Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 5 geetamratam पंचम: पाठ: गीतामृतम्

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Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 5 geetamratam पंचम: पाठ: गीतामृतम्

पंचम :  पाठ:   गीतामृतम्

निम्नलिखित पद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए-


1—- तं तथा ……………………मधुसूदनः ।।
[शब्दार्थ-कृपयाविष्टम् > कृपया +आविष्टम् = करुणा से पूर्ण, अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् > अश्रुपूर्ण+आकुल + ईक्षणम् = आँसुओं से भरे हुए नेत्रों वाले (अर्जुन), विषीदन्तम् = दु:खी होते हुए, मधुसूदनः= श्रीकृष्ण]
सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘गीतामृतम्’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।
अनुवाद- भगवान कृष्ण ने उस प्रकार से दयनीय, आँसुओं से परिपूर्ण व्याकुल नेत्रों वाले, (और) दु:खी होते हुए उस (अर्जुन) से यह वाक्य कहा ।।

2- क्लैब्यं……………………… परन्तप ।।
[शब्दार्थ- क्लैब्यं = कायरता को, मा स्म गमः = मत प्राप्त हो, पार्थ = अर्जुन, नैतत्त्वय्युपपद्यते > न + एतत् + त्वयि + उपपद्यते यह तेरे योग्य नहीं है, क्षुद्रम= तुच्छ, हृदय-दौर्बल्यम्= हृदय की दुर्बलता को, त्यक्त्वोत्तिष्ठ>त्यक्त्वा +उत्तिष्ठ = त्यागकर उठ खड़ा हुआ हो, परन्तप शत्रुओं को ताप पहुँचाने वाले (हे अर्जुन!)]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। अनुवाद- हे पृथापुत्र (अर्जुन)! कायरता को मत प्राप्त हो (अर्थात् कायर मत बन) ।। यह (कायरता की) बात करना तेरे योग्य नहीं है ।। हे शत्रुसन्तापकारी! तू हृदय की (इस) तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर (युद्ध के लिए) उठ खड़ा हो ।।

3—- देहिनोऽस्मिन् ……………………….मुह्यति ।।
[शब्दार्थ-देहिनोऽस्मिन् >देहिनः+अस्मिन् =जीवात्मा को इस शरीर में, जरा = वृद्धावस्था, देहान्तरप्राप्ति = अन्य शरीर की प्राप्ति, धीरः= धैर्यशील, तत्र= उस विषय में, न मुह्यति मोह नहीं करता]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।


अनुवाद- जैसे जीवात्मा को इस शरीर में कुमारावस्था, यौवन तथा बुढ़ापा प्राप्त होता है, वैसे ही दूसरा शरीर भी प्राप्त होता है ।। इसमें बुद्धिमान व्यक्ति मोहग्रस्त नहीं होता ।। आशय यह है कि जैसे व्यक्ति को कौमार्य, यौवन और बुढ़ापे से किसी प्रकार का शोक नहीं होता; क्योंकि वह यह जानता है कि ये तो शरीर के धर्म हैं, जो होंगे ही ।। इसी प्रकार उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि दूसरा शरीर धारण करना अर्थात् पुनर्जन्म होना भी शरीर का ही धर्म है ।। इससे जीवात्मा नहीं बदलता, अतः शोक का कोई कारण नहीं ।।

4—- वासांसि……………………………… नवानि देही ।।
[शब्दार्थ-वासांसि = वस्त्रों को, जीर्णानि = फटे-पुराने, विहाय = छोड़कर, नरोऽपराणि> नरः +अपराणि = मनुष्य दूसरे, जीर्णान्यन्यानि>जीर्णानि+अन्यानि पुराने दूसरे, संयाति= चला जाता है या प्राप्त करता है, देहि जीवात्मा] सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण (धारण) करता है वैसे (ही) जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता (ग्रहण करता) है (तब संसार कहता है कि किसी का जन्म हुआ है या मृत्यु हुई है) ।।

5—- नैनं छिन्दन्ति ………………………..मारुतः ।।
[शब्दार्थ- मैंनं>न + एनम् = न तो इसे (जीवात्मा) को, छिन्दन्ति = काट सकते हैं, पावकः = अग्नि, न चैनम् >न+च+ एनम् =और न ही इसे, क्लेदयन्त्याप:>क्लेदयन्ति+आपः जल गीला कर सकता है, मारुतः हवा
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। अनुवाद- इस आत्मा को शस्त्रादि नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गीला कर सकते और (इसको) वायु नहीं सुखा सकती (अर्थात् किसी भी भौतिक पदार्थ से यह नष्ट नहीं किया जा सकता) ।।

6—- जातस्य हि…….. ………….शोचितुमर्हसि ।।
[शब्दार्थ-जातस्य पैदा होने वाली की, हि=क्योंकि, ध्रुवः=निश्चित, तस्मादपरिहार्येऽर्थे>तस्मात+अपरिहार्ये+अर्थे = इस कारण अनिवार्य विषय में, नशोचितुमर्हसि>न+शोचितुम्+अर्हसि शोक करने योग्य नहीं है]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- क्योंकि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है, इसलिए तुम्हें ऐसे विषय में शोक नहीं करना चाहिए; जिसका कोई उपाय न हो (अर्थात् जन्म-मृत्यु के इस क्रम को कोई नहीं बदल सकता ।। तब फिर इसके विषय में शोक करने से क्या लाभ?) ।।

7—- यदृच्छया………………………….युद्धमीदृशम् ।।
[शब्दार्थ- यदृच्छया = स्वत:, अपने आप, चोपपन्नं> च + उपपन्नम् = और प्राप्त हुए, स्वर्गद्वारमपावृत्तम्> स्वर्गद्वारम् + अपावृतम् खुले हुए स्वर्गद्वार को, सुखिनः= भाग्यवान्, युद्धमीदृशम्>युद्धम+ईदृशम् =ऐसे युद्ध को]
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- हे अर्जुन! अपने आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार-रूप ऐसे युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय (ही) पाते हैं (अर्थात्
तू भाग्यशाली है कि तुझे यह युद्ध लड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है ।। क्योंकि धर्मयुद्ध क्षत्रिय को सीधे स्वर्ग प्राप्त कराता है) ।।

8—- हतो वा……………..—- कृतनिश्चयः ।।
[शब्दार्थ- हतोवा > हतः + वा = मरकर या, प्राप्स्यसि = तू प्राप्त करेगा, जित्वा = जीतकर, भोक्ष्यसे = तू भोगेगा, महीम् = पृथ्वी को, तस्मादुत्तिष्ठ>तस्मात् + उत्तिष्ठ = इसलिए उठो, कौन्तेय हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन)!, कृतनिश्चयः = निश्चय करके
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
अनुवाद- या तो तू (युद्ध में) मरकर स्वर्ग को प्रापत होगा या (युद्ध) जीतकर पृथ्वी का भोग करेगा ।। (इस प्रकार तेरे दोनों हाथों सलिए तू युद्ध (करने) का निश्चय करके उठ खड़ा हो ।।

  निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्याकीजिए

1—- गतासूनगतासुंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘गीतामृतम्’ नामक पाठ से अवतरित है ।।
प्रसंग- महाभारत के युद्ध में मोह एवं शोकग्रस्त अर्जुन को शरीर को नश्वरता तथा आत्मा की अमरता के विषय में बताते हुए श्रीकृष्ण उसे युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं ।।

व्याख्या– ज्ञानीजन इस संसार में जीवित व्यक्ति या मरे हुए व्यक्ति के लिए शोक नहीं करते; क्योंकि ज्ञानी वही है, जिसे तत्त्वदृष्टि प्राप्त हो चुकी हो और तत्त्व यह है कि इस संसार में जो उत्पन्न हुआ है, वह मरेगा अवश्य और जो मर चुका है, वह पुनर्जन्म अवश्य ग्रहण करेगा; क्योंकि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर ।। इसलिए यह अविनाशी आत्मा पुराने शरीररूपी वस्त्रों को उतारकर नये धारण करती रहती है ।। इसमें शोक करने की बात ही क्या है? अंग्रेजी की प्रसिद्ध उक्ति- “Bodyin mortal and soul is immortal.” भी यही अर्थ-बोध कराती है ।।


2—- नायंहन्ति न हन्यते ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- आत्मा को अजर, अमर, अविनाशी माना गया है ।। यह न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जा सकता है ।। यही बात श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को समझाई गई है ।।
.व्याख्या- जीवात्मा शाश्वत, अमर और शुद्ध चैतन्यस्वरूप परमात्मा का अंश है ।। इसलिए वह साक्षी-रूप से ही शरीर में रहकर जीव द्वारा किए जाने वाले कर्मों को देखता है ।। स्वयं वह कोई कर्म नहीं करता, इसलिए कर्मबन्धन में बँधता भी नहीं ।। वह स्वयं कुछ नहीं करता; वह न किसी को मारता है और न स्वयं मारा जाता है ।। केवल अज्ञानवश ही जीव को वह काम करता हुआ लगता है ।। जो इस अज्ञान को दूर करके आत्मा के सत्य स्वरूप को जान लेते हैं, वे कर्मबन्धन से मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाते हैं ।।

3—नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनंदहति पावकः ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- आत्मा अमर, अविनाशी, अच्छेद्य, अदाहा एवं अशोष्य है ।। इसीलिए मोहग्रस्त अर्जुन को समझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैंव्याख्या- इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं और न अग्नि जला ही सकती है ।। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि आत्मा अमर, अविनाशी, अछेद्य, अदाह्य एवं अशोष्य है ।। इस पर शास्त्रों, अग्नि, वायु एवं जल का कोई प्रभाव नहीं होता ।। इनका प्रभाव ऐहिक जगत् की वस्तुओं पर पड़ता है ।। क्योंकि ऐहिक जगत् की सभी वस्तुएँ नाशवान् होती हैं ।। लेकिन आत्मा अमर है ।। इसीलिए तीक्ष्ण शस्त्र भी उसे नहीं काट सकते, आग भी उसे नहीं जला सकती, जल उसे गीला नहीं कर सकता और तीव्र वायु भी उसे सूखा नहीं सकती ।। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में अन्यत्र भी आत्मा को अछेद्य और अदाह्य बताया गया है- “अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।। “

4— जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह ध्रुव सत्य समझाया है कि जन्म और मृत्यु का चक्र शाश्वत है; अर्थात् जो उत्पन्न होता है, वह मरता भी है और जो मरता है, वह उत्पन्न भी होता है ।।
व्याख्या- आत्मा अमर है और शरीर नाशवान् ; इसलिए आत्मा पुराने जीर्ण-शीर्ण शरीर को छोड़कर नये शरीर को धारण कर लेती है ।। यह क्रम निरन्तर ही चलता रहता है; अत: यह निश्चित है कि जो पैदा हुआ है, वह एक-न-एक दिन मरेगा अवश्य और जो मर गया है, वह दूसरा जन्म भी अवश्य धारण करेगा ।। तब फिर इस विषय में चिन्ता क्या करना? अर्थात् ज्ञानी व्यक्ति को जन्ममरण के विषय में कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए ।। तात्पर्य यह है कि इस धर्मयुद्ध में अधर्म का पक्ष लेकर खड़े हुए योद्धाओं को यदि तुम नहीं मारोगे तो क्या वे कभी मरेंगे नहीं ।। मृत्यु तो अवश्यम्भावी है, शाश्वत और सतत गतिशील चक्र है ।। अकन्यत्र भी हा गया है- “परिवर्तिनि संसारेमृतःकोवानजायते?”

5—- तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय! युद्धाय कृतनिश्चयः ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- इस सूक्ति में श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित कर रहे हैं ।। व्याख्या- श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, जो धर्म की रक्षा के युद्ध करते हुए मारे जाते हैं, उन्हें मरकर निश्चित रूप से स्वर्ग प्राप्त होता है ।। अतः इस धर्म-युद्ध में या तो तुम मरकर स्वर्ग को प्राप्त होगे या युद्ध में विजयी होकर पृथ्वी का भोग करोगे ।। इस प्रकार दोनों ही स्थितियों में तुम्हें लाभ है ।। इसलिए तुम युद्ध करने का निश्चय करके उठ खड़े होओ ।।


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए

1—- विषादमापन्नमर्जुनं श्रीकृष्णः किं उपादिशत्?
उत्तर —- विषादमापन्नमर्जुनं श्रीकृष्णः उपादिशत्-यत् पण्डिता गवासूनगतासुंश्च नानुशोचन्ति अतएव युद्धाय कृतनिश्चयः त्वमुत्तिष्ठः ।।


2—- धीरः कुत्र न मुह्यति?
उत्तर —- “अस्मिन् देहे यथा कौमारं, यौवनं, जरा भवति तथैव देहान्तरप्राप्तिः भवति”, अस्मिन् विषये धीरः न मुह्यति ।।


3—- श्रीकृष्णः क्षत्रियेभ्यः किं कर्त्तण्यं निर्दिष्टवान् ?
उत्तर —- श्रीकृष्णः क्षत्रियेभ्यः कर्त्तव्यं निर्दिष्टवान् यत् क्षत्रियाः फलासक्ति त्यक्त्वा कर्त्तव्यमिति मन्यमानः युद्धं कुर्युः ।।


4—- पावकः कं न दहति?
उत्तर —- पावकः आत्मानं न दहति ।।


5—- सुखिनः क्षत्रियाः किं लभन्ते?
उत्तर —- सुखिनः क्षत्रियाः अपावृतं स्वर्गद्वारमिव युद्धं लभन्ते ।।


6—- कः न हन्ति न च हन्यते?
उत्तर —- आत्मा न हन्ति न च हन्यते ।।
7—- पण्डितः कः?
उत्तर —- यः गतासूनगतातूंश्च न अनुशोचति स: पण्डितः ।।

8—- शस्त्राणि कं न छिन्दन्ति?
उत्तर —- आत्मानं न शस्त्राणि छिन्दन्ति ।।
9—- ‘गीतामृतम्’ पाठस्य शिक्षा का?
उत्तर —- मनुष्य जातस्य हि मृत्युः मृतस्य च जन्म ध्रुवमिति मत्वा, आत्मनश्च अमरत्वं ज्ञात्वा फला सक्ति च त्यक्त्वा स्वकर्तव्यं कुर्यात् ।।

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10—- आत्माः अमरः इति कस्योपदेशः अस्ति?
उत्तर —- आत्मा: अमरः इति गीतायां श्रीकृष्णस्य उपदेशः अस्ति ।।
11—- पण्डिताः कान् न अनुशोचन्ति?
उत्तर —- पण्डिताः गतासूनगतासुंश्च न अनुशोचन्ति ।।

संस्कृत अनुवाद संबंधी

निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए

1—- हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर उठो ।।
अनुवाद- हृदयस्य क्षुद्रम् दौर्बल्यं त्यक्त्वा उत्तिष्ठ ।।


2—- “हे अर्जुन! कायरता तुम्हारे लिए उचित नहीं ।। “
अनुवाद- भो अर्जुन! का त्वांय न उचितम् ।।


3—- शस्त्र आत्मा को काट नहीं सकते हैं ।।
अनुवाद- शस्त्राणिआत्मानं न छिन्दन्ति ।।


4–मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है ।।
अनुवाद- मानव: जीर्णानि वसांसि त्यक्त्वा नवानि वसांसि धार्यं करोति ।।


5—- हे अर्जुन! युद्ध के लिए निश्चिय करो ।।
अनुवाद- भो अर्जुन! युद्धाय निश्चयः करोति ।।


6—- जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है ।।
अनुवाद- जातस्य मृत्युः निश्चितम् अस्ति ।।


7—- श्रीकृष्ण ने अर्जुनको कर्म का उपदेश दिया ।।
अनुवाद- श्रीकृष्ण: अर्जुनस्य कर्मस्य उपदेशति ।।


8- भगवान श्रीकृष्ण योगेश्वर थे ।।
अनुवाद- भगवान् श्रीकृष्ण: योगेश्वरः आसीत् ।।


9—- कृष्ण के चारों ओर गोप-बालकनाचते हैं ।।
अनुवाद- कृष्णः परित: गोप-बालकाः नृत्यन्ति ।।


10—- कायर लोग युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करते ।।
अनुवाद- कापुरुषाः संग्रामे प्रवेशं न कुर्वन्ति ।।

संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न

1—- निम्नलिखित शब्द-रूपों में प्रयुक्त विभक्ति एवं वचन लिखिए
देहिनः एनम्, तम्, युद्धाय, शरीराणि,क्षत्रियाः,जातस्य,तस्मात्, वासांहि
शब्द-रूप विभक्ति वचन
देहिनः- षष्ठी एकवचन
एनम् – द्वितीया एकवचन
तम् – द्वितीया एकवचन
युद्धाय – चतुर्थी एकवचन
शरीराणि – प्रथमा/द्वितीया बहुवचन
क्षत्रियाः – प्रथमा बहुवचन
जातस्य – षष्ठी एकवचन
तस्मात् – पञ्चमी एकवचन
वासांसि – द्वितीया बहुवचन

2—- निम्नलिखित क्रिया-पदों में धातु, पुरुष, वचन एवं लकार स्पष्ट कीजिए ।।
वेत्ति, उत्तिष्ठ हन्यते, लभन्ते, छिन्दन्ति, दहति, प्राप्स्यसि, हन्ति, गृहणाति, मुह्यति, विजानीतः ।।
उत्तर —- क्रिया-पद धातु लकार पुरुष वचन
वेत्ति विद् लट् लकार प्रथम एकवचन
उत्तिष्ठ उत् +स्था लोट् लकार मध्यम एकवचन
हन्यते लट लकार प्रथम एकवचन
लभन्ते लभ् लट् लकार प्रथम एकवचन
छिन्दन्ति छिन्द् लट् लकार प्रथम एकवचन
दहति दह लट् लकार प्रथम एकवचन
प्राप्स्यसि प्र+ आप् लट लकार मध्यम एकवचन
हन्ति लट् लकार प्रथम एकवचन
गृहणाति ग्रह लट् लकार प्रथम एकवचन
लट् लकार प्रथम एकवचन
विजानीतः वि+ ज्ञा लट् लकार प्रथम द्विवचन

3—- निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नामोल्लेख कीजिए
कृपयाविष्टम् , नैतत, नरोऽपराणि, वाक्य मुवाच, त्यक्त्वोतिष्ठ, क्लेदयन्त्यापः, चोपपन्नम्, नायम्, नैतत्त्वय्युपपद्यते, अन्वशोचस्त्वम्, नानुशोचन्ति ।।


शब्द सन्धि-विच्छेद सन्धि का नाम
कृपयाविष्टम् कृपया + आविष्टम् दीर्घ सन्धि
नैतत न + एतत् वृद्धि सन्धि
नरोऽपराणि नरः + अपराणि उत्व सन्धि
वाक्य मुवाच वाक्यम + उवाच अनुस्वार सन्धि
त्यक्त्वोत्तिष्ठ त्यक्त्वा + उत्तिष्ठ गुण सन्धि
क्लेदयन्त्यापः क्लेदयन्ति + आपः यण सन्धि
चोपपन्नम् च + उपपन्न गुण सन्धि
नायम् न + अयम् दीर्घ सन्धि
नैतत्त्वय्युपपद्यते न + एतत + त्वयि + उपपद्यते वृद्धि, यण सन्धि
अन्वशोचस्त्वम् अन्तशोच: + त्वम् विसर्ग सन्धि
नानुशोचन्ति न + अनुशोचन्ति दीर्घ सन्धि

4—- रेखांकित पदों में नियम-निर्देशपूर्वक विभक्ति स्पष्ट कीजिए
(क) सुमित्रा लक्ष्मणस्य माता अस्ति ।।
उत्तर —- रेखांकित पद लक्ष्मणस्य में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है ।। क्योंकि जो बात और विभक्तियों के आधार पर नहीं बताई जा सकती, उसको बताने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है ।। वे बातें सम्बन्ध विशेष को प्रदर्शित करने वाली होती हैं ।।
(ख) नदीषुगङ्गा पवित्रतमा अस्ति ।।
उत्तर —- रेखांकित पद नदीषु में सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि जहाँ बहुतों में से किसी एक को छाँटा जाए, वहाँ जिससे में छाँटा जाए, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है ।।
(ग) राजा ब्राह्मणेभ्यः धनं ददाति ।।
उत्तर —- रेखांकित पद ब्रह्मणेभ्यः में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (आहुति), स्वधा (बलि), अलं (समर्थ, पर्याप्त), बषट् (आहुति) इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है ।। ।।
(घ) हरिणा सह राधा नृत्यति ।।
उत्तर —- रेखांकित पद हरिणा में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि सह के योग में अप्रधान (अर्थात जो प्रधान क्रिया के कर्ता का साथ देता है) में तृतीय विभक्ति होती है ।।
(ङ) नदीं समया पशवः अस्ति ।।
उत्तर —- रेखांकित पद नदी में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि अभितः (चारों या सभी ओर), परितः (सभी ओर), समया (समीप), निकषा (समीप), हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द), प्रति (ओर, तरफ) शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती हैं ।।

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