UP BOARD SOLUTION FOR CLASS 12TH SAMANY HINDI CHAPTER 3 राबर्ट नर्सिंग होम में
पाठ - 3 राबर्ट नर्सिंग होम में -लेखक पर आधारित प्रश्न
1- कन्हैयालाल मिश्र”प्रभाकर” का जीवन परिचय देते हुए इनके साहित्य योगदान को स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर – – जीवन परिचय- प्रसिद्ध रिपोर्ताज लेखक कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” का जन्म 29 मई सन् 1906 ई० को देवबन्द, (सहारनपुर) में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।। इनके पिता पं० रमादत्त मिश्र बहुत मृदु स्वभाव के थे, लेकिन माताजी कठोर हृदय वाली थीं ।। इन्होंने इसी विषय में अपने एक संस्मरण में भी लिखा है-“पिता जी दूध मिश्री थे, तो माँ लाल मिर्च ।। ” परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इनकी प्रारम्भिक शिक्षा ठीक प्रकार नहीं हो पाई ।। पढ़ने की उम्र में ही देशानुराग की भावना इनके मन में जाग्रत हो गई ।। खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में प्रसिद्ध राष्ट्र-नेता मौलाना आसफ अली के भाषण का इन पर गहरा प्रभाव हुआ और ये स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े तथा आजीवन देश-सेवा में लगे रहे ।। इसी कारण कई बार इन्हें जेल-यात्रा भी करनी पड़ी ।। ये सदैव राष्ट्र-नेताओं के सम्पर्क में रहते थे ।। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जीवन-पर्यन्त ये पत्रकारिता में संलग्न रहे ।। इन्होंने कई स्वतन्त्रता सेनानियों के संस्मरण लिखे है, जिनमें भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास का यथार्थ चित्रण हुआ है ।। 9 मई सन् 1995 ई० को इस देशानुरागी तथा महान् साहित्यकार ने अन्तिम साँस ली ।। साहित्यिक योगदान- हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रकारों, संस्मरणकारों और निबन्धकारों में प्रभाकर जी का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है ।। इनकी रचनाओं में कलागत आत्मपरकता, चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता को ही प्रमुखता प्राप्त हुई है ।। पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रभाकर जी को अभूतपूर्व सफलता मिली ।। पत्रकारिता को इन्होंने स्वार्थसिद्धि का साधन नहीं बनाया, वरन् उसका उपयोग उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना में ही किया ।। प्रभाकर जी ने हिन्दी गद्य को एक नई शैली दी ।। इनकी यह शैली नए मुहावरों और लोकोक्तियों से युक्त है ।। अपने फुटकर लेखों द्वारा इन्होंने मानवीय आदर्शों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।। इनका यही आदर्श पत्रकारिता के क्षेत्र में भी दिखाई देता है ।। स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों में इन्होंने स्वतन्त्रता सेनानियों के अनेक मार्मिक संस्मरण लिखे ।। इन संस्मरणों में भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास स्पष्ट हुआ है और इनमें युगीन परिस्थितियों और समस्याओं का सजीव चित्रण भी हुआ है ।। इस प्रकार संस्मरण, रिपोर्ताज और पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रभाकर जी की सेवाएँ चिरस्मरणीय हैं ।।
2- कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” की कृतियों का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर – – कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” जी की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं
रेखाचित्र- माटी हो गई सोना, नई पीढ़ी के विचार, जिन्दगी मुस्कराई, भूले-बिसरे चेहरे ।।
संस्मरण-दीप जले शंख बजे ।।
ललित निबन्ध-क्षण बोले कण मुस्काए, बाजे पायलिया के घुघरू ।।
सम्पादन-विकास, नया जीवन (समाचार-पत्र) लघुकथा-धरती के फूल, आकाश के तारे ।।
यात्रा-वृत्त- हमारी जापान यात्रा ।।
अन्य कृति- “महके आँगन चहके द्वार” ।।
3- कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर – – प्रभाकर जी का गद्य इनके जीवन में ढलकर आया है ।। इनकी शैली में इनके व्यक्तित्व की दृढ़ता, विचारों की सत्यता, सहजता, उदारता तथा मानवीय करुणा की झलक मिलती है ।। प्रभाकर जी की भाषा सामान्य रूप से तत्सम शब्द-प्रधान, शुद्ध और साहित्यिक खड़ी बोली है ।। उसमें स्पष्टता, सरलता और सुबोधता है ।। पाठक सहज प्रवाह के साथ उसका आनन्द लेता है ।। भाषा को सजीव, गतिशील, व्यावहारिक और स्वाभाविक बनाने के लिए प्रभाकर जी ने अन्य भाषाओं के शब्दों का भी समुचित प्रयोग किया है ।। मुहावरों, लोकोक्तियों के प्रयोग से प्रभाकर जी की भाषा में अभिव्यंजना का सौन्दर्य उत्पन्न हुआ है ।। अनेक स्थलों पर आलंकारिक भाषा ने कविता जैसा सौन्दर्य उत्पन्न कर दिया है ।। छोटी-से-छोटी बात को लिखकर दीप्तिमय बना देना ही शैली की विशेषता है ।। हिन्दी में ऐसी शैली कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” के पास है ।। प्रभाकर जी का गद्य अधिकांश रूप में भावात्मक है ।। अपने संस्मरणों, रेखाचित्रों आदि में प्रभाकर जी एक कवि के रूप में अपनी बात कहते हुए दिखाई देते हैं ।। भावुकता और मार्मिकता इनके शब्द-शब्द में विद्यमान है ।। अनेक स्थलों पर विवरण देने के उद्देश्य से प्रभाकर जी का गद्य वर्णनात्मक हो गया है ।। ऐसे स्थलों पर प्रयुक्त की गई भाषा पर्याप्त सरल है ।। अपने वर्णन द्वारा प्रभाकर जी ऐसे स्थलों का सजीव चित्र-सा प्रस्तुत कर देते है ।। नाटकीयता से रोचकता और सजीवता का गुण उत्पन्न होता है ।। गम्भीर स्थलों के बीच में नाटकीयता माधुर्य का संचार करती है ।। प्रभाकर जी ने अपने गद्य में नाटकीय शैली का भरपूर प्रयोग किया है ।। इन्होंने अपने कथनों में माधुर्य की सृष्टि की है ।। प्रभाकर जी के वाक्य-विन्यास में विविधता है ।। भावुकता के क्षणों में इन्होंने व्याकरण के कठोर बन्धन से मुक्त कवित्वपूर्ण वाक्य-रचना भी की है ।। निश्चय ही ये हिन्दी के एक मौलिक शैलीकार हैं ।।
4- कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर”का हिन्दी साहित्य में क्या स्थान है?
उत्तर – – कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” मौलिक प्रतिभासम्पन्न गद्यकार थे ।। इन्होंने हिन्दी गद्य की अनेक नई विधाओं पर अपनी लेखनी चलाकर उसे समृद्ध किया है ।। पत्रकारिता एवं रिपोर्ताज के क्षेत्र में भी इनका अद्वितीय स्थान है ।। हिन्दी साहित्य-जगत में अपना अलग स्थान रखने वाले और अनेक दृष्टियों से एक विशिष्ट गद्यकार के रूप में प्रतिष्ठित इस महान् साहित्यकार को मानव मूल्यों के सजग प्रहरी के रूप में सदैव याद किया जाएगा ।।
1- निम्नलिखित गद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
(क) मैंने भावना……………………………….बिखेर सकती है ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक “गद्य गरिमा” के कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” द्वारा लिखित “राबर्ट नर्सिंग होम में” नामक रिपोर्ताज से अवतरित है ।।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यावतरण में लेखक ने विश्वप्रसिद्ध नारी मदर टेरेजा के सेवाभाव का वर्णन किया है ।।
व्याख्या- लेखक कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” ने मदर टेरेजा का वर्णन करते हुए कहा है कि मदर टेरेजा को देखकर उनके मन में श्रद्धाभाव उत्पन्न हुए और उन्होंने श्रद्धा के साथ सोचा कि कोई स्त्री, जो बिना शिशु को जन्म दिए माता का पद प्राप्त कर सकती है और मात्र तीस रुपए के मासिक वेतन जो साधारण जीवन निर्वाह करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है में पिछले बीस वर्षों से दिन-रात अपनी जन्मभूमि को त्यागकर अपनी कर्मभूमि भारत में सेवा करने में मग्न है, केवल वह स्त्री (नारी) ही असाध्य रोगों (दुःखों) से तड़पते हुए रोगियों के जीवन में हँसी का संचार प्रवाहित कर सकती है अर्थात् केवल वह स्त्री (मदर टेरेजा) ही निस्वार्थ भाव से सेवा करते हुए दुखों-दर्दो से तड़पते हुए असंख्य रोगियों को सात्वना देते हुए उनके जीवन में आशा की किरणें जगमगा सकती है ।।
साहित्यिक सौन्दर्य- 1- यहाँ लेखक ने मदर टेरेजा के स्वरूप का सुंदर वर्णन किया है ।। 2- भाषा- भावाभिव्यक्ति में समर्थ खड़ी बोली ।। 3-शैली- भावात्मक ।। 4- वाक्य-विन्यास-सुगठित ।। 5-शब्द-चयन-विषय वस्तु के अनुरूप ।।
(ख) मैंने बहुतों को ………………………………………………………………………….. सुरक्षित रहे ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में विश्व-प्रसिद्ध मानव-सेविका मदर टेरेजा की सेवा-भावना एवं आत्म-त्याग की मनोरम झाँकी प्रस्तुत की गयी है और साथ ही उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व की प्रशंसा भी की गयी है ।।
व्याख्या- लेखक कहता है मैंने संसार में ऐसे बहुत-से व्यक्तियों को देखा है, जो अपनी विशिष्ट विशेषताओं से लोगों को अपना बना लेते हैं एवं अपार यश अर्जित करते हैं ।। कुछ लोग अपने रूप-सौन्दर्य द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिनके पास अपार धन होता है और वे उसके बल पर लोगों पर अपना प्रभाव जमाते हैं या दूसरों को आत्मीय बना लेते हैं ।। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनमें कोई विशिष्ट गुण होता है और वे अपने गुणों द्वारा बहुत कुछ प्राप्त कर लेते है; परन्तु आज लेखक ने एक ऐसी अद्भुत नारी को देखा, जिसने मानवता के लिए सर्वस्व समर्पित करके दूसरों की श्रद्धा और आदर को प्राप्त किया है ।। लेखक ने आज समर्पण और प्राप्ति का अद्भुत और सुन्दर दृश्य अपनी आँखों से देखा था ।। एक ओर वह पीड़ित रोगी था, जिसने अपनी पीड़ा से मदर टेरेजा जैसी महान् नारी का प्यार और सद्भाव प्राप्त किया था तो दूसरी ओर मदर टेरेजा थीं, जिनका समर्पण रोगियों की पीड़ा को दूर करने के लिए सुरक्षित था ।।
साहित्यिक सौन्दर्य- 1- भाषा- परिमार्जित, अलंकृत, भावमयी और साहित्यिक ।। 2- शैली- भावात्मक ।। 3- वाक्यविन्यास- सुगठित ।। 4- शब्द-चयन- विषय-वस्तु के अनुरूप ।।
5- भावसाम्य- वस्तुतः प्रेम एवं सेवा मनुष्य का सबसे उच्च लक्ष्य है ।। व्यक्ति की महानता की यही एकमात्र कसौटी है कि उसके हृदय में मानव-मात्र के लिए कितना प्रेम है ।। कहा जाता है कि
एक रत्ती भर सच्चा प्रेम सम्पूर्ण शरीर को स्वर्ण का ही बना डालता है
सबै रसायन मैं किया, प्रेम समान न कोय ।।
रत्ती तन में संचरै, सब तन कंचन होय॥
(ग) ऊपर के बरामदे…………………………………………………..जानना भी तो नहीं ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यावतरण में राबर्ट नर्सिंग होम की सबसे वृद्ध मदर मार्गरेट के सेवाभावी जादुई व्यक्तित्व का आलंकारिक वर्णन किया गया है ।।
व्याख्या- लेखक कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” नर्सिंग होम की सबसे वृद्ध मदर मार्ग रेट के जादुई व्यक्तित्व के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मैं जब ऊपर के बरामदे में खड़ा था तो मैंने एक जादू की पुड़िया देखी, जो जीती-जागती थी अर्थात् मैंने जादूगर की पुड़िया के समान एक व्यक्तित्व को देखा ।। हमने किस्से-कहानियों में कामरूप के जादू के विषय में अनेक विस्मयकारी बातें सुनी हैं कि वहाँ के जादूगर अपने जादू से आदमी को मक्खी बना दिया करते थे ।। इस जादू के विषय में हमने केवल सुना है, अपनी आँखों से उसे देखा कभी नहीं ।। मगर मैंने मदर मार्गरेट के रूप में एक ऐसी अद्भुत जादूगरनी को देखा है, जो अपने ममतामयी, दयालु और सेवाभावी व्यक्तित्व के जादू से मक्खी को आदमी बना देती है ।। अर्थात् वह मृतप्राय एक दीन-हीन रोगी में जीवन की आशा का संचार करके उसे आदमी बना देती हैं, जिस पर इतनी बड़ी संख्या में मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं कि वह कोई व्यक्ति न होकर मक्खियों का बड़ा छत्ता हो ।।
जिस रोगी को सामान्य व्यक्ति हाथ लगाना तो दूर, देखना तक न चाहता हो, ऐसी मक्खीमय रोगी को अपनी सेवा-शुश्रूषा से स्वस्थ हँसता-खिलता व्यक्ति बना देने का जादू केवल मदर मार्गरेट के पास है ।। यद्यपि उनकी शारीरिक सामर्थ्य कुछ भी नहीं है ।। उनका कद इतना छोटा है कि देखने में वह गुड़िया जैसे लगती हैं, किन्तु उस गुड़िया जैसे शरीर में बिजली जैसी चुस्ती और फुर्ती है ।। उनके व्यवहार में ऐसी मृदुता एवं मस्ती है कि उनको देखकर ही व्यक्ति के मन का अवसाद दूर हो जाता है ।। उनकी हँसी ऐसी निर्मल और धवल कि जैसे मोतियों की कोई बोरी खुलकर बिखर गई हो ।। उनके काम में ऐसी निपुणता और सन्तुलन है कि त्रुटि की वैसे ही कोई गुंजाइश नहीं ।। मानो वह व्यक्ति न होकर कोई मशीन हो ।। मशीन अपने कार्य में कोई त्रुटि कर सकती है किन्तु मदर मार्गरेट कोई त्रुटि करें, ऐसा सम्भव नहीं ।। वे भारत में पिछले चालीस वर्षों से इसी प्रकार नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा कर रही हैं ।। इस मानव-सेवा में वे ऐसी आनन्दमग्न हैं कि उसके सम्मुख उन्हें जीवन की कोई इच्छा अथवा लालसा तुच्छ दिखाई देती है ।। मानव-सेवा के आनन्द रस को त्यागकर वह अपने जीवन में किसी अन्य वस्तु की प्राप्ति की लालसा तो दूर उसके विषय में सोचना अथवा जानना भी नहीं चाहती ।।
साहित्यिक सौन्दर्य-1- लेखक ने मानव-सेवा को सबसे बड़े जादू के रूप में निरूपित करके उसका महिमा मण्डन किया है, जो सब प्रकार से सराहनीय है ।। 2- भाषा- भावाभिव्यक्ति में समर्थ सरल खड़ीबोली ।। 3-शैली-आलंकारिक एवं वर्णनात्मक ।।
(घ) यह अनुभव………………………………….. सर्वोत्तम जोत है ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग- लेखक ने प्रस्तुत गद्यांश में राबर्ट नर्सिंग होम ने समर्पित भाव से सेवारत और सर्वाधिक वृद्धा नर्स मार्गरेट के मुसकानमय जीवन का चरित्रांकन किया है ।।
व्याख्या- मदर मार्गरेट इन्दौर के नर्सिंग होम की सर्वाधिक वृद्धा नर्स हैं ।। लेखक ने वहाँ रहकर देखा कि उस नर्सिंग होम में जो जितनी वृद्धा नर्स है, वह उतनी ही अधिक सेवा-परायण, कर्त्तव्यपरायण, क्रियाशील, प्रसन्न और मुसकानमीय है ।। उसके चेहरे पर उतनी ही अधिक खिलखिलाहट देखने को मिलती है ।। उनके अन्दर अलौकिक प्रकाश है, जिससे उनका जीवन अत्यधिक सजग है ।। ये सब सेवापरायण जीवन के प्रकाश को फैलाने वाले हैं ।। इनमें अपूर्व विश्वास भरा है ।। इनका जीवन एकाग्र साधना का जीवन है ।। इस नर्सिंग होम में रहने वाली नर्से यद्यपि भिन्न-भिन्न स्थानों की है, अलग-अलग भाषाएँ बोलती हैं, किन्तु सबके हृदय में जो एक ही अद्भुत ज्योति प्रज्वलित है, वह है सेवा और प्यार की ज्योति ।। यही ज्योति सर्वोत्तम ज्योति है, जो सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर देती है ।।
साहित्यिक सौन्दर्य- 1- भाषा- परिमार्जित साहित्यिक खड़ी बोली ।। 2- शैली- भावात्मक और विचारात्मक शैली का समन्वित रूप ।। 3- वाक्य-विन्यास- सुगठित ।। 4- शब्द-चयन- विषय-वस्तु के अनुरूप ।। 5- लेखक ने नों के जीवन के निःस्वार्थ सेवाभाव को अंकित किया है ।। 6- भावसाम्य-संस्कृत के किसी छवि ने सेवाधर्म की गहन गम्भीरता इस प्रकार प्रकट की है- “सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्य ।। “
(ङ) वह हम लोगों ……………………………….. नहीं उलझना है ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह ।। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यावतरण में लेखक ने सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड का वर्णन किया है जिसका तबादला धानी के भील सेवाकेंद्र में होने पर वह जाने से पहले सबसे मिलने आती है ।।
व्याख्या- लेखक कहते हैं कि सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड का तबादला धानी के भील सेवाकेंद्र जैसी जगह पर होने पर भी कपूर जैसे गोरे वर्ण वाली वह स्त्री बहुत खुश थी ।। राबर्ट नर्सिंग होम से जाने से पहले वह लेखक और उसकी मित्र (रोगिणी) से मिलने आई ।। जिस प्रकार वह पहले आती थी, हँसती व मुस्कुराती हुई ।। उस स्थान से जाने का दुःख उसके मुख पर चिह्मित नहीं था ।। उसके हृदय में एक नए स्थान को देखने की उमंग थी, परन्तु उसका जाना लेखक को बुरा लग रहा था ।। परन्तु उसे इसकी परवाह न थी ।। लेखक के मित्र से मिलकर वह दूसरे रोगियों से विदा लेने के लिए चली गई ।। इधर-उधर जाते समय सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड कई बार लेखक के कमरे के सामने से गुजरी, परन्तु वह दोबारा लेखक के कमरे में उनसे मिलने नहीं आई ।। लेखक ने स्वयं से कहा कि उसके बारे में कोई कितना ही सोचकर उलझता रहें, परन्तु उसे नहीं उलझना है वरन् उसे तो अपनी नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने के कार्य में लीन रहना है ।।
साहित्यिक सौन्दर्य- 1- यहाँ लेखक ने सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड की सुंदरता तथा स्वभाव का वर्णन किया है ।। 2- भाषा भावाभिव्यक्ति खड़ी बोली ।। 3-शैली- आलंकारिक एवं वर्णनात्मक ।।
2- निम्नलिखित सूक्तिपरक वाक्यों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
(क) लम्बा मुँह अच्छा नहीं लगता, बीमार के पास लम्बा मुँह नहीं ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक “गद्य गरिमा” से संकलित “राबर्ट नर्सिंग होम में” नामक रिपोर्ताज से अवतरित है ।। इसके लेखक “कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” जी है ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में लेखक ने बताया है कि रोगी के पास निराश और दुःखी चेहरा लेकर नहीं जाना चाहिए ।।
व्याख्या- राबर्ट नर्सिंग होम में मदर टेरेजा रोगियों के पास स्थित उनके निराश और दुःखी परिजनों को देखकर उन्हें एक मधुर डाँट लगाती हुई कहती हैं कि रोगी के पास निराशा और दुःखी लटका हुआ चेहरा लेकर नहीं जाना चाहिए; क्योंकि इसका रोगी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।। परिजनों को निराश और दुःखी देखकर रोगी समझता है कि उसका रोग असाध्य है और वह अब ठीक नहीं हो सकता ।। रोगी को इस प्रकार से सोचना उसके लिए घातक होता है ।। रोगी की इच्छा-शक्ति उसके उपचार से कहीं अधिक उसको स्वस्थ रखने में सहायक होती है और परिजनों की निराशा उसकी इसी इच्छा शक्ति को नष्ट कर डालती है ।। इसलिए टेरेजा परिजनों को निर्देश देती हैं कि रोगी के पास लम्बा मुँह (निराश चेहरा) अच्छा नहीं लगता; अत: कोई भी परिजन यहाँ मुँह लटकाए नहीं होना चाहिए ।।
(ख) मनुष्य-मनुष्य के बीच मनुष्य ने ही कितनी दीवारें खडी की है ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह प्रसंग- कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” ने इस सूक्ति में समाज में भेदभाव और छुआछूत की नित नयी उभरती दीवारों की ओर संकेत किया है ।।
व्याख्या- एक समय की बात है, जब लेखक ने फ्रांस की पुत्री मदर टेरेजा से पूछा था कि वह जर्मनी की पुत्री क्रिस्ट हेल्ड के साथ इतने प्यार से कैसे रहती हैं, जब कि हिटलर ने मदर की मातृभूमि फ्रांस को पद दलित किया था ।। इस पर मदर टेरेजा ने उत्तर दिया कि हिटलर बुरा है | उसने लडाई छेदी थी उसमें इस लडकी का घर भी ढह गया था और मेरा भी हम दोनों एक हैं ।। यह उत्तर सुनकर लेखक ने सोचा कि मनुष्य ने ही मनुष्य-मनुष्य के बीच जाति, धर्म, वर्ग तथा भेदभाव की फौलादी दीवारें खड़ी की हैं, जब कि ईश्वर ने उनमें कोई भेद नहीं किया ।। ईश्वर ने तो सभी को समान ही बनाया है ।।
(ग) यह किस दीपक की जोत है? जागरूक जीवन की! सेवा निरत जीवन की अपने विश्वासों के साथ एकाग्र जीवन की ।। सन्दर्भ- पहले की तरह ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में लेखक ने राबर्ट नर्सिंग होम की सबसे बूढ़ी मदर मार्गरेट की सेवा के प्रति समर्पण भावना के साथ-साथ उसकी जिजीविषा शक्ति का वर्णन किया है ।।
व्याख्या- मदर मार्गरेट नर्सिंग होम की सबसे बूढ़ी परिचारिका हैं, किन्तु वे सबसे अधिक उत्साही, सेवा में समर्पित और जीवन और जीवन से निराश रोगियों के जीवन की ज्योति जलाने में सर्वाधिक सक्षम ।। लेखक उन्हें देखकर आश्चर्यचकित होता है कि मार्गरेट नामक यह दीपक, जो स्वयं बुझने के नजदीक है, कितने शान्त और निश्चल तरीके से जलता हुआ लोगों के जीवन की ज्योति जला रहा है ।। वास्तव में यह किसी जादू से कम नहीं ।। लेखक यह निर्णय नहीं कर पाता कि मार्गरेट की इस प्रबल जीवन-ज्योति का आखिर रहस्य क्या है- जीवन के प्रति उनकी अत्यधिक सजगता, जीवन की लक्ष्यशीलता अथवा मानवमात्र की सेवा के प्रति उनकी समर्पणशीलता?
(घ) भाषा के भेद रहे हैं, रहेंगे भी, पर यह जोत विश्व की सर्वोत्तम जोत है ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में राबर्ट नर्सिंग होम में कार्यरत अत्यन्त बूढ़ी नर्स मदर मार्गरेट की भेदभावरहित निश्छल सेवा और रोगियों के मध्य बाँटती स्नेहमयी मुस्कान का आलंकारिक वर्णन किया गया है ।।
व्याख्या- मदर मार्गरेट नर्सिंग होम की सबसे बूढ़ी नर्स हैं, किन्तु सबसे अधिक चुस्त, क्रियाशील और सेवा को समर्पित हैं ।। वह विदेशी हैं और उनकी हिन्दी भाषा का उच्चारण भी अंग्रेजी से बहुत अधिक प्रभावित है, किन्तु इसका उनके कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है ।। वह देश-जाति और भाषा के भेदभाव के बिना रोगियों की पूरी तन्मयता से सेवा करती हैं और अपने मृदु स्नेह की चुटकी से जीवन से निराश हो चुके रोगियों में जीवन की ऐसी ज्योति जगाती हैं मानो किसी ने बुझते दीपक में तेल उड़ेल दिया हो ।। निस्सन्देह यह विश्व की सर्वोत्तम ज्योति है ।। संसार के लोगों में देश-भाषा-जाति के भेद हैं और आगे भी रहेंगे, किन्तु मदर मार्गरेट की यह स्नेह-ज्योति आजीवन रोग शैया पर बुझने को उद्यत मानव-दीपों में जीवनाशा का स्नेह भरती रहेगी ।। (ङ) हम भारतवासी गीता को कण्ठ में रखकर धनी हुए, पर तुम उसे जीवन में ले कृतार्थ हुईं ।। सन्दर्भ- पहले की तरह प्रसंग- इस सूक्ति में लेखक ने सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड की सेवा एवं कर्म-भावना पर प्रकाश डाला है ।। व्याख्या- लेखक सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड को संबोधित करते हुए कहता है कि गीता में निष्काम कर्म का उपदेश है, जबकि भारतवासी कर्म का क्रियात्मक तथा व्यावहारिक रूप से पालन नहीं कर रहे हैं ।। गीता का कर्म-सन्देश हमारे दैनिक जीवन में न आकर केवल कण्ठ तक सीमित है, जबकि आप रोगियों की रात-दिन सेवा कर कर्म की भावना को साकार रूप से ग्रहण कर रही हैं, निश्चय ही आप सेवा करके धन्य हैं ।।
विशेष- भारतवासियों की कर्म के प्रति उदासीनता की ओर संकेत किया गया है ।।
अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
1- “राबर्टनर्सिंगहोम में पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर – – प्रस्तुत पाठ ‘राबर्ट नर्सिंग होम में” “कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” द्वारा लिखित रिपोर्ताज है ।। इसमें लेखक ने इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम की साधारण घटना को अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है ।। लेखक ने इस रिपोर्ताज में नर्सिंग होम में कार्यरत तीन परिचारिकाओं मदर मार्गरेट, मदर टेरेजा एवं सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड का परिचय एवं उनके सेवाभाव का वर्णन किया है ।। घटना का चित्रण इतने मार्मिक रूप में हुआ है कि वह सच्चे धर्म अर्थात् मानव-सेवा और समता की एक अद्भुत मिसाल बन गया है ।।
लेखक “प्रभाकर” जी कहते हैं कि जब वह इन्दौर गए तो जिनके यहाँ वह रुके अर्थात् जिनके घर अतिथि बनकर गए थे उनके उस मित्र के रोग के लपेट में आ जाने के कारण उन्हें राबर्ट नर्सिंग होम ले जाना पड़ा तथा उनकी सेवा का उत्तरदायित्व लेखक पर आ गया ।। यह घटना सितंबर 1951 की है ।। रोग पूरे वेग में था और सभी लोग चिन्तित थे, वातावरण रोगी की स्थिति के कारण सुस्त था अचानक लेखक ने देखा सफेद वस्त्र धारण किए हुए पैतालीस वर्ष की, गोरे वर्ण की एक नारी कमरे में आई जिसका चेहरा सूर्य की किरणों के समान लाल तथा जिसका कद लंबा था ।। उसने कमरे में आते ही लेखक से कहा कि रोगी के पास निराश मुद्रा अच्छी नहीं लगती, इसका रोगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।। उनके स्वर में अधिनायक या अधिकारी के समान आदेश न था वरन् एक माँ के समान ममता थी ।। वास्तव में वह माँ ही थी, उस नर्सिंग होम की अध्यक्षा मदर टेरेजा ।। जिनकी मातृभूमि फ्रांस थी परन्तु उनकी कर्मभूमि भारत थी, जो युवावस्था से उम्र के ढलाव तक रोगियों की सेवा में लीन थी ।। इसके सिवा उनके पास कोई काम न था ।। उनका परम कर्त्तव्य बस यही था- सेवाभाव ।। उन्होंने अपने गोरे हाथो से रोगी के गालों को थपथपाया जिससे उसके मुख पर हँसी की लहर दोड़ी और वातावरण का बोझिलपन कुछ कम हो गया ।। तभी अचानक डॉक्टर ने कमरे में प्रवेश किया ।। मदर ने डॉक्टर से कहा- डॉक्टर तुम्हारा रोगी हँस रहा है ।। डॉक्टर ने अपने अनुभवों के आधार पर उत्तर दिया, क्योकि मदर तुम यह हँसी बिखेरती रहती हो ।।
लेखक कहता है कि मैंने श्रद्धाभाव से सोचा जो नारी बिना किसी शिशु को जन्म दिए मदर का पद प्राप्त कर सकती है और बहुत कम वेतन में पिछले बीस वर्षों से दिन-रात रोगियों की सेवा कर रही है केवल वह ही बीमार-पीड़ितों के मुख पर हँसी ला सकती है ।। तीसरे पहर जब थर्मामीटर लिए मदर टेरेजा आई तो उनके साथ विशिष्ट सफेद वस्त्रों में एक नवयुवती भी थी ।। उसका नाम क्रिस्ट हैल्ड था जो जर्मन देश की निवासी थी ।। उसका रूप साक्षात् देवी के समान था ।। लेखक के कहने पर कि जर्मन देश महान् है जो हिटलर जैसे तानाशाह को भी जन्म दे सकता है और उसके जैसी सेवा में लीन बालिका को भी, तो वह गर्व से अभिभूत हो बोली- यस-यस ।। उसके दूसरे कमरे में जाने के बाद लेखक ने मदर टेरसा से कहा कि आप इस जर्मन देश की लड़की के साथ प्यार से रहती है तो वह बोली हम दोनों ईश्वर के लिए कार्य करते है ।। हिटलर के फ्रांस को बरबाद करने के बारे में जिक्र करने पर वह कहती है कि हिटलर एक निरंकुश शासक था जिसकी लड़ाई में मेरा और इस लड़की (क्रिस्ट हैल्ड) का घर ढह गया था ।। अब हम दोनों एक हैं ।। मदर के जाने के बाद लेखक सोचता रहा कि मनुष्य ने ही अपने चारों तरफ दीवारें बनाई है, ईश्वर ने तो सबको समान ही बनाया था ।। क्रिस्ड हैल्ड ने अभी पाँच वर्षों के लिए ही सेवा का व्रत लिया था ।। रोगिणी के काले बालों को देखकर उसे अपने पिता की स्मृति हो आई, जिससे उसकी आँखे नरम हो गई ।। वह अकसर हिन्दी, अंग्रेजी व जर्मन भाषा के शब्दों को मिलाकर बोलती थी ।।
लेखक ने मदर टेरेजा से वार्तालाप जारी रखा– कि क्या वह अपने देश से आने के बाद फिर कभी वहाँ गई थी ।। मदर ने बताया कई वर्ष पूर्व विश्वभर के पूजा-गृहों का सम्मेलन फ्रांस में हुआ था ।। भारत से भी दो मदर गई थी, जो फ्रांस की ही निवासी थी ।। उनके माता-पिता उनसे मिलने आए परंतु वे उनको नहीं पहचान सके थे ।। अंत में उनका नाम जानकर वे उनसे मिले ।। मदर टेरेजा रोगी को सांत्वना देती थी व उनके लिए विनती करती ।। लेखक ने वहाँ होम की सबसे वृद्ध मदर मार्गरेट को देखा, जो छोटे कद की थी परंतु उनकी चाल में गजब की चुस्ती थी ।। जो कार्य करने में बहुत तेज थी, जो पिछले चालीस वर्षों से भारत में सेवा कर रही थीं ।। वह ऑपरेशन के लिए आए रोगी को अपनी ही अलग शैली में सांत्वना देती थी ।। जो रोगी को कहती थी-जि-उती, जि-उती अर्थात् जी उठी ।। लेखक कहते हैं कि मैने वहाँ रहकर ही देखा वहाँ जो जितनी वृद्धा नर्स है उतनी ही अधिक सेवा पारायण व कर्त्तव्यनिष्ठ, क्रियाशील, प्रसन्न और मुस्कानमयी है ।। वहाँ रहने वाली नर्से यद्यपि अलग-अलग देशों की हैं, वे भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलती हैं किन्तु उन सबके हृदय में जो एक ही जोत प्रज्वलित है, वह सेवा और प्रेमाभाव की ज्योति है ।। सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड का तबादला धानी के भील सेवाकेंद्र जैसे निर्जन स्थान पर भी हो जाने पर उसके मुख पर उस स्थान से जाने का कोई दुःख का लक्षण न था ।। वह प्रसन्न थी, सदैव की तरह ।। वह जाने से पहले सबसे मिलने आई ।। लेखक को उसका जाना अच्छा न लगा था परन्तु वह तो नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने को तत्पर थी ।। तब लेखक का मन सम्पूर्ण मदर-सिस्टर वर्ग के प्रति श्रद्धाभाव से भर गया क्योंकि श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित निष्काम कर्म का उपदेश तो भारतवासियों के केवल कण्ठ तक ही सीमित रह गया है, जबकि वे रोगियों की सेवा कर कर्म की भावना को साकार रूप में ग्रहण कर रही हैं ।। निश्चय ही वे धन्य हैं ।।
2- पाठ के आधार पर एक आदर्श नर्स की विशेषताएँबताइए ।।
उत्तर – – एक आदर्श नर्स (परिचारिका) होने के लिए मृदु, सहनशील तथा विनम्र होना चाहिए ।। वह सेवापरायण, कर्त्तव्यपरायण, क्रियाशील, प्रसन्न और मुसकानमयी हो जिससे वह रोगी को सांत्वना देकर उसे शांति प्रदान कर सके ।।
3- “जो बिना प्रसव किए ही माँ बन सकती है इस कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – – यहाँ लेखक का तात्पर्य मदर टेरेजा से है जो अपने नि:स्वार्थ सेवाभाव के कारण बिना किसी शिशु को जन्म दिए, असंख्य लोगों की माँ का पद पा गई थी ।। मदर टेरेजा की मानवता सारे संसार में प्रसिद्ध है ।। उन्होंने असंख्य रोगियों की एक माँ के समान देखभाल व सेवा की ।। उनकी ममतामयी मुस्कान से ही रोगी अपनी पीड़ा भूल जाते थे ।।
4- पाठ से छाँटकर ऐसे पाँच उदाहरण दीजिए, जिनमें कविता जैसी आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया हो ।।
(उदाहरण-सूखे अधरों पर चाँदी की एक रेखा ।। )
उत्तर – – प्रस्तुत पाठ “राबर्ट नर्सिंग होम में लेखक ने आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया है जिसके कुछ उदाहरण निम्न हैं
(i) उन्होंने रोगी के दोनों म्लान कपोल अपने चाँदनी-चर्चित हाथों से थपथपाए ।।
(ii) शायद चाँदनी को दूध में घोलकर ब्रह्मा ने उसका निर्माण किया हो ।।
(iii) मदर के स्वर में मिश्री ही मिश्री, पर मिश्री कूजे की थी ।।
(iv) हँसी उनकी यों कि मोतियों की बोरी खुल पड़ी और काम यों मशीन मात माने ।।
(v) बूढ़ी मदर की हँसी के दीपक ने झपकी तक नहीं खाई ।।
5- मदर टेरेजा और लेखक की बातचीत के आधार पर टिप्पणी लिखिए ।।
उत्तर – – लेखक ने मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड को एक साथ प्रेम से देखकर मदर टेरेजा से पूछता है आप इस जर्मन लड़की के साथ प्यार से रहती है तो मदर टेरेजा कहती हैं हाँ क्योंकि वे दोनों ईश्वर के लिए काम करती है ।। लेखक के मदर टेरेजा को टिटोलने पर कि जर्मन के तानाशाह हिटलर ने मदर के देश फ्रांस को बरबाद किया है तब मदर उत्तर देती हैं कि उस युद्ध में क्रिस्ट हैल्ड और मेरा दोनों का घर बरबाद हुआ था ।। इसलिए हम दोनों समान है लेखक मदर से पूछता है कि क्या वह अपने घर दोबारा गई है, मदर टेरेजा बताती है कि कई वर्ष पहले फ्रांस में विश्वभर के पूजा-ग्रहों के सम्मेलन में भारत से भी जो मदर गई थीं, जो फ्रांस से ही थी ।। उनकी माताएँ उनसे मिलने जहाज पर आईं पर वे अपनी पुत्रियों को पहचान नहीं पाई और उनसे उनके नाम जानने के बाद ही उनके गले मिलीं ।। इस कहानी को सुनने के बाद मदर चली गई जिससे लेखक ने महसूस किया कि अपनी माताओं द्वारा पहचानी न जाने वाली पुत्रियों में से मदर अवश्य ही एक होंगी ।। लेखक मदर से बस यह जान सका, कि उनके घर से चिट्ठी आने पर वे भारत की कोई फोटो अपने घर भेज देती है ।।
Hi
Pandit ji