Up board solution for class 7 science chapter 2 रेशों से वस्त्र तक
1-निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प छांटकर अभ्यास पुस्तिका में लिखिए-
[क ] ऊन धारण करने वाले जंतु हैं
[अ ] ऊंट तथा याक
[ब ] ऐल्पेका तथा लामा
[स ] अंगोरा बकरी तथा कश्मीरी बकरी
[द ] उपरोक्त सभी
उत्तर- विकल्प [द ] उपरोक्त सभी
[ख ] भेड़ तथा रेशम कीट होते हैं-
[अ ] शाकाहारी
[ब ] मांसाहारी
[स ] सर्वाहारी
[द ] अपमार्जक
उत्तर- विकल्प [अ ] शाकाहारी
[ग ] भेड़ के रेशों की चिकनाई, धूल और गर्त निकालने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया कहलाती है-
[अ ] अभिमार्जन
[ब ] संसाधन
[स ] रीलिंग
[द ] कटाई तथा छंटाई
उत्तर- विकल्प [अ ] अभिमार्जन
[घ ] रेशम है-
[अ ] मानव निर्मित रेशे
[ब ] पादप रेशे
[स ] जंतु रेशे
[द ] उपरोक्त सभी
उत्तर- विकल्प [स ] जंतु रेशे
2-रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
[क ] ऊन सामान्यतः पालतू भेड़ों के त्वचीय बालों से प्राप्त किए जाते हैं।
[ख ] ऊन के रेशों के बीच वायु रुककर उष्मा की कुचालक का कार्य करती है [ग ] रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट पालन विज्ञान सेरीकल्चर कहलाता है।
[घ ] प्यूपा के चारों ओर रेशम ग्रंथि से स्रावित पदार्थ से लिपटी संरचना कोकून कहलाती है।
[ङ ] रेशम उद्योग के कारीगर एंथ्रैक्स नामक जीवाणु द्वारा संक्रमित हो जाते हैं।
3- सही कथन के आगे सही [✓ ] व गलत कथन के आगे गलत [× ] का चिन्ह लगाइए-
[क ] कश्मीरी बकरी के बालों से पश्मीना ऊन की साले बनाई जाती हैं। [✓ ]
[ख ] ऊन प्राप्त करने के लिए भेड़ के बालों को जाड़े के मौसम में काटा जाता हैं। [× ]
[ग ] अच्छी नस्ल की भेड़ों को जन्म देने के लिए मुलायम बालों वाली विशेष भेड़ों के चयन की प्रक्रिया वर्णनात्मक प्रजनन कहलाती है। [✓ ]
[घ ] सिल्क का धागा प्राप्त करने के लिए प्यूपा से व्यस्क कीट बनने से पूर्व ही कोकून को उबलते पानी में डाला जाता है। [✓ ]
[ङ ] रेशम कीट के अंडे से प्यूपा निकलते हैं। [× ]
4- स्तंभ [क ] में दिए गए वाक्यों को स्तंभ [ख ] के वाक्यों से मिलान कीजिए।
स्तम्भ [क ] स्तम्भ [ख ]
क. अभिमार्जन …….अ. रेशम कीट का भोजन
ख. कोकून …….ब. रेशम के रेशे का संसाधन
ग. याक ………स. रेशम के रेशे उत्पन्न करता है
घ. शहतूत की पत्तियाँ …….. द. ऊन देने वाला जन्तु
ङ. रीलिंग …………य. काटी गई ऊन की सफाई
उत्तर-
स्तम्भ [क ]——स्तम्भ [ख ]
क. अभिमार्जन —–काटी गई ऊन की सफाई
ख. कोकून—– रेशम के रेशे उत्पन्न करता है
ग. याक—– ऊन देने वाला जंतु
घ. शहतूत की पत्तियाँ—– रेशम कीट का भोजन
ङ. रीलिंग——- रेशम के रेशे का संसाधन
5- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
[क ] ऊन किसे कहते हैं? उन जंतुओं के नाम लिखिए जिनसे ऊन प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर- सामान्यतः भेड़ की त्वचा के बाल से प्राप्त किए जाने वाले मुलायम घने रेशों को ऊन कहा जाता है। भेड़ के अतिरिक्त याक, ऊंट, बकरी आदि के त्वचीय बालों से भी ऊन प्राप्त किया जाता है।
[ख ] ऊन प्रदान करने वाले भेड़ों की कुछ भारतीय नस्लों के नाम लिखिए।
उत्तर- नाली [नली ], लोही, मारवाड़ी, रामपुर बुशायर।
[ग ] वर्णनात्मक प्रजनन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- अच्छी नस्ल की भेड़ों को जन्म देने के लिए मुलायम बालों वाली विशेष भेड़ों के चयन की प्रक्रिया वर्णात्मक प्रजनन कहलाती है।
[घ ] जाड़ों में ऊनी वस्त्रों को पहनना क्यों आरामदायक होता है?
उत्तर- जाड़ों में ऊनी वस्त्रों को पहनना आरामदायक होता है क्योंकि ऊनी रेशों के बीच वायु अधिक मात्रा में भर जाती है जो ऊष्मा की कुचालक की भांति कार्य करने लगती है। इस प्रकार सर्दी के मौसम में ऊनी वस्त्र पहनने पर शरीर का ताप स्थिर रहता है और हमें ठंड नहीं लगती है।
[ङ ] रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट के कोकून को उबलते पानी में डालना क्यों आवश्यक होता है? कारण दीजिए।
उत्तर- रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट के कोकून को उबलते पानी में डालना आवश्यक होता है। इससे कोकून के चारों ओर लिपटे रेशों के बीच का चिपचिपा पदार्थ घुल जाता है तथा रेशम के रेशे पृथक हो जाते हैं।
6- रेशम कीट विभिन्न किस्मों से प्राप्त कुछ रेशम के रेशों के नाम लिखिए।
उत्तर- विभिन्न रेशम कीटों से टसर रेशम, मूंगा रेशम, कोसा रेशम, एरी रेशम आदि प्राप्त किए जाते हैं।
- ऊन तथा रेशम के दो-दो उपयोग लिखिए।
उत्तर- ऊन के उपयोग- ऊन से स्वेटर, शॉल, कंबल, कालीन, गलीचे आदि बनाए जाते हैं।
रेशम के उपयोग- रेशमी धागों से बनारसी साड़ियां, चूड़ीदार-शेरवानी आदि बनाए जाते हैं।
8- भेड़ के रेशों को ऊन में संसाधित करने के विभिन्न चरणों को क्रमानुसार वर्णित कीजिए।
उत्तर- भेड़ के रेशों को ऊन में संसाधित करने के विभिन्न चरण –
चरण 1. भेड़ों के बालों की कटाई –
जब पाली गई भेड़ के शरीर पर बालों की घनी वृद्धि हो जाती है तो उनके बालों को शरीर से उतार लिया जाता है। यह प्रक्रिया ऊन के रेशों की कटाई कहलाती हैं।
चरण 2. अभिमार्जन –
कटाई के बाद रेशों को पानी की टंकियों में डालकर अच्छी तरह से धोया जाता है जिससे उनकी चिकनाई, गर्त और धूल निकल जाए। यह क्रिया अभिमार्जन कहलाती है।
चरण 3- छँटाई –
अभिमार्जन के बाद रेशों की छँटाई होती है। इसमें अच्छे रोएंदार रेशों को उसकी लंबाई, चिकनाई तथा हल्केपन के आधार पर अलग-अलग कर लिया जाता है।
चरण 4- कताई –
अभिमार्जन से प्राप्त रेशों को सुखा लिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त छोटे-छोटे कोमल व फूले हुए रेशों की ऊन के धागों के रूप में कताई की जाती है।
चरण 5- रंगाई –
भेड़ों अथवा बकरियों से प्राप्त रेशे प्रायः काले, भूरे अथवा सफेद रंग के होते हैं। विविधता पैदा करने के लिए इन रेशों की विभिन्न रंगों में रंगाई की जाती है।
चरण 6- ऊनी धागा बनाना –
रंगाई के पश्चात प्राप्त इन रेशों को सुलझाकर सीधा किया जाता है और फिर लपेटकर उनसे धागा बनाया जाता है।
9- रेशम कीट के जीवन-चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर- रेशम कीट का जीवन-चक्र-
रेशम कीट का जीवन चक्र- मादा रेशम कीट सैकड़ों की संख्या में अंडे देती है जो शतूत की पत्तियों की निचली सतह पर चिपके होते हैं। इन अंडों से सफेद रंग के लार्वा निकलते हैं जिन्हें कैटरपिलर/ इल्ली या लार्वा कहा जाता है। यह पेड़ की कोमल पत्तियों को खाते हैं और 4 से 6 हफ्तों में वृद्धि करके जीवन चक्र की अगली अवस्था में प्रवेश करते हैं। रेशम कीट के लार्वा में एक विशेष ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि से अत्यंत महीन लसदार पदार्थ स्रावित होता रहता है। लार्वा अंग्रेजी की संख्या आठ [8 ] के आकार में आगे से पीछे की ओर गति करते हुए अपने चारों ओर इस लसदार पदार्थ को लपेटता जाता है जो हवा के संपर्क में आने पर सूखकर रेशम के रेशेमें बदल जाता हैं। इसी बीच लार्वा प्यूपा में रूपांतरित हो जाते हैं। रेशम के रेशों से लिपटे हुए प्रत्येक प्यूपा एक सफेद गोलाकार संरचना में बंद हो जाते हैं। इन प्यूपायुक्त गोलाकार रचनाओं को कोया या कोकून कहते हैं। कोकून के भीतर ही प्यूपा विकसित होकर वयस्क रेशम कीट में बदल जाता है। अंत में रेशम कीट कोकून के रेशों को काटते हुए बाहर निकल आते हैं तथा अपना नया जीवन चक्र प्रारंभ करते हैं।
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