UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)
UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)

लेखक पर आधारित प्रश्न


1 — यशपाल का जीवन-परिचय देते हुए इनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए ।।

उत्तर— लेखक परिचय-प्रेमचन्दोत्तर युग के सुप्रसिद्ध यथार्थवादी एवं प्रगतिशील कहानीकार यशपाल जी का जन्म 3 दिसम्बर, सन् 1903 ई० में पंजाब प्रान्त की फिरोजपुर छावनी में हुआ था ।। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल काँगड़ी में हुई, जहाँ के देशभक्ति युक्त वातावरण के परिणामस्वरूप इनमें राष्ट्र-प्रेम की भावना जागृत हुई ।। नेशनल कॉलेज, लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान में) से इन्होंने माध्यमिक व उच्च शिक्षा प्राप्त की ।। इसी समय सुखदेव और भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारियों से इनका सम्पर्क हुआ ।। राजद्रोह का आरोप लगाते हुए अंग्रेजी शासकों द्वारा इन्हें कठोर कारावास का दण्ड दिया गया और कारागार में ही ये स्वाध्याय तथा साहित्य-सृजन का कार्य करते रहे ।। लखनऊ आकर इन्होंने ‘विप्लव’ नामक मासिक-पत्र सम्पादित व संचालित किया ।। ये आजीवन साहित्य साधना में लगे रहे ।। ये मार्क्सवाद से भी प्रभावित थे ।। साहित्य का यह साधक 26 दिसम्बर, सन् 1976 ई० में चिर-निद्रा में लीन हो गया ।। यथार्थता यशपाल जी की कहानियों की प्रमुख विशेषता है ।। सामाजिक कुरीतियों, कुसंस्कारों पर इन्होंने व्यंग्यात्मक प्रहार किया है ।। पुराने रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि की इन्होंने कटु आलोचना की है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा)

कृतियाँ- यशपाल जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं
कहानी-संग्रह- फूलो का कुर्ता, पिंजड़े की उड़ान, उत्तमी की माँ, तर्क का तूफान, भस्मावृत्त, मेरा चेहरा रौबीला है, बीवी जी कहती हैं, अभिशप्त, तुमने क्यों कहा था कि मैं सुन्दर हूँ, चिनगारी आदि ।। कहानियाँ- परदा, समय, चार आने, कर्मफल, फूल की चोरी, मक्रील, पाँव तले की डाल, वर्दी, धर्मयुद्ध, सच बोलने की भूल आदि इनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं ।। उपन्यास- देशद्रोही, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, दिव्या, तेरी-मेरी उसकी बात, झूठा सच आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं ।। यात्रावृत्त- लोहे की दीवार के दोनों ओर, राहबीती ।। निबन्ध, संस्मरण आदि साहित्यिक विधाओं की भी इन्होंने अपनी लेखनी से श्रीवृद्धि की है ।।


2 — यशपाल के कथा-शिल्प एवं शैली पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — कथा-शिल्प एवं शैली- यशपाल जी की कहानियों में जीवन-संघर्ष में रत एवं सन्तप्त मानव-स्तर जीवन्त रूप में मुखर हुआ है ।। इन पर मार्क्सवादी विचारधारा का गहन प्रभाव देखने को मिलता है ।। यशपाल जी ने समस्या-प्रधान, सरल एवं स्पष्ट कथानक वाली कहानियाँ लिखी हैं ।। कथानक अधिकतर मध्यमवर्गीय जीवन से चुने गए हैं ।। इन्होंने विविध वर्गों, स्थितियों एवं जातियों पर आधारित पात्रों से संबंधित जीवन-संघर्ष, विद्रोह एवं उत्साह के सजीव चित्रण को प्रस्तुत किया है ।। कहानियों में पात्रों का चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक आधार पर हुआ है ।। इनकी कहानियों की भाषा-शैली व्यावहारिक एवं सरल है ।। इन्होंने जनसाधारण में प्रचलित अन्य भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है ।। मुहावरों एवं लोकाक्तियों के प्रयोग से रोचकता में वृद्धि हुई है ।। उर्दू, फारसी के शब्द भी इनकी भाषा में प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं ।। सामाजिक विकृतियों पर इन्होंने तीखे व्यंग्य किए हैं ।। इनके कथोपकथन अकृत्रिम एवं स्वाभाविक हैं तथा वे पात्रों की मनोदशा का स्पष्ट चित्राकंन करने के साथ ही कथावस्तु को विकसित करने में पूर्ण रूप से सक्षम सिद्ध हुए हैं ।। यशपाल जी को ही नई कहानी का प्रथम कहानीकार कहा गया है, क्योंकि इन्होंने एक सुनिश्चित जीवन-दर्शन और विचारधारा को लक्ष्य बनाकर अपनी कहानियाँ लिखीं ।। कुछ आलोचकों का यह कहना कि “मार्क्सवाद यशपाल जी की दुर्बलता है’ यह सत्य नहीं है, बल्कि मार्क्सवाद ही उनकी शक्ति है ।। इसके बल पर ही इन्होंने मध्यवर्गीय समाज की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं नैतिक विसंगतियों पर अपनी लेखनी से घातक एवं निर्मम वार किए हैं ।। इनकी कहानियाँ प्रेमचन्द की तरह यथार्थ पर आधारित होती हैं ।। इनके अधिकतर पात्र शहरी हैं ।। हिन्दी-साहित्य जगत में ‘यशपाल’ जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा ।।

पाठ पर आधारित प्रश्न

1 — ‘समय’कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर — कहानी के नायक लेखक के पापा को रिटायर होने से डेढ़-दो वर्ष पूर्व ही रिटायरमेंट के बाद की चिन्ता सताने लगी थी ।। उन्हें लगता था कि यह व्यवस्थित जीवन भविष्य में किस प्रकार व्यतीत होगा ।। इसलिए उन्होंने तभी से उस समय के लिए योजनाएँ बनाना शुरू कर दिया ।। उन्हें अपना खर्च कम करना पड़ेगा, इसके लिए उन्होंने तभी से मितव्ययिता की आदत अपनानी शुरू कर दी ।। समय के साथ-साथ बच्चे बड़े हो जाते हैं ।। पीढ़ी का अन्तर, विचारों का अन्तर, सब अपने-अपने व्यक्तित्व के अनुसार गतिमान रहते हैं ।। पीढ़ी के इसी अन्तर का प्रभाव वृद्धावस्था पर होता है ।। पापा ऐसा अनुमान करते थे कि रिटायर होने के बाद दूसरों के आदेश से मुक्ति मिलेगी, अध्ययन के लिए समय मिलेगा ।। पापा कभी भी स्वयं को बूढ़ा या बुजुर्ग नहीं समझते थे ।। सर्विस के दौरान वे कभी-कभी हिल स्टेशनों पर चले जाते थे ।। पहाड़ों पर चढ़ाई के लिए वे छड़ी खरीदते अवश्य थे, परन्तु लौटने पर छड़ी का प्रयोग नहीं करते थे ।। उनके विचार से छड़ी टेककर चलना बुढ़ापे या बुजुर्गी का लक्षण था ।। वे स्वयं को स्वस्थ अनुभव करते थे ।। पहाड़ों पर घूमने जाना अब उन्होंने छोड़ दिया था ।। वे सुबह-शाम टहलने जाते, तो केवल अपनी पत्नी के साथ ही जाते थे ।। बच्चों को नौकरानी के साथ बाहर भेज देते थे ।। कभी-कभी बच्चे साथ होते, तो जरा सा ठुनकने से ही उन्हें मनचाही वस्तु मिल जाती थी ।। बच्चों को बाजार में वे कभी भी डाँटते-धमकते नहीं थे ।। रिटायरमेंट के बाद भी वे किसी न किसी कार्य में सदैव व्यस्त रहते थे ।।

कुछ हल्की-फुल्की चीजें खरीदने के लिए वे पैदल ही सन्ध्या के समय हजरतगंज चले जाते थे ।। उनका स्वभाव व व्यवहार अब पहले की अपेक्षा परिवर्तित हो गया था ।। पहले उन्हें अच्छी पोशाक, अच्छी-अच्छी चीजें खरीदने का बहुत शौक था लेकिन अब वे पुराने कपड़ों से ही सन्तुष्ट रहते ।। पापा पहले बच्चों को साथ नहीं ले जाना चाहते थे परन्तु अब वे किसी न किसी को साथ ले जाना चाहते ।। सुबह-शाम टहलने जाते समय भी किसी को साथ ले जाना पसन्द करने लगे ।। उनकी नजर पर भी आयु का प्रभाव होने लगा ।। देर तक पढ़ने-लिखने से उन्हें धुंधलेपन का अनुभव होने लगा ।। चलते समय कम प्रकाश में ठोकर लगने तथा अधिक प्रकाश में चकाचौंध होने से वे परेशानी का अनुभव करने लगे ।। स्थिति ऐसी हो गई थी कि अब किसी को लिए बिना बाहर जाने में वे स्वयं को असमर्थ अनुभव करते थे ।। एक दिन उन्होंने साथ चलने के लिए कहा, तो कोई भी साथ चलने के लिए तैयार नहीं हुआ ।। लेखक की बहन मन्टू ने भी मना कर दिया ।। उसने पुष्पा दीदी से कहा- “तुम भी क्या दीदी….. — बुड्ढों के साथ कौन बोर हो ।। ‘ पापा हैंगर से कोट उतारकर पहनने जा रहे थे ।। यह बात उन्हें चुभ गई ।। एक बुझी हुई सी मुस्कान के साथ कोट हाथ में लिए, वे कुर्सी पर बैठ गए ।। नजर फर्श की ओर झुक गई ।। उन्होंने अपनी छड़ी मँगाई, मूठ पर हाथ फेरा ओर छड़ी को टेककर समय को स्वीकार कर लिया ।।

2 — ‘समय’कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — ‘समय’ कहानी का उद्देश्य- प्रगतिशील कहानीकार यशपाल की प्रस्तुत कहानी का एकमात्र उद्देश्य यही चित्रित करना है कि माता-पिता अपने बच्चों के लिए चाहे स्वयं को कितना ही बदल डालें, किन्तु वे बच्चों द्वारा की गई अपनी उपेक्षा से बच नहीं पाते ।। बच्चों की यह उपेक्षा माता-पिता को भीतर तक तोड़ देती है ।। यद्यपि वे अपने उपेक्षा की पीड़ा को किसी से व्यक्त नहीं कर पाते, किन्तु वे स्वयं को अकेला महसूस करते हुए किसी प्रकार अपना जीवन व्यतीत करते हैं ।। इस कहानी के द्वारा कहानीकार बच्चों को यह सन्देश भी देना चाहता है कि उन्हें जीवन की सान्ध्य-बेला में अपने माता-पिता की उपेक्षा अथवा तिरस्कार नहीं करना चाहिए ।। कहानीकार को अपना सन्देश देने में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा) ||

३ — ‘समय’कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता हैं ।।
उत्तर — ‘समय’ कहानी के माध्मय से लेखक यशपाल यह सन्देश देना चाहते हैं कि जब बच्चे युवा हो जाएँ, अपना हित-अहित सोचने में सक्षम हो जाएँ, औचित्य-अनौचित्य का निर्णय करने में समर्थ हो जाएँ तो बुजुर्गों को उनके व्यक्तिगत कार्यो या व्यस्तताओं में न तो हस्तक्षेप करना चाहिए, न ही उसे अपने अनुसार परिवर्तित करना चाहिए और न ही उनमें स्वयं को समायोजित करने का प्रयास करना चाहिए ।। ऐसी स्थिति अनावश्यक रूप से कटुता को जन्म देती है ।। अतः प्रत्येक व्यक्ति को समय के अनुसार अपने आचार-विचार व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए ।। यही विचार सुखी जीवन की आधारशिला है ।।
४— शीर्षक की दृष्टि से ‘समय’ कहानी का मूल्यांकन कीजिए ।।
उत्तर — प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘समय’ पूरी कथा को स्वयं में समाहित किए हुए है ।। कहानी में आरम्भ से अन्त तक कुछ भी नहीं बदला ।। यदि बदला है तो वह है ‘समय’, जिससे पापा यह सोचने के लिए विवश हो गए कि अब स्वयं या बच्चों के सहारे चलने का समय बीत चुका है ।। अब जीवन का शेष समय उन्हें अकेले ही छड़ी के साथ व्यतीत करना पड़ेगा ।। कहानी का शीर्षक ‘समय’ उद्देश्यपूर्ण, सारगर्भित, संक्षिप्त, रोचक एवं आकर्षक है ।। अत: कहा जा सकता है कि इस कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त एवं सार्थक है ।।

5 — कथोपकथन के आधार पर ‘समय’ कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर — कथोपकथन या संवाद- ‘समय’ कहानी के संवाद जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति में सक्षम हैं ।। सम्पूर्ण कहानी लेखक द्वारा अपनी पूर्व स्मृति और बचपन की घटनाओं को समायोजित करते हुए लिखी गई है ।। कहानी में लेखक के स्वयं के कथन और उठाए गए प्रश्न हैं ।। इन प्रश्नों के उत्तर भी लेखक ने स्वयं ही दिए हैं ।।

कहानी में संवाद-योजना अति अल्प है, लेकिन जहाँ कहीं भी है, पूर्णता के साथ मुखर हुई है ।।
एक उदाहरण द्रष्टव्य है


मण्ट्र ने मुझे रोककर कहा- “सुनो, अम्मी पापा के साथ बाजार जा रही हैं ।। हम भी उनके साथ बाजार जाएँगे ।। ” मण्ट्र ने हुबिया को सम्बोधित किया, “हुबिया, हमारी सैण्डल में कील लग रही है ।। हम दूसरी सैण्डल पहनकर आते हैं ।। ” हम दोनों घर की ओर भाग आए ।। मण्टू का अनुमान ठीक था ।। हम लौटे तो ड्योढ़ी में पहुँचते ही अम्मी की पुकार सुनायी दी-“जी,आइए, मैं चल रही हूँ ।। ” अम्मी बाहर जाने के लिए साड़ी बदले और जूड़े में पिनें खोंसती हुई आ रही थी ।। मण्टू अम्मी की कमर से लिपट गई और डबडबाई आँखें अम्मी के मुँह की ओर उठाकर ऑसू-भरे स्वर में हिचकहिचककर गिड़गिड़ाने लगी- ‘कभी. — कभी… — कभी बच्चों को भी…..तो…साथ ले जाना चाहिए ।। ” तब तक पापा भी आ गए थे ।। उन्होंने पूछा- “क्या है, क्या है? वे समझ गए थे, बोले- “अच्छा बच्चो, एकदम तैयार हो जाओ ।। “

इस प्रकार ‘समय’ कहानी के संवाद पात्रों के मनोभावों को भली-भाँति अभिव्यक्त करते हैं ।। वे संक्षिप्त तथा प्रभावशाली हैं ।।

6 — ‘समय’कहानी में लेखक ने मध्यमवर्गीय नौकरी-पेशा लोगों के जीवन की किन परिस्थितियों को उजागर किया है?
उत्तर — ‘समय’ कहानी में लेखक ने मध्यमवर्गीय नौकरी-पेशा लोगों की रिटायर हो जाने के बाद की परिस्थिति को उजागर किया है ।। जिसमें रिटायर हो जाने के बाद उनके शौक, वेशभूषा में परिवर्तन हो जाता है तथा वे अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करना पसंद करने लगते हैं ।। रिटायर के बाद इन व्यक्तियों को अपना समय व्यतीत करने की भी चिन्ता रहती है और ये इस समय में कुछ कार्य करने की योजना बनाते हैं ।। रिटायर के बाद लोग मितव्ययिता करने लगते हैं ।। UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)


7 — ‘समय’ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए अथवा उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर — ‘समय’ कहानी का प्रमुख पात्र एक अवकाश प्राप्त अधिकारी है ।। कहानी में इन्हें ‘पापा’ की संज्ञा दी गई है ।। इनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) सम्भावित भविष्य के प्रति चिन्तित- ‘पापा’ अपनी नौकरी से अवकाश प्राप्त करने से पूर्व से ही चिन्तित थे कि अवकाश का बोझ कैसे सँभलेगा और जीवन का अधिकांश समय कैसे व्यतीत होगा?
(ii) व्यवस्थित दिनचर्या के व्यक्ति- ‘पापा’ व्यवस्थित दिनचर्या वाले व्यक्ति हैं ।। अवकाश प्राप्त होने पर उन्हें कार्यालयीय भार से मुक्ति मिल जाएगी ।। अतः उस समय का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी कि वे अपने शासन-कार्य के अनुभव पर एक पुस्तक लिखेंगे ।। अब वे इस पर अध्ययन करते हैं और नोट्स भी बनाते हैं ।। शाम को वे विभिन्न वस्तुओं को खरीदारी भी करते हैं ।।

(iii) शौकीन मिजाज- पापा बहुत ही शौकीन मिजाज के व्यक्ति थे ।। उनकी पोशाक हमेशा चुस्त-दुरुस्त रहती थी ।। अपने उपयोग में आने वाली अच्छी और स्तरीय वस्तुओं का शौक था ।। नौकरी के दौरान वे खर्चीले स्वभाव के थे ।। गरमियों के दिनों में पर्वतीय स्थानों पर घूमने व रहने का उन्हें बड़ा शौक था ।। घर में हमेशा दो-तीन नौकर रहा करते थे ।।

(iv) जीवन से सन्तुष्ट– पापा अपनी नौकरी के समय में अपने जीवन से सन्तुष्ट थे और अब अवकाश के समय में भी सन्तुष्ट हैं ।। अपने जिन शौक और रुचियों से उन्हें अब सन्तुष्टि नहीं होती, उन शौक और रुचियों को अपने बच्चों द्वारा पूरा होते देखकर वे सन्तुष्ट हो जाते हैं ।।
(v) युवा दिखने की चाहत– पापा को शुरु से ही युवा दीखने की चाहत थी ।। इसीलिए मम्मी के साथ घूमने जाते समय वे बच्चों को अपने साथ नहीं ले जाते थे; क्योंकि इससे उन्हें अपने बुजुर्ग होने का अनुभव होता था ।। ।।UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा)

(vi) समय के साथ परिवर्तित– अवकाश प्राप्त होने के बाद पापा मितव्ययी हो गए ।। दूसरे वे बच्चों को भी अपने साथ ले चलना चाहते हैं; क्योंकि बच्चे भी अब कद में उनसे ऊँचे, जवान, स्वस्थ और सुडौल हो गये हैं ।। इससे उन्हें अब गर्व का अनुभव होता हैं ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक पढ़े-लिखे, सभ्य और सुशिक्षित युवक और कालान्तर में परिवर्तित प्रौढ़ व्यक्ति के चरित्र में जो गुण होने चाहिए, वे सभी गुण पापा में निहित हैं ।। लेखक यशपाल जी ने कहानी में इनका चरित्र-चित्रण अत्यधिक गरिमापूर्ण और स्वाभाविक ढंग से ऐसे ही किया है, जैसे वे स्वयं अपने पिता का चरित्र-चित्रण कर रहे हों ।। “समय के साथ स्वयं को बदल लेने में ही बुद्धिमानी है ।। “‘समय’ कहानी के आधार पर इस कथन की विवेचना कीजिए ।। ‘समय’ कहानी यथार्थता पर आधारित है ।। समय किस प्रकार किसी व्यक्ति और उसके बच्चों की मानसिकता को परिवर्तित कर देता है ।। यह इस कहानी का मूलभाव है ।। इसलिए व्यक्ति को किसी की सोच के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए स्वयं को समय के साथ बदल लेना चाहिए अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसे अपार पीड़ा सहन करनी पड़ती है ।। जब व्यक्ति वृद्ध होकर रिटायर हो जाता है तो वह बच्चों की उपेक्षा व अवहेलना से नहीं बच पाता ।। इसलिए व्यक्ति को समय के साथ स्वयं को बदल लेने में ही बुद्धिमानी हैं ।।

9 — कहानी के तत्वों की दृष्टि से ‘समय’ कहानी की समीक्षा कीजिए ।।
उत्तर — यथार्थवादी प्रगतिशील कहानीकारों में यशपाल जी का विशिष्ट स्थान है ।। यशपाल जी समाजवादी विचारधारा के प्रबुद्ध कहानीकार हैं ।। उनकी प्रस्तुत कहानी का कथानक मध्यमवर्गीय जीवन से लिया गया है ।। उनकी यह कहानी सत्य और यथार्थ पर आधारित समाजवादी विचारधारा की सुन्दर रचना है ।। कहानी-शिल्प की दृष्टि से इस कहानी की विशेषताएँ निम्नवत् हैं
(i) शीर्षक– प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘समय’ एक प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है ।। सम्पूर्ण कहानी में समय की ही प्रमुखता को दर्शाया गया है ।। अपने जीवन के शीर्ष समय में शीर्ष पर स्थित व्यक्ति समय बदल जाने; अर्थात नौकरी से अवकाश प्राप्त कर लेने अथवा बुजुर्ग हो जाने पर कितना बदल जाता है, उसके आस-पास की स्थितियों में कितना परिवर्तन हो जाता है, उसे इस कहानी में अच्छी तरह से दर्शाया गया है ।। शीर्षक में प्रतीकात्मकता, कौतूहल, सरलता और सजीवता है ।। ‘समय’ सम्पूर्ण कहानी के कथानक का प्राण है ।।

(ii) कथावस्तु– इस कहानी के माध्यम से एक ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार का चित्र खींचा गया है, जिसका मुखिया उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी है ।। अपनी नौकरी के समय में कार्यालय से घर वापस आने पर इनका अधिकांश समय; चाहे वह बाजार जाने का हो या टहलने का; पत्नी के साथ ही व्यतीत होता था ।। इससे बच्चों की सहभागिता न्यूनतम होती थी ।। अवकाश प्राप्ति के बाद लखनऊ में स्थापित होने पर इन्हें बच्चों के साहचर्य की आवश्यकता महसूस होने लगी ।। पहले तो ये पत्नी के साथ ही घूमने चले जाया करते थे, लेकिन पत्नी के असमर्थ होने और कुछ अपनी भी कमजोरियों के कारण अब वे अपने युवा हो चुके बच्चों पर निर्भर होने लगे ।। लेकिन युवा मानसिकता का अपनी रुचि, अपनी व्यस्तता ।। एक दिन मण्टू ने तो स्पष्ट रूप से कह दिया कि बुड्ढों के साथ जाने में बोरियत होती है ।। पापा ने यह सब कुछ सुना, समझा और छड़ी उठाकर अकेले ही टहलने के लिए चल दिये ।। सम्भवतः उन्होंने भी अन्तर्मन से इस सत्य को स्वीकार कर लिया ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कहानी का कथानक संगठित है ।। लेखक ने यथार्थवादी दृष्टि से एक मध्यमवर्गीय तथाकथित शिक्षित परिवार की वास्तविक तसवीर प्रस्तुत की है ।। कथानक में संक्षिप्तता, सजीवना, रोचकता, कुतूहल आदि गुण विद्यमान हैं ।। कहानी मर्मस्पर्शी तो नहीं है, लेकिन विचारों को आन्दोलित अवश्य करती है ।।

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(iii) पात्र और चरित्र-चित्रण– इस कहानी के सभी पात्र यथार्थवादी हैं ।। कहानी में पात्रों की संख्या कम है ।। सभी पात्र एक परिवार के सदस्य और भाई-बहन हैं ।। परिवार के मुखिया अर्थात् पापा ही कहानी के मुख्य पात्र है और शेष सभी पात्र; जिसमें गृह-स्वामिनी भी सम्मिलित है; गौण हैं ।। ये सभी मुख्य पात्र पापा की चारित्रिक विशेषताओं को उजागर करने के लिए ही कहानी में प्रयुक्त हुए हैं ।। कहानी में यशपाल ने पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यधिक स्वाभाविकता और मनोवैज्ञानिक के साथ किया है ।।

(iv) कथोपकथन या संवाद– ‘समय’ कहानी के संवाद जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति में सक्षम हैं ।। सम्पूर्ण कहानी लेखक द्वारा अपनी पूर्व स्मृति और बचपन की घटनाओं को समायोजित करते हुए लिखी गई है ।। कहानी में लेखक ने स्वयं के कथन और उठाए गए प्रश्न हैं ।। इन प्रश्नों के उत्तर भी लेखक ने स्वयं ही दिए हैं ।। कहानी में संवाद-योजना अति अल्प है, लेकिन जहाँ कहीं भी है, पूर्णता के साथ मुखर हुई है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य हैमण्ट ने मुझे रोककर कहा- “सनो, अम्मी पापा के साथ बाजार जा रही हैं ।। हम भी उनके साथ बाजार जाएँगे ।। ” मण्टू ने हुबिया को सम्बोधित किया, “हुबिया, हमारी सैण्डल में कील लग रही है ।। हम दूसरी सैण्डल पहनकर आते हैं ।। “हम दोनों घर की ओर भाग आए ।। मण्टू का अनुमान ठीक था ।। हम लौटे तो ड्यूढ़ी में पहुँचते ही अम्मी की पुकार सुनाई दी- “जी, आइए, मैं चल रही हूँ ।। “‘अम्मी बाहर जाने के लिए साड़ी बदले और जुड़े में पिनें खोंसती हुई आ रही थीं ।। मण्टू अम्मी की कमर से लिपट गई और डबडबाई आँखें अम्मी के मुँह की ओर उठाकर आँसू-भरे स्वर में हिचकहिचककर गिड़गिड़ाने लगी- ‘कभी….कभी…. — कभी बच्चों को भी……तो….साथ…..ले जाना चाहिए ।। ” तब तक पापा भी आ गए थे ।। उन्होंने पूछा- “क्या है, क्या है?” UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 समय (यशपाल)

वे समझ गए थे, बोले- “अच्छा बच्चों, एकदम तैयार हो जाओ ।। ” इस प्रकार ‘समय’ कहानी के संवाद पात्रों के मनोभावों को भली-भाँति अभिव्यक्त करते हैं ।। वे संक्षिप्त तथा प्रभावशाली हैं ।। देश-काल तथा वातावरण- यशपाल जी एक यथार्थवादी कहानीकार हैं और उनकी कहानी ‘समय’ एक यथार्थपरक कहानी है ।। इसमें देश-काल तथा वातावरण का वर्णन कहानी को पूर्णता प्रदान करने के उद्देश्य से ही किया गया है ।। एक उदाहरण देखिएहम लोग उनकी संगति के लिए बचपन के दिनों की तरह लालायित नहीं रह सकते ।। कारण यह है कि अठारह-बीस पार कर लेने पर हम लोग भी अपना व्यक्तित्व अनुभव करने लगे हैं ।। हम लोगों की अपनी वैयक्तिक रुझानें, अपने काम और अपने क्षेत्र भी हो गए हैं और उनके आकर्षण और आवश्यकताएँ भी रहती हैं ।। कभी-कभी पापा की आवश्यकता और हमारी संगति के लिए उनकी इच्छा और हमारी अपनी आवश्यकताओं और आकर्षणों में द्वन्द्वकी स्थिति आ जाना अस्वाभाविक नहीं है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि देश-काल तथा वातावरण का वर्णन सीमित रूप से होते हुए भी कहानी की सफलता में अपना योगदान करता है ।।

(vi) भाषा-शैली- प्रस्तुत कहानी के पात्र समाज के शिक्षित और मध्यम वर्ग से सम्बन्धित हैं ।। इसलिए कहानी की भाषा, सरल, सुबोध और व्यावहारिक खड़ी बोली है) कहानी में तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रचुरता से हुआ है ।। सम्पूर्ण कहानी की भाषा कहीं पर भी स्तर से नीचे नहीं होने पायी है ।। आजकल का युवा वर्ग बात-चीत में अंग्रेजी शब्दों का खुलकर प्रयोग करता है ।। इसी उद्देश्य से लेखक ने अपनी भाषा में भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग बिना किसी संकोच के खुलकर किया है ।। इसके प्रयोग से कहीं भी भाषा की गतिमयता बाधित होती नहीं दीखती ।। कहीं-कहीं पर स्थानीय बोली में प्रयुक्त शब्द भी आए हैं ।। कहानी में विचारात्मक-विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।। एक उदाहरण देखिएपापा की अवचेतना में रिटायर हो जाने के डेढ़-दो वर्ष पूर्व से ही चिन्ता सिर उठाने लगी थी- रिटायर हो जाने पर अवकाश का बोझ कैसे सँभलेगा? अपनी इस चिन्ता का निराकरण करने के लिए प्रायः ही कहने लगते- “लोग बाग रिटायर होकर निरुत्साह क्यों हो जाते हैं? सोचिए नौकरी करते समय अवकाश के दिनों की प्रतीक्षा की जाती है ।। जब दीर्घ श्रम के पुरस्कार में पूर्ण अवकाश का अवसर आ जाए तो निरुत्साह होने का क्या कारण? इसे तो अपने श्रम का अर्जित फल मानकर, उससे पूरा लाभ उठाना और सन्तोष पाना चाहिए ।।


(vii) उद्देश्य- यशपाल प्रगतिशील साहित्यकार हैं ।। प्रस्तुत कहानी में यशपाल जी ने यह दर्शाया है कि प्रत्येक व्यक्ति को समय का महत्व समझना चाहिए और समय के परिवर्तन के साथ-साथ अपने में भी परिवर्तित ले आना चाहिए ।। यह सत्य है कि अधिक उम्र का व्यक्ति युवा के साथ रहकर स्वयं को भी युवावत अनुभव करता है ।। लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि युवा स्वयं को उम्रदराज के साथ कैसा अनुभव करता होगा ।। अतः सभी को समय के साथ स्वयं में परिवर्तन ले आना चाहिए ।। लेखक ने इस बात को कहानी के अन्त में स्पष्ट भी कर दिया है-“हाँ, यह तो बहुत अच्छी बात है ।। ” पापा ने छड़ी की मूठ पर हाथ फेरकर कहा और छड़ी टेकते हुए किसी की ओर देखे बिना घूमने के लिए चले गए; मानो हाथ की छड़ी को टेककर उन्होंने समय को स्वीकार कर लिया ।।

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