Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 2 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

Up board class 11 hindi sanskrit khand chapter 2 vandana संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

द्वितीयः पाठः प्रयागः

अवतरण अनुवादात्मक प्रश्न — संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना


निम्नलिखित गद्यावतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
1— भारतवर्षस्य………………………… प्रत्यगच्छत् ।।
{ शब्दार्थ-विशिष्टं स्थानम् = विशेष स्थान, ब्रह्मणः = ब्रह्म के द्वारा, प्रकृष्टयागकरणात् = श्रेष्ठ यज्ञ करने के कारण, सितासितजले > सित + असित + जले = श्वेत और श्याम जल में अर्थात् गंगा और यमुना के जल में, विगतकल्मषाः = पापरहित्, अमायाम् = अमावस्या में, पौर्णमास्याम् = पूर्णमासी में, सम्मर्दः = भीड़, उषित्वा = रहकर, आत्मानम् = स्वयं को, पावयन्ति = पवित्र करते हैं, प्रत्यगच्छत् = वापस चला जाता या लौट जाता था }
सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यावरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।

अनुवाद– भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य में प्रयाग का विशेष स्थान है ।। यहाँ ब्रह्मा द्वारा किए गए श्रेष्ठ यज्ञ के कारण इसका नाम प्रयाग (प्र + याग = प्रकृष्ट यज्ञ) पड़ा ।। गंगा-यमुना के संगम पर श्वेत-श्याम जल में स्नान करके मनुष्य पापरहित हो जाते हैं, ऐसा लोगों का विश्वास है ।। अमावस्या, पूर्णिमा और संक्रान्ति पर यहाँ स्नान करने वालों की बड़ी भीड़ होती है ।। प्रति वर्ष माघमास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर यहाँ लाखों लोग आते हैं और एक महीने (तक) रहकर संगम के पवित्र जल से एवं विद्वानों-महात्माओं के उपदेशरूपी अमृत से अपने आपको पवित्र करते हैं ।। इसी पर्व (त्योहार) पर महाराज श्रीहर्ष (हर्षवर्द्धन) प्रत्येक पाँचवें वर्ष यहाँ आकर माँगने वालों को अपना सर्वस्व (सब कुछ) दान में देकर मेघ (बादल) के सदृश पुनः (धन) इकट्ठा करने के लिए अपनी राजधानी को लौट जाते थे ।।

2—ऋषेः भरद्वाजस्य ……………………..अगच्छत् ।।
{ शब्दार्थ- दशसहस्त्रमिताः = दस हजार, अधीतिनः = अध्ययन करने वाले, वस्तव्यम् = बसना चाहिए; निवास करना चाहिए, प्रष्टुम् = पूछने के लिए, अत्रैव>अत + एव = यहीं, त्वन्निवासयोग्यम् >त्वत् + निवास-योग्यम् = तुम्हारे रहने योग्य, तेनादिष्टः> तेन+आदिष्टः= उनके आदेश पाकर }
सन्दर्भ- पहले की तरह ।।

अनुवाद- भरद्वाज ऋषि का आश्रम भी यहीं है ।। यहाँ प्राचीनकाल में दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे ।। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए पुरुषोत्तम (पुरुषों में श्रेष्ठ) श्रीराम अयोध्या से वन को जा रहे थे तो ‘मुझे कहाँ निवास करना चाहिए’ यह पूछने के लिए (वे) यहीं भरद्वाज (ऋषि) के पास आए ।। ‘चित्रकूट ही तुम्हारे रहने योग्य उपयुक्त स्थान है’, ऐसी उनसे आज्ञा पाकर सीता और लक्ष्मण के साथ श्रीराम चित्रकूट गए ।।

पुरा वत्सनामकमेकं…………………………………दुर्गे: सुरक्षितः ।।
{ शब्दार्थ- पुरा = पुराने समय में, वत्सनामकमेकम् = वत्स नामक एक, समृद्धं = समृद्धिशाली, इतः = यहाँ से, नातिदूरेऽवर्तत > न+ अतिदूरे + अवर्तत = बहुत दूर नहीं, अप्रतिमसुन्दरः = अद्वितीय सुन्दर, ललितकलाभिज्ञश्चासीत् > ललितकला + अभिज्ञः + च + आसीत् = और ललित कलाओं के जानकार थे, ध्वंसावशेषाः = खण्डहर, ख्यापयन्ति = प्रकट करते हैं, कौशाम्ब्यामेव > कौशाम्बया + एव = कौशाम्बी में ही, स्वशिलालेखमकारयत् > स्व-शिलालेखम् + अकारयत्= अपना शिलालेख बनवाया, योऽधुना>यः+अधुना=जो अब }


सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यावरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।

अनुवाद– प्राचीनकाल में वत्स का नाम एक समृद्ध (धन-धान्य सम्पन्न) राज्य था ।। इसकी राजधानी ‘कौशाम्बी‘ यहाँ से थोड़ी ही दूर थी ।। इस राज्य के शासक महाराज उदयनवीर, अत्यधिक सुन्दर और ललित कलाओं के मर्मज्ञ (पारखी) थे ।। यमुना के किनारे आधुनिक ‘सुजावन’ (नामक) ग्राम में उनके -सुयामुन’ (नामक) महल के खण्डहर उनके सौन्दर्य-प्रेम को प्रकट करते हैं ।। प्रियदर्शी सम्राट अशोक ने कौशाम्बी में ही अपना शिलालेख लिखवाया था, जो अब कौशाम्बी से लाकर प्रयाग के किले में सुरक्षित (रखा गया) है ।।

गङ्गाया ……………………अतिमहत्त्वपूर्णमस्ति ।।
{ शब्दार्थ- पुरूरवसः = पुरुरवा की, अद्यापि = आज भी, विदुषाम् = विद्वानों की, स्थित्या = रहने से; निवास से, अक्षुण्णैव > अक्षुण्ण + एव = अखण्डित ही है, दुष्करम = कठिन, विज्ञाय = जानकर, दुर्गमकारयत् > दुर्गम् + अकारयत = किला बनवाया, गङ्गा-प्रवाहाच्चास्य > गङ्गाप्रवाहात् + च + अस्य = और गंगा के प्रवाह से इसकी, बन्धमप्यकारयत् > बन्धम् +अपि+अकारयत् = बाँध भी बनवाया, सुदृढ़म= अत्यन्त मजबूत }


सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यावरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।

अनुवाद– गंगा के पूर्व की ओर पुराणों में प्रसिद्ध महाराज पुरुरवा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर, आजकल झुंसी नाम से प्रसिद्ध है ।। इसका गौरव आज भी विद्वानों और महात्माओं के निवास से अखण्डित है (अर्थात कम नहीं हुआ है) ।। इतिहास में प्रसिद्ध, नीतिकुशल अकबर नामक मुगल शासक ने दिल्ली से बहुत दूर पूर्व दिशा में स्थित कड़ा और जौनपुर नामक धन-धान्यसम्पन्न राज्यों की देखभाल कठिन जानकर, उन दोनों (राज्यों) के बीच प्रयाग में गंगा और यमुना से घिरा हुआ एक दृढ़ (मजबूत) किला बनवाया और गंगा के प्रवाह (धारा) से उसकी रक्षा के लिए एक विशाल बाँध का भी निर्माण कराया, जो आज भी नगर(प्रयाग) और गंगा के बीच में सीमा के सदृश स्थित है ।। इसी (अकबर) ने अपने ‘इलाही’ धर्म के अनुसार प्रयाग का नाम (बदलकर) ‘इलाहाबाद’ कर दिया ।। यह किला अत्यधिक विशाल, मजबूत और सुरक्षा की दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है ।।

भारतस्य…………………………….. वर्द्धयति ।।
{ शब्दार्थ- आजादोपनामकश्चन्द्रशेखरः > आजाद + उप-नामकः + चन्द्रशेखरः = ‘आजाद’ उपनाम वाला चन्द्रशेखर अर्थात चन्द्रशेखर आजाद, क्रीडास्थली = क्रीडा-भूमि, कर्मभूमिश्च>कर्मभूमिः+च=और कर्मभूमि, अनेकसहस्रसंख्यैः = हजारों; परिवृतः = घिरा हुआ, विविधविद्यापारङ्गतैः = विविध विद्याओं में पारंगत, विद्वद्वरेण्यैः = श्रेष्ठ विद्वानों से, न्यायप्राप्तेरधिकारघोषणामिव> न्याय-प्राप्तेः + अधिकार-घोषणाम् +इव =मानों न्याय-प्राप्ति के अधिकार की घोषणासा, कुर्वन्=करता हुआ }

सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यावरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।

अनुवाद– यह नगर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख केंद्र था ।। श्री मोतीलाल नेहरू, महामना मदनमोहन मालवीय, चन्द्रशेखर आजाद तथा स्वतन्त्रता-संग्राम के अन्य सैनिकों ने इसी पवित्र भूमि पर निवास करके आंदोलन का संचालन किया था ।। राष्ट्रनायक पण्डित जवाहर लाल नेहरू की यह क्रीड़ा स्थली एवं कर्मभूमि है ।। राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार में लगा हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन यही स्थित है और हजारों की संख्या में देशी-विदेशी छात्रों से घिरा, विविध-विधाओं में निष्णात, श्रेष्ठ विद्वानों से सुशोभित, प्रयाग विश्वविद्यालय भरद्वाज (ऋषि) के प्राचीन गुरुकुल के नवीन रूप की भाँति शोभित है ।। इस स्वतन्त्र भारत में प्रत्येक नागरिक के न्याय-प्राप्ति के अधिकार की मानो घोषणा करता हुआ उच्च
न्यायालय इस नगर की प्रतिष्ठा बढ़ा रहा है ।।

5—एवं गङ्गा यमुना ………………………शरीरबन्धः ॥
{ शब्दार्थ- महिमानम् वर्णयन् = महिमा का वर्णन करते हुए, समुद्रपत्न्योः = समुद्र की दोनों पत्नियों अर्थात् गंगा और यमुना के, जलसन्निपाते = जल के संगम पर, पूतात्मनाम् > पूत + आत्मनाम् = पवित्र आत्मा वाले, अभिषेकात् = स्नान करने से, तत्त्वावबोधेन >(तत्त्व + अवबोधेन)= तत्त्वज्ञान की प्राप्ति से, भूयस् = पुन; फिर, तनुत्यजयाम् = शरीर त्यागने वाले को, शरीरबन्धः शरीर का बन्धन }

सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यावरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से उद्धृत है ।।

अनुवाद– इस प्रकार गंगा-यमुना-सरस्वती के पवित्र संगम पर स्थित, भारतीय संस्कृति के केन्द्र ( इस नगर) की महिमा का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने सत्य ही कहा थानिश्चय ही यहाँ समुद्र की पत्नियों (अर्थात् गंगा-यमुना) के जल-संगम में स्नान करने से पवित्र आत्मा वाले मनुष्यों को शरीर त्यागने पर तत्वज्ञान के बिना भी पुनः शरीर के बन्धन में नहीं बँधना पड़ता (अर्थात् उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है) ।।

सूक्तिव्याख्या संबंधी प्रश्न — संस्कृत दिग्दर्शिका प्रथमः पाठः वन्दना

निम्नलिखित सूक्तिपरक पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए
1— महात्मनामुपदेशाभृतेन च आत्मानं पावयन्ति
उ०- सन्दर्भ- प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘प्रयागः’ नामक पाठ से अवतरित है ।।
प्रसंग- प्रस्तुत सूक्ति में महात्माओं के उपदेशों को अमृततुल्य बताया गया है ।।


व्याख्या– प्रस्तुत सूक्ति में विद्वानों और महात्माओं के उपदेशों को अमृततुल्य बताया गया है, जिसको सुनने से लोग पवित्र हो जाते हैं ।। आशय यह है कि श्रेष्ठजनों के उपदेश हमारे लिए जीवनदायी होते हैं ।। सामान्य अवस्था में भी देखा जाता है कि किसी समस्या में फँस जाने पर, जब व्यक्ति की बुद्धि स्वयं उससे निकलने का मार्ग नहीं खोज पाती तब वह व्यक्ति अपने माता-पिता, श्रेष्ठ, गुरुजनों आदि से परामर्श करता है ओर उनसे समस्या से निवृत्त होने का मार्ग पूछता है तथा उनके सुझाए गए मार्ग का अनुसरण करने पर समस्या से मुक्ति भी पाता है ।। महाभारत में भी जब यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करता है कि “मार्ग(उचित) कौन-सा है?”, तब युधिष्ठिर उत्तर देते हैं कि “महाजनो येन गतः स पन्था’, अर्थात् महान् (श्रेष्ठ व्यक्ति) जिस मार्ग का अनुसरण करें, वहीं श्रेष्ठ मार्ग है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महिलाओं-श्रेष्ठजनों के उपदेश अमृततुल्य होते हैं, जीवनदायी होते हैं; क्योंकि वे हमें उचित मार्ग का निर्देश करते हैं ।।

2– प्रियदर्शी सम्राट अशोकः ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह ।। ।।
प्रसंग- कौशाम्बी से प्रयाग से लाए गए अशोक के शिलालेख के परिचय में सम्राट अशोक के सन्दर्भ में यह सूक्ति वाक्य कहा गया है ।।
व्याख्या- सम्राट अशोक एक धीर-वीर सम्राट होने के साथ-साथ प्रजावत्सल भी थे ।। वे सदैव जन-कल्याण के विषय में सोचते थे और उसी के दृष्टिगत अपनी योजनाएँ बनाते और क्रियान्वित करते थे ।। इसीलिए उनको प्रियदर्शी सम्राट् कहा जाता था ।।

3– तत्त्वावबोधेन विनापि भूयस्तनुत्यजांनास्ति शरीरबन्धः ।।
सन्दर्भ- पहले की तरह ।।
प्रसंग- इस सूक्ति में प्रयाग में गंगा-स्नान के महत्व को प्रतिपादित किया गया है ।।

व्याख्या– प्रयाग में गंगा-यमुना का संगम है ।। इन नदियों के जल में स्नान करने से आत्मा पवित्र होती है ।। यद्यपि मोक्ष-प्राप्ति के लिए तत्वज्ञान का होना आवश्यक होता है तथापि प्रयाग ऐसी पवित्र भूमि है कि यहाँ बिना तत्त्वज्ञान के भी शरीर त्यागने के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा जीव को जन्म-मरण के बन्धन में मुक्ति मिल जाती है ।। मुक्ति के लिए कहा गया है कि ‘ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः ‘, अर्थात् ज्ञान से ही मुक्ति होती है; जब कि प्रयाग में केवल गंगा में स्नान करने मात्र से ही मुक्ति हो जाती है ।।


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए
1—– प्रयागस्य नाम ‘प्रयागः’ इति कथम् अभवत्?
उ०- ब्रह्मणः ‘प्रकष्टयागकरणात्’ अस्य नाम प्रयागोऽभवत् ।।

2-प्रयागः कस्मिन् राज्ये स्थितः अस्ति?
उ०- प्रयाग: उत्तर प्रदेशस्य राज्य स्थितः अस्ति ।।

3-ऋषेः भरद्वाजस्य आश्रमः कुत्रास्ति?
उ०- ऋषेः भरद्वाजस्य आश्रमः प्रयागेऽस्ति ।।

4-मकरंगते सूर्येमाघमासे जनाः कुत्रआयान्ति?
उ०- मकरं गते सूर्ये माघमासे जनाः प्रयागम् आयान्ति ।।

5- रामः सीतया लक्ष्मणेन च सह कुत्र अगच्छत्?
उ०- रामः सीतया लक्ष्मणेन च सह चित्रकूटम् अगच्छत् ।।

6- गङ्गायमुनयोः सङ्गम कुत्रास्ति?
उ०- गङ्गायमुनयोः सङ्गम प्रयागेऽस्ति ।।

7- प्रयागस्य नाम इलाहाबाद’ इति कः अकरोत्?
उ०- मुगलशासक: अकबरः स्वकीस्य ‘इलाही’ इति धर्मास्यानुसारेण प्रयागस्य ‘इलाहाबाद’ इति नाम अकरोत् ।।

8- प्रयागस्य दुर्गं बन्धञ्च अकारयत्?
उ०- दिल्ल्याः सुदूरे पूर्वस्यां दिशि स्थितयोः कडाजौनपुरनामकयोः राज्ययोः निरीक्षणं दुष्करं विज्ञाय अकबरनाम्नः मुगलशासकः दुर्ग बन्धञ्च अकारयत् ।।

9- कस्य राजधानी कौशाम्बी आसीत्?
उ०- कौशाम्बी वत्सराज्यस्य राजधानी आसीत् ।।

10- किं नगरं भारतस्य स्वतन्त्रतान्दोलनस्य प्रधानकेन्द्रम् आसीत्?
उ०- प्रयागनगरम् भारतस्य स्वतन्त्रान्दोलनस्य प्रधानकेन्द्रम् आसीत् ।।

11- प्रतिष्ठानपुरं वर्तमाने केन नाम्मा प्रसिद्धमस्ति?
उ०- प्रतिष्ठानपुरं वर्तमाने झूसी नाम्ना प्रसिद्धमस्ति ।।

12- हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनं कुत्र वर्तते?
उ०- हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनं प्रयागे वर्तते ।।

13-प्रयागः कस्य राष्ट्रनायकस्य क्रीडास्थली कर्मभूमिश्चासीत्?
उ०- प्रयागः राष्ट्रनायकस्य पण्डित जवाहरलालस्य क्रीड़ास्थली कर्मभूमिश्चासीत् ।।

14- चन्द्रशेखरस्य उपनाम् किम् आसीत् ।।
उ०- चन्द्रशेखरस्य उपनाम ‘आजाद’ इति आसीत् ।।

15- प्रियदर्शी सम्राट अशोकः स्वशितालेखं कुत्र अकारयत्?
उ०- प्रियदर्शी सम्राट अशोकः स्वशिलालेखं कौशाम्ब्याम् अकारयत् ।।

1- प्रयागे स्नानार्थिनां महान् सम्मर्दः कदा भवति ।।
उ०- प्रयागे स्नानार्थिनां महान् सम्मर्दः अमायां, पौर्णमास्यां, सङक्रान्तौ च भवति ।।

17- महाराजः श्रीहर्ष कुत्र आगत्य सर्वस्वमेव याचकेभ्यः अददात्?
उ०- महाराजः श्रीहर्षः प्रयागे आगत्य सर्वस्वमेव याचकेभ्यः अददात् ।।

18- वत्सराजस्यशासकः कः आसीत्?
उ०- वत्सराज्य शासकः महाराज: उदयनः आसीत् ।।

19- उत्तरप्रदेशस्य उच्चन्यायालयः कुत्र अस्ति?
उ०- उत्तरप्रदेशस्य उच्चन्यायालयः प्रयोग अस्ति ।।


प्रश्ननिम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
1— प्रयाग उत्तरप्रदेश राज्य में स्थित है ।।
अनुवाद- प्रयागः उत्तरप्रदेशे राज्ये स्थितोऽस्ति ।।

2- यह शिक्षा और संस्कृति का प्रधानकेन्द्र है ।।
अनुवाद- अयं शिक्षायाः संस्कृतेश्च प्रधानकेन्द्रमस्ति ।।

3-पुरुषोत्तम राम यहाँ आए थे ।।
अनुवाद- पुरुषोत्तमः श्रीरामोऽत्रागतः ।।


4-यहाँ पर गंगा और यमुना का संगम है ।।
अनुवाद- अत्रैव गंगायमुनयोः सङ्गमोऽस्ति ।।

5- ऋषि भारद्वाज का आश्रम प्रयाग में था ।।
अनुवाद- ऋषि भारद्वाजस्य आश्रमः प्रयागे आसीत ।।


6- राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार में संलग्न हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन प्रयाग में स्थित है ।।
अनुवाद- राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचारे संलग्नं हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनं प्रयागे स्थितम् ।।

7- आज हमारे विद्यालय की छुट्टी है ।।
अनुवाद- अद्य अस्माकं विद्यालये अवकाशः अस्ति ।।

8- हमारे विद्यालय के चारों ओर सुंदर बगीचा है ।।
अनुवाद- अस्माकं विद्यालयः पारित: सुन्दरः उपवनः अस्ति ।।

9- महाराज उदयन वीर, सुंदर और ललित कलाओं के ज्ञाता थे ।।
अनुवाद- महाराजः उदयन: वीरः, सुन्दरः ललितकलाभिज्ञश्चासीत् ।।

10- राम पिता की आज्ञा का पालन कर वन को गए ।।
अनुवाद- रामः पितृस्य आज्ञाया पालनं वनम् अगच्छत् ।।

संस्कृत व्याकरण संबंधी प्रश्न


1– निम्नलिखित शब्द-रूपों में प्रयुक्त विभक्ति एवं वचन लिखिए
प्रयागस्य, कौशाब्याः, यमुनाभ्याम,सीतया, जलेन, रक्षणाय,विदुषां, नागरिकाणां, सङ्गमें, पवित्रेण, नाम्ना, राज्ये
उ०- शब्द-रूप विभक्ति वचन
प्रयागस्य षष्ठी एकवचन
सङ्गमें सप्तमी एकवचन
कौशाम्ब्याः पञ्चमी/षष्ठी एकवचन
यमुनाभ्याम् चतुर्थी/पञ्चमी]/षष्ठी द्विवचन
सीतया तृतीया एकवचन
जलेन तृतीया एकवचन
रक्षणाय चतुर्थी एकवचन
विदुषां षष्ठी बहुवचन
नागरिकाणां षष्ठी बहुवचन

पवित्रेण तृतीया एकवचन
नाम्ना तृतीया एकवचन
राज्ये सप्तमी एकवचन

2-निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा नियम भी बताइए
उपदेशामृतेन, प्रत्यगच्छत, योऽधुना, सितासित, सौन्दर्यानुरागम्, मासमेकमुषित्वा, अस्यामेव, इत्यकरोत्, रूपमिव ।।
उ०- सन्धि पद सन्धि विच्छेद नियम सन्धि का नाम
उपदेशामृतेन उपदेश +अमृतेन अ+ अ = आ दीर्घ सन्धि
प्रत्यगच्छत् प्रति + अगच्छत् इ+ अ = य यण सन्धि
योऽधुना यः + अधुना : + अ =ोs उत्व सन्धि
अत्रैव अत्र + एव अ+ ए = वृद्धि सन्धि

सितासित सित + आसित अ+ अ = आ दीर्घ सन्धि
सौन्दर्यानुरागम् सौन्दर्य + अनुरागम् अ+अ = आ दीर्घ सन्धि
मासमेकमुषित्वा मासम् + एकम् + उषित्वा म + ए = में, म+उ = मु अनुस्वार सन्धि
अस्यामेव अस्याम् + एव म + ए = मे अनुस्वार सन्धि
इत्यकरोत् इति + अकरोत इ+ अ = य यण सन्धि
रूपमिव रूपम + इव म+ इ = मि अनुस्वार सन्धि

3- निम्नलिखित के रेखांकित पदों में नियम-निर्देशपूर्वक विभक्ति लिखिए
(क) वृक्षेभ्यः फलानि पतन्ति ।।
उ०- रेखांकित पद वृक्षेभ्यः में पञ्चमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है, क्योंकि स्वयं से अलग करने वाले अर्थात् ध्रुव (मूल) में पञ्चमी
विभक्ति होती है; जैसे-वृक्ष से पत्ते गिरते हैं ।।


(ख) सूर्याय स्वाहा ।।
उ०- रेखांकित पद सूर्याय में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त हुई है, क्योंकि नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहार (आहुति),
स्वधा(बलि), अलं (समर्थ, पर्याप्त) वषट् (आहुति) इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है ।।


(ग) अश्वेषु श्वेतः श्रेष्ठः ।।
उ०- रेखांकित पद अश्वेषु में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है, क्योंकि जहाँ बहुतों में से किसी एक को छाँटा जाए, वहाँ जिनमें से छाँटा जाए उसमें षष्ठी और सप्तमी विभक्तियाँ होती हैं ।।


(घ) सः मया सह कदानि न गच्छन्ति ।।
उ०- रेखांकित पद मया में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है क्योंकि जो बात और विभक्तियों के आधार पर नहीं बताई जा सकती, उसको बताने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है ।। ये बातें संबंध विशेष को प्रदर्शित करने वाली होती हैं ।।


(ङ) माधवी विद्यालयं प्रति याति ।।
उ०- रेखांकित पद विद्यालयं में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है, क्योंकि अभितः (चारों ओर या सभी ओर), परितः (सभी ओर),
समया (समीप), निकषा(समीप), हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द),प्रति (ओर, तरफ) शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है ।।

प्रश्न— निम्नलिखित धातुओ के लोट्लकार (आज्ञासूचक) के रूप लिखिए


स्था लोट्लकार(आज्ञासूचक)

पुरुष एकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथम पुरुषतिष्ठतु तिष्ठताम्तिष्ठन्तु
मध्यम पुरुषतिष्ठतिष्ठतम्तिष्ठेत
उत्तम पुरुषतिष्ठानितिष्ठावतिष्ठाम
स्था लोट्लकार(आज्ञासूचक)



पिब लोट्लकार ( आज्ञासूचक)


चुरलोट्लकार (आज्ञासूचक)

पुरुष एकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथम पुरुषचोरयतुचोरयताम् चोरयन्तु
मध्यम पुरुषपिबचोरयतम् चोरयत
उत्तम पुरुषचोरयानिचोरयाव चोरयाम
चुरलोट्लकार (आज्ञासूचक)

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