UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 5 ध्रुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 5 ध्रुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)

ध्रुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)


लेखक पर आधारित प्रश्न

1 — जैनेन्द्र कुमार का जीवन परिचय देते हुए इनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर— लेखक परिचय- जैनेन्द्र कुमार का जन्म 2 जनवरी सन् 1905 ई० को जिला अलीगढ़ के कोड़ियागंज गाँव में हुआ था ।। अल्पायु में ही ये पिता की छत्रछाया से वंचित हो गए; अत: इनकी माता तथा नाना ने इनका पालन-पोषण किया ।। बचपन में इनका नाम आनन्दी लाल था ।। हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल ‘ऋषि ब्रह्मचर्य’ से इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की ।। पंजाब से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने उच्च शिक्षा के लिए ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ में प्रवेश लिया ।। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए ‘असहयोग-आन्दोलन’ में इनका सकारात्मक योगदान रहा और इसी कारण इनकी शिक्षा का क्रम टूट गया ।। इन्होंने साहित्य के विविध क्षेत्रों में अपना योगदान दिया ।। कहानीकार व उपन्यासकार के रूप में इनको विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई ।। गाँधी जी से प्रभावित होने के कारण ये अहिंसावादी व गाँधीवादी दर्शन के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं ।। इन्होंने कुछ राजनीतिक पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया, जिस कारण इनको जेल जाना पड़ा ।। जेल में ही स्वाध्याय करते हुए ये साहित्यसृजन में संलग्न रहे ।। 24 दिसम्बर, सन् 1988 ई० को इनका स्वर्गवास हो गया ।। कृतियाँ- जैनेन्द्र जी की कृतियाँ इस प्रकार हैं
कहानी- ‘खेल’ (सन् 1928 ई० में ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित पहली कहानी) ।। फाँसी, नीलम देश की राजकन्या, जयसन्धि, वातायन, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब, ध्रुवयात्रा, जाह्नवी, अपना-अपना भाग्य, ग्रामोफोन का रिकार्ड, मास्टर साहब, पानवाला ।।

उपन्यास- त्यागपत्र, सुखदा, जहाज का पंछी, व्यतीत, सुनीता, कल्याणी, विवर्त,परख, मुक्तिबोध, जयवर्तन ।।
निबन्ध- सोच-विचार, पूर्वोदय, जड़ की बात, साहित्य का श्रेय और प्रेय, परिवार, प्रस्तुत प्रश्न, मन्थन, काम-क्रोध, विचारवल्लरी, साहित्य-संचय ।। संस्मरण- ये और वे ।।

अनुवाद- पाप और प्रकाश (नाटक), मन्दाकिनी(नाटक) तथा प्रेम में भगवान’ कहानी-संग्रह का इन्होंने हिन्दी में अनुवाद किया ।। इनके प्रथम उपन्यास ‘परख’ पर साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें पाँच सौ रुपये के पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।।

2 — जैनेन्द्र कुमार को कथा-शिल्प एवं शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उ०– कथा-शिल्प एवं शैली- जैनेन्द्र की कहानी-कला चरित्र की निष्ठा तथा संवेदना के व्यापक धरातल पर विकसित हुई है ।। इनकी कहानियाँ दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक हैं ।। कहानियों में इनके प्रौढ़ चिन्तन एवं बौद्धिक सघनता का समावेश हुआ है ।। इनके कथानक मुख्य रूप से संवेदना पर आधारित हैं तथा पाठक के अन्तःस्थल को स्पर्श करते हुए गतिशील होते हैं ।। इनकी कहानियाँ मनोविश्लेषणात्मक तथा जीवन-दर्शनपरक हैं ।। फलतः उनमें विस्तार की अपेक्षा गहनता है ।। इनके अधिकतर कथानक स्पष्ट एवं सूक्ष्म हैं ।। इन्होंने कथावस्तु के विकास में सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा तथा मानवीय आदर्शों की स्थापना को महत्व दिया है ।। इन्होंने चरित्र-चित्रण पर विशेष बल दिया है तथा विविध प्रकार के चरित्रों की सृष्टि की है ।। मनोविश्लेषण के माध्यम से इन्होंने पात्रों के आन्तरिक द्वन्द्वों तथा उनकी मानसिक उलझनों को व्यक्त किया है ।। इनके पात्र प्रायः अन्तर्मुखी हैं ।। ये विशिष्ट पात्रों को विशिष्ट व्यक्तित्व देने में सफल रहे हैं ।। दूसरे प्रकार के पात्र वर्ग-प्रतिनिधि हैं; जो प्रायः सामान्य कोटि में आते हैं ।। जैनेन्द्र की शैली के विविध रूप हैं, जिनमें दृष्टान्त, वार्ता तथा कथा-शैली प्रमुख हैं ।। नाटकीय एवं स्वगत-भाषण शैलियों का प्रयोग भी अनेक कहानियों में हुआ है ।। कहानियों की भाषा भावपूर्ण, चित्रात्मक एवं सशक्त है ।। यथोचित्त शब्द-रचना तथा भावानुकूल शब्द-चयन इनकी भाषा-शैली की उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं ।। जैनेन्द्र की कहानियों में संवादों की सीमित व्याख्या हुई है, तथापि उनके संवाद मानव-चरित्र का विश्लेषण करते हुए पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं एवं उनकी मानसिक स्थितियों का उजागर करते हैं ।। इनकी कहानियों में निश्चित लक्ष्य होता है तथा उनमें चिन्तन की गहराई के अतिरिक्त अनुभूति की व्यंजना एवं आदर्श की प्रतिष्ठा का प्रयत्न रहता है ।। इन्होंने व्यक्ति के जीवन के आन्तरिक पक्षों, उसके रहस्यों एवं उसकी उत्कृष्टताओं को दार्शनिक दृष्टिकोण के आधार पर उभारने का प्रयत्न किया है ।। प्रेमचन्दोत्तर युगीन इस कहानीकार का नाम हिन्दी साहित्य जगत में सदैव अमर रहेगा ।।

1 — ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर— राजा रिपुदमन उत्तरी ध्रुव की यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण करके लौटते समय यूरोप के नगरों में जहाँ-जहाँ रुके, वहाँ उनका भरपूर सम्मान हुआ ।। अखबार में यह खबर प्रकाशित हुई ।। उर्मिला ने अखबार में यह खबर पढ़ी और प्रसन्न मन से सोते हुए शिशु को प्यार किया ।। कई दिन तक ध्रुवयात्रा की खबर अखबारों में छपती रही और उर्मिला उसे पढ़ती रही ।। अब रिपुदमन मुम्बई पहुँचे, तब वहाँ भी उनका खूब स्वागत-सत्कार हुआ ।। शिष्ट मण्डल द्वारा अनुरोध किये जाने पर वे दिल्ली आए ।। सभी से प्रेमपूर्वक मिले ।। ऐसा प्रतीत हुआ कि उन्हें प्रदर्शनों में उल्लास नहीं है ।। राजा रिपुदमन नींद कम आने के कारण परेशान हैं, इसलिए वे स्वयं को एकाग्र नहीं कर पाते हैं ।। एक संवाददाता ने उनके विषय में लिखा है कि जब मैं उनसे मिला तो ऐसा लगा कि वे यहाँ न हो, कहीं दूर हों ।। उर्मिला ने यह पढ़कर अखबार अलग रख दिया ।। रिपुदमन ने यूरोप में आचार्य मारुति की ख्याति सुनी थी किन्तु वे उन्हें जानते नहीं थे ।। अवसर मिलने पर वे आचार्य मारुति के पास पहुँचे ।। मारुति ने कहा- “वैद्य के पास रोगी आते हैं, विजेता नहीं ।। ‘ रिपुदमन ने कहा- “मुझे नींद नहीं आती है, मन पर मेरा काबू नहीं रहता है ।। ‘ रिपुदमन आचार्य मारुति के साथ बातचीत करते हैं ।। रिपुदमन प्रेम से इन्कार नहीं करते हैं लेकिन विवाह को वह बन्धन मानते हैं ।। राजा रिपुदमन अपनी प्रेमिका उर्मिला (जो उसके बेटे की माँ है से सिनेमा हॉल में मिलते हैं ।। उर्मिला उनके बेटे की माँ है, यह बात उन दोनों के अतिरिक्त तीसरा कोई भी नहीं जानता है ।। बातचीत के दौरान रिपुदमन बच्चे का नाम माधवेन्द्र बहादुर रखता है ।। उर्मिला कहती है कि तुम अपना कार्य पूर्ण किये बिना ही क्यों लौट आए?) तुम्हें मेरी और मेरे बच्चे की चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है ।। राजा रिपुदमन कहते हैं- मैं केवल तुम्हारा हूँ, तुम जो कहोगी, वही करूँगा ।। क्या तुम अब भी नाराज हो ।।

उर्मिला कहती है- मुझे तुम पर गर्व है ।। तुम्हें दक्षिण ध्रुव पर विजय प्राप्त करनी है, तुम्हें जाना ही होगा ।। यदि मेरे कारण तुम नहीं जाओगे, तो मैं स्वयं को क्षमा नहीं कर पाऊँगी ।। वह आचार्य मारुति को ढोंगी मानती है लेकिन रिपुदमन के कहने पर वह उसके पास जाती है, परन्तु उसके कहने पर विवाह के लिए तैयार नहीं होती है ।। मारुति रिपुदमन को बताते हैं कि उर्मिला उनकी सगी पुत्री है ।। उसे विवाह करके उसके साथ रहना चाहिये ।। रिपुदमन भी यही चाहते थे लेकिन उर्मिला के हठ के कारण वह तीसरे दिन दक्षिणी धुव्र जाने के लिए अमेरिका फोन पर बात करते हैं तो ज्ञात होता है कि परसो शाटलैण्ड द्वीप के लिए जहाज पूरा हो गया है ।। उर्मिला उन्हें कुछ दिन रुकने के लिए कहती है परन्तु वह नहीं मानते हैं ।। ध्रुवयात्रा के लिए चल देते हैं ।। उसकी खबरें अखबार में छपती हैं ।। उर्मिला अखबार पढ़ती रही ।। समय बीतता रहा ।। टेलीफोन भी उसने पास ही रख लिया था ।। पर अखबार के अतिरिक्त कोई बात उसे ज्ञात नहीं हुई ।। तीसरे दिन उर्मिला ने अखबार उठाया ।। सुर्खा है और बॉक्स में खबर है ।। राजा रिपुदमन सवेरे खून में भरे पाए गये ।। गोली का कनपटी के आर-आर निशान है ।। अखबार में दूसरी सूचनाएँ भी थीं ।। उर्मिला पढ़ती गई ।। रिपुदमन के सम्मान में सभाएँ हुई, राष्ट्रपति के भोज का भी पूरा विवरण था ।। उर्मिला एक भी अक्षर नहीं छोड़ सकी ।। दोपहर बीत जाने पर नौकरानी ने कहा- खाना तैयार है ।। तब उर्मिला कहती है कि मैं भी तैयार हूँ, खाना यहीं ले आओ, प्लेट्स इसी अखबार पर रख दो ।। उसी दिन अखबारों के एक खास अंक में यह खबर प्रकाशित हुई कि मृत व्यक्ति के तकिये के नीचे से मिला उसका पत्र नीचे दिया जा रहा है ।। जिस पर आशय था- यह यात्रा निजी थी ।। किसी के वचन को पूरा करने जा रहा था ।। ध्रुव पर भी बचना नहीं था ।। , अब भी नहीं बनूंगा ।। मुझे संतोष है कि किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ ।। मैं पूरे होश-हवाश में अपना काम तमाम कर रहा हूँ ।। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करें ।।

2 — श्रेष्ठ कहानी की विशेषताएँ बताते हुए ध्रुवयात्रा’कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर— जैनेन्द्र कुमार महान् कथाकार हैं ।। ये व्यक्तिवादी दृष्टि से पात्रों का मनोविश्लेषण करने में कुशल हैं ।। प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रगामी लेखक होते हुए भी इन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को नवीन शिल्प प्रदान किया ।। ‘ध्रुवयात्रा’ जैनेन्द्र कुमार की सामाजिक, मनोविश्लेषणात्मक, यथार्थवादी रचना है ।। कहानी-कला के तत्त्वों के आधार पर इस कहानी की समीक्षा निम्नवत् है

(i) शीर्षक– कहानी का शीर्षक आकर्षक और जिज्ञासापूर्ण है ।। सार्थकता तथा सरलता इस शीर्षक की विशेषता है ।। कहानी का
शीर्षक अपने में कहानी के सम्पूर्ण भाव को समेटे हुए है तथा प्रारम्भ से अन्त तक कहानी इसी ध्रुवयात्रा पर ही टिकी है ।। कहानी का प्रारम्भ नायक के ध्रुवयात्रा से आगमन पर होता है और कहानी का समापन भी ध्रुवयात्रा के प्रारम्भ के पूर्व ही नायक के समापन के साथ होता है ।। अत: कहानी का शीर्षक स्वयं में पूर्ण समीचीन है ।।
(ii) कथानक– श्रेष्ठ कथाकार के रूप में स्थापित जैनेन्द्र कुमार जी ने अपनी कहानियों को कहानी-कला की दृष्टि से आधुनिक रूप प्रदान किया है ।। ये अपनी कहानियों में मानवीय गुणों; यथा- प्रेम, सत्य तथा करुणा को आदर्श रूप में स्थापित करते हैं ।।
इस कहानी की कथावस्तु का आरम्भ राजा रिपुदमन की ध्रुवयात्रा से वापस लौटने से प्रारम्भ होता है ।। कथानक का विकास रिपुदमन और आचार्य के वार्तालाप, तत्पश्चात् रिपुदमन और उसकी अविवाहिता प्रेमिका उर्मिला के वार्तालाप और उर्मिला तथा आचार्य मारुति के मध्य हुए वार्तालाप से होता है ।। कहानी के मध्य में ही यह स्पष्ट होता है कि उर्मिला ही मारुति की पुत्री है ।। कहानी का अन्त और चरमोत्कर्ष राजा रिपुदमन द्वारा आत्मघात किये जाने से होता है ।। वस्तुत: कहानी में कहानीकार ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कृष्ट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है तथा प्रेम को नारी से बिल्कुल अलग और सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है ।। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा एवं नैतिकता के प्रति पूर्णरूपेण सतर्क दिखाई पड़ता है ।। और जिसकी पूर्ण परिणति के लिए वह अपना जीवन अर्पण करने से भी नहीं डरता ।। कहानी मनोवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से भी ओत-प्रोत है और संवेदना प्रधान होने के कारण पाठक के अन्तःस्थल पर अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा एक अत्युत्कृष्ट कहानी है ।।

(iii) पात्र तथा चरित्र-चित्रण– जैनेन्द्र कुमार जी की प्रस्तुत कहानी में मात्र तीन पात्र हैं- राजा रिपुदमन, रिपुदमन की प्रेमिका उर्मिला और उर्मिला के पिता आचार्य मारुति ।। तीनों ही एक-दूसरे से पूर्णतया सम्बद्ध और तीनों ही मुख्य एवं समस्तरीय हैं ।। जैनेन्द्र जी की कहानियों के पात्र हाड़-मांस से निर्मित सामान्य मनुष्य होते हैं, जिनमें बुराईयों के साथ-साथ अच्छाइयाँ भी विद्यमान होती हैं ।। इनके पात्र अन्तर्मुखी होते हैं, जो सामान्य एवं विशिष्ट दोनों ही परिस्थितियों में अपना विशिष्ट परिचय प्रस्तुत करते हैं ।। प्रस्तुत कहानी के पात्र भी ऐसे ही हैं, जिनमें से एक जीवन की परिस्थितियों से असन्तुष्ट हो विद्रोही बन जाता है, दूसरा क्षणिक विद्रोही हो आत्म-त्यागी हो जाता है और तीसरा अन्ततोगत्वा समझौतावादी हो जाता है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कहानी के पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिकता से युक्त है ।।

(iv) कथोपकथन या सवांद-योजना– कहानी के संवाद छोटे, पात्रानुकूल तथा कथा के विकास में सहायक हैं ।। जैनेन्द्र जी अपने पात्रों के मनोभावों को सरलता से व्यक्त करने में सफल हुए हैं ।। लगभग पूरी कहानी ही संवादों पर आधारित है, अतः संवाद-योजना की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ कहानी है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य है
दूर जमुना किनारे पहुँचकर राजा ने कहा,
“अब कहो, मुझे क्या कहती हो?”
“कहती हूँ कि तुम क्यों अपना काम बीच में छोड़कर आए?”
“मेरा काम क्या है?”
“मेरी और मेरे बच्चे की चिन्ता जरूर तुम्हारा काम नहीं है ।। मैंने कितनी बार तुमसे कहा, तुम उससे ज्यादा के लिए हो?”
“उर्मिला,अब भी मुझसे नाराज हो?” “नहीं, तुम पर गर्वित हूँ ।। “
“मैंने तुम्हारा घर छुड़ाया ।। सब में रुसवा किया ।। इज्जत ली ।। तुमको अकेला छोड़ दिया ।। उर्मिला, मुझे जो कहा जाए, थोड़ा ।।
पर अब बताओ, मुझे क्या करने को कहती हो? मैं तुम्हारा हूँ ।। रियासत का हूँ,न ध्रुव का हूँ ।। मैं बस,तुम्हारा हूँ ।। अब कहो ।। “

(v) देश-काल तथा वातावरण– प्रस्तुत कहानी सन् 1960 के आस-पास की है ।। तत्कालीन सामाजिक वातावरण के अनुरूप
ही जैनेन्द्र जी ने कहानी के पात्रों तथा उनके व्यवहार को प्रदर्शित किया है ।। कहानी का वातावरण सजीव है ।। प्रस्तुत कहानी में जीवन्त वातावरण की पृष्ठभूमि पर मानवीय प्रेम और संवेदना के मर्मस्पर्शी चित्र उकेरे गये हैं, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है ।। एक उदाहरण देखिएसमय सब पर बह जाता है और अखबार कल को पीछे छोड़ आज पर चलते हैं ।। राजा रिपु नएपन से जल्दी छूट गए ।। ऐसे समय सिनेमा के एक बॉक्स में उर्मिला से उन्होंने भेंट की ।। उर्मिला बच्चे को साथ लाई थी ।। राजा सिनेमा के द्वार पर उसे मिले और बच्चे को गोद में लेना चाहा ।। उर्मिला ने जैसे यह नहीं देखा और अपने कन्धे से उसे लगाए वह उनके साथ जीने पर चढ़ती चली गई बॉक्स में आकर सफलतापूर्वक उन्होंने बिजली का पंखा खोल दिया ।। पूछा, ‘कुछ मँगाऊँ?”नहीं!’

(vi) भाषा शैली-अपनी कहानियों में जैनेन्द्र जी सरल, स्वाभाविक और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करते हैं, जिसमे संस्कृत के तत्सम, उर्दू, अंग्रेजी तथा देशज शब्दों का भी प्रचुरता से प्रयोग करते हैं ।। इसी कारण इनकी भाषा सहज, बोधगम्य एवं भावपूर्ण हो जाती है ।। इनके शब्द-चयन भावों के अनकूल होते हैं तथा शब्दों की रचना पात्रों की भूमिका को साकार कर देती है ।। प्रस्तुत कहानी की भाषा की भी ये ही विशेषताएँ हैं ।। इस कहानी में इन्होंने मुख्य रूप से कथा शैली को अपनाया है, जिसमें वार्ता शैली का प्राचुर्य तथा दुष्टान्त शैली का अल्पांश दृष्टिगोचर होता है ।। इनकी भाषा-शैली का एक उदाहरण निम्नवत् हैप्रेम से तो नाराज नहीं हो? विवाह का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं हैं ।। प्रेम के निमित्त से उसकी सृष्टि है ।। विवाह की बात तो दुकानदारी की है ।। सच्चाई की बात प्रेम है ।। इस बारे में तुम अपने से बात करके देखो ।। वह बात डायरी में दर्ज कीजिएगा ।। अब परसों मिलेंगे ।। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि भाषा-शैली की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है ।।

(vii) उद्देश्य– प्रस्तुत कहानी में कहानीकार जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बन्धन है और विवाह एक सामाजिक बन्धन ।। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता ।। प्रेम की भावना व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करती है ।। उर्मिला कहती है, “हाँ, स्त्री रो रही है, प्रेमिका प्रसन्न है ।। स्त्री कीमत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनूँगी ।। दोनों जने प्रेम की सुनेंगे ।। प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता ।। ” निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है ।।

3 — ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के शीर्षक की उपयुक्तता पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर— ‘ध्रुवयात्रा’ शीर्षक की दृष्टि से एक उच्चस्तरीय कथा है, जिसमें पात्रों का चयन भी जैनेन्द्र ने उच्चकुलीन वर्ग से किया है निःसन्देह ध्रुवयात्रा जनसामान्य की सोच के परे की बात है ।। प्रत्येक पात्र ध्रुवयात्रा की पूर्णता में ही अपने जीवन को सफल मानता है ।। कहानी के कथानक का आरम्भ और अन्त ध्रुवयात्रा के सन्दर्भ के साथ ही होता है ।। कहानी के नायक और नायिका दोनों ही ध्रुवयात्रा को अपने प्रेम की पराकाष्ठा और कसौटी मानते हैं; जिस पर दोनों अपने को प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं ।। यद्यपि शीर्षक प्रतीकात्मक है, तथापि सब प्रकार से सार्थक और कहानी के कथानक के उपयुक्त है ।।


4 —– ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर उर्मिला का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।
उत्तर— ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर उर्मिला के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं
(i) सुसंस्कारित युवती- प्रस्तुत कहानी की नायिका उर्मिला’ एक सुसंस्कारित युवती है ।। उसे बचपन में अपनी माता द्वारा अच्छे संस्कार प्राप्त हुए हैं ।। इसीलिए वह राजा रिपुदमन को अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख होने के लिए प्रेरित करती रहती है ।।
(ii) सच्ची प्रेमिका- अपनी युवावस्था में उर्मिला रिपुदमन के प्रेमपाश में बद्ध हो जाती है ।। उस समय रिपुदमन किन्हीं सामाजिक कारणों से विवाह करने से मना कर देता है ।। बाद में जब उसे पता चलता है कि वह माँ बनने वाली है तो वह उससे विवाह के लिए कहता है, तब वह इनकार कर देती है और कहती है कि “मुझे तुमसे प्रेम है ।। प्रेम और विवाह में अन्तर होता है ।। प्रेम पवित्रतायुक्त होता है और विवाह स्वार्थयुक्त ।। ” अत: वह उसकी सच्ची प्रेमिका ही बने रहना चाहती है, स्त्री नहीं ।।

(iii) स्वतन्त्र विचारों वाली- उर्मिला स्वतन्त्र और स्पष्ट विचारों वाली युवती है ।। रिपुदमन के पूछने पर कि क्या वह विवाह करना नहीं चाहती ।। वह विवाह के लिए स्पष्ट मना कर देती है ।। वह रिपुदमन से कहती है कि “तुम्हारा शरीर स्वस्थ है और रक्त उष्ण है,तो स्त्रियों की कहीं कमी नहीं है ।। मैं तुम्हारे लिए स्त्री नहीं हूँ,प्रेमिका हूँ ।। इसलिए किसी स्त्री के प्रति मैं तुममें निषेध नहीं चाह सकती ।। ” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वह वर्तमान युग में प्रचलित ‘स्त्री-पुरुष के साथ-साथ रहने’ की उत्कृष्ट विचारधारा की पोषक है ।।


(iv) दार्शनिक विचारों से युक्त– उर्मिला शिक्षित, स्वतन्त्र और स्पष्ट विचारों वाली युवती तो है ही, कहानी के पढ़ने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि उसके विचारों में दार्शनिकता की विद्यमानता भी है ।। उसके विचार कभी भी पिछले स्तर पर प्रकट नहीं होते, उनमें दार्शनिकता का गम्भीर स्वर गुंजित होता है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य है’उर्मिला, सिद्धि मृत्यु से पहले कहाँ है?’ ‘वह मृत्यु के भी पार है, राजा! इससे मुझ तक लौटने की आशा लेकर तुम नहीं आओगे ।। सौभाग्य का क्षण मेरे लिए शाश्वत है ।। उसका पुनरार्वतन कैसा?’ ‘उर्मिला, तो मुझे जाना ही होगा? तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानेगा?’ ‘यह क्या कहते हो, राजा! मैं तुम्हें पाने के लिए भेजती हूँ, और तुम मुझे पाने के लिए जाते हो ।। यही तो मिलने की राह है ।। तुम भूलते क्यों हो?

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(v) ज्ञानवान्– उर्मिला अच्छे संस्कारों में पालित-पोषित हुई ज्ञानवान् स्त्री है ।। उसके बोलने मात्र से ही उसका यह गुण स्पष्ट हो जाता है ।। वह प्रेमिका और स्त्री के कर्त्तव्य को अलग-अलग मानती है ।। वह कहती है कि “शास्त्र से स्त्री को नहीं जाना जा सकता ।। स्त्री को मात्र प्रेम से जाना जा सकता है ।। “
(vi) पितृ स्नेही– उर्मिला के मन में अपने पिता के प्रति अपार स्नेह है ।। वह नहीं जानती कि उसका पिता कौन है? कहानी के उत्तरार्द्ध में आचार्य मारुति यह स्पष्ट करते हैं कि वे ही उसके पिता है, तब वह स्तब्ध होकर उनको देखती रह जाती है और यह कहती हुई चली जाती है कि मुझ हतभागिन को भूल जाइएगा ।।
(vii) मातृभाव से युक्त– उर्मिला ने यद्यपि बिना वैवाहिक जीवन में प्रवेश किये ही पुत्र प्राप्त किया है, तथापि उसमें मातृभाव की कमी कदापि नहीं है ।। वह रिपुदमन से कहती है, “मेरे लिए क्या यही गौरव कम है कि मैं तुम्हारे पुत्र की माँ हूँ ।। .. — दुनिया को भी जताने की जरूरत नहीं है कि मेरा बालक तुम्हारा है ।। मेरा जानना मेरे गर्व को काफी है ।। “
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उर्मिला ही इस कहानी के सर्व प्रमुख पात्र और नायिका के रूप में नायक है ।। कहानीकार को अपनी कल्पना में किसी स्त्री को जिन-जिन गुणों का होना अभीष्ट प्रतीत हुआ वे सभी गुण उसने प्रस्तुत कहानी की नायिका में समाविष्ट कर उसके चरित्र को अतीव गरिमा प्रदान की है ।।

5 — ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी की सबसे मर्मान्तक घटना कौन-सी है?
उत्तर— ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी की सबसे मर्मान्तक घटना राजा रिपुदमन की मृत्यु की घटना है ।। जब उर्मिला को अखबारों के माध्यम से रिपुदमन की मृत्यु की खबर मिलती है तो वह अखबार में लिखा पूर्ण वितरण पढ़ती है ।। जिसमें राजा रिपुदमन द्वारा लिखित पत्र भी छपा होता है, जिसमें वह ध्रुवयात्रा को अपनी निजी यात्रा बताते हैं तथा किसी से (उर्मिला) मिले आदेश और उसे दिए वचन को पूरा न कर पाने पर खेद व्यक्त करते है ।। वह यह भी लिखते हैं कि वे पूरे-होशो हवास में अपना जीवन समाप्त कर रहे है ।। दोपहर होने पर जब नौकरानी उर्मिला से कहती है कि भोजन तैयार है, तो वह कहती हैं कि मैं भी तैयार हूँ ।। प्लेटस इसी अखबार पर रख दो ।। राजा रिपुदमन की मृत्यु के बाद उर्मिला की मनोस्थिति का सशक्त चित्रण लेखक ने यहाँ किया है ।। जो प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है ।।

6 — ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का उद्देश्य- उद्देश्य कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ का मूल उद्देश्य प्रेम की पवित्रता और पराकाष्ठा की विवेचना एवं वचन-पालन के महत्त्व को प्रतिष्ठित करना है ।। कहानीकार के अनुसार वैयक्तिक सुखों की अपेक्षा सार्वभौमिक और अलौकिक उपलब्धि श्रेयस्कर है ।।
निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी तत्त्वों की दृष्टि से एक सफल मनोवैज्ञानिक कहानी है ।।

7 — ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर रिपुदमन का चरित्र-चित्रण कीजिए ।।
उत्तर— ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर रिपुदमन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं ।।
(i) ध्रुव विजेता– राजा रिपुदमन बहादुर ने उत्तरी ध्रुव को जीता था ।। उन्होंने उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त करने जैसा मुश्किल कार्य किया था ।। यह कार्य उन्होंने उर्मिला की प्रेरणा से किया था ।। वह उर्मिला से कहता है “उर्मिला, तुमने मुझे ध्रुव भेजा कहती थी- उसके बाद मुझे दक्षिणी ध्रुव जाना होगा ।। क्या सच मुझे वहीं जाना होगा?”


(ii) उच्चवर्गीय व प्रतिष्ठित व्यक्ति- राजा रिपुदमन एक उच्चवर्गीय व्यक्ति थे ।। वह एक रियासत के राजा थे ।। ध्रुव पर विजय प्राप्त करने पर वह प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए थे ।। प्रत्येक स्थान पर जहाँ भी वे गये थे उनका आदर-सत्कार किया गया था ।। उनके सम्मान में समारोह तथा भोज आयोजित किए गए थे ।।


(iii) सच्चा प्रेमी-रिपुदमन उर्मिला से सच्चा प्रेम करता है ।। उर्मिला के कहने पर ही वह उत्तरी ध्रुव पर जाता है ।। रिपुदमन ध्रुव, से आने के बाद उर्मिला से विवाह करना चाहता है ।। वह उर्मिला से कहता है, “मैंने तुम्हारा घर छुड़ाया ।। सब में रुसवा किया ।। इज्जत ली ।। तुमको अकेला छोड़ दिया ।। उर्मिला मुझे जो कहो थोड़ा ।। पर अब बताओ, मुझे क्या करने को कहती हो? मैं तुम्हारा हूँ ।। रियासत का हूँ, न ध्रुव का हूँ ।। मैं बस, तुम्हारा हूँ ।। अब कहो ।। “

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(iv) अप्रसन्न व्यक्तित्व– राजा रिपुदमन को स्वयं से बहुत-सी शिकायतें थी ।। वह स्वयं से अप्रसन्न था ।। उसे नींद कम आती थी ।। उसे अपने मन पर काबू नहीं था ।। इसलिए वह आचार्य मारुति के पास गया ।। जब आचार्य मारुति उसके आने का कारण पूछते है तो वह कहता है”रोगी ही आपके पास आया है ।। विजेता छल है और उस दुनिया के छल को दुनिया के लिए छोड़िए ।। पर आप तो जानते हैं ।। “
आचार्य-“हाँचेहरे पर आपके विजय नहीं पराजय देखता हूँ ।। शिकायत क्या है?”
रिपु- “मैं खुद नहीं जानता ।। मुझे नींद नहीं आती ।। और मन पर मेरा काबू नहीं जमता ।। ” ।।
आचार्य- “हूँ, क्या होता है?” रिपु-“जो नहीं चाहता, मन के अन्दर वह सब कुछ हुआ करता है ।। “


(v) हठधर्मी– राजा रिपुदमन हठधर्मी है ।। जब उर्मिला उसे दक्षिण ध्रुव जाने को कहती है तो वह तुरंत जाने का विचार कर लेता है और उर्मिला के इतनी जल्दी जाने से रोकने पर भी वह नहीं मानता और उससे कहता है”मैं स्त्री की बात नहीं सुनूँगा; मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है ।। ” आँखों में आँसू लाकर उर्मिला ने रिपु के दोनों हाथ पकड़कर कहा, “परसो नहीं जाओगे तो कुछ हर्ज है? यह तो बहुत जल्दी है?” रिपु हाथ झटककर खड़ा हो गया ।। बोला, “मेरे लिए रुकना नहीं है ।। परसों तक इसी प्रायश्चित में रहना है कि तब तक क्यों रुक रहा हूँ ।। ” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रिपुदमन कहानी का प्रमुख पुरुष पात्र है ।। सम्पूर्ण कथानक उसी के चारों तरफ घूमती है ।। कहानीकार ने एक श्रेष्ठ प्रेमी के सभी गुण उसमें समाहित किए हैं ।। जिससे उसका चरित्र गौरवमयी हो गया है |


प्रश्न—- “कहानी का अन्त बिच्छ के डंक के समान होना चाहिए, जिसे पढ़कर पाठक तिलमिला जाए ।। ” कथन को दृष्टिगत रखते हुए ध्रुवयात्रा’ कहानी के अन्त की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर— ध्रुवयात्रा कहानी का अन्त पाठकों के लिए अनापेक्षित है ।। कहानी में उर्मिला-रिपुदमन की वार्ता के बाद ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कहानी का अंत रिपुदमन की मृत्यु से होगा ।। रिपुदमन द्वारा गोली मारकर की गई आत्महत्या पाठकों के लिए एक आश्चर्य है ।। कहानीकार इस कहानी का अन्त दूसरी प्रकार से कर सकते थे, परन्तु इस प्रकार का अन्त करके उन्होंने पाठकों को आश्चर्यचकित कर दिया है ।। रिपुदमन जो एक रियासत का राजा तथा ध्रुव विजेता था वह अपनी-जीवन-लीला का अन्त इस प्रकार करेगा यह पाठकों ने नहीं सोचा होगा ।। पाठकों ने आशा की होगी की कहानी का अंत रिपुदमन के दक्षिणी ध्रुव विजय तथा उर्मिला और उसके विवाह से होगा ।। परंतु कहानी का अन्त वास्तव में बिच्छू के डंक से समान था जिसे पढ़कर पाठक तिलमिला गए ।।

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