UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 8 विविधा (सेनापति, देव, घनानन्द) free

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 8 विविधा (सेनापति, देव, घनानन्द)

विविधा (सेनापति, देव, घनानन्द) 

कवि पर आधारित प्रश्न


1 — कवि सेनापति का जीवन परिचय दीजिए ।।


उत्तर— कवि परिचय-कविवर सेनापति के जन्म और मृत्यु के संबंध में प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है ।। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा कुछ अन्य विद्वानों ने इनका जन्म सन् 1589 ई० में माना है ।। अपनी रचना ‘कवित्त रत्नाकर’ में सेनापति ने स्वयं को अनूपबस्ती का निवासी बताया है ।। कुछ विद्वान् अनूपबस्ती का अर्थ अनूपशहर, जनपद बुलन्दशहर (उत्तर- प्रदेश) मानते हैं ।। ।। इनकी मृत्यु के विषय में भी कोई निश्चित प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं होता है, परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार सन् 1649 ई० में ये स्वर्गवासी हुए ।। इनके पिता का नाम गंगाधर दीक्षित, दादा का नाम परशुराम दीक्षित था ।। हीरामणि दीक्षित इनके गुरु थे ।।

रचनाएँ– अपनी एक ही रचना ‘कवित्त रत्नाकर’ के आधार पर सेनापति की गणना रीतिकाल के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है ।। रामचन्द्र शुक्ल व कुछ अन्य साहित्यकार इनकी दूसरी कृति ‘काव्य-कल्प द्रुम’ मानते हैं तथा कुछ इन दोनों कृतियों को एक ही मानते हैं ।। ‘कवित्त रत्नाकर’ के कुल 394 छन्द उपलब्ध हुए हैं ।।

हिन्दी-साहित्य में सेनापति की प्रसिद्धि उनके प्रकृति-वर्णन एवं श्लेष के उत्कृष्ट प्रयोग के कारण है ।। हिन्दी के किसी भी श्रृंगारी अथवा भक्त-कवि में सेनापति के जैसे प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की क्षमता नहीं मिलती है ।। इन्होंने ऋतुओं का बहुत ही मनोहारी, यथार्थ व सजीव चित्रण किया है ।। इन्होंने प्रकृति के आलम्बन रूप की अपेक्षा उसके उद्दीपन रूप को ही प्रधानता दी है ।। सेनापति ने प्रकृति को एक शहरी एवं दरबारी व्यक्ति की दृष्टि से देखा है ।। अत: इन्हें वह भोग और विलास की सामग्री ही अधिक प्रतीत हुई ।। इन्होंने नायिका के नख-शिख-सौन्दर्य का यथार्थ व सजीव चित्रण किया है ।। सेनापति की कविता हृदय स्पर्शी है ।। उसमें भावुकता एवं चमत्कार का बहुत सुन्दर समन्वय है ।। श्लेष के तो वे अनुपम कवि हैं ।। इसके अतिरिक्त अनुप्रास, यमक, आदि अलंकारों का भी इनके काव्य में समावेश है ।। ‘कवित्त रत्नाकर’ की प्रथम तरंग पूर्णतया श्लेष अलंकार चमत्कारों से युक्त है ।। सेनापति की भाषा ब्रजभाषा है और यह अत्यन्त मधुर एवं चमत्कारपूर्ण है ।। इनकी रामभक्ति की कविताएँ भी अपूर्व एवं हृदयस्पर्शी है ।। ये ‘कवित्त रत्नाकर’ की पाँचवी तरंग में संगृहीत हैं ।। अलंकार-विधान, प्रकृति-चित्रण एवं छन्द-विधान की दृष्टि से इन्हें केशवदास के समान प्रसिद्धि प्राप्त हुई है ।। निःसन्देह सेनापति की कविताओं में उनकी बहुमुखी प्रतिभा फूट पड़ती है ।।

2 — कवि देव का जीवन-परिचय देते हुए इनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर— कवि परिचय-रीतिकालीन काव्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले कवियों में कवि देव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में संवत् 1730 वि० (सन् 1673 ई०) में हुआ था ।। इनके पिता का नाम बिहारीलाल दूबे था ।। इनकी मृत्यु अनुमानतः संवत् 1824 वि० (सन् 1767 ई०) के आस-पास कुसमरा (मैनपुरी) में हुई थी ।।

रचनाएँ- कवि देव द्वारा रचित विपुल साहित्य का उल्लेख मिलता है ।। विभिन्न ग्रन्थों में उल्लेखित तथ्यों के अनुसार इन्होंने लगभग 62 ग्रन्थों की रचना की; परन्तु इनमें से अब तक केवल निम्नलिखित 15 ग्रन्थ ही उपलब्ध हो सके हैं – भाव-विलास, अष्टयाम, भवानी-विलास, प्रेम-तरंग, कुशल-विलास, जाति-विलास, देवचरित्र, रसविलास, प्रेमचन्द्रिका, सुजान-विनोद, शब्द-रसायन, सुखसागर तरंग, राग रत्नाकर, देवशतक तथा देवमाया-प्रपंच ।।

3 — कवि घनानंद का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का भी उल्लेख कीजिए ।।


उत्तर— कवि परिचय- रीतिकाल में शृंगार रस काव्य के सर्जक ‘घनानन्दजी’ का जन्म संवत् 1746 वि० (सन् 1689 ई०) के आस पास में बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में माना जाता है ।। लेकिन इनके जीवन के संबंध में कोई भी प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है ।। माना जाता है कि ये दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह रँगीले के दरबार में मीरमुंशी थे, किन्तु वहाँ के दरबारी दाँव-पेंचों से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाए, अत: इन्होंने दरबार छोड़ दिया और वृन्दावन में रहने लगे ।। यहीं इन्होंने कृष्ण-भक्ति पर आधारित काव्य का सृजन किया ।। माना जाता है कि सुजान नाम की एक नर्तकी भी इनके साथ दरबार में रहती थी, जिससे ये प्रेम करते थे ।। बाद में वृन्दावन आकर कृष्ण को ‘सुजान’ सम्बोधन से पुकारते हुए काव्य-सृजन किया ।। संवत् 1796 वि० (सन् 1739 ई०) में ये परलोकवासी हो गए ।।

रचनाएँ- घनानन्द द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या चालीस मानी जाती है ।। घनानन्द की प्रमुख काव्य-कृतियों में घनानन्द पदावली, घनानन्द कवित्त, सुजान-मति, वियोग-बेलि, सुजान हित, विरह-लीला, प्रीति-पावस, प्रेम-सरोवर, प्रेम-पहेली, कोक सागर, कृष्ण कौमुदी, भावना प्रकाश, घामचमत्कार, कृपाकंदनिबंध, रंग-बधाई तथा गिरि-गाथा’ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।।
व्याख्या संबंधी प्रश्न

1 — निम्नलिखित पद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए


(क) बृष कौं तरनि…………………………………………..बितवत है ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘विविधा’ नामक पाठ में संकलित ‘कविवर सेनापति’ के पदों से उद्धृत है ।। प्रसंग- इस पद में ग्रीष्म ऋतु का बड़ा ही सजीव वर्णन किया गया है ।।


व्याख्या- वृष राशि का सूर्य अत्यधिक ताप से युक्त होकर अपनी हजारों किरणों से भयंकर ज्वालाओं का समूह बरसा रहा है ।। पृथ्वी अत्याधिक तप्त हो उठी है ।। सारा संसार (आकाश से बरसती) लपटों (आग) से जल रहा है ।। पथिक और पक्षी ठण्डी छाया को ढूँढ़कर विश्राम कर रहे हैं ।। कवि सेनापति कहते हैं कि जैसे ही दोपहर थोड़ा ढलती है, तब इतनी भयंकर उमस पैदा हो जाती है कि एक पत्ता तक नही खड़कता (हिलता) है ।। मुझे तो ऐसा लगता है कि स्वयं हवा भी (गर्मी से घबराकर) किसी ठण्डे स्थान को खोजकर उसमें घड़ी भर को बैठकर धूप का समय बिता रही है और इसी कारण नहीं चल रही है, जिससे सर्व उमस व्याप्त हो गई हैं ।।

काव्य-सौन्दर्य– (1) सेनापति का यह ग्रीष्म-वर्णन अपनी सजीवता के लिए विख्यात है ।। ये रीतिकाल के उन गिने चुने कवियों में हैं, जिन्होंने प्रकृति का आलम्बन रूप में चित्रण किया है ।। (2) उमस पैदा होने का बड़ा ही व्याख्यात्मक कारण देकर ग्रीष्म की प्रचण्ड़ता को प्रत्यक्ष कर दिया है ।। (3) भाषा- ब्रज ।। (4) शैली- चित्रात्मक ।। (5) रस- शृंगार ।। (6) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (7) शब्द-शक्ति – लक्षणा ।। (8) गुण- प्रसाद ।। (9) अलंकार- अनुप्रास, रूपक (ज्वालन के जाल), उत्प्रेक्षा (अंतिम चरण में) ।। (10) भावसाम्य- कविवर बिहारी ने भी ग्रीष्म का ऐसा ही वर्णन किया है देखि दुपहरी जेठ की, छाहौं चाहति छाँह ॥

(ख) डार द्रुम पलना,……………………………………………………………..चटकारी दै ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘विविधा’ नामक पाठ में संकलित ‘महाकवि देव’ के पदों से उद्धृत है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी)

प्रसंग- कवि ने वसन्त को कामदेव का पुत्र मानकर उसके सौन्दर्य की अनुपम झाँकी प्रस्तुत की है ।।
व्याख्या- यह वसन्त एक सलोना-सा बालक है ।। वृक्षों की हरी-भरी डालियाँ इसका पालना है ।। उनमें निकले नये-नये कोमल पत्ते ही उसका बिछौना हैं ।। जैसे छोटे बच्चे के लिए बिछौना बिछाया जाता है, उसी प्रकार वसंतरूपी बालक के लिए वृक्षों के पत्ते ही बिछौना हैं ।। पुष्पों का रंग-बिरंगा झबला इसके शरीर की शोभा बढ़ा रहा है ।। वायु इस शिशु को झूला झुलाती है ।। मोर और तोते बोल-बोलकर इसे बहलाते हैं ।। कोयल इसे हिलाती-डुलाती है और ताली बजा-बजाकर मधुर कलरव ध्वनि करके इसे उल्लासित करती है ।। कमल की कलीरूपी नायिका लहराती लताओं की साड़ी अपने सिर पर ओढ़कर इस वसंतरूपी नवजात शिशु को दुष्ट नजर से बचाने के लिए पुष्प-पराग रूपी राई और नमक उतारती है और सवेरे-सवेरे मनोहर वेला में गुलाब अपनी कलियाँ चटकाकर (मानो जीभ की चटकारी दे-देकर) कामदेव के इस वसंतरूपी पुत्र को जगाता है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) वसंत ऋतु काम-भाव को उद्दीप्त करने वाली ऋतु है, इसीलिए शिशु वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में दर्शाया गया है ।। (2) कवि का सौन्दर्य-चित्रण मनोरम है ।। (3) भाषा- ब्रज ।। (4) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (5) अलंकारअनुप्रास और सांगरूपक ।।

(ग) झहरि–झहरि ………………………………………है दुगन में ।।
सन्दर्भ
– पहले की तरह ।।
प्रसंग– महाकवि देव ने इस पद में एक गोपिका के स्वप्न का वर्णन किया है ।। इसमें एक सखी अपनी दूसरी सखी से अपने रात के स्वप्न का वर्णन करती हुई कहती हैं

व्याख्या– हे सखी! मैंने (स्वप्न में) देखा कि मानो रिमझिम-रिमझिम नन्हीं-नन्हीं फुहारें पड़ रही हैं और आकाश में मेघ घुमड़-घुमड़कर घिरते आ रहे हैं ।। ऐसे मादक वातावरण में श्याम (कृष्ण) ने आकर मुझसे झूला झूलने के लिए साथ चलने को कहा, जिससे मैं ऐसी हर्षित हुई कि फूली न समायी ।। मैं कृष्ण के साथ जाने को उठना ही चाहती थी कि निगोड़ी (कमबख्त) नींद मुझसे पहले ही उठ गई और मेरे उस जागने में मेरे जगे हुए भाग्य सो गए ।। आशय यह है कि मैं कृष्ण के साथ झूला झूलने के लिए उठने को ही थी कि अचानक मेरी आँखें खुल गई और कृष्ण के साथ झूलने जाने का जो सुख मुझे निद्रावस्था में मिलने वाला था, जागने पर नष्ट हो गया, जिससे मेरे भाग्य फूट गए ।। आँख खुलने पर देखा कि न तो कहीं मेघ हैं, न मेघ के समान श्यामवर्ण कृष्ण, वरन् कृष्ण के वियोग में रोते-रोते सोने के कारण मेरी आँखों में वे ही आँसू की बूंदें छायी हुई थी ।। कृष्ण के साथ वार्तालाप और झूला झूलने में तो स्वप्न में भी आनन्द ही है ।। वह स्वप्न का आनन्द भी छिन गया; क्योंकि नींद खुल गई ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) व्यक्ति जिस भाव या विचार में डूबा हुआ सोता है, वही उसे स्वप्न में भी दिखता है ।। यह मनोवैज्ञानिक विशेषता है ।। गोपिका कृष्ण के वियोग में रोते-रोते सो गई थीं उसके मन में कृष्ण से मिलने की इच्छा थी, इसलिए उसकी दमित वासना की स्वप्न में क्षति-पूर्ति हुई और कृष्ण ने उसके साथ चलकर झूला झूलने का प्रस्ताव रखा ।। महाकवियों की प्रतिभा उन्हें ऐसे गूढ़ मनोवैज्ञानिक रहस्यों का साक्षात्कार सहज ही करा देती है ।। (2) ‘मेरे उठने से पहले ही मेरी नींद उठ गई और मेरे जागने में मेरे भाग्य सो गये’ में लक्षणा का चमत्कार दृष्टव्य है ।। गोपिका का आशय यह है कि जब मैं सो रही थी तो भाग्य जग रहे थे ।। अब मैं जगी तो मेरे भाग्य सो गए ।। इसमें विरोधाभास का चमत्कार भी द्रष्टव्य है ।। (3) भाषा- ब्रज ।। (4) छन्द- मनहरण कविता ।। (5) अलंकार- अनुप्रास, उत्प्रेक्षा एवं विरोधाभास ।।

(घ) अति सूधो……………………………………………छटाँक नहीं ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘विविधा’ नामक पाठ से संकलित ‘कविवर घनानन्द’ के पदों से उद्धृत है ।।
प्रसंग- इस पद में कवि सच्चे प्रेम की विशेषताओं का वर्णन करते हुए सच्चे और झूठे प्रेम का अन्तर बताते हैं ।। अपनी प्रेयसी सुजान के प्रति कवि का यह कथन गोपियों द्वारा कृष्ण के प्रति कहा गया माना जा सकता है ।। गोपियाँ कृष्ण को उलाहना देती हुई कहती हैं


व्याख्या– चे चतुर प्रिय (कृष्ण)! सुनो, प्रेम का मार्ग तो बड़ा सीधा-सादा होता है, जिसमें चालाकी या कुटिलता के लिए रंचमात्र भी स्थान नहीं ।। उस मार्ग पर सच्चे प्रेमी तो अपना अहंकार विसर्जित करके अर्थात् प्रिय के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव लेकर चलते हैं, किन्तु जो कपटी हैं; अर्थात् जो सच्चे प्रेमी न होकर प्रेम का दिखावा करते हैं ।। वे शंकारहित न होने (दिल में खोट रखने) के कारण चलने में झिझकते हैं ।। वे अपने मन की बातें अपने प्रिय से भी नहीं कहते हैं ।। हे प्रिय! जहाँ तक हमारी बात है, हमारे हृदय में तो एक तुमको छोड़कर दूसरे किसी का चिह्न तक नहीं है, किन्तु तुम न जाने कौन-सी पट्टी पढ़े हो अर्थात् न जाने कौन-सी सीखे सीखे हुए हो या किस नीति का अनुसरण कर रहे हो कि दूसरे से तो मन भर लेते हो, पर बदले में छटाँक भर भी नहीं देते ।। तात्पर्य यह है कि तुम हमारा मन तो छीने बैठे हो, पर अपनी झलक तक हमें नहीं दिखाते ।।


काव्य-सौन्दर्य- (1) प्रेम के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराते हुए कवि कहता है कि सच्चा प्रेम हमें समर्पण और आत्मबलिदान सिखाता है, सौदेबाजी नहीं ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- सवैया ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रस- विप्रलम्भ शृंगार ।। (6) अलंकार- श्लेष और छेकानुप्रास ।।

(ङ) परकाजहि…………………………………………लै बरसो ॥
सन्दर्भ- पहले की तरह ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सवैये में कवि ने बादलों से प्रार्थना करते हुए अपने विरह का हृदयस्पर्शी वर्णन किया है ।। अपनी निष्ठुर प्रेयसी सुजान के पास मेघ के माध्यम से कविवर घनानंद द्वारा भेजा गया यह संदेश गोपिकाओं द्वारा कृष्ण को भेजा हुआ भी माना जा सकता है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी)

व्याख्या– कवि कहता है- हे मेघ! तुम तो दूसरों के हितार्थ ही देह धारण किए हुए हो, इसलिए तुम्हें जो ‘पर्जन्य’ (परजन्य = दूसरों का हितसाधक) कहा जाता है, यह सर्वथा यथार्थ (वास्तविक) है ।। तुम सागर का खारा पानी (भाप बनाकर और उसे वर्षा के रूप में बरसाकर) अमृत के सदृश सुस्वादु बना देते हो और इस प्रकार तुम हर दृष्टि से सज्जनता से सुशोभित हो ।। कवि घनानन्द कहते हैं कि हे आनन्दवर्षी मेघ! तुम जल के रूप में प्राणदाता हो, इसलिए कभी मेरी पीड़ा (विरह-वेदना) का भी अपने हृदय में अनुभव करो और उस निष्ठुर विश्वासघाती सुजान (या विश्वास भंग करने वाले कृष्ण) के घर के आँगन में मेरे अश्रुओं को ले जाकर बरसा दो, जिससे उसे पता चल जाए कि उसके विरह में मैं किस प्रकार निरन्तर अश्रुपात करता रहता हूँ ।। (गोपिका के पक्ष में- करती हूँ) मेरे आँसुओं को देखकर ही शायद उसे पता लग जाए कि उसके प्रेमजन्य विरह में मैं कितना दुःखी हूँ ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह रँगीला के दरबार में मीर मुंशी थे और सुजान वहाँ की गायिका-नर्तकी थी ।। उस नर्तकी से ये अत्यधिक प्रेम करते थे ।। सुजान के कारण ही इनको बादशाह ने निर्वासन का दण्ड दिया था ।। उस समय घनानन्द ने सुजान से भी साथ चलने को कहा, पर उसने मना कर दिया ।। तब घनानन्द विरक्त होकर मथुरा में कृष्ण-भक्ति में डूब गए ।। इस प्रकार के कवित्तों की रचना इन्होंने उसी समय की ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- सवैया ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रस- विप्रलम्भ शृंगार ।। (6) अलंकार- श्लेष और उपमा ।।

2 — निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

(क) अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सनायप बाँक नहीं ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के विविधा’ नामक पाठ से ‘कविवर घनानन्द’ के पदों से अवतरित है ।।

प्रसंग- इस सूक्तिपरक पंक्ति में कविवर घनानन्द जी ने प्रेममार्ग की सरलता (कुटिलतारहित) व्यक्त की है ।।

व्याख्या- कवि का कहना है कि प्रेम का पथ बहुत सीधा-साधा होता है ।। इसमें कहीं भी कुटिलता नहीं होती ।। इस पर वही चल सकता है,जो अहंकार से रहित हो और किसी प्रकार की चालाकी न दिखाता हो ।। छल-कपट तथा चालाकी दिखाने वाले प्रेमपथ के पथिक नहीं बन सकते ।। वे प्रेम का झूठा प्रदर्शन करने में सफल तो हो सकते हैं, किन्तु सच्चे प्रेम की मधुरता, अलौकिक आनन्द व दिव्यता से वंचित ही रह जाते हैं ।।

(ख)तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं ।।

सन्दर्भ एवं प्रसंग- पहले की तरह ।। ।।

व्याख्या-रीतिकाल के कवि घनानन्द प्रेम की पीर के अमर गायक थे ।। वे अपनी प्रेमिका सुजान अथवा श्रीकृष्ण की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि मैंने तुमसे एकनिष्ठ प्रेम किया है और अपना हृदय तक तुम्हें दे दिया है, पर तुमने न जाने कौन-सी पट्टी पढ़ी है या कौन-सी सीख सीखी है, जो मन भर तो ले लेते हो, पर बदले में छटाँक भर भी नहीं देते हो ।। तात्पर्य यह है कि हमारा मन तो तुमने ले लिया है, पर अपनी एक झलक तक नहीं दिखाई है ।।

अन्य परीक्षोपयोगीप्रश्न

1 — कवि सेनापति ने शिशिर ऋतु का वर्णन किस प्रकार किया है ।।
उत्तर— कवि सेनापति शिशिर ऋतु का वर्णन करते हुए कहते हैं कि शिशिर ऋतु में सूर्य ने भी चन्द्रमा का रूप धारण कर लिया है ।। सूर्य के प्रकाश में भी चाँदनी की आभा (कांति) दिखाई पड़ती है ।। सेनापति कहते हैं कि यह शीतलता चन्द्रमा की शीतलता से हजारों गुणा अधिक है ।। इस ऋतु में रात्रि की छाया दिन में भी प्रतीत होती है अर्थात् दिन में भी ऐसा प्रतीत होता है जैसे रात्रि हो गई है ।। चकवा नामक पक्षी आकाश की ओर देखता हुआ सूर्य दर्शन की अभिलाषा करता है (क्योंकि रात्रि में चकोर अपनी प्रिया चकवी से वियोग सहन करता है इसलिए वह भोर होने की प्रतीक्षा करता है) सूर्य दर्शन न होने के कारण उसके मन में विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं ।। सूर्य के होने पर भी चंद का भ्रम होने पर कमुंदनी मन में प्रसन्न होती है और कमल को शोक होता है क्योंकि कमल चन्द्रमा के साथ नहीं खिलता (अर्थात् कमल का फूल रात्रि में विकसित नहीं होता वह सूर्य के प्रकाश में विकसित होता है) ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी)

2 — कवि देव ने गोपिका के मनोभावों को किस प्रकार प्रदर्शित किया है ?
उत्तर— कवि देव ने गोपिका के विरह के कारण अपने प्रियतम से मिलने की आशा में व्यथित मनोभावों को प्रदर्शित किया है ।। कवि कहते हैं कि अपने प्रियतम के विरह में व्याकुल गोपिका जब रात्रि में रोते-रोते सो जाती है तो वह स्वप्न में अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को देखती है जो रिमझिम-रिमझिम वर्षा के मौसम में उससे झूला झूलने को कहते हैं, जिसे सुनकर गोपिका हर्षित हो जाती है और वह कृष्ण के साथ जाने को उठना ही चाहती है परंतु उसकी नींद खुल जाती है जिसके कारण उसका स्वप्न टूट जाता है और वह अपने प्रियतम (कृष्ण) के साथ जाने के सुख से वंचित हो जाती है ।। जिस पर गोपिका कहती है मेरे भाग्य ही फूट गए हैं जो नींद में भी मैं अपने प्रियतम (कृष्ण) से मिलन का सुख प्राप्त नहीं कर सकी ।।


3 — कवि घनानन्द को साक्षात रसमूर्ति’क्यों कहा गया है ?
उत्तर— कवि घनानन्द को ‘साक्षात रसमूर्ति’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यन्त गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्याकुल कर देने वाला रूप व्यक्त हुआ है ।। इनकी रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता है ।। इन्होंने श्रृंगार के दोनों पक्षों संयोग व वियोग का चित्रण किया है ।। जिस कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन्हें ‘साक्षात् रसमूर्ति’ कहा है ।।

4 — कविघनानन्द ने सच्चे व झूठे प्रेम में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर— कवि घनानन्द ने कहा हैं कि सच्चे प्रेम में प्रेमी अपना अहंकार विसर्जित करके अपने प्रिय के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं किन्तु जो कपटी (झूठे) हैं अर्थात् जो सच्चे प्रेमी न होकर केवल प्रेम का दिखावा करते हैं वे शंकारहित न होने के कारण चलने में झिझकते हैं ।। वे मन की बातें अपने प्रिय से भी नहीं कहते हैं ।।

काव्य-सौन्दर्यसे संबंधित प्रश्न
1 — “बृषकौं तरनि ……………………………..बितवत है ।। “पंक्तियों में निहित रस तथा छन्द का नाम लिखिए ।।

उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में श्रृंगार रस तथा मनहरण कवित्त छन्द है ।।


2 — “डार दुम पलना …………………..चटकारी दै ॥ “पंक्तियों में निहित अलंकार तथा छन्द का नाम बताइए ।।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास और सांगरूपक अलंकार तथा मनहरण कवित्त छन्द है ।।


3 — “धार मैं धाइ…………………………….भई मेरी ॥ “पंक्तियों में निहित छन्द का नाम लिखिए ।।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में मनहरण कवित्त छन्द है ।।


4 — “अति सूधो सनेह…………..छटाँक नही ॥ “पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— काव्य-सौन्दर्य- (1) प्रेम के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराते हुए कवि कहता है कि सच्चा प्रेम, समर्पण और आत्म-बलिदान सिखाता है, सौदेबाजी नहीं ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- सवैया ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रस- विप्रलम्भ शृंगार ।। (6) अलंकार- श्लेष और छेकानुप्रास ।।

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