UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 बलिदान
बलिदान (प्रेमचन्द)
लेखक पर आधारितप्रश्न
1 — प्रेमचन्द का जीवन परिचय देते हुए इनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर—— लेखक परिचय- उपन्यासकार एवं कहानीकार प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में 31 जुलाई, सन् 1880 ई० को हुआ था ।। इनका बचपन का नाम धनपतराय था ।। इनके पिता का नाम ‘अजायबराय’ तथा माता का नाम ‘आनन्दी देवी’ था ।। इनके पिता एक कृषक थे ।। आठ वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता परलोक सिधार गई और कुछ समय बाद ये पिता की छत्र-छाया से भी वंचित हो गए ।। लेकिन फिर भी इन्होंने अध्ययन के प्रति रूझान को कम नहीं होने दिया ।। इण्टरमीडिएट की परीक्षा में सफल न हो पाने के कारण इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया ।। प्रारम्भ में इन्होंने एक स्कूल के अध्यापक पद को सुशोभित किया तथा कुछ समय शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी इंस्पेक्टर भी रहे ।। देशभक्ति भावना इनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी ।। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और साहित्य-सृजन भी करते रहे ।। प्रारम्भ में ये ‘नवाबराय’ के नाम से उर्दू भाषा में कहानियाँ लिखते थे ।।
स्वतन्त्रता-संग्राम के समय इनकी ‘सोजे वतन’ नामक रचना ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी ।। यह रचना विद्रोहात्मक स्वर से परिपूर्ण बताते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई ।। तब महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने पर उनकी प्रेरणा से इन्होंने अपना नाम ‘प्रेमचन्द’ रखा तथा हिन्दी साहित्य साधना में संलग्न हो गए ।। प्रारम्भ में इन्होंने ‘मर्यादा’ तथा ‘माधुरी’ पत्रिकाओं का सम्पादन किया तथा ‘हंस’ व ‘जागरण’ पत्र का सम्पादन भी किया ।। 8 अक्तूबर, सन् 1936 ई० को हिन्दी साहित्याकाश का यह नक्षत्र सदैव के लिए विलुप्त हो गया ।। प्रेमचन्द जी ने मुख्य रूप से कहानी व उपन्यास विद्या को ही अपनी लेखनी से समृद्ध किया ।। इनके द्वारा रचित ‘गोदान’ हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है, जो कृषक वर्ग से सम्बन्धित है ।। उपन्यास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के कारण इन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है ।। ग्रामीण-जीवन के तो ये ‘चतुर-चितेरे’ हैं ।। कहानी की परिभाषा देते हुए प्रेमचन्द जी ने कहा है- “कहानी ऐसा उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भाँति के फूल और बेल-बूटे सजे हुए हों, बल्कि वह एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप से दृष्टिगोचर होता है ।। “
कृतियाँ– प्रेमचन्द जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-
कहानी– नमक का दारोगा, बलिदान, कफन, मंत्र, पंच परमेश्वर, बूढ़ी काकी, सवा सर गेहूँ, बड़े भाई साहब, माता का मन्दिर, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, ईदगाह आदि प्रमुख कहानियाँ हैं ।।
कहानी-संग्रह- प्रेम प्रतिमा, प्रेम पचीसी, प्रेम चतुर्थी, प्रेम द्वादशी, पञ्च प्रसून, सप्त-सुमन, समर-यात्रा, सप्त सरोज, प्रेरणा, मानसरोवर आदि ।। प्रेमचन्द जी ने लगभग 300 से अधिक कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें पहली कहानी ‘पंच परमेश्वर’ सन् 1916 ई० में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई तथा अन्तिम कहानी ‘कफन’ सन् 1936 ई० में लिखी गई है ।।
उपन्यास– निर्मला, कायाकल्प, कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रेमाश्रम, सेवासदन, गबन, गोदान, वरदान तथा मंगलसूत्र (अपूर्ण) प्रमुख उपन्यास हैं ।। नाटक- कर्बला, प्रेम की वेदी, संग्राम प्रेमचन्द जी के प्रमुख नाटक हैं ।। तलवार और त्याग, कुछ विचार, कलम, दुर्गादास, गल्प-रत्न आदि इनकी अन्य कृतियाँ हैं ।।
इनके साहित्य में समाज-सुधार का सन्देश समाहित है ।। तत्कालीन कृषक वर्ग, नारी-जीवन, हरिजन पीड़ा तथा वर्ण-व्यवस्था को इन्होंने साहित्य-सृजन का आधार बनाया है ।।
2 — प्रेमचंद के कथा-शिल्प एवं शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर—— कथा-शिल्प एवं शैली- प्रेमचन्द का विशाल कहानी-साहित्य मानव-प्रकृति, मानव-इतिहास तथा मानवीयता के हृदयस्पर्शी एवं कलापूर्ण चित्रों से परिपूर्ण है ।। सांस्कृतिक उन्नयन, राष्ट्र-सेवा, आत्मगौरव आदि का सजीव एवं रोचक चित्रण करने केसाथ-साथ इन्होंने मानव के वास्तविक स्वरूप को उभारने में अद्भुत कौशल दिखाया है ।। ये अपनी कहानियों में दमन, शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलन्द करते तथा सामाजिक विकृतियों पर व्यंग्य के माध्यम से चोट करते रहे हैं ।। रचना-विधान की दृष्टि से इनकी कहानियाँ सरल एवं सरस हैं तथा उनमें जीवन में नवचेतना भरने की अपूर्व क्षमता विद्यमान है ।। प्रेमचन्द की कहानी-रचना का केन्द्रबिन्दु मानव है ।। इनकी कहानियों में लोक-जीवन के विविध पक्षों का मार्मिक प्रस्तुतीकरण हुआ है ।। कथावस्तु का गठन समाज के विभिन्न धरातलों को स्पर्श करते हुए यथार्थ जगत् की घटनाओं, भावनाओं, चिन्तनमनन एवं जीवन-संघर्षों को लेकर हुआ है ।।
प्रेमचन्द ने पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण करते हुए मानव की अनुभूतियों एवं संवेदनाओं को महत्व दिया है ।। ये मानव-मन के सूक्ष्म भावों का यथातथ्य तथा आकर्षक चित्र उतारने में सफल हुए हैं ।। प्रेमचन्द के कथोपकथन स्वाभाविक एवं पात्रानुकूल हैं ।। ये पात्रों के मनोभावों के चित्रण में सक्षम, मौलिक, सजीव, रोचक एवं कलात्मक हैं ।। इनमें हास्य-व्यंग्य तथा वाक्पटुता का विशिष्ट सौन्दर्य है ।। प्रेमचन्द का दृष्टिकोण सुधारवादी है ।। इनकी कहानियाँ यथार्थ का अनुसरण करती हुई आदर्शोन्मुख होती हैं ।। उनमें आदर्श की प्रतिष्ठा जीवन की व्यापकता लिए हुई होती है ।। इनकी कहानियों के शीर्षक अनायास ही पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं; जैसे- ईदगाह, मंत्र, बूढ़ी काकी, नमक का दारोगा आदि ।। शीर्षक पढ़कर ही पाठक कहानी पढ़ने को आतुर हो जाता है ।।
प्रेमचन्द ने भाषा-शैली के क्षेत्र में भी व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है ।। मुहावरों एवं लोकोक्तियों की लाक्षणिक तथा आकर्षक योजना ने अभिव्यक्ति को सशक्त बनाया है ।। वस्तुतः इनकी कहानियों के सौन्दर्य का मुख्य आधार उनके पात्रों की सहजता है, जिसके लिए जन-भाषा का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है ।। इनकी भाषा में व्यावहारिकता एवं साहित्यकता का सजीव समन्वय है ।। भाषा-शैली रोचक, प्रवाहयुक्त एवं प्रभावपूर्ण है ।। कहानी के विकास एवं सौन्दर्य के अनुकूल वातावरण तथा परिस्थितियों के कलात्मक चित्र पाठक पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं ।। प्रेमचन्द की कहानियों का लक्ष्य मानव-जीवन के स्वरूप, उसकी गति तथा उसके सत्य की व्याख्या करना रहा है ।। प्रेमचन्द की कहानी-कला की मौलिकता, उसकी गतिशीलता एवं व्यापकता ने हिन्दी को केवल समृद्ध ही नहीं किया, वरन् उसके विकास के अगणित स्रोतों का उद्घाटन भी किया है ।।
पाठ पर आधारित प्रश्न
1 — ‘बलिदान’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर—— गिरधारी के पिता हरखू की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ।। उनका शक्कर का कारोबार था ।। देश में विदेशी शक्कर आने से उनका व्यापार चौपट हो गया था और वह हरखचन्द्र से हरखू बन गया था ।। ग्रामीण क्षेत्रों में धनवान व्यक्ति को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है ।। गिरधारी के पिता हरखू की पाँच बीघा जमीन कुएँ के पास खाद-पाँस से लदी हुई, व मेड़-बाँध से ठीक थी ।। उसमें तीन-तीन फसलें पैदा होती थीं ।। समय परिवर्तित होता है ।। हरखू ने जीवन में कभी भी दवाई नहीं खाई ।। जबकि हर वर्ष क्वार के महीने में उसे मलेरिया होता था लेकिन बिना दवाई खाए ही दस-पाँच दिनों में ठीक हो जाता था ।। इस बार वह ऐसा बीमार हुआ कि ठीक नहीं हो पाया ।। बीमारी की दशा में ही पाँच महीने कष्ट झेलने के बाद ठीक होली के दिन उसकी मृत्यु हो जाती है ।।
गिरधारी ने पिता का अन्त्येष्टि संस्कार खूब शान-शौकत से किया ।। कुछ समय बाद जमींदार ओंकारनाथ ने गिरधारी को बुलाकर कहा कि नजराना जमा करके जमीन अपने पास रखो, हम लगान नहीं बढ़ायेंगे ।। तुम्हारी इस जमीन को लेने के लिए इसी गाँव के कई लोग दो गुना नजराना व लगान देने के लिए भी तैयार हैं ।। नजराना सौ रुपये से कम न होगा ।। गिरधारी उदास व निराश होकर लौट गया ।। बहुत सोच-विचार करके भी वह नजराने के लिए सौ रुपये नहीं जुटा पाया और हताश व निराश होकर घर लौट आया ।। आठवें दिन उसे मालूम हुआ कि कालिकादीन ने सौ रुपये नजराना देकर दस रुपये बीघा लगान पर खेत ले लिए ।। ऐसा सुनकर उसका धैर्य टूट गया ।। वह बिलख-बिलखकर रोने लगा ।। उस दिन उसके घर में चूल्हा नहीं जला, ऐसा लगा जैसे उसका बाप हरखू आज ही मरा है ।।
अब तक समाज में उसका मान था, प्रतिष्ठा थी, परन्तु आज वह अन्दर ही अन्दर टूट गया था ।। रात को गिरधारी ने कुछ नहीं खाया ।। चारपाई पर पड़ा रहा ।। सुबह उसकी पत्नी ने उसे बहुत ढूँढ़ा लेकिन गिरधारी का कहीं पता नहीं लगा ।। शाम को उसकी पत्नी सुभागी ने देखा कि गिरधारी बैलों की नाँद के पास सिर झुकाए खड़ा है ।। जैसे ही सुभागी उसकी ओर बढ़ी तो वह पीछे की ओर हटता हुआ गायब हो गया ।। अगले दिन कालिकादीन हल व बैल लेकर सुबह अँधेरे-अँधेरे खेत पर पहुँचा ।। वह बैलों को हल में लगा रहा था ।। अचानक उसने देखा कि गिरधारी खेत की मेड़ पर खड़ा है ।। जैसे ही कालिकादीन उसकी ओर बढ़ा, गिरधारी पीछे हटते-हटते, पीछे वाले कुएं में कूद गया ।। कालिकादीन चीख-पुकार करता हुआ, हल व बैल वहीं छोड़कर गाँव की तरफ भागा ।। पूरे गाँव में शोर मच गया ।। इसके बाद कभी भी कालिकादीन ने गिरधारी के खेतों पर जाने की हिम्मत नहीं की ।। उसने उन खेतों से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि गिरधारी अपने खेतों के चारों ओर मँडराता रहता था ।। वह प्रतिदिन अँधेरा होते ही खेत की मेड़ पर आकर बैठ जाता था ।। कभी-कभी रात में उसके रोने की आवाज भी सुनाई देती थी ।। वह न तो किसी से बोलता था, न किसी को कुछ कहता था ।। लाला ओंकारनाथ ने बहुत चाहा कि कोई इन खेतों को ले ले, लेकिन लोग उन खेतों के नाम लेने से भी डरने लगे ।। वास्तव में गिरधारी ने खेतों के प्रति आत्म-बलिदान दे दिया था ।।
२—– ‘बलिदान’कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर—— ‘बलिदान’शीर्षक की सार्थकता- प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘बलिदान’ कथानक के अनुरूप है ।। यह शीर्षक कहानी के उद्देश्य और मूलभाव को सब प्रकार से व्यक्त करता है ।। गिरधारी का बलिदान’ उसके परिवार को विपन्नता से मुक्ति दिलाकर संपन्नता का द्वार खोलता है ।। उसके खेत भी उसकी पत्नी को वापस मिल गए होंगे; क्योंकि जमींदार के लाख चाहने पर भी कोई उन खेतों को नहीं लेता ।। यद्यपि प्रेमचन्द ने उसके खेत वापस मिलने का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु कहानी का अन्त यही संकेत करता है ।। आशय यही है कि गिरधारी का बलिदान व्यर्थ नहीं जाता और कहानी के शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करता है ।।
3 — ‘बलिदान’कहानी का उद्देश्य की दृष्टि से मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर–कहानी का उददेश्य- प्रेमचन्द यथार्थवादी कथाकार रहे हैं ।। ग्राम्य समाज के तो वे अनुपम चितेरे हैं ।। गाँव को उन्होंने निकट से देखा है; अत: वहाँ की समस्याएँ, दुर्बलताएँ, अन्धविश्वास, रीति-रिवाज और मानवीय संवेदनाएँ उनकी कहानियों का मुख्य प्रतिपाद्य रही हैं ।। प्रस्तुत कहानी में झूठी मान-प्रतिष्ठा के लिए ग्रामीणों द्वारा अपनी हैसियत से अधिक खर्च करने, गरीब मजदूर-किसानों का जमींदार और बनिये-साहूकार द्वारा शोषण किए जाने की समस्या को मुख्य रूप से उठाया गया है ।। इस कहानी में न केवल समस्या को उठाया गया है, वरन् उसका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है कि झूठी शान-शौकत के लिए हैसियत से अधिक खर्च नहीं किया जाना चाहिए और न ही किसी एक खास व्यवसाय बाँधकर रहना चाहिए ।। इस बात को गिरधारी और उसके बेटे के माध्यम से व्यक्त किया गया है ।।
किसानी में गिरधारी कर्जदार रहा, तन पर अच्छी कमीज और पैरों में जूता न आया ।। घर में कभी-कभी तरकारी पकती थी और जौ खाया जाता था, किन्तु उसका बेटा ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करके 20 रुपए महीना घर में लाता है ।। अब वह कमीज और अंग्रेजी जूता पहनना है ।। घर में दोनों जून तरकारी पकती है और जौ के बदले गेहूँ खाया जाता है ।। किसानों की सादगी और खेती तथा खेतों के प्रति उनकी निष्ठा का चित्रण करना भी प्रेमचन्द का उद्देश्य रहा है ।। उद्देश्य के रूप में कहानीकार ने यह भी दिखाया है कि किस प्रकार धन समाज की मानसिकता को बदल देता है ।। धन का प्रभाव और अभाव केवल व्यक्ति के सामाजिक स्तर को ही प्रभावित नहीं करता है, अपितु सम्बोधिन शब्दों की रचना और प्रयोग-प्रक्रिया को भी बदल देता है ।। मंगलू सिपाही बनकर मंगलसिंह बन जाता है ।। कल्लू अहीर गाँव का मुखिया बनकर ‘कालिकादीन’ कहलाने लगता है ।। व्यापारी से कृषक बनकर हरखूचन्द्र केवल हरखू रह जाता है ।। इस प्रकार कहानीकार ने भाषा के सामाजिक सन्दर्भो को भी स्पष्ट किया है ।। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कहानीकार ने इस कहानी में विभिन्न सामाजिक स्तर पर भेदों के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लोकसंस्कृतिमूलक समाज को मानक संस्कृतिमूलक समाज की आधारशिला माना है ।।
4 —-कथानक की दृष्टि से बलिदान’ कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर—— प्रेमचन्द जी की इस सामाजिक कहानी में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था का यथार्थ चित्रण है ।। कथानक में मौलिकता, रोचकता, स्वाभाविकता, कौतूहलता इत्यादि विशेषताएँ विद्यमान हैं ।। कथानक सुगठित है जो कृषक परिवार के सेवा, त्याग और समर्पण की भावना का पोषक है ।। यह जमींदार, कृषक और श्रमिक के बीच के दारुण सम्बन्धों की महागाथा है ।। इस कहानी का कथानक (कथावस्तु) एक निश्चित उद्देश्य की दिशा में यथार्थ घटनाओं एवं पात्रों के माध्यम से विकसित होता है ।। यह कथानक तत्कालीन सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था का सजीव चित्रण करता है ।। कहानी के कथानक में घटना, चरित्र एवं भाव तीनों का श्रेष्ठ समन्वय हुआ है ।। प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘बलिदान’ कहानी एक ऐसे कृषक हरखू की कहानी है, जो पूर्णरूपेण गाँव के जमींदार पर आश्रित है और बहुत समय से जमींदार की जमीन जोतता आता है ।। उसकी मृत्यु हो जाती है ।। उसका पुत्र गिरधारी उसकी अन्त्येष्टि करता है ।। अर्थाभाव के कारण गिरधारी जमींदार की 20 वर्षों से जोती गई जमीन को नजराना देकर नहीं ले पाता है ।। अशिक्षा, निर्धनता और नियति ने उसको प्रेतात्मा बना दिया अर्थात् उस जमीन के लिए उसने अपना ‘बलिदान’ कर दिया ।। गिरधारी का बेटा श्रमिक बनकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगा ।। उसकी पत्नी सुभागी अपमान से अपने जीवन के शेष दिनों को बिताने लगी ।। इस कहानी का सम्पूर्ण कथानक सामाजिक सच्चाई पर आधारित एवं किसान की बेबसी एवं दयनीय स्थिति का सजीव चित्र उद्घाटित करने में सक्षम है ।। अत: कहानी-कला के तत्वों की दृष्टि से कहानी का कथानक पूर्ण है ।।
5 — ‘बलिदान’ कहानी के आधार पर उसके नायक गिरधारी की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर—— प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘बलिदान’ कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी है ।। उसके पिता हरखू शक्कर के व्यापारी से परिस्थितिवश किसान बन जाते हैं ।। हरखू दीर्घकाल तक अस्वस्थ रहकर परलोक सिधार जाता है और गिरधारी जमा पूँजी से उसकी अन्त्येष्टि करता है ।। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) सेवा-भावना से युक्त- गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान है ।। अपने पिता के बीमारी होने पर वह उनकी हर प्रकार से तीमारदारी करता है ।। कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़ ।। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गिरधारी में सेवा-भावना विद्यमान थी ।।
(ii) आर्थिक अभास से ग्रस्त- गिरधारी ने समस्त जमा पूँजी से अपने पिता की विधिवत अन्तयेष्टि की थी, इस कारण से उसके सामने पर्याप्त आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया ।। वह कई लोगों का कर्जदार हो गया और गाँव के लोग उससे कटने लगे ।।
(iii) परिश्रमी और सत्यवादी- ‘बलिदान’ कहानी का प्रमुख पात्र गिरधारी परिश्रमी और सत्यवादी है ।। उसके परिश्रमी होने का गुण लेखक के इस कथन से स्पष्ट होता है, “खेत गिरधारी के जीवन के अंश हो गए थे ।। उनकी एक-एक अंगुल भूमि उसके रक्त से रँगी हुई थी ।। उनका एक-एक परमाणु उसके पसीने से तर हो गया था ।। ” सत्यवादिता का गुण उसकी इस बात से स्पष्ट झलकता है कि जब ओंकारनाथ के पास जाता है तो कहता है- “सरकार मेरे घर में तो इस समय रोटियों का भी ठिकाना नहीं है ।। इतने रूपए कहाँ से लाऊँगा ? ”
(iv) भाग्यवादी- गिरधारी अपने पिता की अन्त्येष्टि में अपनी सारी जमा पूँजी व्यय कर देता है ।। इससे उसके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है ।। वह दो समय की रोटी के लिए भी परेशान हो जाता है ।। जब उसके पड़ोसी उससे कहते हैं कि तुमने अन्त्येष्टि में व्यर्थ पैसा खर्च किया, इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए था तो वह कहता है- “मेरे भाग्य में जो लिखा है, वह होगा ।। ”
(v) अन्तर्द्वन्द्व का शिकार- गिरधारी खेत को अपनी माँ समझता है ।। उससे उसका अमिट लगाव है ।। उसके जाने का उसे बड़ा दुःख होता है ।। जब उसके हाथ से उसकी जमीन खिसक जाती है, तो वह अन्तर्द्वन्द्व का शिकार होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है ।। वह यह नहीं सोच पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं ? इसी मानसिक स्थिति में वह अपने बैल भी बेच देता है ।। हालात से परेशान होकर वह रज्जू बढ़ई के पास जाता है और कहता है, “रज्जू, मेरे हल भी बिगड़े हुए हैं, चलो बना दो ।। ‘
(vi) विनम्र- गिरधारी स्वाभाविक रूप से विनम्र है ।। विनम्रता का गुण उसकी नस-नस में व्याप्त है ।। क्रोध उसको छू तक नहीं गया है ।। तुलसी बनिया जब क्रोध में उससे तकादा करता है तो वह विनम्रतापूर्वक कहता है- “साह, जैसे इतने दिनों मानें हो, आज और मान जाओ ।। कल तुम्हारी एक-एक कौड़ी चुका दूँगा ।। ”
(vii) सरल हृदय- गिरधारी सरल हृदय व्यक्ति है ।। जब मंगल सिंह तुलसी के बारे में उससे कहता है कि यह बड़ा बदमाश है, कहीं नालिश न कर दे तो सरल हृदय गिरधारी मंगल सिंह के बहकावे में आ जाता है और मंगल को भी अच्छा सौदा बहुत
सस्ते में मिल जाता है ।।
(viii) भावनात्मक- गिरधारी भावनात्मक रूप से अपने पशुओं से भी जुड़ा हुआ है ।। वह उन्हें अपने से अलग नहीं करना चाहता; क्योंकि वे उसकी खुशहाली के प्रतीक हैं ।। लेकिन कर्ज चुकाने व आर्थिक अभाव के कारण जब वह उन्हें बेच देता है तो उनके कन्धे पर अपना सिर रखकर फूट-फूटकर रोता है ।। उपर्युक्त गुणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘बलिदान’ कहानी के प्रमुख पात्र गिरधारी में सत्यता, विनम्रता, सरलहृदयता जैसे गुणों का समावेश है ।। गिरधारी ‘बलिदान’ कहानी का ऐसा पात्र है, जो तत्कालीन शोषक समाज में शोषित व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है ।। समय से हारकर वह कुचक्र का शिकार हो जाता है और प्राणान्त कर लेता है ।। पूरी कहानी गिरधारी के ही इर्द-गिर्द घूमती रहती है ।। सम्पूर्ण कहानी में वह जीवित स्थिति में तो व्याप्त है ही,मृत्यु होने के बाद भी छाया हुआ है ।। इसलिए उसे ही कहानी का नायक मानना समीचीन होगा ।।
6 — ‘बलिदान’ कहानी की एकमात्र नारी-पात्र सुभागी के चरित्र की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर—— सुभागी कहानी बलिदान’ की एकमात्र व प्रमुख नारी पात्र है ।। वह गिरधारी की पत्नी है उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) क्रोधित स्त्री- सुभागी स्वभाव से क्रोधित स्त्री है ।। जब उसे पता चलता है कालिकादीन ने 100 रुपए नजराना देकर खेत ले लिए हैं तो वह कालिकादीन के घर जाकर उससे खूब झगड़ती है तथा कहती है-“कल का बानी आज का सेठ,खेत जोतनेचले हैं देखें, कौन मेरे खेत में हलले जाता है ? “
(ii) स्नेही- सुभागी एक स्नेह करने वाली स्त्री थी ।। वह अपने बैलों से प्रेम करती थी ।। जब गिरधारी बैल मंगलसिंह को बेच देता है तब उनके जाते समय वह फूट-फूटकर रोती है ।।
(iii) चिन्तामग्न- सुभागी चिन्तामग्न स्त्री है ।। अपने पति द्वारा नजराने की रकम के बारे में बताए जाने पर वह चिन्तित हो जाती है ।। उसे खाना-पीना अच्छा न लगता तथा अपने पति के घर से गायब हो जाने पर वह उसे सारे गाँव में ढूँढ़ती फिरती है ।।
(iv) आशावादी- सुभागी आशावादी थी ।। जब गिरधारी नहीं मिलता तो वह उसके पलंग के सिरहाने दिया जलाकर रख देती है ।। उसे आशा होती है कि गिरधारी वापस आ जाएगा ।। पतिव्रता नारी- सुभागी एक पतिव्रता नारी है ।। वह अपने पति की चिंता में चितिंत होती है ।। उसके घर से जाने के बाद वह उसके वापस लौटने की आशा करती है ।। जब वह गिरधारी को बैलों की नाँद के पास खड़ा देखती है तो वह कहती है“घर जाओ, वहाँ खड़े क्या कर रहे हो, आज सारे दिन कहाँ रहे ।। “
(i) अस्तित्वविहीन स्त्री- गिरधारी के जाने के बाद सुभागी अस्तित्वविहीन हो जाती है ।। उसका बड़ा लड़का ईंट के भट्ठे पर _ मजदूरी करने लगता है ।। वह मजदूर की माँ होने के कारण सबसे छिपती रहती है ।। वह पंचायत में नहीं बैठती ।। उसका गाँव में आदर नहीं होता है ।।
इस प्रकार सुभागी एक आदर्श परंतु क्रोधित स्त्री है जो परिस्थिति के कारण अपना सम्मान खो देती है ।।
7 — कालिकादीन के चरित्र की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर—— कालिकादीन गाँव का मुखिया था, जिसकी मित्रता हलके के थानेदार साहब से हो जाती है, जिसके कारण वह कल्लू अहीर से कालिकादीन हो जाता है ।। उसके चरित्र में निम्नांकित विशेषताएँ हैं
(i) अवसरवादी- कालिकादीन एक अवसरवादी व्यक्ति है ।। जब गिरधारी नजराने के रुपए नहीं दे पाता तो वह जमींदार ओंकारनाथ को नजराने के 100 रुपए देकर 10 रुपए बीघे पर खेत ले लेता है ।।
(ii) डरपोक व्यक्ति- कालिकादीन एक डरपोक व्यक्ति है ।। जब वह गिरधारी के गायब होने के बाद खेतों पर जाता है और गिरधारी को कुँए में कूदते देखता है तो वह डरकर अपने बैलों को वहीं छोड़कर भाग जाता है ।।
(iii) धनवान- कालिकादीन एक धनवान व्यक्ति हैं पहले वह एक गरीब व्यक्ति था परंतु गाँव का मुखिया तथा थानेदार से मित्रता होने के कारण बाद वह धनवान हो जाता है ।।
(iv) उपदेशक- कालिकादीन एक उपदेश देने वाला व्यक्ति है ।। वह उपदेश तो देता है परंतु किसी की मदद नहीं करता वह
हरखू से कहता है कि- “बाबा, दो-चार दिन कोई दवा खा लो ।। अब तुम्हारी जवानी की देह थोड़े है कि बिना दवा दर्वन के अच्छे हो जाओगे ? ” ।।
(v) अमानवीय व्यक्ति- कालिकादीन एक अमानवीय व्यक्ति है ।। वह गिरधारी की खेतों से जुड़ी भावनाओं का सम्मान नहीं करता और 20 वर्षों से जोते जा रहे उसके खेतों को अधिक नजराना देकर ले लेता है ।।
इस प्रकार कालिकादीन अवसरवादी व स्वार्थी व्यक्ति है जो गिरधारी की परिस्थितियों का लाभ उठाता हैं ।।
8 — ‘बलिदान’कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर—— प्रस्तुत कहानी की भाषा सरल, सुबोध और स्वाभाविक है ।। भाषा पात्रानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है ।। लोकोक्तियों और मुहावरों ने भाषा में रोचकता ला दी है ।। प्रेमचन्द ने हिन्दी कथा-साहित्य को जो नया रूप और शिल्प प्रदान किया है, ‘बलिदान’ कहानी इसका उत्कृष्ट उदाहरण है ।। प्रस्तुत कहानी में भाषा एवं शैली का प्रयोग पात्र, विषय और परिस्थिति के अनुकूल हुआ है ।। कहानी की सफलता में उसकी भाषा का मुख्य स्थान होता है ।। इस कहानी की भाषा भी सहज, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली है तथा उसमें अद्भुत व्यंजना-शक्ति भी है ।। प्रस्तुत कहानी में वर्णनात्मकता की प्रधानता है ।। चित्रात्मक वर्णन भी उपलब्ध है ।। संवादों की योजना से कथानक में नाटकीयता भी आ गई है ।। एक उदाहरण देखिएबेचारा टूटी खाट पर पड़ा राम-राम जप रहा था ।। मंगलसिंह ने कहा-बाबा, बिना दवा खाये अच्छे न होंगे; कुनैन क्यों नहीं खाते ? हरखू ने उदासीन भाव से कहा- तो लेते आना ।। अत: भाषा-शैली की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है ।। ।।
9 — देश-काल या वातावरण की दृष्टि से बलिदान कहानी का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर—— प्रस्तुत कथा की घटना एक निश्चित देश-काल और वातावरण में घटित हुई है ।। इस देश-काल और वातावरण की निश्चित सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ है ।। कहानी को रोचक, सहज और स्वाभाविक बनाने में देशकाल और वातावरण का निर्वाह सहायक रहा है ।। जमींदारी प्रथा का यथातथ्य वर्णन करने में सक्षम यह कहानी अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों का पूरा प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें तत्कालीन किसानों की दशा का मार्मिक चित्रण है ।। प्रेमचन्द इस कार्य में पूर्णत: सिद्धहस्त है; यथागिरधारी उदास और निराश होकर घर आया ।। 100 रूपए का प्रबंध करना उसके काबू के बाहर था ।। सोचने लगा- अगर दोनों बैल बेच दूँ तो खेत ही लेकर क्या करूँगा ? घर बेचूँ तो यहाँ लेने वाला कौन है ? और फिर बाप-दादों का नाम डूबता है ।।
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