UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 4 BIHARILAL पदों का सन्दर्भ सहित अनुवाद
UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 4 BIHARILAL पदों की सन्दर्भ सहित व्याख्या
दोहा – 1
मेरी भव् बाधा हरौ राधा नागरि सोई ।
जा तन की झाई परै, स्यामु हरित दुति होइ॥
शब्दार्थ –
भव बाधा = सांसारिक दु:ख। हरौ = दूर करो। नागरि = चतुर। झाईं परै = प्रतिबिम्ब, झलक पड़ने पर । स्यामु = श्रीकृष्ण, नीला । हरित-दुति = हरी कान्ति, प्रसन्न, हरण हो गयी है । दुति = कांतिहीन
सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के “काव्य-खण्ड’” में संकलित रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारीलाल द्वारा रचित “बिहारी सतसई’’ के ‘भक्ति’ नामक शीर्षक से अवतरित है ।
प्रसंग – कवि ने इस दोहे में में राधा जी की वन्दना की है ।
व्याख्या –
1. वह चतुर राधा जी मेरे सांसारिक कष्टों को दूर करें, जिनके पीलीचमक वाले शरीर की झाँई (प्रतिबिम्ब) पड़ने से श्याम रंग के श्रीकृष्ण हरित वर्ण की कान्ति वाले अर्थात् हरे रंग के हो जाते हैं ।
अथवा
2. वह चतुर राधा जी आप मेरे सांसारिक कष्टों को दूर करें जिनके ज्ञानमय (गौर) शरीर की झलकमात्र से मन की श्यामलता (पाप) नष्ट हो जाती है।
काव्यगत सौन्दर्य –
1. कवि ने प्रस्तुत दोहे में प्रमुख रूप से राधा की वन्दना की है।
2. नीला और पीला रंग मिलकर हरा रंग हो जाता है। यहाँ बिहारी का चित्रकला का ज्ञान प्रकट हुआ है।
3.भाषा – ब्रज।
4.शैली – मुक्तक शैली ।
5.रस – श्रृंगार रस और भक्ति रस ।
6.छन्द – दोहा छन्द ।
7. अलंकार – स्यामु हरित-दुति’ के अनेक अर्थ होने से श्लेष अलंकार की छटा बन पड़ी है।
8.गुण – प्रसाद और माधुर्य ।
9.बिहारी ने निम्नलिखित दोहे में भी अपने रंगों के ज्ञान का परिचय दिया है-
अधर धरत हरि कै परत, ओठ डीठि पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष सँग होति ॥
दोहा 2
मोर मुकुट की चंद्रिकनु यौं राजत नंदनंद ।।
मनु संसि सेखर की अकस, किय सेखर सत चंद ॥
शब्दार्थ –
मोर मुकुट = मोर के पंख रुपी मुकुट। चंद्रिकनु = चन्द्रिकाएँ । राजत = शोभायमान होना । ससि सेखर = चन्द्रमा जिनके सिर पर है (भगवान् शंकर) । अकस = जलन ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के “काव्य-खण्ड’” में संकलित रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारीलाल द्वारा रचित “बिहारी सतसई’’ के ‘भक्ति’ नामक शीर्षक से अवतरित है ।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहे में श्रीकृष्ण के सिर पर लगे हुए मोर मुकुट की चन्द्रिकाओं का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है ।
व्याख्या – बिहारी लाल जी कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण के सिर पर मोर पंखों का मुकुट बहुत शोभा दे रहा है । उन मोर पंखों के बीच में बनी सुनहरी चन्द्राकार चन्द्रिकाएँ देखकर ऐसा लगता है जैसे मानो भगवान शंकर से प्रतिस्पर्धा करने के लिए उन्होंने (श्री कृष्ण ने) सैकड़ों चन्द्रमा अपने सिर पर धारण कर लिये हों ।
काव्यगत सौन्दर्य –
1. यहाँ श्रीकृष्ण के अनुपम सुन्दरता बड़ा ही मोहक वर्णन हुआ है।
2. मोर मुकुट की चन्द्रिका की तुलना भगवान शंकर के सिर पर स्थित चन्द्रमा से करके कवि ने अपनी अदभुत काव्य कल्पना का परिचय दिया है ।
3.भाषा – ब्रज भाषा ।
4. शैली – मुक्तक शैली ।
5.छन्द – दोहा ।
6.रस – श्रृंगार रस ।
7. अलंकार — मनु ससि सेखर की अकस किय सेखर सत चंद में उत्प्रेक्षा अलंकार ।
8.गुण – माधुर्य।
दोहा – 3
सोहत ओढ़ पीत पटु, स्याम सलौने गात ।
मनो नील मनि सैल पर आतपु परयो प्रभात ||
शब्दार्थ –
सोहत = सुशोभित हो रहे हैं । पीत पटु = पीले वस्त्र । सलौने = सुन्दर। गात = शरीर। नीलमनि सैल = नीलमणि पर्वत । आतपु = प्रकाश। प्रभात= सुबह ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के “काव्य-खण्ड’” में संकलित रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारीलाल द्वारा रचित “बिहारी सतसई’’ के ‘भक्ति’ नामक शीर्षक से अवतरित है ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के “काव्य-खण्ड’” में संकलित रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारीलाल द्वारा रचित “बिहारी सतसई’’ के ‘भक्ति’ नामक शीर्षक से अवतरित है ।
प्रसंग – इस दोहे में पीला वस्त्र ओढ़े हुए श्रीकृष्ण की सुन्दरता की तुलना नीलमणि पर्वत से की है ।
व्याख्या – श्रीकृष्ण का श्याम रंग का शरीर अत्यन्त सुन्दर है । वे अपने शरीर पर पीले वस्त्र पहने इस प्रकार सुशोभित हो रहे रहे हैं मानो नीलमणि के पर्वत पर प्रात:काल की पीले रंग की धूप पड़ रही हो । यहाँ श्रीकृष्ण के श्याम वर्ण के साथ पीले वस्त्रों की तुलना नीलमणि शैल पर पड़ने वाली प्रात:कालीन धुप से की गयी है।
UP BOARD CLASS 10 HINDI FULL SOLUTION CHAPTER 4 BIHARILAL
काव्यगत सौन्दर्य –
- श्री कृष्ण के श्याम रंग वाले शरीर पर पीले वस्त्रों की सुन्दरता का अद्भुत वर्णन है।
- भाषा – ब्रज भाषा ।
- शैली – मुक्तक शैली ।
- .छन्द – दोहा ।
- रस – श्रृंगार रस ।
- अलंकार – पीत पट तथा स्याम सलौने में अनुप्रास अलंकार तथा ‘मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयो प्रभात” में उत्प्रेक्षा अलंकार ।
- .गुण – माधुर्य ।
दोहा 4
अधर धरत हरि कै परत ओठ डीठि पट जोति ।।
हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्रधनुष रंग होति ॥
शब्दार्थ
अधर = नीचे का होंठ । ओठ डीठि पट जोति = होंठों की लाल, दृष्टि की श्वेत, वस्त्र की पीत कान्ति ।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहे में बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की हरे रंग की बाँसुरी पर पड़ने बाली वस्त्रो होठो की काँटी का वर्णन किया गया गया है।
व्याख्या – श्रीकृष्ण जब अपने लाल वर्ण के होठों पर हरे रंग की बाँसुरी रखकर बजाते है | उस समय उनकी दृष्टि की श्वेत छटा पीले वस्त्र की पीली छटा तथा शरीर के श्याम वर्ण की कान्ति लाल रंग के होठों पर रखी हुई हरे रंग की बाँसुरी पर पड़ती है तो वह (बाँसुरी) इन्द्रधनुष के समान बहुरंगी शोभा वाली हो जाती है ।
काव्यगत सौन्दर्य –
- बिहारी के रंगों के संयोजन का अद्भुत ज्ञान प्रस्तुत दोहे दिखाई देता है |
- भाषा – ब्रज भाषा ।
- शैली – मुक्तक शैली ।
- छन्द – दोहा ।
- रस – भक्ति रस ।
- अलंकार – पूरे दोहे में अनुप्रास अलंकार , अधर धरत में यमक अलंकर तथा बाँसुरी के रंगों से इन्द्रधनुष के रंगों की तुलना में उपमा अलंकार ।
- गुण – प्रसाद।।
दोहा – 5
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोई ।।
ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रँग, त्यों-त्यौं उज्जवल होई ॥
शब्दार्थ –
अनुरागी = प्रेम करने वाला । गति = दशा। बूड़े = डूबता है । स्याम रंग = काले रंग कृष्ण भक्ति के रंग में । उज्जलु = पवित्र, सफेद ।
प्रसंग – प्रस्तुत दोहे में बिहारीलाल जी ने बताया है कि श्रीकृष्ण के प्रेम से मन की मलीनता दूर हो जाती है ।
व्याख्या – बिहारीलाल का कहना है कि श्रीकृष्ण से प्रेम करने वाला जो मेरा मन है उसकी दशा अत्यन्त विचित्र है । इसकी दशा को कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि प्रत्येक वस्तु काले रंग में डूबने पर काली हो जाती है । श्रीकृष्ण भी श्याम रंग के हैं, किन्तु कृष्ण के प्रेम में डूबा हुआ यह मेरा मन जैसे जैसे श्याम रंग (कृष्ण की , भक्ति, ध्यान) में मग्न होता है, वैसे-वैसे श्वेत अर्थात पवित्र होता जाता है ।
काव्यगत सौन्दर्य –
1. कृष्ण की भक्ति में लीन होकर मन पवित्र हो जाता है। इस भावना की बड़ी ही उत्कृष्ट अंभिव्यक्ति की गयी है ।
2.भाषा – ब्रज भाषा ।
3.शैली – मुक्तक शैली ।
4.रस – शान्त रस ।
5.छन्द – दोहा ।
6.अलंकारे – “”ज्यों ज्यौं बूड़े स्याम रँग, त्यौं-त्यौं उज्ज्वल होय”” में श्लेष अलंकार , तथा विरोधाभास अलंकार ।
7.गुण – माधुर्य ।
दोहा – 6
तौ लगु या मन सदन में हरि आबे किहिं बाट ।
विकट जटे जौ लगु निपट, खुटै न कपट कपाट ॥
शब्दार्थ –
मन सदन = मनरूपी घर । बाट = मार्ग। जटे = जड़े हुए। तौ लगु = तब तक। जौ लगु = जब तक। निपट = अत्यन्त । खुटै = खुलेंगे । कपट कपाट = कपटरूपी किवाड़ ।
प्रसंग – इस दोहे में ईस्वर की कृपा पाने के लिए कपट का त्याग करना आवश्यक बताया है।
व्याख्या – कविवर बिहारीलाल का कहना है कि इस मनरूपी घर में तब तक ईश्वर किस मार्ग से प्रवेश कर सकता है, जब तक मनरूपी घर में जटिल रूप से बन्द किये हुए कपटरूपी किवाड़ पूरी तरह से नहीं खुल जाते, अर्थात हृदय से कपट निकाल देने पर ही हृदय में ईश्वर का प्रवेश व सम्भव है ।
काव्यगत सौन्दर्य –
1. ईश्वर की प्राप्ति निर्मल मन के द्वारा ही सम्भव है। इस भावना की कवि ने यहाँ उचित अभिव्यक्ति की है
2.भाषा – ब्रज भाषा ।
3.शैली – मुक्तक शैली ।
4.रस – भक्ति रस ।
5.छन्द – दोहा ।
6.अलंकार – मन सदन, ‘कपट कपाट में रूपक तथा अनुप्रास अलंकार ।
7.गुण – प्रसाद ।
दोहा – 7
जगतु जनायौ जिहिं सकलु सो हरि जान्यौ नाँहि ।
ज्यौं आँखिनु सबु देखिये, आँखि न देखी जाँहि ॥
शब्दार्थ –
जनायौ = ज्ञान कराया, बनाया । सकलु = सम्पूर्ण । जान्यौ नाँहि = नहीं जाना, ||
प्रसंग – इस दोहे में कवि बिहारी ने भगवन की भक्ति करने की सलाह दी है।
व्याख्या – कवि का कथन है कि जिस भगवान ने तुम्हें समस्त संसार का ज्ञान कराया है, उसी भगवान को तुम नहीं समझ पाये। जैसे आँखों से सब कुछ देखा जा सकता है, परन्तु आँखें अपने आप को नहीं देख सकतीं ।
काव्यगत सौन्दर्य – UP BOARD INFO
- सम्पूर्ण संसार का ज्ञान कराने वाले ईश्वर की स्थिति से अनजान मनुष्य का सजीव चित्रण किया गया है।
2.भाषा -ब्रज भाषा ।
3.शैली – मुक्तक शैली ।
4.छन्द – दोहा छंद ।
5.रस – शान्त रस ।
6.गुण – प्रसाद ।
7.अलंकार – अनुप्रास और द्रष्टान्त अलंकार ।
दोहा 8
जप, माला, छापा, तिलक, सरै न एकौ कामु ।
मन काँचै नाचे वृथा, साँचे राँचे रामु ॥
शब्दार्थ –
जप = जपना । माला = माला फेरना । छापा = चन्दन का छापा लगाना। तिलक = तिलक लगाना। सरै = पूरा होता है. सिद्ध होता है। एकौ कामु = एक भी कार्य। मन काँचै = कच्चे मन वाला। नाचे = भटकता रहता है। राँचे = प्रसन्न होते हैं।
प्रसंग – कविवर बिहारी द्वारा रचित इस दोहे में बाहरी आडम्बरो की निरर्थक बताया है तथा भगवन की भक्ति पर बल दिया है |
व्याख्या – कवि का कथन है कि जप करने, माला फेरने, तथा चन्दन का तिलक लगाने आदि बाहरी क्रियाओं से कोई भी काम पूरा नहीं होता। इन आडम्बरों से सच्ची भक्ति नहीं होती है। जिनका मन ईश्वर की भक्ति करने से कतराता है अर्थात भक्ति करने में कच्चा है, वह व्यर्थ ही इधर उधर की क्रियाओं में मारा-मारा फिरता है । ईश्वर तो केवल सच्चे मन की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं ।
काव्यगत सौन्दर्य –
- कवि बिहारी ईश्वर की सच्ची भक्ति पर बल देते है तथा बाह्य आडम्बरो का खंडन करते है |
2.भाषा – साहित्यिक ब्रज भाषा ।
3.शैली – मुक्तक शैली ।
4.रस – शान्त रस ।
5.छन्द – दोहा छंद ।
6.अलंकार – अनुप्रास।
7.गुण – प्रसाद
8 . कबीर दास भी इस बिषय में कहते है —
माला तो कर में फिरै, जिह्वा मुख में माँहि ।
मनुवा तो दस दिस फिरै, ये तो सुमिरन नाहिं ॥
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