
Up board solution for class 12 sanskrit chandrapeed katha part 5
कक्षा 12 संस्कृत चन्द्रपीड कथा
चन्द्रापीडोऽपि प्रविश्य……………………….. आवृणोति इति ।
चन्द्रापीडोऽपि प्रविश्य मणिगृहम्, शिलातलास्तीर्णायाम् उभयतः उपर्युपरि निवेशितबहूपधानायां कुधायां निपत्य, केयूरकेण उत्सङ्गे गृहीतचरणयुगलः दोलायमानेन चेतसा चिन्तां विवेश । ‘किं तावत् अस्याः कादम्बर्याः सहभुवः एते विलासाः ? आहोस्वित् अनाराधित प्रसन्नेन मकरकेतुना मयि नियुक्ताः ? येन मां सरागेण चक्षुषा तिर्यक् विलोकयति, आलोकिता च लज्जया आत्मानम् आवृणोति’ इति । भूयश्चाचिन्तयत् ‘किमनेन वृचैव मनसा खेदितेन ? यदि सत्यमेवेयं धवलेक्षणा मध्येवं जातचित्तवृत्तिः, न चिरात् स एवैनाम् अप्रार्थितानुकूलः मन्मथः प्रकटीकरिष्यति, स एवास्य संशयस्य छेत्ता भविष्यति’ स इत्यवधार्य, विनोदार्थ कादम्बर्या प्रहिताभिः कन्यकाभिः सह अलैः, गेयः, विपञ्चीवाद्य, स्वरसंदेहविवादः सुभाषितगोष्ठीभिः अन्यैश्च सरसालापैः क्रीडन् आसांचक्रे ।
शब्दार्थ- शिलातलास्तीर्णांयाम् = शिला तल पर बिछायी गई । उपर्युपरि ऊपर-ऊपर निवेशितबहूपधानायाम् = जिसके ऊपर बहुत तकिये रखे हुए हैं । कुथायाम् कालीन पर निपत्य = पड़कर उत्संगे = गोद में गृहीतचरणयुगलः जिसके दोनों चरण ग्रहण किये गये हैं । दोलायमानेन हिलते हुए, चंचल चेतसा चित्त से चिन्तां विवेश = चिन्ता में पड़ गया । सहभुवः = साथ उत्पन्न होने वाली, स्वाभाविक । एते विलासाः = यह कामचेष्टाएँ । अनाराधितप्रसन्नेन = बिना आराधना के प्रसन्न होने वाले । मकरकेतुना = कामदेव द्वारा मयि नियुक्ताः = मुझ में नियुक्त की गयी । सरागेण चक्षुषा = रागयुक्त नेत्रों से तिर्यक् विलोकयति = तिरछे देखती है । आलोकिता = देखी जाने पर लज्जया = लज्जा के कारण आत्मानम् = अपने आपको .
आवृणोति = छिपा लेती है । भूयश्चाचिन्तयत् = फिर सोचा वृचैव = व्यर्थ ही मनसा खेदितेन = मन के दुःखी होने से सत्यमेवेयम् = सचमुच ही यह धवलेक्षणा = निर्मल दृष्टिवाली मय्येव मुझ पर इस प्रकार जातिचित्तवृत्तिः जिसकी चित्तवृत्ति हो गयी है न चिरात् = शीघ्र ही अप्रार्थितानुकूलः = बिना प्रार्थना के ही अनुकूल । मन्मथः कामदेव प्रकटीकरिष्यति प्रकट करेगा । स एव वही संशयस्य = शंका का छेत्ता भविष्यति = काटने वाला होगा । इत्यवधार्य = ऐसा निश्चय करके विनोदार्थम् = मन बहलाव के लिए प्रहिताभिः = भेजी गयी । अक्षैः = जुआ से गेयः गीतों से विपञ्चीवाद्यैः = वीणा बजाने से स्वरसंदेहविवादः = स्वर में संदेह होने के तर्क से सुभाषितगोष्ठीभिः = मधुर गोष्ठियों से सरसालापैः = मधुर बातचीत से क्रीडन् आसांचक्रे = खेलता रहा ।
हिन्दी अनुवाद- चन्द्रापीड भी मणिगृह में जाकर शिला पर बिछी हुई तथा दोनों ओर रखी हुई अनेक तकियों वाली कालीन पर लेट गया । केयूरक ने उसके चरणों को अपनी गोद में कर लिया । इसके पश्चात् वह चंचल हृदय से सोचने लगा- कादम्बरी की यह चेष्टाएँ स्वाभाविक हैं तथा बिना आराधना के ही प्रसन्न हो जाने वाले कामदेव ने उसे मेरे प्रति अनुरक्त कर दिया हैं, जिससे वह प्रेमपूर्वक मुझे तिरछी आँखों से देखती है और जब उसकी ओर मैं देखने लगता हूँ तो लज्जा से अपने को छिपा लेती है । उसने विचार किया कि इस प्रकार मन ही मन दुःखी होने से क्या लाभ है । यदि सचमुच ही उस शुभ्रनेत्रों वाली (कादम्बरी) का अनुराग मेरे प्रति होगा तो बिना प्रार्थना किये मेरे प्रति अनुकूल हो जाने वाला कामदेव शीघ्र ही उसे प्रकट कर देगा । वही इस शंका को मिटाएगा । ऐसा निश्चय कर मनबहलाव के लिए कादम्बरी द्वारा भेजी गयी कुमारियों के साथ जुआ, गीत, वीणा के स्वरों के विषय में तर्क- वितर्क, सुभाषित, गोष्ठी तथा मधुर बातचीत द्वारा चन्द्रापीड खेलता (मनोरंजन करता रहा ।
व्याकरणात्मक टिप्पणी — शिलातलास्तीर्णायाम् ( शिलातले आस्तीर्णायाम्) । निवेशितबहूपधानायाम् = (निवेशितानि बहूपधानानि यस्याम्) गृहीतचरणयुगलः = (गृहीतम् चरणयुगलम् यस्य सः) । भूयश्चाचिन्तयत् (भूयः च अचिन्तयत्) मय्येव = (मयि + एव) । सत्यमेवेयम् (सत्यम् +एव+इयम्) । जातचित्तवृत्तिः = (जात चित्तवृत्तिः यस्याः सा ) । इत्यवधार्य (इति + अवधार्य) ऐसा निश्चय करके ।
॥ प्रश्नोत्तरः ॥
1- उपर्युक्त गद्यांश की पुस्तक और लेखक का नाम लिखिए ।
प्रस्तुत गद्यांश की पुस्तक का नाम ‘चन्द्रापीडकथा’ और इसके लेखक ‘बाणभट्ट’ हैं ।
प्रश्न 2. “आहोस्वित् अनाराधित प्रसन्नेन मकरकेतुना मयि नियुक्ताः ?” रेखांकित अंश का अनुवाद कीजिए ।
उत्तर- बिना आराधना के ही प्रसन्न होने जाने वाले कामदेव ने उसे मेरे प्रति अनुरक्त कर दिया है ।
प्रश्न 3. मणिगृहे कः प्राविशत् ?
उत्तर- चन्द्रापीडः मणिगृहे प्राविशत्
प्रश्न4. उत्सङ्गे गृहीतचरणयुगलः केन?
उत्तर- केयूर केण उत्सङ्गे गृहीतचरणयुगलः
प्रश्न 5. अनाराधित प्रसन्नेन केन मयि नियुक्ताः ?
उत्तर- अनाराधित प्रसन्नेन मकरकेतुना मयि नियुक्ताः ।