CG Board Class 10 Sanskrit Solution Chapter 7 subhashitani सुभाषितानि

CG Board Class 10 Sanskrit Solution Chapter 7 subhashitani सुभाषितानि

पाठ्य पुस्तक में दिए गए सभी श्लोकों का हिंदी अनुवाद 

1- सर्वा विद्याः पुरा प्रोक्ताः संस्कृते हि महर्षिभिः ।
तद्विद्यानिधये सेव्यं संस्कृतं कामधेनुवत् ।।

अर्थः- महर्षियों ने पूर्वकाल से ही संस्कृत भाषा में समस्त विद्याओं की रचना कर दी है। किन्तु उन विद्यारूपी खजानों को पाने के लिए कामधेनु के समान संस्कृत भाषा की सेवा आवश्यक है।

2- वायूनां शोधकाः वृक्षाः रोगाणामपहारकाः ।
तस्माद् रोपणमेतेषां रक्षणं च हितावहम् ।।

अर्थः- वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैं और रोगों को दूर भगाने में सहयोगी होते हैं। इसलिए वृक्षों का रोपण और रक्षण प्राणीमात्र के लिए हितकारी है।

3- त्वक्शाखापत्रमूलैश्च पुष्पफलरसादिभिः ।
प्रत्यङ्गैरुपकुर्वन्ति वृक्षाः सद्भिः समं सदा ।।

अर्थः- सन्तों के समान ही वृक्ष अपनी त्वचा शाखा पत्ते मूल, पुष्प फल रस आदि सभी अंगों से प्राणियों का उपकार करते है।

4- केषाञ्चिदपि वस्तूनां गम्यते सङ्गिना गुणः ।
वैद्यनापितॄणां हस्तेषु क्षुरिका यथा ।।

अर्थ:- किसी भी वस्तु का गुण उसके संगवाले से समझा जाता है अर्थात् वस्तु के धारणकर्ता पर निर्भर करता है। जैसे छुरी का गुण उपयोग वैद्य, नाई और हत्यारे के हाथ में देखकर ही पता चलता है।

5- यच्छक्यं ग्रसितुं शस्तं ग्रस्तं परिणमेच्च यत् ।
हितं च परिणामे यत्तदाद्यं भूतिमिच्छता ।।

अर्थ:- जो वस्तु खाई जा सके और खाने पर भली-भाँति पच सके और पच जाने पर हितकारक हो ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले व्यक्ति को वही वस्तु खानी चाहिए ।

6- अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः ।
सारन्ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाऽम्बुमध्यात् ।।

अर्थ:- शास्त्र का पार कहीं निश्चित नहीं है और मनुष्य की आयु कम है इसलिए सार ग्रहण कर सार हीन को उसी प्रकार छोड़ देना चाहिए, जिस प्रकार हंस जल से दूध ग्रहण कर लेते हैं और जल छोड़ देते हैं।

7- शस्त्रहता न हि हता रिपवो भवन्ति, प्रज्ञाहतास्तुरिपवः सुहता भवन्ति ।
शस्त्रं निहन्ति पुरुषस्य शरीरमेकं प्रज्ञा कुलञ्च विभवञ्च यशश्च हन्ति ।।

अर्थः- शस्त्रों से मारे गये शत्रु नहीं मरते परन्तु बुद्धि से मारे गये शस्त्र वास्तव में मारे जाते हैं। शस्त्र से तो शत्रु का मरकर मात्र शरीर ही नष्ट किया जा सकता है। परन्तु बुद्धि से उसका वंश कुल, वैभव और यश आदि सब कुछ नष्ट हो जाता है।

8 दिनान्ते पिबेत् दुग्धम्, निशान्ते च पिबेत् पयः ।
भोजनान्ते पिबेत् तक्रम् किं वैद्यस्य प्रयोजनम् ।।

अर्थ:- दिवस के अंत (शाम) में दूध पीना चाहिए, रात्रि के अंत में (सुबह) जल पीना चाहिए भोजन के अंत में छाछ पीनी चाहिए। ऐसा करने से वैद्य की आवश्यकता नहीं है।

9- आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया ।
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचारिभिः ।।

अर्थः- शिष्य अपने जीवन का एक भाग अपने आचार्य से सीखता है, एक भाग अपनी बुद्धि से सीखता है एक भाग समय से सीखता है तथा एक भाग वह अपने सहपाठियों से सीखता है।

10- नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः ।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ।।

अर्थः- विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तप नहीं है, राग के समान दुःख नहीं है, और त्याग के समान कोई सुख नहीं है।

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