UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 5 The Variety and Unity of India free pdf सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 5 The Variety and Unity of India free pdf सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 5 The Variety and Unity of India free pdf सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद
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सम्पूर्ण पाठ का हिन्दी अनुवाद –

भारत की विभिन्नता बहुआयामी है; यह स्वाभाविक भी है; यह ऊपरी तौर से ही दिखाई देने लगती है और कोई भी इसे देख सकता है ।। यह विभिन्नता भौतिक परिदृश्य तथा साथ ही कुछ मानसिक आदतों व लक्षणों से सम्बन्धित है ।। बाह्य दृष्टि से पश्चिमोत्तर के पठान और सुदूर दक्षिण के तमिल में बहुत कम समानता है ।। उनकी प्रजातीय वंशावली (नस्ल) एक नहीं है, यद्यपि इनमें कुछ सामान्य गुण एक से हो सकते हैं-वे चेहरे और आकृति, खानपान व वेशभूषा तथा सामान्य रूप से भाषा से भिन्न हैं ।। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में पहले से ही मध्य एशिया का प्रभाव है और कश्मीर के समान ही वहाँ के अनेक रीति-रिवाज हिमालय के उस पार के देशों की याद दिलाते हैं ।। पठानों के लोकप्रिय नृत्य अद्भुत प्रकार से रूसी कज्जाक नृत्य के समान हैं ।। इन सब अन्तरों के होते हुए भी पठानों पर भारत की उतनी ही स्पष्ट छाप है जितनी यह तमिलों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है ।।

यह आश्चर्यजनक बात नहीं है क्योंकि ये सीमावर्ती प्रदेश और वास्तव में अफगानिस्तान भी हजारों वर्षों तक भारतवर्ष से जुड़े रहे हैं ।। प्राचीन तुर्की तथा अन्य जातियाँ जो अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के भागों में निवास करती थी, इस्लाम के आगमन से पहले अधिकांश रूप से बौद्ध धर्म की अनुयायी थी और उससे भी पहले महाकाव्य काल में हिन्दू धर्म की अनुयायी थी ।। सीमान्त क्षेत्र पुरानी सभ्यता के मुख्य केंद्रों में से एक था और वहाँ अब भी स्मारकों और मठों के अनेक खण्डहर हैं और विशेष रूप से तक्षशिला के विख्यात विश्वविद्यालय के अवशेष पाए जाते हैं जो दो हजार वर्ष पहले अपनी प्रसिद्धि की चरम सीमा पर था और सारे भारत से तथा एशिया के विभिन्न भागों से विद्यार्थियों को आकर्षित करता था ।। धर्म के परिवर्तनों ने कुछ अन्तर अवश्य उत्पन्न किया परन्तु वे उस मानसिक सोच को पूर्ण रूप से नहीं बदल सके जो उन क्षेत्रों के लोगों में विकसित हो चुकी थी ।।

पठान और तमिल दो सिरों पर स्थित लोगों के उदाहरण हैं; दूसरी जातियाँ तो इन सुदूरवर्ती सिरों के मध्य में ही कहीं स्थित हैं ।। उन सबके अपने-अपने विशिष्ट गुण हैं किन्तु उन सब में इससे भी अधिक भारतीयता की छाप है ।। हम यह देखकर मुग्ध हो जाते हैं कि किस प्रकार बंगालियों, मराठों, गुजरातियों, तमिलों, आन्ध्रवासियों, उड़ीसावासियों, असामियों, कन्नड़ों, मलयालियों, सिन्धियों, पंजाबियों, पठानों, कश्मीरियों, राजपूतों और हिन्दुस्तानी-भाषियों के विशाल केंद्रीय समूह ने सैकड़ों वर्षों तक अपने विलक्षण गुणों को बनाए रखा है; अब भी थोड़े-बहुत वे ही गुण या कमियाँ उनमें हैं जिनका हमें प्राचीन परम्पराओं या अभिलेखों से पता चलता है ओर फिर भी इन सभी गुणों में वे स्पष्ट रूप से उसी राष्ट्रीय विरासत और नैतिक व मानसिक गुणों को अपनाते हुए भारतीय रहे हैं ।। इस विरासत के साथ कुछ जीवन्त तथा गतिशील तत्व थे जो रहन-सहन और जीवन के प्रति दार्शनिक भाव में प्रकट होते थे ।।

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 4 The Kite Maker free pdf

प्राचीन चीन की भाँति प्राचीन भारत भी स्वयं में एक संसार था, एक संस्कृति और एक सभ्यता थी जिसने सब बातों को आकार दिया ।। विदेशी प्रभाव आते रहे और प्रायः वे उस संस्कृति को प्रभावित करते रहे तथा उसी में विलीन हो गए ।। विघटनकारी प्रवृत्तियों ने तुरन्त ही मेल-मिलाप खोजने के प्रयास को जन्म दिया ।। सभ्यता के आरम्भ से ही किसी न किसी प्रकार की एकता का स्वप्न भारत के मस्तिष्क में समाया रहा है ।। वह एकता बाहर से थोपी गई और कोई वस्तु जैसी नहीं सोची गई थी, और न ही बाहरी तत्वों या विदेशी विश्वासों का प्रमाण थी ।। यह इन सबसे अधिक गहरी कोई वस्तु थी और इसके क्षेत्र में विश्वास और रीति-रिवाज की सर्वाधिक विस्तृत सहनशीलता प्रयोग की जाती थी और प्रत्येक विभिन्नता को स्वीकार किया गया और उसे प्रोत्साहित भी किया गया ।।

एक राष्ट्रीय वर्ग में भी, चाहे वह कितना ही एकता में बँधा हुआ हो, छोटे या बड़े मतभेद सदैव देखे जा सकते हैं ।। उस वर्ग की मौलिक एकता तक स्पष्ट दिखाई देती है जब उसकी तुलना किसी अन्य राष्ट्रीय वर्ग से की जाती है, यद्यपि प्राय: दो निकटवर्ती वर्गों के भेद सीमान्त क्षेत्र में क्षीण हो जाते हैं या परस्पर घुल-मिल जाते हैं और आधुनिक विकास सब स्थानों पर एक विशेष प्रकार की एकाग्रता उत्पन्न करने की ओर अग्रसर होते हैं ।। प्राचीन तथा मध्यकाल में, आधुनिक राष्ट्र का विचार विद्यमान नहीं था तथा सीमान्त व्यवस्था, धार्मिक, जातीय या सांस्कृतिक बन्धनों को अधिक महत्व प्राप्त था ।। फिर भी मेरा विचार है कि लिखित इतिहास में किसी भी समय कोई भी भारतवासी भारत के किसी भी भाग में थोड़ा-बहुत अपने घर जैसी सुख-सुविधा अनुभव करता होगा, और किसी अन्य देश में स्वयं को अपरिचित तथा विदेशी अनुभव करता होगा ।। उसने निश्चय ही उन देशों में स्वयं को कम अजनबी अनुभव किया होगा जिन्होंने आंशिक रूप से उसकी संस्कृति या धर्म को अपना लिया हो ।। जो लोग भारत से बाहर उत्पन्न होने वाले धर्म को मानते थे जैसे ईसाई, यहूदी, पारसी, मुसलमान और भारत में आकर यहाँ बस गए, वे कुछ पीढ़ियों में स्पष्ट रूप से भारतीय बन गए; जो भारतवासी इनमें से कुछ धर्मों में चले गए वे भी धर्म परिवर्तन के बावजूद सदैव भारतवासी ही बने रहे ।। वे अब अन्य देशों में भारतवासी तथा विदेशी माने जाते थे, भले ही दोनों के बीच धर्म की समानता रही हो ।।

up board solutions for class 11 english prose chapter 3 The Ant and the Grasshopper free pdf पाठ का हिंदी अनुवाद

आज जब राष्ट्रीयता का विचार बहुत अधिक विकसित हो गया है, विदेशों में रहने वाले भारतीयों का अवश्य ही एक राष्ट्रीय समुदाय बन जाता है और वे अपने आन्तरिक मतभेदों के बावजूद विभिन्न उद्देश्यों के लिए सहायता करते हैं ।। कहीं भी चले जाने पर एक भारतीय ईसाई को भारतीय के रूप में ही देखा जाता है ।। टर्की, अरब या ईरान जैसे इस्लाम बहुल देशों में भी एक भारतीय मुसलमान को सर्वप्रथम एक भारतीय के रूप में ही जाना जाता है ।।

मैं मानता हूँ कि हम सभी के मस्तिष्क में अपनी मातृभूमि के भिन्न-भिन्न चित्र हैं और कोई भी दो व्यक्ति बिलकुल एक समान नहीं सोचेंगे ।। जब मैं भारत के विषय में सोचता हूँ तो मैं अनेक बातों के विषय में सोचता हूँ-विस्तृत मैदानों के विषय में जिनमें अनगिनत छोटे-छोटे गाँव फैले हैं, उन कस्बों और नगरों के विषय में जिनको मैं देखने गया हूँ, वर्षा ऋतु के जादू के विषय में जो धूप के कारण सूखी झुलसी हुई भूमि में जीवन उड़ेल देती है और उसे अकस्मात् सौन्दर्य व हरियाली के चमकीले विस्तृत क्षेत्र में परिवर्तित कर देती है, विस्तृत नदियों और बहते हुए पानी के विषय में, ठण्डे और नीरस वातावरण वाले खैबर दर्रे के विषय में, भारत के दक्षिणी छोर के विषय में, लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण के विषय में और सबसे बढ़कर हिमाच्छादित हिमालय के विषय में, या बसन्त ऋतु में नए फूलों से ढकी हुई कश्मीर की किसी पर्वतीय घाटी के विषय में, जिसमें होकर झरझर करता कोई झरना बह रह हो ।। हम अपनी पसन्द के चित्र बनाते हैं और उन्हें मन में संजोए रखते हैं, और इसलिए मैंने गर्म और उप-उष्णकटिबन्धीय देश के अधिक सामान्य चित्र की अपेक्षा इस पर्वतीय पृष्ठभूमि को चुना है ।। दोनों चित्र ठीक हैं क्योंकि भारतवर्ष उष्णकटिबन्ध से लेकर समशीतोष्ण प्रदेशों तक अर्थात् भूमध्य रेखा के निकट गर्म स्थलों से एशिया के ठण्डे क्षेत्रों तक फैला हुआ है ।।

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