NCERT class 8 sanskrit chapter nitinavneetam नीतिनवनीतम्

NCERT class 8 sanskrit chapter nitinavneetam नीतिनवनीतम्

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥1॥

अन्वय — अभिवादनशीलस्य [नरस्य] नित्यं वृद्धोपसेविनः [च] तस्य चत्वारि आयुः, विद्या, यशः, बलं [च] वर्धन्ते ।

हिंदी अनुवाद – प्रणाम करने वाले मनुष्य की और हमेशा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल चारों [अपने-आप ] बढ़ते हैं।

यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम् ।
न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि ॥2॥1

अन्वय— नृणां सम्भवे यं क्लेशं मातापितरौ सहेते, तस्य [क्लेशस्य ] निष्कृतिः वर्षशतैरपि न कर्तुम् शक्या

हिंदी अनुवाद — मनुष्य के जन्म के समय जो कष्ट माता-पिता सहते हैं, उस कष्ट का निस्तार सौ वर्षो में भी नहीं किया जा सकता । अर्थात् उसका ऋण सौ वर्षों में भी नहीं चुकाया जा सकता।

तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यादाचार्यस्य च सर्वदा ।
तेष्वेव त्रिषु तुष्टेषु तपः सर्व समाप्यते ||3||

अन्वय — नित्यं तयोः [मातापित्रोः] आचार्यस्य च सर्वदा प्रियं कुर्यात् तेषु त्रिषु एव तुष्टेषु [अस्माकं ] सर्वम् तपः समाप्यते ।

हिंदी अनुवाद — हमेशा उन दोनों का [ माता-पिता का] और गुरू का सदा प्रिय [भला] करना चाहिए। उन तीनों के संतुष्ट होने पर हमारी सभी तपस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। अर्थात् हमें सभी तपस्याओं का फल मिल जाता है।

सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ||4||

अन्वय — सर्वम् परवशं दुःखं [ अस्ति], सर्वम् आत्मवशं सुखम् [अस्ति ] | [वयं] समासेन सुखदुःखयो एतत् लक्षणं विद्यात् ।

हिंदी अनुवाद —- सब कुछ दूसरों के वश में होना दुःख है, सब कुछ अपने वश में होना सुख है। हमें संक्षेप में सुख दुःख का यही लक्षण जानना चाहिए ।

यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत् ||5||

अन्वय — यत् कर्म कुर्वतः अस्य अन्तरात्मनः परितोषः स्यात्, तत् [कर्मम्] प्रयत्नेन कुर्वीत, विपरीतं [ कर्मम्] तु वर्जयेत् ।

हिंदी अनुवाद — जिस कार्य को करने से अन्तर आत्मा संतुष्ट हो, उस कार्य को प्रयत्नपूर्वक करना चाहिए। इसके विपरीत [संतुष्ट न होने वाले] कार्य को छोड़ देना चाहिए।

दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् ।
सत्यपूतां वदेद्वाचं मनः पूतं समाचरेत् ||6||

अन्वय — दृष्टिपूतं पादं न्यसेत्, वस्त्रपूतं जलं पिबेत् । सत्यपूतां वाचं वदेत्, मनः पूतं समाचरेत् ।

हिंदी अनुवाद — दृष्टि से पवित्र [अच्छी तरह देखकर] पैर रखना चाहिए, वस्त्र से पवित्र [छानकर ] जल पीना चाहिए। सत्य से पवित्र [सत्य] वाणी बोलनी चाहिए, मन से पवित्र [उत्तम] आचरण करना चाहिए।

पाठ के कुछ कठिन शब्दों के अर्थ

अभिवादनशीलस्य ………..प्रणाम करने के स्वभाव वाले के

वृद्धोपसेविनः ……….. वृद्ध+ उपसेविन: बड़ों की सेवा करने वाले के

क्लेशम् …………………… कष्ट

निष्कृतिः ……………………… निस्तार

कुर्वतः ……………………….. करते हुए का

परितोष: ……………………सन्तोष

अन्तरात्मनः ………………….अन्त रात्मा की

कुर्वीत ………………….करना चाहिए

न्यसेत्………………. रखना चाहिए, रखे

नृणाम्……………….मनुष्यों का

वर्षशतैः…………………सौ वर्षो में

समाप्यते………………समाप्त होता है

समासेन……………….संक्षेप में

विद्यात्……………..जानना चाहिए

सत्यपूताम्………….. सत्य से पवित्र

अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत

[क] पाठेऽस्मिन् सुखदुःखयोः किं लक्षणम् उक्तम् ?

उत्तर – पाठेऽस्मिन् उक्तं यत्- सर्वम् परवशं दुःखम् अस्ति, सर्वम् आत्मवशं च सुखमस्ति ।

[ख] वर्षशतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या ?

उत्तर -. मातापितरौ नृणां सम्भवे यं क्लेशं सहेते तस्य निष्कृतिः वर्षशतैः अपि कर्तुम् न शक्या ।

[ग] “ त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते” वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्ति?

उत्तर – वाक्येऽस्मिन् त्रयः सन्ति- माता, पिता गुरुश्च

[घ] अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्तव्यम् ?

उत्तर -यत् कर्म कुर्वतः आत्मनः परितोषः स्यात्, अस्माभिः तत् कर्म कर्तव्यम् ।

[ङ] अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते ?

उत्तर — अभिवादनशीलस्य आयुः, विद्या, यशः बलं च एतानि चत्वारि वर्धन्ते ।

[च] सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात् ?

उत्तर — मातापितरौ गुरोश्च सर्वदा प्रियं कुर्यात्

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