UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 शिवा-शक्ति, छत्रसाल-प्रशस्ति (महाकवि भूषण)

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शिवा-शक्ति, छत्रसाल-प्रशस्ति (महाकवि भूषण)

1 — महाकवि भूषण का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।।
उत्तर— कवि परिचय- रीतिकालीन कवि भूषण का जन्म तिकवाँपुर ग्राम (कानपुर) में सन् 1613 ई० में हुआ था ।। इनके पिता पं० रत्नाकर त्रिपाठी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा के अनन्य भक्त थे तथा हिन्दी के सुप्रसिद्ध रससिद्ध कविद्वय ‘चिन्तामणि’ और ‘मतिराम’ इनके भाई थे ।। कुछ साहित्यकार ‘भूषण’ का वास्तविक नाम ‘पतिराम’ तथा कुछ ‘मनीराम’ मानते हैं ।। चित्रकूट के राजा रुद्रदेव ने इनकी प्रखर बुद्धि से प्रभावित होकर इन्हें ‘भूषण’ उपाधि प्रदान की; तभी से ये भूषण नाम से प्रसिद्ध हुए ।। ये अनुकूल आश्रय की खोज में घूमते रहे ।। इन्हें शिवाजी तथा महाराजा छत्रसाल के दरबार में मनोनुकूल आश्रय प्राप्त हुआ ।। इन्होंने दोनों राजाओं के शौर्य एवं पराक्रम का गुणगान अपनी कविताओं के माध्यम से किया ।।

भूषण अपने समय में वीर रस की कविता लिखने वाले सर्वश्रेष्ठ कवि माने गए हैं ।। जब ये महाराजा छत्रसाल के दरबार से विदा ले रहे थे, तब महाराजा छत्रसाल ने भी इनकी पालकी में कन्धा लगाया था, तब इसी विषय में भूषण की उक्ति है- “सिवा को बखानौं कि बखानौं छत्रसाल कौं ।।” इसके बाद ये शिवाजी के दरबार में गए और जीवन के अन्तिम समय तक वहीं जीवन-यापन किया ।। माना जाता है कि राजा शिवाजी इनके एक-एक छन्द पर इन्हें सहस्त्राधिक राशि प्रदान करते थे ।। सन् 1715 ई० में काव्य-साहित्य का यह दैदीप्यमान नक्षत्र सदैव के लिए विलुप्त हो गया ।।
रचनाएँ- भूषण द्वारा रचित छः रचनाओं में से कुल तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं- शिवराज-भूषण, शिवा-बावनी और छत्रसाल-दशक ।।

2 — महाकवि भूषण की भाषा-शैली की विशेषताएँ बताइए ।।
उत्तर— भाषा-शैली- यद्यपि भूषण की कविता ब्रजभाषा में है, तथापि इसमें ब्रजभाषा के माधुर्य की नहीं, वरन् ओज की प्रधानता है ।। इनकी ब्रजभाषा में अरबी, फारसी, प्राकृत, बुन्देलखण्डी और खड़ीबोली आदि के शब्दों के भी प्रयोग किए है ।। भूषण के काव्य में ओजपूर्ण वर्णन शैली मिलती है, जिसमें ध्वन्यात्मकता एवं चित्रात्मकता के गुण विद्यमान हैं ।। भूषण ने कवित्त, सवैया, दोहा और छप्पय आदि छन्दों को अपने काव्य का आधार बनाया है ।। इन्होंने अनुप्रास, रूपक, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोक्ति आदि प्रमुख अलंकारों का प्रयोग किया है ।। इनकी भाषा में स्थानीय पुट भी अनायास आ गया है ।। इन्होंने अरबी फारसी के शब्दों का भी नि:संकोच प्रयोग किया है ।।

व्याख्या संबंधी प्रश्न


1 — निम्नलिखित पद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए—


(क) साजि चतुरंग…………………..यो हलत है ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘महाकवि भूषण’ द्वारा रचित ‘भूषण ग्रन्थावली’ से ‘शिवा-शौर्य’ नामक शीर्षक से उद्धृत है ।।
प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि भूषण ने शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के युद्ध हेतु प्रस्थान का वर्णन किया है ।।

व्याख्या– महाकवि भूषण जी कहते हैं कि ‘सरजा’ उपाधि से विभूषित अत्यन्त श्रेष्ठ एवं वीर शिवाजी अपनी चतुरंगिणी सेना (पैदल, हाथी, घोड़े और रथ) को सजाकर तथा अपने अंग-अंग में उत्साह का संचार करके युद्ध जीतने के लिए जा रहे हैं ।। भूषण कहते हैं कि उस समय नगाड़ों का तेज स्वर हो रहा था ।। हाथियों की कनपटी से बहनेवाला मद (हाथी जब उन्मत्त होता है तो उसके कान से एक द्रव स्रावित होता है, जिसे ‘मद’ कहते हैं) नदी-नालों की तरह बह रहा था; अर्थात् शिवाजी की सेना में मदमत्त हाथियों की विशाल संख्या थी और युद्ध के लिए उत्तेजित होने के कारण हाथियों की कनपटी से अत्यधिक मद गिर रहा था, जो नदी-नालों की तरह बह रहा था ।। शिवाजी की विशाल सेना के चारों ओर फैल जाने के कारण संसार में एक-साथ खलबली मच गई ।। हाथियों की धक्का-मुक्की से पहाड़ भी उखड़ रहे थे और विशाल सेना के चलने से बहुत अधिक धूल उड़ रही थी ।। अधिक धूल उड़ने के कारण आकाश में चमकता हुआ सूर्य तारे के समान लग रहा था और (सेना के भार से पृथ्वी के काँप उठने से) समुद्र इस प्रकार हिल रहा था जैसे थाली में रखा हुआ पारा हिलता है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रस्थान का अत्यन्त मनोहारी चित्रण किया गया है ।। (2) सेना के चलने, हाथियों के मद गिरने और धूल के उठने से सूर्य और समुद्र के वर्णन में अतिशयोक्ति का आश्रय लिया गया है ।। (3) ‘ऐलफैल ……… — उसलत है’ में नाद-सौन्दर्य की सुन्दर योजना है ।। (4) भाषा- साहित्यिक ब्रजभाषा ।। (5) शैली- मुक्तक ।। (6) अलंकार- अनुप्रास, अतिशयोक्ति, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्ति प्रकाश ।। (7) रस- वीर ।। (8) गुण- ओज ।। (9) छन्दमनहरण कवित्त ।।

(ख) बाने फहराने ……………………….. फन सेस के ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पद में युद्ध के लिए शिवाजी के सेना के प्रयाण करते समय का वर्णन है ।। व्याख्या- महाकवि भूषण जी कहते हैं कि शिवाजी की सेना के झण्डे फहराने लगे ।। हाथियों के घण्टे घनघोर ध्वनि करते बज उठे ।। तब देश-देश के राव और राणा (राजा) उस सेना के सामने न टिक सके ।। महाराज शिवाजी के नगाड़ों की प्रचण्ड ध्वनि से पहाड़ भरभरा कर ढह पड़े और मार्ग में पड़ने वाले गाँव और नगरों के लोग भाग खड़े हुए ।। (हाथियों के तीव्र गति से चलने के कारण) हौदे ढीले होकर अपने स्थान से सरक गए और हाथियों के गण्डस्थल (कनपटियों) पर मदपान करने के लिए एकत्रित हुए भौंरे अपने घरों (वन प्रदेश) को भाग गए ।। उस समय वे (भौरे) ऐसे लगे, मानो बालों की लटें खुलकर लहरा रही हों ।। आशय यह है कि मदपान करने के लिए इकटे हुए दल के भौरे तो केशपाश सदृश प्रतीत होते थे, पर जब वे घण्टों और नगाड़ों की प्रचण्ड ध्वनि एवं हाथियों की तेज चाल से घबराकर भागे तो बिखरी लटों जैसे लगे ।। सेना के चलने की धमक से कच्छप की कठोर पीठ भी विदीर्ण हो गई और शेषनाग के फन केले के पत्तों जैसे चिर गए |

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काव्य-सौन्दर्य- (1) शिवाजी की सेना के आतंक का स्वाभाविक चित्रण किया गया है ।। (2) पृथ्वी को भगवान् के कच्छपावतार एवं शेषनाग ने धारण कर रखा है, ऐसी पौराणिक मान्यता है ।। (3) फहराने, घहराने, ठहराने, भहराने, उकसाने, भजाने, बिहराने शब्दों की पदमैत्री से उत्पन्न नाद से सेना की त्वरित गति एवं व्यापक प्रभाव की सुन्दर व्यंजना हुई है ।। (4) भाषा- ब्रज ।। (5) छन्दमनहरण कवित्त ।। (6) शैली- मुक्तक ।। (7) रस- वीर और भयानक ।। (8) गुण- ओज ।। (9) अलंकार- उपमा, अनुप्रास और अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश ।।

(ग) छूटत कमान ….. …………………………….परैकोट में ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि भूषण ने शिवाजी की सेना के शत्रु-सेना से हुए युद्ध का ओजपूर्ण वर्णन किया गया है ।।
व्याख्या- महाकवि भूषण जी कहते हैं कि शत्रुओं की ओर से भयंकर धनुष-बाणों, बन्दूकों तथा कोकबान नामक भयंकर शब्द वाले बाणों की निरन्तर हो रही भीषण बौछार में मोर्चे की ओट में भी अपनी रक्षा करना मुश्किल हो रहा है ।। ऐसे भीषण युद्ध के समय में महाराज शिवाजी ने अपनी सेना के चुने हुए वीरों को साथ लेकर शत्रु को ललकारते हुए गर्जना के साथ आक्रमण का आदेश दिया ।। कवि भूषण आगे कहते हैं कि हे महाराज शिवाजी! तेरी उस हिम्मत का वर्णन कहाँ तक करूँ, जिसकी वीरों के समूह में कोई कीमत ही नहीं है ।। कहने का आशय यह है कि शिवाजी की हिम्मत अकथनीय और वीरों के समाज में अत्यधिक सम्मानीय है ।। हे शिवाजी! तेरी सेना के दुर्धर्ष वीर अपनी मूंछों पर ताव दे-देकर, शत्रु के किले के कँगूरों पर पैर रख-रखकर शत्रु सैनिकों को घायल करके अथवा मारकर किले के अंदर कूद पड़ते हैं ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) भूषण ने स्वयं युद्धों को अपनी आँखों से साक्षात् रूप में देखा था; इसीलिए वे युद्ध का ऐसा ओजपूर्ण और स्वाभाविक वर्णन करने में सफल रहे हैं ।। (2) भाषा- ब्रजभाषा ।। (3) शैली- मुक्तक ।। (4) अलंकार- अनुप्रास, अतिशयोक्ति तथा पुनरुक्तिप्रकाश ।। (5) रस- वीर ।। (6) गुण- ओज ।। (7) छन्द- मनहरण कवित्त ।।

(घ) इन्द्र निज……………………………..गिरिजा गिरीसकों ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- महाराज शिवाजी के शौर्य का यश समस्त लोक-लोकान्तरों में इतना फैल गया कि सर्वत्र सफेदी छा गई और देवताओं द्वारा धवल पदार्थों को ढूँढ़ना कठिन हो गया है ।। इसी का वर्णन इस पद में हुआ है ।।

व्याख्या– महाकवि भूषण जी कहते हैं कि इन्द्र अपने हाथी ऐरावत को खोजते फिर रहे हैं और विष्णु क्षीरसागर को ढूँढ़ते घूम रहे हैं ।। भूषण कवि कहते हैं कि हंस गंगा (मानसरोवर) को ढूँढ़ रहे हैं ।। इसी प्रकार ब्रह्माजी हंस को और चकोर चन्द्रमा को ढूँढ़ता फिरता है, परन्तु ये सभी सफेद रंग की चीजें शिवाजी के धवल यश में खो गई हैं ।। हे शाहजी के पुत्र सरजा शिवाजी तूने ऐसा शौर्य प्रदर्शित किया है कि तैंतीस करोड़ देवता तक चकित रह गए हैं ।। तेरे यश की धवलता में ये सब सफेद चीजें ऐसी विलीन हो गई हैं कि शिव अपने निवास कैलाश पर्वत को और पार्वती जी शिवजी को खोजती फिर रही है ।।

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काव्य-सौन्दर्य- (1) कवि-रूढ़ि के अनुसार यश का रंग सफेद माना गया है ।। महाराज शिवाजी के यश से सर्वत्र ऐसी सफेदी छा गई है कि सारे श्वेत पदार्थ उसमें विलीन हो जाने से खो से गए हैं; अर्थात् देखने पर दिखते नहीं ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रस- अद्भुत ।। (6) अलंकार- तद्गुण, अतिशयोक्ति और अनुप्रास ।।

(ङ) निकसत म्यान तें…………………………….देति काल को ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘महाकवि भूषण’ द्वारा रचित ‘भूषण-ग्रन्थावली’ से ‘छत्रसालप्रशस्ति’ नामक शीर्षक से उद्धृत है ।।
प्रसंग- इस छन्द में महाकवि भूषण ने परम यशस्वी, हिन्दू-धर्म-संरक्षक तथा महाप्रतापी महाराज छत्रसाल की तलवार का ओजपूर्ण भाषा में वर्णन किया है ।।

व्याख्या– महाकवि भूषण कहते हैं कि छत्रसाल की तलवार म्यान से निकलते ही प्रलयकालीन सूर्य के समान प्रचण्ड और भयंकर रूप में चमकने लगती है और घने अन्धकार के समान काले और विशालकाय हाथियों के समूह को चीर देती है ।। वह तलवार सर्पिणी के समान शत्रुओं के कण्ठों से लिपटकर उनके प्राणों को हर लेती है और इस प्रकार मुण्डों की माला देकर शिवजी को प्रसन्न करती है ।। तात्पर्य यह है कि छत्रसाल की तलवार मुण्डों की माला पहनने वाले रुद्र (शिवजी के अवतार) को शत्रुओं के मुण्ड देकर प्रसन्न कर देती है ।। कवि भूषण कहते हैं कि ‘हे महाप्रतापी पृथ्वीपति और चिरंजीवी छत्रसाल! आपकी इस तलवार की अद्भुत और चमत्कारिणी शक्ति का वर्णन कहाँ तक करूँ; अर्थात् शब्दों के माध्यम से आपकी इस तलवार की प्रशंसा करना संभव नहीं है ।। महाराज छत्रसाल की वह तलवार काँटेदार झाड़ियों के समान दुःखदायी शत्रुओं की सेना को काटकाटकर तथा काली देवी के समान किलकारी मारती हुई, यमराज को नाश्ता कराती है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) इस छन्द में महाराज छत्रसाल की वीरता का ओजपूर्ण वर्णन किया गया है ।। छत्रसाल को युद्ध में निपुण महावीर के रूप में दिखाया गया है ।। (2) भाषा- गतिशील ब्रजभाषा (3) अलंकार- उपमा, अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास ।। (4) रस- वीर रस ।। (5) गुण- ओज ।। (6) शब्दशक्ति – लक्षणा ।। (7) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (8) शैली- मुक्तक ।।

(च) भुज भुजगेस ………………………………………. है खलन के ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्य में छत्रसाल की बरछी का कौशल वर्णित है ।।

व्याख्या- हे राजा चम्पतराय के पुत्र महाराज छत्रसाल! आपके पराक्रम का बखान कौन कर सकता है? आपकी भुजा शेषनाग के समान है तो आपकी बरछी शेषनाग की जीवन-संगिनी नागिन की भाँति भयंकर और विषैली है ।। यह, नागिन के समान, प्रचण्ड शत्रुओं के विशाल दलों को खदेड़-खदेड़कर खा जाती है ।। वह कवचों और लोहे की झूलों में इस प्रकार सरलता से धंस जाती है, जैसे मछली जल-प्रवाह को तैरकर सरलता से पार कर जाती है ।। तेरे शत्रु तेरी बरछी की मार से कटकर इस प्रकार रणभूमि में पड़े हैं, जैसे पंखकटे पक्षी हों ।। इस प्रकार तेरी बरछी ने शत्रुओं के समस्त बल-पौरुष को छीनकर उन्हें सर्वथा बलहीन बना दिया है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) छत्रसाल की बरछी के माध्यम से उनके पराक्रम का बड़ा ही ओजस्वी वर्णन किया गया है ।। (2) भाषाब्रज ।। (3) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रस- वीर ।। (6) शब्द शक्ति – लक्षणा ।। (7) गुण- ओज ।। (8)
अलंकार- रूपक, उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश और यमक ।।

2 — निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए

(क) थारा पर पारा पारावार यों हलत है ।।
सन्दर्भ-प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘महाकवि भूषण’ द्वारा रचित ‘शिवा-शौर्य’ शीर्षक से अवतरित है ।।

प्रसंग- इस पंक्ति में शिवाजी के सेना के प्रस्थान के समय धरती पर मची खलबली का चित्रण किया गया है ।।

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व्याख्या- महाकवि भूषण जी कहते हैं कि शिवाजी की सेना के युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय बहुत अधिक धूल उड़ रही थी ।। उड़ती हुई धूल इतनी अधिक थी कि इस धूल में सूर्य एक तारे के समान प्रतीत हो रहा था ।। शिवाजी की विशाल सेना के भार से पृथ्वी भी काँप उठी थी ।। पृथ्वी के कम्पायमान हो जाने से समुद्र आदि भी हिलने लगे थे ।। समुद्र के हिलने से ऐसा प्रतीत होता था मानो किसी थाली में रखा हुआ पारा हिल रहा हो ।। तात्पर्य यह है कि शिवाजी की सेना इतनी अधिक विशाल थी कि उसके युद्ध के लिए प्रयाण करते समय उस स्थान पर ही नहीं, वरन् संपूर्ण पृथ्वी पर ही खलबली मच गई थी और समस्त चराचर जगत् में अव्यवस्था का बोलबाला हो उठा था ।।

(ख) केरा के से पात बिहाराने फन सेस के ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति में शिवाजी की सेना के प्रस्थान के समय पृथ्वी पर मची खलबली और पृथ्वी को धारण करने वाले कछुआ और शेषनाग की स्थिति का आलंकारिक वर्णन किया गया है ।।

व्याख्या- महाकवि भूषण जी कवि कहते हैं कि महाराज शिवाजी की सेना के नगाड़ों की प्रचण्ड ध्वनि से पहाड़ भरभरा कर ढह गए और सेना के गमन मार्ग में पड़ने वाले गाँव और नगरों के लोग भाग खड़े हुए ।। हाथियों के हौदे ढीले होकर अपने स्थान से सरक गए ।। हाथियों के गण्डस्थल पर मदपान करने के लिए एकत्रित हुए भौरे अपने घरों को भाग गए ।। उस समय वे ऐसे लगे मानों बालों की लटें खुलकर लहरा रही हों ।। आशय यह है कि मदपान करने के लिए इकट्ठे हुए दल के दल भौंरे तो केशपाश सदृश प्रतीत होते थे, पर जब वे घण्टों और नगाड़ों की प्रचण्ड ध्वनि एवं हाथियों की तेज चाल से घबराकर भागे तो बिखरी लटों जैसे लगने लगे ।। पौराणिक मान्यता के अनुसार विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार कछुए का हुआ था, जिसने समुद्र मन्थन के समय मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था ।। अन्य मान्यता के अनुसार पृथ्वी को शेषनाग (सहस्र फन वाले सर्प) ने अपने फनों पर धारण कर रखा है ।। इसी कछुए की कठोर पीठ शिवाजी की सेना के चलने की धमक से विदीर्ण हो गई है और शेषनाग के फन केले के पत्तों के समान चिरकर अलग-अलग हो गए ।।

(ग) घाव दैदै अरि मुख कूदि परै कोट में ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में महाकवि भूषण ने वीर शिवाजी के पराक्रम की प्रशंसा की है ।।

व्याख्या- न केवल शिवाजी, वरन् उनके वीर सिपाही भी उन्हीं की तरह अत्यन्त साहसी, उत्साही और वीर योद्धा हैं ।। वे शत्रुसैनिकों से तनिक भी भय नहीं खाते ।। उनके सिपाही शत्रु के किले के कँगूरों में पैर रखकर वहाँ नियुक्त सैनिकों को घायल करके किले के अन्दर कूद जाते हैं ।। इस प्रकार वे शत्रु के किलों को बड़ी सरलता से जीत लेते हैं ।। शिवाजी और उनके वीरों के युद्धकौशल के सम्मुख शत्रु अपना बचाव करने का अवसर भी प्राप्त नहीं कर पाते ।। वे जब तक बचाव की बात सोचते हैं तब तक शिवाजी और उनके सैनिकों का भरपूर वार उन्हें घायल कर डालता है ।।

(घ) पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीन वीर ॥
सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘महाकवि भूषण’ द्वारा रचित ‘छत्रसाल-प्रशस्ति’ शीर्षक से अवतरित है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 10 उद्धव प्रसंग, गंगावतरण (जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’) free solution
प्रसंग- इस सूक्ति में महाकवि भूषण ने छत्रसाल की तलवार की प्रशंसा की है ।।

व्याख्या- भूषण कवि छत्रसाल से उनकी तलवार की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुम्हारी तलवार ने शत्रुओं की शक्ति को क्षीण करके धरती पर गिरा दिया है ।। धरती पर गिरे हुए, वीर ऐसे लगते हैं, मानो किसी ने आकाश में उड़ते पक्षियों के पंख काट दिए हैं और वे पक्षी धड़ाम से जमीन पर आ पड़े हों ।। इस प्रकार तुम्हारी तलवार ने शत्रुओं की विजय-प्राप्ति की इच्छा को उनसे छीन लिया है ।।

अन्य परीक्षोपयोगीप्रश्न


1 — ‘शिवा-शौर्य के आधार पर शिवाजी के युद्ध-अभियान का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर— महाकवि भूषण जी ने ‘शिवा-शौर्य’ में शिवाजी की सेना के युद्ध का अद्भुत वर्णन किया है ।। सरजा की उपाधि से विभूषित महाराज शिवाजी अपनी चतुरंगिणी सेना (पैदल, हाथी, घोड़े और रथ) को सजाकर मन में उत्साह धारण करके युद्ध जीतने के लिए प्रस्थान पर रहे हैं ।। उस समय नगाड़ों का स्वर तेज हो रहा है और मदमस्त हाथियों की कनपटी से बहने वाला मद नदी-नालों की तरह बह रहा था ।। सेना के प्रस्थान के कारण होने वाले कोलाहल से संसार भर में खलबली मच गई थी ।। हाथियों की धक्का-मुक्की के कारण पहाड़ के पहाड़ उखड़ रहे थे और विशाल सेना के चलने से उड़ी धूल की विपुल राशि से सूर्य तारे जैसा लगने लगा था ।। सेना के भार के कारण पृथ्वी के काँपने से समुद्र थाली में रखे पारे की तरह हिलने लगा था ।। शिवाजी के सेना के झंडे फहराने लगे थे ।। हाथियों के गले में पड़े हुए घंटे बजने लगे ।। उनकी सेना के सामने विभिन्न देशों के राव और राणा (शासक) ठहर नहीं सके ।। शिवाजी के नगाड़ों की प्रचण्ड ध्वनि के कारण पहाड़ भरभरा कर ढह गए और मार्ग के लोग भी भाग खड़े हुए ।।

हाथियों के हौदे ढीले होकर खिसक गए और हाथियों की कनपटियों पर मदपान करने के लिए एकत्रित हुए भौरे अपने घरों को भाग गए ।। सेना के चलने से कच्छप की (कछुए की) कठोर पीठ भी टूट गई और शेषनाग के फन केले के पत्ते के समान चिर गए थे ।। शत्रु की ओर से भयंकर धनुष-बाणों, बन्दूकों एवं कोकबान नामक प्रचण्ड शब्द वाले बाणों की निरन्तर झड़ी लगने के कारण शिवाजी की सेना को मोर्चे की ओट में भी अपनी रक्षा करना मुश्किल हो रहा था ।। ऐसे समय में महाराज शिवाजी ने अपने चुने हुए वीरों को ललकारते हुए उन्हें शत्रु पर आक्रमण का आदेश दिया और महाराज शिवाजी के वीर सिपाही मूंछों पर ताव देकर शत्रु के किले के कँगूरों पर पाँव रखकर शत्रु का संहार करते हुए दुर्ग के अन्दर कूद गए थे ।।

2 — महाकवि भूषण ने राजा छत्रसाल की प्रशंसा किस प्रकार की है ?
उत्तर— महाकवि भूषण ने राजा छत्रसाल को परम यशस्वी, हिन्दू धर्म संरक्षक तथा महाप्रतापी बताया है ।। महाकवि भूषण कहते हैं कि जब राजा छत्रसाल की तलवार म्यान से बाहर आती हैं तो उससे प्रलयकालीन प्रचण्ड सूर्य की किरणें जैसे प्रलयकारी किरणे निकलती हैं, जो घने अन्धकार के समान काले और विशालकाय हाथियों के समूह को चीर देती है ।। वह तलवार नागिन के समान शत्रुओं के कण्ठों में लिपटकर उन्हें काट डालती है और मुण्डों की माला बनाकर शिवजी को अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करती है ।। राजा छत्रसाल की तलवार प्रचण्ड योद्धाओं के दल के दल काटकर कालिका के समान हर्षित होती हुई, काल को आहार प्रदान करती है ।। कवि कहते हैं राजा छत्रसाल की भुजा शेषनाग की तरह तथा इनकी बरछी शेषनाग की जीवन संगिनी के समान भयंकर और विषैली है ।। जो शत्रुओं के विशाल दलों का नाश कर देती है ।। यह कवच और लोहे की झूलों में इस प्रकार सरलता से घसती है जैसे मछली जल प्रवाह को सरलता से तैरकर पार करती है ।। इस प्रकार कवि ने राजा छत्रसाल की तलवार की विभिन्न रूपों से प्रशंसा उन्हें वीर तथा साहसी बताया है ।।

3 — कविवर भूषण अपनी किस विशेषता के कारण अपने युग के कवियों से पृथक हो जाते हैं?
उत्तर— कविवर भूषण रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि थे ।। रीतिकाल के कवियों ने प्रायः शृंगारिक रचनाएँ ही की है ।। परंतु कवि भूषण ने इस शृंगारिक प्रवृत्ति का तिरस्कार कर वीर रस के काव्य का सृजन किया ।। यद्यपि कविवर भूषण रीतिकालीन युग की लक्षण-ग्रन्थ परम्परा एवं अन्य प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त नहीं थे और इनके काव्य में भी रस, छन्द, अलंकार आदि का प्रयोग शास्त्रीय रूप में हुआ था, तथापि इन्होंने तत्कालीन विलासितापूर्ण शृंगारिकता को त्यागकर राष्ट्रप्रेम और वीरोचित भावों से युक्त रचना की ।। जातीय एवं राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति एवं अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष करने वाले लोकनायकों शिवाजी एवं छत्रसाल के वीरोचित गुणों का प्रकाशन इनके काव्य का मुख्य विषय रहा है ।। सेना, युद्धस्थल, युद्ध तथा शत्रु-सेना में व्याप्त भय आदि का सजीव चित्रण भूषण की काव्य प्रतिभा की दूसरी विशिष्टता रही है ।। इन्होंने अपने काव्य में ओज-भाव पर आधारित तीव्र अनुभूति को स्थान दिया है ।। इस कारण कविवर भूषण अपने युग के कवियों से पृथक हो जाते हैं ।।

काव्य-सौन्दर्य से संबंधित प्रश्न


1 — “साजि चतुरंग……………. — यों हलत है ।।”पंक्तियों में प्रयुक्त छन्द तथा अलंकारों के नाम लिखिए ।।

उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में मनहरण कवित्त छन्द तथा अनुप्रास, अतिशयोक्ति, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं
2 — “बाने फहराने ………….. — फन सेस के ॥ “पंक्तियों में प्रयुक्त रस एवं अलंकारों के नाम लिखिए ।।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में वीर रस तथा उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश एवं अतिशयोक्ति अलंकार है ।।
3 — “निकसत म्यान…………….देति काल कों ॥ “पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— काव्य-सौंदर्य- (1) इस छन्द में महाराज छत्रसाल की वीरता का ओजपूर्ण वर्णन किया गया है ।। (2) छत्रसाल को युद्ध में निपुण महावीर के रूप में दिखाया गया है ।। (3) भाषा- गतिशील ब्रजभाषा ।। (4) अलंकार- उपमा, अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास ।। (5) रस- वीर ।। (6) गुण- ओज ।। (7) शब्दशक्ति – लक्षणा ।। (8) छन्द- मनहरण कवित्त ।। (9) शैली- मुक्तक ।।

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