UP Board Class 9th Hindi Solution एकांकी प्रमुख प्रश्न
UP Board Class 9th Hindi एकांकी खंड
9th हिंदी लघु उत्तरीय प्रश्न
1- एक अंक वाले नाटक को क्या कहते हैं?
उत्तर— एक अंक वाले नाटक को एकांकी कहते हैं ।।
2- एकांकी को किसका स्वरूप माना जाता है?
उत्तर— एकांकी को नाटक का ही स्वरूप माना जाता है ।। इसमें नाटक के संपूर्ण तत्व तो होते ही हैं, साथ ही रचना-विधान तथा अन्य तत्वों में ऐसी विशेषताएँ भी होती हैं, जिनके कारण साहित्यशास्त्रियों ने एकांकी को साहित्य की एक सर्वथा विधा मान लिया है ।। एकांकी साधारणत: नाटक के उस स्वरूप को कहते हैं, जिसमें केवल एक ही अंक में संपूर्ण नाटक समाप्त हो जाता है ।।
3- संस्कृत साहित्य में काव्य के किन दो रूपों का वर्णन मिलता है? नाम बताइए ।।
उत्तर— संस्कृत साहित्य में काव्य के दो रूप माने गए हैं- (अ) श्रव्य काव्य (ब) दृश्य काव्य ।।
4- श्रव्य काव्य व दृश्य काव्य में अंतर स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— श्रव्य काव्य का पूरा आनंद सुनकर अथवा पढ़कर लिया जा सकता है, परंतु दृश्य काव्य का पूरा आनंद अभिनय से ही मिलता है ।।
5- नाटक व एकांकी में क्या अंतर है?
उत्तर— नाटक और एकांकी के स्वरूप में पर्याप्त अंतर है ।। यद्यपि दोनों ही दृश्य काव्य के भेद हैं ।। दोनों में कथावस्तु, पात्र और संवाद आदि की योजना होती है, दोनों में अभिनय तत्व का पूरा निर्वाह अपेक्षित है, तथापि दोनों की बहिरंग प्रकृति भिन्न होती है ।। नाटक में कथावस्तु लंबी होती है, जिसमें आधिकारिक और प्रासंगिक कथावस्तु साथ-साथ चलती है, परंतु एकांकी में संक्षिप्त और एक ही कथावस्तु होती है ।। नाटक में पाँच से लेकर दस अंक तक हो सकते हैं, परंतु एकांकी में केवल एक अंक होता है, यद्यपि उसमें अनेक छोटे दृश्य हो सकते हैं ।। नाटक में अनेक पात्र होते हैं, जो प्रमुख पात्र नायक के चारित्रिक विकास में सहायक होते हैं, परंतु एकांकी में पात्रों की संख्या सीमित होती है ।।
6- उपन्यास को हम नाटक नहीं कह सकते, इस बात को स्पष्ट करते हुए कारण बताइए ।।
उत्तर— उपन्यास और नाटक में एक साथ अनेक संदेशों, प्रभावों और समस्याओं का निर्वाह संभव है, परंतु उपन्यास व नाटक में पर्याप्त भिन्नता भी है, जिसके कारण हम उपन्यास को नाटक नहीं कह सकते ।। नाटक में कई अंक होते हैं तथा पात्रों की संख्या सीमित व कथावस्तु से संबंधित होती है, जबकि उपन्यास में अंक नहीं होते और उसमें पात्रों व स्थानों की संख्या अधिक होती है ।। नाटक का रंगमंच पर अभिनय किया जा सकता है ।।
7- एकांकी के मुख्य तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर— पाश्चात्य एकांकीकारों के अनुसार सामान्यत: एकांकी के छः तत्व हैं- (i) कथावस्तु (ii) पात्र एवं चरित्र-चित्रण (iii)
संवाद एवं कथोपकथन (iv) भाषा-शैली (v) वातावरण और देशकाल (vi) उद्देश्य ।।
8- एकांकी की कथावस्तु को कितनी अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर— एकांकी की कथावस्तु को विविध नाटकीय स्थितियों के विश्लेषण की सुविधा के विचार से तीन अथवा चार अवस्थाओं में रख सकते हैं-(i) आरंभ (ii) विकास (iii) चरम-सीमा (iv) समाप्ति अथवा परिणति ।।
9- एकांकी में पात्रों की संख्या कम रखने का कारण स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— एकांकी में पात्रों की संख्या कम रखने का कारण है कि इसमें पात्रों की संख्या जितनी कम होती है, परिस्थिति का रंग उतना ही उभरकर सामने आता है ।। एकांकी की कथावस्तु का नियोजन पात्रों के माध्यम से ही होता है, अत: पात्रों का चयन सावधानीपूर्वक करना होता है ।। यदि पात्रों की संख्या अधिक होती है तो उनकी भीड़ में एकांकीकार के विचारों के खो जाने का खतरा बना रहता है ।। ऐसी स्थिति में पाठक या दर्शक नाटक के मूलभाव से तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाता ।।
10- कथोपकथन किसे कहते हैं?
उत्तर— एकांकी को संवादों (कथनों) के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है, इसलिए यह एकांकी का अनिवार्य तत्व है ।। इसका प्रमुख प्रयोजन कथावस्तु को गतिशील बनाना और पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को उद्घाटित करना है ।। संवादों के द्वारा एक पात्र जो कुछ भी कहता है, वह अर्थपूर्ण होता है, उसकी विचारधारा का परिचायक होता है ।। एक पात्र द्वारा बोले गए संवादों की प्रतिक्रिया दूसरे पात्रों पर होती है और वे चुभता हुआ उत्तर देते हैं ।। इस प्रकार कथा चरमोत्कर्ष पर पहुंचकर परिणति को प्राप्त होती है ।। संवादों को ही कथोपकथन कहते हैं ।।
11- संवाद एकांकी का प्राणतत्व क्यों है?
उत्तर— संवाद एकांकी का प्राणतत्व हैं ।। संपूर्ण कथावस्तु और चरित्रांकन संवादों के माध्यम से ही संभव है ।। कथानक को निरंतर सक्रिय और गतिशील बनाए रखना, पात्रों की स्वभावगत चारित्रिक विशेषताओं को उभारते रहना तथा उन्हें स्वाभाविक रूप से परिणति की ओर अग्रसर करते रहना ही संवाद योजना का लक्ष्य होता है ।। एकांकी में निरर्थक और अनावश्यक वार्तालाप को कहीं स्थान नहीं मिलना चाहिए ।।
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12- एकांकी में भाषा-शैली का क्या महत्व है?
उत्तर— वस्तुत: भाषा-शैली एकांकी के संवादों की सफलता की कसौटी है ।। एकांकी की भाषा का प्रयोग पात्र की शिक्षा, संस्कृति, वातावरण, परिस्थिति के अनुरूप ही होना चाहिए ।। यदि पात्र का सांस्कृतिक स्तर ऊँचा है तो उसकी भाषा शिष्ट और शैली परिष्कृत होगी ।। यदि उसका वातावरण दूषित है, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर ऊँचा नहीं है तो उसकी भाषा में निखार और शैली में वह परिष्कार नहीं दिखाई देगा ।। एकांकीकार की सारी अभिव्यंजना और संप्रेषणीयता की शक्ति उसकी भाषाशैली के माध्यम से अभिव्यक्त होती है ।।
13- संकलन-त्रय का क्या अर्थ है?
उत्तर— कार्य, समय और स्थल की एकता को संकलन-त्रय कहा जाता है, अर्थात् एकांकी के अंतर्गत एक संपूर्ण कार्य एक ही अवधि में और एक ही स्थान पर होना चाहिए ।। इसी के सफल विधान को संकलन-त्रय कहा जाता है ।।
14- भारतेंदु युग में कितने प्रकार के एकांकी लिखे गए, उदाहरण सहित नाम बताइए ।।
उत्तर— भारतेंदु युग में प्रायः छह प्रकार के एकांकी लिखे गए(i) राष्ट्रीय एकांकी- भारत-जननी, भारत-दुर्दशा (भारतेंदु); भारत-माता, अमर सिंह राठौर (राधाचरण गोस्वामी); भारतोद्धार (रामकृष्ण वर्मा) ।। (ii) ऐतिहासिकता के साथ देश-प्रेम की भावना पर आधारित एकांकी- महारानी पद्मिनी (राधाकृष्ण दास) ।। (iii) सामाजिक यथार्थवादी एकांकी- चौपट चपेट (किशोरीलाल गोस्वामी); कलियुगी जनेऊ (देवकीनंदन त्रिपाठी) ।। (iv) सामाजिक-सुधारवादी एकांकी- रेल का टिकट (कार्तिकप्रसाद खत्री); बूढे मुँह मुँहासे (राधाचरण गोस्वामी); दुःखिनी बाला ( राधाकृष्णदास) ।। (v) धार्मिक एकांकी- धनंजय विजय (हरिश्चंद्र) ।। (vi) हास्यप्रधान एकांकी- इस धारा के प्रमुख एकांकीकार हैं- राधाचरण गोस्वामी, देवकीनंदन त्रिपाठी, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, किशोरीलाल गोस्वामी ।।
15- वर्तमान युग में एकांकी को कितने वर्गों में बाँटा गया है? उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।।
उत्तर— वर्तमान काल को हिंदी एकांकी के बहुमुखी विकास का काल माना जाता है ।। इस युग के एकांकियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है(अ) सामाजिक-राजनैतिक- तत्कालीन स्वतंत्रता-संग्राम के आलोक में गाँधीवादी प्रभाव और आर्थिक विषमता के कारण व्याप्त हैं ।। प्रमुख एकांकीकार हैं-शचि, प्रेम-नारायण टंडन, हीरादेवी चतुर्वेदी, विमला लूथरा, अनंत कुमार, पाषाण, रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे, पहाड़ी, शंभुनाथ सिंह, जयनाथ नलिन, मुक्तिदूत, अमृतराय, विष्णु प्रभाकर, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ आदि ।। (ब) मानवतावादी दृष्टि- दलित उत्थान और मानव के महत्व को स्थापित करने में सहायक इस श्रेणी के प्रमुख एकांकीकार हैं- विष्णु प्रभाकर, रामचंद्र तिवारी, प्रेमनारायण टंडन, रावी, हीरादेवी चतुर्वेदी, विमला लूथरा आदि ।। (स) धार्मिक-पौराणिक- यह प्रवृत्ति प्रमुख रूप से विष्णु प्रभाकर, भारद्वाज, शंभुदयाल सक्सेना, डॉ-लक्ष्मीनारायण लाल एवं विपुला देवी में लक्षित हुई ।। यद्यपि इस काल के एकांकीकारों की सूची पर्याप्त लंबी है, फिर भी रामवृक्ष बेनीपुरी, विनोद रस्तोगी, अर्जुन चौबे, कश्यप, गोविंद शर्मा, महेंद्र भटनागर, जनार्दन, सत्यदेव शर्मा, इंदुशेखर, धर्मवीर भारती, जगदीशचंद्र माथुर, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ आदि की गणना वर्तमान के प्रमुख एकांकीकारों में की जाती है ।।
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9TH HINDI (ख) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1- एकांकी में -अंक होते हैं / होता है ।।
(अ) दो (ब) चार (स) तीन (द) एक
2- नाटक में अंक होते हैं ।।
(अ) एक (ब) एक से अधिक (स) दो (द) चार
3- साहित्य के दो रूपों में से एक श्रव्य है व दूसरा -है ।।
(अ) दृश्य (ब) नृत्य (स) काव्य (द) हास्य
4- एकांकी में पात्रों की संख्या होती है ।।
(अ) असीमित (ब) केवल दो (स) सीमित (द) पाँच से कम
5- कौन-सी अवस्था एकांकी की पृष्ठभूमि का निर्माण करती है?
(अ) विकास (ब) आरंभ (स) परिणति (द) चरम-सीमा
6- ‘दीपदान’ एकांकी के मुख्य पात्र का क्या नाम है?
(अ) पन्ना (ब) मोती (स) हीरा (द) सोना
7- ‘कथोपकथन’ का पर्यायवाची शब्द कहा जा सकता है(अ) चरित्र को
(ब) संवाद को (स) भाषा को (द) शैली को
8- कार्य,समय व स्थल की एकता को क्या कहते हैं?
(अ) अंतर्द्वन्द्व (ब) अभिनेयता (स) उद्देश्य (द) संकलन-त्रय
9- ‘भारत-दुर्दशा’ के रचयिता हैं
(अ) भारतेंदु हरिशचंद्र (ब) हजारी प्रसाद द्विवेदी (स) प्रेमचंद (द) जयशंकर प्रसाद
10- भारतेंदु युग में कितने प्रकार के एकांकी लिखे गए?
(अ) चार (ब) दो (स) छः (द) आठ
11- हिंदी एकांकी का बहुमुखी विकास काल किस काल को कहा जाता है?
(अ) प्रसाद युग (ब) वर्तमान काल (स) द्विवेदी युग (द) भारतेंदु युग
12- विष्णु प्रभाकर किस श्रेणी के एकांकीकार हैं?
(अ) सामाजिक (ब) राजनैतिक (स) मानवतावादी (द) पौराणिक
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