Ncert Solution For Class 11 Hindi chapter 10 निर्मला पुतुल

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Ncert Solution For Class 11 Hindi chapter 10 निर्मला पुतुल

  1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:- माटी का रंग प्रयोग करते हुए कवयित्री निर्मला पुतुल ने अपनी मूल पहचान को बनाए रखने की ओर संकेत किया है। इस कविता में कवयित्री ने माटी का रंग प्रयोग से स्थानीय संथाली लोकजीवन की विशेषताओं को उजागर करने का प्रयास किया है। वे चाहती हैं कि यहाँ के लोग अपनी सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और जुझारूपन आदि को बचाए रखें ताकि वहाँ की संस्कृति जीवंत रहे ।

  1. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर:- संथाली आदिवासियों की मातृभाषा ‘संथाली’ है। वे दैनिक व्यवहार में जिस संथाली भाषा का प्रयोग करते हैं, उसमें उनके राज्य झारखंड की पहचान झलकती है। उनकी भाषा से यह पता लग जाता है कि वे झारखंड राज्य की निवासिनी हैं। कवयित्री भाषा के इसी स्थानीय स्वरूप की रक्षा करने को कहती हैं। कवयित्री चाहती हैं कि संथाली लोग अपनी भाषा की स्वाभाविक विशेषता को नष्ट न करें क्योंकि यहाँ खड़ीबोली का प्रयोग बनावटीपन की झलक देता है 1

  1. भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है ?

उत्तर: ‘दिल के भोलेपन में सहजता, सच्चाई और ईमानदारी का भाव है। ‘अक्खड़पन’ से अभिप्राय अपनी बात पर दृढ रहने का भाव है और ‘जुझारूपन’ से तात्पर्य संघर्षशीलता से है। कवयित्री कहती हैं कि दिल का भोलापन हमेशा ठीक नहीं होता। भोलेपन का फायदा उठाने वालों के साथ अक्खड़पन भी दिखाना ज़रूरी होता है और कर्म की पूर्ति के लिए जुझारूपन भी आवश्यक होता है अत: कवयित्री ने अपने समाज की इन तीन प्रमुख विशेषताओं को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया है।

  1. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

उत्तर:- आदिवासी समाज अपने स्वाभाविक जीवन को भूलता जा रहा है। प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की कुछ ऐसी ही बुराइयों की ओर संकेत करती है –

  1. आदिवासी समाज शहरी प्रभाव में आते चले जा रहे हैं।
  2. इनके जीवन में उत्साह का अभाव और काम के प्रति अरुचि होती जा रही है।
  3. इनमें शराबखोरी के साथ अविश्वास की भावना भी बढ़ती जा रही है।
  4. अपनी भाषा से अलगाव, अशिक्षा और परंपराओं को गलत समझना जैसे दुर्गुण भी आते जा रहे हैं।
  1. इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है से क्या आशय है? उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति से कवयित्री का आशय यह है कि आज के इस अविश्वास भरे दौर में अभी भी आपसी विश्वास, उम्मीद और सपने बचाए जा सकते हैं। इन सभी को सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है जैसे संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका वास्तविक स्वरुप बहाल किया जा सकता है। चाहे वहाँ शहरी प्रभाव बढ़ रहा है पर भाषा, परिवेश और संस्कृति को बचाने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।

6.1 निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए

ठंडी होती दिनचर्या में

जीवन की गर्माहट

उत्तर:- इन पंक्तियों के द्वारा कवयित्री ‘निर्मला पुतुल’ ने आदिवासी समाज की दिनचर्या में आई ठंडक की ओर इशारा किया है। कवयित्री ने दिनचर्या की नीरसता को दूर कर गर्माहट अर्थात उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता की आवश्यकता पर बल दिया है। ये काव्य पंक्तियाँ लाक्षणिक हैं। इनके उपयोग से कविता में एक प्रकार का गांभीर्य आया है क्योंकि कवयित्री ने बहुत कम शब्दों में भी बहुत बड़ी बात कह दी है।

6.2 निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने

आओ मिलकर बचाएँ।

उत्तर:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ‘निर्मला पुतुल’ का आशय यह है कि आज के इस अविश्वास भरे दौर में अभी भी आपसी विश्वास, उम्मीद और सपने बचाए जा सकते हैं। इन सभी को सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है। ‘थोड़ा-सा’, ‘थोड़ी-सी’, ‘थोड़े-से’ तीनों शब्दों के प्रयोग, थोड़े-से अंतर के साथ एक ही अर्थ के वाहक हैं । इनके कारण लय का

समावेश-सा प्रतीत होता है।

उर्दू तत्सम और तद्भव शब्दों का मिला-जुला प्रयोग हुआ है फिर भी भाषा सहज और सुबोध है।

  1. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर:- बस्तियों को शहरों के बनावटीपन, भावहीनता और जड़ता से बचाने की आवश्यकता है। शहरी वातावरण में वेशभूषा, एकाकी जीवन, अलगाव, व्यस्तता आदि के साथ पर्यावरणीय प्रदूषण भी एक बहुत बड़ी समस्या है। यदि बस्तियाँ भी इस प्रभाव को ग्रहण करने लगेंगी तो बस्तियों में सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रदूषण फैल जाएगा। इन्हीं प्रभावों से कवयित्री बस्तियों को बचाना चाहती हैं।

  1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीज़ों को बचाना चाहेंगे? उत्तर:- मैं अपने बस्ती की स्वाभाविक विशेषताओं जैसे हरे-भरे मैदान, सामूहिक उत्सव, आपसी मेलजोल आदि को बचाने का प्रयास करूँगा ताकि मेरा शहर पत्थरों का जंगल न बने, कारखानों का धुआं न हो और न ही पर्यावरण प्रदूषण हो
  1. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

उत्तर:- आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति में शनै-शनै परिवर्तन हो रहा है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षा की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा केंद्र खोले जा रहे हैं। आदिवासी समाज में बेरोजगारी की ओर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इससे वहाँ के लोगों के आर्थिक स्तर पर सुधार आया है। आदिवासी सांस्कृतिक पहचान, कला-कौशल को भी बचाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। अब तो आदिवासी समाज प्रगति के पथ पर बढ़ चला है; इस प्रकार आदिवासी समाज की पहचान को बरकार रखते हुए और उन्हें आधुनिक समाज से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। विशेष बात तो यह है कि अब तो अलग झारखंड राज्य का निर्माण भी हो गया है ।

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