Up board solution for class 12 home science Chapter 14 विवाह के कानूनी तथा जीवशास्त्रीय गुण

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Up board solution for class 12 home science Chapter 14 विवाह के कानूनी तथा जीवशास्त्रीय गुण

प्रिय छात्रो यहाँ पर आपको यूपी बोर्ड कक्षा १२ गृह विज्ञानं का सम्पूर्ण हल मिलने वाला है . आप इस आर्टीकल को पूरा पढ़िए

प्रश्न 1-विवाह का शाब्दिक अर्थ है।
(a) वधू को घर के घर ले जाना
(b) वर को बापू के घर से जाना
(c) a और b दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:- (a) वधू को वर के घर से जाना

प्रश्न 2- विवाह की विशेषताओं में शामिल हैं।
(a) आर्थिक सहयोग
(b) वैघ सन्तानोत्पत्ति का माध्यम
(c) धार्मिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:- (d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3- अन्तर्विवाह का आशय है।
(a) अपने समूह में विवाह करना
(b) समूह से बाहर विवाह कर ना
(c) गाँव की सीमा से बाहर विवाह करना
(d) इनमे में से कोई नहीं ।
उत्तर:- (a) अपने समूह में विवाह करना

प्रश्न 4- गोत्र शब्द के अर्थ हैं।
(a) गौशाता
(b) मा का घर
(c) सामान्य पुरुष पूर्वज या पितृवंश से अखंड पुरुष वंश के वंशज हैं।
(d) ये सभी
उत्तर:-
(d) सामान्य पुरुष पूर्वज या पितृवंश से अखंड पुरुष वंश के वंशज हैं।

प्रश्न 5- निम्नलिखित में से किस अधिनियम के द्वारा सपिण्ड बहिर्विवाह को। मान्यता प्रदान की गई है।
(a) अधिनियम, 1955
(b) अधिनियम, 1956
(c) अधिनियम, 1954
(d) अधिनियम, 1961
उत्तर:-
(b) अधिनियम, 1955

प्रश्न 6- अनुलोम विवाह में लइका किस वंश से सम्वन्ध रखता है?
(a) उच्च
(b) निम्न्
(c) उच्च या निम्न में से कोई भी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:- (a) उच्च

प्रश्न 7- बाल विवाह निरोधक अधिनियम का पारित किया गया?
(a) वर्ष 1896
(b) वर्ष 1829
(c0 वर्ष 1929
(d) वर्ष 1937
उत्तर:- (c) वर्ष 1929

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1- लुसी मेयर ने विवाह को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:-
लुसी मेयर ने विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि विवाह स्त्री-पुरुष का ऐसा योग है, जिससे जन्मी सन्तान वैध मानी जाती है।

प्रश्न 2- बहिर्विवाह से क्या तात्पर्य है? ।
उत्तर:- बहिर्विवाह से तात्पर्य है एक व्यक्ति जिस समूह का सदस्य है इससे बाहर विवाह करना । इस विवाह में परिवार, गोत्र, प्रर, पिण्ड शम, डोटम आदि में चार विवाह करना पड़ता है।

प्रश्न 3- ग्राम बहिर्विवाह का प्रचलन किन क्षेत्रों में पाया जाता है? गाँवों में ये क्या कहलाते हैं?
उत्तर:- ग्राम बहिर्विवाह का प्रचलन उत्तरी भारत और पूर्वी पंजाब एवं दिल्ली के आस-पास है। गाँवों में इस प्रकार के विवाह को ‘खेड़ा बहिर्विवाह के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 4- 1937 का अधिनियम किस उद्देश्य से बना था?
उत्तर:- हिन्दू जी के विधवा होने पर मृत्तक पति की सम्पत्ति में अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से वर्ष 1997 में यह अधिनियम पारित किया गया है।

प्रश्न 5- किस अधिनियम में हिन्दु विवाह-विच्छेद की व्यवस्था है?
उत्तर:- सामाजिक एवं कानूनी रूप से पति-पत्नी के विवाह सम्बन्धों को समाप्ति ही विवाह-विच्छेद कहलाता है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में विवाह-विच्छेद की व्यस्था की गई है।

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प्रश्न 6- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1966 किसलिए पारित किया गया था?
उत्तर:- स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 पारित किया गया।

प्रश्न 7- दहेज़ निरोधक अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:- दहेज निरोधक अधिनियम 1961 में पारित किया गया। इस नियम के अनुसार दहेज लेना और देना दण्डनीय अपराध है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)

प्रश्न 1- अनुलोम विवाह किस प्रकार सम्पन्न किया जाता है?


उत्तर:- जब एक उच्च वर्ण, जाति, उपजाति, कुल एवं गोत्र के लड़के का विवाह ऐसी हड़की से किया जाए, जिसका वर्ण, जाति, उपजाति , कुल लड़के से नीचा हो तो ऐसे विवाह को अनुलोम विवाह कहते हैं। अन्य शब्दों में, इस प्रकार के विवाह में लड़का उच्च सामाजिक समूह का होता है और लड़की निम्न सामाजिक समूह की । उदाहरण के लिए, एक ब्राह्मण लड़के का विवाह एक क्षत्रिय या वैश्य लड़की से होता है, तो इसे हम अनुलोम विवाह कहेंगे। वैदिककाल से लेकर स्मृतिकाल तक अनुलोम विवाहों का प्रचलन रहा है। मनुस्मृति में लिखा है कि एक ब्राह्मन को अपने से निम्न क्षत्रिय , वैश्य एवं शुद की कन्या से, क्षत्रिय को अपने से निम्न वैश्य एवं शूद से और वैश्य अपने वर्ग के अतिरिक्त शुद्र कन्या से भी विवाह कर सकता है, किन्तु मनु नपण संस्कार करने की स्वीकृति के गवर्ण विवाह के लिए ही देते हैं। याङ्गषम्य ने ब्राह्मण को चार, क्षत्रिय को तीन, वैश्य को दो एवं शूद्र को एक विवाह करने की बात कही है ।

प्रश्न 2-प्रतिलोम विवाह क्या है?


उत्तर:- प्रतिलोम विवाह अनुलोम विवाह का विपरीत रुप प्रतिलोम विवाह है । इस प्रकार के विवाह में लड़का उच्च वर्ण, आति, उपजाति, कुल या वंश की होती है और लड़का निम्न वर्ण, जाति, उपजाति, कुल या वंश का होता है। इसे परिभाषित करते हुए कपाडिया लिखते हैं, “एक ब्राह्मण के व्यक्ति का जय वर्ग को स्त्री के साक्ष वितार प्रतिलोम कालात का।” उदाहरण के लिए, यदि एक ब्राह्मण लड़की का विवाह किसी क्षत्रिय, वैश्य लड़के का विवाह शूद्र लड़के से होता है, तो ऐसे विवाह को प्रतिलोम विवाह कहा जाता है। इस प्रकार के विवाह में स्त्री की स्थिति निम्न हो जाती है। स्मृतिकारों ने ऐसे विवाह को क्यु आलोचना की है। ऐसे विवाह को पन मान को ‘चाहत’ अथवा ‘निषाद कहा जाता हो। हिन्दू विवाह वैधता अधिनियम, 11 एवं हिन्दू विवाह अधिनियम, 1965 में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह दोनों को ही वैध माना गया है।

प्रश्न 3- विवाह की शारीरिक योग्यताओं को बताइए ।


उत्तर:- विवाह की शारीरिक योग्यताएँ निम्नलिखित हैं।
विवाह की आयु विवाह का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि विवाह के समय वर एवं वधू की आयु परिपक्व होनी चाहिए। हिन्दू धर्म-शास्त्रों में विवाह की आयु को लेकर मतभेद पाया जाता है। वैदिक युग में 15 या 18 वर्ष की कन्या और 30 वर्ष के लड़के का विवाह होता था। गृहसूत्र में ‘नॉमिका’ अथवा ‘ननिका’ के क्विाह का सुझाव दिया गया है। 4 से 12 वीं की कन्या को ‘नन्का ‘ कहा गया है। वर्तमान में एक निश्चित आयु प्राप्त करने के पश्चात् ही वैधानिक रूप से उपयुक्त माना जाता है।


स्वास्थ्य विवाह के पश्चात् दम्पत्ति को सन्तान उत्पत्ति के दायित्व का निर्वहन सना होता है, इसलिए दोनों का स्वस्थ होना अनिवार्य है। स्वास्थ्य खराब होने की स्थिति में परेशानी हो सकती हैं।


संक्रामक रोग विवाह संक्रामक रोगों की जांच करके ही करना चाहिए, क्योकि पति-पत्र दोनों में तो किसी एक को भी यदि कोई संक्रामक रोग होता है तो विष पश्चात् एक-दूसरे को भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त रात्र को भी वह रोग हो जाता है।
प्रजनन सम्वन्धी रोग पति-पत्नी में से कोई भी यौन रोग आदि का शिकार नहीं होना चाहिए। इससे पारिवारिक स्थिति दु:खद होने के साथ ही सन्तान प्राप्ति का लक्ष्य पूरा होने में बाधाएँ आ सकता है। अत: दोनों संतान उत्पत्ति के योग्य हों और प्रजनन सम्बन्धी उत्तम स्वास्थ्य रखते हों।
मानसिक रोग मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होना भी विवाह का एक आवश्यक पास है। इसके अन्त में धात्य और कष्टमय हो सकता है। दोनों में से किसी को भी कोई अंग विकार नहीं होना चाहिए।


प्रश्न 4- विवाह-विच्छेद क्या है? विवाह किन परिस्थितियों में रद्द किया ज्ञा सकता हैं?
उत्तर:- सामाजिक एवं कानूनी रूप से पति-पत्नी के विवाह सम्बन्धों की समाप्ति हो विवाह-विच्छेद कहलाती है। विवाह विच्छेद पति-पत्नी के वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन में असामंजस्य एवं आसप्ता का सूचक है। इसका अर्थ यह है कि जिन उद्देश्यों को लेकर विवाह किया गया वे पूर्ण नहीं हुए हैं। यह एक दुःखद घटना है, विश्वास को समाप्त है, प्रतिज्ञा एवं मोह भंग की रियत है। यद्यपि भारत के विभिन्न प्रान्तों; जैसे- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात एवं केरल में तक के सम्बन्धित अधिनियम बनते रहे, किन्तु सम्पूर्ण भारत के सन्दर्भ में 1951 में विशेष विवाह अधिनियम तथा 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम’ तलाक की व्यवस्था है। विवाह रद्द होना विमांकित इशाओं में विवाह होने पर भी इसे रद्द किया जा सकता है।

1-विवाह के समय दोनों पक्षों में से किसी एक का भी जीवन-साधी जीवित हो और उससे तलाक नहीं हुआ हो।
2-विवाह के समय एक पक्ष नपुंसक हो।
3-विशाह के समय कोई भी एक प जड़-बुद्धि य पागल हो।
4-विवाह के एक वर्ष के अन्दर यह प्रमाणित हो जाए कि प्राय अपवा उसके संरक्षक की स्यीकृति बलपूर्वक या कपट से ली गई यौ।
5-विवाह के एक वर्ष के भीतर यह प्रामाणित हो जाए कि विवाह के समय पानी किसी अन्य पुरुष गर्भवती दी और प्रार्थी इस बात से अनभिज्ञ था।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1-विवाह का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उद्देश्य एवं विशेषताओं पर प्रकाशा हालिए।


उत्तर:- विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएँ विवाह का शाब्दिक अर्थ है ‘उह’ अर्थात् वधू को वर के घर ले जाना। विवाह दो विषमलिगों का पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की सामाजिक, धार्मिक एवं कानूनी स्वीकृति हैं। लूसी मेयर ने विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “शियडू स्त्री-पुरुष का ऐसा योग है, जिससे स्त्री से जन्मो सन्तान वैध मानी जाती है।” इस परिभाषा में विवाह को स्त्री व पुरुष के ऐसे सम्बन्धो के रूप में स्वीकार किया गया है, जो सन्तानों को जन्म देते हैं, उन्हें वैध घोधित करते है तथा इसके फलस्वरूप माता-पिता एवं बच्चों को समाज में कुछ अधिकार एवं प्रस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

बोगार्स के अनुसार, “विवाह स्त्री और पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की संस्था है।” मजूमदार एवं मदान ने लिखा है कि, “विवाह में कानूनी या धार्मिक आयोजन के रूप में उन सामाजिक स्वीकृतियों का समावेश होता है, जो विषमतगयों की यौन-क्रिया और उससे सम्बन्धित सामाजिक-आर्थिक सम्बन्धों में सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान करते हैं।”

बिल के अनुसार, “विवाह सामाजिक आदर्श-मनदण्डों की वह समग्रता है, जो विवाहित व्यतियों के आपसी सम्बन्धों को उनके रक्त सम्बन्धियों, सन्तानो तथा सत्र के साथ सम्बन्धों को परिभावित और नियन्त्रित करती है।” अतः विवाह के परिणामस्वरूप माता-पिता एवं बच्चों के बीच कई अधिकारों एवं दायित्वों का जन्म होता है।

विवाह के उददेश्य
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा सामाजिक संस्थाएँ, व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि पक्षों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निवाहन करती हैं। लिहू का उद्देश्य केवल यौन सन्तुष्टि ही नहीं होगा, वरना कभी-कभी तो यह केवल सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हो किया जाता है।

विवाह के अलग-अलग समजों में अलग-अलग उद्देश्य है; जैसे ईसाई धर्म में प्रमुख उद्देश्य यौन सन्तुष्टि है, तो हिन्दू समाज में धर्म की रक्षा करना या धार्मिक संस्कार करना, मुस्लिम समाजों में विवाह का उद्देश्य वैध सन्तानोत्पत्ति को जन्म देना, वहीं जनजातीय उद्देश्य साथ-साथ रहने का सामाजिक समझौता है, परन्तु समाजशास्त्रीय उद्देश्य स्त्री और पुरुष को एक प्रस्थिति देकर उसके अनुसार, भूमिकाओं का निर्वहन करना है। मजूमदार एवं मदान ने उद्देश्यों की चर्चा करते हुए लिखा है कि, “विवाह से वैयक्तिक स्तर पर या शारीरिक स्तर पर यौन सन्तुष्टि और मनोवैज्ञानिक स्तर पर सन्तान प्राप्त करना और सामाजिक स्तर पर पद की प्राप्ति होती है।

विवाह की प्रारम्भिक विशेषताएँ- विवाह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिति हैं।

1-विवाह दो विषमलिनियों का सम्बन्ध है।
2-विवाह एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है।
3-इसके माध्यम से किया सम्बन्धों का नियमन करता है।
4-बच्चों का पालन पोषण एवं समाजीकरण उपयुक्त तरीके से होता है।
5-विवाड़ में परिवार एवं समाज में अधिक सहयोग मिलता है।
6-विवाह मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके साप ही सामाजिक सुरक्षा भौ सम्भव हो पाती है।
7-विवाह द्वारा संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण सूत्र हो पाता है।
8-वैद्य सन्तानोत्पत्ति प्राप्त करने का माध्यम है।
9 माता-पिता एवं बच्चों में नवीन अधिकारों, दायित्वों एवं भूमिकाओं को जन्म देना भी विवाह की विशेषता है।
10-यह पार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। वेटरमार्क ने विवाह को एक सामाजिक संस्था के अतिरिक्त एक आर्थिक संस्था भी मना है।

प्रश्न 2-विवाह के प्रतिबन्धों में अन्तर्विवाह का क्या आशय है? इसके कारण और प्रभाव बताइए ।


उत्तर:- विवाह के प्रतिवन्धों में अन्तर्विवाह का तात्पर्य हैं एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव अपने ही समूह से करे। इसे परिभाषित करते हुए रियर्स ने लिखा है, “अन्तर्विवाह से अभिप्राय उन विनिमय से है, जिसमें अपने समूह में से ही विवाह करना चुनना अनिवार्य होता है।”

वैदिक एवं उतरवैदिक काल में द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य) का एक ही वर्ग वा और द्विज वर्ग के लोग अपने य (द्विज) में ही विवाह करते थे। शत्र वर्ग पृथक् था। स्मृतिकाल में अन्तर्षियाहों को स्पीकृति प्रदान की गई थी, लेकिन जब एक वर्ण कई जातियों एवं उपजातियों में विभक्त हुआ तो विवाह का दायरा सौमित होता गया और लोग अपनी जाति एवं उपजाति में विवाह करने लगे, इसे ही अन्तर्विवाह माना जाने लगा।

कुछ उपजातियों में ‘गोल’, ‘एकड़ा’ आदि हैं, जो चुनाव के क्षेत्र को एक स्थानीय सीमा तक संवित कर देते हैं। वर्तमान समय में एक व्यक्ति अपनी ही जाति, उपजाति, प्रजाति, धर्म, क्षेत्र, भषा एवं वर्ग के सदस्यों से ही विवाह करता है। केतकर के अनुसार कुछ हिन्दु जातियाँ ऐसी हैं, जो पन्द्रह परिवारों के बाहर विवाह नहीं करतीं।

अन्तर्विवाह के कारण विवाह के क्षेत्र को इस प्रकार परिभाषित करने के अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक रहे हैं। इनमें प्रमुख कारक निम्नलिखित है

1-अन्तर्रजातीय मिश्रण को रोकने के लिए अन्तर्वर्ण विवाहों पर प्रतिबन्ध लगाए गए। विशेषतः आर्य एवं इविड़ प्रजातियों के बीच रस्त मिश्रण को रोकने के लिए ऐसा किया गया।
2-प्रत्येक जाति और उपजाति अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाए रखना चाहती थी, अल; न्। अ चाह पर बल दिया।
3-जैन एवं बौद्ध धर्म में शिथिलता आने से ब्राह्मणों ने अपनी लोई प्रतिष्ठ को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर जातीय नियम बनाए।
4-मध्य युग में बाल विवाह में वृद्धि के कारण जातीय नियमों पर बल दिया आने लगा।
5- प्रत्येक गति का एक परम्परात्मक व्यवसाय पाया जाता है। अपने व्यावसायिक ज्ञान को गुप्त रखने की इच्छा ने भी अन्तर्निवाह को प्रोत्साहित किया।

अत्तर्विवाह का समाज पर प्रभाव

अन्तर्विवाह में समाज पर निम्नलिखित प्रभाव दिखाई दिए

1-इससे लोगों के सम्पर्क का दायरा समंत हो गया, जिससे उपयुक्त वर-वधु चुनने में ना आने लगी।
2-संकीर्णता की भावना पनपी, शारिक मृणा, द्वेष एवं कटुता में वृद्धि हुई।
3-क्षेत्रोक्ता की भावना उत्पन हुई, जातिवाद बढ़ा।
4-व्यावसायिक ज्ञान एक समूह तक ही सीमित हो गया।
5- इससे समाज की प्रगति में अवर-द्धता आई।

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