Up board solution for class 10 science chapter 14 तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण

Up board solution for class 10 science chapter 14 तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण

• दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मेण्डेलीफ के आवर्त नियम का उल्लेख करते हुए इसकी मूल आवर्त सारणी के सामान्य लक्षण लिखिए।

उत्तर- मेण्डेलीफ के आवर्त नियम मेण्डेलीफ के आवर्त के नियमानुसार, तत्वों के भौतिक – तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं अर्थात् यदि तत्वों को उनके बढ़े हुए परमाणु भारों के क्रम में व्यवस्थित किया जाए, तो निश्चित एवं समान अंतरालों के बाद लगभग समान गुण वाले तत्व पाए जाते हैं।

उस समय ज्ञात कुल तत्व 63 थे। 1871 ई० में मेण्डेलीफ ने मूल आवर्त नियम के अनुसार उस समय ज्ञात 63 तत्वों को बढ़ाते हुए परमाणु भारों में एक सारणी के रूप में शृंखलाबद्ध किया इस सारणी को मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी कहते हैं।

मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के सामान्य लक्षण (i) इस सारणी में तत्वों को परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम में रखा गया है।

(ii) इस सारणी में 12 क्षैतिज पंक्तियाँ (horizontal rows) हैं जिन्हें श्रेणियाँ (series) कहा गया।
(ii) इस सारणी में 8 ऊर्ध्वाधर कॉलम (vertical columns) हैं जिन्हें समूह ( groups) कहा गया ।
(iv) तत्वों को क्रमबद्ध करते हुए यह विशेष रूप से ध्यान रखा गया कि समान गुणों वाले तत्व एक ही समूह में रहें। ऐसा करने के लिए कहीं-कहीं खाली स्थान छोड़ने पड़े।
उदाहरणार्थ- कैल्सियम (Ca, परमाणु भार = 40) को चतुर्थ श्रेणी में द्वितीय समूह में रखा गया। परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम में उस समय ज्ञात अगला तत्व टाइटेनियम (Ti, परमाणु भार= 48 ) था। अत: इसे चतुर्थ श्रेणी में ही तृतीय समूह में रखना चाहिए था लेकिन इसके गुण तृतीय समूह के तत्वों के गुणों से समानता नहीं रखते थे वरन् चतुर्थ समूह के तत्वों के गुणों से समानता रखते थे। अत: टाइटेनियम को चतुर्थ श्रेणी के चतुर्थ समूह में रखा गया तथा चतुर्थ श्रेणी के तृतीय समूह में रिक्त स्थान छोड़ दिया गया।

प्रश्न 2. मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के गुणों तथा दोषों का उल्लेख कीजिए। या मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी (मूल) के दोषों का वर्णन कीजिए। या मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी (मूल) के लाभों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के गुण- मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं।

(i) तत्वों के गुणों के अध्ययन में सुविधा मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी से तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन सरल हो गया। चूँकि समान गुणों वाले तत्वों को एक ही समूह में रखा गया है; अत: किसी समूह के किसी एक तत्व के अध्ययन से उस समूह के अन्य तत्वों के गुणों का पर्याप्त सीमा तक ज्ञात हो जाता है।

(ii) तत्वों का सही परमाणु भार ज्ञात करने में सहायता सन् 1869 ई० से पहले बेरीलियम का परमाणु भार 13.5 माना जाता था। बेरीलियम के गुण मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के द्वितीय समूह के तत्व के गुणों के समान हैं। अत: मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में बेरीलियम द्वितीय समूह में स्थित होना चाहिए। इस स्थिति में बेरीलियम का परमाणु भार लीथियम के परमाणु 7 तथा बोरॉन के परमाणु भार 11 के मध्य होना चाहिए। इससे मेण्डेलीफ ने निष्कर्ष निकाला कि बेरीलियम का परमाणु भार 13.5 नहीं है, बल्कि 9.4 इसके बाद प्रयोगात्मक परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध हो गया कि बेरीलियम का परमाणु भार लगभग 9 है। इस प्रकार मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी से कुछ अन्य तत्वों के सही परमाणु भार ज्ञात करने में सहायता मिली।

(iii) नए तत्वों की खोज में सहायता- मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी में कुछ स्थान रिक्त छोड़ दिए गए। ये रिक्त स्थान उन तत्वों से संबंधित थे जिनकी खोज तब तक नहीं हुई थी। इन अज्ञात तत्वों के गुणों तथा परमाणु भारों की भविष्यवाणी कर दी गई थी। नए तत्वों की खोज के साथ-साथ इन रिक्त स्थानों की पूर्ति होती चली गई तथा उनके गुण तथा परमाणु भार पहले की गई भविष्यवाणी के अनुरूप थे जिससे इनकी खोज की पुष्टि हुई। स्कैण्डियम (Sc, परमाणु भार= 44.9), गैलियम (Ga, परमाणु भार= 69.7) तथा जर्मेनियम (Ge, परमाणु भार= 72.6) इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी से नए तत्वों की खोज तथा अनुसंधान में सहायता मिली।

मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के दोष- मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के प्रमुख दोष निम्नलिखित है

(i) हाइड्रोजन का स्थान मेण्डेलीफ की सारणी में हाइड्रोजन को प्रथम समूह में क्षार में धातुओं के साथ उनके समान धन विद्युती गुण के कारण तथा सप्तम समूह में हैलोजेन के साथ उनके समान ऋण विद्युती गुण के कारण दो स्थानों पर रखा गया है, परंतु हाइड्रोजन को दोनों समूहों में रखा जाना दोषपूर्ण है।

(ii) भारी तत्वों को हल्के तत्वों से पहले रखना मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी में कुछ भारी तत्वों को हल्के तत्वों से पहले रखा गया है; जैसे- कोबाल्ट [ परमाणु भार= 5893], निकिल [परमाणु भार = 587]], से पहले रखा गया है। इसी प्रकार टैल्यूरियम [ परमाणु भार= 127.6], आयोडीन [परमाणु भार = 1269], से पहले रखा गया है। मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में परमाणु भारों के बढ़ते हुए क्रम में इस प्रकार के परिवर्तन मेण्डेलीफ के मूल आवर्त नियम के विपरीत हैं।

(iii) समस्थानिकों तथा समभारिकों की खोज समस्थानिकों तथा समभारिकों की खोज के बाद यह स्पष्ट हो गया कि तत्वों का मूल लक्षण उनका परमाणु भार नहीं होता है। समस्थानिकों के परमाणु भार भिन्न होते हैं; परंतु उनके गुण समान होते हैं। समभारिकों के परमाणु भार समान होते हैं; परंतु उनके गुण भिन्न होते हैं। अतः मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में समस्थानिकों तथा समभारिकों को कोई स्थान नहीं दिया गया।

(iv) अनेक नए तत्वों के लिए उचित स्थान का अभाव- कुछ नए तत्वों की खोज के बाद उनको मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में छोड़े गए रिक्त स्थानों में से उचित स्थान मिल गया और इस प्रकार मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में छोड़े गए रिक्त स्थानों की पूर्ति होती गई। इसके विपरीत अनेक नए तत्वों की खोज के बाद उनको मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में उचित स्थान नहीं मिल पाया था।

या तो उन्हें परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम में रखा जा सकता था या उन्हें समान गुणों वाले तत्वों के समूह में रखा जा सकता था, लेकिन ऐसा स्थान नहीं दिया जा सकता था कि परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम के साथ-साथ वे समान गुणों वाले तत्वों के समूह में भी हों।

(v) असमान गुणों वाले तत्वों को एक ही समूह में रखना तथा समान गुणों वाले तत्वों को भिन्न-भिन्न समूह में रखना।

(vi) तत्व का मूल लक्षण उनका परमाणु क्रमांक है परमाणु भार नहीं।

प्रश्न 3. आधुनिक आवर्त नियम क्या है? इसके आधार पर मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के दोषों को किस प्रकार दूर किया गया?

उत्तर –आधुनिक आवर्त नियम-
मोसले ने सन् 1913 ई० में मेण्डेलीफ के मूल आवर्त नियम में संशोधन करके एक नया नियम प्रस्तुत किया, जिसे आधुनिक आवर्त नियम कहते हैं। इस नियमानुसार- “तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर एक नियमित अंतर के बाद उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों की पुनरावृत्ति होती है।” मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी से मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण हो गया है। मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में तत्वों को उनके परमाणु भारों के बढ़ते हुए क्रम में रखा गया था। तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रख कर बनाई गई आवर्त सारणी में परमाणु भार को आधार मानकर बनाई गई आवर्त सारणी के बहुत से दोष स्वयं दूर हो जाते हैं। उदाहरणार्थ

(i) मेण्डेलीफ की मूल सारणी में Te तथा I व Co तथा Ni परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम के विपरीत क्रम में हैं। मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी में ये तत्व परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में स्वयं आ जाते हैं।

(ii) मेंण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में अक्रिय गैसों के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं था। मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी में परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में इन तत्वों के लिए उपयुक्त स्थान मिल जाता है। जिन तत्वों के लिए मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में उपयुक्त स्थान नहीं था, उनके लिए भी इस सारणी में उपयुक्त स्थान मिल जाता है।

(iii) समस्थानिकों के परमाणु क्रमांक समान होते हैं। अतः समस्थानिकों को अलग अलग स्थान न दिए जाने का कारण स्पष्ट हो जाता है। समभारिकों के परमाणु क्रमांक भिन्न होते हैं। अतः समभारिकों को भिन्न स्थान दिए जाने का कारण भी स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 4. मेण्डेलीफ की आधुनिक संशोधित आवर्त सारणी में आवर्तों के सामान्य लक्षण लिखिए।
या
आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर निम्नलिखित गुणों में क्या परिवर्तन होता है

(a) विद्युत धनात्मकता,

(b) धात्विक गुण,

(c) ऑक्साइडों का क्षारीय गुण

(d) हाइड्रोजन के प्रति संयोजकता।

उत्तर- मेण्डेलीफ की आधुनिक संशोधित आवर्त सारणी में आवर्ती के सामान्य लक्षण (i) आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में 10 क्षैतिज पंक्तियों में रखा गया है। इन क्षैतिज पंक्तियों को श्रेणियाँ (series) कहते हैं।

(ii) तत्वों की 10 श्रेणियाँ सात क्षैतिज कॉलमों और नौ खड़े कॉलमों में बाँटी गई है। सात क्षैतिज कॉलमों को आवर्त या पीरियड (Period) और नौ खड़े कॉलमों को वर्ग या ग्रुप (group) कहते हैं। आवर्त सारणी में कुल 7 आवर्त, 1 से 7 तक और 9 वर्ग, I से VIII और 0 (शून्य) वर्ग हैं। वर्ग 0 और वर्ग VIII को छोड़कर अन्य सभी वर्गों को दो-दो उपवर्गों ( sub-group) में विभाजित किया गया है जिन्हें उपवर्ग A और B कहते हैं। VIII समूह में तीन ऊर्ध्वाधर कॉलम होते हैं। आवर्त 4,5 और 6 में तत्वों की दो-दो श्रेणियाँ हैं, जिन्हें सम और विषम श्रेणियाँ (even and odd series) कहते हैं।

(iii) पहले, दूसरे व तीसरे आवर्ती को लघु आवर्त (short periods) तथा चौथे, पाँचवें आवर्त को दीर्घ आवर्त (long period) तथा छठे व सातवें आवतों को अतिदीर्घ आवर्त (very long periods) कहते हैं। पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे तथा सातवें आवर्ती को अतिदीर्घ आवर्त (very long periods) कहते हैं। पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे तथा सातवें आवर्त में क्रमश: 2, 8, 18, 18, 32 तथा 23 तत्व हैं; सातवाँ आवर्त अपूर्ण है।

अति दीर्घ आवर्त 6 में 32 तत्व हैं जिनमें 14 तत्वों (परमाणु क्रमांक 58 से 71 तक) को सारणी के नीचे दुर्लभ मृदा तत्वों के रूप में लैन्थेनाइड श्रेणी ( lanthanide series) के नाम से रखा गया है। इन तत्वों को आवर्त सारणी में परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर सारणी की व्यवस्था भंग हो जाती है। आवर्त 7 के अभी तक 23 तत्व ज्ञात हैं जिनमें 14 तत्वों (परमाणु क्रमांक 90 से 103 तक) को सारणी के नीचे एक श्रेणी के रूप में रखा गया है जिसे एक्टिनाइड श्रेणी (actinide series) कहा जाता है, इन तत्वों को भी परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में सारणी में रखने पर सारणी की व्यवस्था भंग होती है।

(iv) प्रत्येक आवर्त का पहला तत्व क्षार धातु तथा अंतिम तत्व अक्रिय गैस है, परंतु अपवाद के रूप में प्रथम आवर्त का पहला तत्व H है। आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर तत्वों के गुणों में क्रमिक परिवर्तन पाया जाता है।

(a) विद्युत धनात्मकता प्रत्येक आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर तत्वों की विद्युत धनात्मकता में क्रमिक ह्रास तथा ऋण विद्युती प्रकृति में क्रमिक वृद्धि होती जाती है; जैसे तीसरे लघु आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर Na से Mg कम विद्युत धनी है, AI उससे भी कम तथा Si विद्युत उदासीन है। फिर P ऋण विद्युती, S उससे अधिक ऋण विद्युती तथा CI प्रबल ऋण विद्युती तत्व है

(b) धात्विक गुण- प्रत्येक आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर तत्व की धात्विक प्रकृति क्रमश: घटती जाती है। जैसे तीसरे लघु आवर्त में Na प्रबल धात्विक (ठंडे जल से हाइड्रोजन विस्थापित करता है), Mg उससे कम धात्विक (गर्म जल से हाइड्रोजन विस्थापित करता है), AI उससे भी कम धात्विक, Si अधात्विक, P उससे भी अधिक अधात्विक, S पर्याप्त अधात्विक तथा CI प्रबल अधात्विक तत्व हैं।

Na, Mg, Al, प्रबल धात्विक

Si, अधात्विक

P, S, CI प्रबल अधात्विक
(c) ऑक्साइडों का क्षारीय गुण प्रत्येक आवर्त में बाएँ से दाँए चलने पर तत्वों की धात्विकता में ह्रास होता जाता है और तदनुसार उसके ऑक्साइडों की क्षारीयता भी घटती जाती है; जैसे- तीसरे लघु आवर्त में Na2 O, MgO, Al2O3 की क्षारीयता में क्रमिक ह्रास है तथा SiO, अम्लीय है, SO, और अधिक अम्लीय तथा CI2O, प्रबल अम्लीय है।

Na2O, (प्रबल क्षारीय) MgO, Al2O3, SiO2, POs, SO3 Cl207 प्रबल अम्लीय
(d) हाइड्रोजन के प्रति संयोजकता- बाएँ से दाएँ बढ़ने पर लघु आवर्गों के तत्वों की हाइड्रोजन के प्रति संयोजकता पहले 1 से 4 तक बढ़ती है फिर 4 से 1 तक घटती है। ऑक्सीजन के प्रति संयोजकता 1 से 7 तक बढ़ती है।

प्रश्न 5. दीर्घाकार आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों को किस प्रकार दूर किया गया है?

उत्तर- दीर्घाकार आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण- दीर्घाकार आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की संशाधित आवर्त सारणी के कई दोष दूर हो जाते हैं। इनमें से प्रमुख हैं

(i) मेण्डेलीफ की संशाधित आवर्त सारणी का एक बड़ा दोष यह था कि कहीं-कहीं असमान गुणों वाले तत्वों (जैसे-IA तथा IIA समूहों के तत्वों) को अलग-अलग स्थानों पर रखा गया था। दीर्घाकार आवर्त सारणी में मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के इस दोष को दूर कर दिया गया है।

(ii) मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी में धात्वीय तथा अधात्वीय तत्वों की स्थितियों की व्यवस्था ठीक नहीं है। मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी का यह दोष दीर्घाकार आवर्त सारणी में दूर कर दिया गया है।

(iii) मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी में संक्रमण तत्वों को बीच-बीच में भिन्न-भिन्न स्थान दिए गए थे। इस सारणी में संक्रमण तत्व सारणी के बीच वाले स्थान में एक साथ रखे गए हैं। यह भी मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी में सुधार है।

(iv) इस आवर्त सारणी में मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी की तरह चौथे, पाँचवें तथा छठे आवर्त में सम और विषम प्रकार की श्रेणियाँ नहीं है। यह भी इसका एक गुण है।

(v) यद्यपि परमाणु क्रमांक 58 से 71 तथा परमाणु क्रमांक 90 से 103 तक के तत्वों को मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी की भाँति इस आवर्त में भी कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाया है, फिर भी इन तत्वों को आवर्त सारणी के नीचे दो क्षैतिज पंक्तियों में रखे जाने का औचित्य (justification) इस आवर्त सारणी से स्पष्ट हो जाता है। चूँकि इन दोनों श्रेणियों के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में समानता है, अतः उन्हें एक साथ रखे जाना उचित है। यह भी दीर्घाकार आवर्त सारणी का एक गुण है।

प्रश्न 6. दीर्घाकार आवर्त सारणी पर टिप्पणी लिखिए। इसके द्वारा मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों का कैसे निराकरण किया गया? कोई भी दो उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर- दीर्घाकार आवर्त सारणी- इसे प्रवर्धित आवर्त सारणी भी कहते हैं। मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण करने के लिए कई वैज्ञानिकों ने प्रयास किया। फलस्वरुप दीर्घाकार आवर्त सारणी सहित अनेक संशोधित व परिवर्तित सारणियाँ प्रकाश में आई। सभी आवर्त सारणियों के गुणों तथा दोषों के विश्लेषण से यही निष्कर्ष निकला कि दीर्घाकार अथवा प्रवर्धित आवर्त सारणी सबसे महत्वपूर्ण व उपयोगी है। रैंग, वर्नर तथा बरी जैसे कई वैज्ञानिकों का इस सारणी के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा। बोहर द्वारा दीर्घाकार आवर्त सारणी का निर्माण उनके परमाणु की कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण के सिद्धांत के बाद तथा उसके आधार पर हुआ। अतः इसे बोहर की आवर्त सारणी या आधुनिक आवर्त सारणी भी कहा जाता है।

दीर्घाकार आवर्त सारणी के निर्माण का आधार यह है कि तत्वों के गुणों तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में गहरा संबंध होता है। जिन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में समानता होती है। उनके गुण भी समान होते हैं। यदि तत्वों को उसके परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में रखा जाए तो तत्वों के एक नियमित अंतर के बाद समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्व पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में आवर्तिता (periodicity) पाई जाती है। चूँकि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों के गुणों में भी समानता होती हैं, अत: तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके गुणों में भी आवर्तिता पाई जाती है। अतः दीर्घाकार आवर्त सारणी में तत्वों का वर्गीकरण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रख गया है कि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों को एक साथ रखा जाए।

दीर्घाकार आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण- इसके लिए प्रश्न-5 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।

प्रश्न 7 प्रकाश में आई। सभी आवर्त सारणियों के गुणों तथा दोषों के विश्लेषण से यही निष्कर्ष निकला कि दीर्घाकार अथवा प्रवर्धित आवर्त सारणी सबसे महत्वपूर्ण व उपयोगी है। रैंग, वर्नर तथा बरी जैसे कई वैज्ञानिकों का इस सारणी के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा। बोहर द्वारा दीर्घाकार आवर्त सारणी का निर्माण उनके परमाणु की कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण के सिद्धांत के बाद तथा उसके आधार पर हुआ। अतः इसे बोहर की आवर्त सारणी या आधुनिक आवर्त सारणी भी कहा जाता है।

दीर्घाकार आवर्त सारणी के निर्माण का आधार यह है कि तत्वों के गुणों तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में गहरा संबंध होता है। जिन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में समानता होती है। उनके गुण भी समान होते हैं। यदि तत्वों को उसके परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में रखा जाए तो तत्वों के एक नियमित अंतर के बाद समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्व पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में आवर्तिता (periodicity) पाई जाती है। चूँकि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों के गुणों में भी समानता होती हैं, अत: तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके गुणों में भी आवर्तिता पाई जाती है। अतः दीर्घाकार आवर्त सारणी में तत्वों का वर्गीकरण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रख गया है कि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों को एक साथ रखा जाए।

दीर्घाकार आवर्त सारणी द्वारा मेण्डेलीफ की संशोधित आवर्त सारणी के दोषों का निराकरण- इसके लिए प्रश्न-5 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।

  1. दीर्घाकार आवर्त सारणी की उदाहरण सहित दो विशेषताएँ खए। उत्तर- दीर्घाकार आवर्त सारणी की दो प्रमुख विशेषताएँ

(i) प्रत्येक आवर्त में, उपकोशों में अंतिम इलेक्ट्रॉन के प्रवेश के अनुसार तत्वों को उपवर्गों में निम्नलिखित क्रम में रखा गया है। s- उपकोश- I-A, II A p-उपकोश – III-A, IV-A, V–A, VI-A, VII -A तथा 0 d उपकोश – III-B, IV−B, V–B, VI–B, VII-B, VIII, I–B, II – B इस प्रकार इस सारणी में किसी तत्व की स्थिति से ज्ञात हो जाता है कि उसमें अंतिम इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति किस कोश तथा किस उपकोश में हुई है। यह स्थिति इसका भी ज्ञान कराती है। कि परमाणुओं में कौन-से कोश तथा उपकोश पूर्णतः भरे जा चुके हैं।

(ii) हाइड्रोजन के अनेक गुण वर्ग I-A के तत्वों से तथा अनेक गुण वर्ग VII-A के तत्वों में मिलते जुलते हैं। अतः इसे दोनों वर्गों में रखा गया है।

प्रश्न 8. दीर्घाकार आवर्त सारणी की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उत्तर- दीर्घाकार आवर्त सारणी की चार मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) दीर्घाकार आवर्त सारणी में 7 क्षैतिज पंक्तियाँ हैं, जिन्हें आवर्त कहते हैं तथा 18 ऊर्ध्वाधर स्तंभ हैं, जिन्हें वर्ग या समूह कहते हैं।

(ii) इस सारणी में धात्वीय एवं अधात्वीय तत्वों, संक्रमण तत्वों तथा अक्रिय तत्वों को स्पष्टतः अलग देखा जा सकता है।

(iii) प्रत्येक आवर्त को चाहे वह लघु हो या दीर्घ, एक ही रेखा में रखा गया है। अर्थात् मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी की भाँति इसे प्रथम एवं द्वितीय उपश्रेणियों में नहीं बाँटा गया है।
(iv) इस सारणी में हाइड्रोजन के अनेक गुण वर्ग IA तत्वों से तथा अनेक गुण वर्ग VILA के तत्वों में मिलते-जुलते हैं। अत: इसे दोनों वर्गों में रखा गया है।

प्रश्न 9. दीर्घाकार आवर्त सारणी की चार विशेषताएँ लिखिए। उत्तर- इस प्रश्न के उत्तर के लिए प्रश्न-8 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 10. दीर्घाकार आवर्त सारणी के मुख्य लक्षण क्या हैं?

उत्तर- दीर्घाकार आवर्त सारणी के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं (i) इस सारणी में 7 क्षैतिज पंक्तियाँ है, जिन्हें आवर्त कहते हैं तथा 18 ऊर्ध्वाधर स्तंभ हैं, जिन्हें वर्ग या समूह कहते हैं।

(ii) प्रत्येक आवर्त को चाहे वह लघु हो या दीर्घ, एक ही रेखा में रखा गया है अर्थात् मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी की भाँति इसे प्रथम एवं द्वितीय उपश्रेणियों में नहीं बाँटा गया है।

(iii) दीर्घाकार आवर्त सारणी के प्रत्येक आवर्त में, उपकोशों में अंतिम इलेक्ट्रॉन के प्रवेश के अनुसार तत्वों को उपवर्गों में निम्नलिखित क्रम में रखा गया है

s- उपकोश- I-A, II – A

उपकोश- III-A, IV-A, V-A, VI-A, VII -A तथा 0

p-3

d- उपकोश- III-B, IV-B, V–B, VI–B, VII-B, VIII, I-B, II-B इस प्रकार इस सारणी में किसी तत्व की स्थिति से ज्ञात हो जाता है कि उसमें अंतिम इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति किस कोश तथा किस उपकोश में हुई है। यह स्थिति इसका भी ज्ञान कराती है कि परमाणुओं में कौन-से कोश तथा उपकोश पूर्णतः भरे जा चुके हैं।

(iv) इस आवर्त सारणी में तत्वों को चार खंडों अथवा ब्लाकों में स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है। इन्हें क्रमश: s, pd तथा f ब्लॉक के तत्व कहते हैं। किसी एक ब्लॉक के तत्वों के लक्षणों में अनेक समानताएँ तथा अन्य ब्लॉक के तत्वों में भिन्नता होती हैं।

(v) इस सारणी में धात्वीय एवं अधात्वीय तत्वों, संक्रमण तत्वों तथा अक्रिय तत्वों को स्पष्टत: अलग देखा जा सकता है।

(vi) हाइड्रोजन के अनेक गुण वर्ग I-A के तत्वों से तथा अनेक गुण वर्ग VILA के तत्वों में मिलते-जुलते हैं। अत: इसे दोनों वर्गों में रखा गया है।

प्रश्न 11. आवर्त सारणी में आवर्तो के मुख्य लक्षण लिखिए। उत्तर- आवर्त सारणी में आवर्ती के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

आवर्त सारणी में सात क्षैतिज खाने हैं। प्रथम आवर्त से सातवें आवर्त तक कुल 7 आवर्ती हैं। प्रथम तीन आवर्तो में तत्वों की संख्या कम होने से उन्हें लघु आवर्त कहते हैं। चौथे आवर्त से सातवें आवर्ती में तत्वों की संख्या अधिक होने से उन्हें दीर्घ आवर्त कहते हैं। तत्वों को उनके बढ़ते परमाणु क्रमांकों के आधार पर आवर्गों में इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि समान गुण धर्म वाले तत्व एक ही सीध में एक-दूसरे के नीचे स्थित हो जाते हैं।

(i) लघु आवर्त पहले लघु आवर्त में हाइड्रोजन तथा हीलियम केवल दो ही तत्व हैं। दूसरे लघु आवर्त में आठ तत्व तथा तीसरे लघु आवर्त में भी आठ तत्व हैं। विकर्ण संबंध- दूसरे और तीसरे आवर्त के कुछ तत्वों में विकर्ण संबंध पाया जाता है। अर्थात् विकर्ण संबंधी तत्व गुणों में समान होते हैं।

समूह…..I……ii…..iii……IV

द्वितीय समूह Li……….. Na…….Be………B…….C

तृतीय समूह Na……Mg……Al……Si

जैसे- द्वितीय आवर्त में लीथियम (Li) के गुण आवर्त में मैग्नीशियम (Mg) के गुणों से मिलते-जुलते हैं। उदाहरणार्थ- लीथियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट गर्म करन पर अपघटित हो जाते हैं, जबकि सोडियम कार्बोनेट पर गर्म करने का कोई प्रभाव नहीं होता है।

Li2CO3 → Li2O+ CO2;
MgCO3 → MgO+ CO2

द्वितीय और तृतीय आवर्त के तत्वों को प्रारूपिक तत्व (typical elements) कहते हैं ये तत्व अपने समूहों में उपस्थित अन्य तत्वों का आदर्श प्रतिनिधित्व करते हैं।

(ii) दीर्घ आवर्त- अंतिम चार आवर्त दीर्घ आवर्त हैं। चौथे तथा पाँचवें आवर्गों में से प्रत्येक आवर्त में क्रमश: 18 तथा 18 तत्व हैं। छठे आवर्त में 32 तत्व तथा सातवें आवर्त में 23 तत्व हैं, जो अपूर्ण आवर्त हैं। छठे व सातवें आवर्त को अतिदीर्घ आवर्त भी कहते हैं।

चौथे, पाँचवें तथा छठे दीर्घ आवतों में से प्रत्येक में तत्वों की दो श्रेणियाँ हैं- पहली सम तथा दूसरी विषम श्रेणी। सम श्रेणी में 8 तत्व तथा विषम श्रेणी में 7 तत्व हैं तथा शेष 3 तत्व दोनों श्रेणियों के बीच एक ही स्थान पर रखे गए हैं। इस प्रकार तीनों दीर्घ आवर्तों में कुल 9 तत्व सम तथा विषम श्रेणियों के बीच में हैं। इन 9 तत्वों को संक्रमण तत्व कहते हैं।

वर्गों तथा उपवर्गों की विशेषताएँ

(i) ‘0’ से ‘VIII’ तक कुल 9 वर्ग होते हैं।

(ii) कुल अपवादों को छोड़कर किसी एक वर्ग के तत्वों के गुण समान होते हैं। (iii) एक वर्ग के नीचे के तत्वों का परमाणु भार ऊपर के तत्वों के परमाणु भार से अधिक होता है।

(iv) शून्य तथा आठवें वर्ग को छोड़कर अन्य वर्गों को उपवर्गों में विभाजित किया गया है। इनको उपवर्ग ‘4’ तथा उपवर्ग ‘B’ कहते हैं। सारणी में उपवर्ग ‘4’ को बाईं ओर तथा उपवर्ग ‘B’ को दाईं ओर लिखते हैं। किसी उपवर्ग में उपस्थित तत्वों में अधिक समानता पाई जाती है, जैसे प्रथम वर्ग के उपसमूह ‘4’ में 6 तत्व तथा ‘B’ में चार तत्व हैं।

(v) एक ही वर्ग में परमाणु क्रमांक के वृद्धि क्रम के साथ तत्वों के गुणों में क्रमबद्ध परिवर्तन होता है।

(vi) विभिन्न समूहों में उपस्थित तत्व सामान्य, संक्रमण, दुर्लभ मृदा तथा एक्टिनाइड हो सकते हैं।

(vii) परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ धात्विक लक्षण तथा धन विद्युती लक्षण बढ़ते हैं। (viii) परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ आयनन विभव घटता है।

प्रश्न 12. आवर्त सारणी के किसी आवर्त में निम्नलिखित गुणों में किस प्रकार का परिवर्तन होता है? समझाइए।

(a) हाइड्रोजन से संबंधित संयोजकता (b) परमाणु आकार तथा

(c) ऑक्साइडों की क्षारीय प्रकृति ।
उत्तर-

(a) हाइड्रोजन से संबंधित संयोजकता- बाएँ से दाएँ चलने पर लघु आवतों के तत्वों की हाइड्रोजन के प्रति संयोजकता पहले 1 से 4 तक बढ़ती है फिर 4 से 1 तक घटती है। ऑक्सीजन के प्रति संयोजकता 1 से 7 तक बढ़ती है।

(b) परमाणु आकार आवर्त मे बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या घटती है। नाभिक में आवेश बढ़ने से यह इलेक्ट्रॉनों को नाभिक की ओर खींचता है जिससे परमाणु का आकार घटता जाता है; जैसे

तृतीय आवर्त…..Li……..Be….B………..C………N…..O…….F
(c) ऑक्साइडों की क्षारीय प्रकृति प्रत्येक आवर्त में बाएँ से दाएँ चलने पर तत्वों

की धात्विकता में ह्रास होता जाता है और तदनुसार उसके ऑक्साइडों की क्षारीयता भी घटती जाती है; जैसे तीसरे लघु आवर्त में Na20 MgO, Al203 की क्षारीयता में क्रमिक ह्रास है। तथा SiO, अम्लीय है, SO, और अधिक अम्लीय तथा CI2O, प्रबल अम्लीय हैं।

Na2Oप्रबल क्षारीय, MgO, Al2O3, SiO2, P2O SO3, Cl2O, प्रबल अम्लीय

प्रश्न 13. आवर्त सारणी के एक ही आवर्त के तत्वों के परमाणु आकार में किस प्रकार परिवर्तन होता है और क्यों?

उत्तर-

आवर्त सारणी में परमाणु का आकार परमाणु त्रिज्या द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। किसी परमाणु के नाभिक तथा बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉनों के बीच की दूरी को उस परमाणु की परमाणु त्रिज्या कहते हैं। परमाणु संरचना की आधुनिक परिक्लपना के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की स्थिति निश्चित नहीं होती है। कोई एक इलेक्ट्रॉन कभी नाभिक के पास तथा कभी नाभिक से काफी दूर हो सकता है। परमाणु त्रिज्या दो कारकों पर निर्भर करती हैं- शैलों की संख्या तथा नाभिकीय आवेश। शैलों की संख्या बढ़ने पर परमाणु त्रिज्या कम होती है।

किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ IA समूह से VIIA समूह तक जाने पर जैसे-जैसे तत्वों का परमाणु क्रमांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ कम होती हैं। इसका कारण यह है कि परमाणु क्रमांक बढ़ने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता जाता है। जबकि शैलों की संख्या वही रहती है। परिणाम स्वरूप इलेक्ट्रॉनों का खिंचाव नाभिक की ओर बढ़ता जाता है, जिससे परमाणु आकार या परमाणु त्रिज्याएँ कम होती जाती हैं। किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर जैसे-जैसे तत्वों का परमाणु क्रमांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ भी बढ़ती जाती है। इसका कारण यह है कि परमाणु क्रमांक बढ़ने पर शैलों की संख्या बढ़ती जाती है लेकिन प्रभावी नाभिकीय आवेश में कोई वृद्धि नहीं होती है। परिणामतः परमाणु त्रिज्याएँ बढ़ती जाती हैं। जैसा कि हमने बताया किसी आवर्त में IA से VII समूह तक बाएँ से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्याओं में इतना अधिक परिवर्तन नहीं होता है जितना कि उसी आवर्त के अन्य तत्वों में होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मेण्डेलीफ का आवर्त नियम लिखिए। मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी के दो लाभों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मेण्डेलीफ का आवर्त नियम- 1869 ई० में रूसी वैज्ञानिक सर डी० आई० मेण्डेलीफ में एक आवर्त नियम प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार “तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं।” अर्थात् यदि तत्वों को उनके बढ़े हुए परमाणु भारों के क्रम में व्यवस्थित किया जाए, तो निश्चित एवं समान अंतरालों के बाद लगभग समान गुण वाले तत्व पाए जाते हैं। उस समय कुल ज्ञात तत्वों की संख्या 63 थी।

मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी के दो लाभ- मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी के दो लाभ निम्नलिखित हैं

इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के प्रश्न संख्या 2 का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 2. आधुनिक आवर्त नियम क्या है?

उत्तर- रेडियोएक्टिवता, परमाणु संरचना, समभारिकों व समस्थानिकों की खोज तथा मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी की असंगतियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि तत्वों का मूल लक्षण उनका परमाणु भार न होकर उनका परमाणु क्रमांक होता है। अतः इस आधार पर मोसले ने सन् 1913 ई० में मेण्डेलीफ के मूल आवर्त नियम में संशोधित कर एक नए नियम का प्रतिपादन किया, जिसे ‘आधुनिक आवर्त नियम’ की संज्ञा दी गई। इस नियम के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।

अर्थात् तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर एक नियमित अंतर के बाद उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों की पुनरावृत्ति होती है।

प्रश्न मेण्डेलीफ के आवर्त नियम तथा आधुनिक आवर्त नियम में क्या मौलिक अंतर हैं?

उत्तर- मेण्डेलीफ के मूल आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवृत्ति फलन होते हैं परंतु आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।

प्रश्न 7. तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा उनकी दीर्घाकार आवर्त सारणी में स्थिति में क्या संबंध है? एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा उनकी दीर्घाकार आवर्त सारणी में स्थिति में संबंध- दीर्घाकार आवर्त सारणी के अध्ययन के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं

कि तत्वों वे गुणों तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में गहरा संबंध होता है। जिन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में समानता होती है, उनके गुण भी समान होते हैं। यदि तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखा जाए तो तत्वों के एक नियमित अंतर के बाद समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्व पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में आवर्तिता पाई जाती है। चूँकि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों के गुणों में भी समानता होती है, अत: तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में रखने पर उनके गुणों में भी आवर्तिता पाई जाती है। अतः दीर्घाकार आवर्त सारणी में तत्वों का वर्गीकरण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले तत्वों को एक साथ रखा जाए।

विरल मृदा धातुओं (लैन्थेनाइड, 58-71) तथा रेडियोऐक्टिव धातुओं (ऐक्टिनाइड, 90-100) की सारणी में पृथक् स्थिति इसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर आधारित है, जिससे इनके रासायनिक गुणों की समानता प्रदर्शित होती है।

प्रश्न 8. परमाणु क्रमांक 17 वाले तत्व का आवर्त सारणी में वर्ग तथा आवर्त लिखिए। उत्तर- परमाणु क्रमांक 17, क्लोरीन का है तथा आवर्त सारणी में यह VIIA वर्ग तथा तीसरे आवर्त में स्थित है।

प्रश्न 9. हाइड्रोजन के क्षार धातुओं तथा हैलोजन से समानता प्रदर्शित करने वाले दो-दो गुणों को लिखिए। उत्तर- हाइड्रोजन के क्षार धातुओं से समानता प्रदर्शित करने वाले दो

(i) हाइड्रोजन तथा क्षार धातुओं के बाहरी कक्ष में एक इलेक्ट्रॉन है। गुण

H = 1, Li3 = 2,1

(ii) हाइड्रोजन तथा क्षार धातुएँ दोनों ही धनविद्युती तथा एक संयोजी हैं। ये एक इलेक्ट्रॉन निकालकर Ht, Nat, Kt आदि धनायन बनाते हैं।
हाइड्रोजन के क्षार धातुओं से समानता प्रदर्शित करने वाले दो गुण

(i) हाइड्रोजन तथा हैलोजन दोनों ही बाहरी कक्षा में अधिकतम इलेक्ट्रॉन संख्या से एक इलेक्ट्रॉन कम होता है ।
H = 1 Cl 17 = 2, 8,7
(ii) हाइड्रोजन तथा हैलोजन दोनों ही कार्बन तथा सिलिकन के साथ संयोग करके सहसंयोजी यौगिकों का निर्माण करते हैं।

CCI 4, SiCl4, क्लोराइड यौगिक

CH4, SiH4 हाइड्राइड यौगिक

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