Up Board Exam Paper Solution class 10 social science 825 NX 2020

Up board Class 12 Hindi paper (302 ZM) 2023 यूपी बोर्ड परीक्षा 2023 विषय हिन्दी का पेपर हल सहित

Up Board Exam Paper Solution class 10 social science 825 NX 2020

सामाजिक विज्ञान 2020

समय: 3 घण्टे 15 मिनट

सामान्य निर्देश :

(i)यह प्रश्नपत्र दो खण्डों ‘क’ एवं ‘ख’ में विभाजित है । प्रत्येक खण्ड के सभी प्रश्न एक साथ हल करना आवश्यक है । प्रत्येक खण्ड का उत्तर नए पृष्ठ से प्रारम्भ किया जाए । प्रत्येक प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सम्मुख अंकित हैं ।

(ii) प्रश्नपत्र में चार प्रकार के प्रश्न हैं-बहुविकल्पीय, अति लघु-उत्तरीय, लघु-उत्तरीय व विस्तृत उत्तरीय, जिनके सम्बन्ध में निर्देश उनके आरम्भ में दिए गए हैं ।
(iv) ‘क’ तथा ‘ख’ खण्डों हेतु दिए गए मानचित्रों को उत्तर-पुस्तिका में मजबूती के साथ संलग्न करना आवश्यक है ।

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खण्ड-क–(बहुविकल्पीय प्रश्न)

निर्देश- नीचे दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिये ।

1 . 1848 की फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति के फलस्वरूप :
(क) निरंकुश राजतंत्र की स्थापना हुई
(ख) सीमित राजतंत्र की स्थापना हुई
(ग) सैन्य शासन की स्थापना हुई
(घ) गणतंत्र की स्थापना हुई

2 . महामंदी का प्रारम्भ किस वर्ष हुआ ?

(ख) 1924 ई .
(क) 1919 ई .
(ग) 1929 ई .
(घ) 1934 ई . 3 .

3- ‘वन्देमातरम्’ गीत का लेखक कौन था?
(क) बैंकिम चन्द्र चटर्जी

(ख) रवीन्द्र नाथ टैगोर

(ग) शरत चन्द्र चटर्जी
(घ) अवीन्द्र नाथ टैगोर

4 . पेरियार रामास्वामी नायकर कौन थे ?
(क) वैज्ञानिक

(ख) शिक्षाविद

(ग) समाज सुधारक
(घ) लेखक


5 . धर्मनिरपेक्ष राज्य में :

(क) धर्म का कोई स्थान नहीं
(ख) एक राष्ट्र एक धर्म में विश्वास
(ग) केवल बहुसंख्यक वर्ग के धर्म को मान्यता
(घ) सभी धर्मों को समान समझना

6 . भारत में पंचायती राज्य की स्थापना हुई थी :

(क) 1980 में
(ख) 1990 में
(D) 1992 (ग) में
(घ) 2004 में

उत्तर : 1 . (ग) सैन्य शासन की स्थापना हुई ।
2 . (1) 1929 1
3 . (क) बंकिम चन्द्र चटर्जी ।
4 . (ग) समाज सुधारक ।
5 . (घ) सभी धर्मों को समान समझना ।
6 . (ग) 1992 में ।

(अति लघुउत्तरीय प्रश्न )

7 . मार्टिन लूथर कौन था? उसका मुख्य योगदान क्या था?

उत्तर : मार्टिन लूथर एक धर्म-सुधारक था । उसने कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए पिच्चानवे स्थापनाएँ लिखीं ।

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8 . भारत में पहली जूट मिल कहाँ स्थापित हुई थी? उसे किसने स्थापित किया था? [1+1]

उत्तर : भारत में पहली जूट मिल 1859 में स्कॉटलैंड के एक व्यापारी जार्ज ऑकलैंड ने बंगाल में श्रीरामपुर के निकट स्थापित की ।

9 . गुटेन्बर्ग का नाम क्यों प्रसिद्ध है? उसने पहली पुस्तक कौन सी छापी थी?

उत्तर : गुटेन्बर्ग का नाम पहली मुद्रित पुस्तक के लिए प्रसिद्ध है, उसने जो पहली पुस्तक छापी थी, वह भी बाइबिल

(लघु उत्तरीय प्रश्न)

10 . नमक सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया गया था? उसका संक्षिप्त विवरण दीजिये ।
अथवा
रौलेट एक्ट क्या था ? उसका विरोध कैसे किया गय परिणाम हुआ ?

उत्तर : देश को एकजुट करने के लिए महात्मा नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया, चूँकि अमीर-गरीब सभी इस्तेमाल करते थे यह भोज अभिन्न हिस्सा था । इसीलिए नमक पर कर और उसकेसरकारी इजारेदारी को महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासनदमनकारी पहलू बताया था । उन्होंने वायसराय इरविन को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था । महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे मेंझुकने को तैयार नहीं थे । फलस्वरूप, महात्मा गाँधी ने अपने 78 विश्वस्त सहयोगियों के साथ नमक यात्रा शुरु कर दी । वह दांडी पहुँचे, कानून का उल्लंघन किया और नमक बनाया । इस मार्च से लोगों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित की, देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने नमक कानून तोड़ा और नमक का निर्माण सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किया ।

अथवा

रौलेट एक्ट नामक कानून को मार्च 1919 में भारत रही ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को खत्म करने के उद्देश्य से बनाया गया था । इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके । इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था । इसलिए इसका विरोध किया गया और इसके विरोध में देशव्यापी हड़ताल जुलूस और प्रदर्शन होने लगे ।

11 . भारत में जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
राजनैतिक दल और दबाव समूह का अन्तर लिखिये । किन्हीं तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डालिये । [1+1+1]

उत्तर: जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है । इस चिंतन पद्धति के अनुसार एक जाति के लोग एक स्वाभाविक सामाजिक समुदाय का निर्माण करते हैं और उनके हित एक जैसे होते हैं, तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता । राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है- जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं, ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल सके । जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, इससे राजनीति में लोग जाति के आधार पर वोट देकर किसी भी उम्मीदवार को वोट देते हैं, चाहें वह योग्य हो या न हो, उसी प्रकार से समाज में भी जाति प्रथा का कभी-कभी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, और समाज में इस कारण से लोगों के अन्दर भाई-चारे का अभाव हो जाता है, और कभी-कभी तो इससे सांप्रदायिक दंगे तक हो जाते हैं ।

अथवा

राजनैतिक दल और दबाव समूह में अन्तर :

(1) दबाव समूह समाज में विशिष्ट हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि राजनीतिक दल समाज में विद्यमान सभी के हितों को संचित या एकत्रित करने का प्रयास करते हैं ।


(2) राजनीतिक दल का मूल उद्देश्य सत्ता की प्राप्ति अथवा सरकार का निर्माण करना है । लेकिन दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं ।

(3) एक व्यक्ति एक साथ अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है । इसलिए दबाव समूहों की सदस्यता सर्वसमावेशी होती है । जबकि कोई व्यक्ति केवल एक राजनीतिक दल का ही सदस्य हो सकता है । इसलिए राजनीतिक दलों की सदस्यता अनन्य हो सकती है ।

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

12 . असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया ? आन्दोलनकारियों के चार कार्य लिखिये ।

अथवा

उन्नीसवीं शताब्दी में भारत से विदेश को श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस प्रदेश के थे? उन्हें किस शर्त पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी ?[2+2+2


उत्तर : असहयोग आन्दोलन असहयोग आन्दोलन का प्रारम्भ स्वराज की माँग को लेकर किया गया था । यह आन्दोलन 1 अगस्त, 1920 को प्रारम्भ किया । इसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उपस्थित करना था । पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्वं सफलता मिली । विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ, जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि की स्थापना असहयोग आन्दोलन का ही प्रभाव था । कलकत्ता अधिवेशन में गाँधीजी ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि, “अंग्रेजी सरकार शैतान है, जिसके साथ सहयोग सम्भव नहीं । अंग्रेज सरकार को अपनी भूलों पर कोई दुःख नहीं है, अतः हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं । कि नवीन व्यवस्थापिकाएँ हमारे स्वराज का मार्ग प्रशस्त करेंगी । स्वराज्य की प्राप्ति के लिए हमारे द्वारा प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई जानी चाहिए । आन्दोलनकारियों के चार कार्य :

(1) असहयोग आन्दोलन के तहत् आन्दोलनकारियों ने ब्रिटिश सरकार के सानिध्य में बनी शाला में अध्ययन न करके असहयोग दिखाया ।

(2) सरकारी दफ्तर में काम न करना ।

(3) सरकार द्वारा दिये गये उपाधि और पुरस्कारों को लौटाना ।

(4) विदेशी माल का बहिष्कार करते हुए स्वदेशी को अपनाना व हिन्दी भाषा बोलना आदि जिससे अंग्रेजों के कार्यों में बाधा पहुँचे और देश चलाना मुश्किल हो जाये ।

अथवा

19वीं सदी की अनुबंध व्यवस्था को ‘नई दास प्रथा’ भी कहा जाता था 19वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को बागानों, खादानों तथा सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिए दूर-दूर तक देशों में ले जाया जाता था ।

भारत के संदर्भ में भारतीय अनुबंधित श्रमिक विशेष प्रकार के अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाए जाते थे । इन अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि अगर मजदूर अपने मालिक के बागानों में पाँच वर्षों तक कार्य कर लेंगे तो वे स्वदेश लौट सकते हैं । भारत के अधिकतर अनुबंधित श्रमिक मौजूदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत तथा तमिलनाडु के सूखे क्षेत्रों से जाते थे । 19वीं सदी के मध्य में इन क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन होने लगे थे । कुटीर उद्योग समाप्त हो रहे थे, जमीनों के किराए में वृद्धि की जा रही थी । खानों तथा बागानों के लिए जमीनों की सफाई की जा रही थी । इन परिवर्तनों से गरीबों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा । वे बँटाई कर जमीन तो ले लेते थे परन्तु उसका भाड़ा नहीं चुका पाते थे काम ढूँढ़ने के लिए उन्हें अपने घर बार छोड़ने पड़े भारतीय अनुबंधित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह, मॉरीशस व फिजी ले जाया जाता था । तमिल आप्रवासी सीलोन और मलाया जाकर कार्य करते थे । काफी सारे अनुबंधित श्रमिकों को असम के चाय बागानों में काम करवाने के लिए ले . जाया जाता था । मजदूरों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंटों का होता था । एजेंटों को कमीशन दिया जाता था । काफी सारे अप्रवासी अपने गाँव में होने वाले उत्पीड़न और गरीबी से राहत के लिए भी इन अनुबंधों को मान लेते थे । नई जगह का जीवन व कार्य स्थितियाँ कठोर थीं तथा मजदूरों के पास कानूनी अधिकार नाम के लिए भी नहीं थे । बहुत से मजदूर भागकर जंगलों की ओर चले गए । अगर मजदूर भागते हुए पकड़े जाते तो उन्हें कठोर दंड दिया जाता था ।

13 . अपने देश में महिलाओं को सामाजिक तथा राजनैतिक अधिकार दिये जाने के पक्ष में तीन तर्क दीजिए । क्या उन्हें किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण प्राप्त है ?

अथवा

विधायकों तथा संसद सदस्यों को दलबदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी? संविधान में क्या संशोधन किया गया? [3 + 3]

उत्तर : वैसे तो मनुष्य जाति की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है, परन्तु सार्वजनिक जीवन, विशेष रूप से राजनीतिक क्षेत्र में उनकी उपस्थिति नाम मात्र ही है । यह वात अधिकतर समाजों पर लागू होती है । पहले महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे केवल पुरुषों को ही वोट देने, सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने और सार्वजनिक मामलों में भागीदारी करने की अनुमति थी । धीरे-धीरे समाज में लैंगिक समानता पर जोर दिया गया । महिलाओं ने भी अपने संगठन बनाना प्रारम्भ किया और समानता के अधिकार पर बल देने के लिए आन्दोलन भी किए । महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया था, इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न देशों में आन्दोलन हुए आन्दोलनों के माध्यम से महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने और उनके लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने की माँग की गई । महिलाओं ने व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की माँग रखी । यह आन्दोलन नारीवादी आन्दोलन कहलाता है ।

महिलाओं को संवैधानिक संस्था में आरक्षण-भारत की नि विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है; जैसे लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार सन् 2014 में 12% पार कर चुकी है । राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम है । पंचायतों यानी स्थानीय सरकारों और नगरपालिकाओं में 1/3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिये गए हैं । अब भारत में ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से अधिक है । महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं की माँग है कि लोकसभा और राज्य विधान सभाओं को भी 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर देनी चाहिए । संसद में इस संदर्भ में एक विधेयक प्रस्तुत भी किया गया था पर दस वर्षों से अधिक अवधि से यह रुका पड़ा है ।


अथवा

दल-बदल विरोधी कानून 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, – 1985 द्वारा सांसदों तथा विधायकों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रावधान किया गया है । इस हेतु संविधान में एक नयी अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई है । इस अधिनियम को दल-बदल कानून कहा जाता है । बाद में 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा दसवीं अनुसूची के उपबंधों में एक परिवर्तन किया गया । इसने एक उपबंध को समाप्त कर दिया अर्थात् विभाजन के मामले में दल-बदल के आधार पर अयोग्यता नहीं मानी जायेगी . बशर्ते कि ऐसे विभाजन में संबंधित दल के कम से कम एक-तिहाई सदस्य शामिल हों (अनुसूची-10 पैरा-3) ।

दल-बदल विरोधी कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी- लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल सबसे अहम है और वे सामूहिक आधार पर फैसले लेते हैं । लेकिन आजादी के कुछ साल बाद ही राजनीतिक दलों को मिलने वाले सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी । विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारें बनने और गिरने लगी । इस स्थिति ने राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता ला दी । 1960-70 के दशक में ऐसा भी देखा गया . जब नेताओं ने एक दिन में दो-दो दल बदले 30 अक्टूबर, 1967 को हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन के भीतर दो दल बदले, उन्होंने 15 दिन में तीन दल बदले थे । इसके बाद ही राजनीतिक दलों को मिले जनादेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों का चुनाव में भाग लेने से रोकने और अयोग्य घोषित करने की जरूरत महसूस होने लगी । 91वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित किया जिसमें निम्न प्रावधान किए गए हैं-
1 . दल-बदल करने वाले सांसद एवं विधायक की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी ।

2 . दल-बदल करने वाले सदस्य किसी भी प्रकार का सरकारी एवं लाभ का पद प्राप्त नहीं कर सकेंगे ।
3 . सदन की सदस्यता हासिल करने के लिए पुनः चुनाव जीतना होगा ।
4 . मंत्रिपरिषद् का आकार केन्द्र एवं बड़े राज्यों में लोकप्रिय सदन की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत ही हो सकेगा ।

(मानचित्र कार्य)

निर्देश दिये गये मानचित्र में वांछित स्थानों को चि से दर्शाइए और नाम भी लिखिये स्थान अंकित करने और नाम लिखने के लिए ½ ½ अंक निर्धारित हैं ।

14 . (i) वह स्थान जहाँ सितम्बर 1920 में कांग्रेस अधिवेशन हुआ ।
(ii) वह स्थान जहाँ जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ । (iv) वह स्थान जहाँ सूती मिल श्रमिकों का सत्याग्रह हुआ ।

(iii) वह स्थान जहाँ 1927 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ ।

(v) वह स्थान जहाँ 1929 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ ।

खण्ड-ख- (बहुविकल्पीय प्रश्न)

निर्देश – नीचे दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिये ।

15 . निम्न में से कौन अजैवीय संसाधन है?

(क) चट्टानें
(ग) पौधे
(ख) पशु
(घ) मछलियाँ

16 . निम्न में से कौन खरीफ की फसल है ?

(क) चना
(ख)धान
(ग) कपास
(घ) (ख) तथा (ग) दोनों

17 . एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया में उत्पादन कहा जाता है :

(क) प्रारम्भिक क्षेत्रक
(ग) तृतीयक क्षेत्रक

(ख) द्वितीयक क्षेत्रक (घ) सूचना प्रौद्योगिकी

18 . झारखण्ड का कोडरमा अग्रणी उत्पादक है:
(क) अभ्रक का
(ख) लौह अयस्क का
(ग) ताँबा का

19 . पंजाब में भूमि निम्नीकरण का प्रमुख कारण है:

(क) खनन क्रिया
(ख) वनोन्मूलन
(घ) सोने का
(ग) अत्यधिक सिंचाई
(घ) अति पशुचारण

20 . निम्न में से किस राज्य की प्रति व्यक्ति आय सर्वाधिक

(क) हरियाणा
(ग) राजस्थान
(ख) बिहार
(घ) मेघालय
उत्तर : 15 . (क) चट्टानें ।

16 . (घ) (ख) तथा (ग) दोनों ।

17 . (क) प्राथमिक क्षेत्रक ।

18 . (क) अभ्रक का ।

19 . (ग) अत्यधिक सिंचाई ।

20 . (क) हरियाणा ।

(अति लघु उत्तरीय प्रश्न)

21 . अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? कोई दो उदाहरण दीजिए ।

उत्तर: तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक तथा द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं । इन गतिविधियों के द्वारा अपने आप वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता, बल्कि ये गतिविधियाँ उत्पादन प्रक्रिया में सहायता करती हैं । उदाहरण-भंडारण, परिवहन, बैंक सेवाएँ, संचार तथा व्यापार हैं ।

22 . कोई दो मानवीय क्रियाएँ लिखिए जो भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी हैं ।
उत्तर : 1 . पशुचारण, 2 . वनोन्मूलन, खनन ने भूमि निम्नीकरण में प्रमुख भूमिका अदा की है ।

23 . गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के कोई दो उद्देश्य लिखिए । [1+1]

उत्तर : (1) गरीबों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना होता है ।

(2) ऋणदाता को ऋणाधार की कमी की समस्या से बाहर निकालने में सहायता करते हैं ।

(3) गाँव के पुरुष व महिलाओं को स्वावलंबी बनाने हेतु कार्य करते हैं ।

(लघु उत्तरीय प्रश्न)


24 . अधात्विक खनिज किसे कहते हैं? ऐसे दो खनिजों के नाम लिखिए ।
अथवा
ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत किसे कहते हैं? भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य कैसा है ?

उत्तर : अभ्रक, नमक पोटाश, चूना पत्थर आदि सभी अधात्विक खनिज हैं । ऐसे भौतिक पदार्थ जो खान से खोद कर निकाले जाते हैं । अभ्रक के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है । अभ्रक, निर्यात की दृष्टि से भी भारत का अग्रणीय स्थान है । अभ्रक एक ऐसा खनिज है, जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है । वहीं चूना पत्थर सफेद या पीले भूरे रंग का होता है । यह अधिकांश रूप से अवसादी चट्टानों में पाया जाता है ।

अथवा

ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत ऊर्जा की तीव्र गति से बढ़ती – हुई माँग ने ऊर्जा के परंपरागत साधनों तथा उनके घटते भंडारों के कारण विश्व को ऊर्जा के नए स्रोत खोजने के लिए विवश कर दिया है । ये साधन स्वच्छ होने के अतिरिक्त नवीकरण योग्य भी हैं । सूर्य, वायु, ज्वार भाटे, भू-तापीय ऊर्जा, बायोगैस, खेतों, पशुओं का कूड़ा-करकट, मनुष्य का मलमूत्र आदि ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन है । भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य- भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है । इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
(1) सूर्य का प्रकाश प्रकृति का मुफ्त उपहार है । इसलिए निम्न वर्ग के लोगों द्वारा सौर ऊर्जा का लाभ आसानी से उठाया जा सकता है ।

(2) भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है जहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ पाई जाती है ।
(3) भारत में फोटोवोल्टाइक तकनीक से धूप को सीधे विद्युत में बदला जा सकता है ।
(4) सौर ऊर्जा का प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है; जैसे- पंप द्वारा जल निकालने, खाना बनाने, पानी को गरम करने आदि ।

25 . विकास प्रक्रिया में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए ।
अथवा
धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों आवश्यक है?

उत्तर: हमारे जीवन की बहुत-सी गतिविधियों में ऐसे बहुत-से सौदे होते हैं, जहाँ पर किसी-न-किसी रूप में ऋण की आवश्यकता होती है । ऋण (उधार) से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है, जहाँ ऋणदाता कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है । तथा बदले में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है । ऋण उत्पादक की कार्यशील पूँजी की आवश्यकता को पूरी करता है । उसे उत्पादक के कार्यशील खर्ची और उत्पादन को समय पर खत्म करने में सहायता करता है । इसके माध्यम से वह अपनी कमाई में वृद्धि कर पाता है । इस स्थिति में ऋण एक महत्वपूर्ण व सकारात्मक भूमिका निभाता है ।

अथवा

धारणीयता का आशय है-सतत् पोषणीय विकास ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी तक सीमित न रहे, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी प्राप्त हो सके । अनेक वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह से हम संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं, उससे संसाधन शीघ्र समाप्त हो जाएँगे और अगली पीढ़ी के लिए नहीं बचेंगे । यदि विकास को धारणीय बनाना है, तो हमें संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहे और भावी पीढ़ी के लिए भी संसाधन बचे रहें ।

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

26 . उद्योगों का एक संक्षिप्त वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए ।
अथवा
भारत में संचार के साधनों का वर्णन कीजिए ।

उत्तर : उद्योगों का वर्गीकरण उद्योगों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

1 . प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर-

(i) खनिज आधारित लोहा-इस्पात, सीमेंट, एल्युमिनियम मशीन, औजार और पेट्रो रसायन उद्योग ।

(ii) कृषि आधारित सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशमी वस्त्र, रबर, चीनी, कॉफी और वनस्पति तेल उद्योग ।

2 . प्रमुख भूमिका के आधार पर

(i) आधारभूत उद्योग – जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर है, जैसे-लोहा-इस्पात, ताँबा, प्रगलन व एल्युमिनियम प्रगलन उद्योग ।

3 . पूँजी निवेश के आधार पर

एक लघु उद्योग को परिसम्पत्ति – की एक इकाई पर अधिकतम निवेश मूल्य के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया जाता है । यह निवेश सीमा, समय के साथ बदलती रहती है । अधिकतम स्वीकार्य निवेश के आधार पर की जाती है । यह निवेश मूल्य समय के साथ परिवर्तित किया गया है । वर्तमान में अधिकतम निवेश एक करोड़ रुपये तक स्वीकार्य है । 4 . स्वामित्व के आधार पर

(i) सार्वजनिक क्षेत्र में लगे, सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग; जैसे- भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) आदि ।

(ii) निजी क्षेत्र के उद्योग, जिनका स्वामित्व एक व्यक्ति के हाथ में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है । टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि ।

(iii) संयुक्त उद्योग – ऐसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं; जैसे- ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) ।
(iv) सहकारी उद्योग- ऐसे उद्योग जिनका स्वामित्व कच्चे माल

की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है । संसाधन का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी आनुपातिक होता है; जैसे-महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल पर आधारित उद्योग ।

5 . कच्चे और तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर –

(i) भारी उद्योग; जैसे- लोहा तथा इस्पात आदि ।
(ii) हल्के उद्योग – जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं; जैसे-विद्युतीय उद्योग ।

अथवा

संचार सेवाएँ – जब से मानव पृथ्वी पर अवतरित हुआ है, उसने विभिन्न संचार माध्यमों का प्रयोग किया है । परन्तु आधुनिक समय में परिवर्तन की गति तीव्र है । संदेश प्राप्तकर्ता या संदेश भेजने वाले के गतिविहीन रहते हुए भी लंबी दूरी का संचार बहुत सरल है । निजी दूरसंचार और जनसंचार में दूरदर्शन, रेडियो, समाचार पत्र समूह, प्रेस तथा सिनेमा आदि देश के प्रमुख संचार साधन हैं । भारत का डाक संचार तंत्र दुनिया का सबसे बड़ा तंत्र है । यह पार्सल, निजी पत्र व्यवहार तथा तार आदि को संचालित करता है । कार्ड तथा लिफाफा बंद चिट्ठी, प्रथम श्रेणी की डाक मानी जाती है तथा विभिन्न स्थानों पर वायुयान द्वारा पहुँचाए जाते हैं । द्वितीय श्रेणी की डाक में रजिस्टर्ड पैकेट, किताबें, अखबार तथा मैगजीन सम्मिलित है । इनको धरातलीय डाक द्वारा पहुँचाया जाता है तथा इनके लिए स्थल व जल परिवहन का प्रयोग किया जाता है । बड़े शहरों व नगरों में डाक-संचार में शीघ्रता हेतु, हाल ही में छः डाक मार्गों का निर्माण किया गया है ।

भारत में संचार साधनों का वर्णन भारत एशिया महाद्वीप में दूर – संचार तंत्र में अग्रणी है । नगरीय क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत 2/3 से अधिक गाँव एस . टी . डी . दूरभाष सेवा से जुड़े हैं । सूचनाओं के प्रसार को आधार स्तर से उच्च स्तर तक समृद्ध करने हेतु भारत सरकार ने देश के प्रत्येक गाँव में 24 घंटे एस . टी . डी . की दरों को भी नियमित किया गया है । मानव को मनोरंजन के साथ जन-संचार बहुत से राष्ट्रीय कार्यक्रमों व नीतियों के विषय में जागरूक करता है । इसमें रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र पत्रिकाएँ, किताबें तथा चलचित्र शामिल है । राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा में देश के विभिन्न भागों में अनेक वर्गों के व्यक्तियों के लिए विविध कार्यक्रम प्रसारित करता है । भारत में सालभर अनेक समाचार पत्र तथा सामयिक पत्रिकाएँ प्रकाशित की जाती हैं । ये पत्रिकाएँ सामयिक होने के नाते (जैसे- मासिक, साप्ताहिक आदि) कई प्रकार की होती हैं । समाचार पत्र लगभग 100 भाषाओं या बोलियों में प्रकाशित होते हैं । हमारे देश में सर्वाधिक समाचार-पत्र हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं तथा इसके पश्चात् अंग्रेजी व उर्दू के समाचार-पत्र आते हैं । भारत विश्व में सर्वाधिक चलचित्रों का उत्पादक भी है ।

27 . विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार सहायता करता है? संक्षेप में समझाइए । [6]
अथवा

उपभोक्ता के अधिकारों की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर : विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के निम्नलिखित प्रकार से मदद करता है-

एकीकरण में

1 . विदेशी व्यापार के कारण घरेलू उत्पादकों को अन्य देशों के बाजारों में पहुँचने का अवसर मिलता है । इससे उत्पादक अपने देश के बाजारों के साथ-साथ विश्व बाजारों से भी प्रतियोगिता कर सकता है ।
2 . ग्राहकों को विदेशी व्यापार के कारण सबसे अधिक लाभ रहता है । अब उन्हें विभिन्न प्रकार की चीजें अपने देश में ही उपलब्ध होने लगती हैं ।

उदाहरण के लिए भारतीय कम्प्यूटर बाजार में विदेशी कम्पनियों के प्रवेश से भारतीय तथा विदेशी कम्पनियों में प्रतिस्पर्धा होगी । यदि विदेशी कम्पनियों के कम्प्यूटर बेहतर साबित होंगे तो भारतीय उपभोक्ता के सामने अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे । भारतीय कम्पनियाँ भी अपनी हानि को कम करने के लिए अपने उत्पाद की गुणवत्ता और कीमतों में सुधार करेंगी, अन्यथा वे प्रतियोगिता से बाहर हो जाएँगी ।

वैश्वीकरण का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी व्यापार एवं विदेशी निवेश द्वारा जोड़ा जाता है । वैश्वीकरण के कारण आज विश्व में विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, तकनीकी तथा श्रम का आदान-प्रदान हो रहा है । इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

अथवा

उपभोक्ता के अधिकारों का वर्णन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सन् 1986 में तथा सन् 1991 और सन् 1993 के संशोधनों में किया गया है । इनमें से कुछ अधिकार निम्नलिखित हैं-

(i) चुनाव का अधिकार हर उपभोक्ता को यह अधिकार है । कि वह जाँच-परखकर अपनी इच्छानुसार वस्तु का चुनाव करे और उसका उचित मूल्य चुकाए ।

(ii) सूचना का अधिकार उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह खरीदी जाने वाली हर वस्तु के बारे में उसकी गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता व मूल्य की सूचना प्राप्त कर सके ।
(iii) सुरक्षा का अधिकार उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह वस्तुओं व सेवाओं से अपना बचाव कर सके जो उसके जीवन व संपत्ति को हानि पहुँचा सकती है ।

(iv) सुनवाई का अधिकार उपभोक्ता को अनुचित सौदेबाजी – और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार है । यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है । इस कार्य को पूरा करने हेतु सुनवाई का अधिकार सभी उपभोक्ताओं को प्रदान किया गया है ।

(v) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसके अधिकारों के प्रति सजग रखने के लिए सरकार प्रयास करती रहे । उसे बाजार में मिलने वाली विभिन्न वस्तुओं के गुण-दोषों की जानकारी होनी चाहिए जिससे वह वस्तुओं को खरीदने से पहले उस जानकारी का प्रयोग कर सके । (vi) प्रस्तुतीकरण का अधिकार- हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों के सामने अपनी समस्याओं को प्रस्तुत कर सके व ये संगठन उसे उसकी समस्याओं के समाधान में सहायता कर सकें ।

(मानचित्र कार्य)

निर्देश- भारत के दिये गये मानचित्र में निम्नलिखित को दर्शाइए :

28 . (i) नागार्जुन सागर बाँध चिह्न द्वारा नाम सहित ।

(ii) कपास उत्पादन का एक क्षेत्र 3 चिह्न द्वारा नाम सहित ।

(iii) बॉक्साइट उत्पादन का एक क्षेत्रवि द्वारा नाम सहित ।

(iv) हैदराबाद नगर चिह्न द्वारा नाम सहित ।

(v) ब्रह्मपुत्र नदी ( चिह्न द्वारा नाम सहित ।

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