UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी)

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी) का सम्पूर्ण हल

भक्ति और श्रृंगार (कविवर बिहारी)

कवि पर आधारित प्रश्न-


1 — कवि बिहारी का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।।


उत्तर— कवि परिचय- रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी का जन्म ग्वालियर राज्य के वसुआ गोविन्दपुर ग्राम में सन् 1595 ई० के आस-पास हुआ था ।। इनके पिता का नाम केशवराय था ।। इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य-शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की ।। इनका बचपन बुन्देलखण्ड में व्यतीत हुआ तथा विवाह के बाद इनका समय अपनी ससुराल मथुरा में व्यतीत हुआ ।। ये जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे ।। राजा जयसिंह दूसरे विवाह के बाद अपनी नई पत्नी के प्रेम के कारण भोगविलास में लिप्त रहने लगे और इसी कारण राजकार्यों से उनका ध्यान विमुख हो गया, तब बिहारी जी ने यह दोहा लिखकर उनके पास भेजा –


नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकासु इहिं काल ।।
अली कली ही सौं बिंध्यौ, आगे कौन हवाल ॥

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 भरत-महिमा, कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका (गोस्वामी तुलसीदास) free pdf

इस दोहे को पढ़कर राजा जयसिंह बहुत प्रभावित हुए तथा पुनः राजकार्य में संलग्न हो गए ।। राजा जयसिंह कवि बिहारी को प्रत्येक दोहे के पुरस्कारस्वरूप एक स्वर्ण-मुद्रा देते थे ।। उन्हीं की प्रेरणा से बिहारी ने ‘सतसई’ की रचना की ।। इनका जीवन विषम परिस्थितियों में व्यतीत हुआ ।। पत्नी की मृत्यु के बाद ये संसार से विरक्त हो गए ।। सन् 1663 ई० में यह महान् कवि इस संसार से सदैव के लिए विदा हो गया ।। बिहारी जी कम शब्दों में अत्यधिक गहन बात कह देते थे, इसीलिए ये ‘गागर में सागर’ भरने वाले कवि कहे जाते हैं ।। अपने भक्ति व नीति संबंधी दोहों में इन्होंने श्रृंगार के संयोग व वियोग दोनों ही पक्षों का भावपूर्ण चित्रण किया है ।। इनके दोहों के गहन भाव से युक्त होने के संबंध में कहा गया है


सतसैया के दोहरे, ज्यौं नावक के तीर ।।
देखन में छोटे लगैं, घाव करें गम्भीर ॥


रचना- बिहारी जी की एकमात्र कृति ‘बिहारी सतसई’ है, जिसमें 719 दोहे हैं ।।

2 — कवि बिहारी की भाषा-शैली की विवेचना कीजिए ।।
उत्तर— भाषा-शैली- बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है, जिसमें पूर्वी-हिन्दी, बुन्देलखण्डी, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हआ है ।। शब्द-चयन की दृष्टि से बिहारी अद्वितीय हैं ।। मुहावरों और लोकोक्तियों की दृष्टि से भी इनका भाषा-प्रयोग अद्वितीय है ।। बिहारी ने मुक्तक काव्य-शैली को स्वीकार किया है, जिसमें समास-शैली का अनूठा योगदान है ।। इसीलिए ‘दोहा’ जैसे छोटे छन्दों में भी इन्होंने अनेक भावों को भर दिया है ।। बिहारी को ‘दोहा’ छन्द सर्वाधिक प्रिय है ।। इनका सम्पूर्ण काव्य इसी छन्द में रचा गया है ।। अलंकारों के प्रयोग में बिहारी दक्ष थे ।। इन्होंने छोटे-छोटे दोहों में अनेक अलंकारों को भर दिया है ।। इनके काव्य में श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति और अतिशयोक्ति अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है ।।

व्याख्या संबंधी प्रश्न

1 — निम्नलिखित पद्यावतरणों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए


(क) करौ कुबत ………………………………………………………. त्रिभंगी लाल ।।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘कविवर बिहारी’ द्वारा रचित ‘बिहारी सतसई’ काव्यसंग्रह के जगन्नाथदास द्वारा संपादित भाग ‘बिहारी-रत्नाकर’ से ‘भक्ति एवं शृंगार’ शीर्षक से उद्धृत है ।।
प्रसंग- इस दोहे में बिहारी ने अपने और श्रीकृष्ण की त्रिभंगी छवि में साम्य स्थापित करते हुए कहा है–

व्याख्या- हे प्रभु! चाहे संसार मेरी कितनी भी निन्दा करे, परन्तु मैं अपनी कुटिलता (बुराइयों) को नहीं छोडूंगा; क्योंकि हे दीनों पर दया करने वाले प्रभु! आप त्रिभंगीलाल है; अर्थात् वंशी बजाते समय आप अपने पैर, कमर और गर्दन तीन जगह से टेढ़े हो जाते हैं ।। यदि मैं अपनी कुटिलता (बुराइयों या टेढ़ेपन) को छोड़कर सीधा और सरल हो गया तो आपको मेरे सरल हृदय में बसने में कष्ट होगा; क्योंकि टेढ़ी वस्तु टेढ़े स्थान में ही समा सकती है, सीधे स्थान में सुविधापूर्वक नहीं समा सकती ।। कविवर बिहारी श्रीकृष्ण की त्रिभंगी मूर्ति को ही अपने हृदय में बसाना चाहते हैं ।। इसीलिए वे सरल न बनकर कुटिल (टेढ़े) ही बने रहना चाहते हैं ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) बिहारी की कल्पना पर आधारित समाहार-शक्ति एवं वाक-चातुर्य प्रशंसनीय है ।। (2) श्रीकृष्ण के त्रिभंगी रूप को हृदय में बसाने की छवि की अभिलाषा और अपनी कुटिलता न छोड़ने हेतु प्रस्तुत किया गया तर्क उनकी सूक्ष्म बुद्धि का परिचायक है ।। (3) भाषा- ब्रजभाषा ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) अलंकार- ‘त्रिभंगीलाल’ में परिकरांकुर एवं अनुप्रास ।। (6) रस- भक्ति ।। (7) छन्द-दोहा ।।

(ख) मकर कृति …….. …….…….…….……. ………………लसत निसान ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- एक सखी नायक के पास होकर आई है और नायिका का वर्णन सुनकर नायक पर कामदेव का जो प्रभाव पड़ा है, उसका वर्णन करती है कि उसके हृदय को कामदेव ने वशीभूत कर लिया है, जिसका प्रमाण यह है कि ‘कम्प’ नामक सात्विक भाव के कारण उसके कुण्डल हिल रहे हैं ।।

व्याख्या- हे सखी! गोपाल के कानों में मकराकृति-कुण्डल ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो हृदयरूपी देश को कामदेव ने विजित कर लिया हो ।। इसलिए उसकी ध्वजा ड्योढ़ी पर फहरा रही है ।। हिलते हुए कुण्डलों को देखकर यह आभास होता है कि कामदेव का प्रवेश कान से हुआ है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) यहाँ कवि ने श्रीकृष्ण के काममय रूप का कलात्मक चित्र प्रस्तुत किया है ।। (2) कान की उत्प्रेक्षा ड्योढ़ी से करने में यह ध्वनित होता है कि कामदेव के हृदय-देश में प्रवेश करने के मार्ग कान ही हैं अर्थात् नायक पर कामदेव का प्रभाव गुण-श्रवण के द्वारा ही हुआ है ।। (3) भाषा- ब्रज ।। (4) छन्द- दोहा ।। (5) रस- शृंगार ।। (6) शैली- मुक्तक ।। (7) अलंकार- उत्प्रेक्षा और रूपक ।।

(ग) बतरस-लालच …….…….…….…….…….…….……. …कहैं नटि जाइ ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- इस दोहे में बिहारी राधा की प्रेमपूर्ण मुद्राओं का वर्णन करते हुए कहते हैं
व्याख्या- राधाजी ने श्रीकृष्ण से बात करने के आनन्द के लालच से उनकी मुरली छिपाकर रख दी ।। श्रीकृष्ण ने पूछा कि क्या मुरली तुम्हारे पास है तो राधा कसम खाने लगीं (कि हमारे पास मुरली नहीं है); परन्तु भौंहों में हँसने लगीं अर्थात् उनके नेत्र हँस रहे थे (जिससे स्पष्ट होता है कि मुरली इन्हीं के पास है) ।। जब श्रीकृष्ण ने उनसे मुरली देने के लिए कहा तो राधा ने अपने पास मुरली होने की बात से ही इनकार कर दिया (इस प्रकार यह क्रम देर तक चलता रहा) ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) प्रथम पंक्ति में राधा की मुरली के प्रति ईर्ष्या का संकेत भी मिला है; क्योंकि श्रीकृष्ण मुरली बजाने के कारण उनसे बात नहीं करते थे और वे श्रीकृष्ण से बातों का आनन्द लेना चाहती थी ।। (2) भाषा- ब्रजभाषा ।। (3) शैलीU मुक्तक ।। (4) अलंकार- कारक, दीपक और अनुप्रास ।। (5) रस- संयोग शृंगार ।। (6) छन्द-दोहा ।।

(घ) कर लै,चूमि…… ……………धरति समेटि ॥

सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।

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प्रसंग- इस दोहे में कविवर बिहारी ने प्रोषितपतिका नायिका की दशा का मनोरम वर्णन किया है ।।

व्याख्या- नायक ने नायिका को पाति (पत्र) भेजी है ।। इस पाति को पाकर नायिका की खुशी का ठिकाना न रहा ।। उसने पाति को हाथ में लेकर सबसे पहले उसे चूमा, फिर उसे पवित्र मानकर सिर अर्थात् माथे से लगाया ।। इसके पश्चात उसने उसे अपनी भुजाओं में भरकर अपनी छाती से ऐसे लिपटाया, मानो वह साक्षात् नायक हो ।। अपने प्रियतम की उस पाति को वह नायिका कभी तो अत्यन्त स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखती है, कभी उसे पढ़ती है और कभी उसे सँभालकर बन्द करके अत्यन्त सुरक्षित स्थान पर रख देती है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) प्रियतम के प्रति नायिका की उत्कण्ठा को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया है ।। (2) नायिका की चेष्टाओं से प्रियतम के प्रति उसके स्नेह, आस्था और मिलन की उत्कण्ठा की सफल अभिव्यक्ति बिहारी ने इस दोहे में की है ।। (3) भाषाब्रजभाषा ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) अलंकार- अनुप्रास ।। (6) रस- विप्रलम्भ शृंगार ।। (7) छन्द-दोहा ।।

(ङ) सहत सेत ……….. …………… तन जोति ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में नायिका के शारीरिक सौन्दर्य और उसकी कान्ति का चित्रण इस उद्देश्य से किया गया है कि उसे सुनकर नायक उसकी ओर आकर्षित हो जाए ।।

व्याख्या- स्वाभाविक रूप से श्वेत और रेशम की हल्की साड़ी पहने हुए उस नायिका की सुन्दरता अत्यधिक बढ़ जाती है ।। इस वेश में उसकी अंग-क्रांति का आलोक ऐसा प्रतीत होता है जैसे जल-चादर के पीछे दीपकों की पंक्ति प्रज्वलित हो रही हो ।।
काव्य-सौन्दर्य- (1) कवि ने नायिका के शरीर की आभा और चमक का चमत्कारपूर्ण वर्णन किया है ।। (2) जल चादरमहाराजाओं के भवनों में प्रायः जल-चादर बनाई जाती थी ।। रात्रि के समय गिरते हुए पानी के पीछे दीपक जलाए जाते थे ।। इन दीपकों को प्रकाश जब पानी पर पड़ता था, तब ऐसा होता था, मानो स्वर्ण की कोई चादर धरती पर गिर रही हो ।। (3) भाषा- ब्रजभाषा ।। (4) अलंकार- ‘सहज सेत’ में छेकानुप्रास, सम्पूर्ण दोहे में उपमा ।। (5) रस- शृंगार ।। (6) शब्द-शक्ति- लक्षणा ।। (7) गुण- माधुर्य ।। (8) छन्ह- दोहा ।।

(च) करी बिरह……………………………………………………………………लहै न मीचु ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- कोई सखी नायक से नायिका की विरह-दशा निवेदित करती हुई कहती है


व्याख्या- यद्यपि विरह ने उस नायिका को इतना दुबला कर दिया है कि मृत्यु आँखों पर चश्मा लगाने पर भी उसे नहीं देख (पहचान) पाती, तथापि इतने पर भी वह नीच विरह उसका पीछा नहीं छोड़ता (अर्थात् दूर नहीं होता) ।। यह जानकर भी क्या तुमको (नायक को) दया नहीं आती कि जाकर उसका विरह-दुःख मिटा दो ।।


काव्य-सौन्दर्य- (1) विरह ने नायिका को इतना दुर्बल कर दिया है कि मृत्यु को भी उसे ढूँढ़ पाना मुश्किल हो गया ।। यहाँ मृत्यु का अति सुन्दर मानवीकरण किया गया है ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- दोहा ।। (4) रस- विप्रलम्भ शृंगार ।। (5) शैली- मुक्तक ।। (6) अलंकार- अनुप्रास, अतिशयोक्ति ।।

(छ) मूड़ चढ़ाएऊ……………………………………………….. ………..हियें पर हारु ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- अयोग्य पुरुष का चाहे कितना ही सम्मान किया जाए वह श्रेष्ठ पद का अधिकारी नहीं होता और गुणी पुरुष यदि गले पड़कर भी रहे तो भी उसे श्रेष्ठ पद देना उचित है ।। इसी बात को कवि ने बाल एवं हार के माध्यम से यहाँ व्यक्त किया है ।।

व्याख्या- कच-भार (बालों का समूह) सिर चढ़ने पर भी पीठ ही पर पड़ा रहता है; अर्थात् आगे नहीं बढ़ सकता और हार चाहे गले पड़कर रहता हो, तो भी उसे हृदय पर रखना ही उचित है ।। गले में पड़ा हुआ हार हमेशा चमकता रहता है ।। गुणवान् व्यक्ति साथ रहकर हमेशा अपने गुणों से देदीप्यमान होता रहता है; जैसे- अकबर के साथ बीरबल; परन्तु नीच मनुष्य को आवश्यकता से अधिक सम्मान देकर भी उसे कोई नहीं जान पाता है ।।
काव्य-सौन्दर्य- (1) यहाँ पर कवि ने नीति की बात कहते हुए इस तथ्य को प्रस्तुत किया है कि योग्य पुरुष सदा सम्मान का अधिकारी होता है ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- दोहा ।। (4) रस- शान्त ।। (5) शैली- मुक्तक ।। (6) अलंकार- अन्योक्ति ।।

(ज) कर मुंदरी की……………………………………………………डीठि लगाई ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- नायक को बेधड़क होकर देखने की नायिका की चातुरी का वर्णन करती हुई एक सखी दूसरी से कहती है ।।

व्याख्या- हाथ की अंगूठी के दर्पण (नग) में प्रियतम का प्रतिबिम्ब देखकर, नायक की ओर पीठ किए बैठी नायिका एकटक दृष्टि से बेखटके उसको देख रही है ।। कहने का आशय यह है कि उसे इस बात की कोई शंका नहीं है कि मुझे प्रियतम को देखते हुए कोई देख रहा है ।।
काव्य-सौन्दर्य- (1) शास्त्रीय दृष्टि से बिहारी की नायिका मुग्धा नायिका की श्रेणी में आती है ।। (2) नायिका की क्रिया-चातुरी प्रशंसनीय है ।। (3) भाषा- ब्रजभाषा ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) अलंकार- विभावना एवं अनुप्रास ।। (6) रस- शृंगार ।। (7) छन्द- दोहा ।।

(झ) ललन सलोने……………………………………… मुँह लागि ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- यहाँ खण्डिता नायिका, नायक पर व्यंग्य करती हुई कहती है ।।

व्याख्या- हे प्रिय! यद्यपि आप सलोने (1 — सुन्दर लावण्य युक्त तथा 2 — लवणयुक्त) है और स्नेह (1 — प्रीति तथा 2 — चिकनाई अर्थात् तेल अथवा घी) से भली-भाँति पग रहे हैं, तथापि तनिक कचाई से (कचाई के कारण) मुँह लगकर (1 — धृष्टपूर्वक झूठी बातें कहकर तथा 2 — मुँह में कनकनाहट उपजाकर) जमीकन्द की भाँति दुःख देते हैं ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) आशय यह है कि यद्यपि प्रियतम सुन्दर और प्रीति करने वाला है, तथापि स्वभाव का बचकाना होने के कारण झूठी-सच्ची बातें लगाकर मन में विरक्ति उत्पन्न करता है; जैसे- नमकीन और घी में तला होने पर भी थोड़ा कच्चा रह जाने से जमीकन्द मुँह में लगकर विरक्ति उपजाता है ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) छन्द- दोहा ।। (4) शैली- मुक्तक ।। (5) रसशृंगार ।। (6) अलंकार- श्लेष एवं पूर्णोपमा ।।

(ज) दृग उरझत …………………………… नई यह रीति ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- इस दोहे में कवि ने प्रेम के परिणाम का वर्णन किया है ।।

व्याख्या- कवि बिहारी कहते हैं कि जब नायक-नायिका के नेत्र उलझते हैं; अर्थात् उनमें परस्पर प्रेम उत्पन्न होता है तब उनके कुटुम्ब टूट जाते हैं; अर्थात् नायक-नायिका का अपने-अपने कुटुम्ब से सम्बन्ध टूट जाता है और वे दोनों एक-दूसरे को ही अपना सब कुछ समझने लगते हैं ।। इस प्रकार चतुर प्रेमी-प्रेमिका के चित्त में गहरा प्रेम जुड़ जाता है ।। यह देखकर दुष्टों के हृदय में गाँठ पड़ जाती है; अर्थात् दुष्ट उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं ।। कवि कहते है कि हे दैव (विधाता, प्रभु)! यह तो प्रेम की नई और विचित्र रीति है ।। असंगति प्रदर्शित करते हुए कवि ने सिद्ध किया है कि उलझता कोई है, टूटता कोई और है ।। चित्त किसी का जुड़ता है और मन में गाँठ किसी और के पड़ जाती है; अर्थात् नेत्र प्रेमियों के उलझते हैं, परन्तु टूट कुटुम्ब जाते हैं ।। चित्त तो प्रेमियों के जुड़ते हैं और गाँठ दुर्जनों के हृदय में पड़ जाती है ।। प्रेम की यह रीति बहुत ही विचित्र है ।।

काव्य-सौन्दर्य- (1) प्रेम की विचित्र रीति का अत्यन्त प्रभावशाली वर्णन किया है ।। (2) भाषा- ब्रजभाषा ।। (3) शैली- मुक्तक ।। (4) अलंकार- असंगति, श्लेष और अनुप्रास ।। (5) रस- शृंगार ।। (6) छन्द- दोहा ।। (7) भावसाम्य- प्रेमीजनों के प्रति दुष्टों की ईर्ष्या और निंदा की प्रवृत्ति का स्वाभाविक चित्रण हुआ है ।। बिहारी ने प्रेम की ऐसी ही आश्चर्यपूर्ण स्थिति का वर्णन अन्यत्र भी किया है
अद्भुत गति यह प्रेम की, लखौ सनेही आइ ।।
जुरै कहूँ टूटै कहूँ, कहूँ गाँठ परि जाइ ॥


2 — निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए ।।

(क) अजौ तरयौना ही रह्यौ, श्रुति सेवत इक रंग ।।
नाक बास बेसरि लह्यौ, बसि मुकतनु के संग ।।


सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ के ‘कविवर बिहारी’ द्वारा रचित ‘भक्ति एवं शृंगार’ शीर्षक से अवतरित है ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में कवि ने नाक व कान के आभूषण के माध्यम से सत्संगति की महिमा का वर्णन किया है ।।

व्याख्या- निरन्तर कानों का सेवन करने पर भी कान का आभूषण, निम्न स्थान पर ही रहा; अर्थात् उसका आज तक उद्धार न हो सका, जब कि नाक के आभूषण ने मोतियों के साथ बसकर, नाक के उच्च स्थान को प्राप्त कर लिया ।। तात्पर्य यह है कि निरन्तर वेदों की वाणी सुनकर भी एक व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त न कर सका, जबकि निम्न समझे जाने वाले अन्य व्यक्ति ने सत्संगति के माध्यम से उच्चावस्था अथवा मोक्ष को प्राप्त कर लिया ।।

(ख) भरे भौन मैं करत हैं, नैनन ही सौं बात ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति पंक्ति में कवि ने नायक-नायिका की वाक-चातुरी का वर्णन किया है ।।

व्याख्या- नायक और नायिका दोनों अपने परिजनों से घिरे हुए भवन में बैठे हुए हैं, तब दोनों आपस में बातें कैसे करें? उन्होंने इस समस्या का समाधान कर लिया है और वे अब आँखों एवं मुख- भंगिमाओं के द्वारा एक-दूसरे से अपने मन की बात संकेतों में कह रहे हैं ।। इससे न तो उनके किसी परिजन को कुछ पता चला और उनकी बात भी हो गई ।। यह वार्तालाप कुछ इस प्रकार हुआ- नायक ने आँख के इशारे से नायिका को एकान्त में आने के लिए कहा, मगर नायिका ने आँख के इशारे से ही मना कर दिया ।। नायिका की इस अदा पर नायक रीझ गया, इससे नायिका खीझ उठी ।। इसी बीच दोनों के नेत्र मिले और दोनों के चेहरे खिल उठे; किन्तु परिजनों की उपस्थिति के कारण दोनों लजा गए ।।

(ग) जल चादर के दीप लौं, जगमगाति तन जोति ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- इसमें झीनी साड़ी पहने नायिका की उज्जल देह का आलंकारिक वर्णन किया गया है ।।

व्याख्या- नायिका ने झीनी पारदर्शक सफेद रंग की साड़ी पहनी है ।। उस पारदर्शक साड़ी के अंदर से नायिका की गोरी-उजली देहयष्टि उसी प्रकार जगमगाती हुई दिखाई देती है, जिस प्रकार किसी दीपक का प्रतिबिम्ब पानी के अन्दर दिखाई देता है ।। तात्पर्य यह है कि नायिका के सौन्दर्य को ढकने में वस्त्र सक्षम नहीं हैं ।।

(घ) तनक कचाई देत दुःख, सूरन लौं मुँह लागि ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में यह दर्शाया गया है कि प्रेम की अपरिपक्वता मन के लिए दुःखदायी होती है ।।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि जिस प्रकार पर्याप्त घी और लवण में तला हुआ होने पर भी थोड़ा कच्चा रह जाने से जमीकन्द मुँह में लगता है, उसी प्रकार अपार स्नेह और सौन्दर्य से युक्त होने पर भी प्रेम में स्वभाव का बचकानापन कष्टकर होता है ।। इस प्रकार कवि के अनुसार प्रेम में परिपक्वता अपेक्षित है, क्योंकि कच्चेपन से निरन्तर कष्ट का भय बना रहता है ।।
(ङ) लगालगी लोइन करें, नाहक मन बाँधि जाँहि ॥
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।। प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में प्रेम की विचित्र रीति का अत्यन्त आकर्षक चित्रण किया गया हैं ।।

व्याख्या- प्रेम की रीति बड़ी विचित्र है ।। इसमें अपराध कोई करता है और सजा किसी और को भुगतनी पड़ती है ।। उदाहरण के रूप में कविवर बिहारी कहते हैं कि प्रेम में लगा-लगी अर्थात् मिलने-मिलाने का कार्य तो नेत्र करते हैं; किन्तु बँधना बेचारे मन को पड़ता है, जबकि उसका दोष कोई नहीं होता ।।

(च) वह चितवनि औरै कछू, जिहिं बस होत सुजान ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग-प्रस्तुत सूक्ति में किसी स्त्री की आसक्त करने वाली विशेष प्रकार की चितवन, अर्थात् प्रेमपूर्ण दृष्टि के प्रभाव का वर्णन किया गया है ।।
व्याख्या- बिहारी कहते हैं कि यद्यपि नुकीली और बड़े नेत्रों वाली अनेक स्त्रियाँ संसार में हैं और उन सभी का नेत्र सौन्दर्य भी एक-सा प्रतीत होता है, तथापि सौन्दर्य के पारखी अथवा रसिकजन ऐसी सभी दृष्टियों पर अनुरक्त नहीं होते ।। वे तो उस विशेष प्रकार की दृष्टि के ही वशीभूत होते हैं, जो प्रेमपूर्ण और किसी-किसी की ही होती हैं ।। इस सूक्ति की व्याख्या इस रूप में भी की जा सकती है कि ऐसी अनेक स्त्रियाँ होती हैं जिनकी आँखें नुकीली और विशेष प्रकार की होती हैं, परन्तु विशिष्ट और कटाक्षपूर्ण दृष्टि रखने वाली ऐसी कम ही स्त्रियाँ होती हैं, जिनकी निगाहों के वश में अत्यधिक चतुर और समझदार लोग भी हो जाते हैं ।।

UP Board Solution for Class 11 Sahityik Hindi [ साहित्यिक हिंदी ]

(छ) परति गाँठि दुरजन हियै, दई नई यह रीति ।।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।।
प्रसंग- कविवर बिहारी द्वारा रचित प्रस्तुत सूक्ति में नायिका अपने हृदय के तर्क-वितर्क को अपनी अन्तरंग सखी से कहती है ।।

व्याख्या- बिहारी वाग्वैदग्ध्य के धनी साहित्यकार हैं ।। यहाँ उन्होंने प्रेम के नगर में कुछ विचित्र प्रकार की रीति-नीति देखी तो नगर छोड़कर बाहर जाने की बात करने लगे ।। उनका कहना है कि अपराध कोई और करता है, पर दण्ड किसी अन्य को भुगतना पड़ता है ।। कार्य कहीं होता है तो उसका असर कहीं और दीखने लगता है ।। प्रेम में उलझती तो आँखें हैं और टूटते कुटुम्ब हैं; क्योंकि नायक-नायिका के प्रेम में असहमति के कारण उनके परिवारों का विघटन हो जाता है और उन्हें अलग-अलग रहने पर विवश होना पड़ता है ।। जुड़ते नायक-नायिका के हृदय हैं और गाँठ उनसे ईर्ष्या करने वाले दुर्जनों के हृदय में पड़ती है ।। ऐसे प्रेमनगर में रहना सम्भव नहीं है ।।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

1 — बिहारी के स्वपठित दोहों के आधार पर उनकी भक्ति-भावना का विवरण दीजिए ।।
उत्तर— ‘भक्ति एवं श्रृंगार’ में कवि बिहारी ने अपने अराध्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति-भाव प्रस्तुत किए हैं ।। कवि अपने प्रभु की भक्ति के कारण कुटिल (टेढ़े) बने रहना चाहते हैं क्योंकि उनके प्रभु त्रिभंगीलाल है जो, तीन स्थानों से टेढ़े है और यदि कवि सीधा और सरल हो जाएगा तो उनके प्रभु को उनके हृदय में वास करने में कठिनाई होगी ।। इसलिए वह अपने प्रभु को मन में धारण करने के लिए कुटिल ही बना रहना चाहते हैं ।। अपने प्रभु के प्रति भक्ति के कारण संसार की निंदा सहने को भी तैयार है ।। कवि बिहारी की भक्ति सखा भाव की है ।। कवि ने श्रीकृष्ण के अभूतपूर्व सौन्दर्य का भी वर्णन किया है ।। कवि ने श्रीकृष्ण को अपना मित्र माना है तथा उनके प्रति भक्ति करते हुए राधा व श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्ण मुद्राओं का चित्रण किया है ।।

2 — बिहारीने श्रृंगार के संयोग और वियोगदोनों पक्षों का सरस वर्णन किया है ।। स्वपठित अंश के आधार परविवेचना कीजिए ।।
उत्तर— कवि बिहारी ने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का अद्भुत वर्णन किया है ।। कवि ने श्रृंगार के संयोग रूप का वर्णन करते हुए राधा-कृष्ण की विभिन्न चेष्टाओं के द्वारा श्रृंगार के संयोग पक्ष का चित्रण किया है ।। उन्होंने अपने दोहों में प्रेमिका तथा प्रेमी के विभिन्न भावों को प्रदर्शित किया है जैसे


बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ ।।
सौंह करें भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ ॥
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात ।।
भरे भौन मैं करत है नैननु ही सौं बात ॥


उक्त दोहों में कवि ने प्रेमी-प्रेमिका के विभिन्न प्रेमपूर्ण क्रीड़ाओं का वर्णन करके संयोग पक्ष को जीवन्त कर दिया है ।। कवि बिहारी ने शृंगार के संयोग पक्ष का जितनी कुशलतापूर्वक वर्णन किया है, उतनी ही कुशलता पूर्वक वर्णन उन्होंने वियोग शृंगार का भी किया है ।। उन्होंने प्रेमिका की विरहावस्था का मार्मिक वर्णन किया है ।। जिसमें उन्होंने प्रेमिका (नायिका) को विरह की अग्नि में जलते हुए बताया है- जैसे–

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औंधाई सीसी सु लखि, बिरह-बरनि बिललात ।।
बिच ही सूखि गुलाबु गौ, छींटौ छुई न गात ।।

कवि ने विरह में व्याकुल प्रेमिका को इतना दुर्बल बताया है कि मृत्यु भी उसे आँखों पर चश्मा लगाकर खोजती फिरती हैं ।। जैसे


करी बिरह ऐसी तऊ, गैल न छाड़तु नीचु ।।
दीनै हूँ चसमा चखनु, चाहै लहै न मीचु ॥

3 — बिहारी ने अपनी कुटिलता न त्यागने को क्यों कहा है?
उत्तर— बिहारी ने अपनी कुटिलता न त्यागने को इसलिए कहा है क्योंकि वह अपने प्रभु श्रीकृष्ण को अपने हृदय में बसाना चाहते हैं ।। उनके प्रभु श्रीकृष्ण त्रिभंगीलाल है जो बाँसुरी बजाते हुए गर्दन, कमर व पैर तीनों स्थानों से टेढ़े हो जाते हैं और यदि वह (बिहारी) कुटिलता छोड़कर सीधा व सरल हो गया तो उनको उसके हृदय में बसने में कष्ट होगा, क्योंकि टेढी वस्तु टेढ़े स्थान में ही समा सकती है, सीधे-सरल स्थान में नहीं ।। इसलिए कवि अपनी कुटिलता नहीं त्यागना चाहता ।।

UP Board Solution for Class 11 Sahityik Hindi [ साहित्यिक हिंदी ]


4 — बिहारी ने दोहे जैसे छोटे छन्द में समस्त रस सामग्री का समावेश कर ‘गागर में सागर’ भर दिया है ।। इस कथन को सत्यापित कीजिए ।।
उत्तर— बिहारी ने अपनी काव्य रचना में दोहा छन्द का प्रयोग किया है ।। जिसमें उन्होंने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है जिसमें समास-शैली का अनूठा योगदान है, जिसके कारण इन्होंने दोहे जैसे छोटे छन्द में भी अनेक भाव भर दिए हैं ।। अलंकारों के प्रयोग में बिहारी दक्ष थे ।। इन्होंने छोटे-छोटे दोहों में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया है ।। इनके काव्य में श्लेष, उपमा, अतिशयोक्ति, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है ।। जिनके द्वारा इन्होंने दोहे जैसे छोटे छन्द में भी ‘गागर में सागर’ भर दिया है जैसे

अजौं तर्योना ही रह्यौ, श्रुति सेवत इक रंग ।।
नाक बास बेसरि लौ, बसि मुकतनु के संग ॥
जोग् जुगति सिखए सबै, मनौ महामुनि मैन ।। ।।
चाहत पिय-अद्वैतता, काननु सेवत नैन ।।

काव्य-सौन्दर्य से संबंधित प्रश्न

1 — “करौ कुबत…………………..त्रिभंगीला ॥ “पंक्तियों में निहित रस तथा छन्द का नाम लिखिए ।।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में भक्ति रस तथा दोहा छन्द है ।।
2 — “अंग-अंग नग……………….. — उज्यारौ गेह ॥ “पंक्तियों में निहित अलंकार तथा छन्द का नाम बताइए ।।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियों में पुनरुक्तिप्रकाश तथा उपमा अलंकार तथा दोहा छन्द निहित है ।।
3 — “कंज-नयनि……………….. — नंदकुमार ॥ “पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— काव्य-सौन्दर्य- (1) नायिका की क्रिया चातुरी दर्शनीय है ।। (2) भाषा- ब्रज, (3) शैली- मुक्तक, (4) रस- शृंगार, (5) छन्द- दोहा, (6) अलंकार- अनुप्रास, (7) शब्दशक्ति- लक्षणा, (8) गुण- माधुर्य ।।
4 — “रहौ,गही …………………….सुखाए बार ।। “पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर— काव्य-सौन्दर्य- (1) बिहारी ने इस दोहे में इस बात का संकेत किया है कि वह नायिका स्वाधीनपतिका है; क्योंकि उसे अपने काले, घने, लंबे बालों पर गर्व है; तभी तो वह ‘नीठि सुखाए बार’ कहती है ।। (2) भाषा- ब्रज ।। (3) शैली- मुक्तक, (4) रस संयोग शृंगार, (5) छन्द- दोहा, (6) अलंकार- व्याजोक्ति ।।

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