Up board solution for class 8 hindi manjari sanskrit chapter 5 सहसा विदधीत न क्रियाम्
(पञ्चमः पाठः — सहसा विदधीत न क्रियाम्)
ईस्वीयवर्षस्य सप्तमशताब्द्यां महाराष्ट्रप्रान्ते आसीद् राजा विष्णुवर्धनः । तस्य राजसभायां महाकविः भारविः राजकविः आसीत् । तस्य महाकाव्यं किरातार्जुनीयं पुराकालादेव अत्यन्तं प्रसिद्धं वर्तते ।
हिन्दी अनुवाद – सातवीं शताब्दी में महाराष्ट्र प्रान्त में विष्णुवर्धन राजा था। उसकी राज्यसभा में.. महाकवि भारवि राजकवि था। उसको महाकाव्य ‘किरातार्जुनीय’ प्राचीनकाल से ही अत्यन्त प्रसिद्ध है।
भारविः बाल्यकाले महता परिश्रमेण विद्याम् अर्जितवान् । तस्य विलक्षणा प्रतिभा काव्यरचनायामपि प्रवृत्ता । स सर्वदा विद्वत्सभासु सोत्साहम् उपातिष्ठत् । तत्र पण्डितैः सह अनेकवारं चातुर्येण शास्त्रार्थम् अकरोत् । स कविसम्मेलनेषु निरन्तरं काव्यम् अश्रावयत् । श्रोतारः तस्य रम्यं काव्यं श्रुत्वा भृशं प्रशंसन्ति स्म । इत्थं काव्यकलायां तस्य कीर्तिलता अल्पेनैव कालेन चतुर्दिक्षु प्रासरत् ।
हिन्दी अनुवाद – भारवि ने बाल्यकाल में बहुत परिश्रम से विद्या प्राप्त की। उसकी विलक्षण बुद्धि काव्य रचना में भी प्रवृत्त थी। वह हमेशा विद्वानों की सभाओं में उपस्थित होता था। वहाँ पण्डितों के साथ अनेक बार चतुराई से शास्त्रार्थ करता था। वह कवि सम्मेलनों में निरन्तर कविता सुनाता था। श्रोता लोग उसकी सुन्दर कविता सुनकर बहुत प्रशंसा करते थे। इस प्रकार काव्यकला में उसका यश अल्पकाल में ही चारों दिशाओं में फैल गया।
भारवेः पिता पुत्रस्य काव्ययशसा मनसि अत्यन्तं प्रसन्नः सन्तुष्टश्चासीत्। तथापि स वचसा भारविं कदापि न प्राशंसत् । प्रत्युत स यदा-कदा तस्य पाण्डित्यस्य आलोचनाम् अकरोत् । तेन भारविः चिन्तितः खिन्नश्च अजायत । एकदा तस्य पिता काव्यं श्रुत्वा राजसभायामेव आलोचितवान् तिरस्कृतवान् च। तेन अपमानेन भारविः पित्रे अत्यधिकं रुष्टः उद्विग्नश्च अभवत् । स चिन्तया रात्रौ निद्रां न लब्धवान्। गृहे इतस्ततः पर्यटन् स रात्रौ पितुः प्रकोष्ठाद् बहिरेव किञ्चित्कालं स्थितः । तदा स्वविषये मातापित्रोः वार्तालापम् अशृणोत्ः अस्माकं पुत्रः महाकविः महापण्डितश्च । तस्य यशः निरन्तरं वर्धते । स समाजे अस्माकमपि गौरव स्थापयति । किन्तु स इतोऽपि अधिकं कवित्वं कीर्ति चार्जयेद् इति विचार्य सभायामद्य मया तिरस्कृतः इति । एवं श्रुत्वा भारविः ततः प्रतिनिवृत्तः । पितरं प्रति मिथ्यारोषात् तस्यान्तःकरणे महती ग्लानिः उत्पन्ना । स रात्रौ पश्चात्तापं कुर्वन् एतत् पद्यं प्रणीतवान्-
हिन्दी अनुवाद – भारवि का पिता पुत्र के काव्य यश से मन में अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट था। तब भी वाणी से भारवि की प्रशंसा नहीं करता था। बल्कि वह कभी-कभी उसके पाण्डित्य की आलोचना करता था। इससे भारवि चिन्तित और खिन्न होता था। एक बार उसके पिता ने कविता सुनकर राज्यसभा में ही आलोचना की और तिरस्कार किया। उस अपमान से भारवि पिता से अत्यधिक नाराज और उद्विग्न हुआ। उसे चिन्ता से रात्रि भर नींद नहीं आई (अर्थात् सोया नहीं)। घर से इधर-उधर घूमते हुए वह रात्रि में कुछ समय, तक पिता के कमरे से बाहर रहा। तब अपने विषय में माता-पिता का वार्तालाप सुना। “हमारा पुत्र महाकवि और महापण्डित है। उसका यश निरन्तर बढ़ रहा है। वह समाज में हमारा गौरव स्थापित करता है। किन्तु वह और अधिक कवित्व और यश प्राप्त करे, ऐसा विचार करके सभा में आज मेरे द्वारा उसका तिरस्कार किया गया।”
ऐसा सुनकर भारवि गुस्से से निवृत्त हुए। पिता के प्रति झूठे रोष से उसके हृदय में अत्यधिक ग्लानि उत्पन्न हुई। उसने रात्रि में पश्चात्ताप करके इस पद्य की रचना की ।
सहसा विदधीत न क्रियाम्, अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं, गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।।
हिन्दी अनुवाद – कोई कार्य अचानक नहीं करना चाहिए क्योंकि विचार को अभाव बड़ी आपत्ति का स्थान है। सम्पदा गुणों से मिलती है। वह विचारपूर्वक कार्य करने वालों को अपने आप वरण कर लेती है।
(किरातार्जुनीयम् 2/30)
(शब्दार्थ)
सहसा = अचानक न विदधीत नहीं करना चाहिए। पुराकालाद् एव = प्राचीन समय से ही विलक्षणा = अद्भुत । उपातिष्ठत् उपस्थित होते थे। भृशम् = बहुत । इत्थम् = इस प्रकार | चतुर्दिक्षु = चारों दिशाओं में इतस्ततः = इधर-उधर पर्यटन् = घूमते हुए। इतोऽपि = इससे भी । कवित्वम् = काव्यरचना की शक्ति को प्रतिनिवृत्तः लौट गये। मिथ्या = झूठा। प्रणीतवान् = रचना की। वृणुते = वरण करती हैं। विमृश्यकारिणम्=विवेकी पुरुष को
श्लोकार्थ-
कोई कार्य अचानक (बिना विचारे) नहीं करना चाहिए क्योंकि अविवेक आपत्तियों का घर है। सम्पदा गुणों से मिलती है। वह विचारपूर्वक कार्य करने वालों का अपने आप वरण कर लेती है।
अभ्यास
1- उच्चारण करें-
किरातार्जुनीयम् काव्यरचनायामपि प्रतिनिवृत्तः, तस्यान्तः करणे
विद्वत्सभासु अत्येनैव चतुर्दिक्षु, उद्विग्नश्च
2- एक पद में उत्तर दें-
(क) भारवेः महाकाव्यस्य किं नाम ?
उत्तर :- किरातार्जुनीय।
(ख) भारविं वचसा कः न प्राशंसत् ?
उत्तर : भारवैः पिता।
(ग) स कविसम्मेलनेषु किम् अकरोत् ?
उत्तर : काव्यम् अश्रावयत्।
(घ) भारविः पित्रे कथं रुष्टः ?
उत्तर : अपमानेन।
(ङ) तस्यान्तःकरणे का उत्पन्ना?
उत्तर : महती ग्लानि।
3- नीचे दिये गये क्रियापदों के लकार, पुरुष एवं वचन लिखें-
लकार---------पुरुष----------वचन
आसीत्= लड् लकार ——प्रथम पुरुष —–एकवचन
अपठत्= लड् लकार ——प्रथम पुरुष —–एकवचन
अर्जयेत्= लड् लकार ——प्रथम पुरुष —–एकवचन
4- अधोलिखित पदों में लगे उपसगों को लिख
अपठत् = अ
अर्जयेत् – अर
4- अधोलिखित पदों में लगे उपसर्गों को लिख े –
परिश्रमेण = परि
विलक्षणा = वि
प्रतिनिवृत्तः प्रति
नियोजितवान् =नि
5- मंजूषा से उचित पदों को चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
वर्तालाप, सोत्साहम् पित्रे राजकविः ।
(क) महाकविः भारविः ——–आसीत्।
उत्तर :-राजकविः
(ख) स सर्वदा विद्वत्सभासु———–उपातिष्ठत् ।
उत्तर :-सोत्साहम्
(ग) स्वविषये मातापित्रोः ———-अशृणोत् ।
उत्तर :-वर्तालाप
(घ) अपमानेन भारविः———— अत्यधिकं रुष्टः ।
उत्तर :-पित्रे
6- संस्कृत में अनुवाद करें-
(क) वह नियम से विद्यालय जाता है।
अनुवाद : सः नियमेन् विद्यालयं गच्छति।।
(ख) मैं अपने अध्यापक की प्रशंसा करता हूँ।
अनुवाद : अहं स्वः अध्यापकं प्रशंसाम् करिष्यामि।
(ग) तुम घर के बाहर खड़े रहो।
अनुवाद : त्वं गृहात् बहिः स्थितः भवसि।
(घ) करीम कक्षा में प्रथम है।
अनुवाद : करीम: कक्षायाम् प्रथमं अस्ति।
7- जिसके प्रति कोप किया जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है, जैसे- पित्रे रुष्टः । कोष्ठक में दिये गये शब्दों में विभक्ति लगाकर रिक्त स्थान भरें।
(क) त्वं. ——- क्रुध्यसि । (राक्षस)
उत्तर :-राक्षसे
(ख) अहं ——-नैव कुप्यामि (हरि)
उत्तर :-हरयै
शिक्षण संकेत-
1- छोटे समूह में पढ़ने और अर्थ कहने का अभ्यास कराएँ।
2- माता-पिता या बड़ों की टोका-टाकी विषय पर चर्चा कराएँ ।