रामचरितमानस पर निबंध हिंदी में

रामचरितमानस पर निबंध हिंदी में

प्रस्तावना:
भारत एक सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध देश है। यहाँ अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया और धर्म, भक्ति, और सत्य की शिक्षा दी। इन्हीं में एक अद्वितीय स्थान है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ का। यह ग्रंथ केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय समाज की आस्था, संस्कृति और नैतिकता का आदर्श प्रतिबिंब है। यह ग्रंथ न केवल साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि का है, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अनुपम है।


रामचरितमानस की रचना-प्रक्रिया:
‘रामचरितमानस’ का रचना-काल 16वीं शताब्दी है। यह वह समय था जब भारत मुगल शासन के अधीन था। समाज में अव्यवस्था, अंधविश्वास और अधर्म का बोलबाला था। ऐसे समय में तुलसीदास ने श्रीराम के जीवनचरित्र को जनभाषा अवधी में काव्यबद्ध करके उसे जन-जन तक पहुँचाया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने काशी के तुलसीघाट पर बैठकर इस ग्रंथ की रचना की, और इसका आरंभ श्रीरामनवमी के दिन किया।


संरचना और स्वरूप:
‘रामचरितमानस’ को तुलसीदास ने सात कांडों में विभाजित किया है, जिसे ‘मानस के सात सोपान’ कहा जाता है –

  1. बालकांड: श्रीराम के जन्म, बाल्यकाल, ऋषि विश्वामित्र के साथ वनगमन, और सीता स्वयंवर तक की कथा।
  2. अयोध्याकांड: राम के वनवास की घोषणा, कैकेयी का वरदान, भरत की भक्ति, और राम के वन गमन का मार्मिक चित्रण।
  3. अरण्यकांड: वन में राम, लक्ष्मण और सीता का जीवन, शूर्पणखा का प्रसंग और सीता हरण।
  4. किष्किंधाकांड: हनुमान और सुग्रीव से मित्रता, बाली वध और सीता की खोज।
  5. सुंदरकांड: हनुमान का लंका जाना, सीता से मिलना और लंका दहन – यह कांड विशेष रूप से भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है।
  6. लंकाकांड: राम-रावण युद्ध, रावण वध और विजय।
  7. उत्तरकांड: राम का राज्याभिषेक, सीता की अग्नि परीक्षा, लव-कुश जन्म और समाज के प्रति श्रीराम की मर्यादा।

भाषा और शैली:
‘रामचरितमानस’ अवधी भाषा में लिखा गया है, जो उस समय की लोकभाषा थी। इसकी शैली इतनी सरल, सरस और भावपूर्ण है कि इसे पढ़कर आम जनमानस भी आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करता है। इसमें चौपाई, दोहा, सोरठा, कुंडलिया आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास की भाषा में विनम्रता, भक्ति, करुणा और दर्शन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

उदाहरण:

“राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौ चाहसि उजियार॥”

(अर्थ: यदि जीवन में उजाला चाहिए तो अपनी जिह्वा के द्वार पर रामनाम का दीपक रखो।)


मुख्य विषयवस्तु और संदेश:
‘रामचरितमानस’ में राम को केवल एक राजा या योद्धा नहीं, बल्कि ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सत्य, भक्ति, सेवा, त्याग और प्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया।

  • पिता की आज्ञा के लिए राजपाट त्याग देना
  • भाई लक्ष्मण का अनुकरणीय प्रेम
  • पत्नी सीता का पतिव्रत धर्म
  • हनुमान की निष्काम भक्ति
  • विभीषण की नीति और धर्मनिष्ठा

इन सभी चरित्रों के माध्यम से तुलसीदास ने समाज को नैतिकता, धर्म, भक्ति और कर्तव्यबोध की शिक्षा दी है।


धार्मिक और सामाजिक प्रभाव:
‘रामचरितमानस’ का प्रभाव केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने भारतीय समाज के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  • घर-घर में ‘रामचरितमानस’ का पाठ होता है
  • ‘रामलीला’ और ‘सुंदरकांड पाठ’ इसके जीवंत उदाहरण हैं
  • सामाजिक समरसता और धर्म के प्रचार में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है
  • स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, सभी इसके संदेशों से प्रभावित होते हैं

सांस्कृतिक महत्व:
‘रामचरितमानस’ हिंदी समाज की आत्मा बन चुका है। भारत के कोने-कोने में यह श्रद्धा और भक्ति से पढ़ा जाता है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता की सांस्कृतिक रीढ़ है।


उपसंहार:
‘रामचरितमानस’ न केवल गोस्वामी तुलसीदास की अद्वितीय काव्यकला का परिचायक है, बल्कि यह भारतीय जनमानस की आत्मा का दर्पण भी है। इस ग्रंथ ने हजारों वर्षों से समाज को धर्म, भक्ति, नीति, मर्यादा और मानवता का मार्ग दिखाया है। आज जब समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है, ‘रामचरितमानस’ एक दीपक के समान है जो अंधकार में प्रकाश फैलाने का कार्य करता है।

अतः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ‘रामचरितमानस’ न केवल हिंदी साहित्य की अनुपम धरोहर है, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य उपहार है।


अगर आप चाहें तो मैं इसमें उद्धरणों, श्लोकों या तुलसीदास के जीवन से जुड़े अंश और जोड़ सकता हूँ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

join us
Scroll to Top