UP BOARD CLASS 10 SANSKRIT SOLUTION CHAPTER 1 KAVIKULGURU KALIDAS प्रथमः पाठः कविकुलगुरुः कालिदासः

UP BOARD CLASS 10 SANSKRIT SOLUTION CHAPTER 1 KAVIKULGURU KALIDAS प्रथमः पाठः कविकुलगुरुः कालिदासः

UP BOARD CLASS 10 SANSKRIT SOLUTION CHAPTER 1 KAVIKULGURU KALIDAS प्रथमः पाठः कविकुलगुरुः कालिदासः

UP Board Solution for Class 10 Sanskrit [ संस्कृत ]

प्रथमः पाठः. कविकुलगुरुः कालिदासः (कविकुल के गुरु कालिदास)

महाकवि कालिदास संस्कृत कवियों में श्रेष्ठ हैं। उनके जन्मस्थान तथा काल के सम्बन्ध में अनेक मत-मतान्तर होने पर भी अधिकांश विद्वानों का मत है कि उन्हें विक्रमादित्य के सभारत्नों में आदर प्राप्त था। ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त थी, जिनका समय ई० सन् से पूर्व माना जाता है। वही समय कालिदास का ठहरता है। कालिदास का जन्मस्थान उज्जयिनी स्वीकार किया जाता है। उन्होंने रघुवंश और कुमारसम्भव-दो महाकाव्य, मेघदूत और ऋतुसंहार-दो खण्डकाव्य तथा मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् एवं अभिज्ञानशाकुन्तलम्-तीन नाटकों की रचना की। कवि की सर्वश्रेष्ठ रचना ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ है। इस विषय में प्रसिद्ध है-

‘काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला’ ll

महाकविकालिदासः संस्कृतकवीनां मुकुटमणिरस्ति। न केवलं भारतदेशस्य अपितु समग्रविश्वस्योत्कृष्टकविषु स एकतमोऽस्ति। तस्यानवद्याकीर्तिकौमुदी देशदेशान्तरेषु प्रसृतास्ति। भारतदेशे जन्म लब्ध्वा स्वकविकर्मणा देववाणीमलङ्कुर्वाण: स न केवलं भारतीयः कविः अपि तु विश्वकविरिति सर्वैराद्रियते।

अनुवाद:- महाकवि कालिदास संस्कृत के कवियों की मुकुटमणि हैं अर्थात् श्रेष्ठ केवल भारत देश के ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार के उत्कृष्ट कवियों में वे अद्वितीय हैं । उनकी निर्मल कीर्ति-चन्द्रिका देश-देशान्तरों में फैली हुई है । भारत देश में जन्म प्राप्त करके अपने कवि-कर्म (कविता) से देववाणी अर्थात् संस्कृत भाषा को अलंकृत करते हुए वे केवल भारत के कवि ही नहीं हैं, अपितु ‘विश्वकवि’ के रूप में सभी के द्वारा आदर किये जाते हैं ।

वाग्देवताभरणभूतस्य प्रथितयशस: कालिदासस्य जन्म कस्मिन् प्रदेशे, काले कुले चाभवत्, किञ्चासीत् तज्जन्मवृत्तम् इति सर्वमधुनापि विवादकोटिं नातिक्रामति। इतरकवय इव कालिदास: आत्मज्ञापने स्वकृतिषु प्रायः धृतमौन एवास्ति। अन्येऽपि कवयस्तन्नामसंकीर्तनमात्रादेव स्वीयां वाचं धन्यां मत्वा मौनमवलम्बन्ते। तथापि अन्तर्बहिस्साक्ष्यमनुसृत्य समीक्षका: कविपरिचयं यावच्छक्यं प्रस्तुवन्ति। _

अनुवाद:– सरस्वती देवी के अलंकारस्वरूप, प्रसिद्ध यश वाले कालिदास का जन्म किस प्रदेश में, काल में और कुल में हुआ तथा उनके जन्म का वृत्तान्त क्या था, यह अभी भी विवाद की सीमा से परे नहीं है अर्थात् विवादास्पद है । दूसरे कवियों के समान कालिदास अपना परिचय देने में अपनी रचनाओं में प्रायः मौन ही धारण किये हुए हैं । दूसरे कवि भी उनका नाम लेनेमात्र से ही अपनी वाणी को धन्य मानकर मौन हो जाते हैं; अर्थात् दूसरे कवियों द्वारा भी उनके बारे में कुछ नहीं लिखा गया है । इतने पर भी आन्तरिक और बाहरी साक्ष्यों का अनुसरण करके समीक्षक यथासम्भव कवि का परिचय प्रस्तुत करते हैं।

एका जनश्रुति: अतिप्रसिद्धास्ति यया कविकालिदास: विक्रमादित्यस्य सभारत्नेषु मुख्यतमः इति ख्यापितः। परन्तु अत्रापरा विडम्बना समुत्पद्यते।

विक्रमादित्यस्यापि स्थितिकालः सुतरां स्पष्टो नास्ति। केचिन्मन्यन्ते यत् विक्रमादित्योपाधिधारिणो द्वितीयचन्द्रगुप्तस्य समकालिक आसीत् कविरसौ। कालिदासस्य मालविकाग्निमित्रनाटकस्य नायकोऽग्निमित्रः शुङ्गवंशीय आसीत्। स एव विक्रमादित्योपाधिं धृतवान् यस्य सभारत्नेष्वेकः कालिदासः आसीत्। तस्य राज्ञः स्थितिकाल: ख्रीष्टाब्दात्यागासीत्। स एव स्थितिकाल: कवेरपि सिध्यति। कविकालिदासस्य जन्मस्थानविषयेऽपि नैकमत्यमस्ति। एतावान् कवेरस्य महिमास्ति यत् सर्वे एव तं स्व-स्वदेशीयं साधयितुं तत्परा भवन्ति। कश्मीरवासिविद्वांस: कश्मीरोद्भवं तं मन्यन्ते, वङ्गवासिनश्च वङ्गदेशीयम्। अस्ति तावदन्योऽपि समीक्षकवर्ग: यस्य मतेन कालिदास: उज्जयिन्यां लब्धजन्मासीत्। उज्जयिनी प्रति कवेः सातिशयोऽनुराग एतन्मतं पुष्णाति।

अनुवाद :– एक लोकोक्ति (किंवदन्ती) अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिसके द्वारा कवि कालिदास विक्रमादित्य के सभारत्नों में प्रमुख बताये गये हैं, परन्तु इस विषय में दूसरी शंका उत्पन्न होती है । विक्रमादित्य का भी स्थितिकाल अच्छी तरह स्पष्ट नहीं है । कुछ लोग मानते हैं कि यह कवि ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के समकालीन थे । कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक का नायक अग्निमित्र शुंग वंश का था । उसी ने विक्रमादित्य की उपाधि को धारण किया, जिसकी सभा के रत्नों में कालिदास एक थे । उस राजा का स्थितिकोल ईस्वी सन् से पूर्व था । वही स्थितिकाल कवि का भी सिद्ध होता है । कवि कालिदास के जन्म-स्थान के विषय में भी एक मत नहीं है । इस कवि की ऐसी महिमा है कि सभी इसे अपने-अपने देश का सिद्ध करने में लगे हुए हैं । कश्मीर के निवासी विद्वान् उन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ मानते हैं और बंगाल के निवासी बंगाल देश में उत्पन्न हुआ । दूसरा भी समीक्षकों का वर्ग है, जिसके मत से कालिदास का जन्म उज्जैन में हुआ था । उज्जयिनी के प्रति कवि का अत्यधिक प्रेम इस मत की पुष्टि करता है।

देशकालवदेव कालिदासकुलस्यापि स्पष्टः परिचयो नोपलभ्यते। तस्य कृतिषु वर्णाश्रमधर्मव्यवस्थायाः यथातथ्येन प्रतिपादनेन एतदनुमीयते यत् तस्य जन्म विप्रकुलेऽभवत्। भावनया स शिवानुरक्तश्चासीत् तथापि तस्य धर्मभावनायां मनागपि सङ्कीर्णता नासीत्। शिवभक्तोऽपि तत् रघुवंशे स रामं प्रति स्वभक्तिभावमुदारमनसा प्रकटयति। कालिदासस्य जीवनवृत्तं सर्वथा अज्ञानान्धकाराच्छन्नमस्ति। तद्विषयिका: अनेका: जनश्रुतयः लब्धप्रसरास्सन्ति किन्तु ताः सर्वाः ईर्ष्याकलुषकषायितचित्तानां कल्पनाप्ररोहा एव, अतएव सर्वथा चिन्त्याः सन्ति।

अनुवाद देश और काल की तरह ही कालिदास के कुल का भी स्पष्ट परिचय प्राप्त नहीं होता है । उनकी रचनाओं में वर्ण, आश्रम और धर्म की व्यवस्था का उचित प्रतिपादन होने से यह अनुमान किया जाता है कि उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था । विचार से वे शिव में अनुरक्त थे तो भी उनकी धर्म-भावना में थोड़ी-सी भी संकीर्णता नहीं थी । शिव के भक्त होते हुए भी ‘रघुवंशम्’ में उन्होंने राम के प्रति अपनी भक्ति-भावना को उदार मन से प्रकट किया है । कालिदास का जीवन-वृत्त सभी प्रकार से अज्ञान के अन्धकार में छिपा हुआ है । उनके विषय में अनेक जनश्रुतियाँ फैली हुई हैं, किन्तु वे सभी ईर्ष्या और कालुष्य से कलुषित मन वालों की कल्पना के अंकुर ही हैं, अतएव सभी प्रकार से विचार करने योग्य हैं।

_कालिदासस्य नवनवोन्मेषशालिन्या: प्रज्ञायाः उन्मीलनम् तस्य कृतिषु नास्तीति कस्यचित्सुधियः परोक्षम्। संस्कृतकाव्यस्य विविधेषु प्रमुखप्रकारेषु स्वकौशलं प्रदर्श्य स सर्वानतीतानागतान् कवीनतिशिश्ये। रघुवंशं कुमारसम्भवञ्च तस्य महाकाव्यद्वयम्, मेघदूतम् ऋतुसंहारश्च खण्डकाव्ये, मालविकाग्निमित्रं विक्रमोर्वशीयम् अभिज्ञानशाकुन्तलञ्च नाटकानि सन्ति। तत्र रघुवंशं नाम महाकाव्यं कविकुलगुरोः सर्वातिशायिनी कृतिरस्ति। अस्मिन् महाकाव्ये दिलीपादारभ्य अग्निवर्णपर्यन्तम् इक्ष्वाकुवंशावतंसभूतानां नृपतीनामवदाननिरूपणमस्ति।

अनुवाद:– कालिदास की नये-नये विकास से युक्त बुद्धि का उद्घाटन उनकी रचनाओं में नहीं है, ऐसा किसी विद्वान् का परोक्ष (अप्रसिद्ध) कथन है । संस्कृत-काव्य के अनेक प्रमुख प्रकारों में अपना कौशल दिखाकर वे अतीत और भविष्य के सभी कवियों में श्रेष्ठ हैं । उनके रघुवंशम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ दो महाकाव्य; ‘मेघदूतम् और ऋतुसंहार: दो खण्डकाव्य; ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक हैं । इनमें ‘रघुवंशम्’ नाम का महाकाव्य कविकुलगुरु की सर्वश्रेष्ठ रचना है । इस महाकाव्य में दिलीप से आरम्भ करके अग्निवर्ण तक के इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राजाओं की उदारता का वर्णन है।

एकोनविंशसर्गात्मकमिदं महाकाव्यं रमणीयार्थप्रतिपादकं सत् सचेतसां हृदयं सततमाह्लादयति। कुमारसम्भवे स्वामिकार्तिकेयस्य जन्मोपवर्णितम्। इदमपि काव्यम् अष्टादशसर्गात्मकमस्ति। केचन समीक्षका अष्टमसर्गपर्यन्तमेव काव्यमिदं कालिदासप्रणीतमिति मन्यन्ते। मेघदूते यक्षयक्षिण्योः वियोगमाश्रित्य विप्रलम्भशृङ्गारस्य पूर्णपरिपाको दृश्यते। ऋतुसंहारे अन्वर्थतया षण्णामृतूनां वर्णनमस्ति। मालविकाग्निमित्रनाटके अग्निमित्रस्य मालविकायाश्च प्रेमाख्यानमस्ति। पञ्चाङ्कात्मके विक्रमोर्वशीये पुरुरवस: उर्वश्याश्च प्रेमकथा वर्णिता। अभिज्ञानशाकुन्तलं स्वनामधन्यस्य अस्य कवे: सर्वश्रेष्ठा नाट्यकृतिरस्ति। नाटकेऽस्मिन् सप्ताङ्काः सन्ति। मेनकया प्रसूतोज्झिताया: शकुन्तैश्च पोषितायाः तदनु कण्वेन परिपालितायाः शकुन्तलायाः दुष्यन्तेन सहोद्वाहस्य कथा वर्णितास्ति। शाकुन्तलविषये प्रथितैषा भणिति:

‘काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला’ एतन्नाटकं प्राच्यपौरस्त्यैः समीक्षकैः बहु प्रशंसितम्।

अनुवाद :– उन्नीस सर्गों वाला यह (रघुवंशम्) महाकाव्य सुन्दर (रमणीय) अर्थ का प्रतिपादक होने के कारण रसिकों के हृदय को निरन्तर प्रसन्न करता है । ‘कुमारसम्भवम्’ काव्य में स्वामी कार्तिकेय के जन्म का वर्णन है । यह काव्य भी अठारह सर्गों वाला है । कुछ आलोचक आठ सर्ग तक ही इस काव्य को कालिदास के द्वारा रचा हुआ मानते हैं । ‘मेघदूतम्’ में यक्ष-यक्षिणी के वियोग को आधार बनाकर विप्रलम्भ श्रृंगार का पूर्ण परिपाक दिखाई देता है । ‘ऋतुसंहारः’ में अर्थ के अनुसार छः ऋतुओं का वर्णन है । ‘मालविकाग्निमित्रम् नाटक में अग्निमित्र और मालविका के प्रेम की कथा है । पाँच अंकों वाले ‘विक्रमोर्वशीयम्’ नाटक में पुरूरवा और उर्वशी के प्रेम की कथा वर्णित है । ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ स्वनामधन्य इस कवि की सर्वश्रेष्ठ नाट्य-रचना है । इस नाटक में सात अंक हैं । मेनका के द्वारा जन्म देकर त्यागी गयी, पक्षियों के द्वारा पोषण की गयी और उसके बाद कण्व के द्वारा पालन की गयी शकुन्तला के दुष्यन्त के साथ विवाह की कथा वर्णित है । ‘शाकुन्तलम्’ (नाटक) के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है–काव्यों में नाटक सुन्दर होता है, उसमें शकुन्तला (अभिज्ञानशाकुन्तलम् ) सुन्दर है । इस नाटक की पूर्वी और पश्चिमी आलोचकों ने बहुत प्रशंसा की है ।

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वस्तुत: कालिदास: मूर्धन्यतमः भारतीय: कविरस्ति। एकतस्तस्य कृतिषु काव्योचितगुणानां समाहारः दृश्यते अपरतश्च भारतीयजीवनपद्धतेः सर्वाङ्गीणता तत्र राराजते। काव्योत्कर्षदृष्ट्या तस्य काव्येषु मानवमनस: सूक्ष्मानुभूतीनामिन्द्रधनुः कस्यापि सहृदयस्य चित्तमावर्जयितुं पारयति। प्रकृतिरपि स्वजडत्वं विहाय सर्वत्र मानवसहचरीवाचरति। रघुवंशे दिग्विजयार्थं प्रस्थितस्य रघो: सभाजनं वनवृक्षाः प्रसूनवृष्टिभिः सम्पादयन्ति। मेघे विरहोत्कण्ठितस्य यक्षस्य प्रेमविह्वलतायाः अद्वितीया सृष्टिः परिलक्ष्यते। तत्र बाह्यान्त: प्रकृत्योः मर्मस्पृग्वर्णनमस्ति। कविदृष्ट्या मेघ: धूमज्योतिस्सलिलमरुतां सन्निपातो न भूत्वा एकः संवेदनशील: मानवोपमः प्राणी अस्ति। स रामगिरेः आरभ्यालकां यावत् यस्य कस्यापि सन्निधिं लभते तस्मै हर्षोल्लासौ वितरति। शाकुन्तलनाटके पतिगृहगमनकाले आश्रमपादपाः स्वभगिन्यै शकुन्तलायै आभरणानि समर्पयन्ति। हरिणार्भक: तस्याः मार्गावरोधं कृत्वा स्वकीयं निश्छलं प्रेम प्रकटयति। एवमेव नद्य: प्रेयस्य इवाचरन्ति। सूर्यः अरुणोदयवेलायां स्वप्रियतमाया: नलिन्या: तुषारबिन्दुरूपाणि अश्रूणि स्वकरैः परिमृजति।

अनुवाद :– वास्तव में कालिदास सर्वश्रेष्ठ भारतीय कवि हैं । एक ओर (जहाँ) उनकी रचनाओं में काव्य के लिए उचित गुणों का समावेश दिखाई देता है तो दूसरी ओर उनमें भारतीय जीवन-पद्धति की सर्वांगीणता भी सुशोभित होती है । काव्य की श्रेष्ठता की दृष्टि से उनके काव्यों में मानव-मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का इन्द्रधनुष किसी भी सहृदय को प्रभावित करने में समर्थ है । प्रकृति भी अपनी जड़ता को छोड़कर सभी जगह (काव्यों में) मानव की सहचरी के समान आचरण करती है । रघुवंशम्’ में दिग्विजय के लिए प्रस्थान किये हुए रघु का सम्मान वन के वृक्ष पुष्पों की वर्षा से सम्पादित करते हैं । ‘मेघदूतम्’ में विरह से उत्कण्ठित यक्ष की प्रेम-विह्वलता की अद्वितीय सृष्टि परिलक्षित होती है । उसमें बाह्यप्रकृति और अन्त:प्रकृति का मर्मस्पर्शी वर्णन है । कवि की दृष्टि में मेघ धुआँ, प्रकाश, जल, वायु का समूह न होकर एक संवेदनशील मानव के समान प्राणी है । वह रामगिरि से लेकर अलका तक जिस किसी की समीपता प्राप्त करता है, उसे हर्ष और उल्लास प्रदान करता है । ‘शाकुन्तलम्’ नाटक में पति के घर जाते समय आश्रम के वृक्ष अपनी बहन शकुन्तला को आभूषण प्रदान करते हैं । हिरन का बच्चा (शावक) उसका रास्ता रोककर अपने निष्कपट प्रेम को प्रकट करता है । इसी प्रकार नदियाँ भी प्रेमिका की तरह आचरण करती हैं । सूर्य अरुणोदय (प्रथम किरण निकलने) के समय अपनी प्रियतमा कमलिनी के ओस की बूंदरूपी आँसुओं को अपनी किरणों (हाथों) से पोंछता है ।

कालिदासकाव्येषु अङ्गीरस: शृङ्गारोऽस्ति। तस्य पुष्ट्यर्थं करुणादयोऽन्ये रसा: अङ्गभूताः। रसानुरूपं क्वचित् प्रसाद: क्वचिच्च माधुर्यं तस्य काव्योत्कर्षे साहाय्यं कुरुतः। वैदर्भीरीति: कालिदासस्य वाग्वश्येव सर्वत्रानुवर्तते। अलङ्कारयोजनायां कालिदासोऽद्वितीयः। यद्यपि उपमाकालिदासस्येत्युक्तिः उपमायोजनायामेव कालिदासस्य वैशिष्ट्यमाख्याति तथापि उत्प्रेक्षार्थान्तरन्यासादीनामलङ्काराणां विनियोगः तेनातीव सहजतया कृतः। कालिदासस्य नाट्यकृतिषु विशेषतः शाकुन्तले वस्तुविन्यास: अनपुमः, चरित्रचित्रणं सर्वथानवद्यं संवादशैली सम्प्रेषणीयास्ति। सममेव भारतीयसंस्कृत्यनुमतानां धर्मार्थकाममोक्षमूलानां मानवमूल्यानां प्रकाशनं कालिदासस्य वैशिष्ट्यमस्ति। आश्रमवासिनी शकुन्तलां निर्वर्ण्य मनसि कामप्ररोहमनुभूय दुष्यन्तः तावच्छान्तिं न लभते यावत्तां क्षत्रियपरिग्रहक्षमा विश्वामित्रस्य दुहितेयमिति नावैति। कण्वस्यानुज्ञां बिना गन्धर्वविधिना कृतः विवाहः उभावपि तावत्प्रताडयति यावदेकतः शकुन्तला मारीचाश्रमे तपश्चरणेन अवज्ञाजनितं कलुषं न क्षालयति, अपरत: दुष्यन्तः अङ्गुलीयलाभेन लब्धस्मृतिः सत् भृशं पीड्यमानः प्रायश्चित्ताग्नौ आत्मशुद्धिं न कुरुते। तदनन्तरमेव तयोः दाम्पत्यप्रेम निष्कलुषं भवति पुत्रोपलब्धौ च परिणमते।

अनुवाद :– कालिदास के काव्यों में मुख्य रस श्रृंगार है । उसकी पुष्टि के लिए करुण आदि अन्य रस सहायक रूप में हैं । रस के अनुरूप कहीं प्रसाद गुण और कहीं माधुर्य गुण उनके काव्य के विकास में सहायता प्रदान करते हैं । वैदर्भी रीति कालिदास की वाणी के वश में हुई-सी सभी जगह अनुसरण (वाणी का) करती है । अलंकारों की योजना में कालिदास अद्वितीय हैं । यद्यपि ‘उपमा कालिदासस्य’ यह कथन उपमा की योजना में कालिदास की विशेषता बताता है, फिर भी उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का प्रयोग उन्होंने अत्यधिक स्वाभाविक ढंग से किया है । कालिदास की नाट्य रचनाओं में, विशेषकर ‘शाकुन्तलम्’ नाटक में, कथावस्तु की योजना अनुपम है। चरित्र-चित्रण सभी प्रकार से निर्दोष और संवाद-शैली प्रेषण गुण से समन्वित है । साथ ही भारतीय संस्कृति के मतानुसार धर्म, अर्थ, काम, मोक्षस्वरूप मानव-मूल्यों का प्रकाशन कालिदास की विशेषता है । आश्रम में निवास करने वाली शकुन्तला को देखकर, मन में काम के अंकुर की अनुभूति करके दुष्यन्त तब तक शान्ति प्राप्त नहीं करते हैं, जब तक उसे क्षत्रिय के द्वारा विवाह के योग्य विश्वामित्र की पुत्री नहीं जान लेते हैं । कण्व की आज्ञा के बिना गन्धर्व विधि से किया गया विवाह दोनों को ही तब तक सताता रहता है, जब तक एक ओर शकुन्तला मारीच ऋषि के आश्रम में तपस्या के आचरण से (दुर्वासा के) अपमान से उत्पन्न पाप को नहीं धो डालती, दूसरी ओर दुष्यन्त अँगूठी के मिलने से स्मृति (याद) पाकर अत्यन्त पीड़ित होते हुए प्रायश्चित्त की अग्नि में आत्मशुद्धि नहीं कर लेते हैं । इसके बाद ही उन दोनों का दाम्पत्य-प्रेम निष्पाप (शुद्ध) होता है और पुत्र की प्राप्ति में प्रतिफलित होता है।

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रघुवंशे कालिदासः रघुवंशिनां चित्रणं तथा करोति यथा भारतीयजनजीवनस्योदात्तादर्शानां सम्यग् दिग्दर्शनं भवेत्। रघुकुलजाः राजानः प्रजाक्षेमाय बलिमाहरन्। मितसंयतभाषिणस्ते सदा सत्यनिष्ठाः आसन्। यशस्कामास्ते तदर्थं प्राणानपि त्यक्तुं सदैवोद्यता अभवन्। केवलं सन्तत्यर्थे ते गृहमेधिनो बभूवुः। शैशवे विद्यार्जनं यौवने रञ्जनं वार्धक्ये मुक्त्यर्थं मुनिवदाचरणं तेषां व्रतमासीत्। बालवृद्धवनितादीनां यदाचारणं कालिदासकाव्ये निरूपितं तत्सर्वथा भारतीयसंस्कृतिगौरवानुरूपमेव।

अनुवाद:– ‘रघुवंशम्’ में कालिदास रघुवंशी राजाओं का चित्रण उस प्रकार करते हैं, जिससे भारतीय जनजीवन के श्रेष्ठ आदर्शों का अच्छी तरह वर्णन हो सके । रघुकुल में उत्पन्न हुए राजा लोग प्रजा की भलाई के लिए कर (टैक्स) लेते थे । परिमित और सधी हुई वाणी बोलने वाले वे सदा सत्यनिष्ठ होते थे । यश की इच्छा करने वाले वे उसके लिए प्राणों को भी छोड़ने हेतु सदैव तैयार रहते थे । केवल सन्तान के लिए ही वे गृहस्थ धर्म वाले होते थे । बचपन में विद्या-प्राप्ति, युवावस्था में भोग और वृद्धावस्था में मुक्ति के लिए मुनियों के समान आचरण करना उनका व्रत था । बालक, वृद्ध, स्त्री आदि का जो आचरण कालिदास के काव्य में निरूपित हुआ है, वह सभी तरह से भारतीय संस्कृति के गौरव के अनुरूप ही है ।

आहिभवत: सिन्धुवेलां यावत् विकीर्णा: भारतगौरवगाथा: कालिदासेन स्वकृतिषूपनिबद्धाः। रघुवंशे, मेघे, कुमारसम्भवे च भारतदेशस्य विविधभूभागानां गिरिकाननादीनां यादृक् स्वाभाविकं मनोहारि च चित्रणं लभ्यते, स्वचक्षुषाऽनवलोक्य तदसम्भवमस्ति। तथाविधं तस्य देशप्रेम तस्य काव्योत्कर्षं समुद्रढयति। सन्तु तत्रानल्पा संस्कृतकवयः किन्तु कस्यापि कालिदासेन साम्यं नास्ति। साधूक्तं केनचित् कालिदासानुरागिणा

पुरा कवीनां गणनाप्रसङ्गे कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासः।
अद्यापि तत्तुल्यकवेरभावादनामिका सार्थवती बभूव ।।

अनुवाद :- हिमालय से लेकर समुद्रपर्यन्त भारत के गौरव की जितनी गाथाएँ फैली हैं, वे कालिदास ने अपनी रचनाओं में निबद्ध की हैं । रघुवंशम्’, ‘मेघदूतम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ में भारत देश के विविध भू-भागों, पर्वत और वनों का जैसा स्वाभाविक और मनोहर चित्रण मिलता है, अपनी आँख से देखे बिना वह (ऐसा वर्णन) असम्भव है । उस प्रकार का उनका देश-प्रेम उनके काव्य की श्रेष्ठता को दृढ़ करता है । भले ही संस्कृत में बहुत-से कवि हों, किन्तु किसी की भी कालिदास के साथ समानता नहीं है । कालिदास के किसी प्रेमी ने ठीक कहा है –

प्राचीनकाल में, कवियों की गणना करने के प्रसंग में कालिदास का नाम कनिष्ठिका (सबसे छोटी) अँगुली पर रखा गया, अर्थात् सर्वप्रथम गिना गया । आज भी उनके बराबर (समान स्तर) के कवि के न होने से अनामिका (बिना नाम वाली) अँगुली सार्थक हो गयी है ।

काठिन्य निवारण:-

अनवद्याकीर्तिकौमुदी = प्रशंसनीय यशरूपी चाँदनी। प्रसृता = फैली हुई। लब्ध्वा = पाकर। वाग्देवताभरणभूतस्य = सरस्वती देवी के आभूषण। प्रथितयशसः = प्रसिद्ध यश का। नातिक्रामति = अतिक्रमण नहीं करता है। प्रस्तुवन्ति = प्रस्तुत करते हैं। जनश्रुतिः = लोकप्रचलित कथा। विडम्बना = कल्पना। सुतरां = अधिक। धृतवान् = धारण किया। साधयितुं = सिद्ध करने के लिए। सातिशयः = अत्यधिक। पुष्णाति = पुष्ट करता है। मनागपि = थोड़ी-सी भी। लब्धप्रसराः = फैली हुई। कल्पनाप्ररोहा = कल्पना के अंकुर। प्रज्ञायाः = बुद्धि का। उन्मीलनम् = विकसित हुआ। सुधियः = विद्वान् का। अनागतान् = भविष्य में होनेवाले। सर्वातिशायिनी = सब से बढ़कर। सचेतसाम् = सहृदय जनों के। अन्वर्थतया = अर्थ के अनुसार। शकुन्तैः = पक्षियों द्वारा। प्राच्यपौरस्त्यैः = पूर्व और पश्चिम के। मूर्धन्यतमः = सबसे श्रेष्ठ। सभाजनं = स्वागत। सन्निधिं लभते = पास जाता है। हरिणार्भकः = हिरन का बच्चा। अङ्गीरसः = प्रधान रस। आख्याति = कहती है। वस्तुविन्यास = कथावस्तु। अनवद्यं = अनिन्दनीय। निर्वर्ण्य = देखकर। क्षालयति = घुलता है। प्रजाक्षेमाय = जनता के कल्याण के लिए। गृहमेधिनः = गृहस्थी। वार्धक्ये = बुढ़ापे में। सिन्धुवेला = समुद्र तट। अनल्पाः = बहुत-सी। अनामिका = कनिष्ठिका के पास की उँगली।

अभ्यास प्रश्न

1— ‘कविकुलगुरु: कालिदासः’ पाठ का सारांश हिन्दी में लिखिए।

2. निम्नलिखित गद्यावतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद हिन्दी में कीजिए

(क) महाकवि .……. सर्वैरद्रियते।

(ख) वाग्देवता …………….……… प्रस्तुवन्ति।

(ग) एका जनश्रुतिः…………. सिध्यति।

(घ) देशकालवदेव……………..चिन्त्याः सन्ति।

(ङ) कालिदासस्य …………… …………..नाटकानि सन्ति।

(च) एकोनविंशति ….………… नाट्यकृतिरस्ति।

(छ) वस्तुतः कालिदासः………………………………… वाचरति।

अथवा

वस्तुतः कालिदासः………………………………….परिलक्ष्यते।

(ज) कालिदासकाव्येषु.. …………………..वैशिष्ट्यमाख्याति।

(a) कालिदासस्य नाट्यकृतिषु ……………दुहितेयमिति नावैति।

(ब) रघुवंशे …..………. अनुरूपमेव।

(b) आहि भवतः… साम्यं नास्ति।

(ठ) कुमारसम्भवे …..………… तत्र रम्या शकुन्तला।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए

(क) महाकवि कालिदास रचित महाकाव्यों के नाम लिखिए।

(ख) कालिदास को ‘कविकुलगुरु’ क्यों कहा जाता है?

(ग) “पुरा कवीनां ……….. बभूव”- श्लोक का भाव स्पष्ट कीजिए।

(घ) कालिदास रचित विभिन्न ग्रन्थों के नाम लिखिए।

(ङ) महाकवि कालिदास रचित तीन नाटकों के नाम लिखिए।

(च) कालिदास का जीवन-परिचय लिखिए।

(छ) रघुवंश महाकाव्य किसकी रचना है?

(ज) रघुवंशम् में किन राजाओं का वर्णन किया गया है?

(झ) कवि गणना में कनिष्ठिका पर किस कवि को गिना जाता है?

(अ) सुप्रसिद्ध संस्कृत कवियों में पाँच के नाम लिखिए।

(ट) “कविकुलगुरु: कालिदासः’ पाठ का सारांश लिखिए।

(ठ) अभिज्ञानशाकुन्तल कथा के नायक-नायिका का क्या नाम है?

(ड) मेघदूत में कवि ने किसको दूत बनाकर कहाँ भेजा है?

(ढ) कालिदास के नाटकों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

(ण) मेघदूत में कवि ने किसका वर्णन किया है?

निम्नलिखित प्रश्नों के संस्कृत में उत्तर दीजिए l

(क) संस्कृत कवीनां क: मुकुटमणि अस्ति?

(ख) कालिदासः कस्य नरेशस्य समकालिकः आसीत्?

(ग) अभिज्ञानशाकुन्तलं कस्य कृतिः अस्ति।

(घ) मालविकाग्निमित्रं नाटकस्य नायकः कः आसीत्?

(ङ) कुमारसम्भवे कस्य जन्मोपवर्णितम्?

5. निम्न शब्दों को संस्कृत के वाक्यों में प्रयोग कीजिए

कीर्तिकौमुदी, कस्मिन्, अनेकाः, काव्येषु, भारतदेशस्य।

6. निम्नलिखित शब्दों में संधि-विच्छेद कीजिए

अद्यापि, तेनातीव, दुहितेयमिति, समुत्पद्यते — आन्तरिक मूल्यांकन

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