सरदार भगत सिंह जीवनी SARDAR BHAGAT SINGH

सरदार भगत सिंह जीवनी SARDAR BHAGAT SINGH

आज सरदार भगत सिंह जी की जयंती है। भगत सिंह सिर्फ एक व्यक्तित्व ही नही बल्कि एक सतत प्रक्रिया का नाम है जो आम आदमी की जिंदगी में एक दिशा वा नई ऊर्जा के संचार की क्षमता रखती हैं । कई सौ सालों में एक बार ऐसे पुरुष जन्म लेते है , जो मात्र 23 साल की उम्र में अपने जीवन को आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक ऐसा संदेश, एक ऐसा व्यक्तित्व छोड़ कर चले जाते है जिस पर आने वाली मोबाइल युग की पीढ़ी शायद ही भरोसा कर पाए।

सरदार भगत सिंह जी के जीवन के कुछ दृश्य -:

आज ही के दिन यानी 28 सितम्बर 1907 को अविभाजित पाकिस्तान के लायलपुर जिले के बंगा गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था। दादा सरदार अर्जुन सिंह स्वामी दयानंद सरस्वती जी के प्रिय शिष्य थे। पढ़े लिखे कानून के जानकार की ख्याति क्षेत्र में दूर दूर तक फैली थी एक डॉक्टर के रूप में भी और सबसे बड़ी बात कि गरीब, दुखी लोगो की मदद में आगे रहते थे। अगर किसी गरीब को रोटी देते थे तो रोटी के साथ एक सिक्का बी देते थे, एक कहावत आम तौर पर कही जाती थी कि बड़े सरदार जी रोटी के साथ सब्जी में सिक्का भी देते है।पिता जी सरदार किशन सिंह जी उस समय गदर पार्टी के सक्रिय सदस्यों में शामिल थे। माता जी श्रीमती विद्यावती कौर एक गृहणी थी। सरदार भगत सिंह की उच्चशिक्षा लाहौर के उस डी ए वी कॉलेज में हुई जिसकी स्थापना लाला लाजपत राय वा उनके एक साथी द्वारा की गई थी । सरदार भगत सिंह को हिंदी, उर्दू, बंगला, फारसी, पोलिश आदि भाषाओं का ज्ञान था। सरदार भगत सिंह अपना हीरो करतार सिंह सराभा को मानते थे। मात्र 19 साल की उम्र में भारत नौजवान सभा की स्थापना की ।

इंकलाब ज़िंदाबाद


अप्रैल 1929में जब बटुकेश्वर दत्त के साथ सेंट्रल असेंबली में बम फेका और पर्चा फेके, उन पर्चो में – इंकलाब ज़िंदाबाद, क्रांति अमर रहे, और एक लाइन लिखी ” कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।” यह लाइन एक फ्रेंच दार्शनिक वेला की थी। इस बम कांड में बटुकेश्वरदत्ता और भगत सिंह पकड़े गए, भगत सिंह का मुकदमा आसिफ़ अली ने लड़ा। उन्हें 10 साल की सजा हुई। 2 साल जेल मे रहे। हालाकि अंग्रेज चाहते थे कि भगत सिंह को बम कांड में फांसी की सजा हों। लेकिन सिंह को फांसी की सजा सांडर्स की हत्या में हुई थी, जिसमे सुखदेव वा राजगुरु के साथ भगत सिंह को फांसी की सजा हुई।

23 मार्च 1931

वे जब तक जेल में रहे पढ़ते रहे। पंडित मदन मोहन मालवीय ने फरवरी 1931 में तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन से फासी की सजा माफ करने की अपील की पर वायसराय ने मना कर दिया, फिर 3 दिन के बाद गांधी जी स्वयं वायसराय से मिले और फांसी की सजा को माफ करने की अपील की लेकिन वायसराय द्वारा मना कर दिया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वयं लाहौर की सेंट्रल जेल में उनसे मिलने गए तब भगत सिंह ने कहा कि मेरे जीवित रहने से ज्यादा फायदा देश को मेरे मरने से होगा। 23 मार्च 1931 को फांसी के ठीक पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, उसी समय जेलर ने बैरक में आकर कहा की फांसी का समय हो गया है और आप किसे पढ़ रहे है तो भगत सिंह द्वारा बताया गया की एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से भेट कर रहा है। पुस्तक को बंद किया, हवा में उछाला फिर अलमारी में रखी और फांसी के लिए चल पड़े। एक अद्भुद मानव जिन्हे बारंबार प्रणाम ????????

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