Up board class 10 social science chapter 13

Up board class 10 social science chapter 13 गाँधी विचारधारा- असहयोग आंदोलन

इकाई-2 (क): आधुनिक भारत
गाँधी विचारधारा- असहयोग आंदोलन


*लघुउत्तरीय प्रश्न
1- असहयोग आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
प्रथम विश्वयुद्ध की अवधि में तथा उसके बाद भी भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीतियाँ सही नहीं थी तथा उसके द्वारा दिए गए कोरे आश्वासनों के आधार पर स्वराज्य-प्राप्ति की आशा करना निरर्थक था। अत: महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार के प्रति सहयोग एवं समर्थन की नीति का परित्याग करके 1920 ई० के कोलकाता अधिवेशन में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गाँधी और मोतीलाल नेहरू ने किया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य- पंजाब में किए गए अत्याचार का निराकरण एवं स्वराज्य की प्राप्ति था। इस आंदोलन के द्वारा समस्त भारत में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार कर सरकार का असहयोग करने के अभियान प्रारंभ किए गए। इस प्रकार असहयोग आंदोलन से अभिप्राय था- सरकार का किसी भी प्रकार से सहयोग न करना।

असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम क्या था? उ०- असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम- असहयोग आंदोलन का मुख्य लक्ष्य भारत की समस्त सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं का बहिष्कार कर सरकार का प्रत्येक क्षेत्र में असहयोग करना था। सरकारी तंत्र को निष्क्रिय बनाने के उद्देश्य से असहयोग आंदोलन के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम निर्धारित किए गए(i) सरकारी वैतनिक तथा अवैतनिक पदों और उपाधियों का त्याग। (ii) सरकारी और अर्द्धसरकारी स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार। (iii) 1919 ई० के अधिनियम के अंतर्गत होने वाले चुनावों का बहिष्कार। (iv) सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार। (v) विदेशी माल का बहिष्कार। (vi) सरकारी और अर्द्धसरकारी उत्सवों और समारोहों में उपस्थित न होना। (vii) भारत तथा मेसोपोटामिया में सैनिक, क्लर्क या मजदूर के रूप में कार्य करने से मना करना। 3. चौरी-चौरा काँड क्या था? इसके कारण गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन क्यों स्थगित कर दिया? उ०- 5 फरवरी, 1922 ई० को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर पुलिस की निर्दयता से किसान हिंसक हो उठे, उन्होंने पुलिस की गोलियों का बदला लेते हुए एक थानेदार तथा इक्कीस सिपाहियों को बलपूर्वक थाने में बंद करके आग लगा दी जिससे वे सभी मृत्यु का शिकार हो गए। यह घटना चौरी-चौरा कांड के नाम से जानी जाती है। इस घटना से गाँधीजी को अत्यधिक दुःख हुआ क्योंकि यह घटना असहयोग आंदोलन के मूलाधार अहिंसा के सिद्धांत के सर्वथा प्रतिकूल थी।
इसलिए आंदोलन को हिंसात्मक होते देख गाँधी जी ने 12 फरवरी, 1922 ई० को असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया। 4. गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन कब चलाया? इसके मुख्य कारण बताइए। उ०- गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन 1920 ई० को चलाया। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(i) प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव। (ii) ब्रिटिश सरकार द्वारा युद्धकालीन आश्वासनों की उपेक्षा करना।
(iii) गाँधी जी को मुस्लिम सहयोग प्राप्त होना ।
(iv) रॉलेट एक्ट का पारित किया जाना। (v) ब्रिटिश सरकार का कठोर दमन-चक्र। (vi) जलियाँ वाला बाग हत्याकांड। (vii) हण्टर रिपोर्ट। (viii) कांग्रेस रिपोर्ट की अवहेलना। 5. जलियाँवाला बाग हत्याकांड का विवरण दीजिए। उ०- 13 अप्रैल, 1919 ई० को बैशाखी के दिन लगभग 20 हजार व्यक्ति, जिसमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, ब्रिटिश सरकार
की दमनकारी नीतियों एवं रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। सभा शांतिपूर्वक चल रही थी। अंग्रेज अधिकारी जरनल डायर ने सेना को उन निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया, जिसमें हजारों
लोग मारे गए तथा अनेकों घायल हो गए। इस घटना को इतिहास में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न—

Up board class 10 social science chapter 13 गाँधी विचारधारा- असहयोग आंदोलन

महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन क्यों चलाया? इस आंदोलन के कार्यक्रम क्या थे? उन्हें यह आंदोलन क्यों स्थगित करना पड़ा?
उ०- प्रथम विश्वयुद्ध की अवधि में तथा उसके बाद भी भारत के प्रति ब्रिटिश दृष्टिकोण से यह भली-भांति स्पष्ट हो चुका था
कि ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए कोरे आश्वासनों के आधार पर स्वराज्य-प्राप्ति की आशा करना निरर्थक था। अतः गाँधी जी ने सरकार के प्रति सहयोग एवं समर्थन की नीति का परित्याग करके उसके विरूद्ध असहयोग आंदोलन छेड़ने का निश्चय किया। महात्मा गाँधी द्वारा असहयोग आंदोलन प्रारंभ किए जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे(i) प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव(क) प्रथम विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में राष्ट्रीय जागरण की भावनाओं को पर्याप्त बल मिला एवं आत्म-निर्णय के सिद्धांत के आधार पर यूरोप के मानचित्र पर अनेक नए स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आ गए। इससे भारतीयों में
देश-प्रेम की भावनाओं का तीव्र गति से संचार हुआ और वे अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए आतुर हो उठे। (ख) महायुद्ध के कारण जनसामान्य की आर्थिक कठिनाइयों से हुई अपार वृद्धि ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के
विरुद्ध निराशा एवं असंतोष व्याप्त कर दिया। युद्ध के कारण भारत के राष्ट्रीय ऋण में लगभग 30 प्रतिशत की
वृद्धि हो गई, जिसके एक भाग के भुगतान के लिए भारतीयों को विवश किया गया। (ग) युद्ध की अवधि में सरकार ने कड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भर्ती किया था। किन्तु युद्ध के उपरांत बड़ी संख्या
में सैनिकों को उनके पदों से अलग कर दिए जाने के कारण उनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं रहा। (ii) ब्रिटिश सरकार की युद्धकालीन आश्वासनों की उपेक्षा- प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों का पूर्ण सहयोग एवं समर्थन
प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार को भारतीय नेताओं को अनेक आर्कषक आश्वासन दिए थे। भारतीयों को विश्वास था कि युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेज निश्चित रूप से भारत को स्वराज्य प्रदान कर देंगे। किन्तु सन् 1919 में मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम पारित करके केंद्रीय सरकार को और अधिक निरंकुश बना दिया गया। इससे
भारतीयों में तीव्र असंतोष व्याप्त हो गया। महात्मा गाँधी का विश्वास भी अंग्रेजों की न्यायप्रियता से हटने लगा। (iii) गाँधी जी को मुस्लिम सहयोग प्राप्त होना- गाँधी जी ने खिलाफत के प्रश्न पर भारतीय मुसलमानों को ब्रिटिश
शासन के विरूद्ध अपना पूर्ण सहयोग एवं समर्थन प्रदान किया था। इससे हिन्दू-मुसलमान परस्पर निकट आने लगे। उनमें पारस्परिक एकता और मित्रता के बन्धन दृढ़ होने लगे और मुसलमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रवादी नेताओं तथा विशेष रूप से गाँधी जी को अपना परम हितैषी समझने लगे। इन परिस्थितियों में मुसलमानों का सहयोग प्राप्त Up board class 10 social science chapter 13 गाँधी विचारधारा- असहयोग आंदोलन करके गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार पर असहयोग आंदोलन के माध्यम से तीव्र प्रहार करने का निश्चय किया। (iv) रौलट ऐक्ट का पारित किया जाना- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद क्रांतिकारी एवं आतंकवादी गतिविधियों को कुचलने
के लिए ब्रिटिश सरकार कठोर कानून बनाना चाहती थी। इस उद्देश्य से सरकार ने सर सिडनी रौलट ऐक्ट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इस समिति की सिफारिश पर फरवरी, 1919 ई० में केंद्रीय विधानपरिषद् में दो विधेयक प्रस्तुत किए गए जिन्हें ‘रौलट विधेयकों’ के नाम से जाना जाता है। भारतीयों ने रौलट विधेयकों के विरूद्ध तीव्र असंतोष एवं रोष प्रकट किया और ‘काले कानून’ कहकर इनकी कटू आलोचना की। किन्तु भारतीयों के तीव्र विरोध की कोई परवाह न करते हुए केंद्रीय विधानपरिषद् ने 17 मार्च, 1919 ई० को इनमें से एक विधेयक ‘अराजकतावादी तथा क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919’ के नाम से पारित कर दिया। इसके अंतर्गत सरकार को यह शक्ति प्राप्त हो गई कि वे विद्रोहियों को केवल संदेह के आधार पर ही बंदी बना सकती थी और बिना न्यायिक सुनवाई के अनिश्चित काल तक कारागार में रख सकती थी। निःसन्देह यह भारतीयों के अधिकारों का हनन था और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास पर लगाया गया एक अनुचित एवं अमानवीय प्रतिबंध था। अतः भारतीयों द्वारा इसका प्रबल विरोध किया गया। मोतीलाल नेहरू ने ‘न अपील, न वकील, न दलील’ कहकर रौलट ऐक्ट (Rowlett Act) की कटु आलोचना की। महात्मा गाँधी ने पहले ही यह घोषणा की हुई थी कि इन कानूनों के पारित किए जाने पर वह सत्याग्रह करने के लिए विवश हो जाएँगे। सरकार का कठोर दमन-चक्र- रौलट ऐक्ट का तीव्र विरोध करने के उद्देश्य से गाँधी जी ने सरकार के विरूद्ध अहिंसात्मक एवं शान्तिपूर्ण सत्याग्रह प्रारंभ करने का निश्चय किया। 30 मार्च, 1919 ई० को संपूर्ण देश में रौलट ऐक्ट के विरूद्ध सार्वजनिक हड़तालों एवं प्रदर्शनों का दिन निर्धारित किया गया। बाद में यह तिथि बदलकर 6 अप्रैल कर दी गई। किन्तु उचित समय पर सूचना न मिल पाने के कारण दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, मुल्तान, जालन्धर, करनाल, अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों पर 30 मार्च को ही हड़ताल हो गई। बाद में 6 अप्रैल को भी देश के अनेक नगरों में हड़तालो का आयोजन किया गया। सत्याग्रहियों की उत्तेजना और अधिकारी-वर्ग की अदूरदर्शिता के कारण दिल्ली, कलकत्ता और पंजाब के कुछ नगरों में उपद्रव हो गए। चिन्तित गाँधी जी ने 8 अप्रैल को बंबई से दिल्ली और पंजाब की ओर प्रस्थान किया। किन्तु सरकार ने उन्हें 9 अप्रैल की रात्रि को पलवल स्टेशन (हरियाणा राज्य में) पर बंदी बनाकर बंबई वापिस भेज दिया। गाँधी जी की गिरफ्तारी की सूचना से संपूर्ण देश में उत्तेजना एवं रोष की लहर दौड़ गई। 10 अप्रैल, 1919 ई० को पंजाब के उपराज्यपाल माहकल ओ डायर ने पंजाब के दो जनप्रिय नेताओं, डॉ० सैफूद्दीनकिचलू तथा डॉ० सत्यपाल को बंदी बना लिया, जिससे स्थिति और अधिक गंभीर हो गई। (vi) जलियाँवाला बाग हत्याकांड-13 अप्रैल, 1919 ई० को बैशाखी के दिन लगभग 20 हजार व्यक्ति, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, सरकार की कठोर दमनकारी नीतियों का विरोध करने के लिए जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। सभा शांतिपूर्वक चल रही थी कि जनरल डायर ने सांयकाल पाँच बजे वहाँ पहुंचकर सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। हजारों निरीह एवं निर्दोष लोगों को कीड़े-मकोड़ों के समान मौत के घात उतार दिया गया था। सरकारी 15 अप्रैल को प्रातः काल से अमृतसर और कई अन्य जिलों में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। पंजाब में ब्रिटिश शासन के अत्याचारों की सूचना से संपूर्ण देश में प्रतिशोध की ज्वाला धधकने लगी। कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की पदवी वापिस कर दी, सर शंकरन नायर ने गवर्नर-जनरल की कार्यकारी परिषद् से त्यागत्र दे दिया
और महात्मा गाँधी सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन छेड़ देने को तत्पर हो गए। हण्टर रिपोर्ट- पंजाब में किए गए हत्याकाण्ड की जाँच के लिए 19 अक्टूबर, 1919 ई० को हण्टर कमेटी (Hunter Committee) का गठन किया गया जिसने अपनी रिपोर्ट 24 मई, 1920 ई० को प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट ने जनसामान्य की उत्तेजना में और अधिक वृद्धि कर दी। कमेटी द्वारा जलियाँवाला बाग हत्याकांड से संबंधित सभी अधिकारियों को दोषमुक्त कर दिया गया। जनरल डायर के नृशंस कुकृत्य को केवल ‘निर्णय लेने की भूल’ कहा गया। उसे उसके पद से हटा दिया गया किन्तु इंग्लैंड पहुँचने पर उसका भव्य स्वागत किया गया। इंग्लैंड की सरकार ने उसके कार्य को ‘ईमानदारी से पूर्ण’ किन्तु ‘भ्रामक निर्णय’ स्वीकार करके उस पर निर्दोष होने की मुहर लगा दी। इससे भारतीय जनता और नेताओं को यह दृढ़ विश्वास हो गया कि अंग्रेजों को भारतीयों के प्रति लेशमात्र सहानुभूति नहीं थी; उनका एकमात्र उद्देश्य कठोर दमन-चक्र द्वारा भारत पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखना था। (viii) कांग्रेस रिपोर्ट की अवहेलना- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंजाब में हुए हत्याकांड की जाँच के लिए महात्मा गाँधी, मोतीलाल नेहरू तथा मदन मोहन मालवीय की सदस्यता में एक समिति नियुक्त की जिसने 25 मार्च, 1920 ई० को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में जनरल डायर के कार्यों की कटु आलोचना की। समिति की रिपोर्ट के अनुसार जलियाँवाला बाग हत्याकांड में मृतकों की संख्या सरकारी रिपोर्ट की अपेक्षा कहीं अधिक थी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस ने सरकार को पंजाब में किए गए अत्याचारों के लिए उत्तरदायी अधिकारियों को दंड देने तथा मृत व्यक्तियों के परिवारों को उचित आर्थिक सहायता देने का निवेदन किया। किन्तु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ब्रिटिश सरकार के अपेक्षापूर्ण व्यवहार से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अत्यधिक निराशा हुई और उसने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ करने का निश्चय किया। असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम- असहयोग आंदोलन का मुख्य लक्ष्य भारत की समस्त सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं का बहिष्कार कर सरकार का प्रत्येक क्षेत्र में असहयोग करना था। सरकारी तंत्र को निष्क्रिय बनाने के उद्देश्य से असहयोग आंदोलन के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम निर्धारित किए गए(i) सरकारी वैतनिक तथा अवैतनिक पदों और उपाधियों का त्याग। (ii) सरकारी और अर्द्धसरकारी स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार। (iii) 1919 ई० के अधिनियम के अंतर्गत होने वाले चुनावों का बहिष्कार। (iv) सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार। (v) विदेशी माल का बहिष्कार। (vi) सरकारी और अर्द्धसरकारी उत्सवों और समारोहों में उपस्थित न होना। (vii) भारत तथा मेसोपोटामिया में सैनिक, क्लर्क या मजदूर के रूप में कार्य करने से मना करना। आंदोलन का स्थगन- ब्रिटिश सरकार कठोरतापूर्वक आंदोलन को कुचलने के लिए कटिबद्ध हो गई। देशभर में नारा गूंजा, चरखा चला-चलाकर स्वराज लेंगे’_ ‘गाँधी जी की जय’। अनेक राष्ट्रीय नेताओं को पकड़कर जेलों में लूंस दिया गया। 5 फरवरी, 1922 ई० को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर पुलिस की निर्दयता से किसान हिंसक हो उठे, उन्होंने पुलिस की गोलियों का बदला लेते हुए पुलिस चौकी में आग लगाकर थानेदार सहित, 22 सिपाहियों को जिंदा जला दिया। आंदोलन को हिंसात्मक होते देख गाँधी जी ने 12 फरवरी, 1922 ई० को असहयोग आंदोलन को
स्थगित कर दिया। 10 मार्च, 1922 ई० को गाँधी जी को बंदी बनाकर 6 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया।

2—–असहयोग आंदोलन कब प्रारंभ हुआ? इसके मुख्य कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
उ०- असहयोग आंदोलन 1920 ई० में प्रारंभ हुआ।
असहयोग आंदोलन के कारण- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या-1 के उत्तर का अवलोकन कीजिए। सहयोग आंदोलन के परिणाम- यद्यपि यह आंदोलन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका तथापि इसके निम्नांकित प्रमुख परिणाम हुए(i) जनता में निर्भीकता का विकास- इस आंदोलन ने जनता को निर्भीकता प्रदान की। पहले जनता ब्रिटिश सरकार का विरोध करने से घबराती थी तथा जेल जाने से डरती थी। किन्तु इस आंदोलन ने जनता को निर्भीक बना दिया। अब देशवासी अंग्रेज सरकार तथा उसके अधिकारियों के आतंक से डरने के बजाय उसका मुकाबला करने लगी। (ii) देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता का संचार- असहयोग आंदोलन ने समाज के विभिन्न वर्गों, सम्प्रदायों तथा सभी प्रांतों की जनता में देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत कर दी। इस आंदोलन में किसानों, निरक्षर लोगों तथा बुद्धिजीवियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया इसने जन-आंदोलन का रूप ले लिया। इससे भविष्य के आंदोलनों के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त हो गया। (iii) स्वराज का संदेश- इस आंदोलन ने घर-घर में स्वराज का संदेश पहुँचा दिया जिससे समाज के सभी वर्गों तथा धर्मों में स्वतंत्रता के लिए जिज्ञासा उत्पन्न कर दी। बच्चे-बच्चे के मुँह से ‘स्वराज’ शब्द सुनायी देने लगा। (iv) स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग- विदेशी वस्तुओं के बहिष्कारों के साथ भारतीयों ने स्वदेशी वस्तुओं तथा वस्त्रों का अधिकाधिक प्रयोग आरंभ कर दिया। इससे देश को न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभ पहुँचा वरन् जनता के आत्मविश्वास आत्मसम्मान तथा आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई। (v) कांग्रेस के कार्यक्रम तथा दृष्टिकोण में परिवर्तन- कांग्रेस पहले वैधानिक साधनों का ही प्रयोग करती थी। किन्तु अब उसने अन्य साधनों का भी शांतिपूर्ण ढंग से प्रयोग करना शुरू कर दिया |

Up board class 10 social science chapter 12 नवजागरण तथा राष्ट्रीयता का विकास (उदारवादी अनुदारवादी )

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