Yada yada hi dharmasy shloka यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

yada yada hi dharmasy shloka यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है —
मैं अवतार लेता हूं, मैं प्रकट होता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं |


Srimad Bhagwat Geeta shlok: श्रीमद्भागवत गीता का यह वाला श्लोक जीवन के सम्पूर्ण सार और सत्य को बताता है. निराशा के घने बादलों के बीच ज्ञान की एक रोशनी की तरह है यह श्लोक ” यदा यदा हि धर्मस्य ” यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है. यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है |

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