Up board solution for class 12 sanskrit chandrapeed katha part 6
कक्षा 12 संस्कृत चन्द्रपीड कथा
एवं मुहूर्त स्थित्वा………………………..आदाय उवाच ।
एवं मुहूर्त स्थित्वा, कादम्बरीपरिजनेन निर्वर्तितस्नानविधिः, अर्चिताभिमतदैवतः, क्रीडापर्वतके एव सर्वम् आहारादिकम् अहःकर्म चक्रे । अथ क्रीडापर्वतकस्य प्राग्भागे मनोहारिणि मरकतशिलातले समुपविष्टः दृष्टवान् सहसैव धवलेनालोकेन विलिप्यमानम् अम्बरतलम् । अद्राक्षीच्च मदलेखाम् आगच्छन्तीम्, तस्याश्च समीपे तरलिकाम्, तया च सितांशुकोपच्छदे पटलके गृहीतं शरच्छशिनम् इव प्रभावर्षिणम् अतितारं हारम् । दृष्ट्वा च ‘इदम् अस्य धवलिम्नः कारणम्’ इति निश्चित्य, प्रत्युत्थानादिना समुचितेन उपचारेण मदलेखां प्रतिजग्राह । सा तस्मिन्नेव मरकतग्राणि मुहूर्तम् उपविश्य, स्वयम् उत्थाय, चन्द्रापीडं चन्दनेन अनुलिप्य, द्वे दुकूले परिधाप्य, तैश्च मालतीकुसुमदामभिः आरचितशेखरं कृत्वा तं हारम् आदाय उवाच ।
शब्दार्थ- मुहूर्तं = थोड़ी देर स्थित्वा = ठहरकर कादम्बरी परिजनेन कादम्बरी की सेविकाओं द्वारा निर्वर्तितस्नानविधिः = स्नान क्रिया को समाप्त करने वाला । अर्चिताभिमतदैवतः = इष्टदेव की पूजा करने वाला । क्रीडापर्वतके एव = क्रीडापर्वत पर ही । आहारादिकम् = भोजनादि । अहः कर्म = दिन का कार्य चक्रे = क्रिया । प्राग्भागे = पूर्व की ओर । मनोहारिणि = सुन्दर । मकरतशिलातले = मरकत मणि की चट्टान पर । समुपविष्टः = बैठा हुआ । दृष्टवान् = देखा । सहसैव = अकस्मात् । धवले नालोकेन = शुभ्र प्रकाश से । विलिप्यमानम् = लिया हुआ । अम्बरतलम् = आकाश को अद्राक्षीच्च = और देखा । आगच्छन्तीम् = आती हुई । सितांशुकोपच्छदे = श्वेत रेशम में लिपटे पटलके संपुट में शरच्छशिनम् शरद के चन्द्रमा के समान प्रभावर्षिणम् = प्रकाश की वर्षा करने वाले । अतितारम् = तारों से भी अधिक हारम् = माला को धवलिम्नः = उज्ज्वलता का प्रत्युत्थानादिना = उठाने आदि । उपचारेण = स्वागत । प्रतिजग्राह ग्रहण किया । मरकतग्राणि मरकत मणि पर उपविश्य = बैठकर । उत्थाय = उठकर । अनुलिप्य = लेप करके । द्वे दुकूले = दो कपड़े परिधाप्य = पहिनाकर । मालतीकुसुमदामभिः = मालती पुष्प की माला ने । आरचितशेखरम् = सिर को सजाकर आदाय लेकर । उवाच = बोली ।
हिन्दी अनुवाद थोड़ी देर ठहरकर चन्द्रापीड ने कादम्बरी के सेवकों की सहायता से स्नानक्रिया समाप्त करके, देवताओं
की पूजा आदि से निवृत्त होकर क्रीडा पर्वत पर ही भोजनादि दैनिक कर्मों को पूरा किया । क्रीड़ा पर्वत के पूर्वी भाग में सुन्दर मरकत की शिला पर बैठे हुए चन्द्रापीड ने सहसा उज्ज्वलता से परिपूर्ण हो जाने वाले आकाश को देखा और उसने श्वेत रेशम से ढकी हुई पोटली में चन्द्रमा के समान प्रकाश फैलाने वाले तारों से भी श्रेष्ठ हार को ली हुई तरलिका के साथ आती हुई मदलेखा को भी देखा । उसे देखकर और यह निश्चय करके कि यह (आकाश में दिखाई देने वाली उज्ज्वला) इसी (हार) के कारण है, उठकर बड़े सत्कार के साथ मदलेखा का स्वागत किया । मदलेखा ने उसी मरकत की शिला पर कुछ देर बैठने के बाद स्वयं उठकर चन्द्रापीड को चन्दन लगाया, दो कपड़े पहनाया, मालती पुष्प की मालाओं से उसके सिर को सजाया और उस हार को लेकर कहा ।
व्याकरणात्मक टिप्पणी कादम्बरीपरिजनेन कादम्बर्याः परिजनः तम् । निर्वर्तितस्नानविधिः निर्वर्तितः स्नानविधिः यस्य सः । अर्चिताभिमतदैवतः = अर्चितः अभिमतदैवतः येन सा धवलेनालोकेन = धवलेन आलोकेन अद्राक्षीच्च = अद्राक्षीत् + च । शरच्छशिनम् = शरत् + शशिनम् । आरचितशेखरम् = आरचितः शेखरः यस्य तम् ।
॥ प्रश्नोत्तरः॥
प्रश्न 1 – उपर्युक्त गद्यांश की पुस्तक और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश की पुस्तक का नाम ‘चन्द्रापीडकथा’ और इसके लेखक ‘बाणभट्ट हैं ।
प्रश्न 2 – ‘दृष्टवान् सहसैव धवलेनालोकेन विलिप्यमानम् अम्बरतलम् । ‘ रेखांकित अंश का अनुवाद कीजिए ।
उत्तर- (चन्द्रापीड ने) सहसा उज्ज्वलता से परिपूर्ण हो जाने वाले आकाश को देखा ।
प्रश्न 3 – कः कादम्बरीपरिजनेन निर्वर्तित स्नानविधिः?
उत्तर- चन्द्रापीडः कादम्बरीपरिजनेन निर्वर्तितस्नानविधिः ।
प्रश्न 4 – चन्द्रापीडः कम् अद्राक्षीत् ?
चन्द्रापीडः मदलेखाम् अद्राक्षीत् ।
प्रश्न 5 – कः मदलेखां प्रतिजग्राह ?
चन्द्रापीडः मदलेखां प्रतिजग्राह ।