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए और इनका काव्य सौंदर्य भी स्पष्ट कीजिए
(अ) भेद गया———-ज्ञात नहीं हैं जिनके नाम! उन्हें प्रणाम!
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी’ के ‘काव्यखंड’ में संकलित ‘सोहनलाल द्विवेदी’ द्वारा रचित ‘जय भारत जय’ काव्य संग्रह से उन्हें प्रणाम’ शीर्षक से उद्धृत है ।
प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि उन अज्ञात देशभक्तों की वंदना करता है, जिन्होंने मातृभूमि के कल्याण और दीन-दुःखियों की सेवा के लिए अपने समस्त सुखों को न्योछावर कर दिया है ।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं उन महापुरुषों को प्रणाम करता हूँ, जिनका हृदय दीन-दुःखियों के नेत्रों में आँसू देखकर पीड़ित हो जाता है । जो लोग असहायों और दीनों के बीच बैठकर सेवा करने में तनिक भी लज्जा का अनुभव नहीं करते; अर्थात् जो लोग दीन-दु:खियों को देखकर नि:संकोच उनकी सेवा करने लगते हैं, उन लोगों को चाहे किसी भी स्थान में किसी भी ढंग से रहना पड़े, वे हर परिस्थिति में दीन-हीनों की सेवा में जुटे रहते हैं । दया, प्रेम, सहानुभूति आदि मानवीय गुणों की स्थापना करना उनका लक्ष्य रहता है । ऐसे अनेक महापुरुष हो चुके हैं, जिनके नामों का भी पता नहीं है; क्योंकि वे प्रसिद्धि और यश-प्राप्ति से दूर रहकर मानव-सेवा में लगे रहते हैं । ऐसे महापुरुषों को मैं प्रणाम करता हूँ, उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ कवि ने मानवता को स्थापित करने वाले ज्ञात और अज्ञात सभी महापुरुषों को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए हैं । 2– भाषा- सरल, सुबोध खड़ीबोली 3– रस- शांत 4– गुण- प्रसाद 5– अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास ।
(ब) मरण मधुर———— ———-मेरे कोटि प्रणाम!
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि ने वंदना करने योग्य देशभक्तों को नमन करते हुए उनके देशप्रेम का वर्णन किया है कि उन्हें देशप्रेम में मृत्यु भी वरदान के समान लगती है ।
व्याख्या- कवि उन क्रांतिकारियों को प्रणाम करता है, जिन्हें देशहित में मृत्यु भी ऐसी लगती है, जैसे कोई वरदान मिल गया हो । इन क्रांतिकारियों को मृत्यु का भय कभी भी दुःख नहीं दे सकता । क्रांतिकारी तो मृत्यु का वरण हँस-हँसकर लेते हैं और मदभरी मुसकान के साथ फाँसी के फंदे पर झूल जाते हैं । कवि उन महापुरुषों को भी प्रणाम करता है, जो संसार में अन्याय के प्रसार और उसकी छत्रछाया सहन नहीं किया करते और जिनका शुभ-संकल्प यही रहता है कि इस अन्याय के विरुद्ध लड़ा जाए । ऐसे महापुरुषों के प्राण बलिवेदी पर चढ़ जाने को तत्पर रहते हैं । कवि ने अंत में उन सहृदयजनों को प्रणाम किया है, जो ऐसे-ऐसे काम करते हैं जिनसे घावों पर मरहम लगे । ऐसे सहृदयों के हृदय को कवि करोड़ों बार प्रणाम अर्पित करता है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– इन पंक्तियों में कवि ने उन देशभक्तों का स्मरण किया है, जो अपने सुख की चिंता किए बिना अपने देश-जाति के लिए हर बलिदान करने को तत्पर रहते हैं । 2– भाषा- साहित्यिक हिंदी 3– रस- वीर 4– गुण- ओज
5– अलंकार- अनुप्रास एवं श्लेष ।
(स) मातृभूमि का————————————————कोटि प्रणाम!
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि उन लोगों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है, जिन्होंने अपने समस्त सुखों को न्योछावर कर मातृभूमि की सेवा की है ।
व्याख्या– कवि उन लोगों को प्रणाम करता है, जिन महापुरुषों के हृदय में मातृभूमि के प्रति ऐसा असीम प्रेम उत्पन्न हुआ था, जिसके कारण अपने सब सुखों को त्यागकर उन्होंने अपनी युवावस्था में ही वैराग्य ले लिया था । उन्होंने नगर-नगर और ग्राम-ग्राम में घूम-घूमकर जनता में मातृभूमि के प्रति ऐसा प्रेम जगाया था, जिससे जनता अपनी भूल को समझ सके और परतंत्रता की नींद को छोड़कर मातृभूमि के उद्धार के लिए कदम उठा सके । जिन लोगों को समाज ने इतना गरीब बना दिया है कि उन्हें पेट भरने के लिए नमक और रोटी तक नसीब नहीं होती, वे अज्ञानी और मूर्ख ही बने रह जाते हैं । इनको ज्ञान देना और इनमें जागरूकता पैदा करना ऐसे-वैसों का काम नहीं है । लेकिन जो विद्वान ऐसे मूों की अज्ञानता दूर कर उनमें ज्ञान और जागरूकता भरने के लिए रात और दिन, सुबह और शाम चक्कर लगाते रहते हैं, निश्चय ही वे सत्पुरुष वंदनीय हैं । जो महापुरुष देश का सोया गौरव जगाने में तल्लीन रहते हैं, जो अपने देश की सुंदर संस्कृति का ज्ञान कराते हैं, वे सत्पुरुष देश के स्वाभिमान हैं, देश को उन पर गर्व है और वे वंदनीय हैं, अभिनंदनीय हैं । कवि उन्हें करोड़ों बार प्रणाम करता है ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– राष्ट्रभक्तों के दुर्गम एवं कठिन साधनायुक्त जीवन के प्रति भक्तिभाव स्पष्ट हुआ है । 2– क्रांतिकारियों एवं राष्ट्रभक्तों के प्रति यहाँ श्रद्धाभाव का भावात्मक स्वरूप दृष्टष्य है । 3– भाषा-साहित्यिक हिंदी 4–रस- शांत, 5–गुण प्रसाद 6– अलंकार- अनुप्रास तथा पुनरुक्तिप्रकाश ।
(द) जो फाँसी के——————————————————-सुख शांति प्रकाम!
संदर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- कवि ने उन बलिदानी वीरों के प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए हैं जिनके कारण मंगलमय युग की प्राप्ति संभव हुई ।
व्याख्या– कवि उन साहसी देशभक्तों को प्रणाम करता है, जो प्रसन्नतापूर्वक फाँसी के तख्तों पर चढ़कर (भगत सिंह की तरह) हँसते-हँसते सूली को चूम लेते हैं । अपने प्रण की रक्षा के लिए भोले-भाले बालक (गुरु गोविंद सिंह के बच्चों की तरह) जिंदा ही दीवार में (औरंगजेब के द्वारा) चिनवा दिए जाते हैं, परंतु अपनी टेक नहीं छोड़ते । कवि उन वीर पुरुषों के प्रति भी श्रद्धा से नमन करता है, जिन्होंने प्रसन्नता से जहर के धुएँ को पी लिया और काल-कोठरी में अपना जीवन व्यतीत करते रहे । कवि आगे कहता है कि वह उन्हें श्रद्धा से प्रणाम करता है, जिनके महान कार्यों के कारण यह वर्तमान का सुंदर समय (आजादी) देखने का अवसर मिला तथा आने वाला भविष्य भी अलौकिक व मंगलमय होगा । उन पवित्र आत्मा वाले पुरुषों के बलिदान की पवित्र अग्नि में जलकर सभी पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते हैं, जैसे यज्ञ की पवित्र अग्नि में हवनसामग्री । कवि उन महान् राष्ट्रभक्तों को भी अपना प्रणाम अर्पित करता है जो ऐसे नवयुग का निर्माण करेंगे, जिसके प्रारंभ होते ही सभी स्वतंत्र होंगे, सभी सुखी हो जाएंगे और पृथ्वी पर चारों ओर सुख-समृद्धि का वातावरण हो जाएगा । वह नवयुग उस नए वातावरण को उत्पन्न कर देगा, जो सभी के लिए कल्याणकारी होगा । कवि आने वाले उस मंगलकारी दिन को करोड़ों बार अपना प्रणाम करता है जिस दिन सबका कल्याण होगा, जिसमें सभी प्रकार के सुख और पूर्ण शांति होगी ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने देश के लिए फाँसी पर चढ़ जाने वाले क्रांतिकारियों का स्मरण किया है ।
2– दीवारों में चुनवा दिए जाने का संकेत देकर कवि ने गुरु गोविंद सिंह के उन दो मासूम पुत्रों की ओर संकेत किया है, जिन्हें औरंगजेब ने दीवार में चुनवा दिया था ।
3– कवि आन पर अपने प्राण न्योछावर करने वालों के प्रति प्रणाम अर्पित करता है ।
4– कवि उस मंगलमय दिन को प्रणाम करता है, जब सर्वत्र सुख और समृद्धि का वातावरण होगा ।
5– भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली
6– रस- वीर, शांत
7– गुण- ओज तथा प्रसाद
8– अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश, रूपक तथा यमक ।
2– निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(अ) किसी देश में किसी वेश में करते कर्म, मानवता का संस्थापन ही है जिनका धर्म!
भाव स्पष्टीकरण- कवि का तात्पर्य है कि महापुरुषों का हृदय दीन-दुःखियों के नेत्रों में आँसू देखकर दुःखी हो जाता है । उन लोगों को चाहे किसी भी स्थान पर किसी भी ढंग में रहना पड़े, वे हर परिस्थिति में दीन-हीनों की सेवा में जुटे रहते हैं । दया, प्रेम, सहानुभूति आदि मानवीय गुणों की स्थापना करना ही उनका उद्देश्य होता है ।
(ब) मातृभूमि का जगा जिन्हें ऐसा अनुराग, यौवन में ही लिया जिन्होंने है वैराग ।
भाव स्पष्टीकरण- यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि महापुरुष ऐसे होते हैं, जिनके हृदय में मातृभूमि के लिए असीम प्रेम
है और जिन्होंने युवावस्था में ही संसार के सुखों का त्याग करके वैराग्य धारण कर लिया है अर्थात् देश की सोई जनता के हृदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम जगाने के लिए उन्होंने अपने सुखों का त्याग कर दिया ।
(ङ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1– सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् है
(अ) सन् 1915 ई–में (ब) सन् 1907 ई–में (स) सन् 1909 ई–में (द) सन् 1906 ई० में
उत्तर— (द) सन् 1906 ई०
2– ‘प्रभाती’काव्य-संग्रह के रचयिता हैं
(अ) रहीम (ब) महादेवी वर्मा (स) सोहनलाल द्विवेदी (द) निराला जी
(स) सोहनलाल द्विवेदी
3– सोहनलाल द्विवेदी का प्रथम काव्य-संग्रह है
(अ) बाँसुरी (ब) चेतना (स) पूजागीता (द) भैरवी
(द) भैरवी
4– द्विवेदी जी की कृति है
(अ) बच्चों के बापू (ब) प्रिय-प्रवास (स) चुभते चौपदे (द) प्रेम-माधुरी
(अ) बच्चों के बापू
5– द्विवेदी जी की कृति नहीं है
(अ) दूध-बताशा (ब) कामायनी (स) पूजागीत (द) वासंती
(ब) कामायनी
(घ) काव्य सौंदर्य एवं व्याकरण-बोध
1– निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए
राजा ———— नृप, भूपति ।
जन———— –मनुष्य, व्यक्ति ।
दीन ———— दरिद्र, निर्धन ।
मुख———— मुँह, आनन ।
जगत ———— – संसार, लोक ।
2– निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
शब्द……………………..विलोम
अक्षय……………………..क्षय
उन्नत……………………..अवनत
स्वदेश……………………..विदेश
जय…………………….. पराजय
विष……………………..अमृत
कर्मठ……………………..अकर्मठ
अधीर……………………..धीर
शांति……………………..अशांति
क्रूर……………………..दयावान
स्वतंत्र……………………..परतंत्र
3– निम्नलिखित शब्दों की संधि विच्छेद कीजिए
संधि शब्द……………………..संधि विच्छेद
स्वाभिमान……………………..सु + अभिमान
निर्धन……………………..निः + धन
निर्बल……………………..निः + बल
सर्वोदय……………………..सर्व + उदय
अनागत……………………..अन+आगत
अत्याचार……………………..अति + आचार
सत्पुरुष……………………..सद् + पुरुष
4– निम्नलिखित शब्दों से विशेषण-विशेष्य छाँटिए
शब्द ……………………..विशेषण
नवयुग ……………………..नव
मरण-मधुर……………………..मधुर
बंद सींकचों…………………….. बंद
नव प्रभात…………………….. नव
5– निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार स्पष्ट कीजिए
(अ) उस आगत को जो कि अनागत दिव्य भविष्य ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है ।
(ब) मरण मधुर बन जाता है जैसे वरदान ।
उत्तर — – प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है ।
6– निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) कोटि-कोटि नंगों,भिखमंगों के जो साथ ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– जो व्यक्ति दीन दुःखियों के साथ रहकर उनकी सेवा करते हैं, वे वंदनीय होते हैं । 2– भाषा
साहित्यिक खड़ीबोली 3– रस- शांत 4–गुण-प्रसाद 5– अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश ।
(ब) बार-बार बलिदान चढ़े प्राणों को वार ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ कवि बलिदानी देशभक्त वीरों की वंदना करता है । 2– भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली 3– रस
वीर 4–गुण- ओज 5– अलंकार- पुरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास ।
(स) नगर-नगर की ग्राम-ग्राम की छानी धूल ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने जन जागृति उत्पन्न करने वाले महापुरुषों का वर्णन किया है । 2– भाषा-साहित्यिक हिंदी
3– रस-शांत 4– गुण- प्रसाद 5–अलंकार- पुरुक्तिप्रकाश ।
(द) जंजीरों में कसे हुए सिकचों के पार ।
काव्यगत सौंदर्य- 1– यहाँ कवि ने देशप्रेम के लिए कारागारों में बंद देशभक्तों का वंदन किया है । 2– भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली 3– रस- वीर 4– गुण- ओज ।
(य) जो फाँसी के तख्तों पर जाते हैं झूम ।
जो हँसते-हँसते शूली को लते हैं चूम । काव्यगत सौंदर्य- 1– कवि ने देशप्रेम के लिए फाँसी पर चढ़ जाने वाले महान क्रांतिकारियों (भगत सिंह, सुखदेव आदि) का स्मरण किया है । 2– भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली 3– रस- वीर 4– गुण- ओज 5– अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास ।
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