UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 5 बहादुर
बहादुर कहानी लेखक पर आधारित प्रश्न
1 . अमरकान्त जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर – – लेखक परिचय- सुप्रसिद्ध कहानीकार अमरकान्त का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 1 जुलाई, सन् 1925 ई० को हुआ था ।। इन्होंने बलिया, गोरखपुर तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की ।। इन्होंने स्नातक तक ही शिक्षा प्राप्त की ।। इनके पिता का नाम सीताराम वर्मा था ।। सन् 1942 ई० में असहयोग आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भूमिका निर्वाह की ।। प्रगतिशीलता के प्रति सदैव इनका रूझान रहा ।। पत्रकारिता क्षेत्र में विशेष रुचि रखने वाले अमरकान्त जी कई वर्ष तक अमृत पत्रिका, सैनिक, कहानी आदि पत्रिकाओं से सम्बन्धित रहे ।। सन् 2001 ई० में इन्होंने देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त किया ।। हिन्दी कहानी-जगत को अपनी लेखनी से समृद्ध करने वाले इस महान कहानीकार का 17 फरवरी, सन् 2014 ई० को देहावसान हो गया ।।
कृतियाँ- कहानी के साथ ही उपन्यास, संस्मरण एवं बाल साहित्य में भी इन्होंने अपनी लेखनी चलाई ।। इनकी प्रमुख रचनायें इस प्रकार हैं
कहानी- मौत का नगर, देश के लोग, जिन्दगी और जोंक (तीनों कहानी-संग्रह), बहादुर, इण्टरव्यू, हत्यारे, डिप्टी कलक्टरी, दोपहर का भोजन, घुडसवारी, लड़का-लड़की, छिपकली, गगनविहारी, मूस, मित्र-मिलन ।। इनकी पहली कहानी ‘बाबू’ है, जो आगरा के ‘सैनिक’ पत्र में प्रकाशित हुई ।।
उपन्यास- सूखा पत्ता, आकाश-पक्षी, पराई डाल का पक्षी, कँटीली राह के फल, दीवार और आँगन, काले-उजले दिन ।।
संस्मरण- कुछ यादें-कुछ बातें, दोस्ती ।।
बाल साहित्य- वानर सेना, मँगरी, दो हिम्मती बच्चे, नेऊर भाई, बाबू का फैसला ।।
2 . अमरकान्त जी के कथा-शिल्प एवं शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर – – कथा-शिल्प एवं शैली- अमरकान्त ने जीवन की अत्यन्त सामान्य घटनाओं और स्थितियों को अपनी कहानियों का विषय बनाया है ।। बिना किसी विशेष आग्रह के उद्दाम मानवीय जिजीविषा का मूर्तिकरण इनकी निजी विशेषता है ।। इनमें गहरी अन्तर्दृष्टि और संवेदना है ।। अपने कथा-पात्रों से इनको केवल सहानुभूति नहीं होती, वरन् ये उन्हीं के साथ जीते हैं ।। इनकी अधिकतर कहानियों में नवीन आर्थिक परिस्थितियों से जूझते मध्यमवर्गीय समाज की समस्याओं, विशेषताओं, पीड़ाओं, प्रवंचनाओं और जीवन की भूख का मर्मवेधी चित्रण किया गया है ।। वस्तुतः अमरकान्त के नाम के बिना आज की नई कहानी की कोई भी चर्चा अधूरी ही है ।। अमरकान्त की कथा-शैली सरल और सहज है ।। इसमें किसी प्रकार का दुराव-छिपाव, वक्रता अथवा ‘फैशन’ नहीं है ।। इनकी कहानियों में आभासहीनता और सादगी है ।। इनमें सामाजिक व्यंग्य की विशेषता देखने को मिलती है ।। इनकी कहानियों का अन्तिम प्रभाव करुणामूलक हुआ करता है ।। अमरकान्त की कहानियाँ पत्थर की तरह ठोस और कंक्रीट की तरह शक्तिसम्पन्न हैं ।। इनकी कहानियों के शीर्षक लघु, आकर्षक और सरल होने के साथ-साथ सार्थक भी हैं ।। अपनी कहानियों की भाषा को अमरकान्त जी व्यावहारिकता और कृत्रिमता से अलग रखते हैं ।। अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों को आवश्यकतानुसार अपनी भाषा में प्रयुक्त करना इनकी प्रमुख विशेषता है ।। इनकी रचनाओं में कहीं-कहीं आत्मकथन शैली के भी दर्शन होते हैं ।। कथा जगत में इनके महत्वपूर्ण योगदान को हिन्दी-साहित्य जगत हमेशा याद रखेगा ।।
पाठ पर आधारित प्रश्न
1 . ‘बहादुर’कहानी का सारांश लिखिए ।।
उत्तर – – ‘दिलबहादुर’ एक पहाड़ी नेपाली बालक है ।। उसके पिता युद्ध में मारे जा चुके हैं तथा माता उसे बहुत मारती-पीटती है ।। इसीलिए वह माँ के रखे रुपयों में से दो रुपये लेकर घर से भाग जाता है और एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी कर लेता है ।। गृह-स्वामिनी निर्मला उसके काम से बहुत खुश थी ।। निर्मला ने उसका नाम बहादुर रखा ।। बहादुर की मेहनत के कारण उनका घर तथा सबके कपड़े साफ रहने लगे ।। रात को वह देर तक काम करता तथा सुबह जल्दी उठकर काम में लग जाता था ।। रात को सोते समय पहाड़ी भाषा में कोई गीत गुनगुनाता रहता था ।। वह स्वयं खुश रहता था और सबको हँसाता रहता था ।। निर्मला के उद्दण्ड बेटे किशोर ने अपने सभी काम बहादुर को सौंप दिये थे ।। किसी काम में जरा-सी भी लापरवाही होने पर किशोर उसे मारता-पीटता था ।। वह थोड़ी देर चुपचाप कोने में खड़ा रहता और फिर पहले की तरह ही काम में लग जाता था ।। एक दिन किशोर ने बहादुर को सुअर का बच्चा कह दिया ।। बादर को सहन नहीं हुआ ।। अपने स्वाभिमान को बनाए रखते हुए बहादुर ने उसका काम करने से मना कर दिया ।। निर्मला के पति ने जब उसे डाँटा तो बहादुर कहने लगा- “बाबूजी, भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?” कहकर वह रोने लगा ।।
पहले निर्मला बहादुर को बहुत प्यार करती थी, उसके खाने-पीने का भी पूरा ध्यान रखती थी लेकिन अब निर्मला का व्यवहार भी उसके प्रति बदल गया था ।। निर्मला ने उसकी रोटी सेंकना भी बन्द कर दिया ।। इसलिए एक दिन बहादुर भूखा ही सो गया लेकिन अगले दिन सुबह उठकर उसने रोटियाँ सेंकी और रात की सब्जी से ही खा ली ।। स्थिति ऐसी हो गयी थी कि जरा-सी गलती होने पर ही किशोर व निर्मला उसे बहुत पीटने लगे ।। उनकी पिटाई और गालियों के कारण बहादुर से अब गलतियाँ और भूलें अधिक होने लगीं ।। निर्मला के घर आने वाले रिश्तेदार की पत्नी ने जब बहादुर पर ग्यारह रुपये चोरी करने का आरोप लगाया तो बहादर के हृदय को गहरा आघात लगा ।। उसे डराया-धमकाया गया, पुलिस के सुपुर्द करने की बात कही गई लेकिन उसने रुपये लिये ही नहीं थे, इसलिए वह अपराध स्वीकार कैसे करता ।। उस दिन से बहादुर बहुत उदास रहने लगा ।।
एक दिन दोपहर को अपना सभी सामान छोड़कर वह घर से चला गया ।। निर्मला के पति को शाम को दफ्तर से लौटने पर मालूम हुआ कि बहादुर घर छोड़कर चला गया है ।। निर्मला सिर पर हाथ रखे बैठी थी ।। घर गन्दा पड़ा था, बर्तन बिना मँजे पड़े थे तथा घर का सामान अस्त-व्यस्त था ।। अब निर्मला, उसके पति तथा पुत्र किशोर को बहादुर की ईमानदारी पर विश्वास हो गया था ।। वे इस बात को भी स्वीकार कर चुके थे कि रिश्तेदारों के रुपये भी उसने नहीं उठाये थे ।। वे सभी बहादुर पर किए गए अत्याचारों के प्रति पश्चात्ताप करते हैं ।। घर के सभी सदस्य उसके काम के आदी हो गए थे लेकिन अब केवल उसकी यादें ही शेष रह गयी थीं ।। निर्धन तथा असहाय होते हुए भी सहनशीलता तथा स्वाभिमान की भावना उसमें कूट-कूटकर भरी हुई थी ।। कहानी का नामकरण ‘दिलबहादुर’ को केन्द्रित करके ही किया गया है ।। पूरी कथा उसी के चारों ओर घूमती रहती है ।। स्पष्ट है कि प्रस्तु कहानी का शीर्षक बहादर संक्षिप्त, कौतूहलवर्द्धक, सारगर्भित तथा सब प्रकार से उपयुक्त एवं सार्थक है ।।
2 . ‘बहादुर’कहानी में निहित सन्देश को स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर – यह कहानी निम्न एवं मध्यमवर्गीय समाज के मनोविज्ञान का वास्तविक चित्र प्रदर्शित करती है ।। आधुनिक समाज झूठे-प्रदर्शन और शान-शौकत में विश्वास करता है ।। वह बनावटी जिन्दगी जीना पसन्द करता है ।। कहानीकार ने निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति हुए मध्यम वर्ग के लोगों की स्थिति की वास्तविकता को समझा है ।। उसने वर्ग-भेद मिटाने को प्रोत्साहन दिया है ।। कहानीकार का सन्देश है कि मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही वर्ग-भेद की खाई को पाटा जा सकता है ।।
3 . ‘बहादुर’कहानी के आधार पर निर्मला का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।
उत्तर – – ‘अमरकान्त’ जी की कहानी ‘बहादुर’ एक चरित्र-चित्रण कहानी है ।। इस कहानी की पात्रा जो एक मध्यम परिवार की महिला ‘निर्मला’ है जिसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) मध्यम परिवार की सदस्यता- ‘बहादुर’ कहानी की पात्र निर्मला एक मध्यम परिवार की महिला है ।। यह परिवार आर्थिक दृष्टि से बहुत सम्पन्न नहीं है ।।
(ii) दिखावे की संस्कृति की पोषक- ‘बहादुर’ कहानी की स्त्री पात्रा निर्मला दिखावे की संस्कृति की पोषक है ।। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है ।। यद्यपि, फिर भी झूठे दिखावे और शान-शौकत के लिए वह नौकर की आवश्यकता को बनाए हुए है ।। वह अपनी शान-शौकत से पड़ोसियों को प्रभावित करना चाहती है ।।
(iii) संकीर्ण विचारधारा- ‘बहादुर’ कहानी की स्त्री पात्रा निर्मला एक मध्यम परिवार की महिला है ।। दिखावे और शान शौकत के लिए वह नौकर रखती है तथा सामन्ती व्यवस्था के अनुकरण पर उससे अधिक कार्य लेती है ।। वह उसके साथ उचित व्यवहार भी नहीं करती है ।।
(iv) सामन्ती व्यवस्था की पोषक- ‘बहादुर’ कहानी की पात्रा निर्मला एक मध्यम परिवार की महिला है ।। दिखावे और शान शौकत के लिए वह एक नौकर रखती है तथा सामन्ती व्यवस्था के अनुकरण पर उससे अधिक कार्य लेती है ।। वह उसके साथ उचित व्यवहार भी नहीं करती है ।।
(v) शोषक मानसिकता- निर्मला एक शोषक मानसिकता वाली महिला है ।। नकर रखने का प्रदर्शन, नौकर के प्रति दिखावे का व्यवहार, नौकर पर रोब डालना, नौकर से जी-तोड़ काम लेना, उसका बात-बात पर पीटना, गाली देना आदि क्रिया कलापों उसकी शोषक मानसिकता को उजागर करते हैं ।।
4 . ‘बहादुर’ कहानी के मुख्य पात्र दिलबहादुर’ का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।
उत्तर – – अमरकान्त जी की कहानी ‘बहादुर’; एक चरित्र-प्रधान कहानी है ।। एक नेपाली बालक ‘दिलबहादुर’ इसका नायक है ।। बहादुर के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) असहाय और भोला- बहादुर नेपाल का रहने वाला है ।। अपनी कर्कशा माता के व्यवहार से पीड़ित होकर वह अपना घर छोड़ देता है तथा प्यार का व्यवहार पाकर निर्मला के परिवार का सारा कार्य सँभाल लेता है ।।
(ii) परिश्रमी और ईमानदार- बहादुर सुबह आठ बजे से लेकर रात्रि तक कार्य करता है ।। मारपीट के उपरान्त भी वह दिल लगाकर कार्य करता है ।। वह चोरी नहीं करता, फिर भी झूठे इल्जाम पर मार खाता है ।।
(iii) प्रेम का भूखा- वह मातृ-प्रेम व स्नेह के व्यवहार का भूखा है, जो उसे अपने घर नहीं मिला ।। वह प्रेम शुरू में निर्मला के परिवार से उसे मिलता है ।। मगर जब निर्मला भी उसके प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करती, तब वह घर छोड़ देता है ।।
(iv) हँसमुख बालक- बहादुर भोला और हँसमुख है ।। वह हर बात को हँसकर कहता है ।। बच्चों के पूछने पर अपना नाम दिलबहादुर बताकर हँसने लगता है ।। मालिक के साथ भी बात कहकर हँसता रहता है ।। मार खाने के बाद भी वह नाराज नहीं होता और शीघ्र ही पूर्व स्थिति में आ जाता है ।।
(v) सहनशील और स्वाभिमानी- बहादुर बहुत सहनशील है ।। वह सभी की डाँट, गाली और मारपीट सब-कुछ सहन नहीं कर पाता है और कोई प्रतिरोध नहीं करता, परन्तु अपने स्वर्गवासी पिता को गाली दिये जाने पर उसका स्वाभिमान जाग जाता है ।। चोरी के झूठे आरोप से उसके मन को असहनीय ठेस पहुँचती है और वह अपना सामान और अर्जित पारिश्रमिक तक वहीं छोड़कर चला जाता है ।।
(vi) व्यवहारकुशल- बहादुर एक व्यवहारकुशल बालक है ।। सभी के प्रति उसका व्यवहार बहुत मृदु है ।। अपने इसी गुण के कारण वह घर के सभी सदस्यों पर जादू का-सा प्रभाव डाल देता है ।। इतना ही नहीं, मुहल्ले के बच्चे भी उसके व्यवहार से मोहित हो जाते हैं ।।
(vii) मातृ-पितृभक्त बालक- बहादुर का हृदय मातृभक्ति और पितृभक्ति की भावना से ओत-प्रोत है ।। उसकी माँ उसे मारती थी और उसकी उपेक्षा करती थी ।। इसीलिए वह घर से भाग आया ।। वह घर वापस भी नहीं जाना चाहता, लेकिन अपने वेतन के रुपये अपनी माँ के पास ही भेजना चाहता है ।। वह कहता है- “माँ-बाप का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है ।। “
(viii) स्नेही बालक-निर्मला बहादुर के खाने और नाश्ते का बहुत ध्यान रखती है ।। बहादुर को उसमें अपनी माँ की छवि दिखाई देती थी ।। निर्मला की तबियत खराब होने पर यदि वह उसे काम करते देखता तो कहता- “माता जी, मेहनत न करो, तकलीफ बढ़ जाएगा ।। ” दवा खाने का समय होते ही वह दवाई का डिब्बा लाकर उसके सामने रख देता ।। इस प्रकार बहादुर एक सच्चा, ईमानदार, सहनशील, स्वाभिमानी, व्यवहारकुशल, भोला और स्नेही बालक है ।। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह सबके मन को बरबस ही आकर्षित कर लेता है ।। पाठक उसे चाहते हुए भी भूल नहीं सकता ।।
5 . अमरकान्त जीद्वारा लिखित ‘बहादुर’कहानी के शीर्षक की उपयुक्तता पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर – – कहानी का नामकरण ‘दिलबहादुर’ को केन्द्रित करके ही किया गया है ।। पूरी कथा उसी के चारों ओर घूमती रहती है ।। स्पष्ट है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक बहादुर संक्षिप्त, कौतूहलवर्द्धक, सारगर्भित तथा सब प्रकार से उपयुक्त एवं सार्थक है ।।
6 . कथावस्तु तथा संवाद की दृष्टि से बहादुर’ कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर – – कथानक- प्रस्तुत कहानी में लेखक ने समाज के वर्ग-भेद को उजागर किया है ।। बहादुर 12-13 वर्ष की उम्र का एक गरीब बालक है ।। वह एक साधारण परिवार में नौकर है, जिसका मुखिया स्वयं लेखक है ।। प्रारम्भ में तो उसका परिवार में पालतू पशुपक्षियों की तरह बड़ा आदर-सत्कार होता है और वह भी बड़ी मेहनत व लगन से काम करता है, किन्तु कुछ दिनों बाद वह लेखक के बड़े लड़के किशोर और उसकी पत्नी निर्मला द्वारा डाँट, मार खाने लगता है ।। उससे अपनी रोटी स्वयं सेंक लेने को भी कहा जाता है ।। एक दिन घर में आये कुछ रिश्तेदारों द्वारा बहादुर के ऊपर चोरी करने का आरोप लगाया जाता है और लेखक द्वारा बहादुर को मारा-पीटा भी जाता है ।। पत्थर की एक सिल के टूट जाने और समस्त परिवारजनों के दुर्व्यवहार से पीड़ित होने के कारण वह उस घर से भाग जाता है ।। वह अपने साथ घर का और अपना कोई भी सामान नहीं ले जाता ।। बहादुर के चले जाने के बाद परिवार के लोगों को बहादुर के गुणों की अनुभूति होती है और वे अपने द्वारा उसके प्रति किये गये अमानवीय व्यवहारों पर पश्चात्ताप करते हैं ।।
कहानी का कथानक रोचक, सुगठित, संक्षिप्त तथा समस्याप्रधान है ।। इसमें बताया गया है कि मात्र पूँजीपति ही श्रम का शोषण नहीं करते, वरन् सामान्य मध्यम-वर्ग भी इसे कुकृत्य में पीछे नहीं है ।। इस प्रकार कथानक-तत्त्व की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है ।। संवाद या कथोपकथन- यह कहानी संवाद की दृष्टि से सफल रचना है ।। इसके संवाद सरस, सरल, सुन्दर, संक्षिप्त, रोचक तथा पात्रानुकूल है ।। कथानक को गतिशीलता बनाये रखने में अमरकान्त के संवाद प्रेमचन्द की भाँति समर्थ हैं ।।
‘बहादुर’ कहानी के एक रोचक प्रसंग से संवाद-योजना प्रस्तुत है
क्या बात है?- मैंने पूछा ।। बहादुर भाग गया ।। भाग गया ।। क्यों? पता नहीं आज तो कुछ हुआ भी नहीं था ।। कुछ ले गया?
यही तो अफसोस है ।। कोई भी सामान नहीं ले गया ।।
7 . “मानवीय सहानुभूति ही वर्ग-भेद को मिटा सकती है ।। ” क्या आप मानते हैं कि अमरकान्त ने ‘बहादुर’ के माध्यम से
यही सन्देश दिया है?
उत्तर – – कहानी ‘बहादुर’ में अमरकान्त जी ने समाज में उत्पन्न वर्ग-संघर्ष को मानवीय सहानुभूति द्वारा समाप्त करने का सन्देश दिया है ।। मानवीय सहानुभूति ही इस वर्ग-भेद को समाप्त कर सकती है ।। शोषितों के प्रति मानवता एवं प्रेम का व्यवहार, ऊँच-नीच के भेद से उत्पन्न दिलों में पड़ी दीवारों को गिरा सकता है ।। कहानी का नायक बहादुर भी मानवीय स्नेह एवं संवेदनाओं का भूखा बालक है ।। मालिक द्वारा पीटे जाने और प्रतिक्रियास्वरूप उनके घर छोड़ देने पर परिवार के लोगों को पश्चात्ताप का अनुभव होता है ।। वे स्वयं को उसके प्रति किए गए बुरे व्यवहार के लिए दोषी मानते हैं ।। धनी और निर्धन का वर्ग-भेद मानवीय भावनाएँ एवं प्रेम के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है लेखक का मुख्य उद्देश्य दोनों के हृदयों का परिवर्तन है और सबके प्रति सहानुभूति व्यवहार बनाए रखने का सन्देश देना है ।।
8 . ‘बहादुर’कहानी की चरित्र-चित्रण की दृष्टि से समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर – – पात्र तथा चरित्र-चित्रण- प्रस्तुत कहानी में पात्रों की संख्या सीमित है ।। वे निम्न तथा मध्यम वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।। बहादुर निम्न वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है ।। उसके अपने घर की आर्थिक स्थिति शोचनीय है ।। माँ की मार और उपेक्षा से खीझकर वह घर से शहर भाग आता है और एक मध्य-वित्त-परिवार में नौकरी करता है ।। कहानी का प्रमुख पात्र बहादुर है ।। गृहस्वामिनी निर्मला तथा उसका बेटा किशोर, रिश्तेदार, उसकी पत्नी और लेखक कहानी के अन्य पात्र हैं ।। बहादुर ईमानदारी, मेहनती तथा स्वाभिमानी बालक है ।। वह निर्मला के पुत्र किशोर तथा फिर निर्मला के दुर्व्यवहार का शिकार होता है ।। गाली खाकर भी वह मौन बना रहता है, परन्तु ‘सुअर का बच्चा’ गाली उसके स्वाभिमान पर विशेष चोट पहुँचाती है” . . . . . . . . .बाबूजी, भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?-वह रोता हुआ बोला ।। ” बहादुर के मन पर सबसे गहरा आघात तब लगता है, जब उस पर चोरी का इल्जाम लगाया जाता है, उसे धमकाया और पीटा जाता है ।। इस आघात के कारण वह खाली हाथ घर छोड़कर चला जाता है ।। कथाकार बाल-मनोविज्ञान के सूक्ष्म विश्लेषण में सफल रहे हैं ।। निर्मला साधारण महिला है ।। किशोर शान-शौकत से रहने का अभ्यस्त है ।। वह आज के समाज के उन नवयुवकों का प्रतिनिधित्व करता है, जो कम साधन होते हुए भी रईसों की नकल करते हैं ।। इस प्रकार पात्र तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘बहादुर’ एक सफल कहानी है ।।
9 . ‘बहादुर’कहानी की भाषा-शैली की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर – – इस कहानी की भाषा कथा-प्रसंग के अनुकूल व्यावहारिक एवं प्रवाहपूर्ण है तथा शैली आत्मपरक है ।। प्रचलित मुहावरों का प्रयोग भाषा की विशेषता है; जैसे–नौ दो ग्यारह होना, माथा ठनकना, पेट में दाढ़ी होना आदि ।। उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग मिलता है; जैसे-किस्सा, तमीज, सिनेमा, रिपोर्ट इत्यादि ।।
भाषा-शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है- “अम्माँ, एक बार भी अगर बहादुर आ जाता तो मैं उसको पकड़ लेता और कभी जाने न देता ।। उससे माफी माँग लेता और कभी नही मारता ।। सच, अब ऐसा नौकर कभी नहीं मिलेगा ।। कितना आराम दे गया है वह ।। अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो सन्तोष हो जाता ।।