up board class 10 social science full solution chapter 44 सेवाएँ (परिवहन, दूरसंचार, व्यापार)

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प्रश्न—-1 “परिवहन के साधन अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा कहलाते हैं ।” स्पष्ट कीजिए ।


उत्तर– परिवहन के साधनों से अभिप्राय उन साधनों से है, जो व्यक्तियों, सामानों तथा समाचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं । परिवहन तृतीयक क्षेत्र की महत्वपूर्ण सेवा है । परिवहन के साधनों में मानव-शक्ति, पशु-शक्ति तथा यांत्रिक-शक्ति के परिवहन साधनों को सम्मिलित किया जाता है । परिवहन के ये साधन किसी देश के सामाजिक, आर्थिक एवं औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं । इसलिए परिवहन के साधन किसी देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा कहलाते हैं ।


प्रश्न—-2 भारत में सड़क परिवहन रेल परिवहन की अपेक्षा क्यों महत्वपूर्ण है? एक कारण लिखिए ।


उत्तर— यद्यपि रेल परिवहन, सड़क परिवहन की तुलना में सस्ता है किंतु सड़क परिवहन की कुछ अलग विशेषताएँ एवं महत्व हैं जिनके कारण यह रेलों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।


(i) सड़कों का निर्माण रेलमार्गों की अपेक्षा सस्ता पड़ता है । इसके रख-रखाव में भी अपेक्षाकृत कम खर्च आता है ।


(ii) सड़क निर्माण किसी भी प्रकार के धरातल; जैसे–मैदानी, पर्वतीय, पठारी, मरुस्थलीय, ढालू, बीहड़ और ऊँची-नीचीभूमि पर भी संभव है, जबकि रेलमार्गों का निर्माण ऊँचे पर्वतीय एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में संभव नहीं ।


(iii) रेलें केवल निर्धारित स्थानों पर बने स्टेशनों पर ही रूकती हैं जबकि सड़कें व्यक्ति व उसके सामान को घर के द्वार तक छोड़ सकती हैं ।


(iv) उद्योगों अथवा निर्माण केंद्रों में उत्पादित वस्तुओं को सड़कें सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाती हैं, जब कि रेलों द्वारा वस्तुओं को केवल रेलवे स्टेशनों तक ही पहुँचाया जाता है जिससे उन्हें गंतव्य स्थान तक पहुँचने के लिए पुनः उतारना
या चढ़ाना पड़ता है । इससे वस्तुओं के टूटने-फूटने का खतरा बना रहता है ।


(v) सड़क यातायात इच्छानुसार कभी भी संभव है जब कि रेलों का आवागमन तथा संचालन नियत समय के अनुसार ही होता है ।

(vi) छोटी दूरी की यात्राओं के लिए सड़क परिवहन ही उपयुक्त होता है जबकि रेलों में ऐसी सुविधा नहीं है ।


प्रश्न—-3. स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना बनाने के दो उद्देश्य लिखिए ।


उत्तर— स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना बनाने के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ।
(ii) देश के चार महानगरों- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को छः लेन वाले राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़ना ।


प्रश्न—-4. देश के आर्थिक विकास में रेलमार्गों के योगदान का वर्णन कीजिए ।


उत्तर— भारत के आर्थिक विकास में रेलमार्गों का योगदान- भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था के सुदृढीकरण में रेल परिवहन ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । भारतीय अर्थव्यवस्था में रेलों की महत्व को निम्नलिखित रूप से अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।


(i) रेल परिवहन ने भारत की कृषि के विकास में योगदान करके राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया है ।

(ii) रेल परिवहन ने उद्योगों की स्थापना में योगदान देकर, भारत को औद्योगिक क्षेत्र में संपन्न बना दिया है ।


(iii) रेल परिवहन द्वारा लकड़ी, कोयला तथा अन्य खनिजों का परिवहन सस्ता एवं सुगम है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन में तेजी आई है ।


(iv) रेल परिवहन ने तैयार और कच्चे मिल को मंडियों तक तथा बंदरगाहों तक पहुँचाकर व्यापार को बढ़ावा दिया है ।


(v) रेल परिवहन ने लाखों लोगों को नौकरियाँ, व्यापार तथा अन्य प्रकार से लाभ पहुँचाकर राष्ट्रीय आय को बढ़ा दिया है ।


(vi) रेल परिवहन ने उद्योगों के विकेंद्रीकरण में सहयोग देकर राष्ट्र के संतुलित विकास का मार्ग खोल दिया है ।


(vii) रेल परिवहन ने डाक व्यवस्था को सुचारु बनाकर, श्रम की गतिशीलता बढ़ाकर तथा पर्यटन को बढ़ावा देकर राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से संपन्न बना दिया है ।

प्रश्न—-2 स्थल या भूतल परिवहन के दो प्रकारों का वर्णन कीजिए ।


उत्तर— स्थल या भूतल परिवहन के दो प्रकार निम्नलिखित हैं।


सड़क परिवहन- धरातल पर कच्ची तथा पक्की सड़कें बनाकर बस, कार, ट्रक, स्कूटर, ट्रैक्टर तथा बैलगाड़ी द्वारा यात्रा करने और सामान ढोने के व्यवस्था-तंत्र को सड़क परिवहन कहा जाता है । भारत ने देश में सड़क तंत्र का विकास करके सड़कों का 46.90 लाख किमी० लंबा जाल फैला लिया है । इस समय देश में कुल यात्री यातायात का 85% तथा माल परिवहन का 70% सड़क परिवहन द्वारा ही संपन्न होता है । सड़कों की कुल लंबाई की दृष्टि से महाराष्ट्र राज्य प्रथम स्थान पर है, जहाँ सड़कों की कुल लंबाई 3,61,893 किमी० है । प्रबंध की दृष्टि से भारतीय सड़कों को निम्नवत वर्गीकृत किया गया है


(i) राष्ट्रीय राजमार्ग
(ii) प्रदेशीय राजमार्ग
(iii) जिला सड़कें
(iv) ग्रामीण सड़कें


रेल परिवहन- भूतल परिवहन के क्षेत्र में रेल परिवहन का विशेष स्थान है । लोहे की पटरियों पर द्रुत गति से सरपट दौड़ने वाली रेलगाड़ियाँ, रेल परिवहन तंत्र का निर्माण करती हैं । भारत में प्रथम रेलगाड़ी 16 अप्रैल, 1853 ई० में मुंबई से ठाणे स्टेशनों के बीच केवल 34 किमी० के छोटे से रेलमार्ग पर चलाई गई थी । वर्तमान समय में भारतीय रेल परिवहन तंत्र एशिया महाद्वीप में प्रथम तथा विश्व में द्वितीय स्थान पर है । सन् 2012 तक भारत में रेलवे स्टेशनों की संख्या 7146 तथा कुल रेलमार्गों की लंबाई 64,600 किमी० थी जिसमें 55,956 किमी० ब्रॉड गेज (बड़ी) लाइनें, 6,347 किमी० मीटर गेज लाइनें तथा 2,297 किमी० लंबी नैरो गेज (छोटी) लाइनें थीं ।

रेलवे भारत का सबसे बड़ा सरकारी प्रतिष्ठान है । भारत में समस्त रेलमार्गों के 45% भाग का विद्युतिकरण कर दिया गया है । सभी बड़े स्टेशन कंप्यूटर नेटवर्क्स से जोड़ दिए गए हैं । भारत में राजधानी एक्सप्रेस, जन शताब्दी, दूरंतो गाड़ियों के साथ-साथ बुलट ट्रेन चलाने की योजनाएँ भी बनाई जा रही हैं । महानगरों में चलने वाली मैट्रो ट्रेन परिवहन के महत्व के कारण इन नगरों की जीवन रेखा बन गई है । भारतीय रेल संस्थान देश के 16 लाख लोगों को रोजगार देकर राष्ट्रीय आय में अपना भारी योगदान दे रहा है ।


प्रश्न—-6. परिवहन सेवा के तीन भागों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।

उत्तर— परिवहन सेवा के तीन भाग निम्नलिखित हैं
(i) स्थल परिवहन
(क) सड़क परिवहन
(ख) रेल परिवहन
(ग) पाइप लाइन परिवहन
(ii) जल परिवहन
(क) अंतर्देशीय जल परिवहन
(ख) महासागरीय अंतर्राष्ट्रीय जल परिवहन
(iii) वायु परिवहन
(क) अंतर्देशीय वायु परिवहन
(ख) अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन


प्रश्न—-7. संचार के साधन क्या हैं? संचार के चार साधनों के नाम लिखिए ।


उत्तर— विचारों और संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने वाले उपकरण संचार के साधन कहलाते हैं । संचार के चार
साधन निम्नलिखित हैं
(i) डाक सेवाएँ
(ii) टेलीफोन
(iii) रेडियो
(iv) कंप्यूटर


प्रश्न—- 8. विदेशी व्यापार में आयात-निर्यात को स्पष्ट कीजिए ।


उत्तर— आयात-निर्यात- देश की भौगोलिक सीमाओं के पार दो या दो से अधिक देशों के मध्य वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकी का आयात-निर्यात विदेशी या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है । विदेशी व्यापार के दो घटक आयात और निर्यात हैं । दूसरे देशों से माल मँगाना आयात कहलाता है तथा दूसरे देशों को माल भेजना निर्यात कहलाता है ।


प्रश्न—-9. भारत के आयात की चार प्रमुख वस्तुओं के नाम लिखिए ।


उत्तर— भारत के आयात की चार प्रमुख वस्तुएँ निम्नलिखित हैं
(i) खनिज तेल
(ii) इस्पात निर्मित सामान
(iii) रेडियो
(iv) कागज

प्रश्न—- भारत के चार रेल मंडलों के नाम लिखिए ।
उत्तर— भारत के चार रेल मंडलों के नाम निम्नलिखित हैं(i) उत्तर रेलवे
(ii) पूर्वी रेलवे
(iii) उत्तर-पूर्वी सीमांत रेलवे
(iv) पश्चिम रेलवे

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प्रश्न—-1. भारतीय सड़कों के प्रकार एवं उनके महत्व पर प्रकाश डालिए ।


उत्तर— प्रबंध की दृष्टि से भारतीय सड़कों को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।


(i) राष्ट्रीय राजमार्ग- राज्यों की राजधानियों, व्यापारिक केंद्रों, वायु अड्डों तथा बंदरगाहों को जोड़ने वाली सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाती हैं । इनका निर्माण तथा रख रखाव केंद्रीय सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है । इन्हें हाईवे के रूप में चार या छः लेन में बनाया गया है । भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 79,116 किमी० है । ये राजमार्ग कुल सड़क परिवहन का लगभग 40% भाग वहन करते हैं । देश में कुल 77 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं देश का सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग एन०एच०- 7 है, जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक 2,369 किमी० लंबा है । ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था जो कोलकाता से अमृतसर तक जाती है ।

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(ii) प्रदेशीय राजमार्ग- राष्ट्रीय राजमार्गों, मुख्य व्यापारिक केंद्रों तथा राज्य के प्रमुख नगरों को जोड़ने वाली सड़कें
प्रदेशीय राजमार्ग कहलाती हैं । इनका निर्माण तथा रखरखाव राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है ।
वर्तमान में इन सड़कों की कुल लंबाई 1,55,716 किमी० है ।
(iii) जिला सड़कें- जिला तथा जिले के प्रमुख नगरों को अन्य जिलों से जोड़ने वाली सड़कें जिला सड़कें कहलाती हैं ।
I’ve व्यवस्था जिला प्रशासन करता है । वर्तमान में जिला सड़कों की अन्य सड़कों की कुल लंबाई 44,55000 किमी० है।


(iv) ग्रामीण सड़कें- एक गाँव को दूसरे गाँव तथा उन्हें कस्बों और नगरों से जोड़ने वाली कच्ची तथा पक्की सड़कें
ग्रामीण सड़कें कहलाती हैं । इनकी व्यवस्था तथा देखभाल ग्राम पंचायतों द्वारा की जाती है । उपर्युक्त चार प्रकार की सड़कों के अतिरिक्त, सीमावर्ती क्षेत्रों में भी सड़कों का निर्माण किया जाता है, जिसे सीमावर्ती सड़क विकास संगठन की देख-रेख में किया जाता है ।

प्रश्न—-2. भारत के आर्थिक विकास में रेलमार्गों के महत्व पर प्रकाश डालिए ।


उत्तर— भारत के आर्थिक विकास में रेलमार्गों का महत्व- भारत में रेल-प्रणाली के विकास एवं विस्तार के परिणामस्वरूप क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं । देश की विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था में परिवहन की आवश्यकताओं को पूरा करने में इसने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । भारतीय अर्थव्यवस्था में रेलों के महत्व का विवरण नीचे प्रस्तुत है।


(i) कृषि का प्रभाव- रेल परिवहन के विकास से भारतीय कृषि को निम्न लाभ प्राप्त हुए हैं


(क) व्यापारिक कृषि को प्रोत्साहन- अब किसान उन वस्तुओं का उत्पादन करने में लगे हैं जिनकी माँग देश के विभिन्न भागों में ही नहीं वरन् विदेशों में भी है । रेलों के विस्तार से कपास, गन्ना, जूट, तिलहन, चाय आदि नकद फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिला है ।


(ख) बाजारों का विस्तार- कृषि-पदार्थों के बाजार विस्तृत हो गए हैं । अब कृषि-उत्पादों की बिक्री विदेशों में भी होने लगी है ।

(ग) नाशवान वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि- रेल परिवहन के विकास में घी, दूध, फल, शाक-सब्जी, अंडे __ आदि नाशवान वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा है । अब ऐसी वस्तुओं को शीघ्रातीशीघ्र दूर स्थित विभिन्न बाजारों में पहुँचा दिया जाता है ।


(घ) कृषि-उत्पादन में वृद्धि- रेलों के विकास से अब किसानों को उन्नत बीज, रासायनिक खाद, कृषि-यंत्र आदि समय पर मिल जाते हैं जिससे कृषि-उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है ।


(ङ) कृषि-विधियों में सुधार- रेल-सुविधाएँ उपलब्ध होने से ग्रामीण लोग दूर-दूर लगने वाले कृषि मेलों तथा प्रदर्शनियों में जाने लगे हैं जिससे उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है
(च) कृषकों के रहन-सहन में सुधार- कृषि के व्यापारीकरण तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि होने से कृषकों की आय में वृद्धि हुई है जिससे उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है ।


(छ) कुटीर व ग्राम उद्योगों का विकास- रेलों के विकास से इन उद्योगों को कच्च माल, औजार, मशीनें आदि साधन उचित समय तथा कीमत पर मिल जाते हैं । रेलों द्वारा इन उद्योगों में निर्मित माल को दूर स्थित बाजारों में पहुँचाया जाता है ।


(ज) दुर्भिक्ष की संभावनाओं में कमी- अब मालगाड़ियों से खाद्य-पदार्थों को शीघ्रता से कमी वाले स्थानों में
पहुँचा दिया जाता है । इससे दुर्भिक्ष (famines) की संभावनाएँ एकदम कम हो गई हैं ।


(ii) वन संपदा का अधिक उपयोग- देश के वन-क्षेत्रों तक रेल सुविधाओं के विकास एवं विस्तार से अब वन संपदा का पहले से कहीं अधिक तथा समुचित उपयोग हो पा रहा है । वनों की लकड़ी को रेलों की सहायता से उत्पादक एवं उपभोक्ता केंद्रों तक पहुँचाया जाता है । इससे कागज, दियासलाई, फर्नीचर आदि उद्योगों का पर्याप्त विकास हुआ है ।


(iii) खनिज संपदा का उपयोग- खनिज पदार्थों को देश के विभिन्न क्षेत्रों में पहुँचाने में रेलें अत्यंत सहायक सिद्ध होती हैं ।
खानों से निकाले गए कोयले की ढुलाई रेलों द्वारा ही देश के विभिन्न भागों में की जाती है ।


(iv) उद्योग-धंधों पर प्रभाव- रेलों ने उद्योगों के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है(क) कच्चे माल की व्यवस्था- देश में रेलों की समुचित व्यवस्था होने पर देश के विभिन्न भागों मे उत्पन्न कच्चे माल को सरलता से औद्योगिक संस्थानों तक पहुँचाया जा सकता है ।


(ख) शक्ति के साधनों की पूर्ति- रेलों द्वारा औद्योगिक केंद्रों तक आवश्यकतानुसार कोयला, तेल, लकड़ी आदि शक्ति के साधनों को पहुँचाया जा सकता है । (ग) निर्मित माल की ढुलाई- कारखानों में बड़े पैमाने पर तैयार की जाने वाली वस्तुओं को रेलों द्वारा बिक्री के लिए देश के कोने-कोने में पहुँचाया जाता है ।


(घ) देश का औद्योगिकरण- लोहा-इस्पात, सीमेंट, कागज, सूती वस्त्र, जूट, चीनी आदि उद्योगों के विकास में रेलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । कई बड़े सार्वजनिक उपक्रम रेलवे उद्योग से संबंधित हैं, जैसे- चितरंजन
इंजन कारखाना, पैरामबूर कोच कारखाना, डीजल इंजन कारखाना इत्यादि ।


(ङ) लघु उद्योगों के विकास में सहायक- भारतीय रेलें प्रतिवर्ष लघु उद्योगों में तैयार अरबों रुपए के माल को देश के विभिन्न भागों में पहुँचाती हैं ।


(च) श्रमिकों की गतिशीलता में वृद्धि- रेल सुविधाओं के कारण श्रमिक काम करने के लिए दूर-दूर स्थित कारखानों में जाने लगे हैं । श्रमिकों की गतिशीलता के बढ़ने से श्रमिकों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है ।


(छ) उद्योगों का विकेंद्रीकरण- रेलों के विकास तथा विस्तार से उद्योगों का विकेन्द्रीकरण (decentralisation) को प्रोत्साहन मिला है । इससे विकेंद्रीकरण के गंभीर दोषों में कमी आई है ।


(iv) व्यापार का विकास एवं विस्तार- रेल सुविधाओं के विस्तार के कारण भारत के आंतरिक व्यापार तथा विदेशी व्यापार की भारी उन्नति हुई है ।


(v) रोजगार में वृद्धि- देश में कृषि, उद्योग-धंधों, व्यापार, वाणिज्य, बैंकिंग आदि के विकास के कारण रोजगार-सुविधाओं में बड़ी संख्या में वृद्धि हुई है । स्वयं रेल उद्योग में लगभग 15.5 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ है ।


(vi) अन्य आर्थिक लाभ——–
(क) रेलों के आगमन से नए-नए आविष्कारों तथा अनुसंधानों को प्रोत्साहन मिला है ।
(ख) नई-नई तकनीकों का प्रसार हुआ है ।
(ग) सहकारिता को प्रोत्साहन मिला है ।
(घ) देश में नियमित, सस्ती, द्रुत तथा कुशल डाक-व्यवस्था के विकास में रेलों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है ।
(ङ) बैंकिंग एवं बीमा सेवाओं का देशव्यापी विस्तार हुआ है ।
(च) नए औद्योगिक केंद्रों तथा नगरों का प्रादुर्भाव हुआ है । (छ) दैनिक उपभोक्ता-वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि हुई है ।
(ज) निर्यात संवर्धन में रेलों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । (झ) सरकार की आय तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है ।
(ण) पर्यटन उद्योग का विकास तथा विस्तार हुआ है ।

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प्रश्न—-3. भारत में संचार के साधन तथा उनके महत्व पर प्रकाश डालिए ।


उत्तर—भारत में संचार के साधन- भारतीय अर्थव्यवस्था का दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है, संचार व्यवस्था । भारत के घर-घर में टेलीफोन और जन-जन के हाथ में सेलफोन संचार तंत्र की अद्भुत देन है । घर हो या कार्यालय, रेलवे स्टेशन हो या हवाई अड्डा, कारखाना हो या खलिहान सर्वत्र सेलफोन की घंटियाँ सुनाई पड़ती हैं । विचारों और संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने वाले उपकरण संचार के साधन कहलाते हैं । दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य दूरस्थ स्थानों पर बात करने की प्रणाली को दूर संचार व्यवस्था कहते हैं । यातायात व्यवस्था यदि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का ताना है, तो संचार व्यवस्था उसे पूर्ण स्वरूप प्रदान करने वाला बाना है । संचार के साधन दूर-दूर स्थित लोगों के विचारों और संदेशों का प्रसारण करते हैं । प्रो० लुईस ए० एलन ने संचार व्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “संचार उन सब बातों का योग है जो एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी बात समझाने के लिए करता है ।” इसमें कहने, सुनने और समझने की विधिवत् क्रिया निरंतर चलती रहती है । संचार के साधन वार्तालाप को अबाध और निरंतर बनाए रखते हैं । संचार तंत्र ने समूची मानवता को मुखर बना दिया है । विज्ञान के विकास ने मानव को अपनी आवश्यकता और सुविधा के अनुरूप निम्नलिखित संचार के साधनों का विकास करने में सक्षम बना दिया है–


(i) डाक सेवाएँ- भारतीय डाक प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी प्रणाली है । डाकघरों के माध्यम से पत्र, पार्सल, पत्रिकाएँ, दवाइयाँ तथा मनीआर्डर देशभर में भेजे जाते हैं । डाकघर बचत बैंक तथा जीवन बीमा की सुविधाएँ भी प्रदान करते हैं । भारत में शीघ्र तथा सुगमता से डाक वितरण के लिए ‘पिनकोड’ का प्रयोग किया जाता है । देश के प्रत्येक नगर तथा कस्बों को 6 अंकों के पिनकोड आवंटित किए गए हैं । जो राज्य, जनपद तथा तहसील एवं डाकघर का ज्ञान करा देते हैं ।


(ii) टेलीफोन- भारत में टेलीफोन द्वारा संदेश पहुँचाने का नेटवर्क टेलीफोन लाइनों द्वारा देशभर में फैलाया जा चुका है ।
टेलीफोन संचार का एक महत्वपूर्ण और सशक्त माध्यम बनकर उभरा है । मोबाइल फोन सेवा का विकास होने से
टेलीफोन सेवाएँ अधिक उपयोगी और सार्वजनिक बन गई हैं । मोबाइल फोन की सेवाएँ अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, श्रमिक और कृषक सभी को सहज रूप से उपलबध हो गई हैं ।


(iii) बेतार का तार- मारकोनी ने वायरलैस उपकरण का आविष्कार करके, बिना तारों का जाल फैलाए ही संचार प्रणाली खोज निकाली थी । बेतार के तार का प्रयोग अब मुख्यतया पुलिस विभाग तथा सेना के द्वारा किया जाता है ।
(iv) केबिल ग्राम- समुद्रों की तली में तार बिछाकर विदेशों से संदेश प्राप्त करने तथा पहुँचाने की जो व्यवस्था की जाती है, उसे केबिलग्राम नाम दिया गया है ।


(v) रेडियो– आकाशवाणी ने भारतीय जनता को संचार के साधन के रूप में रेडियो तथा ट्रांजिस्टर प्रदान किए । रेडियो
संदेशवाहक के साथ-साथ शिक्षा, मनोरंजन, खेलों का आँखों देखा प्रसारण करने का उपयोगी माध्यम है । रेडियो सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करने के साथ मनोरंजन का उपयोगी तथा महत्वपूर्ण साधन भी है ।


(vi) टेलीविजन- दूरदर्शन ने संचार प्रणाली में क्रांतिकारी युग का शुभारंभ किया है । इसके माध्यम से समाचारों, भाषणों, खेलों, दृश्यों, प्राकृतिक आपदाओं के बारे में न केवल सुन सकते हैं, वरन उनके चित्र भी देख सकते हैं । लंदन में खेले जा रहे मैच को पूरी दुनियाँ दूरदर्शन पर सीधा देख सकती है । देश में दूरदर्शन के 900 से अधिक ट्रांसमीटर हैं तथा 90% जनसंख्या तक इसकी पहुँच हो चुकी है । वर्तमान में दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों के अतिरिक्त कुछ व्यक्तिगत चैनल भी देशभर में फैले अपने नेटवर्क के माध्यम से प्रसारण करते हैं । भारत में ‘प्रसार भारती’ द्वारा रेडियो और दूरदर्शन की सेवाएँ नियंत्रित की जाती हैं । टेलीविजन वर्तमान में घर-घर की आवश्यकता बन गया है । टेलीविजन मनोरंजन के साथ-साथ विद्वानों के विचारों, अनुसंधानों तथा विद्वानों और शिक्षाविदों के विचारों का प्रसारण कर शैक्षिक क्षेत्र में भी लाभ पहुँचाता है ।


(vii) कंप्यूटर- कंप्यूटर वर्तमान युग का चमत्कार है । अनेक कंप्यूटरों को जोड़कर इंटरनेट व्यवस्था का जाल फैलाया गया है । इंटरनेट अलादीन का वह जादुई चिराग है, जिसके पास समस्त समस्याओं का हल है । प्रत्येक कार्यालय, विद्यालय और कारखाने में कंप्यूटर की पैठ बन चुकी है । इसने लैपटॉप, टेबलेट तथा फेसबुक, आदि उपकरण व सुविधाएँ देकर अपनी गतिशीलता को बढ़ा दिया है । वर्तमान युग में कंप्यूटर सबसे उपयोगी और महत्वपूर्ण संचार का साधन बन गया है।


(viii) ई-मेल- इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के माध्यम से संदेश भेजने की प्रक्रिया को ई-मेल कहते हैं । ई-मेल संचार क्रांति का
नवीनतम उपहार है । यह प्रक्रिया शीघ्र और सस्ता संदेश भेजने या प्राप्त करने में सक्षम है ।


(ix) टेलेक्स- टेलेक्स मशीनों द्वारा लिखित रूप में समाचार दूसरी मशीन तक पहुँचाने की व्यवस्था होती है । समाचार पत्रों
के कार्यालयो में टेलेक्स और फैक्स प्रक्रिया का भरपूर प्रयोग किया जाता है । रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल तथा टेलेक्स सभी इक्लेट्रॉनिक मीडिया कहलाते हैं । वर्तमान में इनकी शक्ति और महत्व को सभी देश जान चुके हैं ।


(x) प्रिंट मीडिया- पुस्तकों, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की दुनिया को प्रिंट मीडिया कहा जाता है । प्राचीन काल से आज तक प्रिंट मीडिया संचार तंत्र के रूप में अपनी उपयोगिता बनाए हुए है । समाचार पत्र हमें देश-विदेश की नवीनतम् घटनाओं और ताजा समाचारों से अवगत कराकर देश-परदेश से जोड़े रहते हैं । समाचार पत्र और पत्रिकाएँ संदेशवाहक, ज्ञानवर्द्धक तथा विज्ञापन के सशक्त माध्यम हैं । उत्पादक वर्ग आकर्षक विज्ञापन देकर उपभोक्ताओं तक अपने उत्पाद पहुँचाने में सफल हो जाता है । समाचार पत्र, पत्रिकाएँ शिक्षा का प्रसार करने तथा जनता को सस्ता मनोरंजन सुलभ कराने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं ।

दूरसंचार उपग्रह- दूरदर्शन, मोबाइल फोन तथा इंटरनेट का जाल फैलाने में दूरसंचार उपग्रहों का सर्वाधिक योगदान रहा है । कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित कर दूरसंचार की जो प्रणाली विकसित की जाती है, उसे दूरसंचार उपग्रह कहा जाता है । ये उपग्रह मौसम का पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी के साथ-साथ, राष्ट्र की सीमाओं की जासूसी भी करते हैं । भारत दूरसंचार उपग्रह के क्षेत्र में अग्रणी बन चुका है । भारत की सूचना-प्रौद्योगिकी का लोहा समूचा विश्व मानता है । भारत में ‘इनसैट’ तथा ‘इसरों’ इस कार्य में लगी दो महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं ।


दूरसंचार साधनों का भारत के लिए आर्थिक महत्व- सूचना ज्ञानवर्द्धन करती हैं, जबकि दूरसंचार साधन राष्ट्र को ज्ञानवान और सक्रिय बनाती हैं । जैसे चलने के लिए दोनों पैर, कार्य करने के लिए दोनों हाथ आवश्यक होते हैं, वैसे ही राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए परिवहन तथा संचार तंत्र दो आवश्यक उमंग होते हैं । भारत के लिए संचार के साधनों का आर्थिक महत्व निम्नलिखित है–


(i) संचार के साधन राष्ट्र की परिवहन व्यवस्था को संचालित करने में सहयोग देकर, राष्ट्र के आर्थिक विकास का मार्ग खोल देते हैं ।


(ii) डाक, टेलीफोन, कंप्यूटर तथा इंटरनेट आदि का फैलता जाल उद्योगों की स्थापना तथा विकास में सहयोगी बनकर राष्ट्र के औद्योगिक ढाँचे को सुदृढ़ बनाते हैं ।


(iii) संचार के साधन उत्पादों के आकर्षक विज्ञापन उपभोक्ताओं तक पहुँचाकर ,उत्पादों के विक्रय तथा उद्योगों के विकास में सहभागिता निभाते हैं ।


(iv) संचार के साधन राष्ट्र के नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराकर प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय को बढ़ाते हैं ।
(v) व्यापार के क्षेत्र में माँग और पूर्ति का ज्ञान कराकर संचार के साधन, देशी और विदेशी व्यापार का विस्तार करा देते हैं ।


(vi) संचार के साधन शिक्षा का प्रसार कर ज्ञान-विज्ञान का आलोक फैलाने के साथ-साथ नागरिकों को स्वस्थ्य मनोरंजन भी प्रदान कराते हैं ।


(vii) संचार उपग्रह मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना तथा सीमा क्षेत्रों की निगरानी में सहायक बनकर राष्ट्र के जन-धन की सुरक्षा करते हैं ।


(viii) संचार के साधन-वन, खनिज तथा जल संसाधनों का ज्ञान कराकर उनके उचित विदोहन में सहयोग देकर राष्ट्र को संपन्नता के मार्ग पर ले जाते हैं ।


प्रश्न—-4. भारत में वायु परिवहन का आर्थिक महत्व बताइए ।
उत्तर – भारत में वायु परिवहन का आर्थिक महत्व- वायु परिवहन उच्चावच, जलवायु तथा क्षेत्रीय बाधाओं को पार करके कम समय में परिवहन सुविधाएँ प्रदान करने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है । भारत के आर्थिक विकास में इस परिवहन का महत्व निम्नलिखित है ।
(i) वायु परिवहन भारत के पर्वतीय, पठारी, मरुस्थलीय तथा वन प्रांतों को सुगमता से पार कर राष्ट्र के आर्थिक विकास में सहायक बनता है ।
(ii) वायु परिवहन बहुमूल्य और शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं का त्वरित परिवहन करके इनको आर्थिक महत्व प्रदान करता है ।
(iii) भारत के सुदूर क्षेत्रों में स्थित नगरों और पर्यटक स्थलों को जोड़ने में वायु परिवहन का कोई मुकाबला नहीं है क्योंकि वायुयान परिवहन का तीव्रतम गति वाला साधन है ।
(iv) बाढ़, सुनामी, भूकंप तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के आने पर तथा स्थल परिवहन के असफल रहने पर वायु
परिवहन बचाव कार्यों में अद्वितीय सहयोग देता है ।
(v) खडी हुई फसलों को हानिकारक कीड़ों तथा रोगों से बचाने के लिए, हेलीकॉप्टर से कीटनाशकों का छिड़काव ही फसलों को बचा पाता है ।
(vi) देश की सीमाओं की सुरक्षा तथा शत्रु सेना पर त्वरित कार्यवाही करके वायुयान ही राष्ट्र की सुरक्षा करने में सक्षम होते है


(vii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा विदेशी यात्राओं के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को वायुयान ही संभव बनाते हैं ।


(viii) राष्ट्र के आर्थिक विकास तथा विदेशी व्यापार में वायु परिवहन ने अपनी सार्थक भूमिका निभाकर भारत की
अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में अद्वितीय योगदान दिया है ।


प्रश्न—-5. पाइपलाइन परिवहन प्रणाली क्या है? इसके क्या महत्व हैं?
उत्तर— पाइपलाइन परिवहन प्रणाली- खनिज तेल, प्राकृतिक गैस तथा अन्य पेट्रोलियम पदार्थों का परिवहन करने के लिए भूमि के भीतर पाइप बिछाकर जो व्यवस्था अपनाई गई है, उसे पाइपलाइन परिवहन प्रणाली कहते हैं । वर्तमान में कोयला तथा अन्य अयस्कों को चूरा बनाकर तथा पानी में घोलकर उनका भी परिवहन पाइपलाइन से किया जाने लगा है । भारत में ऑयल
इंडिया लिमिटेड ने कच्चे तेल के परिवहन के लिए खनिज तेल उत्पादक क्षेत्रों से तेल शोधनशालाओं तक तथा अन्य क्षेत्रों तक पाइपलाइनें बिछाने का शुभारंभ किया था । भारत में अब तक निम्नलिखित पाइपलाइनें बिछाई जा चुकी हैं।


(i) असम के नहरकटिया तेल क्षेत्र से नूनामती तथा बरौनी के तेल-शोधक कारखानों तक की पाइपलाइन ।
(ii) बरौनी, हल्दिया तथा कानपुर पाइपलाइन ।
(iii) लाकवा, रूद्रसागर तथा बरौनी पाइपलाइन ।
(iv) अंकलेश्वर से कोयली, कलोल, साबरमती, मुंबई हाई अंकलेश्वर, बड़ोदरा तथा अहमदाबाद पाइपलाइन ।
(v) मुंबई हाई, सलाया तथा मथुरा पाइन लाइन ।
(vi) मथुरा, दिल्ली, पानीपत, अंबाला तथा जालंधर पाइपलाइन सन् 1984 में स्थापित भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड ने भारत में प्राकृतिक गैस का परिवहन करने के लिए अनेक गैस पाइपलाइनें भी बिछाई हैं; जैसे-
(i) मुंबई हाई से मुंबई तट तक तेल लाइन के साथ-साथ 210 किमी लंबी गैस पाइपलाइन ।
(ii) गुजरात में अंकलेश्वर-वडोडरा, कोयली-अहमदाबाद, अंकलेश्वर-उत्तरण तथा कैंबे-धुवरन गैस पाइपलाइनें ।
(iii) हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर गैस पाइपलाइन विश्व में सबसे लंबी गैस पाइपलाइन है, जो 1750 किमी० लंबी है । पाइपलाइन परिवहन का महत्व- द्रव पदार्थों के परिवहन के लिए पाइपलाइन परिवहन एक आदर्श परिवहन सिद्ध हो रहा है । इस परिवहन का र्थिक महत्व निम्नलिखित है।


(i) पाइपलाइन परिवहन के लिए पाइपों को भूमि के नीचे तथा जलाशयों के नीचे भी बिछाया जा सकता है ।


(ii) इनसे द्रव पदार्थों का निर्बाध तथा सस्ता परिवहन किया जाता है ।


(iii) पाइपलाइन परिवहन को तैयार करने में एक बार ही व्यय करना पड़ता है, तथा इसके रखरखाव पर बार-बार व्यय नहीं करना पड़ता ।


(iv) पाइपलाइन में पदार्थों के नष्ट होने का भय नहीं रहता ।
(v) भूमिगत होने के कारण पाइपलाइनों में दुर्घटनाएँ घटने की संभावना क्षीण हो जाती है ।


(vi) पाइपलाइन परिवहन में ऊर्जा का उपयोग कम मात्रा में होने से ऊर्जा की बचत होती है ।


(vii) पाइपलाइन का संचालन प्रायः निरंतर बना रहता है ।


प्रश्न—-6. व्यापारिक सेवाएँ क्या हैं? व्यापार का वर्गीकरण करते हुए विदेशी व्यापार का भारत के आर्थिक विकास में योगदान बताइए ।


उत्तर— व्यापारिक सेवाएँ- व्यापार का सामान्य अर्थ है लाभ-प्राप्ति के उद्देश्य से वस्तुओं को खरीदना और बेचना । इस प्रकार क्रय-विक्रय ने व्यापार को जन्म दिया । धन के माध्यम से वस्तुओं को खरीदना और बेचना व्यापार कहलाता है । दूसरे शब्दों में वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकी का लेनदेन धन कमाने के उद्देश्य से करना व्यापार है । यदि वस्तु या सेवा का लेन-देन प्रेम भावना, सेवा भावना धार्मिक भावना तथा सांस्कृतिक उद्देश्य से किया जाता है तो उसे व्यापार नहीं कहेंगे । व्यापार में क्रेता और विक्रेता परस्पर धन कमाने के उद्देश्य से जुड़ते हैं । अकेला क्रय अथवा विक्रय व्यापार की पूर्णता को सार्थक नहीं बनाता ।
व्यापार का वर्गीकरण- व्यापार का वर्गीकरण निम्नवत् किया जा सकता है

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(i) देशी या राष्ट्रीय व्यापार- देश की भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य होने वाला वस्तुओं, तकनीकों और सेवाओं का क्रय-विक्रय देशी या राष्ट्रीय या आंतरिक व्यापार कहलाता है । उत्तर प्रदेश का महाराष्ट्र को चीनी बेचकर उससे सूती वस्त्र खरीदना देशी व्यापार का एक उदाहरण है ।


(ii) विदेशी या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार- देश की भौगोलिक सीमाओं के पार दो या दो से अधिक देशों के मध्य वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकी का आयात-निर्यात विदेशी या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है । विदेशी व्यापार के दो घटक आयात और निर्यात हैं । दूसरे देशों से माल मगाँना आयात तथा दूसरे देशों को माल भेजना निर्यात कहलाता है । जैसे भारत खनिज तेल इस्पात निर्मित समान, मोती एवं बहुमूल्य रत्न, सोना, चाँदी, उर्वरक, कागज, खाद्य तेल, कच्चा जूट, मशीनरी आदि वस्तुएँ बाहर से मँगाता है । अत: भारत इन वस्तुओं का आयात करता है, जबकि वह चाय, लौह अयस्क, चमड़े की वस्तुएँ, अभ्रक, मशीनरी, सूती वस्त्र, चीनी, जूट का सामान, वनस्पति तेल, भारी संयंत्र, इंजीनियरिंग का सामान आदि वस्तुएँ बाहर भेजता है अतः भारत इन वस्तुओं का निर्यात करता है ।

आयात-निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन कहा जाता है । आयात कम, निर्यात अधिक होने को अनुकूल व्यापार संतुलन तथा आयात अधिक और निर्यात कम होने की दशा को प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहते हैं । भारत के कुल निर्यात का 51.04% निर्यात एशिया और ओशियाना को हुआ, इसके बाद यूरोप 23.8% और अमेरिका 16.05% का स्थान रहा । इसी अवधि में भारत का आयात भी एशिया और ओशियाना से सबसे अधिक 61.7% रहा, उसके बाद यूरोप 18.7% और अमेरिका 9.5% का स्थान रहा । विदेशी व्यापार का भारत के आर्थिक विकास में योगदान (महत्व)- भारत के विदेशी व्यापार का उसके आर्थिक विकास में निम्नलिखित (महत्व) योगदान रहा है


(i) विदेशी व्यापार के कारण कच्चे माल तथा तकनीकी का आयात करके भारत ने आर्थिक विकास की नई दिशा प्राप्त की है।


(ii) विदेशी व्यापार के माध्यम से भारत ने अतिरिक्त उत्पादों का निर्यात करके देशी उद्योगों का विकास किया है ।


(iii) विदेशी व्यापार के द्वारा भारत ने कृषिगत उपजों तथा तैयार माल का निर्यात करके पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित की है ।


(iv) विदेशी व्यापार ने रोजगार के नए अवसर प्रदान करके बेरोजगारी की समस्या को कम किया है ।


(v) विदेशी व्यापार के कारण उद्योग, कृषि तथा देशी व्यापार ने पर्याप्त उन्नति की है ।


(vi) मशीनों, पूँजीगत वस्तुओं और नवीनतम तकनीकी का आयात करके भारत की औद्योगिक स्थिति सुदृढ़ और संपन्न बन गई है ।


(vii) विदेशी व्यापार ने भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में प्रगति और संपन्नता की धाराएँ प्रवाहित की हैं ।


(viii) विदेशी व्यापार ने व्यापारियों और सरकार दोनों को आय प्रदान कर समृद्ध बनाने में अद्वितीय भूमिका निभाई है ।

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