UP BOARD SOLUTION CLASS 12 SOOTPUTRA सूतपुत्र
प्रश्न 1- ‘सूत-पुत्र’ नाटक के आधार पर ‘परशुराम’ का चरित्रांकन कीजिए ।
उत्तर – परशुराम का चरित्र-चित्रण “डॉ० गंगासहाय प्रेमी” द्वारा रचित ‘सूत-पुत्र’ नाटक में परशुराम को ब्राह्मणत्व एवं क्षत्रियत्व के गुणों से समन्वित महान् तेजस्वी और दुर्धर्ष योद्धा के रूप में चित्रित किया गया है । परशुराम कर्ण के गुरु हैं । इनके पिता का नाम जमदग्नि है । परशुराम अपने समय के धनुर्विद्या के अद्वितीय ज्ञाता थे । नाटक के अनुसार इनकी चारित्रिक विशेषताओं का विवेचन निम्नवत् है-
(1) ओजयुक्त व्यक्तित्व–परशुराम का व्यक्तित्व ओजयुक्त है । नाटककार ने उनके व्यक्तित्व का चित्रण इस प्रकार किया है-“परशुराम की अवस्था दो सौ वर्ष के लगभग है । वे हृष्ट-पुष्ट शरीर वाले सुदृढ़ व्यक्ति हैं । चेहरे पर सफेद, लम्बी-घनी दाढ़ी और शीश पर लम्बी-लम्बी श्वेत जटाएँ हैं ।”
(2) महान् धनुर्धर-परशुराम अद्वितीय धनुर्धारी हैं । सुदूर प्रदेशों से ब्राह्मण बालक इनके पास हिमालय की घाटी में स्थित आश्रम में शस्त्र-विद्या ग्रहण करने आते हैं । इनके द्वारा दीक्षित शिष्यों को उस समय अद्वितीय माना जाता था । भीष्म पितामह भी इन्हीं के प्रिय शिष्यों में से एक थे ।
(3) मानव-स्वभाव के पारखी-परशुराम मानव-स्वभाव के अचूक पारखी हैं । वे कर्ण के क्षत्रियोचित व्यवहार से जान जाते हैं कि यह ब्राह्मण न होकर क्षत्रिय-पुत्र है । वे उससे निस्संकोच कहते हैं-“तुम क्षत्रिय हो कर्ण! तुम्हारे माता-पिता दोनों ही क्षत्रिय रहे हैं ।”
(4) आदर्श गुरु-परशुराम एक आदर्श गुरु हैं । वे शिष्यों को पुत्रवत् स्नेह करते हैं और उनके कष्ट-निवारण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । कर्ण की जंघा में कीड़ा काट लेता है और मांस में प्रविष्ट हो जाता है, जिससे रक्त की धारा प्रवाहित होने लगती है । इससे परशुराम का हृदय द्रवित हो उठता है । वे तुरन्त उसके घाव पर नखरचनी का प्रयोग करते हैं और कर्ण को सान्त्वना देते हैं । यह घटना गुरु परशुराम के सहृदय होने को प्रमाणित करती है ।
(5) श्रेष्ठ ब्राह्मण-परशुराम एक श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं । वे विद्यादान को ब्राह्मण का सर्वप्रमुख कार्य मानते हैं । जो ब्राह्मण धनलोलुप हैं, परशुराम की दृष्टि में वे नीच तथा पतित हैं, इसीलिए वे द्रोणाचार्य को निम्नकोटि का ब्राह्मण मानते हैं और कहते हैं—
“द्रोणाचार्य तो पतित ब्राह्मण हैं ।
ब्राह्मण क्षत्रिय का गुरु हो सकता है,
सेवक अथवा वृत्तिभोगी नहीं ।”
(6) उदारमना–परशुराम सहृदय तथा उदारमना हैं । वे अपने कर्तव्यपालन में वज्र के समान कठोर हैं, लेकिन दूसरों की दयनीय दशा को देखकर द्रवीभूत भी हो जाते हैं । ब्राह्मण का छद्म रूप धारण करने के कारण वे कर्ण को शाप दे देते हैं, लेकिन जब कर्ण की शोचनीय तथा दु:ख-भरी दशा का अवलोकन करते हैं तो वे उसके प्रति सहृदय हो जाते हैं । वे कहते हैं—
“जिस माता से तुम्हें ममता और वात्सल्य मिलना चाहिए था, उससे तुमने कठोर निर्मम निर्वासन पाया ।
जिस गुरु से तुम्हें वरदान मिलना चाहिए था, उसी ने तुम्हें शाप दिया ।”
उनके इस कथन से उनके उदारमना होने की पुष्टि होती है ।
(7) कर्तव्यनिष्ठ–परशुराम एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं । कर्तव्यपालन में वे बड़ी-से-बड़ी बाधाओं को सहर्ष स्वीकार करने को उद्यत रहते हैं । उनकी कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावित होकर कर्ण उनसे कहता है-
“आपके हृदय में कोई कठोरता अथवा निर्ममता नहीं रही है । आपने जिसे कर्तव्य समझा है, जीवन भर उसी का पालन निष्ठापूर्वक किया है ।”
(8) महाक्रोधी—यद्यपि परशुराम जी में अनेक गुण हैं, तथापि क्रोध पर अभी उन्होंने पूर्णतया विजय नहीं पायी है । क्रोध में आकर वे अपने महान् त्यागी शिष्य कर्ण को भी जब शाप दे देते हैं तो संवेदनशील पाठक का हृदय हाहाकार कर उठता है । वह मानव मन के इस विकराल विकार को, ऋषियों तक को अपना शिकार बनाते देखता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परशुराम तपोनिष्ठ तेजस्वी ब्राह्मण हैं । वे एक आदर्श शिक्षक तथा उदार हृदय के स्वामी हैं । उनमें ब्राह्मणत्व तथा क्षत्रियत्व दोनों के गुणों का अद्भुत समन्वय है ।
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