UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 4 The Kite Maker free pdf

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 4 The Kite Maker free pdf

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 4 The Kite Maker free pdf

एक वीरान मस्जिद की दरारों में एक पुराना बरगद का पेड़ उग आया था और उस गली में जो ‘गली रामनाथ’ के नाम से जानी जाती थी केवल वही एक पेड़ था और छोटे अली की पतंग उसकी शाखाओं में उलझ गई थी ।।

वह लड़का नंगे पैर और केवल एक फटी कमीज पहने हुए, संकरी गली में लगे हुए गोल और चिकने पत्थरों पर दौड़कर वहाँ पहुंचा जहाँ उसका दादा अपने मकान के पिछले आँगन की धूप में स्वप्न देखता हुआ ऊंघते हुए बैठा था ।।

‘दादा जी!’ लड़का चिल्लाया ‘पतंग चली गई ।।

बूढ़ा अपने दिवास्वप्न से चौंककर जाग पड़ा और मेहँदी की पत्तियों से रँगी न गई होती तो सफेद हो चुकी दाढ़ी को दिखाते हुए सिर उठाया ।।

‘क्या डोर टूट गई?’ उसने पूछा ।। ‘मुझे मालूम है कि आजकल पतंग की डोर वैसी नहीं होती जैसी हुआ करती थी ।। ‘ ‘नहीं दादा जी, पतंग बरगद के पेड़ में अटक गई है ।। ‘

बूढ़ा धीरे से हँसा ।। ‘मेरे बच्चे, तुम्हें अभी सीखना है कि पतंग ठीक तरह कैसे उड़ाई जाती है ।। और मैं इतना अधिक बूढ़ा हूँ कि तुम्हें सिखा नहीं सकता, यही अफसोस है ।। परन्तु तुम्हें दूसरी पतंग मिलेगी ।। ‘ वह बाँस, कागज और पतले रेशम से अभी-अभी एक नई पतंग बना चुका था और वह पतंग धूप में पड़ी सूख रही थी ।। वह छोटी हरी पूँछ वाली एक फीकी गुलाबी पंतग थी ।। बूढ़े ने वह अली को दे दी और वह लड़का अपने पैरों की अंगुलियों के बल उचका तथा उसने अपने दादा के पोपले गालों को चूम लिया ।।

“मैं इसे नहीं खोऊँगा ।। ‘ उसने कहा ‘यह पतंग चिड़िया की तरह उड़ेगी ।। ‘

और वह अपनी एड़ियों पर घूमा और उछलता हुआ आँगन से बाहर चला गया ।।

UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 2 Forgetting free पाठ का सम्पूर्ण हिंदी अनुवाद

बूढ़ा धूप में बैठा स्वप्न देखता रहा ।। उसकी पतंग की दुकान बन्द हो गई थी क्योंकि वह अहाता कई वर्ष पहले एक कबाड़ी को बेच दिया गया था ।। परन्तु वह अपने मनोरंजन के लिए और अपने पोते अली के खिलौने के तौर पर अब भी पतंग बनाता था ।। इन दिनों अधिक लोग पतंग नहीं खरीदते थे ।। वयस्क लोग उनकी अवहेलना करते और बच्चे अपना धन सिनेमा पर खर्च करना अधिक पसंद करते थे ।। इसके अतिरिक्त पतंग उड़ाने के लिए खुले स्थान कम बचे थे ।। नगर उस हरे मैदान को निगल चुका था जो पुराने किले की दीवारों से नदी के किनारे तक फैला हुआ था ।।

परन्तु बूढ़े को वह समय याद था जब वयस्क लोग मैदान से पतंग उड़ाया करते थे और पतंगों की बड़ी लड़ाईयाँ लड़ी जाती थी ।। पतंगे आकाश में अचानक मुड़कर झपट्टा मारती हुई, एक-दूसरे से तब तक गुथी रहती थी, जब तक किसी एक पतंग की डोरी कट न जाए ।। तब कटी हुई परन्तु मुक्त पतंग असीमित आकाश में तैरती चली जाती ।। पतंग के पेचों पर बड़ी-बड़ी बाजियाँ लगाई जाती थी और धन बार-बार एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता रहता था ।।

पतंग उड़ाना उन दिनों नवाबों का खेल था ।। बूढ़े व्यक्ति को याद था कि किस प्रकार नवाब स्वयं इस शानदार खेल में सम्मिलित होने के लिए अपने परिचरों सहित नदी किनारे तक आया करते थे ।। उन दिनों पतंगरूपी एक चमकदार नाचते हुए कागज के टुकड़े के साथ अवकाश का एक घंटा बिताने के लिए लोगों के पास समय होता था ।। अब प्रत्येक व्यक्ति आशा के जोश में उतावला होकर जल्दी करता है और पतंगों तथा दिवास्वप्नों के समान कोमल वस्तुएँ पैरों के नीचे रौंद दी जाती है ।।

पतंग बनाने वाला महमूद, अपनी युवावस्था में सारे नगर में प्रसिद्ध था ।। उसकी अच्छी कारीगरी की पतंगों में से कुछ पतंगें तो तीन या चार रुपये तक में बिकती थी ।। नवाब के कहने पर एक बार उसने एक विशेष प्रकार की पतंग बनाई थी, जो उन सभी पतंगों से भिन्न थी जो उस इलाके में दिखाई देती थी ।। उसमें एक पतले बाँस के ढाँचे पर लटकते हुए छोटे, बहुत हल्के कागज के गोल टुकड़ों की एक शृंखला थी ।। उसने प्रत्येक डिस्क के अन्तिम छोर पर सन्तुलन के लिए घास का एक गुच्छा बाँध दिया था ।। सबसे आगे वाली डिस्क की सतह थोड़ी-सी बाहर की ओर झुकी हुई थी और उस पर रंग से एक अद्भुत चेहरा बना हुआ था जिसमें छोटे शीशों की बनी दो आँखें लगी हुई थी ।। सिर से पूँछ तक आकार में छोटे होते गए गोले पतंग को रेंगते हुए साँप की (सर्पाकार) शक्ल देते थे ।। इस भारी विधा को पृथ्वी से ऊपर उठाने और साधने के लिए बड़े कौशल की आवश्यकता थी और केवल महमूद ही इसे सँभाल सकता था ।।

प्रत्येक व्यक्ति ने निश्चय ही महमूद द्वारा बनाई गई ‘सर्पाकार पतंग’ के बारे में सुना था और चारों ओर यह बात फैल गई कि उसमें अलौकिक शक्ति है ।। नवाब की उपस्थिति में इस पतंग को सर्वप्रथम उड़ता हुआ देखने के लिए बहुत भारी भीड़ मैदान में इकट्ठा हुई ।। पहले प्रयत्न में वह पतंग भूमि से बिलकुल नहीं हिली ।। पतंग ने शिकायती और विरोधात्मक आवाज निकाली और पतंग में लगे छोटे शीशों में सूरज प्रतिबिम्बित हुआ जिससे पतंग एक शिकायती जीव के रूप में प्रतीत हुई ।।

तब दाईं ओर से तेज हवा चली और उस सर्पाकार पतंग ने टेढ़े-मेढ़े उड़ते हुए आकाश में ऊँची उड़ान भरी, सूरज अब पतंग की दानवी आँखों में चमक रहा था ।। जब वह बहुत ऊपर चली गई तो डोरी को जोर से खींचा और महमूद के छोटे पुत्रों को रील की चकरी पकड़कर उसकी सहायता करनी पड़ी ।। परन्तु फिर भी पतंग खींचती ही रही, मानो आकाश में मुक्त रूप से उड़ने का दृढ़ निश्चय किए हुए हो ।।

और तब यह घटना घटी ।। पतंग की डोर टूट गई, पतंग तेजी से सूर्य की ओर उछल गई और उस समय तक आकाश में तैरती रही जब तक कि आँखों से ओझल न हो गई ।। वह फिर कभी नहीं मिली और महमूद बाद में आश्चर्य से सोचता रहा कि क्या उसने उस विशाल पतंग को बहुत अधिक चमकदार, बहुत अधिक जीवन्त बना दिया था ।। महमूद ने उस जैसी दूसरी पतंग फिर नहीं बनाई परन्तु इसके बजाय नवाब को एक सुरीली पतंग भेंट की ।। यह पतंग वीणा के समान आवाज करती थीं ।।

हाँ, वे अधिक फुरसत के दिन थे ।। पर कुछ वर्ष पहले नवाब की मृत्यु हो गई थी ।। उसके उत्तराधिकारी प्रायः इतने ही गरीब थे जितना स्वयं महमूद ।। कवियों के समान पतंग बनाने वालों के भी संरक्षक होते थे; महमूद का अब कोई शुभचिन्तक नहीं था ।। कोई भी उसका नाम और व्यवसाय नहीं पूछता था क्योंकि गली में बहुत लोग थे और कोई भी व्यक्ति पड़ोसियों के बारे में चिन्ता नहीं करता था ।।

जब वह युवा था और बीमार पड़ जाता था तो पड़ोस का प्रत्येक व्यक्ति उसके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में पूछने आता था ।। अब, जब उसके दिन समाप्त होने को हैं, कोई उसके पास नहीं आता है ।। उसके पुराने मित्रों में से अधिकांश मर चुके हैं ।। उसके पुत्र बड़े हो गए हैं; एक पुत्र स्थानीय गैराज में काम कर रहा था, दूसरा पाकिस्तान में रह गया था जहाँ वह देश के विभाजन के समय था ।।

जो बच्चे दस वर्ष पहले उससे पतंग खरीदा करते थे वे अब वयस्क हो गए हैं और आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं; उनके पास उस बूढ़े और उसकी स्मृतियों के लिए समय नहीं है ।। जल्दी-जल्दी बदलने वाले, प्रतिस्पर्धात्मक संसार में बड़े होने पर वे लोग बूढ़े पतंग बनाने वाले के प्रति उतने ही उदासीन हैं जितने कि बरगद के पेड़ के प्रति ।।

वे दोनों उन स्थायी वस्तुओं के समान सुनिश्चित मान लिए गए थे जिनसे उनके चारों ओर के जन-समूह का कोई सम्बन्ध नहीं था ।। अब लोग अपनी समस्याओं तथा योजनाओं पर विचार करने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठा नहीं होते थे; केवल गर्मियों के महीनों में कभी कोई व्यक्ति तेज धूप से बचने के लिए उसके नीचे आश्रय पा लेता था ।।

लेकिन निश्चित रूप से, एक बालक उसके पोते के रूप में वहाँ था ।। यह अच्छी बात थी कि उसका पुत्र पास में ही काम करता था तथा वह और बहू महमूद के घर में रहते थे ।। लड़के को जाड़े की धूप में खेलते हुए देखकर उसका मन हर्षित हो जाता था ।। वह बालक महमूद के लिए एक अच्छे से लालन-पालन किए गए उस बढ़ते हुए छोटे पौधे के समान था जिसमें से प्रतिदिन नई कोपलें निकल रही हों ।।

वृक्षों और मनुष्यों के बीच बहुत कुछ समानता है ।। यदि उनको चोट न पहुँचाई जाए या भूखे न रखा जाए या काट न डाला जाए तो वे एक समान गति से बढ़ते हैं ।। अपने यौवन काल में वे बहुत चमकदार होते हैं और आयु के ढलान के वर्षों (वृद्धावस्था) में थोड़ा झुक जाते हैं ।। वे याद करते हैं, वे अपने भंगुर दुर्बल अंगों को धूप में फैलाते हैं और आहें भरकर अपनी अन्तिम पत्तियों को नीचे गिरा देते है ।।

महमूद बरगद के पेड़ के समान था, उसके हाथ उस बहुत पुराने पेड़ की जड़ों के समान गाँठदार व मुड़े-तुड़े थे ।। अली आँगन के कोने में रोपी गई छुईमुई की नई कोपल के समान था ।। दो वर्ष में अली और वह पेड़ दोनों उस शक्ति व आत्मविश्वास को प्राप्त कर लेंगे जो यौवन की विशेषताएँ हैं ।।

गली में आवाजें धीमी पड़ गई और महमूद को आश्चर्य हो रहा था कि क्या वह अब सोने वाला है और सुन्दर व शक्तिशाली पतंग के स्वप्न देखने लगेगा, जैसा प्रायः देखता है, जो पतंग हिन्दुओं के विशाल सफेद पक्षी, गरूड़ से मिलती-जुलती होगी, जो भगवान विष्णु का प्रसिद्ध वाहन है ।।

वह नन्हें अली के लिए एक अद्भुत नई पतंग बनाना चाहता है ।। उसके पास उस लड़के के लिए छोड़ जाने को और कुछ नहीं था ।। उसने दूर से अली की आवाज सुनी, परन्तु यह नहीं समझ सका कि लड़का उसे पुकार रहा है ।। आवाज बहुत दूर से आती प्रतीत हो रही थी ।।


अली आँगन के द्वार पर यह पूछ रहा था कि क्या उसकी माँ अब तक बाजार से लौट आई है या नहीं ।। जब महमूद ने उत्तर नहीं दिया, तो लड़का अपने प्रश्न को दोहराता हुआ आगे आया ।। सूर्य का प्रकाश बूढ़े के सिर पर एक ओर से दूसरी ओर तक तिरछा पड़ रहा था और उसकी लहराती हुई दाढ़ी पर एक छोटी-सी सफेद तितली बैठी आराम कर रही थी ।। महमूद चुप था; और जब अली ने अपना छोटा भूरा हाथ बूढ़े के कंधे पर रखा, तो उसे कोई उत्तर नहीं मिला ।। लड़के ने अपनी जेब में रखे कंचों की रगड़ के समान हल्की-सी आवाज सुनी ।।

अचानक डरकर अली मुड़ा और द्वार की ओर बढ़ा और फिर गली में अपनी माँ को पुकारता हुआ दौड़ा चला गया ।। और अनायास ही बरगद के पेड़ पर अटकी हुई पतंग को हवा के तेज झोंके ने ऊपर उछाल दिया और एक बड़े व्यस्त नगर के संघर्ष से बहुत दूर नीलगगन में ले उड़ा ।। ।।

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