Up board class 12th civics solution chapter 19 niti aayog नीति आयोग
पाठ - 19 नीति आयोग (NITI Aayog)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1– आर्थिक नियोजन से क्या आशय है?
उत्तर— आर्थिक नियोजन का तात्पर्य आर्थिक विकास की निश्चित योजना से है ।
इस संबंध में प्रो– एम–हेरिस का मत है, “नियोजन से अभिप्राय मूल्य के संदर्भ में नियोजन अधिकारी द्वारा निश्चित उद्देश्यों तथा लक्ष्यों के लिए साधनों का आवंटन मात्र है । “
इस संबंध में प्रो– एच– डिकिन्स का कहना है, “आर्थिक नियोजन से अभिप्राय महत्वपूर्ण आर्थिक मामलों में विस्तृत तथा संतुलित निर्णय लेना है ।
दूसरे शब्दों में क्या तथा कितना उत्पादन किया जाएगा तथा उसका वितरण किस प्रकार होगा, इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक निर्धारक सत्ता के द्वारा समस्त अर्थव्यवस्था को एक ही राष्ट्रीय आर्थिक इकाई मानते हुए तथा व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर सचेत तथा विवेकपूर्ण निर्णय के द्वारा दिया जाता है । “
पं० नेहरू ने योजना आयोग में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा था-
“आर्थिक नियोजन का अभिप्राय यह है कि आर्थिक विकास की निश्चित योजना बनाकर राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक सेवाओं के संतुलित विकास का प्रयास किया जाए और इस बात का भी प्रबंध किया जाए कि इस विकास के लाभ न केवल कुछ ही व्यक्तियों अथवा वर्गों को वरन् सभी व्यक्तियों और वर्गों को प्राप्त हो ।
” इस प्रकार आर्थिक नियोजन का तात्पर्य पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अर्थव्यवस्था के समस्त अंगो को एकीकृत तथा समन्वित करते हुए राष्ट्र के साधनों के संबंध में सोच-विचार कर रूप-रेखा तैयार करने तथा केंद्रीय नियंत्रण से है ।
2– नीति आयोग के तीन प्रमुख कार्य बताइए ।
उत्तर— योजना या नीति आयोग के तीन प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) देश के साधनों का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं संतुलित उपयोग करने हेतु योजनाएँ तैयार करना ।
(ii) प्राथमिकताओं के निर्धारित होने पर उन अवस्थाओं को परिभाषित करना, जिनमें योजनाओं का संचालन होता है तथा
प्रत्येक अवस्था की स्फूर्ति के लिए साधनों का आवंटन करना ।
(iii) देश के भौतिक साधनों, पूँजी एवं मानवीय साधनों का अनुमान लगाना तथा साधनो की कमी होने पर, इनकी पूर्ति में वृद्धि _ करने हेतु अपने सुझाव तैयार करना ।
3– भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के चार उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर— भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के चार उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना, जिससे कि गरीबी व निर्धनता का यथासम्भव अन्त किया जा सके । (ii) सीमित साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना ।
(iii) जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना ।
(iv) समाजवादी-समाज की स्थापना तथा आर्थिक समानता लाना ।
4– पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने में क्या कठिनाइयाँ सामने आ रही है?
उत्तर— पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ सामने आ रही
हैं(i) बेरोजगारी में वृद्धि
(ii) मुद्रा-स्फीति में वृद्धि (iii) क्षेत्रीय असंतुलन
(iv) आर्थिक सत्ता के संकेंद्रण में वृद्धि
(v) आय एवं धन के वितरण में असमानता
(vi) भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति में असमानताएँ
(vii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में असफलताएँ
(viii) दोषपूर्ण नियंत्रण नीति
(ix) देशी तकनीक के विकास का अभाव
5– ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के चार प्रमुख लक्ष्य बताइए ।
उत्तर— ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के चार प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं
(i) वर्ष 2016-17 तक प्रतिव्यक्ति आय दोगुनी करना ।
(ii) 7 करोड़ नए रोजगार का सृजन करना ।
(iii) GDP वृद्धि दर का लक्ष्य बढ़ाकर 10 प्रतिशत करना ।
(iv) साक्षरता दर में वृद्धि कर 75 प्रतिशत तक पहुँचाना ।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1– भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता बताते हुए नीति आयोग का संगठन एवं कार्य बताइए ।
उत्तर— आर्थिक नियोजन की आवश्यकता- किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए तथा अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए आर्थिक नियोजन आवश्यक है । भारत में भी आर्थिक नियोजन की निम्नलिखित कारणों से आवश्यकता
(i) उत्पादन के साधनों का उचित प्रयोग करने के लिए आवश्यक ।
(ii) देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक ।
(iii) भूमि की उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए आवश्यक ।
(iv) मॉग एवं पूर्ति सामंजस्य के लिए आर्थिक नियोजन आवश्यक ।
(iv) उचित वितरण के लिए आर्थिक नियोजन आवश्यक ।
योजना आयोग का गठन- भारत में योजनाकरण का आरम्भ सन् 1933 से माना जाता है । केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2015 को ‘योजना आयोग’ को ‘नीति आयोग’ में परिवर्तित कर दिया है । सन् 1933 में एम– विशेश्वरैया ने देश की आय को बढ़ाने के लिए एक दस वर्षीय योजना का निर्माण किया । इसके बाद सन् 1938, 1941 और 1943 में इस क्षेत्र में प्रयास किया गया । सन् 1946 में अन्तरिम सरकार द्वारा स्थापित किए गए सलाहकार नियोजन बोर्ड द्वारा नियोजन से संबंधित समस्याओं पर विचार किया गया । सलाहकार नियोजन बोर्ड ने एक योजना आयोग की सिफारिश की । ऐसा योजना आयोग जो मंत्रिमंडल के प्रति उत्तरदायी रहकर विकास के प्रश्न पर लगातार कार्य कर सके । 15 मार्च, 1950 ई० को भारत सरकार के एक प्रस्ताव के द्वारा योजना आयोग का गठन किया गया ।
योजना आयोग के प्रथम अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पं० नेहरू थे । योजना आयोग की स्थापना के समय पाँच पूर्णकालिक सदस्य मनोनीत किए गए । वर्तमान समय में प्रधानमंत्री सहित इसके 12 सदस्य होते हैं । देश का प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है । इसके उपाध्यक्ष एवं सदस्यों के लिए कोई निर्धारित योग्यता आधार नहीं है । साथ ही उपाध्यक्ष एवं सदस्यों का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता । नीति/योजना आयोग के कार्य- नीति आयोग निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करता है
(i) योजना की विभिन्न अवस्थाओं को कार्यान्वित करने के लिए देश में एक उपयुक्त मशीनरी की प्रकृति का निर्माण करना ।
(ii) देश में उपलब्ध साधनों के सन्तुलित विकास एवं अधिकतम विदोहन हेतु योजना का निर्माण करके उसे सरकार के सम्मुख प्रस्तुत करना ।
(iii) योजना के कार्यों को पूरा करने के लिए सरकार एवं अन्य विभागों में समन्वय स्थापित करना ।
(iv) देश में भौतिक व मानवीय साधनों का अनुमान लगाकर इनके अधिकतम विदोहन की उपयुक्त सम्भावनाओं को ज्ञात करना ।
(v) देश में उपलब्ध संसाधनों का विभिन्न उपयोगों में उचित आवंटन करना ।
(vi) देश के आर्थिक विकास में बाधक तत्वों को दूर करने के लिए आवश्यक सुझाव देना ।
(vii) योजना की प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना तथा सुधार के लिए आवश्यक सुझाव देना ।
(viii) देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए योजना में प्राथमिकता के क्रम को निर्धारित करना ।
17 जून, 1971ई० को राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति द्वारा राष्ट्रीय नियोजन के लिए संसद के प्रति उत्तरदायित्व नियोजन मंत्रालय को दिया गया है और योजना नीति आयोग के कार्यों में निम्नलिखित प्रकार से संशोधन किया गया है–
(i) देश के साधनों का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं सन्तुलित उपयोग करने हेतु योजनाएँ तैयार करना ।
(ii) प्राथमिकताओं के निर्धारित होने पर उन अवस्थाओं को परिभाषित करना, जिनमें योजनाओं का संचालन होता है तथा
प्रत्येक अवस्था की स्फूर्ति के लिए साधनों का आवंटन करना ।
(iii) देश के भौतिक साधनों, पूँजी एवं मानवीय साधन का अनुमान लगाना तथा साधनों की कमी होने पर, इनकी पूर्ति में वृद्धि करने हेतु अपने सुझाव तैयार करना ।
(iv) समय -समय पर योजना की प्रत्येक अवस्था की प्रगति का मुल्यांकन करना ।
(v) राष्ट्रीय विकास में जन-सहयोग प्राप्त करना ।
(vi) योजना के समस्त पहलुओं को क्रियान्वित करने हेतु आवश्यक तंत्र के प्रकार को निर्धारित करना ।
(vii) दीर्घकालीन नियोजन की रूपरेखा प्रस्तुत करना ।
2– आर्थिक नियोजन से क्या अभिप्राय है? भारत में योजनाबद्ध विकास के संगठन की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— आर्थिक नियोजन- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या-1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
भारत में योजनाबद्ध विकास का संगठन- भारत में योजनाकरण का आरम्भ सन् 1935 ई० से माना जाता है । लेकिन भारत में आर्थिक नियोजन 1 अप्रैल, 1951 ई० में प्रारम्भ किया गया है । अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं । इस प्रकार आर्थिक नियोजन के 66 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना, जिससे कि गरीबी व निर्धनता का यथासम्भव अन्त किया जा
सके- प्रत्येक नीति का उद्देश्य, देश की राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना रहा है । इसमे गरीबी की रेखा से
नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों की आय में वृद्धि हुई है, जिसमें उनके रहन-सहन के स्तर में भी सुधार हुआ है ।
(ii) सीमित संसाधनो का सर्वोत्तम उपयोग करना- भारत में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । इसीलिए
संसाधनो का सम्पूर्ण विदोहन अभी नहीं हो पाया है । अत: भारत में योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य रहा है । उपलब्ध सीमित संसाधनो का योजनाबद्ध संदोहन एवं इनका अधिकतम व श्रेष्ठतम उपयोग करना । योजनाओं में ऐसे कार्यक्रमों को अपनाना कि देश का तीव्र गति से विकास सम्भव हो सके । जनसंख्या-वृद्धि को नियन्त्रित करना- भारत की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या, देश के आर्थिक विकास में बाधक है । इसीलिए प्रत्येक योजना में, जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण के लिए अनेक उपाय अपनाए गए है । योजनाओं का उद्देश्य जन्म-दर में कमी करके जनता के रहन-सहन के स्तर को उँचा उठाना है ।
(iv) समाजवादी-समाज की स्थापना तथा आर्थिक समानता लाना- हमारे संविधान में, भारत में समाजवादी समाज की स्थापना का प्रावधान है । आर्थिक नियोजन समाजवाद का एक अभिन्न अंग है । भारत पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य भी देश में, समाजवादी समाज की स्थापना है, यानी आर्थिक विकास का लाभ कुछ ही व्यक्तियों को न मिलकर, यह सम्पूर्ण समाज को मिलना चाहिए । इसमे आर्थिक असमानता दूर होगी । अतः समाजवादी विचारकों को व्यावहारिक रूप देने का उद्देश्य से, भारत में आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया गया है ।
(v) पूँजी-निर्माण की गति में तेजी लाना- भारत में पूँजी-निर्माण की गति बहुत धीमी है । पूँजी के अभाव में विकास की
प्रक्रिया तेज नहीं हो सकती । आर्थिक योजनाओं का उद्देश्य उपलब्ध सीमति पूँजी का अधिकतम उपयोग तथा पूँजी-निर्माण की दर में वृद्धि करना भी है ।
(vi) कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना- योजनाओं का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना भी है । इसके लिए योजनावधियों में अग्र कार्यक्रम अपनाए गए हैं- पाँचवीं योजना में प्रारम्भ किया गया, न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, छठी योजना में भी इस कार्यक्रम पर बल दिया गया था । समाज के निर्धन वर्ग को उचित कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध कराने की दृष्टि से, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा आवश्यक वस्तुओं के वितरण की व्यवस्था करना तथा इसमें समुचित सुधार करना, मजदूरी व कीमतों में उचित सन्तुलन स्थापित करना, पौष्टिक आहार कार्यक्रमों को व्यापक बनाना, आवास विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में व वृद्धावस्था- सहायता की व्यवस्था, स्वास्थ्य-पेयजल शिक्षा (विशेषकर प्राथमिक) जैसे जन कल्याण कार्यों में वृद्धि करना, आदि । विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली, सड़कें, चिकित्सालयों का विस्तार, आदि, द्वारा जन-सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, जिससे कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों को लाभ पहुँचे ।
(vii) क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करना– भारत में आर्थिक विकास की क्षेत्रीय असमानता पाई जाती है । देश में ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहाँ प्राकृतिक संसाधन मात्रा में उपलब्ध होने पर भी, इनका पर्याप्त विदोहन नहीं हो पाया है । फलतः इन क्षेत्रों के निवासियों की प्रति व्यक्ति आय, अन्य क्षेत्रों की तुलना में, बहुत कम है । योजनाओं का उद्देश्य इस प्रकार के क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करना भी है ।
(viii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना– सभी योजनाओं के उद्देश्य रहे हैं-नए-नए उद्योगों की स्थापना, पुराने उद्योगों में सुधार लाना, कृषि में सुधार व विविधीकरण, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन, आदि । इन सभी कार्यक्रम का उद्देश्य रोजगार के अवसरों में वृद्धि करके, बढ़ती हुई बेरोजगारी को कम करना है ।
(ix) सार्वजानिक क्षेत्र का विस्तार करना- समाजवादी समाज की स्थापना की दृष्टि से, योजनाओं का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार भी रहा है । इसीलिए सरकारी क्षेत्र में इस्पात, रसायन, उर्वरक, पेट्रोल, भारी मशीन, आदि से संबंधित कारखानों की स्थापना की गई है, सिंचाई संचार व परिवहन के साधनों का विस्तार किया गया है, बैक-बीमा विपणन के क्षेत्र में सरकारी सेवाओं का विस्तार किया गया है, आदि ।
(x) अन्य उद्देश्य—–(क) प्राविधिक विकास कुशल श्रमिकों की उपलब्धता- तीव्र गति से अधिक विकास के लिए प्राविधिक ज्ञान एवं तकनीकी विकास की नितान्त आवश्यकता है । अल्पविकसित देशों में, इन दोनों के संबंध में स्थिति बहुत ही पिछड़ी दशा में होती है । योजनावधियों में नई तकनीकी को अपनाने और इसके लिए श्रमिकों को प्रशिक्षित करके कार्यक्रम चलाए जाते हैं ।
(ख) विदेशी मुद्रा का अर्जन- नियोजन द्वारा औद्योगिक विकास करके, औद्योगिक, उत्पादों का निर्यात किया जाता है । विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है । इसका देश के आर्थिक विकास हेतु समुचित उपयोग किया जाता है । भारत में पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने में निम्नलिखित बाधाओं का अनुभव किया जाता है
(i) बेरोजगारी में वृद्धि- भारत में नियोजन काल में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाने के बावजूद भी बेरोजगारी में वृद्धि बढ़ती है । बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में जनसंख्या वृद्धि का उदाहरण दिया जा सकता है ।
(ii) मुद्रा-स्फीति में वृद्धि- वर्ष 1968-69 ई० को छोड़कर योजनाकाल के शेष सभी वर्षों में मुद्रा-स्फीति बढ़ती गई हैं । अत:योजना की लागत तेजी से बढ़ी है ।
(iii) क्षेत्रीय असन्तुलन- भारतीय योजनाएँ क्षेत्रीय असन्तुलन दूर नहीं कर सकी है । प्रथम योजना के समय जो क्षेत्र राज्य, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उडीसा आदि पिछडे हुए थे आज भी वे अविकसित हैं । दूसरी ओर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात आदि राज्य, जो पहले से औद्योगिक दृष्टि से विकसित थे, वे आज भी विकसित है ।
(iv) आर्थिक सत्ता के संकेंद्रण में वृद्धि- योजना काल में आर्थिक सत्ता के संकेन्द्रण को बढ़ावा मिला । टाटा बिड़ला, ए–सी–सी, जे–के– महेन्द्रा एण्ड टूल आदि के ग्रुपो की सम्पत्तियों में कई गुना वृद्धि हुई है ।
(v) आय एवं धन के वितरण में असमानता- आय की असमानताओं में कमी के लिए योजनाकाल में कई प्रभवशाली कदम उठाए गए हैं, जैसे जमींदारी उन्मूमल, प्रिवीपर्स की समाप्ति, प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली की समाप्ति, भूमि सुधार, सहकारी खेती, बैंको का राष्ट्रीयकरण, स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाओं का विस्तार आदि । उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद भी आय एवं धन की असमानता को अपेक्षित रूप से कम नहीं किया जा सकता हैं, अभी भारत के न्यनूतम 40% भाग को राष्ट्रीय आय का 16% ही प्राप्त होता है । भारत की अपेक्षा पाकिस्तान, श्रीलंका, कोरिया तथा नाइजीरिया आदि की स्थिति बहुत अच्छी है ।
(vi) भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति में असमानताएँ-विभिन्न योजनाओं में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है । इसके प्रमुख कारण निम्न प्रकार है
(क) प्रशासकीय व प्रबन्धकीय योग्यता का अभाव ।
(ख) बढ़ता हुआ हीनार्थ प्रबन्ध और इसका मूल्य पर प्रतिकूल प्रभाव ।
(ग) असन्तोष जनक औद्योगिक संबंध ।
(घ) आवश्यकतानुसार पूंजी निवेश का अभाव ।
(ङ) निजी क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व का अभाव ।
(च) पर्याप्त जन-सहयोग का अभाव ।
(छ) बेरोजगारी में वृद्धि का कारण माना जाता है ।
(vii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में असफलताएँ- सार्वजनिक क्षेत्र में अधिकांश उद्योग घाटे में चल रहे हैं ये उत्पादन लक्ष्य
पूरा करने में असमर्थ रहे हैं ।
दोषपूर्ण नियन्त्रण नीति- डॉ– गाडगिल के अनुसार, “भारतीय योजनाओं में नीति संबंधी ढाँचे का पूर्ण रूप से अभाव रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रों में जो नियन्त्रण व नियमन लगे हुए हैं, वे परस्पर असम्बद्ध हैं । प्रत्येक नियन्त्रण एक उद्देश्य की पूर्ति करता है और उसी दृष्टि से संचालित किया जाता है । इसका परिणाम यह हुआ कि समग्र रूप से अर्थव्यवस्था लगभग एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था के रूप में कार्य करती है ।
(ix) देशी तकनीक के विकास का अभाव- भारतीय आर्थिक नियोजन की विफलता का एक कारण विदेशी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता रही है । विदेशी सहायता के अधिकाधिक उपयोग के कारण ब्याज का भार अत्यधिक बढ़ गया है । पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियाँ- हमारी अर्थव्यवस्था बहुत बुरी स्थिति में पहुँच गई । स्वतंत्रता के पश्चात जब देश की बागडोर भारतीयों के हाथ में आई तो अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान हेतु नियोजन का रास्ता अपनाया गया ।
आर्थिक विकास को गति प्रदान करने 1 अप्रैल 1951 ई० में प्रथम पंचवर्षीय योजना को प्रारम्भ किया गया । सन् 1951 ई० से अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएँ तथा छ: वार्षिक योजनाएँ समाप्त हो चुकी हैं तथा वर्तमान में बारहवी पंचवर्षीय योजना क्रियान्वयन में है । नियोजन विकास की इस अवधि में विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित की गई हैं जिनमें सकल घरेलू उत्पाद, राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय, आर्थिक समृद्धि दर, कृषि उद्योग, सार्वजनिक सेवाएं आदि प्रमुख हैं ।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में प्रति व्यक्ति आय सन् 1950-51 ई० में ₹ 225 थी, सन् 1955-56 ई० में यह घटाकर ₹249 हो गई । कृषि की उपज में 15 प्रतिशत और औद्योगिक उत्पादक में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई ।
द्वितीय योजनाकाल में राष्ट्रीय आय में 21 प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय में 9 प्रतिशत वृद्धि हुई । सन् 1948-49 ई० के मूल्यो पर प्रति व्यक्ति आय सन् 1951-56 ई० के ₹268 से बढ़कर सन् 1960-61 ई० में ₹293–2 हो गई थी ।
तृतीय योजनाकाल में हमारा लक्ष्य राष्ट्रीय आय में 5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि का था, लेकिन योजना काल में औसत वृद्धि 2–9 प्रतिशत ही हुई थी । अनुमान तो यह था कि योजना के अन्त तक प्रति व्यक्ति आय ₹385 हो जाएगी, लेकिन वास्तव में यह ₹301 सन् 1948-49 ई० के मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति ही हो पाई ।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में लगभग सभी क्षेत्रों में वास्तविक उपलब्धि लक्ष्य की तुलना में बहुत कम रही । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में पहली बार न्यूनतम आवश्यकताओं के लिए राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों को लागू किया गया, जिनमें प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, स्वास्थ, भूमिहीन श्रमिकों के लिए आवास व्यवस्था, सड़कें, बिजली, आदि सम्मिलित थे ।
पंचम योजनावधि में राष्ट्रीय की वास्तविक वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत रही, जब कि लक्ष्य केवल 4.4 प्रतिशत था । कृषि उत्पादन में वास्तविक वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत तथा औद्योगिक उत्पादन में वास्तविक वृद्धि दर 5.9 प्रतिशत रही ।
छठी पंचवर्षीय योजना में 5.2 प्रतिशत वार्षिक विकास दर का लक्ष्य था, जिसे प्राप्त कर लिया गया । प्रति व्यक्ति आय में वास्तविक वृद्धि दर (वार्षिक) 3.2 प्रतिशत रही, जिसे सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता । औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्रों में वास्तविक वृद्धि दर केवल 5.5 प्रतिशत रही ।
सातवीं पंचवर्षीय योजना मे सकल घरेलू निर्माण दर योजना अवधि में 19.6 प्रतिशत से बढ़कर 27.3 प्रतिशत हो गई है । सकल बचत दर योजनावधि में 18.2 प्रतिशत से बढ़कर 24.6 प्रतिशत हो गई । योजना के वित्तीय प्रबन्ध में 82 प्रतिशत घरेलू स्रोतों का लक्ष्य था, जबकि वास्तविक रूप में कुल वित्त का 74 प्रतिशत एकत्रित हो सका ।
आठवीं पंचवर्षीय योजना में साधन लागत पर सकल वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही, जब कि लक्ष्य केवल 5.6 प्रतिशत था । कृषि के क्षेत्र में विकास की औसत वृद्धि दर 3.9 प्रतिशत रही ।
नौवीं पंचवर्षीय योजना में विकास दर का लक्ष्य 6–5 प्रतिशत रखा गया था । लेकिन यह प्रतिशत 5–4 ही रहा, योजना में घरेलू बचत का दर का लक्ष्य 26.1 प्रतिशत आंका गया था लेकिन उपलब्धि 23.3 प्रतिशत की रही, औद्योगिक विकास दर का लक्ष्य 8.3 प्रतिशत रखा गया था लेकिन इसकी औसत विकास दर भी 5.06 प्रतिशत ही रही और संशोधित कृषि विकास की दर 3.9 प्रतिशत रखी गई थी लेकिन यह 2.06 प्रतिशत ही रहा । सन् 1999–2000 ई० में गरीबी घटाकर 26.1 प्रतिशत रह गई जो सन् 1993-94 ई० में 36 प्रतिशत थी । सन् 1993-94 ई० में ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का प्रतिशत 37.3 था जो सन् 1999-2000 ई० में घटकर 27.01 प्रतिशत रहा गया । इसी प्रकार शहरी क्षेत्र में यह 32.4 प्रतिशत से घटकर 23.6 प्रतिशत रहा गया ।
योजनावधि में विद्युत उत्पादन क्षमता में 19,015 मेगावाट अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को ही जोड़ा जा सका है जो लक्ष्य का केवल 47 प्रतिशत ही हैं और आयात-निर्यात क्रमशः 10.4 व 11.8 प्रतिशत दर से बढ़ने चाहिए थे, लेकिन योजनाविधि में इनकी उपलब्धि क्रमशः 9.8 व 6.91 प्रतिशत रही ।
योजनावधि में कृषि क्षेत्र में प्रगति को सन्तोषजनक माना जा सकता है इसका प्रमाण यह है कि देश खाद्यान्न तथा कृषिगत कच्चे मालों में आत्मनिर्भता प्राप्त कर चुका है । सिंचित क्षेत्र सन् 1950-51 ई० में मात्र 2.26 करोड़ हैक्टेयर था जो सन् 2001-02 ई० में 8.47 करोड़ हैक्टेयर से अधिक हो गया । नियोजित विकास में औद्योगिक प्रगति के लिए भी भारी पूँजी निवेश किया गया ।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में उद्योग को प्रधानता प्रदान की गई । सन् 1950-51 ई० में भारत में कोयले का उत्पादन मात्र 323 लाख टन था जो सन् 2005-06 ई० में बढ़कर 4,015 लाख टन हो गया । सीमेन्ट का उत्पादन सन् 1950-51 ई० में 27.3 लाख टन था जो सन् 2005-06 ई० में 63,332 लाख टन हो गया । सन् 1951 ई० में सड़क मार्गों की लम्बाई 4 लाख किमी थी जिसमें 1.6 लाख किमी सड़कें पक्की तथा शेष कच्ची थीं । वर्तमान में सड़क मार्गों की लम्बाई 33.4 लाख किमी है ।
योजनावधि में विदेशी व्यापार में भी वृद्धि हुई । सन् 1950-51 ई० में कुल भारत का विदेशी व्यापार ₹1,214 करोड़ का था जिसमें ₹608 करोड़ के आयात तथा ₹606 करोड़ के निर्यात थे । सन् 2005-06 ई० में विदेशी व्यापार बढ़कर ₹11,16,827 करोड़ का हो गया जिसमें ₹4,56,418 करोड़ के निर्यात तथा ₹6,60,4089 करोड़ के आयात थे । सन् 1951 ई० में बैंको की शाखाओं की संख्या मात्र 2,647 थी जो 30 जून 2006 को 69,616 हो गई । बीमा व्यवसाय में भी तेजी से वृद्धि हो रही है । नियोजन काल में प्राथमिक सामाजिक विकास क्षेत्र में सुधार की प्रवृत्ति भी सन्तोषजनक है ।
सन् 1950-51 ई० में 11 वर्ष की आयु के विद्यालय जाने वाले वाले बच्चों का प्रतिशत केवल 43 था । प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व परिवार नियोजन केंद्रों के बारे में तो कोई ज्ञान ही नहीं था, जिनका आज इतना विस्तार हो गया है कि बच्चा-बच्चा इनकी जानकारी रखता है । औसत जीवन-दर 32 वर्ष से बढ़कर 65 वर्ष हो गई है । सन् 1950-51 ई० में मृत्यु-दर 27.4 प्रति हजार थी जो वर्तमान में घटकर 7–6 प्रतिशत हजार है । नियोजन विकास में साक्षरता वृद्धि दर पर भी जोर दिया गया जिससे साक्षरता में निरन्तर और सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत सन् 2002-07 ई० के वर्षों में तेजी से वृद्धि हो रही है सन् 2010-11 ई० में आर्थिक वृद्धि दर 9.7 प्रतिशत थी ।
दसवी पंचवर्षीय योजना की 8 प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य था, और योजना के अन्तिम वर्ष तक आते-आते इस लक्ष्य को लगभग प्राप्त कर लिया गया है । ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में औसत 8 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि रही । बारहवीं पंचवर्षीय येजना में वार्षिक विकास दर लक्ष्य 9 प्रतिशत है ।
3– भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर— उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या-2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
4– भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (सन् 2007-2012 ई०)- भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय (सन् 2007-2012 ई०) के दृष्टिकोण-पत्र को राष्ट्रीय विकास परिषद् ने 9 दिसम्बर, 2006 ई० को स्वीकृति प्रदान की । योजना (सन् 2007-2012 ई०) के निर्धारित लक्ष्य निम्नलिखित हैं
(i) वर्ष 2016-17 तक प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो जाएगी ।
(ii) 7 करोड़ नए रोजगार का सृजन किया जाएगा ।
(iii) GDP वृद्धि दर का लक्ष्य बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया ।
(iv) साक्षरता दर में वृद्धि का 75 प्रतिशत तक पहुँचाना ।
(v) जन्म के समय नवजात शिशु मृत्यु दर को घटाकर 28 प्रति हजार किया जाएगा ।
(vi) मातृ-मृत्यु दर को घटाकर प्रति हजार जन्म पर 1 करने का लक्ष्य ।
(vii) वर्तमान में स्कूली बच्चों के पढ़ाई छोड़ने की दर 52 प्रतिशत है, इसे घटाकर 20 प्रतिशत किया जाएगा ।
(viii) सभी के लिए वर्ष 2009 तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करना ।
(ix) लिंगानुपात दर को सुधारते हुए वर्ष 2011-12 प्रति हजार 935 और वर्ष 2016-17 तक 950 तक प्रति हजार करने का लक्ष्य ।
(x) शिक्षित बेरोजगार दर को घटाकर 5 प्रतिशत से कम कर दिया जाएगा ।
(xi) वर्ष 2009 तक सभी गाँवों एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों तक बिजली पहुंचाई जाएगी ।
(xii) वर्ष 2009 तक 1,000 की जनसंख्या वाले गाँवों को सड़क की सुविधा होगी ।
(xiii) वर्ष 2011-12 तक प्रत्येक गाँव ब्राडबैंड से जोड़ दिया जाएँगें ।
(xiv) वनीकरण की अवस्था में 5 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी ।
(xv) गरीबी अनुपात को 15 प्रतिशतांक तक घटाया जाएगा ।
(xvi) नदियों की सफाई के क्रम में शहरों से प्रदूषित जल का उपचार किया जाएगा ।
(xvii) विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा निर्धारित स्वच्छ वायु में मापदंडो का लागू किया जाएगा ।
(xviii) दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर को वर्ष 2001-2011 के बीच 16–2 प्रतिशत तक घटाकर लाना ।
(xix) नवम्बर 2007 तक प्रत्येक गाँव में दूरभाष की सुविधा उपलब्ध होगी ।
5– टिप्पणी कीजिए
(i) भारत का नीति आयोग
(ii) पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियाँ
उत्तर— (i) भारत का नीति आयोग- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या-1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।
(ii) पंचवर्षीययोजनाओं की उपलब्धियाँ- इसके विस्तृत उत्तरी प्रश्न संख्या-2 के उत्तर का अवलोकन कीजिए ।