rajendra prasad ka jeevan parichay

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (3 दिसंबर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, विद्वान, और गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उनका जीवन सादगी, सेवा और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक रहा है।


👶 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

राजेंद्र बाबू का जन्म बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में हुआ था। उनके पिता महादेव सहाय संस्कृत और फारसी के विद्वान थे, जबकि माता कमलेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पाँच वर्ष की आयु में उन्होंने फारसी की शिक्षा आरंभ की और बाद में हिंदी और गणित का अध्ययन किया। 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजवंशी देवी से हुआ।

राजेंद्र प्रसाद एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और छात्रवृत्ति प्राप्त की। बाद में उन्होंने एम.ए. (अर्थशास्त्र) और कानून में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। उनके शिक्षक जगदीश चंद्र बोस और प्रफुल्ल चंद्र रॉय जैसे महान वैज्ञानिक थे।


🇮🇳 स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

राजेंद्र प्रसाद ने 1917 में महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह में भाग लेकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल गए। वे 1934, 1939 और 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे।


🏛️ राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बने और 1962 तक इस पद पर रहे। वे एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्हें दो बार निर्विरोध चुना गया। उन्होंने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


✍️ साहित्यिक योगदान

राजेंद्र प्रसाद ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें उनकी आत्मकथा, “बापू के कदमों में”, “इंडिया डिवाइडेड”, “सत्याग्रह एट चंपारण”, “गांधीजी की देन”, “भारतीय संस्कृति” और “खादी का अर्थशास्त्र” शामिल हैं। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन किया और ‘देश’ तथा ‘पटना लॉ वीकली’ जैसे पत्रों का संपादन भी किया।


🏅 सम्मान और विरासत

1962 में, राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और निःस्वार्थ सेवा का उदाहरण है। 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाकत आश्रम में उनका निधन हुआ।

यहाँ डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन पर आधारित कुछ प्रमुख पुस्तकें और संसाधन दिए गए हैं, जो उनके जीवन और कार्यों को गहराई से समझने में सहायक हो सकते हैं:


📘 1. “Autobiography” – डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा

भाषा: हिंदी और अंग्रेज़ी

प्रकाशन वर्ष: 1957

विवरण: यह आत्मकथा डॉ. प्रसाद ने 1942 से 1945 के बीच जेल में रहते हुए लिखी थी। इसमें उन्होंने अपने बचपन, शिक्षा, विवाह, स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी और राष्ट्रपति बनने तक की यात्रा का विस्तार से वर्णन किया है।

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📗 2. “India Divided”

भाषा: अंग्रेज़ी

प्रकाशन वर्ष: 1946

विवरण: इस पुस्तक में डॉ. प्रसाद ने भारत के विभाजन के खिलाफ अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने विभाजन के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण किया है।


📙 3. “बापू के क़दमों में”

भाषा: हिंदी

विवरण: इस पुस्तक में डॉ. प्रसाद ने महात्मा गांधी के साथ अपने संबंधों और उनके विचारों के प्रभाव का वर्णन किया है।


📕 4. “सत्याग्रह एट चंपारण”

भाषा: अंग्रेज़ी

विवरण: इस पुस्तक में चंपारण सत्याग्रह का विवरण है, जिसमें डॉ. प्रसाद ने गांधीजी के साथ मिलकर किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था।


📘 5. “डॉ. राजेंद्र प्रसाद: ए ब्रीफ बायोग्राफी” – तारा सिन्हा द्वारा

भाषा: अंग्रेज़ी

प्रकाशन वर्ष: 2013

विवरण: यह संक्षिप्त जीवनी डॉ. प्रसाद के जीवन की प्रमुख घटनाओं और उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती है।

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। उनके राष्ट्रपति काल की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:


  1. भारत के प्रथम राष्ट्रपति

वे स्वतंत्र भारत के संविधान लागू होने पर पहले राष्ट्रपति बने।

उन्होंने 12 वर्षों तक (1950–1962) राष्ट्रपति पद संभाला, जो अब तक किसी भी भारतीय राष्ट्रपति का सबसे लंबा कार्यकाल है।


  1. निर्विरोध निर्वाचित

वे दो बार निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए (1950 और 1957 में) — यह सम्मान अब तक किसी और को नहीं मिला।


  1. संविधान सभा के अध्यक्ष

राष्ट्रपति बनने से पहले वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे और भारतीय संविधान के निर्माण में उनका अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।


  1. निष्पक्ष और गैर-राजनीतिक भूमिका

उन्होंने राष्ट्रपति के पद की गौरवमयी, गरिमापूर्ण और निष्पक्ष भूमिका निभाई।

वे राजनीति से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते रहे।


  1. सरल जीवनशैली

राष्ट्रपति रहते हुए भी वे सादा जीवन जीते थे, गांधीवादी सिद्धांतों का पालन करते थे और सादगी व ईमानदारी के प्रतीक बने रहे।


  1. भारत रत्न सम्मान

1962 में, राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और उसी दिन उन्होंने एक ऐतिहासिक भाषण दिया। यह भाषण भारत के गणराज्य बनने की घोषणा और उसके मूल्यों का प्रतीक था।


🇮🇳 डॉ. राजेंद्र प्रसाद का 26 जनवरी 1950 का भाषण: प्रमुख अंश

“हमारे गणराज्य का उद्देश्य है इसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समता प्राप्त करना तथा इस विशाल देश की सीमाओं में निवास करने वाले लोगों में भ्रातृ-भाव बढ़ाना, जो विभिन्न धर्मों को मानते हैं, अनेक भाषाएँ बोलते हैं और अपने विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। हम सभी देशों के साथ मित्रता करके रहना चाहते हैं। हमारे भावी कार्यक्रमों में रोग, गरीबी और अज्ञान का उन्मूलन शामिल है। हम उन सभी विस्थापित लोगों को फिर से बसाने तथा उन्हें फिर से स्थिरता देने के लिए चिंतित हैं, जिन्होंने बड़ी मुसीबतें सही हैं और हानियाँ उठाई हैं और जो अभी भी मुसीबत में हैं। जो लोग किसी प्रकार के अधिकारों से वंचित हैं, उन्हें विशेष सहायता मिलनी चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि हम उस स्वतंत्रता को सुरक्षित रखें, जो आज हमें प्राप्त है लेकिन राजनीतिक स्वतंत्रता के समान ही आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता भी समय की माँग है। वर्तमान हमसे अतीत की अपेक्षा भी अधिक निष्ठा और बलिदान माँग रहा है। मैं आशा और प्रार्थना करता हूँ कि हमें जो अवसर मिला है, हम उसका उपयोग करने में समर्थ हो सकेंगे। हमें अपनी सारी भौतिक और शारीरिक शक्तियाँ अपनी जनता की सेवा में लगा देनी चाहिए। मैं यह भी आशा करता हूँ कि इस शुभ और आनंदमय दिवस के आगमन पर खुशियाँ मनाती हुई जनता अपनी जिम्मेदारी का अनुभव करेगी और अपने आपको फिर उस लक्ष्य की पूर्ति के लिए समर्पित कर देगी, जिसके लिए राष्ट्रपिता जिए, काम करते रहे और मर गए।”


📜 भाषण का महत्व

संविधान का उद्घाटन: इस भाषण के माध्यम से डॉ. प्रसाद ने भारतीय संविधान के लागू होने की घोषणा की, जिससे भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना।

राष्ट्रीय एकता का संदेश: उन्होंने विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों के बीच भाईचारे और एकता को बढ़ावा देने का आह्वान किया।

सामाजिक न्याय और समानता: डॉ. प्रसाद ने सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार मिल सकें।

गांधीजी को श्रद्धांजलि: उन्होंने महात्मा गांधी के बलिदान और उनके दिखाए मार्ग की सराहना की, और देशवासियों से उनके आदर्शों का पालन करने की अपील की।

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यहाँ डॉ. राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति काल से जुड़ी कुछ और प्रमुख घटनाएँ, निर्णय और योगदान दिए गए हैं, जो उनके नेतृत्व की गहराई को दर्शाते हैं:—अधिक घटनाएँ और योगदान

1. पुरी में जगन्नाथ मंदिर विवाद (1950)एक जाति विशेष को मंदिर में प्रवेश से रोका गया था।डॉ. प्रसाद ने व्यक्तिगत रूप से समानता और धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत की।उन्होंने इस घटना को संविधान के अनुच्छेद 15 और 25 के उल्लंघन के रूप में देखा।-

2. भारत रत्न सम्मान (1962)कार्यकाल समाप्त होने के तुरंत बाद उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।वे यह सम्मान पाने वाले पहले राष्ट्रपति और देश के चुनिंदा स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं।

-3. प्रधानमंत्री नेहरू से वैचारिक मतभेदखासकर हिंदू कोड बिल पर उनके और नेहरू के विचार अलग थे।फिर भी वे हमेशा संविधान की मर्यादा का पालन करते रहे और कोई सार्वजनिक विवाद नहीं होने दिया।-

4. शिक्षा और विज्ञान को बढ़ावाराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस, विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों में बार-बार भाग लिया।वे मानते थे कि “शिक्षा ही राष्ट्र की असली रीढ़ है।”—l

5. राष्ट्रपति भवन में सरलतावे सबसे सादा जीवन जीने वाले राष्ट्रपति माने जाते हैं।राष्ट्रपति भवन में उन्होंने कई गैर-जरूरी खर्चे कम किए और गांधीजी की तरह फर्श पर बैठने को प्राथमिकता दी।–

6. स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकवे अकेले ऐसे राष्ट्रपति थे जो चंपारण आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, और जेल यात्राओं का हिस्सा रहे।

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