Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से

Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से पाठ का सम्पूर्ण हल

ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से

Table of Contents


प्रश्न ओर उत्तर :-
रामधारी सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर – रामधारी सिंह का जन्म सन् 1908 ई0 में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था|

रामधारी जी का उपनाम बताइए।
उत्तर – रामधारी जी का उपनाम ‘दिनकर’ था ।

दिनकर जी किस विश्व द्यालय के कुलपति बने ?
उत्तर – दिनकर जी भागलपुर विश्व विद्यालय के कुलपति बने |

दिनकर जी ने मेट्रिक में पढ़ते हुए किस रचना का सृजन किया ?
उत्तर – दिनकर जी ने मैट्रिक में पढ़ते हुए ‘प्रणभंग’ नामक कृति का सृजन किया।

दिनकर जी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार उनकी किस कृति के लिए दिया गया ?
उत्तर – दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘उर्वशी’ नामक कृति पर प्राप्त हुआ ।
दिनकर जी को ‘पद्मभूषण’ उपाधि से कब सम्मानित किया गया ?
उत्तर – सन् 1959 को दिनकर जी को ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।
दिनकर जी द्वार रचित किन्हीं तीन निबंधों के नाम बताइए ।
उत्तर- ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से , ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘भारतीय संस्कृति की एकता’ आदि दिनकर जी द्वारा लिखित तीन निबंध हैं |
दिनकर जी की किसी एक काव्य कृति का नाम लिखिए ।
उत्तर – ‘रेणुका’ नामक रचना दिनकर जी की काव्यकृति है
दिनकर जी की प्रमुख निबंध रचनाओं के नाम बताइए ।
उत्तर – दिनकर जी के प्रमुख निबंध मिट्टी की ओर, अर्ध नारीश्वर, उजली आग, रेती के फूल आदि हैं |
दिनकर जी का निधन कब हुआ था ?
उत्तर – दिनकर जी का निधन सन् 1974 ई. को हुआ था ।

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(ख) विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन परिचय देते हुए उनके साहित्यिक परिचय पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – राष्ट्रकवि रामधारी सिंह का हिन्दी के ओजस्वी कार्यों में शीर्ष स्थान है राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत उनकी कविताओं में प्रगतिवादी स्वर भी दिखाई देता है, जिसमें उन्होंने शोषण का विरोध करते हुए मानवतावादी मूल्यों का समर्थन किया है | वे हिन्दी के महान कवि श्रेष्ठ निबंधकार, विचारक एवं समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं जीवन परिचय – राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में सन् 1908 ई. में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था । इनकी अल्पायु में ही इनके पिता का देहांत हो गया। इन्होंने मोकामाघाट से मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा उत्तीर्ण की | परीक्षा पास करने के बाद पटना विश्व विद्यालय से बी.ए. तथा ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की | बी.ए. तथा ऑनर्स करने के पश्चात् आप एक वर्ष तक मोकामाघाट के प्रधानाचार्य रहे | सन् 1934 ई. में आप सरकारी नौकरी में आए तथा 1943 ई. में अंग्रेज सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में उपनिदेशक के पद पर नियुक्त हुए। कुछ समय बाद आप मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुए । इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला |1 लाख रुपये के ज्ञान्पीत पुरस्कार से भी इनको पुरस्कृत किया गया | सन 195२ ई0 में आपको भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया, जहाँ आप 196२ ई0 तक रहे सन् 1963 ई. में आपको भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया । आपने भारत सरकार की हिन्दी-समिति के सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया। सन् 1974 ई0 में आपका देहांत हो गया ।
रचनाएं -दिनकर जी की प्रमुख रचनाए निम्न है
निबंध- मिट्टी की और अर्ध नारीश्वर रेती के फूल उजली आग
संस्कृत ग्रन्थ संस्कृत के चार अध्याय, भारतीय संस्कृति की एकता
आलोचना ग्रन्थ – रेणुका, हुंकार,सामधेनी रूपवंती कुरुक्षेत्र रश्मिरथी उर्वशी पर्शुरा की प्रतीक्षा आदि |
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साहित्यिक परिचय– रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी में काव्य-प्रतिभा जन्मजात थी | बचपन में पढ़ते समय(मैट्रक ) ही आपका ‘प्रणभंग’ नामक काव्य प्रकाशित हो गया था । इसके पश्चात सन् 19२8-२9 से विधिवत साहित्य सृजन के क्षेत्र में पदार्पण किया। राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत आपकी ओजस्वी कविताओं ने सोए हुए जन मानस को झकझोर दिया। मुक्तक, खंडकाव्य और महाकाव्य की रचना कर आपने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया। गद्य के क्षेत्र में निबंधों और ग्रंथों की रचना करके भारतीय दर्शन, संस्कृति, कला एवं साहित्य का गंभीर विवेचन प्रस्तुत कर के हिन्दी साहित्य के भंडार को परिपूर्ण करने का सतत प्रयास किया । आपकी साहित्य साधना को देखते हुए राष्ट्रपति महोदय ने सन् 1959 मे आपको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सुशोभित किया । ‘उर्वशी’ पर आपको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ । इसके अतिरिक्त साहित्य अकादमी पुरस्कारों से भी आप सम्मानित किए गए ।

२. दिनकर जी की भाषागत वि शेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भाषा शैली- दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है | उर्दू एवं अंग्रेजी के प्रचलित शब्द भी उनकी भाषा में उपलब्ध हो जाते हैं | संस्कृतनिष्ठ भाषा के साथ-साथ व्यावहारिक भाषा भी उनकी गद्य रचनाओं में उपलब्ध होती है कहीं कहीं पर देशी शब्दों के साथ साथ मुहावरों का प्रयोग भी उनकी भाषा में देखने को मिल जाता है | विषय के अनुरूप उनकी शैली के अनेक रूप दिखाई पड़ते हैं गंभीर विषयों के विवेचन में उन्होंने विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है | कवि हृदय होने से उनकी गद्य रचनाओं में भावात्मक शैली भी दिखाई पड़ती है | समीक्षात्मक निबंधों में वे प्राय: आलोचनात्मक शैली का प्रयोग करते हैं तो कहीं कहीं पर जीवन के शाश्वत सत्यों को व्यक्त करने के लिए वे सूक्ति शैली का प्रयोग करते हैं |


(ग) अवतरणों पर आधारित प्रश्न
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मेरे घर के …………………………………………………………………… मेरी भी हुई होती |
संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य खंड’ के रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से नामक निबंध से लिया गया है |
प्रसंग- लेखक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी ने प्रस्तुत गद्यांश में मनुष्य के मन में उठने वाले ईर्ष्या के भावों को स्पष्ट किया है |
व्याख्या- लेखक ईर्ष्या के कारण दु:खी व्यक्तियों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनके घर के दाहिनी तरफ एक वकील साहब रहते हैं जो खाते पीते घर के हैं अर्थात आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं | वे दोस्तों का काफी सत्कार करते हैं | समाज में होने वाली सभाओं और सोसाइटियों में भी भाग लेते हैं उनका परिवार बाल बच्चों से पूर्ण है | उनके घर में सभी सुख सुविधाओं के लिए नौकर चाकर हैं तथा उनकी पत्नी अत्यंत नम्र स्वभाव व मधुर वचन बोलने वाली है एक मनुष्य को सुखी होने के लिए जितनी भी वस्तुओं की आवश्यकता है वह सब उनके पास उपलब्ध हैं | इससे ज्यादा मनुष्य को सुखी होने के लिए और क्या चाहिए ? परंतु फिर भी वे सुखी नहीं हैं उनके भीतर कौन-सी आग जल रही है, इसे लेखक अच्छी तरह से जानते हैं | वास्तव में वकील साहब के बराबर में जो बीमा एजेंट रहते हैं, उनके एश्वर्य में होने वाली बढ़ोत्तरी से वकील साहब के हृदय में ईर्ष्या के भाव उठते हैं | ईश्वर ने उन्हें जो कुछ दिया है, वे इसे अपने लिए पर्याप्त नहीं समझते हैं | वह रात दिन इस चिंता में मग्न रहते हैं कि काश! एजेंट साहब को प्राप्त मोटर, मासिक आय और एश्वर्य शाली सुख मुझे भी प्राप्त होते
प्रश्नोत्तर – Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
1- इस गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से लेखक का नाम – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- लेखक ने क्यों कहा कि ‘भला एक सुखी मनुष्य को और क्या चाहिए ?’
उत्तर – लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वकील साहब प्रत्येक सुख से संपन्न व खुशहाल थे उनके पास सुखी रहने के लिएजो भी चाहिए वो सभी साधन उपलब्ध थे, फिर भी वे अपने बगल वाले बीमा एजेंट से ईर्ष्या करते थे |
3- वकील साहब के बारे में गद्यांश में क्या कहा गया है ?
उत्तर – इस गद्यांश में वकील साहब के बारे में कहा गया है कि वकील साहब हर प्रकार से संपन्न व खुशहाल थे, परंतु अपने बराबर में रहने वाले बीमा एजेंट के एश्वर्य ओर खुशहाली से ईर्ष्या करने के कारण वे अपने सुखों का आनंद लेने के बजाय दु:खी रहते थे |

2-. एक उपवन को ……॥ …………………………………. समझने लगता है |
संदर्भ- पहले की तरह |
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प्रसंग- यहाँ पर दिनकर जी ने मनुष्य की असंतोषी प्रवृत्ति क बारे में बताया है कि मनुष्य भगवान द्वारा दी गई सुख सुविधा का आनंद लेने के विपरीत उनसे और ज्यादा सुखों की कामना करने के कारण हमेशा दु:खी रहता है |
व्याख्या- दिनकर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति असंतोषी प्रवृत्ति के होते हैं, उनमें ईर्ष्या की भावना अधिक पाई जाती है असंतोषी व्यक्ति इस बात से संतोष नहीं करते कि भगवान ने हमें खुश रहने के लिए जो भी सुख सुविधाएँ एक उपवन के रूप में उपहार स्वरूप दी हैं, भले ही वह उपवन बहुत छोटा हो अर्थात् सुख सुवि धाएँ बहुत ही कम हैं, हम उनका उपयोग करते हुए आनंद प्राप्त करें, और ईश्वर को इसके लिए धन्यवाद दें कि उसने हमें वे सुवि धाएँ प्रदान की हैं इसके विपरीत वे सदैव यही सोच-सोचकर बेचैन रहते हैं कि ईश्वर ने हमें इससे बड़ा उपवन अथवा अधिक सुख-सुविधाएं क्यों प्रदान नहीं की हैं | यह व्यक्ति का सबसे बड़ा दोष है इस दोष से युक्त ईर्ष्यालु व्यक्ति का चरित्र अत्यंत भयावह होता है | ईश्वर द्वारा दिए गए अभावों के बारे में सोचते सोचते वह इतना जड़ हो जाता है कि अपनी स्वाभाक सृजनात्मक क्षमता को भी भूल जाता है वह यह भी नहीं सोच पाता कि जिन सुख सुविधाओं का मेरे जीवन में अभाव है, उनको मैं अपने परिश्रम और सृजनात्मक शक्ति द्वारा भी प्राप्त कर सकता हूँ वह सृजन की अपनी सकारात्मक क्षमता के विपरीत नाश की नकारात्मक दिशा की ओर चलाने लगता है तथा अपनी उन्नति हेतु परिश्रम करना छोड़कर दूसरों को हानि पहुंचाने के उपक्रम में लग जाता है वह इसे ही अपना श्रेय और पुनीत कर्तव्य मानने लगता है |
प्रश्नोत्तर – Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
1- इस गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से; लेखक का नाम – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- उपवन के उदाहरण द्वारा लेखक क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर – उपवन के उदाहरण से लेखक समझाना चाहता है कि ईश्वर ने हमें जो सुख सुविधाएं दी हैं हमें उसमें ही पूर्ण रूप से खुश रहना चाहिए, और बड़े उपवन अर्थात अधिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने की चिंता में डूबा नहीं रहना चाहिए ।
3- ईर्ष्यालु व्यक्ति का चरित्र भयंकर केसे हो जाता है ?
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्ति का चरित्र तब भयंकर हो जाता है, जब वह स्वयं को मिले उपवन का आनंद न लेते हुए इस चिंता में डूबा रहता है कि मुझे इससे ओर बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला ।
4- ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों को हानि पहूँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य क्यों समझता है ?
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्ति स्वयं को प्राप्त न होने वाली सुख सुविधाओं के अभाव के कारण को सोचते हुए दूसरों को
हानि पहँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है |
चिंता को लोग …… …. ………………………………. दूषित करती फिरती है |
संदर्भ- पहले की तरह | Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
प्रसंग- यहाँ पर लेखक ने चिंता को चिता के समान समझाते हुए कहा है कि जो व्यक्ति चिंता में पड़ जाता है उसकी जिंदगी खराब हो जाती है |
व्याख्या- एक कहावत प्रचलित है कि चिंता चिता से भी बढ़कर होती है चिंता चिता से अधिक कष्टकारक इसीलिए बताई गई है, कि चिंता में व्यक्ति तिल तिल करके जलता है जो व्यक्ति चिंताग्रस्त हो जाता है,उसका जीवन लगभग नष्ट जैसा ही हो जाता है उसके जीवन की खुशी समाप्त हो जाती है वह हर समय चिंता में ही घुलता रहता है दिनकर जी ने ईर्ष्या को चिंता से भी अधिक बुरी बताया है उनका मानना है कि ईर्ष्या मानव के मूल गुणों को नष्ट कर देती है मन में ईर्ष्या का भाव पनपते ही व्यक्ति के अंदर मौजूद प्रेम, दया, सहानुभूति, संतोष आदि भाव धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं | ऐसा व्यक्ति अपने सदगुणों को दबाकर विवशता में जीता है दिनकर जी का मत है कि जीवन में सदगुणों को त्यागकर जिंदा रहने की अपेक्षा मृत्यु अधिक श्रेष्ठ है सद्गुणों के अभाव में मनुष्य और पशु में अंतर नहीं रह जाता। ऐसा जीवन जीने से क्या लाभ ? दूसरों के वैभवपूर्ण और सुखी जीवन को देखकर ईर्ष्यालु व्यक्ति कुंठित होकर रह जाता है | उसे अन्य लोगों की तुलना में अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है दूसरी ओर जो व्यक्ति अपने अभावों के कारण चिंताग्रस्त रहता है, समाज के सुखी व्यक्ति उसकी चिंता को समाप्त करने का प्रयास करते हैं, उसके कष्टों के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं और किसी भी सीमा तक उन्हें दूर करने का भी प्रयास किया जाता है | किन्तु ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों को फलता ओर फूलता एवं सुखी जीवन व्यतीत करते देखकर अंदर ही अंदर जलता रहता है, इसीलिए वह व्यक्ति विष की पोटली के समान होता है ऐसी विष से भरी पोटली जहाँ कहीं भी रखी जाती है, वहीं के वायुमंडल को दूषित कर देती है ईर्ष्यालु व्यक्ति वातावरण में ईर्ष्या का दाहक विष मिला देता है वह जहाँ भी जाता है, अपनी ईर्ष्यालु भावनाओं से वहाँ का वातावरण विषाक्त बना देता है |
प्रश्नोत्तर — Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
1- इस गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- चिंता और ईर्ष्या में लेखक ने क्या अंतर बताया है ?
उत्तर – चिंता के कारण व्यक्ति का जीवन खराब हो जाता है, परंतु ईर्ष्या के कारण तो व्यक्ति के मौलिक गुणों का ही नाश हो जाता है |
3- चिंता का दूसरा नाम क्या बताया गया है ?
उत्तर – चिंता का दूसरा नाम चिता बताया गया है |
4- ईर्ष्या से जला-भुना आदमी किसके समान है ?
ईर्ष्या मनुष्य का ……………………………………………………………… दैत्यों का आनंद होता है |
संदर्भ- पहले की तरह |
प्रसंग- यहाँ पर लेखक ने ईर्ष्या जैसे अवगुण को मनुष्य के चरित्र में एक गंभीर दोष माना है, जो ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों को दु:खी देखकर हसँता है, वह राक्षस के समान होता है |
व्याख्या- रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि ईर्ष्या मनुष्य के चरित्र का गंभीर दोष है | ईर्ष्या का यह भाव व्यक्ति के चरित्र का हनन तो करता ही है, उसके आनंद में भी व्यवधान उपस्थित करता है | जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हो जाए, उसे अपना सुख भी हल्का प्रतीत होने लगता है | वह सुखद स्थिति में होते हुए, अथवा सुख की संभावनाएँ निहित होने पर भी सुख से वंचित हो जाता है | सुख के साधन समक्ष होने पर भी उसे सुख की अनुभूति नहीं हो पाती | ईर्ष्या के कारण उसकी विवेकशक्ति नष्ट हो जाती है | वह दूसरों के सुख को देखकर ही दु:खी होने लगता है यहाँ तक कि वह प्राकृतिक सौंदर्यसे भी ईर्ष्या करने लगता है और वह उसके लिए व्यर्थ की वस्तु बन जाता है पक्षियों के कलरव अथवा उनके मधुर स्वर में उसे कोई आकर्षण नजर नहीं आता । उसे सुंदर, खिले हुए पुष्पों से भी ईर्ष्या होने लगती है और उसे उनमें भी किसी प्रकार के सौंदर्यके दर्शन नहीं हो पाते ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने निंदारूपी बाण से अपने प्रतिद्वंद्वियों को बेधकर जब हँसता है तो उसकी हँसी को देखकर कोई व्यक्ति यह कल्पना कर सकता है कि वह इस समय आनंदित है | इस आनंद को वह व्यक्ति उस ईर्ष्यालु व्यक्ति की ईर्ष्या का पुरस्कार भी समझ सकता है, किन्तु यदि उस हँसी पर ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि उस समय भी वह उस वास्तविक आनंद के सुख से वंचित होता है उसकी हँसी राक्षसी होती है और उसका राक्षसीपन उस हँसी की कृति में झलकता रहता है इससे यह स्पष्ट होता है कि वह ईर्ष्यालु व्यक्ति जिस आनंद की अनुभूति करता है, उस दानवीय अनुभूति से भी उसे किसी वास्तविक आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती |
प्रश्नोत्तर – Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
1- इस गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- जब मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या का उदय होता है तो क्या होता है ?
उत्तर – मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या के उदय होने का दुष्परिणाम यह होता है कि उसे अपने सामने का सुख भी अत्यंत कम प्रतीत होने लगता है |
3- ईर्ष्यालु व्यक्ति की हँसी को किसके समान बताया गया है ?
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्ति की हँसी को राक्षसों की हँसी के समान बताया गया है |
4- ईर्ष्यालु व्यक्तियों का आनंद केसा होता है ?
उत्तर – ईर्ष्यालु व्यक्तियों का आनंद दैत्यों के आनंद के समान होता है |
ईर्ष्या का संबंध ……………………………………… सिंकदर हरकुलिस से |
संदर्भ- पहले की तरह |
प्रसंग- यहाँ लेखक ने ईर्ष्या करने का मनोवैज्ञानिक भी कारण बताया है कि प्रतिद्वंद्विता के कारण ही ईर्ष्या जन्म लेती है |
व्याख्या- लेखक के अनुसार ईर्ष्या का संबंध प्रतिद्वंद्विता से होता है | यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि कोई अत्यधिक धनी व्यक्ति किसी कंगाल की ईर्ष्या का पात्र नहीं बन सकता | ईर्ष्या का मनोवैज्ञानिक कारण प्रतिद्वंद्विता है | तथा प्रतिद्वंद्विता समकक्षों में ही उत्पन्न होती है | लेखक ने यहाँ यह भी स्पष्ट किया है कि यह बात ईर्ष्या के पक्ष में जाती है, क्योंकि प्रतिद्वंद्विता या प्रतिद्वंद्विता से ही मनुष्य का विकास होता है | जो व्यक्ति संसार-व्यापी व्यक्तित्व चाहता है, रसेल के अनुसार वह शायद नेपोलियन से प्रतिद्वंद्विता करेगा, किन्तु नेपोलियन भी सीजर से प्रतिद्वंद्विता करता था, और सीजर हरकुलिस से अर्थात् जिस व्यक्तित्व को मनुष्य स्वयं से ज्यादा प्रतिभावान्, शक्तिवान् या धनवान समझता है, वह उसी से प्रतिप्रतिद्वंद्विता करता है, और इस प्रतिद्वंद्विता से ही उसका विकास होता है इस प्रकार प्रतिद्वंद्विता अथवा प्रतिद्वंद्विता ईर्ष्या का ही दूसरा रूप है और यह रूप निश्चय ही उपयोगी है लेखक का भाव यह है कि प्रतिद्वंद्विता की वह भावना, जो रचनात्मक प्रेरणा प्रदान करती है, मनुष्य के विकास में पूर्ण सहायक होती है इसलिए प्रशंसनीय है, किन्तु जो प्रतिद्वंद्विता हृदय में किसी के प्रति जलन उत्पन्न करके उसकी निंदा की प्रेरणा देती है, वह सर्वथा उचित नहीं है |
प्रश्नोत्तर Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
1- इस गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- ईर्ष्या का संबंध प्रतिद्वंद्विता से होता है इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर – इस कथन का आशय है कि प्रतिद्वंद्विता ही ईर्ष्या को जन्म देती है व्यक्ति उसी व्यक्ति से ईर्ष्या करता है जिससे प्रतिद्वंद्विता करता है |
3- गद्यांश के अनुसार मनुष्य का विकास किसके द्वारा होता है ?
उत्तर – गद्यांश के अनुसार मनुष्य का विकास प्रतिद्वंद्विता के द्वारा ही होता है |
4- सीजर किससे व सीजर से कौन प्रतिद्वंद्विता करता था ?
उत्तर – सीजर सिकंदर से तथा नेपोलियन सीजर से प्रतिप्रतिद्वंद्विता करता था ।
आपने यही देखा …………………………………………………………………………….. चुप कर सकता हूँ
संदर्भ- पहले की तरह |
प्रसंग- यहाँ पर लेखक ने सज्जन लोगों की बुरे लोगों द्वारा की जाने वाली निंदा के परिणामस्वरूप सज्जन लोगों की मनोस्थिति का वर्णन किया है |
व्याख्या- यहाँ पर लेखक कहते हैं कि हम अधिकांशत: देखते हैं कि जो लोग सज्जन होते हैं वे यह सोच-सोचकर परेशान होते रहते हैं कि दूसरा व्यक्ति ईर्ष्या क्यों करता हैं, मैंने तो उसका कुछ भी बुरा नहीं किया, फिर भी वह व्यक्ति हर समय चारों तरफ मेरे प्रति निंदा युक्त शब्द बोलता रहता है | वास्तव में मैंने तो हमेशा उसका भला ही चाहा है और उसकी भलाई के कार्य किए हैं वह सोचता है कि मेरा मन तो पत्र है, मेरे मन में तो किसी भी व्यक्ति के लिए बुरी भावना नहीं है, मैं तो अपने दुश्मनों या विरोधियों की भी भलाई चाहता हूँ, फिर भी ये लोग जिनका मैंने भला किया है , वे मेरी निंदा क्यों करते रहते हैं ? मेरे अंदर ऐसी कौन सी बुराई है, जिसको स्वयं से दूर करके मैं इन अपने प्रियमित्रों को शांत कर सकता हूँ, अर्थात् अपने किस दुर्गण को त्यागकर मैं अपनेमित्रों द्वारा की जाने वाली निंदा से बच सकता हॅूँ |
प्रश्नोत्तर
1- इस गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- शरीफ लोग अपना सिर क्यों खुजलाते हैं ?
उत्तर – शरीफ लोग अपना सिर यह सोच-सोचकर खुजलाते हैं कि हम जिसका अच्छा चाहते हैं वही हमारी निंदा क्यों करता है |
3- पाक साफ होने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – पाक साफ होने से अभिप्राय मन के पवित्र होने से है अर्थात् मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना का न होना।
ये मक्खियाँ हमें ………………………………………………… अपकार ही मिलेगा ।
संदर्भ- पहले की तरह |
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प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने महान लेखक नीत्से के विचार प्रकट किए हैं कि ईर्ष्यालु व्यक्ति मक्खियों के समान होते हैं |
व्याख्या- यहाँ पर लेखक दिनकर जी ने प्रस्तुत गद्यांश में महान लेखक नीत्से के विचारों को प्रस्तुत करते हुए कहा है कि नीत्से के अनुसार ईर्ष्यालु व्यक्ति मक्खियों के समान होते हैं, जो हमारे अंदर विद्यमान सदगुणों के कारण निंदा करके हमें दंड देते हैं अर्थात् वे हमारे अंदर की बुराइयों की तरफ न देखकर हमारे सदगुणों के कारण हमारी निंदा करते हैं ये व्यक्ति हमारी बुराइयों को तो क्षमा कर देते हैं क्योंकि संपन्न लोगों के अंदर विद्यमान बुराइयों को क्षमा करने में वे गर्व महसूस करते हैं और इसी गर्व की अनुभूति के लिए ये लोग हमेशा लालायित रहते हैं | परंतु जिन व्यक्तियों का चरित्र व गुण महान् तथा पवित्र और बड़ा होता है | वे लोग इन लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं और कहते हैं कि जो लोग दूसरों की निंदा करते हैं, वे स्वयं में बहुत हीं होते है । इसके विपरीत जो व्यक्ति संकुचित हृदय व सोच वाले होते हैं, वे यह सोचते हैं कि समाज में जितने भी संपन्न लोग हैं उनकी निंदा करना ही उचित मार्ग है, क्योंकि हम उनका कितना भी अच्छा करें, उनसे कितना भी प्रेम करें और उनके प्रति कितने ही उदार क्यों न हो जाएँ, तब भी वे यही समझते रहते हैं कि हम उनसे नफरत करते हैं हम चाहे इन व्यक्तियों का कितना ही भला सोच लें और भला कर लें, उसके बदले में ये संपन्न लोग हमारा बुरा ही करेंगे |
प्रश्नोत्तर 1- इस गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक का नाम – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- इस गद्यांश में लेखक ने ‘मक्खियाँ ’ किन्हें बताया है ?
उत्तर – लेखक ने इस गद्यांश में ईर्ष्यालु व्यक्तियों को मक्खियाँ बताया है
3- उन्नत चरित्र वाले क्या कहते हैं ?
उत्तर – उन्नत चरित्र वाले लोग कहते हैं कि जो लोग ईर्ष्यालु होते हैं, वे हमेशा दुसरे लोगो की निंदा करते हैं | इनकी बातों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए ।
4- छोटे दिल वाले लोग क्या मानते हैं ?
उत्तर – छोटे दिल वाले लोग मानते हैं कि हम बड़े लोगों का कितना भी उपकार, भलाई अथवा प्यार कर लें वे हमारा बुरा ही करेंगे |

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सारे अनुभवों को ……………………………………………………………. भिनकती, वहाँ एकांत है |
संदर्भ- पहले की तरह |
प्रसंग- यहाँ पर लेखक ने नीत्से के चार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि व्यक्तियों के महान समझे जाने वाले गुणों के कारण ही लोग उनसे जलते हैं |
व्याख्या- यहाँ पर लेखक कहते है कि महान् लेखक नीत्से ने अपने सारे अनुभवों को संगठित करके कहा है कि मनुष्य में विद्यमान जो गुण महान् समझे जाते हैं, उन्हीं गुणों के कारण लोग उनसे ईर्ष्या भी करते हैं अर्थात् गुणवान व्यक्ति भी अपने गुणों के कारण लोगों के द्वारा निंदित किए जाते हैं | समाज में लोग प्राय: दूसरों के धन, वैभव, यश आदि को देखकर जलते हैं | नीत्से ने ऐसे लोगों को मक्खियों की संज्ञा दी है और कहा है कि हमें ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए । ऐसे ईर्ष्यालु व्यक्तियों से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि उनका साथ छोड़कर दूर एकांत में चले जाना चाहिए । जो व्यक्ति जीवन में कुछ करना चाहते हैं, उन्हें बाजार की मक्खियों के समान भिनभिनाने वाले व्यक्तियों से दूर रहना आवश्यक है | इन बाजारू मक्खियों के साथ रहकर कोई भी चिंतन मनन का कार्य नहीं हो सकता । कोई भी महान अथवा अमर कार्य बाजार में रहकर नहीं किया जा सकता। ऐसे बाजार के बीच यश और प्रसिद्धि के लालच में किया जाने वाला कार्य कभी भी महान नहीं हो सकता । जो लोग समाज के निर्माण और उत्थान के लिए नए नए मूल्यों का निर्माण करते हैं, नए नए सिद्धांतों की रचना करते हैं और मानव-जीवन को नवीन दिशा और चेतना प्रदान करते हैं, वे लोग भीड़ भरे बाजार में रहकर नहीं, बाजार से दूर एकांत में अपना कार्य करते हैं, उनके मन में मानव कल्याण की भावना होती है, यश की कामना या लोभ नहीं | अंत में लेखक का मानना है कि असली एकांत वहीं है, जहाँ बाजारू मक्खियाँ नहीं भिनभिनाती हैं तात्पर्य यह है कि जहाँ पर किसी के यश और वैभव को देखकर जलने वाले और निंदा करने वाले लोग नहीं रहते, वहीं एकांत है |
प्रश्नोत्तर
1- इस गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर – पाठ का नाम – ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से, लेखक- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
2- नीत्से ने दूसरे सूत्र में क्या कहा है ?
उत्तर – नीत्से ने दूसरे सूत्र में कहा है कि व्यक्ति में विद्यमान जो गुण महान्, समझे जाते हैं, उन्हीं गुणों के कारण लोग उनसे ईर्ष्या भी करते हैं |
3- ईर्ष्यालु लोगों से बचने का नीत्से ने क्या उपाय बताया है ?
उत्तर – नीत्से ने ईर्ष्यालु लोगों से बचने का एकमात्र उपाय उनसे दूर रहना बताया है, अर्थात् व्यक्तियों को ऐसे स्थान में रहना चाहिए जहाँ ईर्ष्यालु लोग न पहुंच सकें ।

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(घ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रामधारी सिंह का जन्म बिहार में कहाँ हुआ था?
1- भागलपुर 2- मुंगेर 3- मोकामाघाट 4- इनमें से कोई नहीं

२. दिनकर जी का निधन हुआ-
1- 196२ में 2- 1933 में 3- 1974 में 4- 1975 में
निम्न में से दिनकर जी की रचना है
1- रेती के फूल 2- पत्रता 3- कन्यादान 4- विचार विमर्श
नीम के पत्ते’ कृति के रचनाकार हैं-
1- रामवृक्ष बेनीपुरी 2- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ 3- अज्ञेय 4- जयप्रकाश भारती


(च) व्याकरण एवं रचनाबोध पर आधारित प्रश्न Up board class 10 hindi solution chapter 4: ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से

निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय अलग कीजिए-
शब्द —-मूल शब्द प्रत्यय
मौलिक मूल इक
रचनात्मक रचना आत्मक
लाभदायक लाभ दायक
ईर्ष्यालु ईर्ष्या लु
२. निम्नलिखित शब्द युग्मों का वाक्य प्रयोग करके अर्थ स्पष्ट कीजिए-
निंदा – निंदक = निंदक व्यक्ति दूसरे लोगों की निंदा इसलिए करते हैं, जिससे वह दूसरे लोगों की नजरों में गिर
जाएं |
उद्यम-उद्यमी = उद्यमी व्यक्ति अपने उद्यम के द्वारा लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं |
मूर्ति – मूर्त = मूर्तिकार अपनी कल्पना को अपनी मूर्ति में मूर्त रूप प्रदान करता है |
जिज्ञासा – जिज्ञासु = अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए जिज्ञासु इधर उधर भटकता है |
ईर्ष्या – ईर्ष्यालु = ईर्ष्यालु व्यक्ति ईर्ष्या के कारण ही लोगों की निंदा करते हैं |

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Up Board Class 10 hindi solution chapter 3 भारतीय संस्कृति डॉ राजेंद्र प्रसाद

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