up board class 10 sanskrit solution chapter 1 lakshy bedh pariksha प्रथमः पाठः लक्ष्य-वेध-परीक्षा
संस्कृत पद्य पीयूषम् ||
प्रथमः पाठः लक्ष्य-वेध-परीक्षा
(लक्ष्य बेधने की परीक्षा)
[लक्ष्य-वेध-परीक्षा के निम्न श्लोक महाभारत के आदि पर्व’ के एक सौ तेईसवें अध्याय से लिये गये हैं। इनमें आचार्य द्रोण के द्वारा कौरव-पाण्डवों तथा अन्य राजकुमारों के लक्ष्य-वेध की परीक्षा का वर्णन है। उन्होंने कारीगरों से एक गीध बनवाया तथा उसे एक वृक्ष के ऊपर रखवा दिया। सबसे पहले उन्होंने युधिष्ठिर को बुलाया और पूछा कि तुम क्या देखते हो? युधिष्ठिर ने कहा कि मैं गीध को, वृक्ष को तथा आप एवं सभी भाइयों को देखता हूँ। इस पर द्रोणाचार्य ने अप्रसन्न होकर अन्य राजकुमारों से भी यही पूछा, परन्तु सभी ने एक-ही-सा उत्तर दिया।
अन्त में बाण साधते हुए अर्जुन ने बताया कि उसे केवल गीध का सिर दिखायी दे रहा है। इस पर प्रसन्न होकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन को बाण छोड़ने का आदेश दिया तथा अर्जुन ने गीध का सिर काट गिराया। इस पाठ से शिक्षा मिलती है कि छात्र को सदा एकाग्रचित्त होकर कार्य करना चाहिए।]
तांस्तु सर्वान् समानीय सर्वविद्यास्त्रशिक्षितान्। द्रोणः प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः पुरुषर्षभः।।1।।
कृत्रिम भासमारोप्य वृक्षाग्रे शिल्पिभिः कृतम्। अविज्ञातं कुमाराणां लक्ष्यभूतमुपादिशत्।।2।।
शीघ्रं भवन्तः सर्वेऽपि धनूंष्यादाय सत्वराः। भासमेतं समुद्दिश्य तिष्ठध्वं सन्धितेषवः।।3।।
मद्वाक्यसमकालं तु शिरोऽस्य विनिपात्यताम्। एकैकशो नियोक्ष्यामि तथा कुरुत पुत्रकाः।।4।।
ततो युधिष्ठिरं पूर्वमुवाचाङ्गिरसां वरः। सन्धत्स्व बाणं दुर्धर्षं मद्वाक्यान्ते विमुञ्च तम्।।5।।
ततो युधिष्ठिरः पूर्वं धनुर्गृह्य परन्तपः। तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः।।6।।
ततो विततधन्वानं द्रोणस्तं कुरुनन्दनम्।
स मुहूर्तादुवाचेदं वचनं भरतर्षभ।।7।।
पश्यैनं त्वं द्रुमाग्रस्थं भासं नरवरात्मज। पश्यामीत्येवमाचार्यं प्रत्युवाच युधिष्ठिरः।।8।।
स मुहूर्त्तादिव पुनोंणस्तं प्रत्यभाषत। अथ वृक्षमिमं मां वा भ्रातृन् वाऽपि प्रपश्यसि।।9।।
तमुवाच स कौन्तेयः पश्याम्येनं वनस्पतिम्। भवन्तं च तथा भ्रातॄन् भासं चेति पुनः पुनः।। 10।।
तमुवाचाऽपसपैति द्रोणोऽप्रीतमना इव। नैतच्छक्यं त्वया वेधं लक्ष्यमित्येव कुत्सयन्।। 11
।। ततो दुर्योधनादीस्तान् धार्तराष्ट्रान् महायशाः। तेनैव क्रमयोगेन जिज्ञासुः पर्यपृच्छत्।। 12।।
अन्यांश्च शिष्यान् भीमादीन् राज्ञश्चैवान्यदेशजान्। तथा च सर्वे तत्सर्वं पश्याम इति कुत्सिताः।। 1 3।।
ततो धनञ्जयं द्रोणं स्मयमानोऽभ्यभाषत। त्वयेदानीं प्रहर्तव्यमेतल्लक्ष्यं विलोक्यताम्।।14।।
एवमुक्तः सव्यसाची मण्डलीकृतकार्मुकः। तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः।।15।।
मुहूर्त्तादिव तं द्रोणस्तथैव समभाषत। पश्यस्येनं स्थितं भासं द्रुमं मामपि चार्जुन।।16।।
पश्याम्येकं भासमिति द्रोणं पार्थोऽभ्यभाषत। न तु वृक्षं भवन्तं वा पश्यामीति च भारत।।17।।
ततः प्रीतमना द्रोणो मुहूर्त्तादिव तं पुनः। प्रत्यभाषत दुर्धर्षः पाण्डवानां महारथम्।।18।।
भासं पश्यसि यद्येनं तथा ब्रूहि पुनर्वचः। शिरः पश्यामि भासस्य न गात्रमिति सोऽब्रवीत्।।19।।
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु द्रोणो हृष्टतनूरुहः। मुञ्चस्वेत्यब्रवीत् पार्थं स मुमोचाविचारयन्।। 20।।
ततस्तस्य नगस्थस्य क्षुरेण निशितेन च। शिर उत्कृत्य तरसा पातयामास पाण्डवः। हर्षोद्रेकेण तं द्रोणः पर्यष्वजत पाण्डवम्।। 21 ।।
अभ्यास प्रश्न
- निम्नलिखित श्लोकों की ससन्दर्भ हिन्दी में व्याख्या कीजिए
(क) तांस्तु सर्वान् ………………..पुरुषर्षभः।
(ख) कृत्रिम ………….उपादिशत्।
(ग) तमुवाच स …………….पुनः पुनः।
(घ) ततो ………………पर्यपृच्छत्।
(ङ) तत: प्रीतमना…………..महारथम्।
(च) भासं पश्यसि …………..सोऽब्रवीत्।
(छ) ततस्तस्य ………पाण्डवम् ।
(ज) ततो धनञ्जयं ……………… गुरुवाक्यप्रणोदितः ।
अथवा ततो धनञ्जयं ……….. विलोक्यताम् ।
(झ) पश्याम्येकं भासमिति ………………. च भारत ।
(ञ) मुहूर्तादिव………….. चार्जुनः ।
(ट) एवमुक्तः…………………. प्रणोदितः ।
(ठ) शीघ्रं भवन्त: …… …………. सन्धितेषवः।
2. निम्नलिखित सूक्तियों की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए
(क) न तु वृक्षं भवन्तं वा पश्यामीति च भारत।
(ख) शिर: पश्यामि भासस्य न गात्रमिति सोऽब्रवीत।
(ग) नैतच्छक्यं त्वया वेळू लक्ष्यमित्येव कुत्सयन्।
(घ) तमुवाच स कौन्तेयः पश्याम्येनं वनस्पतिम्।
3. निम्नलिखित श्लोकों का संस्कृत में अर्थ लिखिए
(क) ततो युधिष्ठिरं ………….. विमुञ्च तम् ।
(ख) पश्याम्येकं ….……………… भारत।
(ग) भासं पश्यसि ……………………. सोऽब्रवीत् ।
(घ) तांस्तु सर्वान् ……………… पुरुषर्षभः।
(ङ) मद्वाक्यसमकालं ………………… कुरुत पुत्रकाः ।
(च) एवमक्त: ……………………. गुरुवाक्य प्रणोदितः ।
(छ) ततः प्रीतमना द्रोणो ………… पाण्डवानां महारथम् ।
4. इस पाठ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
5. निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
पुरुषर्षभः, प्रत्युवाच, धनूष्यादाय, एकैकशः।
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