UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा)
लेखक पर आधारित प्रश्न
1 — भगवतीचरण वर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर — लेखक परिचय- सुप्रसिद्ध कथाकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म उन्नाव जिले के शफीपुर नामक ग्राम में 30 अगस्त, सन् 1903 ई० को हुआ था ।। शिष्ट एवं व्यंग्यात्मक कथाकारों में भगवतीचरण वर्मा का स्थान महत्वपूर्ण है ।। प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने स्नातक तथा एल.एल.बी — की उपाधि प्राप्त की ।। साहित्य के क्षेत्र में इनका प्रवेश छायावादी कवि के रूप में हुआ ।। प्रगतिवादी कवियों में भी इनका महत्वपूर्ण स्थान है ।। इन्होंने हिन्दी-साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई ।। उपन्यासकार के रूप में भी इन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की ।। यथार्थता के धरातल पर इन्होंने, कृत्रिम शान-शौकत और समाज में व्याप्त पाखण्डों, झूठे दिखावे आदि पर तीखें व्यंग्य किए हैं ।। ‘सिनेमा जगत’ तथा ‘आकाशवाणी’ से भी ये संबंधित रहे हैं ।। इन्होंने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।। इन्होंने जीवन का अधिकांश समय लखनऊ में व्यतीत किया ।। वहीं इन्होंने स्वतन्त्र रूप से साहित्य-सृजन किया ।। 5 अक्तूबर, सन् 1981 ई० में यह महान् कथाकार हमेशा के लिए चिर-निद्रा में लीन हो गया ।। कृतियाँ- सुप्रसिद्ध कथाकार भगवतीचरण वर्मा जी की प्रसिद्ध कृतियाँ निम्नलिखित हैंकहानी-संग्रह-दो बाँके, राख और चिनगारी, मोर्चाबन्दी, इंस्टालमेण्ट ।। कहानियाँ-विक्टोरिया क्रॉस, वसीयत, प्रायश्चित्त, मुगलों ने सल्तनत बख्श दी, कायरता आदि इनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं ।। उपन्यास- भूले-बिसरे चित्र, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, चित्ररेखा, सामर्थ्य और सीमा, सबहिं नचावत राम गुसाईं, तीन वर्ष, प्रश्न और मरीचिका, पतन, सीधी-सच्ची बातें ।। रेखाचित्र- रेखाचित्र के अन्तर्गत- ‘वे सात और हम’ प्रमुख हैं ।।
2 — भगवतीचरण वर्मा के कथा-शिल्प एवं शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — कथा-शिल्प एवं शैली- वर्मा जी की कहानी-कला की सजीवता पाठक को मुग्ध कर देती है ।। सरलता, स्पष्टता, सहजता एवं व्यंग्यात्मक अभिव्यंजना इनकी कहानियों की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं ।। वर्मा जी ने अपनी कहानियों में अधिकतर सामाजिक परिवेशों तथा पारिवारिक प्रसंगों को कथानक के रूप में ग्रहण किया है ।। कथानक लघु, किन्तु कलापूर्ण हैं ।। सामान्य घटनाओं का मार्मिक एवं चुटीला प्रस्तुतीकरण इनकी कहानी-कला की एक निजी विशेषता हैं ।। कहानियों के शीर्षक आकर्षक एवं कुतूहलपूर्ण हैं ।। इन्होंने मुख्यत: चरित्र-प्रधान, समस्या-प्रधान तथा विचार-प्रधान कहानियाँ लिखी हैं ।। कहानियों के पात्र समाज के विभिन्न वर्गों से चुने गए हैं ।। पात्रों के मनोगत भावों को स्पष्ट करने तथा उनकी मनोग्रन्थियों को खोलने में इनका कौशल देखते ही बनता है ।। वर्मा जी ने कहानियों में कथोपकथनों की योजना मनोरंजक ढंग से की है ।।
कथोपकथन नाटकीय, संक्षिप्त एवं सार्थक है ।। इनकी भाषा-शैली सरल, सहज एवं व्यावहारिक है ।। शैली में व्यंग्य के साथ-साथ प्रवाह भी दर्शनीय है ।। कहानियों की भाषा पात्रों एवं परिस्थितियों के अनुसार बदलती है ।। इनकी अधिकतर कहानियों में शिष्ट हास्य एवं परिमार्जित व्यंग्य देखने को मिलता है ।। परिस्थिति एवं प्रसंगानुसार रोचक एवं प्रभावशाली वातावरण के चित्रण में ये सिद्धहस्त थे ।। इनकी कहानियाँ पाठकों के समक्ष जीवन की विकृतियों और विसंगतियों को उद्घाटित करते हुए यथार्थता का बोध कराती हैं ।।
साहित्य-क्षेत्र में अपने अद्वितीय योगदान के कारण भगवतीचरण वर्मा चिर स्मरणीय रहेंगे ।।
पाठ पर आधारित प्रश्न
1 — ‘प्रायश्चित’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर — रामू की बहू की अवस्था केवल चौदह वर्ष है ।। वह अभी दो महीने पहले ही मायके से ससुराल आई है ।। सास ने चाभियाँ उसे सौंप दी ।। पति की प्यारी, सास की दुलारी वह अपरिपक्वता के कारण सजग नहीं रह पाती थी ।। कभी-कभी उससे भण्डार-घर खुला रह जाता था, तो कभी वह भण्डार-घर में बैठे-बैठे ही सो जाती थी ।। उसकी इस अपरिपक्वता का लाभ उठाती थी कबरी बिल्ली ।। कबरी बिल्ली से परेशान रामू की बहू के लिए खाना-पीना भी दुश्वार हो गया था लेकिन कबरी बिल्ली पूरे घर में यदि किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से ।। वह रामू की बहू की असावधानी का लाभ उठाकर प्रतिदिन दूध, घी, मक्खन आदि सब चट कर जाती थी ।। इस कारण रामू की बहू को सास की मीठी-मीठी झिड़कियाँ सुनने को मिलती थीं और रामू को मिलता था रूखा-सूखा भोजन ।।
रामू की बहू ने निश्चय कर लिया कि या तो घर में वह रहेगी या कबरी बिल्ली ।। बिल्ली पकड़ने के लिए कटघरा मँगाया गया ।। उसमें दूध, मलाई, चूहे तथा बिल्ली को स्वादिष्ट लगने वाले विविध व्यंजन रखे गए लेकिन बिल्ली सतर्क रही, पकड़ में नहीं आई ।। एक दिन रामू की बहू ने रामू के लिए खीर बनाई और कटोरा भरकर बहुत ऊँचे ताक पर रख दिया, जहाँ बिल्ली न पहुँच पाए और स्वंय जाकर पान लगाने लगी ।। इस बीच बिल्ली ने वहाँ पहुँचकर ऊपर देखा, सूंघा और उछलकर कटोरा गिरा दिया ।। रामू की बहू ने देखा कि कटोरा टुकड़े-टुकड़े हो गया है और बिल्ली खीर खा रही है ।। उसे देखते ही बिल्ली भाग गई ।। रामू की बहू ने उसकी हत्या करने के लिए कमर कस ली ।। रात भर उसे नींद भी नहीं आई ।। सुबह उसने देखा कि बिल्ली देहरी पर आकर बैठी बड़े प्रेम से उसे देख रही है ।। उसने एक कटोरा दूध कमरे के दरवाजे पर रखा और पाटा लेकर लौटी ।। जैसे ही बिल्ली आकर दूध पीने लगी, रामू की बहू ने पाटा उस पर फेंक दिया ।। बिल्ली एकदम उलट गयी ।।
महरी दौड़ी हुई आई, बोली- “अरे राम, बिल्ली तो मर गई’ सासू आई, फिर गाँव की औरतें ।। पूरे गाँव में बिल्ली की हत्या की खबर फैल गई ।। पण्डित परमसुख को बुलाया गया ।। उन्होंने कहा- “बिल्ली की हत्या ऐसा-वैसा पाप नहीं है रामू की माँ! बहू के लिए कुम्भीपाक नरक है ।। ” प्रायश्चित्त के लिए उन्होंने कहा कि कम से कम इक्कीस तोले सोने की बिल्ली बनवाकर दान कर दो, आगे आपकी श्रद्धा ।। बहुतविचार विमर्श के बाद ग्यारह तोले की बिल्ली बनवाकर दान करना तय किया गया ।। पूजा की अन्य सामग्री में पण्डित जी ने दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, मन-भर तिल, पाँच मन जौ, पाँच मन चना, चार पंसेरी घी और मन-भर नमक बताया ।। पण्डित जी ने कहा- “ग्यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्ली बनवा लाऊँ- दो घंटे में बनवाकर लौटूंगा, तब तक पूजा का प्रबन्ध कर रखो, और देखो पूजा के लिए…..’ पण्डित जी की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि महरी हाँफती हुई कमरे में घुसी और सभी चौक गए ।। महरी ने बताया “माँ जी, बिल्ली तो उठकर भाग गई ।। “
2 — ‘प्रायश्चित’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए ।।
उत्तर — प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘प्रायश्चित्त’ पूरी कथा को स्वयं में समाहित किए हुए है ।। कहानी के सभी पात्र शीर्षक के इर्द-गिर्द मँडराते रहते हैं ।। कोई प्रायश्चित्त करना चाहता है, तो कोई प्रायश्चित्त करवाना चाहता है ।। शेष पात्र ‘प्रायश्चित्त’ के दर्शक, सहायक व प्रेरक के रूप में दिखाई देते हैं ।। शीर्षक आकर्षक, सारगर्भित, संक्षिप्त एवं रोचक है ।। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘प्रायश्चित्त’ सर्वदा उपयुक्त एवं सार्थक है ।।
3 — ‘प्रायश्चित कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — ‘प्रायश्चित’कहानी का उद्देश्य — वर्मा जी की ‘प्रायश्चित’ कहानी के उद्देश्य का अनुमान पाठक कथा के मध्य में ही कर लेता है ।। कहानी में वर्माजी ने तथाकथित सुसंस्कृत एवं शिक्षित वर्ग के प्रबल अर्थलोभ का यथार्थ चित्र अनूठी व्यंग्य-शैली में अंकित किया है ।। कहानीकार ने “सर्वेगुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति” इस प्राचीन उक्ति को कहानी में साकार किया है ।। व्यंग्य के माध्यम से अन्ध-विश्वास और रूढ़िवादिता पर कुठाराघात करना कहानीकार का मुख्य उद्देश्य रहा है ।। वह यह भी सन्देश देता है कि हमें अपने बीच रहते ऐसे धन-लोलुप लोगों की स्वार्थपूर्ति का साधन स्वयं तो बनना ही नहीं चाहिए, बल्कि उनके क्रिया-कलापों का भण्डाफोड़ करके समाज को जागरूक बनाने में भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए ।। इस प्रकार ‘प्रायश्चित’ एक मनोवैज्ञानिक तथा यथार्थवादी कथानक पर आधारित प्रभावशाली मनोरंजक कहानी है, जो कि कहानी-कला के तत्वों की कसौटी पर पूर्णतया खरी उतरती है ।।
4 — कथावस्तु तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से प्रायश्चित’ कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
कथानक या कथावस्तु- इस कहानी का कथानक मध्यमवर्गीय ग्रामीण समाज से लिया गया है तथा पुरोहितों में धर्म के नाम पर धन-हरण के प्रति बढ़ते हुए मोह को कहानी का आधार बनाया गया है ।। कहानी का प्रारंभ घर में नयी बहू के आगमन और बिल्ली द्वारा दूध के बने व्यंजनों के येन-केन-प्रकारेण चट कर जाने से है ।। बिल्ली के आए दिन के इस कार्य से नयी बहू परेशान हो जाती है और अन्ततः वह बिल्ली को मार देने का निर्णय करती है तथा उस पर पाटा चला देती हैं पण्डित परमसुख बुलाए जाते हैं और वह बिल्ली की हत्या का जो प्रायश्चित बताते हैं, वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो कई लाख का बैठेगा ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 आकाशदीप (जयशंकर प्रसाद)
परिवारीजन इस बारे में विचार करते ही रहते हैं कि पता चलता है कि बिल्ली भाग गई ।। इस कहानी का कथानक रोचक, सरल, मौलिक, स्वाभाविक, सजीव और प्रभावशाली है ।। इसमें प्रारंभ से अन्त तक कौतूहल बना रहता है ।। कहानी में कहानीकार ने तथाकथिक पुरोहित वर्ग और उनके पौरोहित्य कर्म की पोल खोलकर रख दी है और सामाजिक रूढ़ियों और धर्मभीरूता के नाम पर शोषण की प्रवृत्ति को अभिव्यक्त किया है ।। कहानी का अन्त आकर्षक है जो पाठक पर अपना स्पष्ट प्रभाव छोड़ता है ।। पात्र और चरित्र-चित्रण- यह कहानी एक मध्यमवर्गीय हिन्दू ग्रामीण-धर्मभीरु परिवार से सम्बन्धित है ।। कहानी में पात्रों की संख्या कम है ।। मुख्य पात्र रामू की बहू, कबरी बिल्ली, पण्डित परमसुख और रामू की माँ हैं ।। अन्य सभी पात्र-मिसरानी, छन्नू की दादी, महरी, किसन की माँ आदि गौण पात्र हैं, जो केवल कथावस्तु को विस्तार देने के उद्देश्य से ही प्रयुक्त किए गए हैं ।। पात्रों के चरित्र-चित्रण में सांकेतिक प्रणाली को अपनाते हुए उनका मूल्यांकन पाठकों पर ही छोड़ दिया गया है ।। पात्र तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है ।।
5 — भाषा-शैली की दृष्टि से प्रायश्चित’ कहानी का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर — भाषा-शैली- इस कहानी की भाषा आम बोल-चाल की, सरल, सरस और स्वाभाविक है ।। लोकोक्तियों और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है ।। शैली पात्रों के अनुकूल है और उनके भावों को प्रकट करने वाली है, जिसमें व्यंग्यात्मकता का पुट सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य हैपण्डित परमसुख मुस्कराए, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा-“बिल्ली कितने तोले की बनवाई जाए? अरे राम की माँ, शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के वजन-भर सोने की बिल्ली बनवाई जाए, लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही ।। सो रामू की माँ, बिल्ली के तोलभर की बिल्ली तो क्या बनेगी, क्योंकि बिल्ली बीस-इक्कीस सेर से कम की क्या होगी ।। हाँ, कम-से-कम इक्कीस तोले की बिल्ली बनवा के दान करवा दो और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा ।। ” राम की माँ ने आँखें फाड़कर पण्डित परमसुख को देखा- “अरे बाप रे, इक्कीस तोला सोना! पण्डित जी यह तो बहत है,तोलाभर की बिल्ली से काम न निकलेगा?” ।। पण्डित परमसुख हँस पड़े-“रामू की माँ! एक तोला सोने की बिल्ली! अरे रुपया का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है, इसमें इतना लोभ ठीक नहीं!” वर्मा जी सफल कथाशिल्पी हैं और उनकी भाषा-शैली भावों तथा पात्रों के अनुकूल है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 आकाशदीप (जयशंकर प्रसाद)
6—- देशकाल और वातावरण की दृष्टि से ‘प्रायश्चित’कहानी का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर — देश-काल और वातावरण- प्रायश्चित कहानी का आधार ग्रामीण-सम्भ्रान्त एवं सम्पन्न परिवार है ।। ‘प्रायश्चित’ एक व्यंग्यमूलक कहानी है, जिसमें सामाजिक पात्रों की स्वार्थबद्धता पर लेखक ने विनोदपूर्ण एवं चुटीला व्यंग्य किया है तथा वातावरण को प्राणवान एवं प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष सजगता का परिचय दिया है ।। रामू के घर का दृश्य ही पूरे घटनाक्रम के लिए पर्याप्त है ।। समाज में भ्रष्टाचार, पाखण्डवाद, रूढ़िवाद और धर्मभीरुता का लेखक ने ‘व्यंग्यपूर्ण’ वर्णन किया है ।। कहानी में आधुनिक समाज के वातावरण की सजीव दृष्टि मिलती है ।। आज के युग में व्यक्ति अत्यन्त स्वार्थी होता जा रहा हैं बेईमानी और भ्रष्टाचार चारों ओर व्याप्त हैं ।। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में देश-काल और वातावरण का सफलता के साथ चित्रण हुआ है ।।
7 — ‘प्रायश्चित कहानी के एकमात्र पुरुष पात्र पण्डित परमसुख के चरित्र और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — ‘प्रायश्चित’ कहानी भगवतीचरण वर्मा की एक श्रेष्ठ व्यंग्यप्रधान सामाजिक रचना है, जिसमें मानव के स्वभाव का सुन्दर मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है ।। पण्डित परमसुख कहानी के प्रमुख पात्र हैं ।। कहानी के प्रारंभ में बिल्ली की मृत्यु होने के बाद वे सम्पूर्ण कहानी पर छाए हुए हैं ।। उनके कर्मकाण्ड और पाखण्ड के द्वारा वर्मा जी ने उनके चरित्र को उजागर किया है ।। कहानी के आधार पर उनकी चरित्रगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) कर्मकाण्डी ब्राह्मण- पण्डित परमसुख एक कर्मकाण्डी ब्राह्मण हैं ।। वह कर्मकाण्ड के स्थान पर प्रकाण्ड पाखण्ड में अधिक विश्वास रखते हैं ।। नित्य पूजा पाठ करना उनका धर्म है ।। लोगों में उनके प्रति आस्था भी है ।। इसलिए बहू के द्वारा बिल्ली के मारे जाने पर रामू की माँ उन्हें ही बुलवाती है और प्रायश्चित का उपाय पूछती है ।।
(ii) लालची– पण्डित परमसुख परम लालची है ।। लालच के वशीभूत होकर ही वह रामू की माँ को प्रायश्चित के लिए पूजा और दान की इतनी अधिक सामग्री बनाते हैं, जिससे उनके घर के छ: महीनों के अनाज का खर्च आसानी से निकल जाए ।।
(iii) पाखण्डी– पण्डित परमसुख कर्मकाण्डी कम पाखण्डी अधिक है ।। वह पाखण्ड के सहारे धन एकत्र करना चाहते हैं ।। बिल्ली के मरने की खबर सुनकर उन्हें प्रसन्नता होती है ।। जब उन्हें यह खबर मिली, उस समय वे पूजा कर रहे थे ।। खबर पाते ही वे उठ पड़े, पण्डिताइन से मुस्कराते हुए बोले- “भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा ।। ” ।।
(iv) व्यवहारकुशल और दूरदर्शी- पण्डित परमसुख को मानव-स्वभाव की अच्छी परख है ।। वे जानते हैं कि दान के रूप में किस व्यक्ति से कितना धन ऐंठा जा सकता है ।। इसीलिए वे पहले इक्कीस तोले सोने की बिल्ली के दान का प्रस्ताव रखते हैं, लेकिन बात कहीं बढ़ न जाए और यजमान कहीं हाथ से न निकल जाए, वे तुरंत ग्यारह तोले पर आ जाते हैं ।।
(v) परम पेट्र- पण्डित परमसुख परम पेटू भी हैं ।। पाँच ब्राह्मणों को दोनों वक्त भोजन कराने के स्थान पर उन्हीं के द्वारा दोनों समय भोजन कर लेना उनके परम भोजनभट्ट होने का प्रमाण है ।।
(vi) साम-दाम-दण्ड-भेद में प्रवीण- पण्डित परमसुख साम-दाम-दण्ड-भेद में अत्यधिक प्रवीण हैं ।। पूजा के सामान की सूची के बारे में पहले तो उन्होंने प्रेम से रामू की माँ को समझाया परन्तु जब वह ना-नुकुर करने लगी तो तुरंत ही बिगड़कर अपना पोथी-पत्रा बटोरने लगे और पैर पकड़े जाने पर पुनः आसन जमाकर भोजनादि की बात करने लगे ।। इससे स्पष्ट होता है कि पण्डित जी इन चारों विद्याओं में निष्णात थे ।। स्पष्ट होता है कि पण्डित परमसुख उपर्युक्त वर्णित गुणों के मूर्तिमान स्वरूप थे ।।
8 — कथोपकथन के आधार पर प्रायश्चित’ कहानी का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर — कथोपकथन (संवाद-योजना)- कहानी की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण कथोपकथन की सार्थक योजना होती है ।।
लेखक ने इस कहानी में सार्थक संवादों का प्रयोग किया है, जिसके आधार पर एक कुशल कहानीकार अपने पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालता है तथा कहानी की कथावस्तु का विकास करता है ।। प्रस्तुत कहानी के संवाद अत्यन्त संक्षिप्त और सार्थक हैं, उनमें नाटकीयता और सजीवता है ।। इस कहानी के संवाद सारगर्भित, संक्षिप्त, कहानी को गति देने वाले, वातावरण की सृष्टि तथा पात्रों की मन:स्थिति को स्पष्ट करने में सहायक है ।। कबरी के मरने पर जो प्रतिक्रिया पारिवारिक और अन्य लोगों के बीच हुई, वह भी स्वाभाविक है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
महरी बोली-“अरेराम! बिल्ली तो मर गई,माँजी, बिल्ली की हत्या बहू से होगई,यह तो बुरा हुआ ।। ” मिसरानी बोली-“माँ जी, बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है ।। हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिरहत्या रहेगी ।। ” सास जी बोलीं- “हाँ ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सिर से हत्या न उतर जाए, तब तक न तो कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है ।। बहू, यह क्या कर डाला?”
9 — ‘प्रायश्चित’ कहानी में सामाजिक रूढ़ियों और धर्मान्धताओं पर कहाँ-कहाँ और किस प्रकार प्रहार किया गया है?
उत्तर — ‘प्रायश्चित’ कहानी में समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा लोगों में व्याप्त धार्मिक अन्धविश्वासों पर करारा प्रहार किया गया है ।। बिल्ली के मर जाने पर मिसरानी का धार्मिक अन्धविश्वास दृष्टिगोचर होता है कि-“बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है, हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिर हत्या रहेगी ।। ” जिसमें रामू की माँ भी धार्मिक अन्धविश्वास के कारण उसका समर्थन करती है ।। सामाजिक रूढ़ियों की प्रायश्चित करने से पाप कम हो जाता है, रामू की माँ पण्डित परमसुख को बुलवाती है ।। जिसमें महरी तथा मौहल्ले की औरतें उसका समर्थन करती है तथा बहू के सर लगे हत्या का पाप प्रायश्चित के द्वारा समाप्त करवाना चाहती है ।। वे पण्डित परमसुख से पूछती है कि बिल्ली की हत्या के कारण कौन-सा नरक मिलता है ।। जिसमें पण्डित परमसुख औरतों की धर्मान्धताओं का लाभ उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं तथा प्रायश्चित का बहुत अधिक व्यय बताते हैं ।। इस कहानी में पण्डितों के स्वयं के स्वार्थ के कारण सामान्य लोगों को धार्मिक अन्धविश्वास का लाभ उठाने पर भी प्रहार किया गया है ।।
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