Mp board solution for class 10 hindi chapter 3 प्रेम और सौन्दर्य

10 HINDI

Mp board solution for class 10 hindi chapter 3 प्रेम और सौन्दर्य

कवि परिचय – हिन्दी की रीतिकालीन रीतिसिद्ध भावधारा के कवि बिहारी का जन्म सन् 1595 ई. (सम्वत् 1652) में ग्वालियर में हुआ था। आपके जन्म के सात-आठ वर्षों बाद आपके पिता केशवराय ग्वालियर छोड़कर ओरछा चले गए। ओरछा में ही आपने सुप्रसिद्ध कवि केशवदास से काव्य शिक्षा ग्रहण की और वहीं पर काव्यग्रन्थों, संस्कृत और प्राकृत आदि का अध्ययन किया। उर्दू-फारसी के अध्ययन के लिए आप आगरा आए, यहीं आपकी भेंट प्रसिद्ध कवि अब्दुल रहीम खानखाना से हुई। आपकी काव्य प्रतिभा ने जयपुर नरेश महाराज जयसिंह तथा उनकी पटरानी अनन्त कुमारी जी को विशेष प्रभावित किया। आप जयपुर नरेश के राजकवि रहे।

आप सन् 1663 ई. (सम्वत् 1720) के आस-पास परलोक वासी हुए। आपकी एक मात्र रचना ‘सतसैया’ (सतसई) मिलती है जिसमें दोहे और सोरठे संग्रहीत हैं।

हिन्दी में समास-पद्धति की शक्ति का परिचय सबसे अधिक बिहारी ने दिया है। आपकी रचना में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और ज्योतिष की असाधारण बातें भी अप्रस्तुत रूप में आई हैं। आपकी विषय सामग्री का प्रधान अंग श्रृंगार है। प्रेम के संयोग पक्ष में नख-शिख वर्णन के साथ ऋतुवर्णन भी आपने किया है। निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित होने के कारण भक्ति विषयक उद्‌गार भी आपकी रचना में देखे जा सकते हैं। आपके दोहों में अनुप्रास, यमक, आदि कई अलंकार भरे पड़े हैं। बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रज है। भाषा में पूर्वी प्रयोग के साथ बुंदेली का भी प्रभाव है। आपकी भाषा प्रौढ़ और प्रांजल है। वह मुहावरों के प्रयोग सांकेतिक शब्दावली और सुष्ठु पदावली से युक्त व्याकरण सम्मत है।

जयशंकर प्रसाद

कवि परिचय – हिंदी के छायावाद युग के प्रवर्तकों में प्रमुख जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी (उ.प्र.)

के प्रतिष्ठित ‘सुंघनी साहू’ नामक समृद्ध एवं विख्यात परिवार में सन् 1889 ई. (माघ शुक्ल दशमी सं. 1946 वि.) को देवी प्रसाद साहू के घर हुआ था। घर पर ही आपकी शिक्षा के लिए हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी के शिक्षक नियुक्त किए गए, आप 48 वर्ष की आयु में यक्ष्मा रोग से 15 नवम्बर सन् 1937 को दिवंगत हुए। प्रसाद जी की काव्य यात्रा सन् 1909 से इंदु पत्रिका में प्रकाशित उनकी ब्रजभाषा और खड़ी बोली # हिंदी की कविताओं से प्रारंभ हुई। ‘चित्राधार’ और ‘कानन कुसुम’ आपके प्रारंभिक स्वतंत्र काव्य संग्रह है। आपकी भावनामूलक आदर्श प्रेमाभिव्यंजना ‘प्रेमपथिक’ और ‘करुणालय’ गीत नाट्य में दृष्टव्य हैं। ‘झरना’, ‘आँसू’ और ‘लहर’ काव्य कृतियों के प्रेमानुभूति के श्रेष्ठ गीतों ने हिंदी को समृद्ध किया। ‘कामायनी’ महाकाव्य सृष्टि की आदि कथा के रूप में मानवता की रूपक कथा है।

प्रसाद जी ने लगभग बारह नाटक भी लिखे, जिनमें प्रमुख ‘स्कंदगुप्त’ ‘चंद्रगुप्त’ और ‘ध्रुव स्वामिनी’ हैं। वे एक युगप्रवर्तक कलाकार भी थे। उनके ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’ ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’ ‘इंद्रजाल’ कहानी संग्रह और ‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ (अपूर्ण) यथार्थवादी उपन्यास हैं।


सौंदर्य बोध

सोहत औढ़ें पीतु पटु, स्याम सलोनैं गात । मनौं नीलमनि – सैल पर, आतपु पौ प्रभात ॥1॥

सखि सोहत गोपाल कै, उर गुंजनु की माल । बाहिर लसत मनौ पिये, दावानल की ज्वाल ॥ 2 ॥

लिखन बैठि जाकी सबी, गहि-गहि गरब गरूर। भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर ॥ 3 ॥

मकराकृति गोपाल कैं, सोहत कुंडल कान । धस्यौ मनौ’ हिय गढ़ समरु ड्योढ़ी लसत निसान ॥ 4 ॥

नीको लसत लिलार पर, टीको जरित जराय । छबिहिं बढ़ावत रवि मनौ, ससि मंडल में आय ॥ 5॥

झीनैं पट मैं झिलमिली, झलकति ओप अपार । सुर तरु की मनु सिंधु में, लसति सपल्लव डार ॥6॥

त्यौं-त्यौं प्यासेई रहत, ज्यौं-ज्यों पियत अघाय। सगुन सलोने रूप की, जु न चख तृषा बुझाय ॥ 7 ॥

तो पर वारौं उरबसी, सुनि राधिके सुजान । तू मोहन कै उर बसी, है उरबसी समान ॥ 8॥

फिरि-फिरि चित उत हीं रहतु, टुटी लाज की लाव। अंग-अंग छवि-झौर में, भयो भौर की नाव ॥ १॥

जहाँ-जहाँ ठाढ़ौ लख्यौ, स्याम सुभग – सिरमौरु । उनहूँ बिन छिन गहि रहतु, दृगनु अौँ वह ठौरु ॥ 10 ॥ – बिहारी

श्रद्धा

“कौन तुम ? संसृति – जलनिधि तीर-तरंगों से फेंकी मणि एक, कर रहे निर्जन का चुपचाप

प्रभा की धारा से अभिषेक ? मधुर विश्रांत और एकांत जगत का सुलझा हुआ रहस्य, एक करुणामय सुंदर मौन और चंचल मन का आलस्य ।”

सुना यह मनु ने मधु गुंजार मधुकरी का-सा जब सानन्द, किए मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यों सुंदर छंद,

एक झिटका-सा लगा सहर्ष, निरखने लगे लुटे-से कौन, गा रहा यह सुंदर संगीत ? कुतूहल रह न सका फिर मौन।

और देखा वह सुंदर दृश्य नयन का इंद्रजाल अभिराम, कुसुम-वैभव में लता समान चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम।

हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लंबी काया उन्मुक्त, मधु-पवन-क्रीड़ित ज्यों शिशु साल, सुशोभित हो सौरभ – संयुक्त,

मसृण, गांधार देश के नील रोम वाले मेषों के चर्म, बैंक रहे थे उसका वपु कांत बन रहा था वह कोमल वर्म।

नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग।

आह, वह मुख ! पश्चिम के व्योम बीच जब घिरतें हो घनश्याम, अरुण रवि- मंडल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम।

या कि, नव इंद्रनील लघु श्रृंग फोड़ कर धधक रही हो कांत, एक लघु ज्वालामुखी अचेत माधवी रजनी में अश्रांत

घिर रहे थे घुँघराले बाल अंस अवलंबित मुख के पास, नील घनशावक-से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास।

और उस मुख पर वह मुसकान! रक्त किसलय पर ले विश्राम अरुण की एक किरण अम्लान अधिक अलसाई हो अभिराम।

नित्य-यौवन छवि से ही दीप्त विश्व की करुण कामना मूर्ति, स्पर्श के आकर्षण से पूर्ण प्रकट करती ज्यों जड़ में स्फूर्ति।

उषा की पहिली लेखा कांत, माधुरी से भींगी भर मोद, मद भरी जैसे उठे सलज्ज भोर की तारक द्युति की गोद।

कुसुम कानन अंचल में मंद-पवन प्रेरित सौरभ साकार, रचित-परमाणु-पराग-शरीर, खड़ा हो, ले मधु का आधार।

और, पड़ती हो उस पर शुभ्र नवल मधु-राका मन की साध, हँसी का मदविह्वल प्रतिबिंब मधुरिमा खेला सदृश अवाध

बोध प्रश्न

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

  1. श्रीकृष्ण के हृदय में किसकी माला शोभा पा रही है ?
  2. गोपाल की आकृति कैसी है ?
  3. श्रद्धा का गायन-स्वर किस तरह का है?
  4. ‘मधुर विश्रांत और एकांत जगत का सुलझा हुआ रहस्य’ यह संबोधन किसके लिए है ?
  5. माथे पर लगे टीके की तुलना किससे की गई है ?

लघु उत्तरीय प्रश्न –

  1. गोपाल के गले में पड़ी गुंजों की माला की तुलना किससे की गई है
  2. श्रीकृष्ण के ललाट पर टीका की समानता किससे की गई है ?
  3. मनु को हर्ष मिश्रित झटका सा क्यों लगा ?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

  1. पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन कीजिए ।
  2. ‘सुरतरु की मनु सिंधु में, लसति सपल्लव डार’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
  3. ‘अरुण रवि मंडल उनको भेद दिखाई देता हो छवि धाम’ का भावार्थ लिखिए ।
  4. अधोलिखित पद्याशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए –

(अ) ‘तो पर वारौं उरबसी वै उरबसी समान।’

(ब) ‘हृदय की अनुकृति’ सौरभ संयुक्त

काव्य सौन्दर्य –

(1) अधोलिखित काव्यांश में अलंकार पहचान कर लिखिए

(अ) ‘धस्यो मनौ हियगढ़ समरु ड्योढ़ी लसत निसान।’

(ब) ‘विश्व की करुण कामना मूर्ति’

) “फिर-फिर चित उत ही रहतु, टुटी लाज की लाव। (2

अंग-अंग छवि झौर मैं, भयो और की नाव ॥” में छंद पहचान कर उसके लक्षण लिखिए।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

join us
Scroll to Top