UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्
प्रथम: पाठ: भोजस्यौदार्यम्
निम्नलिखित गद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए |
1- . ततः कदाचित् . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .पुनरुद्वर्तुमुचितः।
[कौपीनावशेषोः > कौपीन + अवशेषः = जिस पर लँगोटीमात्र शेष है, वह अर्थात् दरिद्र, दारिद्रयनाशः = दरिद्रता का नाश, मत्वा = मानकर, हर्षाश्रुणि सुमोच = हर्ष के आँसू ढलका दिए, मद्गृहस्थितिम् = मेरे घर की स्थिति को, लाजानुच्चैः > लाजान + उच्चैः = खीलें लेने का उच्च शब्द, सुपिहितवती = अच्छी प्रकार बन्द कर दिए, क्षीणोपाये > क्षीण + उपाये = साधनहीन, दृशावश्रुबहुले > दृशौ + अश्रुबहुले = आँसुओं से भरी दृष्टि, तदन्तःशल्यं > तत् + अन्तःशल्यं = हृदय में चुभे काँटे (दुःख) को, उद्धर्तुमुचितः = निकालने के योग्य (समर्थ)]
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के भोजस्यौदार्यम्’ पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद- इसके बाद कभी द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा, “देव, केवल लँगोटी पहने (अति दरिद्र) एक विद्वान द्वार पर खड़े हैं।” (राजा बोले)- “प्रवेश कराओ”। तब प्रविष्ट होकर उस कवि ने भोज को देखकर ‘आज मेरी दरिद्रता का नाश हो जाएगा यह मानकर (विश्वास कर) प्रसन्न हो खुशी के आँसू बहाये। राजा ने उसे देखकर कहा- “हे कवि, रोते क्यों हो?’ तब कवि बोला, “राजन् मेरे घर की दशा सुनिए“(घर से बाहर) रास्ते पर (खील बेचने वाले के द्वारा) ऊँचे स्वर से ‘अरे, खीले लो’ की आवाज सुनकर मेरी दीन मुख वाली पत्नी से बच्चों के कानों को सँभालकर बन्द कर दिया (जिससे कि वे सुनकर खीलें दिलवाने का हठ न करें) और मुझ दरिद्र पर जो आँसुओं से भरी दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे की तरह गड़ गयी, जिससे निकालने में आप ही समर्थ हैं।”
2 . राजाशिव . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .तु भिक्षाटनम्।
[उदीरयन् = कहते हुए, शिवसन्निधौ = शिवजी के समीप, दानववैरिणा = दानव-वैरी अर्थात् विष्णु के द्वारा, गिरिजयाप्यर्द्धम् > गिरिजया + अपि + अर्द्धम् = पार्वती जी द्वारा भी आधा, शिवस्यहृतम् > शिवस्य + आहृतम् = शिव का आधा भाग ले लिया, देवेत्थम् > देव + इत्थम् = है देव! इस, पुरहराभावे > पुरहर + अभावे = शिव का अभाव, समुन्मीलति = प्रकाशित करती है; सुशोभित करती है, मातलम् = पृथ्वी-तल को, सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् > सर्वज्ञत्वम + अधीश्वरत्वम् + अगमत् = सर्वज्ञता और ईश्वरत्व, भिक्षाटनम् = भिक्षा के लिए घूमते फिरना]
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- राजा ने ‘शिव शिव’ कहते हुए(अर्थात् अत्यधिक करुणा प्रकट करते हुए) प्रत्येक अक्षर के लिए एक-एक लाख (रुपये) देकर कहा, “तुरन्त घर जाओ। तुम्हारी पत्नी दुःखी हो रही होगी।’ दूसरे दिन (अन्य किसी दिन) भोज शिवजी को प्रणाम करने शिवालय गये। वहाँ किसी ब्राह्मण ने शंकर के समीप जाकर कहा- भगवान् शंकर की आधी देह दानव वैरी अर्थात् भगवान विष्णु ने ले ली, आधी पार्वती जी ने। (तब) हे देव? इस पृथ्वीतल पर गंगा भगवान् शिव के देहरहित हो जाने पर सागर को सुशोभित करने लगीं (सागर को चली गयीं), चन्द्रकला आकाश को, शेषनाग पृथ्वीतल से नीचे (पाताल को), सर्वज्ञता और ईश्वरता (शक्तिमत्ता या प्रभुत्ता) आपको प्राप्त हुई और भीख माँगते फिरना मुझे (इस प्रकार भगवान् शंकर के समस्त गुण विभिन्न स्थानों पर बँट गये)।
3 . राजा तुष्ट . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव।
[विरलविरलाः = कोई-कोई, स्थूलास्ताराः = बड़े तारे, कलाविव > कलौ + इव = जैसे कलियुग में, प्रसन्नमभून्नभः > प्रसन्नम् + अभूत + नभः = आकाश निर्मल हो गया, अपसरित = दूर हो रहा है, ध्वान्तं = अन्धकार, चित्तात्सतामिव >चित्तात् + सताम + इव = जैसे सज्जनों के चित्त से, क्षिप्रम् = शीघ्र, लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव > लक्ष्मी: + अनुद्यमिनाम + इव = उद्यमरहित लोगों की सम्पदा के समान
सन्दर्भ- पूर्ववत्
अनुवाद- राजा ने सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्येक अक्षर पर एक-एक लाख (रुपये) दिये। अन्य किसी दिन राजा ने पास में स्थित सीता (नाम की किसी कवयित्री) से कहा, “देवी! प्रभात का वर्णन करो।” सीता ने कहा-(इस प्रभात बेला में) बड़े तारे कलियुग में सज्जनों के समान बहुत कम हो गये हैं, मुनियों के मन (या अन्त:करण) के सदृश आकाश सर्वत्र निर्मल (स्वच्छ) हो गया है, अन्धकार सज्जनों के चित्त से दुर्जनों (के कुकृत्यों की स्मृति) के समान दूर हो गया है और रात्रि उद्योगरहित (पुरुषार्थहीन) व्यक्ति की समृद्धि के समान शीघ्र समाप्त होती जा रही है (अर्थात् जो व्यक्ति धन कमाने में उद्योग न करके पहले से जमा धन ही व्यय किये जाते है, जिस प्रकार उसकी समृद्धि शीघ्रतापूर्वक घटती जाती है, उसी प्रकार रात भी शीघ्रता से समाप्त होती जा रही है)।
4 . राजा तस्मै . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .लक्षं ददौ।
[पिङ्गा = पीली, रसपतिः = पारा, गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन + इव > गतच्छाय: + चन्द्रः + बुधजन + इव = विद्वज्जन की तरह चन्द्रमा कान्तिहीन, इवानुद्यमपराः > इव + अनुद्यमपरा: = अनुद्यमियों की तरह, राजन्ते = चमक रहे हैं, द्रविणरहितानाम् = धनहीनों के]
अनुवाद- राजा ने उसे एक लाख (रुपये) देकर कालिदास से कहा, “मित्र तुम भी प्रभात का वर्णन करो।’ तब कालिदास ने कहापूर्व दिशा उसी प्रकार पीली हो गयी है जैसे सुवर्ण के संयोग से पारा (पीली हो जाती है), चन्द्रमा उसी प्रकार कान्तिहीन (फीका) दिख पड़ता है जैसे गँवारों (मूखों) की सभा में विद्वान्। तारे क्षणभर में (सहसा) उसी प्रकार क्षीण हो गये हैं जैसे उद्योगरहित राजागण की राज्य श्री (क्षीण हो जाती है) और दीपक उसी प्रकार शोभा नहीं पाते जैसे धनहीन व्यक्तियों के गुण। (निर्धन व्यक्ति चाहे कितना भी गुणी हो, समाज में उसके गुणों का उचित मूल्याकंन या आदर नहीं होता और धनी व्यक्ति गुणहीन हो, तो भी समाज उसे आदर देता है।) राजा ने अति सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्येक अक्षर पर एक लाख (रुपये) दे दिये। सूक्ति-व्याख्या संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित सूक्तिरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए1
2-. व्रजति च निशा क्षिप्रं लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव।
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के भौजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- इस सूक्ति में कवयित्री सीता ने उद्यमहीन व्यक्तियों के दरिद्र होने पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या-उद्यम तथा बुद्धिचातुर्य से व्यक्ति अपने कार्यों को सम्पन्न करता है। जब व्यक्ति उद्यम करता है तो उसे अपने समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। उद्योग से वह धन अर्जित करता है, जिससे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है। यदि व्यक्ति उद्यम छोड़ देता है तो उसका संचित धन एक दिन अवश्य ही समाप्त हो जाता है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह निरन्तर उद्यम करता रहे। ऐसा करने से वह केवल धनी ही नहीं रहेगा वरन् उसकी धनराशि में निरन्तर वृद्धि भी होती रहेगी। इसके विपरित जो व्यक्ति उद्यम छोड़ देते हैं, इनका साथ लक्ष्मी भी छोड़ देती है। सीता कहती है कि प्रात:काल निकट होने पर रात्रि उसी प्रकार शीघ्रता से जा रही है, जैसे उद्यमहीन व्यक्ति की लक्ष्मी शीघ्र चली जाती है। प्रभात-वर्णन के माध्यम से कवयित्री व्यक्ति को कभी भी उद्यम न छोड़ने की चेतावनी देती है। अन्यत्र कहा भी गया है- “उद्योगिनं पुरुषसिंहमपैति लक्ष्मीः ।
2 . गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- इस सूक्ति में प्रात:काल का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास अज्ञानियों के मध्य स्थित ज्ञानी की स्थिति का अंकन कर रहे हैं।
व्याख्या- प्रातः काल के समय चन्द्रमा उसी प्रकार कान्तिहीन हो गया है जैसे मूल् (गँवारों) की सभा में विद्वान्। वस्तुतः विद्वान् के गुणों का सम्मान विद्वान ही कर सकता है। क्योंकि वही उसको समझ सकता है। मूर्ख तो मूर्खता की बात समझ सकते हैं, विद्वान ही गम्भीर वाणी को समझना उनके बस की बात नहीं। फलतः वे ऐसे विद्वान् की बहुमूल्य सम्पति की हँसी ही उड़ा सकते हैं। उसका मजाक उड़ाकर उसे निष्प्रभ ही बना सकते हैं। ज्ञानी व्यक्ति का ज्ञान एवं व्यक्तित्व ज्ञानियों के मध्य जाकर ही निखरता है, अज्ञानियों के बीच नहीं। इसीलिए किसी कवि ने विधाता से एकमात्र यही वरदान माँगा है कि उसको भाग्य में अरसिकों के सामने काव्यचर्चा करने, लिखने का अवसर न आये, चाहे और कोई भी कष्ट आ जाए |
3 . नदीपाराजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः।
सन्दर्भ- पूर्ववत्
प्रसंग- महाकवि कालिदास ने इस सूक्ति में प्रातःकाल के वर्णन के माध्यम से इस सांसारिक सत्य को उद्घाटित किया है कि निर्धन के गुणों को कोई महत्व नहीं देता। व्याख्या- प्रातः काल के समय दीपक उसी प्रकार उपेक्षित हो जाते हैं, शोभाहीन लगते हैं, जैसे निर्धन व्यक्तियों के गुण। समाज में धन का इतना आदर है कि निर्धन व्यक्ति को लोग उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं, चाहे वह कितना ही गुणवान् क्यों न हो और धनी व्यक्ति गुणहीन हो तो भी लोग उसको बड़ा सम्मान देते हैं। इसीलिए किसी कवि ने लिखा है कि ‘सारे गुण सोने में निहित हैं’- सर्वेगुणाः काञनमाश्रयन्ते। इसीलिए कद्र भी उसी के गुणों की होती है, जो साधनसम्पन्न हो। लक्ष्मी और अधिकार से सम्पन्न हो। चाणक्य का भी कथन है। “जिसके पास बहुत धन है उसी के बहुत-से मित्र होते हैं, जिसके पास धन है उसी के बन्धु होते हैं, जिसके पास धन है वही पुरुष गिना जाता है और जिसके पास धन है वही विद्वान् कहलाता है।”
पाठ पर आधारित प्रश्न उत्तर
1 . द्वारपाल: भोजं किम् अकथयत्?
उ०- द्वारपाल: भोजं अकथयत्-‘देव, कौपीनावशेषो विद्वान द्वारि वर्तते।’
2 . भोजः कविं किम् अपृच्छत?
उ०- भोज: कविं अपृच्छत्- कवेः किं रोदिपि?’ इति।
3 . भोजं दृष्ट्ता कविः किम् अचिन्तयत्?
उ०- भोजं दृष्ट्ता कविः अचिन्तयत्, “अद्य गम दरिद्रतायाः नाशः भविष्यति” इति।
4 . कविः कथम् अरोदी?
उ०- कविः स्वदरिद्रतायाः कारणात् अरोदीत्।
5 . विदुषः ब्राह्मणस्य पत्नी कथं दुःखिनी आसीत् ?
उ०- विदुषः ब्राह्मणस्य पत्नी क्षीणोपायः (दरिद्रः) हेतुना दुःखिनी आसीत्।
6 . राजा भोजः सीतां किं प्राह?
उ०- राजा भोजः सीतां प्रभातं वर्णव’ इति प्राह।
7 . राजा भोजः कालिदासं किं कुर्तं प्राह?
उ०- राजा भोजः कालिदासं प्रभातवर्णनं कर्तुं प्रेरितवान्।
8 . भोजः कालिदासस्य किं पुरस्कारं ददौ?
उ०- भोज: कालिदासाय प्रत्यक्षरं लक्षं ददौ।
9 . भोजः कुत्र कथञ्च अगच्छत्
उ०- भोजः श्रीमहेश्वरं नमितुं शिवालयमगच्छत्।
संस्कृत अनुवाद संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए1
1- . राजा ने कवि से क्या पूछा?
अनुवाद- राजा कविः किमं अपृच्छत।
2 . महाराज ने शिवजी को प्रणाम किया।
अनुवाद- महाराजः शिवं प्रणाम: अकरोत्।
3 . मोर नाचता है।
अनुवाद- मयूरः नृत्यति।
4 . राजा ने कालिदास से कहा- तुम भी प्रात:काल का वर्णन करो।
अनुवाद- राजा कालिदास अकथयत्- त्वमपि प्रभात वर्णयं कुरु।
5 . हमारे घर के चारों ओर पेड़ हैं।
अनुवाद- अस्माकं गृहं पारित: वृक्षाः सन्ति।
6 . विनय मनुष्यों का आभूषण है।
अनुवाद- विनय: मनुष्याणां आभूषणम् अस्ति।
7 . आज मेरी दरिद्रता का नाश हो जाएगा।
अनुवाद- अद्य मम दरिद्रता: नाशों भविष्यति।
8-. हमें बड़ों का आदर करना चाहिए।
अनुवाद- वयं अग्रजः सम्मानं कुर्याम्।
9 . राम प्रतिदिन विद्यालय जाता है।
अनुवाद-राम: प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छति।
10 . महाराज ने सीता से क्या कहा?
अनुवाद- महाराजः सीताया किम् अकथयत्?
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